डिम्बास्टर
‘‘वृन्दा महाराज!’’—विनोद ने अखबार पर दृष्टि दौड़ाते हुए हांक लगायी—‘‘कॉफी का क्या हुआ? मुझे बाथरूम जाना है।’’
‘‘बाथरूम जाना हो या बेडरूम। कॉफी नहीं मिलेगी। मैं आज हड़ताल पर हूं।’’ वृन्दा महाराज ने तमतमाये हुए भाव में ड्राइंगरूम में आकर कहा—‘‘कॉफी पीनी है, तो बाहर ढाबे में जाकर पी लो।’’
‘‘हाय?’’ विनोद ने उछलते हुए आंखें फाड़कर उसे देखा—‘‘तुम्हें हड़ताल की क्या जरूरत आ पड़ी?’’
‘‘जब आदमी को उसका हक न मिले, तो हड़ताल करनी ही पड़ती है। घरेलू नौकर भी आदमी होते हैं।’’ वृन्दा महाराज ने बुरा-सा मुंह बनाया।
‘‘हक? कैसा हक?’’ विनोद ने गरजकर कहा—‘‘क्या तुम्हें वेतन नहीं मिलता?’’
‘‘उतने वेतन से मेरा काम नहीं चलता। पन्द्रह दिन से शहर के होटल लाबेला में ‘कुल्लू-मनाली’ का रैपडांस हो रहा है लेकिन मैं ओपनिंग नाइट के बाद कभी नहीं जा सका। भला यह भी कोई जिन्दगी है। दिन-रात गधे की तरह मेहनत करने के बाद भी आदमी पॉप–रैप तक नहीं देख सकता।’’
‘‘आदमी होकर बन्दर का नाच देखेगा? तुझे शर्म नहीं आयेगी?’’ विनोद ने गुस्से से उसे घूरा।
‘‘इसमें शर्म की क्या बात है? डार्विन ने बहुत पहले बता दिया है कि आदमी के पूर्वज बन्दर थे।’’
‘‘डार्विन के रहे होंगे। मैं अपने पूर्वजों को जानता हूं। वे तो ऋषि-मुनि थे। क्लासिकल डांस को भी देखना पाप समझते थे ।’’
‘‘डार्विन ने जंगलयुग की बात कही थी।’’
‘‘तो तुम जंगलयुग में लौटना चाहते हो?’’
‘‘बॉस! अगर जंगल लाबेला के डायनिंग हॉल जैसा होता है, तो मैं जंगल में ही रहना पसन्द करूंगा।’’ वृन्दा महाराज ने मुस्कराते हुए आंख मारी—‘‘हर मेज खूबसूरत परियों की शहजादियों से भरी होती है। उन्हें देख लो, तो तुम भी हाय-हाय करते कहोगे कि इस जहान में कहीं जन्नत है, तो यहीं हैं…यहीं है।’’
‘‘अरे, मूर्ख! आजकल की लड़कियां बन्दरों को ही पसन्द करने लगी हैं। आदमी उन्हें बैकवर्ड लगते हैं…तो क्या लड़कियों के लिये तू भी बन्दरनाच का दीवाना बन जायेगा?’’
‘‘हाय! लाबेला की परियों को देखने के लिये मैं गधा भी बनने के लिये तैयार हूं।’’
‘‘लेकिन तू तो ब्रह्मचारी है?’’
‘‘ब्रह्मचारी रहने के फायदे ही फायदे हैं। चाहे जितनी से फलर्ट कर लो। बीवी घर में हो, तो किसी सुन्दरी से बात करते देखकर भी काट खाने को दौड़ती है।’’
‘‘तो तू लाबेला में ‘कुल्लू-मनाली’ का रैपडांस देखना चाहता है।’’
‘‘बॉस! मैं तो कहता हूं कि तुम भी मेरे साथ चलो। एक बार मनाली को देख लिया तो हाय–हाय कर उठोगे। हाय…!...क्या चीज है। जब नाचती है, तो सारा स्टेज हिलने लगता है, और जब गाती है, तो...रहने दो। बता दूंगा, तो तुम जाओगे ही नहीं। कमजोर दिल वालों का तो वहीं राम नाम सत्त हो जायेगा।’’
‘‘ठीक है, यार! कॉफी तो बना ला।’’ विनोद ने आजिज भाव में कहा—‘‘तेरे कारण जो न करना पड़े सो थोड़ा है।...लेकिन मुझे आश्चर्य है।’’
‘‘किस बात का?’’ वृन्दा महाराज ने प्रश्नसूचक दृष्टि से देखा।
‘‘तू तो हनुमान का भक्त है। कल तक तो तू पॉप-रैपवालों को जंगली बन्दर कहा करता था?’’
