ब्लू रीबन
हैलन
अक्सर ऐसा हुआ ही है कि जब भी मैं किसी अच्छे मूड में होती हूं और किसी खास जगह पर आनन्द लूटने में लीन रहती हूं तभी उस बूढ़े खूसट का बुलावा आ जाता है।
बूढ़े खूसट से मेरा तात्पर्य है—थॉम्पसन से।
थाम्पसन...यानि कि सेक्स इन्टर नेशनल ईगल संस्था का चीफ...हमारा बॉस...थॉम्पसन।
इस वक्त भी...जबकि मैं एक अपरिचित युवक एडम्स से प्रभावित होकर उसे एक अच्छा पार्टनर कबूल करके उसके साथ आनन्द के कुछ कीमती क्षण प्राप्त कर रही थी तो थॉम्पसन फिर टांग अड़ा बैठा।
मैं जल्दी किसी पर यकीन नहीं करता।
एडम्स पर भी यूं ही यकीन न कर लिया था।
मगर चूंकि मैं एक मुख्य जासूसी संस्था की एजेन्ट हूं इसलिये लगभग हर मामले में मेरी नजर पैनी रहती है और मस्तिष्क चुस्त रहता है।
जब मैं घर उसे तफरीह के लिये अपनी गाड़ी में बैठकर निकली तो अचानक एडम्स द्वारा रुकने का इशारा करते ही मैं सावधान हो गई थी।
आखिर वह कौन हो सकता है और क्यों रोक रहा है?
चूंकि मैं एक जवान लड़की हूं और मर्दों के अनुसार उनके लिये एक शोला भी हूं।
मेरे रूप की ओर आकर्षित होकर कोई भी ऐसा कदम उठा सकता है।
मेरा यह ख्याल मेरे अनुभवों के अनुसार सही है। कई बार ऐसा हो चुका है।
मगर मेरी मर्जी के खिलाफ कोई भी पुरुष मेरे जिस्म को आज तक हाथ लगाने में सफल नहीं हुआ था।
और सच्चाई तो यह है कि मेरी खूबसूरती ही मेरा सबसे बड़ा और घातक शस्त्र है।
या यूं कह लीजिये कि अपने रूप-सौन्दर्य और जवानी के कारण ही मुझे सेक्स इन्टरनेशनल ईगल में नौकरी भी मिली थी।
इसलिये मैं ऐसे वक्त में किसी से घबराती नहीं हूं।
मुझे अपने आप पर पूरा भरोसा था कि अगर एडम्स कोई गलत नीयत वाला इन्सान साबित हुआ तो फिर उसकी खैर नहीं।
बेहिचक मैंने गाड़ी की गति धामी की और उसके बिल्कुल समीप पहुंचते-पहुंचते ब्रेक लगा दिये।
मेरे लिये इस कारण भी रुकना लाजिम था कि संभवत: वह युवक संकट में हो और सहायता चाहता हो।
गाड़ी रुकी तो वह मेरे करीब आया।
पहले तो वह मुस्कुराया।
दरअसल एडम्स का गठीला जिस्म बेहद आकर्षक था। घुंघराले बालों में वह बहुत अच्छा लगा...और चेहरा भी सुन्दर ही था।
मैं प्रभावित हो उठी।
कामना करने लगी थी कि काश इस युवक के संग तफरीह करने का अवसर मिल जाए।
मेरा मुस्कुराना मेरे हक में ठीक साबित हुआ।
मेरे मुस्कुराने से उसकी हिचक दूर हो गई।
पहले तो उसने मुझे कोई कॉलगर्ल समझा था।
मगर मैंने तुरन्त जो जवाब दिया, उससे वह सम्भल गया और अपने गलत ख्याल के लिये क्षमा याचना भी की।
अगर तुम एंगेज नहीं हो तो मैं तुम्हें मुंहमांगी कीमत देने को तैयार हो जाऊंगा। वह बोला था।
मेरा चेहरा ढीला-सा पड़ गया था।
मैंने उसकी ओर से नजरें हटा लीं और स्टेयरिंग पर कसी हुई अपनी अंगुलियों के देखने लगी।
वह फिर बोला—“तुम्हारे पास ज्यादा वक्त न हो तो तफरीह करके ही छोड़ दूंगा।”
मैंने पलकें उठा दीं।
उसकी ओर देखते हुए सोचने लगी।
युवक तो मेरी पसन्द का है—कुछ क्या, बल्कि अधिक से अधिक समय तक तफरीह कर सकती हूं।
मगर...।
कॉलगर्ल के रूप में कीमत लेकर क्यों?
