दरिंदा
“मेरा ख्याल है अब तुम अपने ठिकाने आराम से पहुँच जाओगी।”
“मैं तो वहाँ से भी पहुँच जाती—जहाँ तुमसे मिलने गई थी। यह तो तुमने जिद कर ली—वर्ना मैं अकेली ही आ जाती।”
“हाय....क्या करूँ—तुमसे जुदा होने को दिल ही नहीं कर रहा था।”
“अब तो हो रही हूँ।”
“दिल तो अब भी नहीं कर रहा, दिल करता है कि अभी तुम्हें खींचकर वापिस कार में डाल दूँ....।”
“मगर ऐसा कर नहीं सकते।”
“हाँ....ऐसा कर नहीं सकता—मजबूर हूँ। वैसे कभी अपने घर में जरूर लेकर जाऊँगा।”
“बहुत महँगी पङूंगी....।”
“वो तो....।”
“अब बस....देर हो रही है।”
“ओ○के○।”
और फिर फटाक् की आवाज के साथ मारुति जेन का दरवाजा बन्द हो गया और कार तेजी से आगे बढ़ गई।
मगर अर्जुन त्यागी की निगाहें न तो उस मारुति जेन पर थीं....न ही उसने उसे देखा था, जो कार में बैठकर गया था।
वह तो उस लड़की को देखे जा रहा था, जो फुटपाथ पर खड़ी कार को जाते देख रही थी।
उसने काले रंग की लो कट टॉप पहन रखी थी—नीचे स्कर्ट भी काले रंग की थी, जोकि उसके घुटनों से थोड़ी ऊपर थी।
बॉवकट काले बाल जोकि बड़े ही करीने से संवारे हुए थे....कानों में सोने के बड़े-बड़े बुँदे....गले में सोने की पतली चैन और इन सबसे बढ़कर उसका हसीन चेहरा।
गोरा चिट्टा रंग और बड़ी-बड़ी काली आंखें।
अपने दायें कंधे पर उसने पर्स लटका रखा था।
अर्जुन त्यागी एकटक उसे निहारे जा रहा था।
रह-रहकर उसकी निगाहें कभी उसके खूबसूरत चेहरे पर पड़तीं तो कभी वह उसकी लो कट टॉप में से झांकतीं उसकी बेमिसाल छातियों को देखने लगता।
दिल्ली से भागकर अर्जुन त्यागी सीधा केशवगढ़ आ पहुंचा था। उसे नहीं पता था कि जिस स्टेशन पर वह उतरा था—वह केशवगढ़ था—
यह तो उसे स्टेशन से बाहर निकलने के पश्चात् ही पता चला था। वो भी एक दुकान पर लगे बोर्ड को पढ़कर।
वहीं से उसने एक रिक्शा की और अनमोल गेस्ट हाऊस जा पहुंचा। स्टेशन से गेस्ट हाऊस आते समय उसने रास्ते में रिक्शेवाले से ही पूछा था कि यहां सस्ते में ठहरने का इन्तजाम कहां है और उसी ने अनमोल गेस्ट हाऊस का सुझाव दिया था। उसके बाद जब अर्जुन त्यागी ने पूछा कि यहां रात रंगीन करने का कोई जरिया है तो रिक्शा वाले ने यह कहा कि वह रात को हाईवे पर खड़ा हो जाये—उसे कोई न कोई जरिया मिल जायेगा।
गेस्ट हाऊस में कमरा लेकर उसने बाकी का बचा-खुचा दिन बिताया और फिर रात को दस बजे के करीब हाईवे पर एक बस स्टॉप के पेड़ के नीचे आ खड़ा हुआ।
रिक्शेवाले की बातों से वह यही समझा कि या तो कालगर्ल रात को ग्राहकों को ऐसे ही ढूंढती हैं या फिर बड़े घर की बिगड़ी हुई लड़कियां ऐसे शिकार ढूंढती हैं।
बेशक कालगर्ल मिले या हवस की मारी कोई बिगड़ी लौंडिया—उसे आज रात अपनी रात रंगीन करनी थी।
यही सोचकर वह वहां बैठा हुआ था।
ठरकी तो वह था ही।
सो हर आने वाली कार को देखकर वह यही सोचता कि वह कार उसके करीबी रुकेगी—उसमें से एक खूबसूरत और हसीन लड़की गर्दन निकालकर उसे देखेगी और कहेगी—
“हाय हैंडसम—लिफ्ट चाहिये क्या?”
