चूहा लड़ेगा शेर से
राकेश पाठक
“तू मुझे जानता नहीं है इंस्पेक्टर शिवा—मैं फुलत सिटी के बेताज बादशाह टाइगर जी का आदमी हूं—उनके बेटे गोपी जी का खास दोस्त हूं—मुझे छोड़ दे वर्ना तेरे लिए अच्छा नहीं होगा—गोपी जी को मालूम हो गया तो वे.... तेरे थाने की ईंट से ईंट बजा देंगे, हां।”
“चुप साले....।” युवा इंस्पेक्टर शिवराम ने लड़की जैसे चेहरे वाले उस पतले युवक को थप्पड़ जमा दिया और उसे फाड़खाने वाले लहजे में घूरते हुए बोला—“मुझे टाइगर गोपी जी की धमकी मत देना—मैं कल ही यहां आया हूं—मुझे बताया गया है कि यहां का सबसे बड़ा गुण्डा टाइगर है—फुलत सिटी का सबसे बड़ा गुण्डा—अण्डरवर्ल्ड का बेताज बादशाह—सुनने में आया है कि साल भर पहले तक टाइगर एक गैंगस्टर का चमचा हुआ करता था—एक दिन टाइगर ने उसे जहर देकर मार दिया और उसकी कुर्सी हथिया ली—अपने उस्ताद के पैसे से ही उसने गैंग बनाया—फुलत सिटी के सारे गुण्डों को अपनी कम्पनी में भर्ती कर ली—जो उसकी कम्पनी में दाखिल नहीं हुआ उसे मार दिया गया—साल भर में ही टाइगर फुलत सिटी पर छा गया।”
“बस इतनी ही जानकारी मिली है तुझे टाइगर के बारे में?” लड़कियों जैसी सूरत वाला युवक व्यंग्य भरे लहजे में बोला—“ये तो बहुत कम जानकारी है—टाइगर साहब की ताकत इससे भी कहीं ज्यादा है इंस्पेक्टर शिवा—उनकी पहुंच वर्तमान सरकार तक है—कई नेता उनके दोस्त हैं—बल्कि कहना चाहिए कि उनकी उंगलियों पर नाचते हैं क्योंकि टाइगर साहब ने उनके खिलाफ ऐसे सबूत जुटा रखे हैं कि वो सबूत उन मन्त्रियों का सत्यानाश कर सकते हैं—उन्हें सिंहासन से उतारकर जमीन पर पटक सकते हैं—योगेन्द्र भाई को ही ले लो—फुलत सिटी से जीतकर मन्त्री बना था—टाइगर साहब के आशीर्वाद से ही जीता था—वर्ना अपोजिशन पार्टी के नेता मुरारीलाल ने उसकी हालत खराब कर दी थी—जमानत जब्त होने के आसार नजर आ रहे थे—आकर टाइगर साहब के चरणो में गिर गया था—कहने लगा था कि जीतने का आशीर्वाद दीजिए टाइगर जी, वर्ना यहीं पर जहर खाकर आत्महत्या कर लूंगा—टाइगर साहब ने उसकी पीठ पर हाथ धर दिया था—उसे जमकर शराब पिलाई थी और मौज-मस्ती के लिए रंगशाला में भेज दिया था—शराब में वासना को भड़काने वाली दवा डाल दी गई थी—रंगशाला में एक समाजसेवी की नाबालिक लड़की को बन्धक बनाकर रखा गया था—जिसे अगवा करके लाया गया था—होगी कोई चौदह या पन्द्रह साल की—एक तो शराब का नशा—ऊपर से शराब में वासना भड़काने वाली दवा थी—नेता जी पागल हो गए थे—लड़की पर भूखे भेड़िये की मानिन्द ही टूट पड़े थे—वो खूब रोई चिल्लाई थी—गिड़गिड़ाकर रहम की भीख मांगी थी—लेकिन नेताजी को होश कहा था—लड़की को रौंद डाला था—इतने बर्बर तरीके से बलात्कार किया था कि वो बेचारी तड़प-तड़प कर मर गई थी—टाइगर साहब ने लड़की की लाश को फिंकवा दिया था—टाइगर साहब ने रंगशाला में वीडियो कैमरा लगवा दिया था, जिसने नेताजी की ब्लू फिल्म बना ली थी—पुलिस को उस लड़की के कातिल और बलात्कारी की आज भी तलाश है—टाइगर साहब अगर उस कैमरे का प्रदर्शन कर दें तो मन्त्री योगेन्द्र भाई जी की मिट्टी पलीद हो जाएगी—राजनीतिक कैरियर चौपट हो जाएगा और जेल भी जाना पड़ेगा—इसलिए तो वो टाइगर साहब की मुट्ठी में कैद