Deja Vu : देजा वू : Déjà vu by Kanwal Sharma
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Description
दारने सजवाण अपने रईस बाप की शाही आदतों में पली बढ़ी वो एकलौती औलाद थी जिसने पहले तो बाकायदा एक जिद के तहत अपनी मर्जी से, अपनी पसंद की कमसिन लड़की से शादी की और बाद में बेलिहाज एक दूसरी लड़की से प्यार की पींगे भी बढ़ा लीं। नतीजतन उसकी शादी में तो फर्क पड़ा ही पड़ा लेकिन आगे जब उसने अपनी बीवी को दिये धोखे के बदले खुद धोखा खाया, तो वो बौखला उठा। इतना कि वो बदकिरदार, बदचलन, बदअख़लाक़ शख्स अपने पूर्वाभास को, अपने देजा वू, को भी अनदेखा कर गय।
Deja Vu : देजा वू : Déjà vu
Kanwal Sharma
BookMadaari
प्रस्तुत उपन्यास के सभी पात्र एवं घटनायें काल्पनिक हैं। किसी जीवित अथवा मृत व्यक्ति से इनका कतई कोई सम्बन्ध नहीं है। समानता संयोग से हो सकती है। उपन्यास का उद्देश्य मात्र मनोरंजन है। प्रस्तुत उपन्यास में दिए गए हिंसक दृश्यों, धूम्रपान, मधपान अथवा किसी अन्य मादक पदार्थों के सेवन का प्रकाशक या लेखक कत्तई समर्थन नहीं करते। इस प्रकार के दृश्य पाठकों को इन कृत्यों को प्रेरित करने के लिए नहीं बल्कि कथानक को वास्तविक रूप में दर्शाने के लिए दिए गए हैं। पाठकों से अनुरोध है की इन कृत्यों वे दुर्व्यसनों को दूर ही रखें। यह उपन्यास मात्र 18 + की आयु के लिए ही प्रकाशित किया गया है। उपन्यासब आगे पड़ने से पाठक अपनी सहमति दर्ज कर रहा है की वह 18 + है।
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देजा वू
अहमदाबाद
लम्बे कद का दारेन सजवाण एक सत्ताईस साल का चौड़े मजबूत कंधे, गठीले बदन वाला और अपने दायरे में खूब पसंद किया जाता खूबसूरत हुनरमंद नौजवान था जो मुंह में चांदी की नहीं बल्कि सोने की चम्मच लेकर पैदा हुआ था। जहां वो बजाते खुद एक मल्टीनेशनल कॉर्पोरेट हाउस के दिल्ली ऑपरेटिड दफ्तर में टेक्नीकल एक्सपर्ट के तौर पर मोटी तनख्वाह खींचता था वहीं उसका बाप रमेश सजवाण—अहमदाबाद का एक जाना-माना स्टॉक ब्रोकर था जिसने अपने सहज और तीखे दिमाग के बूते शेयर बाजार से मोटी रकम पीटी थी।
दारेन अपनी नौकरी के सिलसिले की वजह से दिल्ली ठिकाना बनाए हुए था और उसका बाप यहाँ अहमदाबाद में अपना दफ्तर चलाता था। बाप, हालांकि उसके नौकरी—भले ही कॉर्पोरेट हाउस की खूब मोटी तनख्वाह वाली थी—करने के खिलाफ था और देर-सबेर उसे अपने साथ अपने धंधे में लगाना चाहता था।
जिसके लिए होनहार बेटा—फिलहाल—तैयार नहीं था।