और यह बिना देर किये उठेगा और कार में प्रवेश कर जायेगा।
फिर वही लड़की उसे आलीशान कोठी में ले जायेगी—और अपने शानदार बैडरूम में ले जाकर अपने सारे कपड़े उसके सामने उतार देगी
और उससे कहेगी कि वह उसकी आग को ठण्डा करे।
वह बिना समय गंवाये उस पर सवार हो जायेगा और खूब मजे लेगा।
उसके साथ मजे लेने के साथ-साथ वह उससे यह भी पूछेगा कि उस कोठी में और कौन-कौन रहता है....तो वह बतायेगी कि सिर्फ उसकी मां ही रहती है। साथ ही वह यह भी बतायेगी कि उसकी कोठी में पचास लाख कैश भी पड़ा है।
और फिर सुबह होते ही वह उस लड़की तथा उसकी मां को मारकर कैश लेकर चलता बनेगा।
सोचते-सोचते उसका मन उतावला-सा होने लगा।
बस दो ही तो ठरक थीं उसे।
एक लड़की की और दूसरी दौलत की।
हिन्दुस्तान का सबसे बड़ा डॉन बनना चाहता था वह—मगर उसके लिये दौलत की जरूरत थी—जोकि उसके पास थी ही नहीं।
ऐसा नहीं था कि उसने दौलत पाने के लिए कुछ नहीं किया था।
कई डाके मार बैठा था—कई कत्ल कर दिये थे उसने—मगर हाथ में आकर भी दौलत उसके हाथों से निकल जाती थी।
जैसे उसके हाथों में छेद हों।
मगर इतना सब कुछ होने के बावजूद भी उसकी ठरक कम नहीं हुई थी—बल्कि बढ़ी ही थी।
और फिर अभी उसकी उम्र ही क्या थी?
अभी तो वह जवानी चढ़ रहा था और इस उम्र में जोश की कमी नहीं होती।
मगर अर्जुन त्यागी के पास जहां जोश था, वहां होश भी था।
अखबारों में, टी○वी○ पर उसके नाम के चर्चे हो रहे थे। कई शहरों की पुलिस उसके पीछे खाक छानती फिर रही थी।
उसकी नजर में यह उसकी मेहनत का ही नतीजा था—वरना कल तक कौन जानता था उसे?
अपनी ठरक की वजह से ही एक घण्टे से ऊपर बस स्टाप के शेड के नीचे खड़ा था।
मगर एक मिनट पहले तक कोई भी लड़की उसके पास भी नहीं फटकी—मगर एक मिनट पहले वह मारुति जेन उससे थोड़ी दूर आकर रुकी।
उसे देख अर्जुन त्यागी को कुछ आशा जगी—साथ ही उसकी निगाहें उसके नम्बर पर जा टिकीं।
तभी दरवाजा खुला और वह लड़की बाहर निकली।
उस लड़की को देखकर अर्जुन त्यागी का कलेजा धड़क उठा।
लड़की का पहनावा—उसका कार से निकलना।
अर्जुन त्यागी को लगा कि उसकी मुराद पूरी होने जा रही है।
और फिर उसने कार के भीतर बैठे व्यक्ति के साथ युवती की जो बातें सुनीं—उससे वह यही समझा कि या तो वह लड़की का भड़वा है—
जो उसे यहां छोड़ने आया है—या फिर उसका कोई ग्राहक है— जिसको निपटाकर वह युवती अपने घर वापिस आई है और उसके ग्राहक ने उसके घर से थोड़ी दूर ही उसे उतार दिया है।
यानि दोनों तरफ से वह युवती चालू थी।
सो अर्जुन त्यागी तैयार हो गया।
कार के जाने के बाद युवती सीधी हुई और उसकी तरफ बढ़ी।
अर्जुन त्यागी का कलेजा धड़क उठा।
लड़की ने उसे एक बार देखा, वो भी उड़ती निगाहों से—और गर्दन सीधी करके उसके आगे से होते हुए निकल गई।
मगर अर्जुन त्यागी ने हिम्मत नहीं हारी।
ठरक उस पर हावी थी।
सो वो तुरन्त शेड से निकला और उसके पीछे लग गया।
उसने उसके घर तक पहुंचने का फैसला कर लिया।
साथ ही उसने अपना कमीनापन भी दिखा दिया।
“कू....कू....।”
आशिकों के अंदाज में उसने सीटी बजा दी।
युवती ने गर्दन मोड़कर पीछे देखा तो अर्जुन त्यागी ने दांत फाड़ते हुए ओछे अंदाज में बाईं आंख दबा दी।
युवती ने हड़बड़ाते हुए गर्दन सीधी की और अपने कदमों की गति तेज कर दी।
उसके ऊंची हील के सैंडिल ठाक-ठाक सड़क पर बज रहे थे।
उसके तेज होते ही अर्जुन त्यागी ने भी अपनी गति बढ़ा दी।
युवती ने थोड़ी आगे जाकर पुनः गर्दन मोड़कर पीछे देखा।
अर्जुन त्यागी अभी भी उसके पीछे लगा हुआ था।
उसने गर्दन सीधी की और कंधे पर लटक रहे बड़े पर्स की जिप खोलकर उसमें हाथ डाला और उसमें से मोबाइल फोन निकालकर जल्दी-जल्दी कोई नम्बर मिलाने लगी।
चूंकि अर्जुन त्यागी के सामने उसकी पीठ थी—इसलिये वह नहीं देख पाया कि वह किस को फोन कर रही है।
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