क्लियोपैट्रा का ताज : Cleopatra Ka Taj
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मिस्र की सबसे हसीन और सबसे बदनाम महारानी क्लियोपैट्रा के ताज का राज़ !
आज सदियों के बाद क्या हंगामें लेकर वो महारानी की कब्र से बाहर आया है?
कितना खून बहा इस ताज के पीछे?
कितनी लाशें गिरीं?
षड़यन्त्रों के कितने जाल फैलाये गये और इन सब में आपकी हरदिल अज़ीज, ओनली एक्शन क्वीन रीमा भारती की क्या भूमिका रही?
Cleopatra Ka Taj
Reema Bharti
BookMadaari
प्रस्तुत उपन्यास के सभी पात्र एवं घटनायें काल्पनिक हैं। किसी जीवित अथवा मृत व्यक्ति से इनका कतई कोई सम्बन्ध नहीं है। समानता संयोग से हो सकती है। उपन्यास का उद्देश्य मात्र मनोरंजन है। प्रस्तुत उपन्यास में दिए गए हिंसक दृश्यों, धूम्रपान, मधपान अथवा किसी अन्य मादक पदार्थों के सेवन का प्रकाशक या लेखक कत्तई समर्थन नहीं करते। इस प्रकार के दृश्य पाठकों को इन कृत्यों को प्रेरित करने के लिए नहीं बल्कि कथानक को वास्तविक रूप में दर्शाने के लिए दिए गए हैं। पाठकों से अनुरोध है की इन कृत्यों वे दुर्व्यसनों को दूर ही रखें। यह उपन्यास मात्र 18 + की आयु के लिए ही प्रकाशित किया गया है। उपन्यासब आगे पड़ने से पाठक अपनी सहमति दर्ज कर रहा है की वह 18 + है।
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क्लियोपैट्रा का ताज
रीमा भारती
आधी रात हो चुकी थी।
मुम्बई की वो वह बदनाम बस्ती थी, जिसे लोग ब्लैक नाइट बस्ती के नाम से जानते थे। जहां वर्ल्ड के तिरस्कृत और ऊबे हुए तथा निराश लोगों की काफी आबादी थी।
गवर्नमेंट ऑफ इण्डिया (भारत सरकार) ने वहां रहने वाले लोगों की काफी मदद की थी।
एक प्रकार से वह हर प्रकार की सुख सुविधाओं की बस्ती थी। जहां मौज-ही-मौज थी। पीना-पिलाना, खाना-पीना और नाचना-गाना।
भारतीय खुफिया एजेन्सी की नम्बर वन जासूस रीमा भारती यानि कि मैं, तब उसी बस्ती में मौजूद थी। अपने दिमाग को रिलैक्स करने के लिए मैं कुछ दिनों के लिए वहां जाकर रहने लगी थी।
तब मैंने एक फ्लैट उसी बस्ती में किराये पर ले रखा था। वहां रहने वाले लोगों में कोई भी नहीं जानता था कि मैं आईoएसoसीo की खुफिया एजेन्ट रीमा भारती हूं।
मैं भी यही चाहती थी कि मुझे वहां कोई न पहचाने। मैं वहां मौज-मस्ती के मूड में गई हुई थी और वहां के लोगों के साथ आम इंसानों की तरह रहती थी।
चीफ खुराना के अलावा इस बात को कोई भी नहीं जानता था कि उस वक्त मैं कहां थी। उस दौरान कोई केस भी नहीं था, इसलिए चीफ खुराना ने भी मुझे काफी दिनों से कान्टेक्ट नहीं किया था। वह भी खामोश थे।
एक दिन आधी रात के समय मैंने अपने फ्लैट का दरवाजा नशे में झूमते हुए खोला ही था। जैसे ही मैंने कदम भीतर रखा कि—
अचानक!
भरपूर ताकत का घूंसा मेरी खोपड़ी पर पड़ा और मैं उछल कर कमरे से बाहर आकर पड़ी, मेरा सिर एक गमले से टकराया था।
एक आवाज हुई।
और फिर मेरी आंखों के सामने अंधेरा छाता चला गया। मुझे महसूस हुआ कि जैसे उस अंधेरे में चिंगारियां छूट रही हों।
अगले ही क्षण!
