छक्का
“समझ में नहीं आ रहा कब सुधरेगा यह। बेटा जवान होने को आ रहा है—और इसे बेगानी औरतों से फुर्सत ही नहीं। क्या कमी है मुझमें—जो इसे मैं नजर आती ही नहीं। एक नौकरानी से बद्तर जिंदगी हो गई है मेरी—।”
आंखों में आंसू भरे बड़बड़ाते हुए रजनी ने तवे से रोटी उतारी और अपने बाईं तरफ बैठे करीब बारह साल के लड़के के आगे रखी प्लेट में रख दी।
कोई खास बड़ी नहीं थी किचन और इतनी साफ-सुथरी भी नहीं थी।
एक बड़ी चौकी पर गैस चूल्हा रखा हुआ था—जिसके पास ही गैस सिलेंडर रखा था।
उसके सामने तैंतीस-चौंतीस साल की रजनी एक छोटी चौकी पर बैठी रोटी बना रही थी।
गैस के एक चूल्हे पर तवा था तथा दूसरे पर कुकर था—जिसमें कड़छी खड़ी हुई थी।
रजनी के सामने फर्श पर चकला रखा था—जिस पर वह बेलन से रोटी बेल रही थी।
दाईं तरफ परात में गुंथा हुआ आटा रखा था।
किचन में बाईं तरफ एक शैल्फ पर बर्तन लगे हुए थे—और दाईं तरफ छोटा फ्रिज रखा था।
उसके अलावा दीवारों से लगकर आटे का ड्रम, दालों के प्लास्टिक के डिब्बे वगैहरा रखे थे।
ऐसा नहीं था कि रजनी खूबसूरत नहीं थी—। वह खूबसूरत थी। लेकिन वह कोई खास पढ़ी-लिखी नहीं थी। ऊपर से उसके मां-बाप की सिखाई सीख कि पति चाहे जैसा भी हो—वह परमेश्वर होता है—उसके दिल में घर किए हुए था। और फिर घर का काम ही इतना होता था कि उसे खुद को सम्भालने की फुर्सत तक नहीं होती थी।
शादी के चार-पांच साल तक तो वह अपने पति के साथ बहुत खुश रही। पति अच्छा कमाता था—उसे खुश भी रखता था। ऐसे में वह हर रोज ऊपर वाले का शुक्रिया करती कि उसे ऐसा नेक और अच्छा पति दिया है।
उस वक्त उसका बेटा तीन साल का था—जब एक रोज उसे पता चला कि उसके पति के सम्बंध मौहल्ले की एक औरत के साथ हैं—और वह उसके घर हर दूसरे-तीसरे रोज उसके पास जाता है।
इस खबर ने उसके दिल पर गहरा आघात किया था। उसे विश्वास नहीं हुआ कि उसका पति ऐसा भी हो सकता है। सो उसने खबर देने वाली औरत से कहा कि अगली बार जब उसका पति उस औरत के पास जाये तो वह उसे खबर कर दे।
तीसरे रोज ही उसे रात को खबर मिल गई और वह अपने पति को रंगे हाथ पकड़ने के लिये जा पहुंची उस औरत के घर।
अपने बेटे को साथ ले लिया था उसने।
रंगे हाथ पकड़ लिया था उसने अपने पति को। वह पूरी तरह से बेलिबास मौहल्ले की औरत पर चढ़ा रजनी का हक उस औरत को दे रहा था।
ऐसे दृश्य को देखकर एक औरत के दिल पर जो बीतती है—वह रजनी पर बीती।
गुस्से में अपना आपा खो बैठी वह—और उस औरत पर टूट पड़ी। और उसका पति बीच-बचाव में जुट गया।
एक तरफ खड़ा उसका तीन साल का बेटा कुछ समझ तो नहीं पा रहा था—मगर वह बुरी तरह से डर गया था।
और फिर घर आकर उसके पति ने रजनी की वो ठुकाई की कि आधा मौहल्ला उसके घर के बाहर आ खड़ा हुआ था।
तब कुछ लोगों ने आकर बीच-बचाव न किया होता तो कोई बड़ी बात नहीं थी कि वह रजनी को जान से ही मार देता।
मौहल्ले के लोगों ने रजनी के पति पर खूब लानत फेरी थी जिसका नतीजा यह हुआ कि वह शर्म का चोला उतारकर नंगा हो गया।
उसकी सोसायटी बिगड़ने लगी। कुछ गुण्डों को उसने अपना यार बना लिया—और मौहल्ले के दो-तीन लोगों को पीट दिया।
सालभर में ही उसका मौहल्ले पर दबदबा हो गया। अब मौहल्ले के लोग उससे डरने लगे थे। कोई भी अब उससे बात नहीं करता था और अगर करता था तो डरकर करता था।