दारेन का डेरा दिल्ली था और बुलाये जाने पर—कोई पंद्रह बीस दिनों में—यहाँ अहमदाबाद विजिट करने आता था।
और आज उसकी ऐसी ही विजिट थी जो ज्यादा खास इसलिए थी कि इस विजिट में उसकी शिरकत एक ऐसी पार्टी में बनी थी जो अहमदाबाद के एक बिजनेस हाउस ने नए साल के आगाज की खुशी में कांस्टीट्यूट की थी।
दारेन अपने बाप—रमेश सजवाण—की इकलौती औलाद थी जिससे उसे—मेरा नाम करेगा रोशन, जग में मेरा राज दुलारा—मार्का बड़ी-बड़ी उम्मीदें थीं। दारेन के किये इस ‘नाम-रोशन के मौजूदा खाते में वैसे तो काफी आइटम थे लेकिन फिलहाल अपनी खूब सेहतमंद तनख्वाह के बूते उसने अपने लिए जिन कई खूबसूरत, मंहगी और बाकमाल आइटम्स पर अपना अख्तियार जमाने में कामयाबी हासिल की थी उस लिस्ट में सबसे ऊपर लिखा आइटम ‘नीता’ था जो उसकी दिल्ली वाली कड़क जवान और बेहद खूबसूरत लिव-इन गर्लफ्रेंड थी जिसकी खबर यहाँ अहमदाबाद में रहते उसके मां-बाप को नहीं थी।
नीता से वो दिल्ली में ही पिछले साल मिला था और मुलाकात के महज कुछ ही महीनों में वो—आज सोच कर भी हैरान होता था—कि कैसे उस पर इस कदर हावी हो गई थी! नीता उसकी ऐसी इश्तहा थी, ऐसी भूख थी जो भरपेट खाना हासिल हो जाने के बाद भी कम होने के बजाये और भड़कती थी।
कई बार उसने सोचा था कि वो उसका साथ छोड़ दे लेकिन वो ऐसा सिर्फ सोच ही पाया....वाकई में ऐसा कर गुजरने का हौंसला कभी न दिखा पाया।
जब तक कि उसने साया को न देखा।
साया नगन्याल अपने पिता—के.एस. नगन्याल—की दो बेटियों में से बड़ी बेटी थी जो सूरत बेस्ड एक बड़ा—खूब बड़ा—हीरा व्यापारी था जिसका अफ्रीका के बोत्सवाना से कच्चे हीरे लाकर उनकी कटिंग कर उनको आगे डी-बीयर्स जैसी इस धंधे की कई जानी-मानी मल्टी-नेशनल कंपनियों को सप्लाई करने का बड़ा स्थापित और खूब मोटी कमाई वाला धंधा था। नगन्याल अपने धंधे में बादशाह जैसी हैसियत वाला शख्स था और खास इसी वजह मीडिया में अक्सर डायमंड किंग, मोनार्क या मुगल जैसे सम्बोधनों से नवाजा जाता था।
साया ने उसे—दारेन को—पहली बार अपने फार्म हाउस पर आयोजित हुई उसी पार्टी में देखा था जहां दारेन अपने मां-बाप के साथ वहाँ उस पार्टी का मुअज्जिज मेहमान था।
साया ने उसे देखा और देखते ही उस पर फिदा हुई।
उसके लिए दारेन ही उसका सपनों का वो सब्ज शहजादा था कि जिसका वो बरसों से इंतजार कर रही थी। फिर जल्द ही दारेन की भी निगाह उस पर गई और दोनों की वहीं—लव एट फर्स्ट साईट—मार्का आँखें चार हुईं।
और नीता!
कौन नीता?
भूखे को जायके की और मक्कार को दुनियावी शर्मो-हया की फिक्र कहाँ होती है!