मैं आवेश में उठकर खड़ी तो जरूर हुई थी, लेकिन चक्कर खाकर गिर पड़ी।
घूंसा वाकई ताकतवर था।
इस बात का अहसास शिकारियों की मल्लिका यानि मुझे भी हो चुका था। इतना सख्त और ताकतवर घूंसा मैंने उससे पहले कभी नहीं खाया था। लेकिन मैं कर भी क्या सकती थी?
मैं चाहकर भी उठ नहीं पा रही थी, और मुझे डर था कि अगर दूसरा वार इतना ही जबरदस्त हुआ तो मैं इस दुनिया से ही कूच कर जाऊंगी।
तभी! मैंने देखा कि ऊंची बलिष्ठ नजर आने वाली परछाई कमरे से बाहर निकली। वह मेरे करीब आकर अपने जूते की नोक से मुझे ठोकर मारकर चित्त कर देना चाहता था।
वह समझ रहा था कि शायद मैं बेहोश हो चुकी हूं।
लेकिन दूसरे ही क्षण मैं अपने पैरों पर उछलकर इस प्रकार खड़ी हो चुकी थी कि जैसे मुझमें चार सौ चालीस वोल्ट का करन्ट आ गया हो।
इससे पहले कि सामने खड़ा हमलावर कुछ समझ पाता, मेरी सैन्डिल का भरपूर वार उसकी दोनों टांगों के बीच में पड़ा था।
अगले ही क्षण वह कराहता हुआ नीचे बैठता चला गया। उसके मुख से एक ह्दय विदारक चीख उबल पड़ी थी।
उसके बाद मेरा दूसरा वार उसकी गर्दन की हड्डी पर पड़ा था। यह वही कराटे चाप था जिसे मैं जल्दबाजी में अपने दुश्मन पर प्रयोग करके उसे मौत के घाट उतार दिया करती थी।
गर्दन की हड्डी टूटते ही वह बेहोश हो गया और जमीन पर चित्त होता चला गया।
मैंने आगे चलकर उसका गिरेहबान पकड़कर उसको उठाया। वह झूलता हुआ-सा जमीन से उठ गया। फिर मैंने दूसरा हाथ लगाकर उसे लम्बी उछाल दी और वह मेरे कन्धे पर आ गया।
उसके बाद मैं उसे लेकर फ्लैट के गेट की तरफ बढ़ना ही चाहती थी, लेकिन कुछ सोचकर मेरे कदम पीछे की ओर पलट गए। फिर मैं उसे लेकर फ्लैट का पीछे की तरफ आ गई।
उस समय वहां एकदम सन्नाटा था।
बाउण्ड्री की दीवार के करीब खड़े होकर मैंने कन्धे पर झूलते उस व्यक्ति को उठाकर दीवार की दूसरी तरफ उछाल दिया था।
उसके मुंह से एक कराह भी नहीं फूटी थी। मैंने इस बात का अहसास पूरी गम्भीरता के साथ किया था। लेकिन जब मैंने उसकी कराह तक नहीं सुनी तो अनायास मेरे मुख से निकला—
“लगता है साला मर गया।”
फिर मन-ही-मन मैं सोच में पड़ गई कि इतना मजबूत और बलिष्ठ इंसान जिसके एक ही वार ने मुझे चक्कर दिला दिए थे, वह मेरे एक ही कराटे चाप से कैसे मर सकता है?
मैं अपनी शंका को दूर करने के लिए बाउण्ड्री वॉल पर उछली और अपनी दोनों हथेलियां उस पर टिकाकर उसे देखने का प्रयास किया, एक बार निरीक्षण करने के बाद मैं नीचे उतर आई।
वह सचमुच मर चुका था। और उस समय मेरा वहां ठहरना खतरे से खाली नहीं था। क्योंकि अगर किसी की नजर मुझ पर पड़ जाती तो मैं शक के दायरे में आ सकती थी।
यह ख्याल आते ही मैं वहां से रफूचक्कर हो गई। उस समय मेरे शरीर में विद्युत जैसी तेजी व फुर्ती न जाने कहां से आ गई थी।
फ्लैट पहले की तरह अब भी खामोश था। वहां आधी रात की खामोशी बोल रही थी। वहां का माहौल ऐसा था कि जैसे वहां कुछ हुआ ही न हो।
अगले दिन सुबह!
