क्राइम स्कूल
राकेश पाठक
—“तुम इतनी नर्वस क्यों हो माधवी बेटी—एक फटीचर किस्म के इन्सान ने तुम्हें धमकी दी और तुमने मान लिया कि वो तुम्हारी बर्थ-डे पार्टी में आकर अपनी धमकी पूरी कर देगा?”
—“वो अपने आपको ‘क्राइम स्कूल’ का चपरासी बोल रहा था डैडी—हालांकि मेरी कोई गलती नहीं थी—सड़क पर कीचड़ था, सो उसके कपड़े सन गये—मैंने कार रोक कर उससे माफी भी मांगी थी—लेकिन वो गुस्से से बिफरते हुए बोला था कि वो ‘क्राइम स्कूल’ का चपरासी है और कल मेरी बर्थ-डे पार्टी में आकर अपनी बेइज्जती का बदला लेगा।”
—“डोन्ट वरी, माधवी बेटी।” एस०पी० प्रकाश सेठी बुझ चले सिगार को फर्श पर फैंक, उसे जूते की नोक से मसलते हुए बोले—“एक एस०पी० की कोठी में कोई ऐरा-गैरा इन्सान दाखिल होने की जुर्रत नहीं कर सकेगा—हमने पचास के लगभग अपने मातहतों को कोठी के इर्द-गिर्द तैनात कर दिया है—वो किसी चिड़िया के बच्चे को भी भीतर दाखिल न होने देंगे—तुम निश्चिंत होकर केक काटो बेटी।”
—“मेरा जन्म ठीक नौ बजे हुआ था डैडी—और अभी तो साढ़े आठ ही बजे हैं—क्यों ना मैं मेहमानों को अपने डांस कम्पटीशन वाली वीडियो कैसेट दिखला दूं।”
—“गुड आइडिया बेटी—हम अभी वी०सी०आर० लगवा देते हैं।”
और थोड़ी देर बाद ही वी०सी०आर० पर फिल्म चल रही थी। कुर्सियों पर विराजमान मेहमान डांस कम्पटीशन का लुत्फ ले रहे थे, जिसमें माधवी भी शामिल थी।
अचानक ही टी०वी० स्क्रीन पर चलती फिल्म गायब हो गई और एक मुस्कराता हुआ चेहरा दिखलाई पड़ा।
वह अधेड़ उम्र के सांवले व्यक्ति का चेहरा था—जिसके स्याह होठों पर जहरीली किस्म की मुस्कान थी।
—“ये—ये वो ही है डैडी—वो ही है—।” माधवी पसीने-पसीने होकर विक्षिप्त भाव से चीखी—“इसी ने अपने आपको ‘क्राइम स्कूल’ का चपरासी बतलाया था—और बदला लेने की धमकी दी थी—ये बदला लेने आ पहुंचा है—भगवान के लिये इसे अरेस्ट कर लीजिए डैडी, गोली मार दीजिए इसे—।”
—“एस०पी० साहब अपनी जगह से हिल भी नहीं पाएंगे माधवी—।” टी०वी० स्क्रीन पर उभरा वो रहस्यमयी चेहरा मुस्कराते हुए बोला—“दूसरे पुलिस अफसर भी हैं, जो कि मूक दर्शक बनकर तेरी तबाही का तमाशा ही देखेंगे—जब तेरी कार से कीचड़ उछल कर मेरे ऊपर पड़ा था तो लोग हंसे थे—बहुत बेइज्जती हुई थी मेरी—आज तेरी बारी है माधवी—मैं तुझे भरी पार्टी में निर्वस्त्र करूंगा।”
और फिर टी०वी० स्क्रीन से एक इन्सानी हाथ निकलकर माधवी की तरफ बढ़ने लगा।
बिल्कुल ‘हॉरर’ फिल्मों जैसा सीन था वो।
—“डै-डैडी— !“ खौफ व दहशत की पुतली बनी माधवी अपने डैडी को झिंझोड़ते हुए गिड़गिड़ाई—“प्लीज हैल्प मी—मुझे बचाइए डैडी—ये आपको क्या हो गया है डैडी—आप कुछ करते क्यों नहीं हैं—उसका हाथ मुझे निर्वस्त्र करने के लिए बढ़ रहा है डैडी—।”
लेकिन एस०पी० प्रकाश सिंह सेठी ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त न की। उनकी विस्फारित आंखें टी०वी० स्क्रीन से निकलते हाथ को घूर जरूर रही थीं, लेकिन बाकी जिस्म निष्क्रिय था।
मानो किसी ऋषि ने कुपित होकर उन्हें पत्थर के बुत में बदल जाने का श्राप दे दिया था।
ऐसी ही अवस्था बाकी लोगों की थी, जिनमें पुलिस विभाग के बड़े अधिकारीगण भी थे।
जब माधवी ने अपने डैडी को कुछ न करते देखा तो वह निराश हो चली। उसकी आंखों में आंसू भर आए और वह बेबस भाव से सुर्ख व पतले होठों को चबाने लगी।