उस पार्टी में हुई मुलाकात के बाद दारेन की साया से आगे कुछ दिनों में कई मुलाकातें हुईं।
फिर कुछ और मुलाकातें।
कभी किसी रेस्तरां में लंच के नाम पर तो कभी किसी माल में शापिंग के नाम पर।
फिर कोई एक महीने की इन मुतवातर तूफानी मुलाकातों का अंजाम कुछ यूँ निकला कि दारेन ने अपने घुटनों के बल बैठकर साया नगन्याल—डॉटर ऑफ डैज्जलिंग डायमंड मोनार्क को बाकायदा एक चौबीस कैरट हीरे की अंगूठी के साथ प्रोपोज किया जिसे उसने—साया ने—बाखुशी, बामुहब्बत, बल्लियाँ उछल-उछल कर कबूल किया।
फिर और मुलाकातें।
और अब अक्सर अकेले में।
भीड़भाड़ से दूर।
धुआंधार मुहब्बत की वो तेज रफ्तार गाड़ी तब और तेज हो गयी जब दोनों के परिवार वालों ने भी इस रिश्ते पर अपनी मुहर लगा दी और दोनों की शादी की तारीख घोषित कर दी।
फिर शादी।
जो मूंगफली की तरह होती है....कि जब तक बाहरी हिस्सा चटकता नहीं, भीतर हासिल का पता नहीं पाता।
फिर हनीमून।
केपटाउन कालिंग।
¶¶
केपटाउन, दक्षिण अफ्रीका
“अच्छा सुनो”—साया ने बिस्तर पर अपने बगल में लेटे अपने सब्ज शहजादे, जो अब उसका पति था, से कहा—“मुझे अभी दो साल तक कोई बच्चा-वच्चा नहीं चाहिए।”
दक्षिण अफ्रीका आने के बाद दोनों सीधे क्रूगर नेशनल पार्क चले गए थे जहां इम्बली सफारी लॉज में चार दिन शाही अंदाज में बिताने के बाद वो आज देर रात केपटाउन पहुंचे थे और आते ही केप-ग्रेस नाम के उस पांच सितारा होटल में पहले से बुक अपने कमरे में आकर एक दूसरे में गर्क हो गए थे।
“मैं भी अभी बाप बनना नहीं चाहता”—दारेन ने अपनी नव ब्याहता बीवी को अपने आगोश में खींचते और आगे फिर भींचते हुए कहा।
“छोड़ो”—साया ने खुद को उस पकड़ से आजाद कराने की नाकाम कोशिश की—“मुझे समझ नहीं आता कि तुम्हारा दिल कभी भरेगा भी या नहीं।”
“भरेगा न....”—दारेन ने उसे अपनी ओर जोर से भींचा और बोला—“जब तुम भरने दोगी तो क्यूँ नहीं भरेगा।”
“बस अब और नहीं”—साया कुनमुनाई।
“क्यूँ!”
“मैं थक गयी हूँ।”
“ऐसे कैसे थक गयीं? तुमने किया ही क्या है”—दारेन ने उसे फिर खींचा और जिद भरे स्वर में बोला—“सारी उछल कूद तो मैंने की है।”
“अच्छा”—साया ने खुद को छुड़ाने की नाकाम कोशिश करते हुए कहा—“तुम्हारी उसी बेलगाम उछल कूद ने मेरे बदन के सारे कस-बल ढीले कर दिए हैं।”
“अच्छा”—दारेन ने उसे टटोला और शरारती स्वर में बोला—“जरा दिखाओ तो।”
“नहीं”—साया ने खुद को पीछे खींचा—“प्लीज अब नहीं।”
“ये गलत बात है”—दारेन ने बनावटी नाराजगी दिखाई।
“क्या गलत है?”
“हम यहाँ हनीमून के लिए आये हैं।”
“हाँ तो।”
“तो हनीमून में भी भला कोई थकता है!”
“थकते हैं।”
“नहीं थकते।”
“नहीं दारेन, मैं सच में थक गयी हूँ”—इस बार साया का स्वर बदला और मानो उसने इल्तजा की।
“ओह कम ऑन”—उतावला दारेन कहाँ मानने वाला था।
“अच्छा मैं जरा पहले नहा लूं”—साया ने बात बदली और चादर को अपने गले तक खींचते हुए कहा—“तुम जरा ब्रेकफास्ट का आर्डर करो।”
“ब्रेकफास्ट!”—दारेन ने दीवार घड़ी पर निगाह डाली और साया पर से चादर वापिस खींचने की कोशिश की—“ग्यारह बज रहे हैं मैडम।”
“हे भगवान”—साया हैरानी भरे स्वर में तुनकती हुई बोली—“छोड़ो मुझे।”
“नहीं”—चौबीस घंटे पहले पति की भूमिका में आया दारेन जैसे अपनी मनमानी करने पर उतारू था—“अभी नहीं।”
“मुझे भूख लगी है”—वो बोली।
“मुझे भी लगी है”—दारेन ने फिर कोशिश की।
“तुम्हारी वाली भूख कभी नहीं मिटती”—साया ने खुद को जोर देकर छुड़ाया।
“अच्छा है न”—दारेन कुत्सित भाव में मुस्कुराते हुए बोला।
“नहीं है अच्छा”—वो बोली—“अब छोड़ो मुझे और कुछ खाने की गत करो।”
“अच्छा—फिर बाद में!”
