चुन–चुन कर मारूंगा : Chun Chun Ke Marunga by Rakesh Pathak
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Description
Ist Part : खिलौनों को बना दो हथियार
IInd Part : चुन-चुन कर मारूंगा
राकेश पाठक
कृष्णदेव और अमरकान्त सुकून की तलाश में जंग और फसाद से बचने के लिये, रोटी–रोजगार कमाने के लिये भारत छोड़कर केसरगढ़ गए, मगर वहाँ तो जुल्मों–सितम के जंगल के दो भूखे भेड़िये––मकरध्वज और ब्लैक टाइगर––मजलूम जनता को भम्भोड़ रहे थे। ना तो किसी की आन सुरक्षित ना सामान।
भारत से खुद को हर पंगे से दूर रखने की कसम खाकर चले अमरकान्त को आखिरकार काल की मशीन बनना ही पड़ा।
और जब बात विजया की सुरक्षा पर आयी तो कृष्णदेव का कृष्ण रूप भी रौद्र रूप धारण कर जालिमों पर टूट पड़ा।
उग्रवाद व हिंसा की पृष्ठभूमि पर लिखा गया एक बेजोड़ कथानक जो आपको भुलाये नहीं भूलेगा।
‘राकेश पाठक’ की कलम ने भी मानो स्याही की जगह खून उगलना शुरू कर दिया था।
और तब तैयार हुआ नया शाहकार चुन–चुनकर मारूँगा।
चुन–चुन कर मारूंगा : Chun Chun Ke Marunga
Rakesh Pathak
प्रस्तुत उपन्यास के सभी पात्र एवं घटनायें काल्पनिक हैं। किसी जीवित अथवा मृत व्यक्ति से इनका कतई कोई सम्बन्ध नहीं है। समानता संयोग से हो सकती है। उपन्यास का उद्देश्य मात्र मनोरंजन है। प्रस्तुत उपन्यास में दिए गए हिंसक दृश्यों, धूम्रपान, मधपान अथवा किसी अन्य मादक पदार्थों के सेवन का प्रकाशक या लेखक कत्तई समर्थन नहीं करते। इस प्रकार के दृश्य पाठकों को इन कृत्यों को प्रेरित करने के लिए नहीं बल्कि कथानक को वास्तविक रूप में दर्शाने के लिए दिए गए हैं। पाठकों से अनुरोध है की इन कृत्यों वे दुर्व्यसनों को दूर ही रखें। यह उपन्यास मात्र 18 + की आयु के लिए ही प्रकाशित किया गया है। उपन्यासब आगे पड़ने से पाठक अपनी सहमति दर्ज कर रहा है की वह 18 + है।
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चुन–चुन कर मारूंगा
राकेश पाठक
“आँखें खोलो अमरकान्त बेटे...भगवान के लिये आँखें खोलकर हमें देखो––हम कृष्णदेव, तुम्हारे अंकल...तुम्हारे गुरु––जेल में जब हम दोनों की दोस्ती हुई थी तो हमने सुख–दु:ख में एक–दूसरे का साथ निभाने का वादा किया था––कसम खाई थी कि कभी भी एक–दूसरे का साथ नहीं छोड़ेंगे––फिर तुम हमारा साथ छोड़कर कैसे जा सकते हो बेटे—हे भगवान...ये क्या...इसकी तो धड़कनें गायब हैं––नब्ज देखूं...ओह नो, नब्ज भी गायब है—हे भगवान...!”
अमरकान्त की धड़कनें और नब्ज गायब पाकर अधेड़ उम्र के कृष्णदेव के होश फाख्ता हो गए।
काटो तो खून नहीं वाली हालत हो गई।
मस्तिष्क सुन्न–सा पड़ने लगा।
शिराओं में प्रवाहित होने वाला लहू बर्फ की ही भांति जमने–सा लगा।
आँखों के समक्ष अन्धेरा–सा घिर आया।
“न––नहीं अमरकान्त, नहीं...।” कृष्णदेव ने ठण्डे पड़ चुके अमरकान्त के नीले जिस्म को पैरों से लेकर सिर तक टटोला और फिर उसकी बगल में हाथों को डालकर उसके धड़ को अपने सीने से लगाकर भींचते हुए पागलों की भांति ही बोला––“तू कैसे मर सकता है बच्चे? नहीं, हम तुझे नहीं मरने देंगे––तू तो हमारी जान है रे––तेरे बिना तो जीने की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं हम––कृष्णदेव अगर जिस्म है तो तू आत्मा है––आत्मा अगर रूठकर चली गयी तो फिर जिस्म ही क्या करेगा? न––नहीं, तू कहीं नहीं जायेगा––तू जिन्दा रहेगा पुत्तर––हमारे वास्ते...