‘‘हाय बॉस! यही तो कमाल है माडर्न एज का। आजकल हनुमान जी का भी मूड बदल गया है। वे पॉप म्यूजिक पर सीता राम भजने लगे हैं।’’
‘‘क्या बकता है?’’
‘‘बकता नहीं हूं बॉस! तुम तो टी.वी. इन्टरनेट देखते ही नहीं हो। आजकल सभी भारतीय गानों का रैप हो रहा है। क्या राष्ट्रीय गीत, क्या भजन। वह दिन दूर नहीं, जब रामायण और गीता का भी रैप होगा।’’
विनोद गहरी सांस लेकर रह गया। उसने कहा—‘‘देखना! कहीं तेरा भी रैप न हो जाये।’’
‘‘मेरी ऐसी तकदीर कहां?’’ ‘‘वृन्दा महाराज ने नि:श्वांस छोड़ते हुए कहा—‘‘मुझे तो तुम्हारी चिन्ता सता रही है। कहीं मनाली तुम पर न चढ़ दौड़े।’’
‘‘म...मुझ पर...मुझ पर क्यों?’’ विनोद हकला गया।
‘‘यह मैं क्या जानूं? मुझे तो यह भी मालूम नहीं कि अन्ना बारागोफ मनाली बनकर होटल लाबेला में क्यों नाच रही है।’’ वृन्दा महाराज ने बुरा-सा मुंह बनाया।
‘‘अन्ना बारागोफ?’’ विनोद बुरी तरह चैंक पड़ा—‘‘वह रसियन एजेन्ट यहां क्या कर रही है?’’
‘‘मैं जाकर पूछता यदि लड़कियों ने उसे घेर न रखा होता। अब तुम चल ही रहे हो, तो लगे हाथ पूछ लेन।’’
‘‘अब तो देखना ही पड़ेगा कि मामला क्या है? तू एक टेबल रिजर्व करवा ले।’’
‘‘और रुपये?...तुम्हारी जेब में तो मात्र सौ का नोट पड़ा है।’’
‘‘लाबेला के मैनेजर कुमार ढोलकी को फोन कर। अब मैं इतना गया-बीता भी नहीं हूं कि उधार न चले।...फिर क्रेडिट कार्ड किस दिन काम आयेगा?’’
‘‘अच्छी बात है।’’ वृन्दा महाराज वापस मुड़े।
‘‘और सुन! पहले कॉफी ले आ। ऐसा न हो कि तू असली बात ही भूल जाये।’’
‘‘क्या बात करते हो बॉस? अब तो मैं तुम्हें स्पेशल कॉफी पिलाऊंगा। मलाई मार के।’’
वृन्दा महाराज हर्ष से उछलते हुए कमर से निकल गये।
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‘‘यह हर्गिज नहीं हो सकता।’’ लाबेला के मैनेजर कुमार सोलंकी ने उत्तेजित भाव में कहा—‘‘आप इसे अन्दर नहीं ले जा सकते। यह आदमियों का होटल है, बन्दरों का नहीं।’’
‘‘और मैं कहता हूं कि यह होकर रहेगा।’’ विनोद ने आंखें निकालीं—‘‘यह एक शरीफ बन्दर है और आदमियों से भी अपने प्रति शराफत की उम्मीद रखता है। फिर जब मैंने अपनी अलग टेबिल रिजर्व करा रखी है, तुम्हें किस बात की आपत्ति है?’’
