धर्म-अधर्म
“देखा...देखा जोगलेकर!” रिस्टवॉच में टाइम देखते हुए उत्साह से भरा प्रोफेसर आनन्द राव भास्कर बोला, “पूरे आठ घण्टे हो गये इस जनरेटर को चलते हुए और वो भी फुल लोड में, फिर भी इसका ईंधन अभी खत्म नहीं हुआ। इसका...इसका मतलब समझ रहे हो न...?”
“यस...यस प्रोफेसर।” पवन जोगलेकर जो कि प्रोफेसर आनन्द राव भास्कर का असिस्टेंट था, उसके चेहरे पर सफलता की चमक थी, “मैं समझ रहा हूं। आपकी रिसर्च कामयाब रही है। आपने जिस उद्देश्य की पूर्ति के लिये नब्बे दिन...दिन रात एक करते हुए मेहनत की, वो उद्देश्य पूरा हुआ। आप देश के नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री जी के उस संकल्प को, जिसमें उन्होंने कहा है कि उनकी सरकार के बनते ही देश में अच्छे दिनों की शुरूआत हो जायेगी, पूरा करने में अहम भूमिका निभाने वाले हैं। देश में लगातार बढ़ती मंहगाई की वजह अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में लगातार बढ़ रहे पेट्रोल और डीजल की कीमतें हैं। लेकिन आपकी अथक मेहनत और लगन ने इस महासमस्या का निदान कर दिया है। आपने एक लीटर पेट्रोल में छः लीटर तेजाब और अन्य कैमिकल्स मिलाकर ऐसा मिश्रण तैयार किया है जो पेट्रोल की गुणवत्ता से भी उच्चतम और पेट्रोल के मुकाबले चौथाई कीमत पर तैयार होगा। ऐसे ही डीजल और सी.एन.जी. में आपके रिसर्च को प्रयोग में लाया जा सकेगा। कुल मिलाकर सत्तर रुपये लीटर में बिकने वाले पेट्रोल, बासठ रुपये में बिकने वाले डीजल और तीस रुपये वाली सी.एन.जी. जितना उपयोग अब चौथाई कीमत में हो सकेगा। मेरी
तरफ से आपको बधाई प्रोफेसर साहब...।”
“और मेरी तरफ से भी प्रोफेसर साहब...।”
उस नई अवाज ने प्रोफेसर और उसके असिस्टेंट दोनों को चौंकाया।
दोनों की गर्दनें घूमीं—
और जो उन्हें दिखा, उसे देखकर उनकी आंखें फट पड़ने को तत्पर नजर आने लगीं।
वो चार लोग थे जिनके चेहरों पर काली थैलियां सी पड़ी थीं, जो कि उनके गले तक की थीं। उन थैलियों में आंखों तथा मुंह वाली जगह पर मुंह तथा आंखों के नाप के छेद थे।
कहने का तात्पर्य कि वे चार नकाबपोश थे और चारों के पास गन थीं। उनमें से दो के कब्जे में प्रोफेसर आनन्दराव की बीवी, उसकी दो साल की बेटी और सात साल का बेटा था।
“आनन्द...आनन्द...य...ये लोग कौन हैं?” आनन्द राव की जवान तथा खूबसूरत बीवी आतंकित भाव से बोली, “य...ये क्या चाहते हैं हमसे...?”
“प...पापा!” दो साल की मासूम खुशबू तोतली जुबान में बोली, “ये अंतल मुझे भी डांट रहे थे। इन्हें अपने घर से भदा दीजिये...।”
“हां खुशबू...।” मुंह में भर आये ढेर सारे धूक को निगलते हुए बोला आनन्द राव, “आप लोग जरा चुप हो जायें। म...मैं इनसे बात करता हूं। हां...अ...अब तुम लोग बोलो, य...ये सब क्या ड्रामा है? तुम लोग कौन हो, क्या चाहते हो?”