अपनी अपाहिज बहन विजया के वास्ते––चल, हमारे वास्ते मत जी तू––हम तेरे लगते ही कौन हैं रे? खून का तो कोई रिश्ता ही नहीं है––इंसानी रिश्ता था, जिसे तू तोड़कर जा रहा है लेकिन अपनी बहन के बारे में तो सोच––बचपन में तुम दोनों बिछुड़ गए थे––बाद में सालों बाद तुम्हारा मिलाप हुआ था––छोटे भाई को पाकर विजया कितनी खुश थी—कहती थी कि वो रक्षा बन्धन वाले दिन राखी लिये अपने भाई की बाट जोहती थी––भइया–दूज को मंगल टीके की थाली लिये अपने भाई की राह ताका करती थी––भगवान को आखिर उस पर रहम आया और उसे अमरकान्त से मिलवा दिया––उस जांबाज लड़की ने जब पुलिस की वर्दी में ड्यूटी निभाते हुए अपने दोनों हाथ गंवा दिये थे तो दु:खी नहीं हुई थी––ये सोचकर उसने सब्र कर लिया था कि उसका भाई अमरकान्त उसके दोनों बाजू बनेगा––वो तुझ पर जान छिड़कती है बेटा––विजया तुझे देखकर ही तो जीती है––अपनी बहन की खातिर तो उठ अमरकान्त––अरे ओ कत्ल की मशीन...तू बहरा हो गया है क्या? क्या तुझे हमारी पुकार सुनाई नहीं देती है कम्बख्त? अभी तो तुझे बहुत–से काम करने हैं रे––हम दोनों फुलत सिटी से फूलपुर इसलिये आये थे कि कानून से दूर रहकर पैसे कमायेंगे और अपनी विजया की शादी धूमधाम के साथ करेंगे...।”
आँसुओं से भीगे चेहरे को निष्प्राण अमरकान्त के सीने पर रगड़ते हुए कृष्णदेव सुबकते हुए बोला––“हमने से सोचा था कि यहाँ पर जमकर कमाई करेंगे और अपनी शख्सियत तब्दील करके फुलत सिटी वापिस लौटेंगे––विजया बेटी के लिये कोई अच्छा–सा लड़का खोजकर धूमधाम से उसकी शादी करेंगे––भाई के सारे फर्ज तो तुझे ही अदा करने थे बच्चे––अपनी दीदी की डोली को कन्धा देना था––भले ही हिन्दुस्तानी कानून के लिये तू मुजरिम था—लेकिन तूने जिन गरीब और कमजोरों की हिफाजत के लिये हथियार उठाये थे और मुजरिमों को कत्ल की मशीन बनकर कत्ल किया था, उनकी नजरों में तो तू फरिश्ता और मुहाफिज था––अभी तो तेरे को कत्ल की मशीन बनकर बाकी बचे मुजरिमों का संहार करना है––बहुत से मजलूमों की हिफाजत करनी है––फूलपुर में रहस्यमयी गैंगस्टर मकरध्वज ने ‘जिहाद’ की आड़ में जुल्मो–सितम की इन्तिहा की हुई है––उसने खूबसूरत वादियों वाले इस पर्यटन स्थल को जीता–जागता श्मशान घाट बना दिया है––उसके लाल वर्दी वाले गुण्डे हिंसा का खुला ताण्डव कर रहे हैं––यहाँ के लोग जुल्मो–सितम की चक्की में पिसते हुए रात–दिन ऊपर वाले से दुआ मांग रहे थे कि उनकी हिफाजत के वास्ते किसी फरिश्ते को भेज दे––ऊपर वाले ने तेरे रूप में वो फरिश्ता भेजा—तूने मकरध्वज के गुण्डों से जंग लड़ी तो फूलपुर वालों को उम्मीद की किरण नजर आई––उन्हें लगा कि वो मकरध्वज के जुल्मों–सितम से निजात पा जायेंगे––लेकिन ये क्या––अभी तो महाभारत की जंग छिड़ी ही थी कि अर्जुन ने हार मान ली––वो भी एक मामूली से नाग से? नहीं, अमरकान्त नहीं––तुझे मरना ही है तो इतनी मामूली और सस्ती मौत तो ना मर––लोग तेरी मौत पर थूकेंगे कि नाग ने डसा और मर गया––मकरध्वज भी मखौल उड़ायेगा कि उससे क्या खाकर टक्कर लेने चला था––अगर मरना ही है तो कत्ल की मशीन बनकर तो मर रे––मकरध्वज को मारकर फूलपुर वालों को जुल्मो–सितम से निजात दिलायेगा तो शहीद तो कहलायेगा तू बच्चे।”
फिर कृष्णदेव फूट–फूटकर रोते हुए विलाप करने लगा।
¶¶
कमरे में तीन प्राणी थे।
साठ वर्षीय और सफेद दाढ़ी वाला बब्बन, उसकी पचास वर्षीया बीवी फातिमा और बीस वर्षीया बेटी सायरा।
बला की खूबसूरत सायरा आसन पर बैठी कुरान शरीफ की आयतें पढ़ रही थी और अल्लाह मियाँ से अमरकान्त की जिन्दगी की भीख मांग रही थी।
“अमरकान्त को कुछ हो तो नहीं जायेगा सायरा के अब्बू––?”