तब तक वो जादुई हाथ उस तक पहुंच चुका था। और मारे खौफ के वो सकते की सी अवस्था में आ गई और उसमें इतना भी साहस न हुआ कि वह उठकर भाग जाती।
कोई बीस फुट लम्बे हाथ की उंगलियों ने माधवी के कुर्ते को पकड़ कर झटका मारा।
‘झिर्र-झिर्र’ की आवाज के साथ कुर्ता फटता चला गया।
कुर्ते को लिए हुए वो हाथ छोटा होता चला गया और टी०वी० स्क्रीन के भीतर जाकर गायब हो गया।
इसी के साथ उस रहस्यमयी शख्स का चेहरा भी टी०वी० स्क्रीन से गायब हो गया।
पुनः डांस कम्पटीशन वाली फिल्म चलने लगी।
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—“और इसके बाद पार्टी में शामिल लोगों को होश आया योर ऑनर—एक महिला ने अपने शॉल से माधवी के निर्वस्त्र जिस्म को ढांपा—पुलिस ने टी०वी० खोलकर देखा तो उसके भीतर माधवी का फटा हुआ कुर्ता मिला—फिर अगले रोज ही पुलिस ने इस शख्स को....।” पब्लिक प्रॉसीक्यूटर ने कटहरे में खड़े अधेड़ शख्स की तरफ भाले की नोक की मानिन्द उंगली तानते हुए कहा—“अरेस्ट कर लिया—इसने भरी पार्टी में एक लड़की के जिस्म से कुर्ता फाड़कर उसकी इन्सल्ट की है—मैं अदालत से रिक्वेस्ट करता हूं कि मोहनलाल नामक इस शख्स की जमानत रद्द करके इसे पुलिस रिमांड पर दे दिया जाये—।”
जब सरकारी वकील अपनी सीट पर जा बैठा तो माननीय जज साहब कटहरे में खड़े उस शख्स से मुखातिब होकर बोले—“मोहनलाल, क्या तुम अपना जुर्म कबूलते हो?”
—“कोई सवाल ही नहीं उठता है जज साहब—।” वह होठों पर सुर्ख लिपस्टिक जैसी गाढ़ी मुस्कान चिपकाये हुए बोला—“अगर किसी इन्सान पर ये इल्जाम लगाया जाए कि उसने सूरज को पकड़ कर अपनी जेब में रख लिया या कुतुबमीनार को उखाड़ कर अपने कन्धे पर लादकर चलता बना तो क्या वो इसे कबूल लेगा? दुनिया वाले भी इल्जाम लगाने वाले पर हंसेंगे—मुझे तो इस बात की हैरत है कि माधवी ने एक काल्पनिक इल्जाम मुझ पर लगाया और पुलिस व अदालत ने मेरे खिलाफ मुकद्दमा चलाकर अपनी जग-हंसाई की—ये सरासर झूठा और बेबुनियाद इल्जाम है—इससे पहले कि अदालत की और हंसी उड़े, इस मुकद्दमे को खारिज कर दिया जाए।”
—“ये—ये कोई काल्पनिक इल्जाम नहीं है योर ऑनर—।” पब्लिक प्रॉसीक्यूटर उठते हुये बोला—“ये घटना अगर माधवी के साथ अकेले में घटती तो ये माना जा सकता था कि माधवी ने व्यक्तिगत दुश्मनी के कारण मोहनलाल पर झूठा इल्जाम लगा दिया होगा—लेकिन इस घटना के पचास के लगभग गवाह हैं—जिनमें पुलिस के कई बड़े अधिकारियों के अलावा जज, वकील और डॉक्टर जैसे जिम्मेदार लोग भी शामिल हैं—ये तो आप जानते ही हैं ‘क्राइम स्कूल’ नामक रहस्यमयी संस्था ने कानून को नाको चने चबवा रखे हैं—जहां जुर्म करके कानून से बचने के तरीके सिखाये जाते हैं—थप्पड़ मारने से लेकर कत्ल करना तक सिखाया जाता है—खुशनसीबी से उस ‘क्राइम स्कूल’ का एक चपरासी कानून के हाथ लगा है—अगर इसे बरी कर दिया गया तो ‘क्राइम स्कूल’ वालो के हौंसले बुलन्द हो जायेंगे—पुलिस इस शख्स के जरिये ही ‘क्राइम स्कूल’ के निर्माताओं तक पहुंच सकती है—ये बात गम्भीरता से सोचने वाली है योर ऑनर कि ‘क्राइम स्कूल’ के एक चपरासी ने माधवी को भरी पार्टी में बेइज्जत किया और पुलिस वाले इसके खिलाफ एक भी सबूत हांसिल नहीं कर पाए हैं—लोग घटना को काल्पनिक और मनघड़ंत किस्सा मान रहे हैं। जब ‘क्राइम स्कूल’ का एक मामूली-सा चपरासी ही इतना खतरनाक दिमाग रखता है तो ‘क्राइम स्कूल’ का प्रिंसीपल क्या बला होगा?”
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