रीमा भारती सीरीज
देवदूत
रीमा भारती
वो शाम काफी सुहानी थी।
मैं, 'आपके सपनों की रानी' रीमा भारती अपने ऑफिस से लौट रही थी।
जी हां मैं!
भारत की सबसे महत्वपूर्ण जासूसी संस्था आई०एस०सी० अर्थात् इण्डियन सीक्रेट कोर की नम्बर वन एजेन्ट। वही, आपको अपनी रोमांचकारी और रंगीन दुनिया के सतरंगी नजारों के नजारे कराने वाली, एक खूबसूरत हसीना... रीमा भारती। जिसे इस बात का गौरव हासिल है कि उसके हाथों जाने कितने देशद्रोहियों और डॉनों का अन्त हो चुका है। भारत मां की आन, शान और बान के लिए आपकी ये दोस्त जाने कितनी बार खतरों से खेली, मौत से पंजा लड़ाया। हर बार जीती।
मैं फ्री थी।
हालांकि ऑफिस जाती थी लेकिन कोई खास काम तब मेरे पास नहीं था। दूसरे शब्दों में मैं अगर कहूं तो मेरे पास उस वक्त कोई फील्ड वर्क यानि 'मिशन' नहीं था।
मैंने शॉपिंग कर लेने के इरादे से एक शॉपिंग सेंटर पर जाकर कार रोक दी।
मैं उतरी।
कार की इग्नीशन से चाबी खींचते हुए मैंने अन्दर से अपना पैर पार्किंग की जमीन पर रख दिया। कार से उतरकर मैंने दरवाजा बन्द किया और शॉपिंग सेंटर के शीशे युक्त दरवाजे की तरफ बढ़ गई।
अन्दर...!
मुझे कुछ आवश्यक सामानों की खरीदारी करनी थी। अन्दर जाकर मैंने सामान रखने के लिए एक ट्रॉली को अपने कब्जे में ले लिया। और सामान, जिसकी मुझे जरूरत थी, मैंने उस ट्राली में रखना आरंभ कर दिया।
पिछला महीना तो खत्म हो चुका था अतः घर का किचन खाली था। मैंने कॉफी का डिब्बा, पाउडर, थोड़ा-सा अपने मेकअप का सामान तथा कुछ खाने का सामान ट्रॉली में रख लिया।
काउण्टर पर अपने मास्टर कार्ड से बिल पे किया तथा सामान कागज के थैलों में रखवाकर मैं बाहर निकल पड़ी।
पार्किंग में मैंने अपनी कार का दरवाजा खोला। लापरवाही से सारा अपना सामान मैंने अपनी बगल वाली सीट पर फेंककर अपनी ड्राइविंग सीट संभाल ली।
इग्नीशन में चाबी डालते ही घुमा दी। कार घरघराकर स्टार्ट हो गई।
मैंने गियर बदला--
पैरों का दबाव एक्सीलेटर पर डालते ही स्टेयरिंग घुमाना आरंभ कर दिया।
कार पीछे को सरकने लगी।
¶¶
मैं अपने फ्लैट की तरफ बढ़ रही थी।
सड़क पर कोई खास ट्रैफिक नहीं था। मेरी कार भी बेहद मद्धिम गति से चल रही थी। मुझे कोई जल्दी नहीं थी। मैं पूरी तरह सामान्य रास्ते पर सामने नजरें जमाए कार ड्राइव कर रही थी।
एकाएक!
मैं चौंकी!
मेरी छठी हिंस जागी।
मगर...!
देर हो चुकी थी।
एक रिवॉल्वर की ठण्डी नाल मेरी कनपटी पर आकर सट गई।
“रिलेक्स रीमा।” वो शातिराना अंदाज में मुस्करा उठा।
वो!
