दो मुंहा सांप
अर्जुन त्यागी पटना के एयरपोर्ट से बाहर निकला और टैक्सी स्टैंड की तरफ बढ़ा....उसके कान कुत्ते की तरह खड़े थे....आंखें चार थीं....और चाल में लोमड़ी जैसी सतर्कता थी।
वह खद्दर का कुर्ता-पायजामा पहने था....पैरों में कोल्हापुरी चप्पलें थीं....कंधे पर पट्टी वाला झोला लटका हुआ था....शेव क्लीन थी और बाल करीने से संवरे हुए थे।
इस वक्त वह किसी पार्टी का कर्मठ और जुझारू कार्यकर्ता लग रहा था।
अर्जुन त्यागी पर राजगंज में क्या गुजरी थी....यह वही जानता था।
दस करोड़ के असली नोट उसके पास थे....मगर नतीजा वही हुआ जोकि हमेशा होता रहा था।
नेपाल बॉर्डर से पहले ही उसे पुलिस ने घेर लिया था और उसे रुपया छोड़कर भागने पर मजबूर होना पड़ा था....ऐसा लग रहा था जैसे अर्जुन त्यागी के हाथ में धन की लकीर ही नहीं थी....कई बार उसे अपने अरमान पूरे होते नजर आये....लेकिन हर बार सफलता पाकर भी उसे असफलता का मुंह देखना पड़ता था।
जितना खून उसने राजगंज में बहाया था....उसे देखते हुए उसने राजगंज में एक पल रुकना भी ठीक नहीं समझा था वह मन-ही-मन अपनी किस्मत को कोसता हुआ राजगंज से बस द्वारा काठमांडू पहुंचा था और वहां दिन गुजारने के बाद प्लेन से पटना पहुंच गया था।
इतना खून करने....इतना लहू बहाने के बाद उसकी जेब में केवल पांच-पांच सौ के दो नोट बचे थे।
अर्जुन त्यागी का दिल हुआ कि वह छाती पीट-पीटकर, दहाड़े मार-मारकर रोने लगे....सिर के बाल नोंचने लगे....जमीन पर टक्कर मारने लगे।
“वाह तेरी किस्मत अर्जुन त्यागी....।”
वह मन-ही-मन बड़बड़ाया और ऊपर वाले को सौ-सौ गालियां निकालने लगा।
पटना उसके लिये नया शहर था....वह पहली बार वहां आया था....नया शहर....नये लोग....वह तो उस शहर की भौगोलिक स्थिति से भी वाकिफ नहीं था....वह तो सिर्फ इतना जानता था कि जिस प्रदेश में वह पहुंचा था....वहां जंगलराज था और कदम-कदम पर मुजरिमों की भरमार थी....वहां उसकी जात-बिरादरी के बहुत लोग थे।
मगर....।
वहां तो उसका कोई परिचित ही नहीं था।
अचानक....।
अर्जुन त्यागी बुरी तरह से चौंका।
वजह....।
उसे सामने से चार पुलिसिये आते दिखाई दिये थे....पलक झपकते ही ना सिर्फ उसके पैरों में ब्रेक लग गये थे, बल्कि उसने अपनी गर्दन तीव्रता से दूसरी तरफ मोड़ ली थी। वह जानता था कि उन पुलिस वालों की नजर उस पर पड़ गई तो वे उसे शर्तिया पहचान लेंगे....उस स्थिति में उसकी खैर नहीं है।
अर्जुन त्यागी मन-ही-मन भगवान को याद करने लगा....इस वक्त वह ऐसा जाहिर कर रहा था जैसे किसी को तलाश कर रहा हो।
पुलिस वाले उसकी बगल से गुजर गये।
अर्जुन त्यागी बाल-बाल बचा था।
“भाग ले बेटा अर्जुन त्यागी....।”
वह भगवान का लाख-लाख शुक्रिया अदा करता हुआ टैक्सी स्टैंड पर पहुंचा।
एक टैक्सी के करीब खड़े ड्राईवर ने फुर्ती से आगे बढ़कर पिछला दरवाजा खोल दिया।
बिना कुछ कहे अर्जुन त्यागी पिछली सीट पर बैठ गया।
ड्राईवर ने दरवाजा बंद किया और टैक्सी का घेरा काटकर ड्राईविंग सीट संभाल ली।
अगले क्षण उसने टैक्सी आगे बढ़ा दी।
“कहां चलेंगे साहब....?” ड्राईवर ने पूछा।
“किसी गेस्ट हाउस ले चलो....।” अर्जुन त्यागी सीट की पुश्त से पीठ सटाता हुआ बोला।
कुछ पलों बाद टैक्सी एयरपोर्ट के परिसर से निकलकर खुली सड़क पर दौड़ रही थी।
सफर ज्यादा लंबा नहीं था।
लगभग चालीस मिनट बाद टैक्सी सिन्हा गेस्ट हाउस के सामने पहुंचकर रुकी। अर्जुन त्यागी ने किराया अदा किया और नीचे उतरकर गेस्ट हाउस में प्रवेश कर गया।
सामने काउण्टर था।
अर्जुन त्यागी काउण्टर की तरफ बढ़ा।