ब्लैक नाइट बस्ती के चौराहे पर एक लाश पड़ी हुई मिली थी।
मैंने खिड़की से झांककर देखा तो सैकड़ों लोगों की भीड़ लाश के चारों ओर जमा थी। सभी के चेहरों पर संदिग्धता व्याप्त थी। अजीब-सी दहशत थी।
लाश की गर्दन टूटी हुई थी और टूटने की वजह से टेढ़ी को चुकी थी। उसके मुंह और नाक से ब्लड भी बह कर बाहर आ रहा था। वहां मौजूद कुछ लोगों के दिल उस लाश को देखकर जोरों से धड़कने लगे थे क्योंकि वहां का माहौल ही इतना भयानक प्रतीत हो रहा था।
कुछ ही देर बाद।
वहां पुलिस की गाड़ियों के सायरन गूंज उठे। एक क्षण के लिए तो मेरा दिल ही धड़क उठा था। क्योंकि मैं किसी झगड़े में पड़ना नहीं चाहती थी। फिर अचानक ख्याल आया कि पुलिस मुझ तक नहीं पहुंच सकती थी।
क्योंकि मैं जब भी अपना शिकार करती थी, अपने खिलाफ कोई सबूत नहीं छोड़ती थी। इसलिए मुझे डरने की जरूरत भी नहीं थी।
पुलिस ने आते ही वहां से भीड़ को धकेल कर दूर हटा दिया था। फिर देखते-ही-देखते कई जीपें वहां आकर रुकीं।
एक जीप से दो पुलिस ऑफिसर वहां उतरे, बाकी सारे पुलिसकर्मी थे।
वह दोनों ऑफिसर लम्बे कदमों से चलते हुए लाश के पास पहुंचे। उस लाश के करीब पहुंचते ही उन दोनों अफसरों ने अपने हैट्स उतार लिए थे।
“ओह माई गॉड।” उनमें से एक सीनियर ऑफिसर ने अफसोस प्रकट किया।
दूसरा खामोश खड़ा था। वह उस लाश को बड़ी आश्चर्य भरी नज़रों से देख रहा था।
लेकिन उसके चेहरे पर लाश की भयानकता को देखकर घृणा के भाव उभर आए थे।
दोनों कुछ देर तक खड़े उस लाश को देखते रहे और फिर गम्भीरतापूर्वक धीरे-धीरे कदम बढ़ाते हुए जीप के पास आ गए।
उनमें एक ऑफिसर जो करीब चौबीस-पच्चीस साल का था, नौजवान था। शरीर से भी काफी मजबूत दिखाई दे रहा था।
उसकी मांसपेशियां अपनी वर्दी के ऊपर से ही उभरी हुई नजर आ रही थीं। उसने सीनियर ऑफिसर के पास आकर सीरियसली कहा—
“यह इस बस्ती में चौथा मर्डर है सर! इससे पहले तीन मर्डर और भी हो चुके हैं।”
“आई नो।” सीनियर ऑफिसर ने गम्भीरता से गर्दन को जुम्बिश देते हुए कहा।
उस ऑफिसर के लहजे ने उस युवक को अपमानित-सा कर दिया था। वह कुछ कहना चाहता था, लेकिन उसकी सीनियरटी को देखकर खामोश रहा।
फिर भी!
मौके की नजाकत को देखते हुए वह वहां से हटकर अलग खड़ा हो गया। और पांच छः पुलिस जवानों ने एक जत्थे के पास जाकर बोला—
“क्या नाम है इसका?”
“किसका, सर?” एकाएक ही सभी पुलिसकर्मियों ने चौंककर उसकी ओर देखा।
“मरने वाले का।”
“सर! यहां के लोगों के मुताबिक इसका नाम पीटर है।”
“यह आदमी करता क्या है?” उसने दूसरा सवाल गम्भीरतापूर्वक किया।
“कुछ नहीं, सर!”