जो मेरी पिछली सीट पर छलावे की मानिन्द प्रकट हुआ था। जाने कब से...शायद शॉपिंग सेंटर के पार्किंग से वो उस जगह छिपा हुआ था। मेरी जरा-सी लापरवाही ने उसे वो मौका दे दिया था।
सच! इंसान की जरा-सी लापरवाही, जरा-सी चूक उसे खतरनाक मोड़ पर लेजाकर खड़ा कर देती है। जैसे कि उस वक्त मैं थी। उसी के कारण उसके होंठों पर खतरनाक, जहान भर की कुटिलता समेटे विजयिनी मुस्कान खिलन्दड़ी कर रही थी। इसी कारण उसने मजे लेने वाले अंदाज में मुझे 'रिलैक्स' कहा था।
“इतनी रिलैक्स भी मत हो जाना, रीमा।” फिर उसके होंठों पर थिरकने वाली मुस्कान जानलेवा खतरनाक हो उठी—“कि तुम कोई गलती कर बैठो। मेरे रिवॉल्वर के ट्रेगर पर रखी हुई मेरी अंगुली की जरा-सी हरकत तुम्हारी खोपड़ी में सुराख बनाकर रख देने के लिए काफी है। कार ड्राइव करती रहो।”
वास्तव में।
उसका एक-एक शब्द सौ फीसदी सही था। उसकी अंगुली की जरा-सी हरकत मेरा क्रियाकर्म करने के लिए काफी थी। मैं विकट स्थिति में फंस चुकी थी।
मगर जाने कितनी इस प्रकार की विकट परिस्थितियों में मौत के साथ पंजा लड़ा चुकी हूं। इस तथ्य से तो मेरे मेहरबान दोस्त भली प्रकार वाकिफ हैं ही। सो मैं स्वयं को सामान्य बनाए हुए कार ड्राइव करती रही।
“शाबाश!” वो मुस्कराया, “मुझे पता है रीमा तुम जितनी खतरनाक हो उतनी ही समझदार भी हो। यूं ही जान देना तुम बिल्कुल पसंद नहीं करोगी।”
यानि उसका इरादा मुझे किडनैप करने का था। उसने दूसरे हाथ को सामने किया तो मुझे अपने सिर को ऊपर करके मिरर में उसके हाथ में थमा वॉकी-टॉकी नजर आ गया।
“हैलो-हैलो।” उसने उसे अपने चेहरे के पास ले जाकर कहा, “मैं एजेन्ट नम्बर थर्टी-फोर।”
“हैलो,” भारी-भरकम स्वर उभरा, “रिपोर्ट दें।”
“ऑपरेशन वन एण्ड टू सफलतापूर्वक कामयाब रहा। थ्री चल रहा है। ओवर।”
“वैरी गुड!” स्वर उभरा, “थर्टी-फाईव आ रहा है—ऑपरेशन फोर एण्ड फाईव के लिए तैयार रहें। ओवर।”
“हम तैयार हैं—ओवर ।”
“ओवर एण्ड ऑल।”
कहकर उसने वॉकी-टॉकी रख दिया।
फिर वो मेरी तरफ मुखातिब हुआ। ऐसा नहीं था कि वो अपने 'सर' से बात करते समय लापरवाह था। नहीं...जरा भी नहीं। रीमा जैसी शै के पास होकर कोई लापरवाह हो जाए। वो भी तब-जब उसने मुझ जैसी आग को जगाने की चेष्टा की हो। वो बात करते वक्त भी पूर्णतः सतर्क था।
“प्यारे, एक तरफ मुझे समझदार कह रहे हो, दूसरी तरफ तुम ये एक्सेप्ट कर रहे हो कि मैं मूर्खतापूर्ण सवाल के बारे में सोचूं।” मैं अदा-से मुस्कराई। सुर्ख गुलाबी अधरों पर मचलने वाली मुस्कान जहान भर का आकर्षण और चंचलता समेटे थी, “वैसे ये बताओ प्यारे, तुम हो किस संगठन से?”
“सब पता चल जाएगा।” एकाएक वो चेतावनीपूर्ण लहजे में कह उठा, “ना-ना-ना। बिल्कुल नहीं। जरा भी हरकत करने की गलती मत करना, रीमा। सामने ही देखो। शाबाश!”
मैंने गर्दन घुमाते-घुमाते पुनः सामने देखना आंरभ कर दिया।
“ऐसे ही समझदारी के साथ कार चलाती रहो।” उसके स्वर में सतर्कता और खुशी का मिला-जुला रूप था।
उसी वक्त।
एक नीली फिएट ने हमें टेक ओवर किया।
वो फिएट हमारे ठीक आगे आकर चलने लगी।
“अब इस कार को फॉलो करती चलो।” उसने कहा।
“प्यारे इरादा तो बताओ।” मैं मजे लेने वाले अंदाज में कह उठी।
“जानेमन, इरादा तो तुम्हें कत्ल करने का ही है।” उसने बिना किसी हिचक के कहा।
“तो कर क्यों नहीं डालते?”
“कर देंगे। मरघट में तो चलो।”
“मरघट में?”
चक्कर मेरी समझ में नहीं आया। वो मुझे कौन-से 'मरघट' में ले जाना चाहता था?
खैर!
असलियत तो उसके साथ कथित 'मरघट' में ही जाने के पश्चात् मालूम पड़ सकती थी। शायद हमारे पीछे भी एक और कार थी। कारण-वो हमारे पीछे ठीक उसी दूरी पर हमारी ही गति से चल रही थी जो दूरी उसने कायम की थी।
वॉकी-टॉकी पर टैक्नीकल भाषा में की गई बातें स्पष्ट इशारा कर रही थीं कि वे किसी इंटेलीजेंस एजेंसी के प्रशिक्षित एजेंट थे। शायद आई०एस०आई० के।
अर्थात् उनका इरादा इस बार फिर भारत मां के निर्मल सीने को छलनी करने का था।
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