“अल्लाह ना करे कि ऐसा हो फातिमा...।” बब्बन तड़प उठा और कसमसाकर बोला––“गजब हो जायेगा––कयामत हो जायेगी––अमरकान्त खुदा का नेक बन्दा है––हम लोग अगर आज जिन्दा हैं तो अमरकान्त की ही मेहरबानी से–फूलपुर वालों के नसीब में मानो जुल्मो–सितम की चक्की में पिसना ही लिखा है––पहले ब्लैक टाइगर की ‘जन्नत लिबरेशन फ्रन्ट’ ने हमारा जीना दूभर किया––हमें राष्ट्रपति त्रिलोचन के सैनिक तंग करते थे—हम घुमन्तुओं को परेशान किया जा रहा था––ब्लैक टाइगर ने इस बात का फायदा उठाया—उसने जिहाद की आड़ में हम घुमन्तुओं को बहलाने की कोशिश की कि हमें अपना वजूद बचाने के लिये नागरियों से टक्कर लेनी चाहिये––काकडा प्रदेश में घुमन्तु ज्यादा थे––ब्लैक टाइगर चाहता था कि काकड़ा प्रदेश को घुमन्तुओं का आजाद मुल्क बना दिया जाये––उसने नौजवानों को भड़काया––उन्हें अपने संगठन में शामिल किया और हथियार थमा दिये––उसका ‘जन्नत लिबरेशन फ्रन्ट’ मिलिट्री वालों से जंग लड़ने लगा और काकड़ा प्रदेश में रहने वाले नागरियों पर कहर बरपाने लगा ताकि वो लोग जुल्म से आजिज होकर काकड़ा प्रदेश से भाग जायें––ज्यादातर नागरिक घबराकर काकड़ा प्रदेश से चले भी गए––लेकिन जिन नागरियों को इस प्रदेश की धरती, अपने घरबार से मुहब्बत थी, जिनकी जमीन जायदाद और रोजगार यहीं पर था, वो कैसे जाते भला? हालात से जूझ रहे नागरिको की मदद के वास्ते ही कुछ महीने पहले ही मकरध्वज पैदा हो गया––उसने ऐलान किया कि वो काकड़ा प्रदेश में रहने वाले नागरियों की मदद करेगा––वो ब्लैक टाइगर के जन्नत लिबरेशन फ्रन्ट को नेस्तनाबूद कर देगा और काकड़ा प्रदेश को जन्नतस्तान नहीं बनने देगा––ब्लैक टाइगर के जुल्मो–सितम से परेशान होने वाले नागरियों ने मकरध्वज का इस्तकबाल किया और वो मकरध्वज का साथ देने लगे––मकरध्वज ने पहला हमला अपने शहर फूलपुर पर किया––उसकी लाल सेना ने ब्लैक टाइगर के ब्लैक कमाण्डोज को मार भगाया––फूलपुर से जन्नत लिबरेशन फ्रन्ट का सूपड़ा साफ कर दिया––फिर लाल सैनिक हम घुमन्तुओं पर कहर की बिजली बनकर टूट पड़े––उन्होंने हमारे घरों को लूटा––हमारे बूढ़ों, जवानों और बच्चों को बेरहमी के साथ मारा––हमारी बहू–बेटियों की अस्मत लूटी—काकड़ा प्रदेश को ही केसरगढ़ की जन्नत कहा जाता है—लेकिन सबसे खूबसूरत शहर अपना फूलपुर था––देश–विदेश के पर्यटक सबसे ज्यादा फूलपुर में आकर रहते थे––डिक्की झील पर बने हाउस बोटों में रहते थे...शिकारों पर झील की सैर किया करते थे––यहाँ से मशहूर कालीन, गलीचे खरीदकर ले जाते थे––जाफरान खरीदने को विदेश से सौदागर आते थे।”
बब्बन ने होंठों पर जीभ फेरकर इधर–उधर देखा, फिर उठकर स्टूल पर रखे लोटे को उठाकर ‘गट–गट’ करके पानी पिया और फातिमा के सामने बैठते हुए बोला––“लेकिन हमारे फूलपुर को शैतानों की नजर लग गयी—डिक्की का पानी बेगुनाहों के खून से लाला हो गया––हाउस बोट भूत बंगला बन गए––शिकारों में आग लग गयी––होटलों में कब्रिस्तान का सा सन्नाटा छा गया—मलमल के कपड़ों, कालीन और गलीचों की दुकानों में मातम–सा छा गया––जाफरान के खेतों में बारूद की गन्ध भर गयी––खुदा को हम लोगों पर रहम आया और यहाँ कृष्णदेव के साथ अमकरकान्त आ गया—अमरकान्त ने हमारी मदद की––मकरध्वज के गुण्डों से टक्कर ली––लगा था कि वो मकरध्वज के खूनी पंजों से अपने फूलपुर को आजाद करा देगा लेकिन बदकिस्मती से उसे नाग ने डस लिया–फूलपुर के सारे डॉक्टर भागकर दूसरे शहरों में चले गए हैं—अकबरपुर वाले सपेरे बाबा का काफी नाम है––कहते हैं कि नाग के काटे मृतप्राय इन्सान को जिदा कर देते हैं––खुदा से दुआ करो कि हमारे आदमी जल्द–से–जल्द सपेरे बाबा को लेकर चले आयें, ताकि अमरकान्त की जान बच...।”
तभी कृष्णदेव की चीखों ने बब्बन को चिहुंका दिया।
फातिमा और सायरा भी चिहुंकीं।
अनहोनी की आशंका से तीनों के चेहरे फक्क पड़ते चले गए।
तीनों ने एक–दूसरे की तरफ सवालिया नजरों से देखा, फिर वो तीनों उस कमरे की तरफ लपके—जहाँ से कृष्णदेव के रोने और विलाप करने की आवाजें आ रही थीं।