हुआ यह कि विनोद वृन्दा महाराज के साथ ठीक सात बजकर पचपन मिनट पर होटल लाबेला पहुंचा। उसने कीमती सूट पहन रखा था, जबकि वृन्दा महाराज धोती-बनियाइन में थे। उनके सिर की लम्बी चोटी, सफाचट बाल और ललाट पर चन्दन उनके व्यक्तित्व में चार चांद लगा रहा था। उनके कन्धे पर उनका पालतू बन्दर ‘हिटलर’ बैठा हुआ था।
लाबेला के दरबान ने उन्हें गेट पर ही रोक लिया। उसे बन्दर के साथ-साथ वृन्दा महाराज के हुलिये पर भी आपत्ति थी। पहले तो विनोद ने दरबान को बन्दर की विद्वता और शराफत का विश्वास दिलाने की कोशिश की, पर जब दरबान ने विनोद को ठेल दिया, तो वृन्दा महाराज की आंखें लाल हो गयीं। उन्होंने धोती के फेंटे से अट्ठारह राउन्ड का जर्मन रिवाल्वर निकालकर उस पर तान दिया।
बात कुमार सोलंकी तक पहुंची। वह वहां पहुंचा, तो विनोद को देखते ही भन्ना गया।
‘‘आपत्ति ही आपत्ति है। यह बन्दर है और यह आदमी बिल्कुल उज्जड है। यह शरीफों का होटल है।...अभी तीन महीने पहले आपके कारण मैं जेल जाते-जाते बचा था। अब अपने होटल का सत्यनाश नहीं कर सकता।’’
‘‘पिछली बार तो जेल जाने से बच गये थे। इस बार आजन्म कारावास होगी। होटल का तो यह बन्दर वैसे भी सत्यनाश कर देगा। यह मेरे आदेश का इन्तजार कर रहा है। तुम भूल रहे हो कि यह बन्दर है। इसके लिये मुख्य द्वार से जाना जरूरी नहीं है। यह रोशनदान से भी छलांग लगा सकता है।’’
‘‘आप ऐसा नहीं कर सकते।’’ सोलंकी आतंकित भाव में बोला—‘‘आप की ज्यादतियां अब मेरे सिर से ऊपर पहुंच चुकी हैं। मैं पुलिस बुलाऊंगा।’’
‘‘जरूर बुलाओ। उन्हें इस बात में दिलचस्पी जरूर होगी कि फ्रांसिसी शराब की पैंतीस पेटियों के कागजात कहां हैं? तुमने उसे वैध तरीके से मंगवाया है या स्मगलरों से खरीदा है। स्मगलरों से खरीदा है तो वे कौन लोग हैं, जो मुल्क में विदेशी शराब स्मगल कर रहे हैं। हो सकता है कि वे ड्रग्स के धन्धे में लिप्त हों?’’
कुमार सोलंकी का चेहरा राख की तरह सफेद हो गया। उसने रो देने वाले अन्दाज में कहा—‘‘तुम मेरे ही पीछे क्यों पड़ गये हो?’’
‘‘यह तुम्हारी गलतफहमी है। तुम्हारे पीछे होता तो अब तक तुम्हारी बीवी को सूचित कर चुका होता कि मनाली के साथ तुम्हारा क्या चक्कर चल रहा है।’’
कुमार सोलंकी ने चौंककर इधर–उधर देखा, फिर विनोद का हाथ पकड़कर एक ओर खींचते हुए बोला—‘‘भगवान के लिये ऐसा गजब मत करना। आखिर तुम चाहते क्या हो?’’
‘‘मैं नहीं, मेरा बन्दर चाहता है। किसी ने उसे बता दिया है कि मनाली बेहद खूबसूरत है।’’
‘‘लेकिन सारा डायनिंग हॉल भरा हुआ है। उसमें आधे से अधिक मेजों पर लड़कियां हैं। वे तो बन्दर को देखते ही चीखने लगेंगी।’’
‘‘यह तुम्हारी गलतफहमी है। आजकल की लड़कियां बुजदिल नहीं हैं। हवाई जहाज चला रही हैं।’’
‘‘ठीक है बाबा, जाओ! पता नहीं किस मनहूस घड़ी में होटल खोला था। जब भी बिजनेस चलने लगता है, तुम यहां आ जाते हो।’’ कुमार सोलंकी ने पैर पटकते हुए कहा और दरबान की ओर देखकर बोला—‘‘ऐ! जाने दो इन्हें।’’
वृन्दा महाराज ने रिवाल्वर फेंटे में रखते हुए खा जाने वाली दृष्टि से दरबान को देखा, फिर दरवाजा खोलकर विनोद के साथ अन्दर चल गये।
‘हिटलर’ वृन्दा महाराज के कन्धे पर सवार था और खी-खी कर रहा था।
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