“बाद में क्या?”
“तुम्हारे खाने के बाद मेरी भूख....”—दारेन ने अपना मुंह चादर के नीचे घुसाया।
“वो वाली भूख बाद में”—साया ने उसे रोकने की नाकाम कोशिश करते हुए कहा—“अभी फर्स्ट थिंग फर्स्ट।”
“ठीक है”—दारेन ने चादर के नीचे एक आखिरी शरारत कर अपनी नव ब्याहता बेहद खूबसूरत बीवी पर अपनी पकड़ ढीली की और बोला—“जाओ....तुम भी क्या याद करोगी कि किस दिलदार दानवीर से पाला पड़ा था।”
“और”—साया बिस्तर से बाहर आते हुए बोली—“ये दिलदार दानवीर कौन हुआ?”
“हम हुए”—दारेन दांत चमकाते हुए पूरे थिएट्रिकल अंदाज में बोला।
“ओह हो”—वो बोली—“मेरे प्यारे न्यूली अक्वायर्ड पतिदेव, हातिमताई की कब्र पर लात मार कर अब जरा इस कनीज के खाने का भी इन्तेजाम कर दीजिये।”
“अभी लो”—कहकर दारेन वहीं डबलबेड की साइड टेबल पर रखे फोन पर उलझ गया तो साया वाशरूम की ओर बढ़ गई।
पांच मिनट बाद लौटी साया ने बाहर आते ही दारेन को देखा।
देखा तो सोचा कि वो यकीनन खुशकिस्मत थी कि उसे दारेन जैसा सजीला बांका नौजवान अपने पति के तौर पर हासिल था। इस एक ख्याल ने उसके चेहरे पर लाली दौड़ा दी।
दोनों की निगाहें मिलीं।
नतीजतन नहाने जाने को तैयार बिस्तर से बाहर आ खड़ी हुई साया अब दोबारा बिस्तर में घुस दारेन से जा लिपटी।
दारेन के हाथ में अभी उसका मोबाइल था जो अब—साया की संगत में—फिर ना जाने कहाँ जा गिरा।
कमरे में एक बार फिर भूचाल आ गया।
¶¶
देजा वू
अहमदाबाद
लम्बे कद का दारेन सजवाण एक सत्ताईस साल का चौड़े मजबूत कंधे, गठीले बदन वाला और अपने दायरे में खूब पसंद किया जाता खूबसूरत हुनरमंद नौजवान था जो मुंह में चांदी की नहीं बल्कि सोने की चम्मच लेकर पैदा हुआ था। जहां वो बजाते खुद एक मल्टीनेशनल कॉर्पोरेट हाउस के दिल्ली ऑपरेटिड दफ्तर में टेक्नीकल एक्सपर्ट के तौर पर मोटी तनख्वाह खींचता था वहीं उसका बाप रमेश सजवाण—अहमदाबाद का एक जाना-माना स्टॉक ब्रोकर था जिसने अपने सहज और तीखे दिमाग के बूते शेयर बाजार से मोटी रकम पीटी थी।
दारेन अपनी नौकरी के सिलसिले की वजह से दिल्ली ठिकाना बनाए हुए था और उसका बाप यहाँ अहमदाबाद में अपना दफ्तर चलाता था। बाप, हालांकि उसके नौकरी—भले ही कॉर्पोरेट हाउस की खूब मोटी तनख्वाह वाली थी—करने के खिलाफ था और देर-सबेर उसे अपने साथ अपने धंधे में लगाना चाहता था।
जिसके लिए होनहार बेटा—फिलहाल—तैयार नहीं था।
