चाणक्य का बेटा
“व्हाट?” उछल पड़ा अभिजीत—“दिमाग तो खराब नहीं हो गया तुम्हारा? मैं उसके साथ बलात्कार करूं जिसे मैं जान से भी ज्यादा प्यार करता हूं?”
“क्या फर्क पड़ता है बड़े भाई?” उसके सामने रिवॉल्विंग चेयर पर बैठा झोंटे खाता इक्कीस वर्षीय युवक बोला, लापरवाही से—“तुम तो यह मानकर चलो कि शादी से पहले सुहागरात मना रहे हो... और फिर कौन-सा सब लड़कियां सुहागरात को साथ देती हैं...सारा काम तो खुद आदमी को ही करना होता है।”
“म...म...मगर...वह सुहागरात होती है।” अपने बेकाबू हुए हवासों पर काबू पाने का प्रयत्न करता हुआ वह बोला-“म...म...मैं जेल नहीं जाना चाहता यार, उससे शादी करना चाहता हूं।अ...और...और तुम्हें पता है, केशव की बहन है वो। केशव पंडित...दिमाग के जादूगर की बहन।”
“वह केशव की बहन है तभी तो तुझे यह करने को बोल रहा हूं...।” मन-ही-मन उसने कहा...फिर प्रत्यक्षत: बोला वो शातिर युवक “मोहब्बत और जंग में सब जायज है, अरे यार, लोग तो प्यार पाने के लिए भगवान से लड़ जाते हैं और तुम केशव पंडित से ही डर गए? लानत है तुम्हारी मोहब्बत पर।”
अभिजीत ने थूक गटका—“हां, म...मैं केशव पंडित से नहीं लड़ सकता। उस शख्स से जब बड़े-बड़े धुरंधर वकील पार नहीं पा सके तो तुम और मैं क्या चीज हैं...किस खेत की मूली है हम?”
“उसी खेत की मूली हैं हम...।” दृढ़ शब्दों में कहता चला गया वह—“जिस खेत की की मूली वह केशव पंडित है। केशव पंडित कोई आसमान से नहीं टपका। दुनिया में ऐसा कोई शख्स आज तक पैदा नहीं हुआ जो कभी हारा ना हो। इस बार केशव पंडित हारेगा। अदालत में शेर की तरह दहाड़ने वाला वह केशव पंडित...वह दिमाग का जादूगर बकरी की तरह मिमियाने न लगा तो मेरा नाम भी अभय प्रताप सिंह नहीं।”
“त...तुम ज्यादा ऊंची उड़ान उड़ने लगे हो।”
“हां, ऊंची उड़ान उड़ रहा हूं बड़े भाई। जब तुम मेरा प्लान सुनोगे तो तुम भी उड़ने लगोगे।” आत्मविश्वास भरे स्वर में वह युवक बोला—“चलो मैं तुम्हें अपना प्लान बता देता हूं। उसके बाद बोलना...कि मेरे प्लान में दम है कि नहीं।”
और वह उसको अपना प्लान समझाने लगा।
जैसे-जैसे वह अपना प्लान बताता जा रहा था, वैसे-वैसे अभिजीत का चेहरा हजार वोल्ट के बल्ब की मानिन्द ही दमकता चला जा रहा था।
आंखों में ऐसी चमक पैदा होती जा रही थी जैसे वह संसार फतेह करने का पक्का प्लान सुन रहा हो।
युवक का प्लान सुनकर बरबस ही उसके मुंह से बोल फूट पड़ा—“वाह...वाह! क्या दिमाग पाया है तूने मेरे यार। तू तो लगता है केशव पंडित की इज्जत का फालूदा बना कर मानेगा।”
बदले में युवक के होठों पर अत्यंत मक्कारी भरी मुस्कान नृत्य कर उठी।
कुटिल...मकड़ी के जाले-सी पेचीदा और इतनी चमकदार कि आंखें चुंधिया जाएं।
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पीछे से आवाज आई तो वह चलते-चलते यूं उछलकर रह गया जैसे कानों में अचानक एक धमाका हुआ हो।
दिल धक्क-से रह गया।
उसने पीछे मुड़कर देखा तो पाया...वह माधवी थी। माधवी छाबड़ा। वह उसी की तरफ चली आ रही थी।
उसने बड़ी तेजी से अपने आपको नॉर्मल करना चाहा मगर...।
मगर फिर भी पकड़ा गया। माधवी की शार्प नजर से उसकी हड़बड़ाहट छुप ना सकी।
उसके करीब आते ही माधवी ने उसके चेहरे पर नजरें गड़ा कर पूछा—“क्या बात है अभिजीत, तुम उछल क्यों पड़े थे मेरी आवाज सुनकर...क्या हो गया था तुम्हें जो इस तरह होश उड़े हुए हैं, तुम्हारे?”