कथानक को भली–भांति समझने के लिये ‘चुन–चुन कर मारूंगा’ के प्रथम भाग ‘खिलौनों को बना दो हथियार’ को संक्षेप में स्मरण कर लेते हैं, ताकि प्रस्तुत कथानक को समझने में कोई दुविधा ना हो।
1. एक बूढ़े शख्स ने मेले में बच्चों के लिये खिलौने खरीद रहे माँ–बापों से फरियाद की कि वो अपने बच्चों को खिलौनों की बजाय हथियार खरीद कर दें ताकि ‘केसरगढ़’ को गुलाम बनाने वाले फिरंगियों से मुकाबला किया जा सके––दुकानदरों को बूढ़े की बातें कतई नागवार गुजरीं तथा उन्होंने बूढ़े को पुलिस के हवाले करने की बात की––फिर अचानक ही घोड़ों की टापों से मानों मेले में कोई तूफान आ गया।
2. फिरंगी अफसर को ‘केसरगढ़ी’ इन्सपेक्टर ने बताया कि इलाके के लोग फसल कटने की खुशी में ही मेले का आयोजन करते हैं तथा अपने बच्चों की शादियां भी तय करते हैं––अफसर ने मेले में शामिल लोगों पर जुल्म की आँधी बरपा देने का हुक्म दे दिया।
3. हुक्म के गुलाम सिपाहियों ने मेले की दुकानों को आग लगा दी––औरतों, मर्दों व बच्चों पर लाठियां, बेंतों के अलावा गोलियां चलार्इं और अबलाओं की अस्मत पर हमला भी बोल दिया।
4. पागल नजर आने वाले बूढ़े ने जब विरोध किया तो इन्सपेक्टर लहना लाल सिंह ने अफसर को बताया कि वो बूढ़ा पुत्ती गांव का क्रान्तिकारी मनोहर लाल है––जिसके दोनों बेटों और पोते–पोती को उन लोगों ने मार डाला था तथा उसकी दोनों बहुओं की इज्जत भी लूटी थी––बहुओं ने बाद में आत्महत्या कर ली थी––तब मनोहर लाल ने लहना सिंह को बताया कि उसने उसकी बहू के रूप में अपनी ही बेटी की इज्जत लूटी थी।
5. सिपाहियों ने मेले में ही मंगेतर बने एक युवक के ऊपर उसकी मंगेतर को लिटाकर बलात्कार किया।
6. जालिम सिपाहियों ने एक माँ के बेटे को मारने की धमकी देकर उसकी इज्जत लूटी तथा उसके बेटे को भट्टी में फेंककर भून डाला।
7. इन्सपेक्टर लहना सिंह को जब यकीन ना हुआ कि मनोहर लाल ने उसे बताया कि उसका दुश्मन शंकर उसकी जुड़वां बेटियों को उठा ले गया था और बाद में उन्हीं दोनों बेटियों के साथ उसके बेटों की शादियां हुई थीं––ये जानकर कि अन्जाने में अपनी बेटी के साथ मुंह काला किया था, लहना सिंह पागल–सा हो गया––उसने स्वयं को सजा देने से पहले किसी फिरंगी अफसर पर प्रायश्चित के तौर पर हमला कर दिया लेकिन अफसर के हुक्म पर सिपाहियों ने लहना सिंह को पीट–पीटकर अधमरा कर दिया।
8. जब फिरंगी अफसर और सिपाही चले गए तो मनोहर लाल ने जख्मी लहना सिंह को बताया कि शंकर ने उसकी बेटियों को तो मार डाला था लेकिन उसने लॉकेट उसे दे दिये थे––वह अपने परिवार की मौत का बदला लेने को ही उससे झूठ बोला था—तब लहना सिंह ने मनोहर लाल को गोली मार दी तथा स्वयं को भी गोली माकर आत्महत्या कर ली।
9. घुमन्तुओं के नेता रशीद खान ने भारी भीड़ को बताया कि फिरंगियों ने उन्नीस सौ पचास में केसरगढ़ को गुलाम बनाया था। उन पर अत्याचार किये––उन्हें फिरंगियों से लड़ना चाहिये––तब एक युवक ने आपत्ति की कि नागरियों ने उन्हें विदेशी या शरणार्थी मानकर उनके साथ सौतेला व्यवहार किया—अपने घरों में जूते पहने उन्हें नहीं घुसने दिया और अपने नल या कुओं का पानी भी नहीं पीने दिया—जबकि उन्हें फिरंगियों ने नागरियों के बराबर का दर्जा दिया, और भी कई लाभकारी योजनायें घोषित कीं, फिर वो फिरंगियों से जंग क्यों लड़ें?
10. उधर चौधरी रुद्रप्रताप ने नागरियों की भीड़ से कहा कि फिरंगियों ने महाराजा दिलीप सिंह को परिवार समेत बन्दी बनाया हुआ है और दिलीप सिंह द्वारा बनाया गया संगठन छिन्न–भिन्न हो गया है––अब उन्हें संगठन को पुन: चलाना है और फिरंगियों से लड़ना है––वह संगठन को ताकतवर बनाने को घुमन्तुओं को भी साथ मिलाना चाहता था लेकिन एक शख्स ने ऐतराज किया कि घुमन्तु केसरगढ़ को अपना ‘वतन’ नहीं मानते हैं––दूसरे, फिरंगियों ने उन्हें बराबरी का दर्जा तथा जमीन-जायदाद देने का वादा किया है––अत: घुमन्तुओं को साथ नहीं मिलाना चाहिये, वरना वो गद्दारी करेंगे।
11. रशीद खान ने युवक की बात को कुबूला कि नागरियों ने उन्हें गैर समझा––लेकिन ये भी कहा कि उन लोगों ने भी कभी दुश्मनों से लड़ने में नागरियों का साथ नहीं दिया और अपनी वफादारी नहीं दिखलाई—वह बोला कि फिरंगियों ने अपने मतलब के लिए उन लोगों को लालच दिया हो, लेकिन वो लोग नागरियों के साथ मिलकर फिरंगियों से लड़ेंगे और अपने वतन ‘केसरगढ़’ को आजाद करायेंगे––सभी ने रशीद खान की बात मान ली।