दारेन का डेरा दिल्ली था और बुलाये जाने पर—कोई पंद्रह बीस दिनों में—यहाँ अहमदाबाद विजिट करने आता था।
और आज उसकी ऐसी ही विजिट थी जो ज्यादा खास इसलिए थी कि इस विजिट में उसकी शिरकत एक ऐसी पार्टी में बनी थी जो अहमदाबाद के एक बिजनेस हाउस ने नए साल के आगाज की खुशी में कांस्टीट्यूट की थी।
दारेन अपने बाप—रमेश सजवाण—की इकलौती औलाद थी जिससे उसे—मेरा नाम करेगा रोशन, जग में मेरा राज दुलारा—मार्का बड़ी-बड़ी उम्मीदें थीं। दारेन के किये इस ‘नाम-रोशन के मौजूदा खाते में वैसे तो काफी आइटम थे लेकिन फिलहाल अपनी खूब सेहतमंद तनख्वाह के बूते उसने अपने लिए जिन कई खूबसूरत, मंहगी और बाकमाल आइटम्स पर अपना अख्तियार जमाने में कामयाबी हासिल की थी उस लिस्ट में सबसे ऊपर लिखा आइटम ‘नीता’ था जो उसकी दिल्ली वाली कड़क जवान और बेहद खूबसूरत लिव-इन गर्लफ्रेंड थी जिसकी खबर यहाँ अहमदाबाद में रहते उसके मां-बाप को नहीं थी।
नीता से वो दिल्ली में ही पिछले साल मिला था और मुलाकात के महज कुछ ही महीनों में वो—आज सोच कर भी हैरान होता था—कि कैसे उस पर इस कदर हावी हो गई थी! नीता उसकी ऐसी इश्तहा थी, ऐसी भूख थी जो भरपेट खाना हासिल हो जाने के बाद भी कम होने के बजाये और भड़कती थी।
कई बार उसने सोचा था कि वो उसका साथ छोड़ दे लेकिन वो ऐसा सिर्फ सोच ही पाया....वाकई में ऐसा कर गुजरने का हौंसला कभी न दिखा पाया।
जब तक कि उसने साया को न देखा।
साया नगन्याल अपने पिता—के.एस. नगन्याल—की दो बेटियों में से बड़ी बेटी थी जो सूरत बेस्ड एक बड़ा—खूब बड़ा—हीरा व्यापारी था जिसका अफ्रीका के बोत्सवाना से कच्चे हीरे लाकर उनकी कटिंग कर उनको आगे डी-बीयर्स जैसी इस धंधे की कई जानी-मानी मल्टी-नेशनल कंपनियों को सप्लाई करने का बड़ा स्थापित और खूब मोटी कमाई वाला धंधा था। नगन्याल अपने धंधे में बादशाह जैसी हैसियत वाला शख्स था और खास इसी वजह मीडिया में अक्सर डायमंड किंग, मोनार्क या मुगल जैसे सम्बोधनों से नवाजा जाता था।
साया ने उसे—दारेन को—पहली बार अपने फार्म हाउस पर आयोजित हुई उसी पार्टी में देखा था जहां दारेन अपने मां-बाप के साथ वहाँ उस पार्टी का मुअज्जिज मेहमान था।
साया ने उसे देखा और देखते ही उस पर फिदा हुई।
उसके लिए दारेन ही उसका सपनों का वो सब्ज शहजादा था कि जिसका वो बरसों से इंतजार कर रही थी। फिर जल्द ही दारेन की भी निगाह उस पर गई और दोनों की वहीं—लव एट फर्स्ट साईट—मार्का आँखें चार हुईं।
और नीता!
कौन नीता?