“होश...न...नहीं तो।” बड़ी मुश्किल से अभिजीत ने अपने भावों पर काबू पाया—“कहां उड़े हैं मेरे होश?”
“लो, अब तुम्हें यकीन दिलाने के लिए मिरर दिखाना पड़ेगा...।” माधवी बोली—“हालत साफ बता रही है तुम्हारी। चेहरे का रंग बदरंग हुआ पड़ा है।”
“व...वो...वो बात ये है कि मैं कुछ सोच रहा था उस समय जब तुमने मुझे पुकारा था...।” अभिजीत ने सफाई दी—“इसलिए झटका-सा लगा था।”
“वाह, तुममें तो फिलॉस्फर वाले गुण आते जा रहे हैं।” माधवी खिलखिलाकर हंस पड़ी—“पहले तो तुम खामोश से रहते थे। मगर अब तो चलते समय भी सोचने लगे।”
ना चाहते हुए भी अभिजीत ने माधवी की हंसी में उसका साथ दिया। ऐसे जैसे वह जबरदस्ती हंसा हो।
हंसने के बाद अभिजीत बोला—“कुछ काम था?”
“हां काम ही तो था।” माधवी ने उसे याद दिलाया—“तुम भूल गए शायद आज कामना मर्डर केस की हियरिंग है। आज हमें उसकी कवरेज के लिए जाना है।”
“अरे, यह तो भूल ही गया था मैं...।” अभिजीत को याद आया—“मैं कैमरा लेकर आता हूं।”
“जल्दी करो...।” माधवी ने व्यग्र भाव से कहा—“हमें पहले ही देर हो चुकी है। जजमेंट से पहले हमें वहां अवश्य पहुंचना है।”
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“तमाम सबूतों, गवाहों और बयानों को मद्देनजर रखते हुए, यह अदालत प्रशांत शम्भाजी होलकर वल्द शम्भाजी होलकर को अपनी पत्नी कामना प्रशांत होलकर के कत्ल के लिए दोषी करार देती है। मुजरिम प्रशांत शम्भाजी होलकर ने अपनी पत्नी कामना प्रशांत होलकर का बेदर्दी से कत्ल ही नहीं किया, बल्कि उसे रसोई में जलाने का प्रयास भी किया। मुजरिम प्रशांत शम्भाजी होलकर ने सबसे पहले मृतका कामना की लाश पर पेट्रोल डाला तथा उसके बाद पेट्रोल से भी भीगी लाश को रसोई में डालकर रसोई गैस को खोलकर आग लगाकर उसे दुर्घटना का रूप देने की कोशिश की। लाश पर पेट्रोल छिड़कने के पीछे मुजरिम का मकसद लाश को ज्यादा से ज्यादा जला देना था। अदालत मुजरिम प्रशांत शम्भाजी होलकर को उसके इस अमानवीय जुर्म के लिए सजा-ए-मौत मुकर्रर करती है। टू बी हैंग टिल डैथ...।” कहकर जज साहब ने कलम तोड़ दी।
अदालत का फैसला सुनते ही कोर्ट रूम में सन्नाटा छा गया...ऐसा सन्नाटा कि यदि कोई सुई भी गिरे तो लगे जैसे एटमबम फटा हो।
प्रशांत शम्भाजी होलकर का समस्त शरीर जाम।
जज साहब ने अपनी कुर्सी छोड़ दी तथा पुलिसिए कटघरे की तरफ बढ़ गए।
अचानक प्रशांत के कुंद पड़ चुके दिमाग को मानो चार सौ चालीस वोल्ट का झटका लगा, उसका फ्रीज हो चुका जिस्म हरकत में आया और हलक फाड़कर चीख पड़ा था वह—“नहीं जज साहब...यह झूठ है, जज साहब। मैंने अपनी कामना का खून नहीं किया था, जज साहब! आपका यह फैसला गलत है जज साहब। यह मेरे खिलाफ रची गई साजिश है। आपको भी ऊपर वाले की अदालत में इसका हिसाब देना होगा। अरे, कामना तो मेरी जान थी जज साहब। अपनी जान की जान भला कैसे कोई ले सकता है...मर तो मैं उसी दिन गया था जज साहब जिस दिन मेरी कामना मुझे इस दुनिया में तन्हा छोड़ कर मौत की बांहों में चली गई थी...अब तो यह प्रशांत भी जिंदा लाश है...इसे चाहें तो तोप से उड़वा दो, चाहे फांसी पर लटका दो...लेकिन जज साहब मुझ पर कामना के कातिल होने का इल्जाम ना लगाओ, वरना मरने के बाद भी मेरी आत्मा को सुकून नहीं मिलेगा जज साहब...।”
उफ्फ!