“हम कौन हैं—इस सवाल से तेरा कोई लेना-देना नहीं बनता।” चार नकाबपोशों में एक जो उनका लीडर जान पड़ता था, प्रोफेसर के इर्द-गिर्द चक्कर काटते हुए रेगमाल से खुरदुरे लहजे में बोला, “हां, तेरे दूसरे सवाल का जवाब है ये कि हमें तेरी नई खोज...ये जो तूने पेट्रोल, डीजल और सी.एन.जी. में कई सस्ते केमिकल्स को मिलाकर उनमें पेट्रोल जैसी गुणवत्ता पैदा करने वाला फार्मूला तैयार किया है—वो चाहिये...।”
“म...मैंने ऐसा कोई फार्मूला तैयार नहीं किया है।” हड़बड़ाकर एक कदम पीछे हटते हुए बोला प्रोफेसर भास्कर, “त...तुम लोग जरूर किसी गलत फहमी का शिकार होकर यहां आये हो। यहां ऐसी कोई बात नहीं है...गुप...।”
इसी के साथ उस नकाबपोश ने उसके मुंह में रिवॉल्वर की नाल ठूंस दी तो उसकी बोलती में ढक्कन लग गया।
उसकी आंखों में आतंक की परछाइयां गर्दिश करने लगीं।
आतंकित उसकी बीवी अंजली भी थी और साथ में दोनों बच्चे भी।
प्रोफेसर का असिस्टेंट पवन जोगलेकर! वो तो मानो पत्थर का हो चुका था।
आंखें फटीं और होंठ भिंचे हुए थे।
“देख प्रोफेसर!” इस बार नकाबपोश लीडर ठहरे हुए लहजे में लेकिन गुर्राने वाले-से अन्दाज में बोला—“मेरे से होशियारी मत छांट। मुझे पक्की खबर है तेरी इस नई रिसर्च की। पिछले दो महीने से हमारी नजरें तुम पर...तुम्हारी इस रिसर्च पर थीं। अभी, आज दिन में जब तुमने पेट्रोल के साथ अपने खोज वाला मिश्रण तैयार करके इस जनरेटर सेट को चालू किया था, तभी हमें खबर लग गई थी और हम समझ गये थे कि तुम अपने मकसद में कामयाब हो चुके हो। अब मुझे यहां सब दिखाई भी दे रहा है। लाओ, वो फार्मूला मुझे दो, वर्ना गोली सीधा हलक में होगी।”
“म...मेरे पास कोई फार्मूला...आह...।”
प्रोफेसर का वाक्य पूरा होने से पहले ही नकाबपोश ने उसके हलक से रिवॉल्वर निकालकर उसके दस्ते का प्रहार उसके चेहरे पर किया तो वो कराहते हुए पीछे को उलट गया।
पापा को चोट खाते देख सात साल के राहुल को गुस्सा आया और वो नकाबपोश की तरफ झपटते हुए चिल्लाया—“बदमाश, तूने मेरे पापा को मारा—मैं तुझे मार डालूंगा।”
और नकाबपोश जिसने प्रोफेसर को मारा था, उसके पास जाकर उसने उसकी जांघ में दांतों से काटा तो नकाबपोश ने तिलमिलाकर उसके बाल पकड़कर उसे एक ओर उछाला और—
धांय।
गोली राहुल के सीने में जा धंसी।
“राहुलऽऽऽ।”
“मेरे लालऽऽऽ।”
प्रोफेसर आनन्द और अंजली चिल्लाते हुए राहुल की तरफ लपके।
तभी राहुल गिरा और तुरन्त ही उसकी आंखें उलट गईं।
अंजली राहुल का सिर गोद में लेकर विक्षिप्तों की तरह चिल्लाने लगी—“उठ राहुल...! उठ मेरे बच्चे! आंखें खोल मेरे जिगर के टुकड़े...।”
मां को रोते-चिल्लाते देख नन्हीं खुशबू भी जोर-जोर से रोने चिल्लाने लगी।
जबकि पलभर तक फटी-फटी आंखों से राहुल के निश्चेष्ट हो चुके जिस्म को देखते रहने के पश्चात् एकाएक प्रोफेसर की आंखों से शोले-से बरसने लगे।
क्रोध की अधिकता से जिस्म कांपने लगा।