भूखे को जायके की और मक्कार को दुनियावी शर्मो-हया की फिक्र कहाँ होती है!
उस पार्टी में हुई मुलाकात के बाद दारेन की साया से आगे कुछ दिनों में कई मुलाकातें हुईं।
फिर कुछ और मुलाकातें।
कभी किसी रेस्तरां में लंच के नाम पर तो कभी किसी माल में शापिंग के नाम पर।
फिर कोई एक महीने की इन मुतवातर तूफानी मुलाकातों का अंजाम कुछ यूँ निकला कि दारेन ने अपने घुटनों के बल बैठकर साया नगन्याल—डॉटर ऑफ डैज्जलिंग डायमंड मोनार्क को बाकायदा एक चौबीस कैरट हीरे की अंगूठी के साथ प्रोपोज किया जिसे उसने—साया ने—बाखुशी, बामुहब्बत, बल्लियाँ उछल-उछल कर कबूल किया।
फिर और मुलाकातें।
और अब अक्सर अकेले में।
भीड़भाड़ से दूर।
धुआंधार मुहब्बत की वो तेज रफ्तार गाड़ी तब और तेज हो गयी जब दोनों के परिवार वालों ने भी इस रिश्ते पर अपनी मुहर लगा दी और दोनों की शादी की तारीख घोषित कर दी।
फिर शादी।
जो मूंगफली की तरह होती है....कि जब तक बाहरी हिस्सा चटकता नहीं, भीतर हासिल का पता नहीं पाता।
फिर हनीमून।
केपटाउन कालिंग।
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केपटाउन, दक्षिण अफ्रीका
“अच्छा सुनो”—साया ने बिस्तर पर अपने बगल में लेटे अपने सब्ज शहजादे, जो अब उसका पति था, से कहा—“मुझे अभी दो साल तक कोई बच्चा-वच्चा नहीं चाहिए।”
दक्षिण अफ्रीका आने के बाद दोनों सीधे क्रूगर नेशनल पार्क चले गए थे जहां इम्बली सफारी लॉज में चार दिन शाही अंदाज में बिताने के बाद वो आज देर रात केपटाउन पहुंचे थे और आते ही केप-ग्रेस नाम के उस पांच सितारा होटल में पहले से बुक अपने कमरे में आकर एक दूसरे में गर्क हो गए थे।
“मैं भी अभी बाप बनना नहीं चाहता”—दारेन ने अपनी नव ब्याहता बीवी को अपने आगोश में खींचते और आगे फिर भींचते हुए कहा।
“छोड़ो”—साया ने खुद को उस पकड़ से आजाद कराने की नाकाम कोशिश की—“मुझे समझ नहीं आता कि तुम्हारा दिल कभी भरेगा भी या नहीं।”
“भरेगा न....”—दारेन ने उसे अपनी ओर जोर से भींचा और बोला—“जब तुम भरने दोगी तो क्यूँ नहीं भरेगा।”
“बस अब और नहीं”—साया कुनमुनाई।
“क्यूँ!”
“मैं थक गयी हूँ।”
“ऐसे कैसे थक गयीं? तुमने किया ही क्या है”—दारेन ने उसे फिर खींचा और जिद भरे स्वर में बोला—“सारी उछल कूद तो मैंने की है।”
“अच्छा”—साया ने खुद को छुड़ाने की नाकाम कोशिश करते हुए कहा—“तुम्हारी उसी बेलगाम उछल कूद ने मेरे बदन के सारे कस-बल ढीले कर दिए हैं।”
“अच्छा”—दारेन ने उसे टटोला और शरारती स्वर में बोला—“जरा दिखाओ तो।”
“नहीं”—साया ने खुद को पीछे खींचा—“प्लीज अब नहीं।”
“ये गलत बात है”—दारेन ने बनावटी नाराजगी दिखाई।
“क्या गलत है?”
“हम यहाँ हनीमून के लिए आये हैं।”
“हाँ तो।”
“तो हनीमून में भी भला कोई थकता है!”