“तुमने यहां के लोगों से जानने की कोशिश नहीं की?” उसने पूछा।
“कुछ जानकारियां हमें मिली हैं, सर!” उनमें से एक पुलिसकर्मी ने बताया।
“कौन-सी जानकारियां?”
“कुछ ही दिन पहले यह जापान से यहां आया था और किसी काम के लिए कोशिश कर रहा था।” एक पुलिसकर्मी बोला।
“आई-सी।”
तभी सीनियर ऑफिसर का रौबदार स्वर उसके कानों से टकराया था—
“मिस्टर विजय!”
“यस, सर।” उसके करीब आते हुए वह बोला।
“कौन है यह आदमी?” उन्होंने सिगार को सुलगाते हुए पूछा।
“मिस्टर पीटर।”
“कौन पीटर?” सीनियर ऑफिसर ने आश्चर्य से उसकी ओर देखा।
“सर! यहां के लोगों का कहना है कि अभी कुछ दिन पहले ही यह जापान से आया था और किसी काम के लिए कोशिश कर रहा था।”
“फिलहाल यह करता क्या था?”
“सर! कुछ ही दिन पहले तो यहां आया है और काम की तलाश में था।”
“यह सब बकवास है।” एकाएक ही सीनियर ऑफिसर झल्ला गया।
“व्हॉट, सर—।”
“मिस्टर विजय! याद कीजिए, इससे पहले भी कई मर्डर हो चुके हैं।”
“मुझे याद है, सर।”
“उनके साथ भी यही ट्रेजिडी हो चुकी है, वह लोग भी विदेशी थे।”
“यस, सर।”
“लेकिन उनका भी मर्डर कर दिया गया।” सीनियर ऑफिसर अपने शब्दों पर जोर देकर बोला।
“राइट, सर।”
“व्हॉट राइट? मिस्टर विजय! आपके राइट कहने से कुछ नहीं होगा! अण्डरस्टैण्ड?” एकाएक ही वह झल्ला गया।
“यस, सर।”
“नो यस, सर विजय!”
“आप कहना क्या चाहते हैं सर!” इंस्पेक्टर विजय ने उलझन के साथ पूछा।
“यहां कोई ऐसा आदमी है जो आने वाले हर विदेशी की हत्या कर रहा है।” वह बोला—“वह विदेश से आने वाले किसी भी खास आदमी की हत्या कर देता है।”
“मगर क्यों सर?”
“यही सवाल तो मेरे दिमाग में घूम रहा है—और मैं तुमसे जानना चाहता हूं।”
इतना कहकर सीनियर ऑफिसर शून्य में देखने लगे—शायद वह गम्भीरता से सोचने की कोशिश कर रहे थे और गुत्थी सुलझ नहीं रही थी।
विजय की दृष्टि उनके चेहरे पर टिकी थी। वह सचमुच काफी परेशान लग रहे थे। फिर एक लम्बी सांस लेकर उन्होंने कहा—
“मिस्टर, विजय—।”
“यस, सर।”
“जानते हो—हमारे सीनियर ऑफिसर ने हमारे ऊपर क्या ब्लेम लगाया है?”
“जानता हूं सर।”
“तब घर चलकर अपना बोरिया-बिस्तर बांधना आरम्भ कर दो।”
“लेकिन क्यों सर?”
“अब तुम्हारे साथ-साथ मुझे भी यहां से भागना पड़ेगा मिस्टर विजय।”
विजय अपने सीनियर ऑफिसर की बात सुनकर कांप-सा गया था। वह उनसे कुछ कहना चाहता था कि तभी एक व्हाइट बुलेरो वहां आकर रुकी।
वह चीफ खुराना की गाड़ी थी। जिसे देखकर मैं भी शॉक्ड रह गई थी।
दोनों ऑफिसर बड़े गौर से उस गाड़ी की तरफ देख रहे थे।
“चीफ खुराना यहां!” मैं मुंह-ही-मुंह में बुदबुदायी—“यह मामला क्या है?”
मेरी नजरें लगातार अपनी खिड़की की उसकी ओर देख रही थीं। मैं वहां चीफ के आने की वजह जानना चाहती थी कि आखिर मामला क्या था?