होकर रह गया है—टाइगर साहब का थूक चाटने के लिए तैयार रहता है—वे जो कह देते हैं, उसे मानना ही पड़ता है—दूसरे कई और नेता और मन्त्री भी हमारे टाइगर साहब की मुट्ठी में है—तभी तो बड़ी शान के साथ अपनी कम्पनी को निर्विघ्न चला रहे हैं—पुलिस वालों को भी टाइगर साहब ने खरीदा हुआ है—पुलिस वालों के घर मोटी रकम पहुंच जाती है—इसलिए तो पुलिस वाले टाइगर साहब को नुकसान पहुंचाने के बजाय उन्हें प्रॉटेक्शन ही देते हैं।”
“लेकिन इंस्पेक्टर शिवा फर्ज और ईमान बेचने वालों में से नहीं है।” वो हरेक लफ्ज़ को चबाते हुए बोला—“टाइगर जैसे लोग मुझे ना तो खरीद ही सकते हैं और ना ही डरा सकते हैं—मैं तुझे छोड़ने वाला नहीं हूं—अगर तूने टाइगर का रौब देने की जुर्रत की तो इस बार वो मार मारूंगा कि तेरे घरवाले भी तुझे नहीं पहचान पाएंगे।”
“तू अपनी फिक्र कर इंस्पेक्टर—तू मधुमक्खी के छत्ते में हाथ डालने की जरूरत कर रहा है—टाइगर साहब यहां के जुर्म की झील के सबसे बड़े मगरमच्छ हैं—उनसे बैर पालेगा तो वो तेरे को फाड़ कर....आह....!”
बाकी के लफ्ज उसकी चीखों के पिटारे में कैद होकर रह गए मानो इंस्पेक्टर शिवा पर कोई जुनून सवार हो गया था—वो उस मवाली को अन्धाधुन्ध मारता चला गया।
हाथ थक गए तो उसने पैन्ट पर बंधी पीतल के बक्कल वाले बैल्ट उतार ली और उस पर बरसाता चला गया।
लॉकअप में उस मवाली की दर्दनाक चीखें उभरने लगीं।
लॉकअप के बाहर मौजूद एक कॉन्स्टेबल बाकी कांस्टेबलों से दबे स्वर में बोला—“कोई सिरफिरा मालूम पड़ता है—तभी टाइगर साहब से दुश्मनी मोल ले रहा है—कल तक इसका ट्रांसफर हो जाएगा—या ऊपर वाली दुनिया में पहुंचा दिया जाएगा इसे—टाइगर साहब को ऐसे लोग पसन्द नहीं है—जब उन्हें ये मालूम पड़ेगा कि वे बेवकूफ उनके एक आदमी को पकड़ लाया है तो....इसका भगवान ही मालिक होगा।”
तभी बाहर से ढोलक, हारमोनियम और मंजीरे बजने की आवाज आयी।
सारे कांस्टेबलों के चेहरे फक्क पड़ते चले गए।
पसीने छूटने लगे।
“आ गई आफत....।” एक कॉन्स्टेबल होठों पर जीभ फेरते हुए बोला—“गोपी आ गया है—ये इंस्पेक्टर तो गया काम से।”
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“नमस्ते विजया जी।”
विजया ने कुहनियों से कटे ठूंठ जैसे होठों को जोड़कर उसके अभिवादन को कबूल किया और उसे गौर से देखने लगी।
वो कोई चालीस-बयालीस वर्षीय तोन्दियल शख्स था—उसका कद छोटा ही था, मुश्किल से पांच फुट का था—लेकिन जिस्म मोटा था और पेट घड़े की मानिन्द ही बाहर निकला हुआ था—पैन्ट को नीचे खिसकने से रोकने के लिए उसने कन्धों पर चढ़ने वाली चेटियां बांधी हुई थीं।
वो बैठ गया और खींसे-सी निपोरते हुए बोला—“मेरा नाम मुंगेरीलाल है विजया जी—मुंगेरीलाल के हसीन सपने वाला मुंगेरीलाल नहीं—मैं फिल्मों का निर्माता और निर्देशक हूं—दो फिल्में भी बना चुका हूं—एक का नाम 'सपनों की रानी' और दूसरी का नाम 'मेरा बाप मेरा दुश्मन' था।
“ओह, नाम तो सुना है फिल्मों का—लेकिन देख नहीं पाई—वीडियो लाइब्रेरी वाले के यहां चोरी हो गई थी—वो दोबारा सुपरहिट फिल्मों की ही कैसेट लाया है—आपकी फिल्में तो फ्लॉप हो गई थीं।”
मुंगेरीलाल ने सकपकाकर गला खंखारा।
“कहिए, कैसे आना हुआ मुंगेरीलाल जी?”