“थकते हैं।”
“नहीं थकते।”
“नहीं दारेन, मैं सच में थक गयी हूँ”—इस बार साया का स्वर बदला और मानो उसने इल्तजा की।
“ओह कम ऑन”—उतावला दारेन कहाँ मानने वाला था।
“अच्छा मैं जरा पहले नहा लूं”—साया ने बात बदली और चादर को अपने गले तक खींचते हुए कहा—“तुम जरा ब्रेकफास्ट का आर्डर करो।”
“ब्रेकफास्ट!”—दारेन ने दीवार घड़ी पर निगाह डाली और साया पर से चादर वापिस खींचने की कोशिश की—“ग्यारह बज रहे हैं मैडम।”
“हे भगवान”—साया हैरानी भरे स्वर में तुनकती हुई बोली—“छोड़ो मुझे।”
“नहीं”—चौबीस घंटे पहले पति की भूमिका में आया दारेन जैसे अपनी मनमानी करने पर उतारू था—“अभी नहीं।”
“मुझे भूख लगी है”—वो बोली।
“मुझे भी लगी है”—दारेन ने फिर कोशिश की।
“तुम्हारी वाली भूख कभी नहीं मिटती”—साया ने खुद को जोर देकर छुड़ाया।
“अच्छा है न”—दारेन कुत्सित भाव में मुस्कुराते हुए बोला।
“नहीं है अच्छा”—वो बोली—“अब छोड़ो मुझे और कुछ खाने की गत करो।”
“अच्छा—फिर बाद में!”
“बाद में क्या?”
“तुम्हारे खाने के बाद मेरी भूख....”—दारेन ने अपना मुंह चादर के नीचे घुसाया।
“वो वाली भूख बाद में”—साया ने उसे रोकने की नाकाम कोशिश करते हुए कहा—“अभी फर्स्ट थिंग फर्स्ट।”
“ठीक है”—दारेन ने चादर के नीचे एक आखिरी शरारत कर अपनी नव ब्याहता बेहद खूबसूरत बीवी पर अपनी पकड़ ढीली की और बोला—“जाओ....तुम भी क्या याद करोगी कि किस दिलदार दानवीर से पाला पड़ा था।”
“और”—साया बिस्तर से बाहर आते हुए बोली—“ये दिलदार दानवीर कौन हुआ?”
“हम हुए”—दारेन दांत चमकाते हुए पूरे थिएट्रिकल अंदाज में बोला।
“ओह हो”—वो बोली—“मेरे प्यारे न्यूली अक्वायर्ड पतिदेव, हातिमताई की कब्र पर लात मार कर अब जरा इस कनीज के खाने का भी इन्तेजाम कर दीजिये।”
“अभी लो”—कहकर दारेन वहीं डबलबेड की साइड टेबल पर रखे फोन पर उलझ गया तो साया वाशरूम की ओर बढ़ गई।
पांच मिनट बाद लौटी साया ने बाहर आते ही दारेन को देखा।
देखा तो सोचा कि वो यकीनन खुशकिस्मत थी कि उसे दारेन जैसा सजीला बांका नौजवान अपने पति के तौर पर हासिल था। इस एक ख्याल ने उसके चेहरे पर लाली दौड़ा दी।
दोनों की निगाहें मिलीं।
नतीजतन नहाने जाने को तैयार बिस्तर से बाहर आ खड़ी हुई साया अब दोबारा बिस्तर में घुस दारेन से जा लिपटी।
दारेन के हाथ में अभी उसका मोबाइल था जो अब—साया की संगत में—फिर ना जाने कहाँ जा गिरा।
कमरे में एक बार फिर भूचाल आ गया।
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Additional information
Book Title | Deja Vu : देजा वू : Déjà vu by Kanwal Sharma |
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Isbn No | 9788177895178 |
No of Pages | 252 |
Country Of Orign | India |
Year of Publication | 2018 |
Language | |
Genres | |
Author | |
Age | |
Publisher Name | Ravi Pocket Books |
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