एक अधूरी महाभारत : Ek Adhuri Mahabharat
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संसार में आतंकवाद ने, जिस तरह सिर उठाकर अपनी आसुरी शक्ति का प्रभाव डाला है, उससे हमारा देश ही नहीं, समस्त विश्व त्रस्त है। पर वह दिन अब दूर नहीं जब दसों दिशाओं में मां दुर्गा के संहारक हाथ उठेंगे और आतंकवाद का पूरे विश्व से सफाया कर देंगे। इस उपन्यास के कथानक में, रीमा भारती को प्रतीक के रूप में, उस समस्या से संघर्ष करता हुआ देखकर आप स्वयं ऐसा महसूस करेंगे।
Ek Adhuri Mahabharat
Reema Bharti
Ravi Pocket Books
BookMadaari
प्रस्तुत उपन्यास के सभी पात्र एवं घटनायें काल्पनिक हैं। किसी जीवित अथवा मृत व्यक्ति से इनका कतई कोई सम्बन्ध नहीं है। समानता संयोग से हो सकती है। उपन्यास का उद्देश्य मात्र मनोरंजन है। प्रस्तुत उपन्यास में दिए गए हिंसक दृश्यों, धूम्रपान, मधपान अथवा किसी अन्य मादक पदार्थों के सेवन का प्रकाशक या लेखक कत्तई समर्थन नहीं करते। इस प्रकार के दृश्य पाठकों को इन कृत्यों को प्रेरित करने के लिए नहीं बल्कि कथानक को वास्तविक रूप में दर्शाने के लिए दिए गए हैं। पाठकों से अनुरोध है की इन कृत्यों वे दुर्व्यसनों को दूर ही रखें। यह उपन्यास मात्र 18 + की आयु के लिए ही प्रकाशित किया गया है। उपन्यासब आगे पड़ने से पाठक अपनी सहमति दर्ज कर रहा है की वह 18 + है।
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एक अधूरी महाभारत
उस बेहद विशाल बैलून का रंग आसमानी था और वह निरंतर किसी अदृश्य शक्ति अथवा हवा के दबाव से अन्तरिक्ष में उड़ता जा रहा था।
कुछ पलों बाद ऊपर उठता हुआ वह एक स्पॉट पर पहुँचकर स्थिर हुआ।
रीमा की दृष्टि उसके ऊपर ही जमी हुई थी।
इसका कारण था। गुब्बारे की आकृति बढ़ रही थी। यूं मानो कोई अदृश्य शक्ति उसका आकार बढ़ा रही हो। अथवा उसके भीतर मौजूद गैस ने सहसा बढ़ना आरंभ कर दिया हो, परिणाम स्वरूप गुब्बारा फूलता जा रहा हो।
और फिर वही हुआ जो स्वभाविक था।
एक हल्का-सा झटका—और गुब्बारा फट गया। उस विशालकाय गुब्बारे के अवशेष कहां गये? यह रीमा नहीं देख सकी, किन्तु उसने एक अभूतपूर्व दृश्य अवश्य देखा।
वहां जहां थोड़ी देर पहले गुब्बारा मौजूद था, वहां खुले आसमान में काले-भूरे रंग के बादल के कतरे तैर रहे थे।
उनकी गति तीव्र थी और वे आपस में एक-दूसरे की ओर बढ़ रहे थे।
रीमा की आंखों में दिलचस्पी के भाव उभरे, जो क्षण-प्रतिक्षण बढ़ते चले गये।
कारण यह कि बादल के वे टुकड़े अपना आकार भी बढ़ा रहे थे और उनका आकार छल्लों का आकार धारण करता जा रहा था।
आश्चर्य कि जहां गोलाई में बादल के अवशेष थे, उसके अगल-बगल दूर-दूर तक आसमान साफ था।
बैलून से निकलकर बादल के टुकड़े अपना आकार बढ़ाते-बढ़ाते भूरे-काले बादलों में तब्दील होते हुए एक खास दायरे में फैलने लगे थे।
आश्चर्य की बात तो ये थी कि वे अभी भी आपस में संयुक्त थे और उनका एक कतरा भी अलग होकर अन्यत्र नहीं गया था।
देखते ही देखते हल्की-सी गड़गड़ाहट हुई। इससे पूर्व आकाशीय बिजली चमकदार वक्र रेखा के रूप में चमकी थी।
और फिर!