12. उधर चौधरी रुद्रप्रताप ने आपत्ति करने वाले को समझाया कि नागरियों ने भी घुमन्तुओं के साथ कोई ठीक व्यवहार नहीं किया लेकिन चूंकि अब पोस्टर के द्वारा घुमन्तु फिरंगियों के खिलाफ ऐलान कर रहे हैं, सो वो गद्दारी नहीं करेंगे––अत: घुमन्तुओं को भी साथ मिलाकर संगठन की ताकत बढ़ानी चाहिये। सभी लोग घुमन्तुओं के साथ मिलकर फिरंगियों से जंग लड़ने को राजी हो गए।
13. उधर अंग्रेज अफसर को खबर मिली कि नागरी और घुमन्तु मिलकर फिरंगियों से लड़ने वाले हैं तो वह चिन्तित हो गया––वो रशीद खान को मार देना चाहता था लेकिन जब केसरगढ़ी अफसरों ने ऐसा करने से मना किया तो वो बोला कि वो कोई साजिश रचेगा और दोनों कौमों को एक नहीं होने देगा।
14. गवर्नर लारेन हेस्टिंग्ज के पसर्नल सेक्रेटरी डेविड ने अपनी बला की खूबसूरत बीवी मारिया को कहा कि वो घुमन्तुओं के लीटर रशीद के पास मेनका बनकर ही जाये और उसे नागरियों की बजाय फिरंगियों का दोस्त बनने को राजी करे।
15. रशीद खान को बेहोश करके लाया गया था––उसे मारिया ने अपने हुस्नो–शबाब से मोहित करने की कोशिश की, लेकिन रशीद खान ने उसे दुत्कार दिया––उसने डेविड के दोस्ती के लिये बढ़े हाथ पर भी नफरत से थूक दिया।
16. राजा दिलीप सिंह का छोटा भाई विक्रम सिंह दरोगा कल्लू खां की खूबसूरत बीवी सुल्ताना का दीवाना था––सुल्ताना जेल के भीतर ही उससे मिलती रहती थी––उसने विक्रम सिंह को खौफजदा किया कि फिरंगी पूरे राजघराने को मार देंगे––वो चाहती थी कि विक्रम सिंह राजा दिलीप सिंह को राजी करे कि वो फिरंगियों से सुलह कर ले, इससे क्रान्तिकारियों के हौसले पस्त हो जायेंगे लेकिन विक्रम सिंह को विश्वास था कि दिलीप सिंह ऐसा नहीं करेंगे––तब सुल्ताना ने विक्रम से कहा कि राजा दिलीप सिंह को मारने का प्रबन्ध किया जाये––फिर वो ही राजा बनकर उसके साथ शादी कर ले और यदा–कदा अपनी खूबसूरत भाभी के साथ भी मौजमस्ती कर लिया करे––विक्रम सिंह दिलीप सिंह की मौत, सुल्ताना से शादी करने और फिरंगियों से सुलह करने की राजी था।
17. रशीद खान द्वारा थूके जाने पर भी हेस्टिंग्ज उत्तेजित ना हुआ––उसने रशीद खान को बहकाने की कोशिश की––घुमन्तुओं को सुविधायें देने का लालच दिया परन्तु रशीद खान ने इन्कार कर दिया––वो नागरियों के साथ मिलकर फिरंगियों से लड़ने को कृत संकल्प था––उसके जाने पर मारिया को कहा कि वो नागरियों के नेता रुद्रप्रताप चौधरी को कत्ल करके घुमन्तुओं पर इल्जाम लगायेगा––ताकि दोनों कौमों में एकता ना होने पाये।
18. दरोगा कल्लू खां की मौजूदगी में सुल्ताना ने गवर्नर लारेन हेस्टिंग्ज को रिपोर्ट दी कि विक्रम सिंह फिरंगियों से सुलह करने को तथा अपने भाई की मौत के लिये राजी है लेकिन हेस्टिेंगज ने कहा कि दिलीप सिंह ने उसकी बेइज्जती की थी––वो उसे मारने की बजाय जिन्दा रखकर बदला लेगा और विक्रम सिंह का इस्तेमाल दिलीप सिंह के खिलाफ ही करेगा––उसने सुल्ताना को विक्रम सिंह के पास जाने से मना किया और कल्लू खां से कहा कि वो विक्रम सिंह से दोस्ती करे और फिर उसे शराब में वासना भड़काने वाली दवाब देकर दिलीप सिंह की पत्नी यानि रानी की इज्जत लूटने को उकसाये––फिर गवर्नर ने सुल्ताना को भोगने के इरादे से उसे अपने पास ही रोककर कल्लू खां को वहां से भेज दिया।
19. नागरियों का नेता रुद्रप्रताप चौधरी और घुमन्तुओं का नेता रशीद खान एकान्त में मिले––दोनों ने मिलकर फिरंगियों से जंग लड़ने का निर्णय लिया––रुद्रप्रताप रशीद खान को संगठन का लीडर बानाना चाहता था, लेकिन रशीद खान ने इन्कार कर दिया।
20. रशीद खान से विदा होकर रुद्रप्रताप चौधरी अपने गांव को चल दिया तो रास्ते में फिरंगी एस.पी. ने चाकू से उसे कत्ल कर दिया तथा उसके कहने पर एक सिपाही ने रुद्रप्रताप की दायें हाथ की उंगली को उसके खून से डुबोकर ही जमीन पर ये लिख दिया कि उसका कातिल रशीद खान है।