उसके पीछे एक बेहद खूबसूरत युवती मौजूद थी....उसकी उम्र पच्चीस साल के आसपास थी....गोरा रंग....सीप जैसी बड़ी-बड़ी आंखें....सुतवां नाक....सुराहीदार गर्दन....उसके स्याह बॉबकट बाल उसके कंधों पर झूल रहे थे....वह आसमानी रंग की साड़ी और उसी से मैच करता हुआ ब्लाऊज पहने थी।
युवती पर नजर पड़ते ही अर्जुन त्यागी के भीतर खलबली-सी मच गई....उसकी पैंट का एक विशेष हिस्सा ऊपर उठने लगा....अर्जुन त्यागी का मन उसके यौवन की नदी में डुबकी लगाने को मचल उठा।
वह थी ही इतनी खूबसूरत।
अर्जुन त्यागी काउण्टर पर पहुंचा।
“वैलकम सर....।” युवती ने अपने मोतियों जैसे दांत चमकाये।
“मुझे एक कमरा चाहिये....।”
युवती ने काउण्टर पर रखा मोटा-सा रजिस्टर अपनी तरफ घसीटा और उसे खोलकर पैन उठाते हुए बोली—
“आपका नाम....।”
“रजत शर्मा....इलाहाबाद से आया हूं....आपके गेस्ट हाउस में दो दिन रुकना चाहता हूं।”
कहने के साथ ही अर्जुन त्यागी ने अपनी जेब से पांच सौ का एक नोट निकाल कर काउण्टर पर रख दिया।
अर्जुन त्यागी ने युवती के ब्लाऊज के गले से झांकती उसकी दूधिया 'नेक लाईन' पर निगाह मारी....उसकी 'नेक लाईन' का भारीपन साफ नजर आ रहा था।
अर्जुन त्यागी का गला सूखने लगा....वह अपने होंठों पर जीभ फिराकर रह गया।
युवती ने कालम भरकर अपना चेहरा ऊपर उठाया। उसने जैसे ही अर्जुन त्यागी की निगाहों का पीछा किया, वह हड़बड़ाकर रह गई।
अर्जुन त्यागी मुस्कुराया।
जवाब में युवती भी मुस्कुराई।
मगर....।
उसकी मुस्कान पूर्णतः व्यवसायिक थी।
“यहां अपने साइन कर दीजिये....।” वह बोली।
अर्जुन त्यागी ने रजिस्टर पर रखा पैन उठाया और आंखों ही आंखों में उसकी जवानी को तोलते हुए रजिस्टर के कालम पर रजत शर्मा के साइन कर दिये।
“आपका रूम नम्बर एक सौ पांच है मिस्टर रजत शर्मा....।”
वह नोट उठाते हुए बोली—“आपका हिसाब-किताब उस वक्त हो जायेगा जब आप गेस्ट हाउस छोड़ेंगे।”
“ओ○के○।”
“आईये, मैं आपको आपके रूम तक छोड़ आऊँ....।” वह काउण्टर के पीछे से निकलकर बोली।
“चलिये....।”
युवती आगे बढ़ गई।
अर्जुन त्यागी उसके पीछे चल पड़ा।
युवती की चाल में नागिन का-सा लहरा था।
वह यूं आगे बढ़ रही थी जैसे फूलों पर से होकर गुजर रही हो।
उसकी चाल देखकर अर्जुन त्यागी की कनपटियों पर ठोकरें बजने लगीं....उसका दिल कर रहा था कि अभी उस पर टूट पड़े....।
यह तो वही जानता था कि वह अपने आप पर किस तरह काबू पाये हुए था।
सीढ़ियां चढ़कर वे रूम नम्बर एक सौ पांच में पहुँचे....रूम काफी बड़ा था और साफ-सुथरा था।
“आप बहुत खूबसूरत हैं मैडम....।” अर्जुन त्यागी बोला।
“शुक्रिया....।” युवती के चेहरे पर शर्म के ढेरों भाव उभरे।
“क्या मैं आपका नाम जान सकता हूं....?”
“माला....।”
“आपका नाम भी आपकी तरह खूबसूरत है....।”
जवाब में युवती मुस्कुराई।
“बैठो मिस माला....।”
“मेरे पास बैठने का वक्त कहाँ है....? काउण्टर पर कोई नहीं है....मैं चलती हूँ। अगर आपको किसी चीज की जरूरत हो तो घंटी बजा दीजिएगा।” वह दरवाजे की तरफ पलटती हुई बोली।
“सुनिए....।”
माला ने घूमकर प्रश्नपूर्ण नजरों से अर्जुन त्यागी की तरफ देखा।
“आपको मेरा रूम नम्बर तो याद रहेगा....।”
माला मुस्कुराई....। वह कोई दूध पीती बच्ची तो नहीं थी....भरी पूरी जवान थी....अर्जुन त्यागी की बात का मतलब बाखूबी समझ गई थी।
“मुझे आपका रूम नम्बर याद रखने की क्या जरूरत है....?” वह जान-बूझकर अनजान बनती हुई बोली।
“शायद मुझे आपकी जरूरत पड़ जाये....?”
“म....मेरी जरूरत....।” वह अपने सीने पर हाथ रखकर बोली।
“हां....।”
माला धीरे से मुस्कराई और फिर लम्बे-लम्बे डग भरती हुई कमरे से बाहर निकल गई।
अर्जुन त्यागी ने आगे बढ़कर दरवाजा बंद किया, फिर पलटकर बैड की तरफ बढ़ गया।
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