देखते ही देखते मूसलाधार बारिश होने लगी।
नीचे तेज धूप में नहाते पेड़, पहाड़ मुंह उठाये खड़े थे। कारण यह कि सूर्यदेव बादलों के उस झुन्ड से दूर थे और अपनी प्रखर छटा बिखेर रहे थे। किंतु उनकी छटा का बादलों पर कोई असर न पड़ा था और बारिश तेज होती जा रही थी।
बादल उमड़-घुमड़कर बरसते रहे। किंतु क्या मजाल जो बादलों का एक कतरा भी बादलों के उस विशाल झुन्ड को छोड़कर कहीं गया हो। वे सब के सब संयुक्त थे और बरस रहे थे।
रीमा उस मूसलाधार बारिश को देखकर आश्चर्यचकित थी।
वो था भी आश्चर्यजनक!
महान आश्चर्य!
धरती का वो हिस्सा बारिश में नहाकर सराबोर हो रहा था और अगल-बगल की जमीन पर आग बरस रही थी।
हवा के झोंके भी बादलों पर कोई प्रभाव नहीं डाल रहे थे। वे अपने स्थान से जरा भी टस से मस हुए बगैर निरंतर झमाझम बरस रहे थे।
बिजली चमक रही थी। बादल गरज रहे थे।
रीमा आंखों में विस्मय के गहरे भाव समेटे उस विहंगम दृश्य को देख रही थी।
रीमा! अर्थात् रीमा भारती।
भारत की सर्वाधिक गुप्त व महत्वपूर्ण जासूसी संस्था आई.एस.सी. यानि इंडियन सीक्रेट कोर की नम्बर वन एजेंट।
मौत से भी खतरनाक!
दोस्तों की दोस्त!
किंतु!
दुश्मनों पर टूटकर गिरने वाली एक ऐसी बिजली जो देश और समाज के दुश्मनों को उनके नापाक इरादों के साथ जलाकर खाक कर दिया करती थी।
उसके कदमों की आहट सुनकर शत्रु के खेमें में खलबली मच जाया करती थी।
उसके चाहने वालों ने उसे ‘वन वूमेन आर्मी’ की उपाधि दी हुई थी।
रीमा को आज तक उसके डिपार्टमेन्ट की ओर से एक से बढ़कर एक खतरनाक मिशन सौंपे जा चुके थे, किन्तु रीमा भी वो खतरनाक शेरनी थी जो आज तक कभी भी नाकाम नहीं हुई थी।
दुश्मनों ने उसके हर कदम पर चाहे कितना भी खतरनाक से खतरनाक जाल क्यों न बिछा दिया हो, उसने दुश्मनों के हर जाल के परखच्चे उड़ा दिये थे। अन्ततः विजयश्री ने रीमा का ही साथ दिया था।
इसका कारण था—रीमा के सारे प्रयास सच्चाई व इंसानियत को मद्देनजर रखकर होते थे। सीधे शब्दों में उसके हाथ में सत्य रूपी तलवार थी।
यही वजह थी कि उसका दुश्मन कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, सफलता ने हमेशा उसके ही कदम चूमे थे।
इस वक्त रीमा आई.एस.सी. के हैडक्वार्टर में स्थित चीफ खुराना के प्रोजेक्टर रूम में थी।
चीफ के संकेत पर एक दीवार ही फिल्म के परदे का काम करने लगी थी और एक प्रोजेक्टर द्वारा ये फिल्म दिखाई जा रही थी।
चूंकि फिल्म पुरानी थी और उसे प्रोजेक्टर द्वारा ही दिखाना संभव था, अतः यही प्रक्रिया चल रही थी।
टेबल के उस पार स्वयं खुराना मौजूद था।
वो इत्मीनान से बैठा सिगार के कश लगा रहा था।
कदाचित उस दृश्य को बार-बार देख चुकने के कारण उसकी उस फिल्म में कोई रुचि नहीं रह गई थी।
इस समय वह सिर्फ रीमा को वो फिल्म दिखाना चाहता था और वही कर रहा था।
बादल उमड़-घुमड़कर बरसते रहे। काफी बरसात हुई।
तदुपरांत!