21. कल्लू खां की शराब पीहर जब विक्रम सिंह ने उसकी बीवी सुल्ताना के बारे में पूछा तो कल्लू खां ने कहा कि सुल्ताना पर गवर्नर फिदा हो गया और उसने सुल्ताना को अपने पास रख लिया है––विक्रम सिंह ने कहा कि वो सुल्ताना को गवर्नर से छुड़ाकर अपनी रानी बनायेगा।
22. सिपाही जंग बहादुर पीकर से लौटी अपनी खूबसूरत बीवी हुक्मावती के साथ सोने की तैयारी कर रहा था कि एस.पी. विल्सन आ गया।
23. उधर जेल में राजा दिलीप सिंह और रानी भानुमति अलग–अलग कमरों में बन्द थे और दोनों के कमरों के बीच र्इंटों की दीवार की बजाय सींखचों की दीवार थी––बड़ा राजकुमार भूपेन्द्र रानी भानुमति और छोटा राजकुमार सुरेन्द्र दिलीप सिंह के कमरे में था––सुरेन्द्र को बहुत तेज बुखार था। जब दिलीप सिंह ने कल्लू खां से कहा कि वो किसी डॉक्टर को बुला दे तो कल्लू खां ने रानी भानुमति के साथ एक रात गुजारने की शर्त रखी–क्रोधित होकर दिलीप सिंह ने जब उसका गिरेहबान थामकर बुरा–भला कहा तो कल्लू खां ने सिपाहियों से ठण्डा पानी लाने को कहा।
24. उधर सिपाही जंग बहादुर को अपने साथ आये सिपाहियों के हवाले करके एस.पी. विल्सन ने उसकी बीवी हुक्मावती की इज्जत लूट ली।
25. एक किसान ने रुद्रप्रताप चौधरी की लाश को देखकर शोर–शराबा किया तो पैट्रोल की आग की मानिन्द कत्ल की खबर दूर–दूर तक फैलती चली गयी। हर नागरी उत्तेजित था तथा रशीद खान को मारने को उतारू था लेकिन रुद्रप्रताप के छोटे भाई भद्रप्रताप ने कहा कि शायद कत्ल में किसी की साजिश हो––अत: कल की बैठक में ही कोई निर्णय लिया जायेगा।
26. पानी आने पर कल्लू खां बुखार से पीड़ित राजकुमार सुरेन्द्र पर पानी फेंकने लगा। जब दिलीप सिंह ने अपने बेटे को पानी से बचाने की चेष्टा की तो कल्लू खां के कहने पर सिपाही भी सुरेन्द्र पर पानी फेंकने लगे।
27. रानी भानुमति ने बेझिझक अपनी साड़ी उतारकर सींखचों के बीच से दिलीप सिंह को दे दी ताकि वो भीग चुके सुरेन्द्र को पौंछ सके लेकिन सुरेन्द्र मर गया था––इस सदमें को भानुमति भी बर्दाश्त नहीं कर पाई और उसके भी प्राण निकल गए। जब दरोगा कल्लू खां को रानी के मरने की खबर मिली तो वो गवर्नर के खौफ से परेशान हो चला।
28. गांव की चौपाल पर काफी नागरी जमा थे––तभी वहाँ रशीद खान भी आ गया––सब उसे मार देना चाहते थे लेकिन भद्रप्रताप चौधरी ने उन्हें रोका और कहा कि वो रशीद खान को मारकर अपनी कसम पूरी करेगा।
29. सुल्ताना के साथ अय्याशी कर रहे गवर्नर लारेन हेस्टिंग्ज को जब रानी भानुमति की मौत की खबर मिली तो वह बौखला गया क्योंकि वो विक्रम सिंह से रानी भानुमति की इज्जत लुटवा कर राजा दिलीप सिंह को तड़पाना चाहता था––उसने हुक्म दिया कि सुबह कल्लू खां को पेश किया जाये, ताकि वो उसे उसकी गुस्ताखी की सजा दे सके।
30. इससे पहले कि भद्रप्रताप रशीद खान को मार पाता––वहाँ उसकी भाभी और स्वर्गीय रुद्रप्रताप की बेवा कमला देवी आ गयी––उसने बताया कि उसके पति बायें हाथ से लिखते थे जबकि उसके पति की दायें हाथ की उंगली खून से सनी थी––यानि किसी और ने ही उन्हें मारकर उनकी उंगली खून में डूबोकर रशीद खान का नाम लिखा था––तब वहाँ सिपाही जंग बहादुर आ गया और उसने बताया कि रुद्रप्रताप चौधरी को उसकी मौजूदगी में ही एस.पी. विल्सन ने मारा था––जंग बहादुर एस.पी. विल्सन द्वारा हुक्मावती की इज्जत लूटे जाने तथा हुक्मावती द्वारा आत्महत्या किये जाने पर क्षुब्ध था तथा वो प्रायश्चित की आग में भी जल रहा था—कमला देवी ने उसके बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी ली तथा उसे कहा कि वो संगठन में शामिल होकर फिरंगियों के खिलाफ लड़े। भद्रप्रताप ने रशीद खान से माफी मांग ली––वहां मौजूद गवर्नर के लिये जासूसी करने आये एक दरोगा और सिपाही बुझे मन से गवर्नर को रिपोर्ट देने चले गए।
31. दरोगा कल्लू खां को गवर्नर लॉरेन हेस्टिंग्ज के सामने पेश किया गया––कल्लू खां ने मौत को सामने पाकर अपनी बीवी सुल्ताना से रिक्वेस्ट की कि वो उसको गवर्नर से माफी दिलवा दे लेकिन सुल्ताना ने नफरत से कहा कि वह उसे अपना शौहर ही नहीं मानती है क्योंकि उसने सुहागरात पर ही अपने फायदे के लिए उसे एक दरोगा की हवस का शिकार बनवा दिया था––तथा बाद में भी वो उसे बीवी की बजाय एक वेश्या की तरह ही इस्तेमाल करता रहा था––गवर्नर ने कल्लू खां को गोली मार दी––उसे डेविड ने जब नागरियों तथा घुमन्तुओं के एक होने की खबर दी तो वह बोला कि घुमन्तुओं तथा नागरियों के खिलाफ प्लानिंग बनायेगा तथा विक्रम सिंह को उसके खिलाफ इस्तेमाल करेगा।