चीफ का वहां मौजूद होना इस बात को साबित करता था कि चीफ का उस आदमी से गहरा ताल्लुक था। अगर चीफ का उस आदमी से गहरा ताल्लुक था तो फिर उसने मुझ पर हमला क्यों किया था—और वह भी इतना जबरदस्त कि जिसमें मेरी जान भी जा सकती थी, मैं पागल भी हो सकती थी।
फिलहाल इन सवालों के जवाब भविष्य के गर्भ में दबे हुए थे। और उन सवालों का जवाब चीफ ही मुझे दे सकते थे।
मौके की नजाकत को देखते हुए मैंने उस समय खामोश रहना ही मुनासिब समझा।
“यह सब क्या हो रहा है ऑफिसर?” चीफ खुराना ने गाड़ी से उतरते ही प्रश्न किया।
“सर! हमारी समझ में भी फिलहाल कुछ नहीं आ रहा है कि यह सब हो क्या रहा है, हम भी मामले की तह तक जाने की कोशिश कर रहे हैं।” सीनियर ऑफिसर ने उन्हें शान्त करने की कोशिश की।
“इस तरह हाथ पर हाथ रखकर बैठने से कुछ भी नहीं होगा, आपको उस हत्यारे का जल्द-से-जल्द पता लगाना चाहिए।”
“हम पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं, मिस्टर खुराना! लेकिन—।”
“लेकिन क्या? आपको उस हत्यारे को जल्द-से-जल्द तलाश करना चाहिए—और इस बात का भी पता लगाना चाहिए कि वह विदेश से आने वाले लोगों का ही मर्डर क्यों कर डालता है।”
“हम भी इसी बात का पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं सर।” सीनियर ऑफिसर ने कहा—“इसके अलावा भी एक सवाल हमारे दिमाग में घूम रहा है, मिस्टर खुराना! जिसका सामने आना बेहद जरूरी है।”
“कौन-सा सवाल?”
“विदेश से आने वाले इन लोगों का भारत आने का मकसद क्या है?” सीनियर ऑफिसर ने कहा—“इन्हीं का ही मर्डर क्यों किया जाता है?”
इस बात को सुनते ही चीफ खुराना के चेहरे पर अजीब-से भाव उत्पन्न हुए—लेकिन अगले ही पल वह अपने भावों को छिपाते हुए बोले—
“वाकई सोचने वाली बात है। इन वारदातों से इण्डियन सरकार भी परेशान हो चुकी है, ऑफिसर।” चीफ के चेहरे पर गम्भीरता थी।
“मैं भी यही सोच रहा हूं मिस्टर खुराना। अगर ऐसा ही चलता रहा तो यहां एक भी विदेशी नहीं आएगा।” ऑफिसर ने कहा।
“आप बिल्कुल ठीक कहते हैं। इसलिए मैं चाहता हूं कि जल्द से जल्द कोई ठोस कदम उठाया जाए और कातिल को पकड़ने की कोशिश की जाए। वरना तो मुझे ही—।”
“वरना तो क्या, मिस्टर खुराना?” ऑफिसर ने चौंकने वाले अन्दाज में उनकी ओर देखा।
“वरना फिर मुझे ही कोई ठोस कदम उठाना पड़ेगा।” चीफ खुराना का स्वर झल्लाया हुआ था।
“मिस्टर खुराना! हम अपनी तरफ से पूरी कोशिश रहे हैं। आप निश्चिन्त होकर जाइये।” ऑफिसर ने उन्हें तसल्ली दी।
“ठीक है, इंस्पेक्टर।” उन्होंने अपनी गर्दन को हल्की-सी जुम्बिश दी और अपनी गाड़ी में बैठकर चले गए। उनके जाने के बाद मैंने इत्मीनान की एक सांस ली—और फिर मेरी नजरें इंस्पेक्टर पर टिक गईं।
कुछ ही देर में,
पुलिस कार्यवाही हमेशा की तरह पूरी हुई। और दोनों ऑफिसर वापस चले गए।
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Additional information
Book Title | क्लियोपैट्रा का ताज : Cleopatra Ka Taj |
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Isbn No | |
No of Pages | 256 |
Country Of Orign | India |
Year of Publication | |
Language | |
Genres | |
Author | |
Age | |
Publisher Name | Ravi Pocket Books |
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