उस वक्त रजनी का बेटा आठ साल का था जब उसका बाप यानी रजनी का पति एक युवती को लेकर घर आ गया।
तब रजनी ने घर में बहुत क्लेश खड़ा किया था—जिसकी वजह से उसके पति ने खूब पिटाई की थी उसकी—और फिर वह औरत के साथ कमरे में बंद हो गया। और उसके आधे घण्टे बाद ही पुलिस वहां पहुंची और दोनों को पकड़कर ले गई। थाने में औरत ने अपना त्रिया चरित्र दिखाया और यह कहा कि वह उसे चाकू की नोक पर अपने घर ले गया था। और उसके साथ रेप किया। पुलिस उसे कुछ न कहे—इसके लिये उसने थाने के एस.एच.ओ. को खुश भी किया।
नतीजा यह हुआ कि रजनी के पति को चार साल की कैद हो गई।
उसके जेल में रहने के दौरान रजनी के बेटे को मौहल्ले वालों से जिस जलालत का सामना करना पड़ा—यह वह ही जानता था।
बहुत बड़ा डर बैठ गया था उसके अन्दर। जिसका उसे खुद भी पता नहीं था।
चार साल बाद रजनी का पति जेल से छूटा तो सुधरने की बजाये और भी बिगड़ गया था।
रजनी भी समझ गई थी कि अब वह नहीं सुधरने वाला—सो उसने किसी नियति से समझौता कर लिया—और जो हो रहा है होने दो—वाले सिद्धान्त पर चलने लगी।
मगर औरत चाहे जितना भी समझौता कर ले—खुद को कलपने से तो नहीं रोक सकती।
वही अब हो रहा था।
वह रोटी बनाते हुए कलप रही थी—अपने खसम को कोस रही थी।
उसके दाईं तरफ बैठा उसका बेटा बबलू खाना खा रहा था।
छठी कक्षा की पढ़ाई बीच में ही छूट गई थी उसकी। बाप के जेल में होने की वजह से घर की आर्थिक स्थिति बिगड़ गई थी—ऊपर से खुद रजनी भी पढ़ी-लिखी नहीं थी जो पढ़ाई की कीमत को समझती—सो पढ़कर क्या करेगा—यही सोचकर उसने बबलू की पढ़ाई छुड़वा दी।
अब वह घर के कामों में मां का हाथ बंटाता था।
बारह साल का बबलू अच्छा कद निकाल रहा था। दिमाग पर पढ़ाई का बोझ न होने की वजह से उसकी भूख पहले से अधिक हो गई थी। साफ रंग, हाथ-पैर अच्छे निकल रहे थे उसके।
“बस कर अब....।” रजनी तवे से रोटी उतारकर उसकी प्लेट में रखते हुए बोली—“छह रोटी खा बैठा है—अब और नहीं मिलेगी।”
“एक....बस एक और माई।” बबलू रोटी उठाते हुए बोला।
“नहीं—और नहीं मिलेगी।” रजनी सख्ती से बोली—फिर बड़बड़ाई—“पता नहीं पेट है कि कुआं—भरता ही नहीं—।”
बबलू का चेहरा उतर गया।
“यह रोटी खत्म कर बिस्तर लगा और सो जा।” रजनी बोली।
बबलू कुछ नहीं बोला—बस हाथ में पकड़ी रोटी को खत्म करने लगा।
अभी उसने रोटी खत्म ही की थी कि एक औरत हांफती हुई रसोई में घुसी।
उसे देखकर न चाहते हुए भी रजनी का कलेजा धड़क उठा।
¶¶
नीरजा को देखते ही सतपाल की आंखों की चमक कई गुणा बढ़ गई।
मुंह खुल गया और निचले होंठ से लगते हुए उसकी राल टपककर उसकी जांघ पर आ गिरी। साथ ही उसके जेहन में पुरानी यादें ताजा हो गईं।
पांच साल पहले नीरजा से मिलन हुआ था उसका। तब वह इक्कीस साल की थी और भरपूर जवान थी।
जवानी तो जैसे कपड़ों को फाड़कर बाहर निकलने को हो रही थी, ऊपर से उससे जवानी सम्भाली भी नहीं जा रही थी।
सतपाल के मौहल्ले में ही रहती थी वह—सो जल्दी ही सतपाल ने उसे ताड़ लिया—और नजर मिलते ही वह समझ गया कि उसकी चाहतें जोर मार रही हैं। सो एक दिन मौका देखकर वह घुस गया उसके घर में। तब घर में कोई नहीं था।
उसे वहां देख नीरजा पहले तो डरी—फिर वह तैयार हो गई।
दोनों के कपड़े उतरे और जिस्म एक हो गये। और फिर सतपाल हर दूसरे-तीसरे रोज उससे कभी कहीं तो कभी कहीं मिलने लगा।
इश्क हो या मुश्क—यह भी कभी छुपाये छुपते हैं!