32. गुप्त मीटिंग में रशीद खान ने कमला देवी को संगठन की नेता बनाना चाहा, लेकिन कमला देवी ने रशीद खान को ही संगठन का नेता बनवा दिया।
33. क्रान्ति की लहर पूरे केसरगढ़ में फैलती चली गयी––‘केसरगढ़ मुक्ति मोर्चा’ नामक संगठन की शाखायें हर शहर और गांव में बन गर्इं––जन्नत नामक गांव के क्रान्तिकारियों ने नाचने–गाने वालों के भेष में पुलिस स्टेशन जाकर सारे पुलिस वालों को मार दिया––इसी के साथ ही फिरंगियों की बस्ती पर भी हमला करके सबको मार दिया गया।
34. जब गवर्नर को रिपोर्ट मिली कि पूरे केसरगढ़ में ही क्रान्ति की ज्वाला धधकने लगी है तो वह चिन्तित हो गया––फिर उसने क्रान्तिकारियों को सख्ती से कुचलने का निर्णय ले लिया।
35. एस.पी. विल्सन के नेतृत्व में सिपाहियों ने एक गांव को घेर लिया तथा विल्सन ने ऐलान किया कि अगर क्रान्तिकारियों के नेता मंशाराम ने सरेण्डर ना किया तो पूरे गांव को उजाड़ दिया जायेगा।
36. मंशाराम अपनी जान बचाने को पूरे गांव को खतरे में डालना नहीं चाहता था––वो सरेण्डर करना चाहता था लेकिन क्रान्तिकारी युवकों ने उसे बेहोश करके तहखाने में बन्द कर दिया था।
37. मंशाराम द्वारा सरेण्डर ना करने पर एस.पी. विल्सन ने सिपाहियों को हुक्म दिया कि वो घर–घर की तलाशी लें––कोई मंशाराम के बारे में ना बताये तो सबको गोली मार दें––औरतों को बाहर लाकर बेइज्जत करें तथा बच्चों को कुएँ में आग जलाकर भून डालें। गांववालों ने फिरंगियों का बहादुरी के साथ सामना किया और फिर एस.पी. विल्सन को कब्जे में लेकर उसे आग वाले कुएं में फेंक दिया।
38. जेलर जगदेव ने पुलिस वालों और मिलिट्री वालों को बुलाकर बताया कि गवर्नर हेस्टिंग्ज उन सबके घर के एक–एक सदस्य को बहाने से ब्रिटेन भेजने वाला है––ताकि वो लोग चाहकर भी ब्रिटिश सरकार से बगावत ना कर सकें। ऐसा जानकर हर कोई भड़क गया।
39. अगले दिन जब लारेन हेस्टिंग्ज ने ऐलान किया कि हरेक पुलिस और मिलिट्री वाले के परिवारों के एक–एक सदस्य को ट्रेनिंग के लिये ब्रिटेन भेजा जायेगा––यदि कोई नहीं भेजेगा तो उसकी नौकरी खत्म कर दी जायेगी। सेना और पुलिस वालों ने गवर्नर का हुक्म बनाने से इन्कार कर दिया क्योंकि सबको पहले ही मालूम पड़ गया था कि गवर्नर उसके परिवार के सदस्यों को ब्रिटेन में बन्धक बनाना चाहता है—तब रशीद खान सभी पुलिस और सेना वालों से मिला और उसने सबको फिरंगियों के खिलाफ लड़ने को राजी कर लिया।
40. सेना और पुलिस की बगावत ने गवर्नर को सोच में डाल दिया।
41. मुक्ति मोर्चा संगठन के परचम तले सैनिकों तथा सिपाहियों ने हथियार उठा लिये और फिरंगिरयों को ढूंढ–ढूंढ कर मारने––लारेन हेस्टिंग्ज ने ब्रिटेन से कुछ सैनिक तथा गोला–बारूद मंगा लिया तथा वो पहाड़ी पर बने किले में चला गया––उधर दिलीप सिंह, राजकुमार भूपेन्द्र सिंह तथा विक्रम सिंह को आजाद करा लिया गया और रशीद खान ने संगठन की बागडोर दिलीप सिंह को सौंप दी––दिलीप सिंह ने रशीद खान को संगठन का मन्त्री बना दिया तो विक्रम सिंह किलस गया––वो स्वयं मन्त्री बनना चाहता था—लेकिन दिलीप सिंह ने कहा कि घुमन्तुओं को अपना बनाये रखने के लिये रशीद खान को महत्वपूर्ण पद देना जरूरी है।
42. गवर्नर ने सुल्ताना से कहा कि वो विक्रम सिंह से मिले तथा उसे दिलीप सिंह को मारकर राजा बनने को उकसाये––फिर उससे शादी करके फिरंगियों के फेवर में काम करने को राजी करे––सुल्ताना ने कहा कि वो महारानी बनकर विक्रम सिंह को मुट्ठी में रखेगी तथा शासन चलायेगी।
43. सुल्ताना बुर्का ओढ़कर राजमहल की तरफ जा रही थी कि उसे पहचान लिया गया––भीड़ ने उसे गवर्नर का साथ देने की सजा दी तथा उसके नाक–कान काटने के अलावा चेहरे पर तेजाब भी डाल दिया––आँख में तेजाब डलने से उसकी एक आँख भी फूट गयी।