फिर वो उस नकाबपोश की तरफ पलटा जिसने राहुल को गोली मारी थी और बाकी तीन का लीडर था।
“हरामजादे, तूने मेरे राहुल की जान ली है।” वो उसकी ओर लपकते हुए गुर्राया, “मैं तुझे जिन्दा नहीं छोङूंगा।”
लेकिन इससे पहले कि वो नकाबपोश तक पहुंचता, नकाबपोश ने रिवॉल्वर का ट्रिगर खींचा।
“धांय।”
गोली प्रोफेसर आनन्द राव के दाहिने पैर के घुटने की कटोरी में लगी और वो लड़खड़ाकर मुंह के बल फर्श पर गिरा।
“आनन्दऽऽऽ।” अंजली चीख उठी।
आतंक में जकड़ा जोगलेकर पीछे हट गया।
“नम्बर वन...नम्बर टू...प्रोफेसर को उठाकर खड़ा करो।”
लीडर नकाबपोश के आदेश का पालन हुआ। दो नकाबपोशों ने आगे बढ़कर दर्द से कराहते प्रोफेसर को बांहों से पकड़कर उठाकर खड़ा किया।
लीडर नकाबपोश उसकी छाती पर रिवॉल्वर की नाल टिकाते हुए गुर्राया—“प्रोफेसर...हमारे पास ज्यादा वक्त नहीं है, इसलिये आखिरी बार बोल रहा हूं। अपनी इस रिसर्च का फार्मूला मुझे दे दे।”
“वो फार्मूला मैं तुझे हरगिज...हरगिज नहीं दूंगा।” अपनी पीड़ा को जज़्ब करते तथा अपने एक-एक शब्द पर जोर देते हुए बोला प्रोफेसर, “वो मेरे देश के लिये की गई मेरी कमाई है। उसे...।”
उसके बाकी के शब्द उसके मुंह में वापस धकेल दिये नकाबपोश ने—“तो ये तेरा अखिरी फैसला है?”
“हां...।”
“तो ठीक है।” नकाबपोश रिवॉल्वर की नाल का रुख मां से लिपटी रो रही मासूम खुशबू की तरफ करते हुए सपाट-से लहजे में बोला, “पहले हम तेरी बेटी को, फिर तेरी बीवी को, फिर तेरे इस चमचे को और अन्त में तुझे मारकर तेरी इस लैबोरेट्री में आग लगाकर यहां से निकल जायेंगे। तेरी ये मेहनत न देश के काम आयेगी और न तेरे...।”
कहते हुए उसने रिवॉल्वर का ट्रिगर खींचा तो अंजली दौड़कर सामने आई और नकाबपोश के आगे गिड़गिड़ाई—“न...नहीं। त...तुम ऐसा नहीं करोगे। म...मेरी म...मासूम बच्ची से...मुझसे...तुम्हारा क्या लेना देना। त...तुम।”
“मेरे सामने गिड़गिड़ाने से तुम्हारा कोई भला नहीं होने वाला है मैडम।” उसकी बात बीच में शहीद करते हुए गुर्राने वाले अन्दाज में बोला नकाबपोश लीडर, “मेरा दिल लोहे का है—ये कैसे भी नहीं पिघलने वाला है। अगर तुम अपनी...बच्ची की.....सबकी जान बचाना चाहती हो तो अपने पति को समझाओ। वर्ना....।”
“ए...एक मिनट रुको। म...मैं आनन्द से बात करती हूं।”
अंजली आनन्द के सामने पहुंच हाथ जोड़ते हुए बोली—“आनन्द....प्लीज मान लो इनकी बात वर्ना ये...ये हम सबको मार डालेंगे। हमारे राहुल को तो...।” कहते हुए वो घुटनों के बल बैठकर रोने लगी।
“ह...हां प्रोफेसर।” जोगलेकर के थरथराते होठों से निकला—“म...मान लो इनकी बात। दे दो इन्हें फार्मूला। इसी में हम सबकी भलाई है।”
प्रोफेसर के चेहरे पर सख्ती नजर आई। वो इनकार करने वाला था कि सहसा उसे कुछ याद आया तो उसकी आंखों में एक क्षण के लिये चमक आई और फिर विलुप्त हो गई।