जल्द ही यह बात पहले मौहल्ले में फैली—फिर नीरजा के मां-बाप के कानों में पड़ी।
सतपाल नंगा था—ऊपर से वह गुण्डा भी बन गया था। सो उससे उलझने की हिम्मत नहीं कर पाये नीरजा के मां-बाप—साथ ही उन्होंने यह भी सोचा कि अगर उन्होंने सतपाल से बात की तो पूरे मौहल्ले में बदनामी होगी।
सो उन्होंने आनन-फानन उसके लिये लड़का ढूंढा और उसकी शादी कर दी।
नीरजा की शादी के तीन महीने बाद ही सतपाल को भी रेप केस में चार साल की जेल हो गई और जेल में वह नीरजा को भूल गया था। यूं भी उसकी शादी होने पर उसे कोई दुःख नहीं हुआ था। औरत तो उसके लिये एक खिलौना थी—जिससे जब तक दिल बहला—बहला लिया—फिर उसे छोड़ दिया
मगर अब नीरजा को देखकर उसकी पुरानी यादें फिर से ताजा हो गई थीं।
उस वक्त वह बस अड्डे की कैंटीन में था—इस कैंटीन का ठेका उसने अपने एक दोस्त से मिलकर लिया हुआ था। और नीरजा अपनी बांह में एक बच्चे को उठाये बस से उतर रही थी।
शादी के बाद से उसमें बहुत बदलाव आ गया था।
अब उसका बदन काफी भर गया था—जिससे उसकी खूबसूरती को चार चांद लग गये थे।
ऊपर से मेकअप अपना कमाल दिखा रहा था।
दायें कंधे पर बैग लटकाये नीरजा बाईं बांह पर बच्चे को उठाये बस अड्डे की कैंटीन की तरफ बढ़ी तो सतपाल की धुकधुकी बढ़ गई।
अभी तक नीरजा ने उसे देखा नहीं था—वह तो कोल्डड्रिंक लेने के लिये उधर आ रही थी।
आगे लगे काऊंटर पर कई बोतलें रखी थीं।
उनके करीब आकर नीरजा ने बैग नीचे रखा और सीधी होते हुए बोली—
‘एक पैप्सी देना....।’
कहते हुए जैसे ही उसकी नजर सतपाल पर पड़ी—वह चौंक उठी।
“तु....म....?” वह हैरानी से बोली—साथ ही उसके होंठ भी सतपाल के होठों की तरह फैल गये।
“कैसी है तू?” सतपाल बोला।
“बढ़िया—। तू कैसा है? पिछली बार आई थी तो पता चला कि तू जेल में है।”
“हां—।” गहरी सांस छोड़ी सतपाल ने—“वो है न सरिता—।”
“कौन—रामगली वाली?”
“हां वही—साली ने सौ रुपये ले लिये थे दो घण्टे के। और जब पुलिस ने छापा मारा तो उल्टे मुझ पर ही रेप का इल्जाम लगा दिया। जबकि तू भी जानती है कि वो कैसी है।”
“हां। सो तो है। खैर—एक कोल्डड्रिंक दे।”
सतपाल ने दो लीटर की एक पैप्सी निकाली तो नीरजा तुरंत बोली—“अरे नहीं—दस रुपये वाली चाहिये।”
“ले जा ना—। तेरे से कौन-से पैसे मांग रहा हूं। मां से मिलने आई है?”
“पता करने आई हूं मां का। अस्पताल में पड़ी है।”
“फिर तो कुछ रोज रहेगी यहां पर?”
“हां—हफ्ता भर तो रहूंगी।” कहते हुए नीरजा मुस्कुराई।
“तो फिर क्या ख्याल है—आ जाऊं रात को?” कहते हुए धूर्तता से मुस्कुराया सतपाल।
नीरजा ने गहरी सांस छोड़ी और बोली—“अस्पताल में मां के लिये फ्रूट वगैरह लेकर जाना है—पैसे कम पड़ रहे हैं—तेरे पास होंगे? बाद में दे दूंगी।”
सतपाल समझ गया कि वह अपनी कीमत मांग रही है। औरतों के अपनी कीमत मांगने के कई तरीके जानता था वह। जिनमें से एक तरीका यह भी था।
तुरंत उसने गल्ले में से सौ-सौ के दो नोट निकाले और उसे देते हुए बोला—
“रात को कब आऊं?” उसने अर्थ भरी मुस्कान के साथ नीरजा के उभारों को घूरा, जो उसके ‘वी’ शेप गले से नुमायां हो रहे थे।
नीरजा ने उससे नोट लिये और उन्हें अपने उभारों में ठूंसते हुए बोली, “रात को नौ बजे आ जाना—।”
“तेरा बाप तो नहीं होगा न घर में?”
“अरे नहीं—उसे मैं रात को मां के पास रहने के लिये अस्पताल भेज दूंगी।” नीरजा हंसी और फिर कोल्डड्रिंक की एक छोटी बोतल उठाकर उसे वहीं खड़े हुए ही पीया—फिर बड़ी दो लीटर की बोतल अपने बैग में ठूंसकर उसे कंधे पर लटकाते हुए बोली—“तो मैं चलूं?”
कुछ नहीं बोला सतपाल—बस एक ठण्डी आह भरते हुए उसने उसके गुलाबी उभारों को घूरा।
नीरजा खिल खिलाई और वहां से चली गई।
“साली दो सौ अस्सी की ठोंककर चली गई। कोई बात नहीं—रात को पूरे वसूल करूंगा—फिर घर जाऊंगा।” सतपाल बड़बड़ाया—और फिर ओपनर को बोतलों की लाइन पर फिराने लगा—जिससे कि अलग-अलग स्वर लहरियां निकलने लगीं।
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