वो बादल हवा में विलीन हो गये, इस प्रकार मानो कभी उनका अस्तित्व था ही नहीं। चीफ के संकेत पर प्रोजेक्टर ऑफ कर दिया गया।
दीवार सपाट हो गई।
उधर रीमा की दृष्टि अपने भारी-भरकम चीफ के चेहरे पर जा टिकी। उस समय रीमा के जेहन में एक ही सवाल था, उसने उसे वो फिल्म क्यों दिखाई थी?
जाहिर था उसे चीफ द्वारा वो फिल्म दिखाया जाना निष्प्रयोजन नहीं हो सकता था। खुराना कोई भी काम निष्प्रयोजन नहीं किया करता था।
आई.एस.सी. का चीफ खुराना।
अपने आपमें एक विलक्षण हस्ती।
अद्भुत कार्यक्षमता थी उसकी।
लोग कहते थे कि उसकी सैंकड़ों आंखें थीं। हजारों हाथ। कई अवसरों पर रीमा स्वयं अपनी आंखों से उसकी चुस्ती-फुर्ती देख चुकी थी। और—निसंदह आई.एस.सी. जैसी संस्था का चीफ होने के नाते खुराना हिन्दुस्तान के चन्द गिने-चुने शक्तिशाली लोगों में से एक था। और जाहिर था कि उसमें कुछ तो ऐसा था ही—ऐसा खास, जो वह ‘ऐसा’ था।
रीमा देखती रही।
चीफ सिगार फूंकता रहा।
उसे मानो ध्यान ही नहीं रहा था कि इस समय उसकी नम्बर वन एजेन्ट उसके सामने उपस्थित है।
रीमा ने बेचैनी से पहलू बदला, फिर हौले से खरखरायी।
चीफ चौंक गया, उसने रीमा की ओर यूं देखा जैसे रीमा की उपस्थिति को वह भूल ही बैठा हो।
उसने सिगार को मेज पर रखी एशट्रे में फैंका, फिर उसकी भाव-भंगिमा ऐसी हो गई जैसे कुछ कहने के लिए शब्द तलाश रहा हो।
रीमा उसके बोलने की प्रतीक्षा ही कर सकती थी।
इसलिये वह खामोश रहकर उसके बोलने की प्रतीक्षा करने लगी।
¶¶
“तुमने ये फिल्म देखी?” कुछ पल बाद खुराना ने अपना मौनव्रत तोड़ा—“कुछ समझ में आया?”
“य.....सर.....।” रीमा के स्वर में आश्चर्य था। जाहिर था कि खुद उसकी ‘समझ’ नहीं आ रहा था कि चीफ उसे क्या ‘समझाना’ चाह रहा है? फिर स्वयं को संभालकर वह बोली—“उस.....उस बैलून में किसी टेक्नीक से बादल कैद थे और एक निश्चित ऊँचाई पर पहुँचकर वे वर्षा करने लगे.....।”
“गुड.....। यही हम तुम्हें दिखाना चाहते थे।” चीफ ने यूं संतुष्टि से सिर हिलाया, मानो कि बड़ा कारनामा किया हो। और फिर नया सिगार सुलगाते हुए बोला था—”चूंकि ये सब सीमा पर आज से पूरे सात वर्ष पहले घटा था और इस फिल्म को सेना के उपग्रह ने शूट किया था, इसलिये मैं ये नहीं समझ पा रहा था कि तुम्हारी समझ में आयेगा या नहीं?”
“यस सर!”