वह लगातार हलक फाड़कर यूं चीखे जा रहा था मानो उसे हिस्टीरिया का दौरा पड़ गया हो।
वह चीख-चीखकर यही दोहरा रहा था—“आपने यह ठीक नहीं किया है जज साहब...आपका फैसला गलत है... गलत है।”
अदालत में मौजूद हर शख्स...जाने क्यों उसके इस दर्द भरे रुदन से द्रवित हो गया।
खुद जज साहब के दिल को भी शब्द अंदर तक छूते गुजर गए थे।
प्रशांत होलकर जैसे पागल हो गया था।
बा-मुश्किल उसे पुलिस के जवानों ने काबू किया।
वे उसे यूं कटघरे से बाहर खींचकर ले जा रहे थे जैसे जानवर को हलाल करने के लिए कसाई ले जाया करते हैं। जानवर के डकराने या मिमियाने का कसाई पर कोई भी फर्क नहीं पड़ता। इसी प्रकार उन पर भी प्रशांत के चीखने-चिल्लाने का कोई असर नहीं पड़ा।
अदालत से बाहर कदम रखते ही अचानक प्रशांत का चीखना-चिल्लाना पूरी तरह बंद हो गया था। लेकिन गालों पर बहते आंसू उसके दिल की हालत का साफ-साफ बयान कर रहे थे। उसे शायद यकीन हो गया था कि अब उसका विलाप किसी पत्थर दिल पर कोई असर नहीं करने वाला था।
अदालत से बाहर आते ही उसे मीडिया ने यूं घेर लिया था जैसे गुड़ की भेली पर से आवरण हटते ही मक्खियां उस पर झपट पड़ती हैं।
सवालों की बौछार हो रही थी हर ओर से।
“आपने अपनी पत्नी का कत्ल क्यों कर दिया?”
“आपको उस पर जरा भी तरस नहीं आया?”
“क्या उसका वास्तव में किसी और के साथ चक्कर चल रहा था?”
हर एक सवाल प्रशांत को अपने कानों में पिघले शीशे की मानिन्द ही घुसता महसूस हो रहा था।
वह किस चीख-चीखकर सबको बताना चाहता था कि मैं कामना का कातिल नहीं हूं...मेरे खिलाफ साजिश की गई है, लेकिन शायद उसको अहसास हो चुका था कि उसके चीखने-चिल्लाने का कोई फायदा नहीं होने वाला था।
और माधवी कैमरे के सामने खड़ी लगातार कहे जा रही थी माईक को थामें—“जैसा कि आप लोग देख रहे हैं, अपनी पत्नी की हत्या करने वाला यह दुर्दांत हत्यारा किस प्रकार रोने का नाटक कर रहा है। आज यह इस प्रकार रो रहा है जैसे कि इसका संसार मिट गया हो। एक महीने के बाद इस शख्स को फांसी के तख्ते पर लटका दिया जाएगा और इस बेरहम हत्यारे की जीवन लीला समाप्त हो जाएगी। कैमरामैन अभिजीत सिंह के साथ मैं माधवी छाबड़ा... इंडियन न्यूज़।”
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