“वो मैंने नयी फिल्म लांच की है—फिल्म का नाम है....मेरे देश की पुलिस—हीरो परमिन्दर है और हीरोइन है जयाश्री—मुझे इसमें एक हीरोइन और लेनी है—जिसके लिए मैंने आपका सलेक्शन किया है।”
“मेरा!” विजया आश्चर्य के साथ बोली—“मेरा ख्याल कैसे आ गया भला? फिल्में तो क्या, कभी स्कूल के ड्रामा में भी काम नहीं किया—ना ही मैं कोई मशहूर हस्ती हूं—फिर आप मुझ तक कैसे पहुंच गए भला?”
“वो क्या है कि मेरी फिल्म में एक लेडी पुलिस इंस्पेक्टर का रोल है—जो कि बहुत ही धाकड़ और दिलेर है—वो रिश्वत के नाम से भी चिढ़ती है—गुण्डे बदमाशों के लिए आफत है—किसी मुजरिम से डरती नहीं है—अपने बड़े अफसरों या नेताओं के दबाव में आकर मुजरिमों को छोड़ती नहीं है—तब एक खतरनाक गैंगस्टर उसके दोनों हाथ काट देता है—बाद में उसका भाई और फिल्म का हीरो उससे बदला लेता है—मुझे मेरे एक फाइनेंसर ने आपके बारे में बतलाया कि आप भी कभी एक ईमानदार और धाकड़ पुलिस अफसर होती थीं—लेकिन मुजरिमों ने आपके दोनों हाथ काट दिए थे—आपकी दास्तान ने मुझे प्रभावित किया और मैंने आपको अपनी फिल्म में लेने का निर्णय ले लिया—जैसे एक निर्माता ने अपाहिज सुधा चन्दन को लेकर फिल्म, 'नाचे मयूरी' बनाई थी—सुधा चन्द्रन की एक हादसे में टांग कट गई थी—लेकिन उसने पैर लगवा लिया था और डांस में महारत हासिल कर ली—यानी सुधा चन्द्रन ने फिल्म में अपनी वास्तविक जिन्दगी का रोल किया था—ऐसे ही मैं चाहता हूं कि आप मेरी फिल्म में अपनी वास्तविक जिन्दगी से मिलता-जुलता रोल करें।”
“लेकिन मुझे तो एक्टिंग की ए० बी० सी० भी नहीं आती मुंगेरीलाल जी।”
“नो प्रॉब्लम—आपको कोई एक्टिंग नहीं करनी होगी—अधिकतर भागा-दौड़ी और मार-पीटाई के ही सीन होंगे—आप पुलिस अफसर रही हैं—आप जिस ढ़ंग या स्टाइल से बात तब किया करती थीं, वैसे ही कर लेना—आपको एक्टिंग कोर्स भी करवा दिया जाएगा—एक्टिंग सिखाने वाले मास्टर जी यहीं पर आ जाया करेंगे।”
“लेकिन मेरे दोनों हाथ कटे हुए हैं—फिल्म में हाथों के कटने से पहले के सीन कैसे होंगे?”