रीमा के गुलाबी होंठों से इतना ही निकला था। उसकी आंखें सिकुड़ गई थीं।
स्पष्ट था कि वह पूरा चक्कर जानने हेतु उत्सुक हो उठी थी।
“मैं तुम्हें संक्षेप में पूरा किस्सा सुनाता हूं, तभी तुम बेहतर ढंग से समझ सकोगी।” चीफ खुराना सिगार का गहरा कश लगाते हुए बोला था—“यह आज से छः साल आठ माह पहले की घटना है। राजस्थान के एक मेधावी वैज्ञानिक प्रोफेसर राजकरन निषाद ने ये अभूतपूर्व आविष्कार किया था।”
“आ.....आविष्कार.....?” रीमा के चेहरे पर हल्की-सी हैरत नाची।
“हां।” चीफ बेहद गम्भीर था—“प्रोफेसर राजकरन निषाद का जन्म राजस्थान के एक गांव में हुआ था। वहां उनका बचपन पानी की एक-एक बूंद के लिये तरसते हुए बीता था। यहां तक कि उस गांव के लोग-बूढ़े-बच्चे पानी के झरनों का ख्वाब देखा करते थे, तो खूब खुश होते थे। इसलिए जब प्रोफेसर निषाद ने अपनी शिक्षा पूरी की तो एक वैज्ञानिक बनने की ठानी। वे राजस्थान से बाहर आये और सबकुछ अपनी आंखों से देखा तो दुखी हुये। उन्होंने देखा व समाचारों में सुना कि कहीं लोग पानी की एक-एक बूंद को तरसते हैं तो कहीं अत्यधिक वर्षा से बाढ़ आ जाती है। लाखों-करोड़ों के धन-जन की हानि होती है। न जाने कितने गांव व इलाके नष्ट हो जाया करते हैं—फसलें तबाह हो जाया करती हैं। जबकि स्वयं उन्होंने अपनी आंखों से अपने इलाके वालों को एक-एक बूंद पानी के लिये तरसते देखा था। फसलों को सूखते व जानवरों को प्यास से तड़पकर मरते देखा था।
उनके मस्तिष्क पर इस बात ने गहरा असर डाला। उनके मन में एक असंभव परिकल्पना ने जन्म लिया।
उन्होंने सोचा कि कोई ऐसा आविष्कार किया जाये जो पूरे देश के चप्पे-चप्पे के मौसम का ठीक-ठीक आंकलन कर सके। यानि कि कहां कितनी मात्रा में वर्षा होनी बाकी है? इसकी ठीक-ठीक रिपोर्ट दे सके। उसके बाद जहां ज्यादा बारिश होने वाली हो, वहां से बादलों को उस जगह ले जाया जा सके जहां सूखा पड़ने वाला हो। इस प्रकार दोनों स्थानों को प्राकृतिक आपदा से बचाया जा सकता है। बाढ़ से अरबों की संपत्ति व हजारों लोगों को मौत के मुंह में जाने से बचाया जा सकता है। उसके बाद जहां-जहां सूखे से अरबों की फसल नष्ट होने के साथ-साथ हजारों की आबादी एक-एक बूंद पानी के लिए तरसने वाली हो, वहां के लोगों को जीवन मिल सकता था।
उनकी इस परिकल्पना को जिन लोगों ने सुना—वे उन्हें पागल समझकर हंसे। वरिष्ठ वैज्ञानिकों ने भी उनका मजाक उड़ाया।
ये मामला कुछ दिनों तक गरमाया रहा, फिर ठण्डा पड़ गया। लोग भूल गये कि प्रोफेसर निषाद क्या सोच रहे हैं! किन्तु सच्चाई ये थी कि प्रोफेसर निषाद नामक ये नौजवान अपनी धुन का पक्का था। वह कब का अपने काम में लग चुका था।
उसने अपनी अलग लेबोरेट्री बनाई। कोई वैज्ञानिक संस्थान उसे मदद देने के लिए तैयार न थी। कारण यह कि सभी को उसकी परिकल्पना असंभव लग रही थी।
कोई उस पर यकीन करने के लिये तैयार नहीं था।
इसका विकल्प उस नौजवान ने ढूंढा।
विचित्र विकल्प!
उसने अपनी सारी प्रापर्टी—सारे खेत, घर इत्यादि बेच दिये और वो दुनिया की नजरों से ओझल हो गया। धीरे-धीरे लोग उसे भूल गये।
किंतु।
साढ़े छः साल पहले उस वक्त फिर उसका नाम रोशनी में आया जब प्रोफेसर निषाद ने पुनः एक छोटे से अखबार में अपना स्टेटमेंट दिया कि वह शीघ्र ही अपना ‘वही’ परीक्षण करने वाला है।
इस बार भी किसी ने उसके वक्तव्य की ओर विशेष ध्यान नहीं दिया।
सबने उसे पागल का प्रलाप समझा और हंसकर रह गये।
स्वयं प्रोफेसर निषाद ने भी इस बात की ज्यादा पब्लिसिटी नहीं की।
फिर केवल इतना सुनने में आया कि निषाद परीक्षण हेतु सीमा के निकट स्थित बीहड़ों की ओर गया है।
उसके कई पहचान वालों के ब्यान आये कि उसे कुछ भी हासिल होने वाला नहीं है। वह केवल अपना समय बर्बाद कर रहा है।”
कहने के बाद चीफ रुका।
उसने चंद गहरी-गहरी सांसें लीं।
तदुपरांत!