वो नकाबपोश लीडर से मुखातिब हो गम्भीर लहजे में बोला—“ओके। तुम्हें मेरा फार्मूला चाहिये। ले लो। वो लैपटाप में पेनड्राइव है—उसमें है वो फार्मूला। लो और हमारी जान बख्शो। जाओ यहां से।”
“नम्बर वन! लैपटाप उठाओ।” लीडर नकाबपोश बोला तो एक ने आगे बढ़कर मेज पर पड़ा लैपटाप उठा लिया।
उसके बाद लीडर नकाबपोश ने नम्बर दो और तीन को इशारा किया तो नम्बर दो ने अंजली के और नम्बर तीन की पहचान वाले नकाबपोश ने पवन जोगलेकर के सिर के पृष्ठभाग में रिवॉल्वर के दस्ते से प्रहार किया तो वे दोनों बेहोश होकर वहीं फैल गये।
“य...ये क्या?” आनन्दराव चिल्लाया, “जब मैंने फार्मूला तुमको सौंप दिया तो...।”
उसकी बात पूरी होने से पहले ही लीडर नकाबपोश की गन गर्जी।
गोली जाकर प्रोफेसर आनन्द के सीने में ठीक दिल वाली जगह में लगी।
“हरामजादे...पा...।” इसके बाद आनन्द की जुबान ने उसका साथ नहीं दिया और वो चेहरे पर नकाबपोश लीडर के लिए नफरत तथा हिकारत के भाव लिये गिर पड़ा।
उसका जिस्म पलभर तड़पता रहा और फिर स्थिर हो गया।
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पवन जोगलेकर को होश आया तो उस समय रात के दो बजे थे और अंजली अभी भी बेहोश थी। नन्हीं खुशबू उससे लिपटी सिसक रही थी—“मम्मी...मम्मी उठो। आप बोलती क्यों नहीं हैं। पापा भी नहीं बोल रहे हैं। उनको और राहुल भाइया को आई हो गई है।”
जोगलेकर ने खुशबू को गोद में उठाया और उसके गालों पर सूख चुके आंसुओं की लकीरों को पोंछते हुए बोला—“चुप हो जा बच्ची। तुम्हारी मम्मी सो रही हैं—लेकिन मैं उन्हें अभी जगाता हूं—और तुम्हारे पापा को भी...।”
फिर उसकी नजर प्रोफेसर की लाश पर पड़ी तो उसके मुंह से आश्चर्य और आतंक से भरी सिसकारी निकली—“न...नहीं! ऐसा नहीं हो सकता है। प्रोफेसर साहब ने तो उन बदमाशों को वो फार्मूला सौंप दिया था। फिर...।”
कुछ देर वो सन्नाटे में डूबा खड़ा रहा। फिर उसे अपने कर्तव्य का बोध हुआ तो उसने एक ओर रखे फ्रिज से ठण्डे पानी की बोतल निकाली और ठण्डे पानी के छींटे अंजली के चेहरे पर मारे तो उसने आंखें खोलीं।
“य...ये मेरा सिर...।” वो अपने सिर को थामे उठते हुए बड़बड़ाई, “ये फोड़े की तरह क्यों दुख रहा है....?”
फिर तुरन्त ही उसे बेहोश होने से पूर्व की घटना का ध्यान आया और वो जोगलेकर की ओर देखते हुए बोली—“व...वो बदमाश चले गये?”
“ह...हां मैडम।”
“आनन्द कहां हैं.....?” इसी के साथ उसकी नजर अपने पति की लाश पर पड़ी तो वो चीख उठी—“नहींऽऽऽ।”
“मैडम...प्लीज...आप खुद को...अपनी बेटी को संभालिये, मैं पुलिस को फोन करने जा रहा हूं।” कहते हुए जोगलेकर ने जेब से मोबाइल निकाला और सौ नम्बर डायल करने लगा।
फोन लगने पर उसने सारी बात बताई तो दूसरी तरफ फोन पर मौजूद अधिकारी ने उसे घटना स्थल पर किसी वस्तु को छूने अथवा इधर-उधर न करने का निर्देश दिया और कहा कि पुलिस दस मिनट में वहां पहुंच जायेगी।
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