44. ब्रिटेन से गवर्नर लारेन हेस्टिंग्ज के लिये आर्डर आ गया कि वो केसरगढ़ को आजादी प्रदान करके वापिस चला आये—टेंशन से घिरे गवर्नर ने डेविड की बीवी मारिया को बुला लिया।
45. गवर्नर लारेन हेस्टिंग्ज ने मारिया से कहा कि वो जाने से पहले केसरगढ़ का हाल भी हिन्दुस्तान के जैसा ही कर देगा––वो केसरगढ़ के भी टुकड़े करवा देगा।
46. रशीद खान राजा दिलीप से मिला और बताया कि गवर्नर ने उसे वार्तालाप के लिये बुलाया है लेकिन वो जाना नहीं चाहता है, परन्तु दिलीप सिंह ने कहा कि वो जाये और फिर लौटकर रिपोर्ट दे––विक्रम सिंह का ख्याल था कि रशीद खान गवर्नर के हाथों बिक जायेगा, लेकिन दिलीप सिंह ने रशीद खान पर पूरा भरोसा जाहिर किया।
47. गवर्नर ने रशीद खान को बहलाने की चेष्टा की कि वो अलग मुल्क की मांग करे, लेकिन रशीद खान ने सख्ती के साथ कहा कि वो ‘जिन्ना’ नहीं बनेगा और केसरगढ़ के दो टुकड़े नहीं होने देगा।
48. लारेन हेस्टिंग्ज ने रशीद खान को कत्ल करवाकर राजा दिलीप सिंह पर इल्जाम लगाने की योजना बना ली।
49. रशीद खान दिलीप सिंह से मिलकर लौट रहा था तो गवर्नर के भेजे फिरंगियों ने शाही सैनिकों के रूप में उसे कत्ल कर दिया तथा ये जाहिर किया कि वो राजा दिलीप सिंह से घुमन्तुओं के लिये अलग देश की मांग कर रहा था––सो उसे दिलीप सिंह ने कत्ल करवा दिया है––घुमन्तुओं में इसकी तीव्र प्रतिक्रिया हुई।
50. रशीद खान के कत्ल पर दिलीप सिंह व्याकुल हो गए––वो गलतफहमी दूर करने के लिये रशीद खान के घर जाना चाहते थे लेकिन सेनापति जोरावर सिंह ने गर्म माहौल को देखकर ना जाने की सलाह दी।
51. अपनी योजना के सफल होने पर गवर्नर बेहद खुश था। उसने रशीद खान का कत्ल करने वाले आठों सैनिकों को मार दिया ताकि उनकी वजह से पोल ना खुलने पाये।
52. गवर्नर ने रशीद खान के छोटे भाई खलील खान को बुलाया और मारिया ने उसे अपने हुस्नो–शबाब का दीवाना बना लिया––खलील खान अलग देश ‘घुमन्तुस्तान’ लेने को जंग लड़ने को राजी हो गया।
53. खलील खान की अगुवाई से बहुत से घुमन्तुओं ने राजमहल के बाहर प्रदर्शन किया तथा ‘घुमन्तुस्तान’ की मांग की––कोई भी दिलीप सिंह की बात को सुनने व मानने को तैयार नहीं था––विक्रम सिंह ने उन लोगों को बुरा–भला कहा तो वो लोग भड़ककर वापिस चले गए।
54. गवर्नर हेस्टिंग्ज चाहता था कि वो घुमन्तुओं को अलग मुल्क दिलवाकर केसरगढ़ पर काबिज रहे लेकिन खलील खान की बीवी महजबीं ने कह दिया कि फिरंगियों का कोई भरोसा नहीं है, वो बाद में उनके मुल्क पर कब्जा कर सकते हैं––अत: फिरंगियों को केसरगढ़ से जाना होगा तथा घुमन्तु अपने दम पर ‘घुमन्तुस्तान’ हासिल कर लेंगे—गवर्नर तिलमिला कर चला गया।
55. गवर्नर केसरगढ़ को आजाद करके चला गया लेकिन घुमन्तुओं ने अलग मुल्क पाने को जंग छेड़ दी––केसरगढ़ में हिंसा का ताण्डव होने लगा।
56. विक्रम सिंह के कड़े विरोध के बावजूद राजा दिलीप सिंह ने घुमन्तुओं की माँग पूरी करने का निर्णय ले लिया।
57. विक्रम सिंह का सामना भयानक हो चली सुल्ताना से हुआ लेकिन उसने सुल्ताना को दुत्कार दिया।
58. दिलीप सिंह घुमन्तुओं को सोनगढ़ और जयनगर दो जिले देना चाहते थे लेकिन खलील खाने ने कहा कि घुमन्तुओं की तादात चालीस फीसदी है सो जमीन का हिस्सा भी चालीस फीसदी मिलना चाहिये––विक्रम सिंह ने विरोध किया तथा घुमन्तुओं को भला–बुरा कहा।
59. लेकिन दिलीप सिंह के कहने पर विक्रम सिंह को माफी मांगनी पड़ी––दिलीप सिंह ने घुमन्तुओं को पश्चिमी हिस्सा यानि समुद्र से लेकर कालागढ़ तक का चालीस फीसदी हिस्सा दे दिया––जहाँ घुमन्तुओं की ही मैजोरिटी थी––घुमन्तु नया मुल्क मिलने प
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Additional information
Book Title | चुन–चुन कर मारूंगा : Chun Chun Ke Marunga by Rakesh Pathak |
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Isbn No | |
No of Pages | 248 |
Country Of Orign | India |
Year of Publication | |
Language | |
Genres | |
Author | |
Age | |
Publisher Name | Ravi Pocket Books |
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