उसने बुझा हुआ सिगार सुलगाया।
रीमा खामोशी धारण किये उसे ही देख रही थी।
और फिर!
चीफ ने आगे कहना शुरू किया—“फिलहाल ये पता चला कि वह उन बीहड़ों की तरफ अकेला नहीं गया था। उसके साथ उसके गिने-चुने छः सहयोगी भी थे, जिनमें उसका नौकर भी शामिल था। फिर हफ्ते-महीने बीत गये, जब प्रोफेसर निषाद का कोई पता नहीं चला तो यही मान लिया गया कि उसने हारकर कहीं मुंह छुपा लिया या फिर वहीं जंगलों में अपने साथियों सहित मर-खप गया।”
“मगर प्रोफेसर निषाद हैं कहां?”
रीमा ने पहली बार प्रश्न किया।
“मालूम नहीं।” चीफ ने गहन निःश्वास छोड़ी—“उनकी पूरी टीम रहस्यमय ढंग से गायब है। उन्हें मिलाकर सात हिन्दुस्तानी गुमशुदा हैं।”
“त.....लेकिन.....।” रीमा परेशान स्वर में बोली थी—“क्या उनकी तलाश की ही नहीं गई?”
“की गई थी, किन्तु उनका कुछ पता नहीं चला।”
“ओह!”
“कुल मिलाकर सबने यही समझा कि वे सात हिन्दुस्तानी मर चुके हैं। किन्तु हाल ही में उपग्रह द्वारा खींची गई ये फिल्म.....।” चीफ ने दीवार की ओर संकेत किया—“दो रोज पहले हम तक पहुंची, तो हम सोचने पर मजबूर हुये।”
“इतने दिनों बाद ये फिल्म मिली है?”
“हां।” चीफ ने गहरी सांस ली थी—“यह भी एक संयोग ही है।”
“मैं समझी नहीं सर.....।”
“आर्मी हैडक्वार्टर ने इस फिल्म को बिल्कुल भी गंभीरतापूर्वक नहीं लिया था और इसे किसी फिल्म का दृश्य समझा था, जिसे गलती से उनके उपग्रह ने किसी टी.वी. चैनल पर सेटेलाइट द्वारा प्ले करते वक्त कैच करके रिकार्ड कर लिया था। किंतु जब एक अधिकारी की नजरों में ये फिल्म आई तो वह चौंका।
उसने निषाद के बारे में अखबारों में पढ़ रखा था और उनके उस अनोखे आविष्कार के बारे में जानकारी रखता था।
उसे ये आशंका हुई कि ये बैलून तथा बारिश कहीं प्रोफेसर निषाद के ही आविष्कार का कमाल तो नहीं है? क्योंकि यह बैलून उन्हीं जंगलों के ऊपर दिखाई दिया था, जिनमें प्रोफेसर अपने साथियों सहित गये थे।”
“ओह!” रीमा के मुंह से निकला—“यानि कि परीक्षण हेतु उन्होंने वही स्थान चुना था जो इस फिल्म में दर्शाया गया है।”
“राइट!” खुराना ने सिगार फूंकते हुए सिर हिलाया।
“माई गॉड!” रीमा की आंखें फैली थीं।
तदुपरांत!
दोनों के मध्य सन्नाटा छा गया।
पैना सन्नाटा।
थोड़ी देर बाद चीफ ने ही उस सन्नाटे को शहीद किया।
वह बोला—“आगे तुम समझ सकती हो कि कैसे ये फिल्म आई.एस.सी. तक पहुंची और हमें आगे क्या करना है?”
“क.....क्या करना है?” सस्पेंस में फंसी रीमा ने प्रश्न किया था।
“सीधी-सी बात है कि सबसे पहले हमें ये पता लगाना है कि प्रोफेसर का आविष्कार किस रूप में है? यानि ये बैलून वाला करिश्माई खेल उन्हीं के द्वारा खेला गया था अथवा किसी और द्वारा.....।”
“ओह!”