“नो प्रॉब्लम—आपके लिए नकली हाथ बनकर आ जाएंगे—वो एक रिमोट कन्ट्रोल से हरकत करेंगे—यानी कोई आदमी रिमोट से आपके नकली हाथों को आवश्यकतानुसार हरकत देगा—लेकिन पर्दे पर देखने वाले को यही लगेगा कि आप ही अपनी मर्जी से हाथों को हरकत दे रही हैं—फाइटिंग वाले सीन लॉन्ग सूट में लिए जाएंगे और वहां डुप्लीकेट का इस्तेमाल किया जाएगा—मैंने सब कुछ सोच लिया है क्या कैसे होना है? आप फिक्र ना करें—बस, आप हामी भर दीजिए—आपके फिल्म साइन करने पर फिल्म को पब्लिसिटी मिल जाएगी—लोगों में इस बात की चर्चा होगी की फिल्म में इंस्पेक्टर का रोल करने वाली लड़की हकीकत में भी पुलिस ऑफिसर थी और अपना फर्ज निभाते हुए उसने अपने दोनों हाथ खो दिए थे—भगवान के लिए इन्कार मत कीजिए विजया जी—वर्ना मेरा दिल टूट जाएगा।”
“मुझे सोचने का थोड़ा वक्त दीजिए—मेरे एक अंकल है—जो मेरे बाप के समान ही हैं—मेरा एक भाई भी है—दोनों की सलाह लेनी जरूरी है।”
“आप शायद कृष्णदेव जी और अमरकान्त जी की बात कर रही हैं।”
“हां—क्या आप उन्हें जानते हैं?”
“क्यों नहीं—वे दोनों तो मशहूर हस्ती हैं—मैं क्या, उन्हें तो फुलत सिटी का बच्चा-बच्चा जानता है—भले ही वो दोनों कानून की नजर में मुजरिम हों—लेकिन वो गरीबों और मजलूमों के मददगार हैं—मुजरिमों और भ्रष्ट लोगों के दुश्मन हैं—वो लोगों को इंसाफ और मुजरिम को सजा देकर कानून का काम ही कर रहे हैं—आज की तारीख में कानून की कोई अहमियत ही नहीं रही है—कानून के रखवाले भी बिकाऊ हो गए हैं—वो रिश्वत के लालच में मुजरिम का ही फेवर करते हैं—तभी तो गुण्डागर्दी का बोलबाला हो गया है—शरीफों का तो जीना ही मुहाल हो गया है—गुण्डे निर्दोष लोगों पर जुल्मों-सितम करते हैं और उन लोगों को कोई रोकने-टोकने वाला नहीं है—आपके अंकल और भाई मुजरिमों को सजा देकर मुजलूमों का भला कर रहे हैं—कभी मौका मिला तो हम दोनों के दर्शन जरूर करूंगा और अगली फिल्म दोनों पर ही बनाऊंगा—फिल्मों में यही सन्देश दूंगा कि आज की तारीख में देश को कृष्णदेव और अमरकान्त जैसे लोगों की ही जरूरत है। अगर उन जैसे लोग ना हों तो इस देश में शरीफों का जीना मुहाल हो जाए और देश में गुण्डे ही राज करेंगे—मैं अगले हफ्ते आ जाऊंगा—मुझे उम्मीद है कि आप मेरी फिल्म में काम करने के लिए तैयार हो जाएंगी—मैं कॉन्ट्रैक्ट पेपर साथ लेकर आऊंगा—साइनिंग अमाउंट लेकर आऊंगा।”
“बैठिए, चाय लेकर ही जाइए।”
मुरालीलाल फौरन ही बैठ गया।
विजया ने नौकरानी को बुलाकर चाय लाने के लिए कहा।
चाय आ गई।
विजया ने कुहनियों से कटे ठूंठ जैसे हाथों के बीच चाय की गिलास को दबोचा और इत्मीनान के साथ चाय सुड़कने लगी।
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नोट—विजया के पुलिस जीवन और कटे हाथों की दास्तान के लिए 'राकेश पाठक' द्वारा लिखित 'बहन के कटे हाथ' अवश्य ही पढ़ें तथा कृष्णदेव अमरकान्त के कारनामों को जानने के लिए 'थाना देगा दहेज' 'कत्ल की मशीन' और 'कत्ल का जादूगर' अवश्य ही पढ़ें— जिन्हें बुकमदारी ने प्रकाशित किया है — राकेश पाठक द्वारा लिखित पूर्व प्रकाशित उपन्यास 'खून बहेगा सड़कों पर' भी पढ़ें—जिसमें आप अमरकान्त को खूंखार रूप में पाएंगे।
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