“तुम समझ सकती हो कि अगर ये खेल यानि कि ये आविष्कार प्रोफेसर का है तो तुम्हें प्रोफेसर की तलाश करनी होगी।”
प्रत्युत्तर में रीमा गंभीर हो गई।
पूरा मामला उसकी समझ में आ चुका था।
चीफ ने एक फाईल उसकी ओर सरकाई।
“इस फाईल में हर संभव जानकारी मौजूद है, साथ ही वे लोग जो प्रोफेसर से जुड़े रहे—उनसे तुम्हें हर संभव मदद मिलेगी। प्रोफेसर के गांव का पता—लैबोरेट्री व आविष्कार के दरम्यान निवास का पता वगैरह मौजूद है।”
रीमा ने फाईल पर कब्जा कर लिया।
“रीमा!” चीफ गंभीर स्वर में पुनः बोला—“अगर प्रोफेसर अपने आविष्कार में कामयाब रहे हैं तो उनके साथ कोई घटना भी घट सकती है। वे दुश्मन के हत्थे भी चढ़ सकते हैं। उनके साथ कोई भी हादसा पेश आया हो सकता है!”
“ल.....लेकिन सर.....?” रीमा किंचित चिंतामग्न स्वर में बोली थी—“सात वर्ष बीत चुके हैं। इस लंबी अवधि के बाद उन्हें खोज लेना असंभव सा नहीं है?”
“असंभव को संभव बनाने के लिये ही इस विभाग का गठन हुआ है रीमा। पूरे सात हिन्दुस्तानी गायब हैं। उनमें कई प्रोफेसर निषाद के असिस्टेंट थे—सहयोगी थे। किंतु वे सब के सब अलग-अलग रहते थे। उनका अपना भरा-पूरा परिवार था। प्रोफेसर निषाद तो अपने आपमें अकेले थे, किंतु वे सब परिवार वाले थे और उन छहों हिन्दुस्तानियों में से कोई भी नहीं लौटा। उनके परिवार वालों ने उनकी गुमशुदगी की सूचना पुलिस को दी है। उनकी खोज भी की गई, किंतु उनका कोई पता नहीं चला पुलिस को। इस असफलता का एक कारण ये भी है कि उन्होंने किसी को भी किसी निश्चित जगह का हवाला नहीं दिया था कि वे प्रोफेसर के साथ परीक्षण के लिए कहाँ जा रहे हैं?”
“ओह!”
“अगर उस समय इस फिल्म को समझ लिया जाता तो संभव था कि किसी निश्चित स्पाट पर उनकी तलाश की जाती। किंतु उस समय यही समझा गया कि वे घने जंगलों में प्रवेश कर गये, अतः परिणामस्वरूप वे जंगली जानवरों का शिकार बन गये। यही समझकर उनके परिवार वाले भी सब्र कर चुके हैं। फिलहाल उन लोगों के नाम व पते, पारिवारिक विवरण के साथ इस फाईल में दर्ज हैं। तुम जहां से चाहो, काम शुरू कर सकती हो। हमें हर हाल में प्रोफेसर निषाद चाहिये।”
प्रत्युत्तर में रीमा भारती के माथे पर बल उभरे थे।
“इसका मतलब यह कि आपको पूरी उम्मीद है कि प्रोफेसर राजकरण निषाद जीवित हैं?”
“हां। हमें पूरी उम्मीद है। तुम भी पूरे मामले पर गौर करोगी तो मेरी बातें ठीक लगेंगी।”
“स.....सर।”
“प्रोफेसर परीक्षण के लिये गये थे न? करेक्ट!”
“करेक्ट सर।”
रीमा का स्वर पूर्ववत् गम्भीर व सजग था।
“ये फिल्म इस बात का सबूत है कि वे अपने मिशन में कामयाब रहे थे। बैलून द्वारा बादलों को निश्चित स्थान पर पहुंचाना, फिर वहां पर जोरदार बारिश, फिर बादलों का हटना और दूसरे स्थान पर बारिश.....ये सब इस बात का पुख्ता सबूत है कि प्रोफेसर ढेर सारी जलराशि को जब्त रखने वाले बादलों को संक्षिप्त करके बादलों में कैद करके इच्छित स्थान पर ले जाकर बारिश करवाने में कामयाब रहे थे। फिर वे बादल खाली हो गये थे, तब हवा में विलीन हो गये थे। ये सब छोटे पैमाने पर ही सही, किंतु प्रोफेसर निषाद की जबरदस्त कामयाबी का सूचक है।”
“य.....यस सर! यू आर राईट सर! वाकई ऐसा होना नामुमकिन है।”
“हुम.....! तो फिर तुम ही बताओ कि कामयाबी के बाद प्रोफेसर को सीना ताने हुए लौटना चाहिए था या नहीं? जिससे कि वह अपने विरोधियों को मुंहतोड़ जवाब देते हुए पूरे देशवासियों को बताते कि अब ना कोई प्यासा मरेगा और ना ही कोई बाढ़ की चपेट में आकर मरेगा।”
प्रत्युत्तर में रीमा चुप।
चीफ का तर्क शत-प्रतिशत सही था। सच्चाई के दावों से लबरेज था।
“परीक्षण के बाद प्रोफेसर की टीम समेत गुमशुदगी क्या इस बात का सबूत नहीं है कि उनके साथ कोई हादसा हो चुका है?”
“यस सर! जरूर ऐसा ही कुछ है। वहीं एक बात और सुनिश्चित है।”
रीमा बोली—“प्रोफेसर को कब्जे में करने वाला अभी तक कामयाब भी नहीं हुआ है। वरना दुश्मन प्रोफेसर के फार्मूले का दुरुपयोग करके हमारे देश को नुकसान पहुंचाने की कोशिश जरूर करता।”
“हां। इसी बात पर तो हमें भी आश्चर्य है कि दुश्मन अभी तक कामयाब क्यों नहीं हुआ?” चीफ गंभीर था।
“फिलहाल इन सारे रहस्यों पर से भी परदा तुम्हें ही उठाना है रीमा! और अगर प्रोफेसर इस धरती पर कहीं जीवित हैं तो उन्हें हासिल करना होगा। अगर प्रोफेसर का आविष्कार हमारे हाथ लग जाये तो हमारा देश बहुत बड़ी मुसीबत से मुक्त हो जायेगा। अकसर ढेर सारे संकट सूखा व बाढ़ के कारण हमारे देश पर ही नहीं, पूरे विश्व पर मंडराते रहते हैं। हम ही नहीं बल्कि पूरा विश्व ही प्रकृति की देन इन बादलों से भयभीत होने के बजाये इनका भरपूर उपयोग करेगा। यही बादल उमड़-घुमड़कर कहीं ‘तबाही’ ला देते हैं तो कहीं ये एक-एक बूंद पानी को तरसा देते हैं। यह सब खत्म हो जायेगा। पूरा देश खुशहाल व समृद्ध होगा। प्रकृति को मनमानी करने से रोककर हम उसकी कार्य प्रणाली को अपने अनुरूप व्यवस्थित कर सकेंगे। इस प्रकार बहुत जल्दी प्राकृतिक आफत से हमें मुक्ति मिल जायेगी और ये तभी होगा, जब प्रोफेसर निषाद का पता चलेगा—और उनका पता तुम लगाओगी।”
“दैट्स ऑल!”
“जरूर सर! मैं प्रोफेसर निषाद का पता लगाने के लिये जान लड़ा दूंगी।”
“गुड!” चीफ ने कहा और सिगार ऐशट्रे में झोंकता हुआ उठ खड़ा हुआ।
यह रीमा के लिए एक संकेत था कि उसे अब वहां से विदा हो जाना चाहिये।
वही हुआ।
उसने फाईल संभाली और उठ खड़ी हुई। कुछ ही देर में वह आई.एस.सी. के हेडक्वार्टर से निकल रही थी।
कुछ पल बाद!
वह अपनी कार में सवार थी और उसकी कार सड़क पर उड़ी जा रही थी।
किंतु!
उसकी आंखों के सामने प्रोफेसर द्वारा करवाई गई रोमांचक बारिश का दृश्य रह-रहकर घूम रहा था और साथ ही मस्तिष्क में एक ही प्रश्न कौंध रहा था कि प्रोफेसर निषाद कहां गया?
कहां होगा वो?
किस हाल में होगा? फिलहाल इन प्रश्नों का जवाब भविष्य के गर्भ में छुपा था इसलिये उसे प्रतीक्षा तो करनी ही थी, जी तोड़ प्रयास भी करना था। मानसिक रूप से स्वयं को तैयार करती वह कार उड़ाये अपने फ्लैट की ओर बढ़ रही थी।
¶¶
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Additional information
Book Title | एक अधूरी महाभारत : Ek Adhuri Mahabharat |
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Isbn No | |
No of Pages | 288 |
Country Of Orign | India |
Year of Publication | |
Language | |
Genres | |
Author | |
Age | |
Publisher Name | Ravi Pocket Books |
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