कुछ भी हो...मैं कई रोज बाद वियतनाम से ऑपरेशन पर से वापिस लौटी थी...मैं स्वतन्त्र रूप से कुछ दिन तक आनन्द लूटना चाहती थी।
मगर चिन्ता यह भी थी कि कहीं यह फ्रॉडमैन साबित न हो जाए।
मैंने गौर से उसके मुखड़े को देखा।
उसके चेहरे पर कोई ऐसा लक्षण नहीं था जिससे वह बदमाश लगता।
फिर भी अन्दर तक टटोले बिना मैं उसको लिफ्ट कैसे दे सकती थी।
आखिर जासूस जो हूं।
मैं मुस्कुराई।
उसके कन्धे पर एक थैला लटक रहा था।
स्पष्ट था कि उसमें अधिक समान नहीं था।
वह मेरे उत्तर की प्रतीक्षा कर रहा था।
“मिस्टर...।”
“मेरा नाम एडम्स, है।” वह नाम बता बैठा।
“मिस्टर एडम्स क्या तुम्हें यह भी पता है कि तुम्हारा पीछा किया जा रहा है?”
“मेरा पीछा...क्यों?”
उसने घबराहट के साथ कहा मगर इधर-उधर देखकर पीछा करने वालों की तलाश नहीं की।
“मेरा ख्याल हैं कि जल्दी ही पुलिस तुम्हारे गिरेबान में हाथ डालने वाली है।”
“पुलिस...पीछा...इसका क्या मतलब हुआ?” उसने कहा—“मैंने जो पूछा, उसका तो जवाब दिया नहीं, उल्टे पुलिस और पीछा की बात करती हो...पुलिस भला मेरा पीछा क्यों कर रही है? और मुझे क्यों पकड़ेगी?”
“दो मिनट खड़े रहो...पकड़ने पर पुलिस कारण भी तुमको बता देगी।”
मैंने कहा।
“दो मिनट क्यों?” वह बोला—“मैं दस मिनट भी खड़ा रहूंगा...मगर तुम जाओ...तुम्हारा दिमाग खराब है...और मुझे तफरीह करने के लिये किसी अच्छे दिमाग वाले पार्टनर की खोज है...चलो गाड़ी आगे बढ़ाओ।”
मैं खिलखिलाकर हंस पड़ी।
“और वाकई...तुम्हारा दिमाग खराब है...पागलों की तरह बिना बात के हंसती हो।”
मैं हंसती ही रही।
चुप होते ही बोली—“तुम बड़े दिलेर आदमी हो एडम्स।”
“दिलेर...तुम्हारा क्या मतलब?” वह बोला—“तुम हंस क्यों रही हो?”
“जब मुझे कोई दिलेर आदमी मिलता है तो मैं बहुत खुश हो जाती हूं।”
“अजीब बात है...।” उसने फिर अपना सवाल दोहराना चाहा, जिसका मैंने कोई उत्तर न दिया था।
“एडम्स मैं कॉलगर्ल नहीं, बल्कि एक शरीफ परिवार की लड़की हूं।”
“हूं...फिर तो तुम भी शरीफ होगी।”
उसके कहने का अन्दाज मुझे बहुत अच्छा लगा।
क्षण भर बाद ही वह फिर बोला—
“सॉरी मिस...।”
“मेरा नाम मोना है।”
“ओह...मिस मोना। क्षमा करना। मैंने तो तुम्हें कुछ और समझ लिया था।” वह कहने लगा—“तुम शरीफ घर की लड़की हो...नि:सन्देह बहुत खूबसूरत हो... मगर अफसोस है कि तुम भी शरीफ ही होंगी।”
“कोई जरूरी नहीं।” मैंने कहा।
उसकी आँखें फटी रह गईं।
मैंने शरारत से अपनी दाईं आंख दबा दी।
उसका चेहरा खिल उठा।
निराशा की जगह विश्वास ने लिया।
“मतलब...यह है...यानि...” उसने हकलाते हुए पूछा—“तुम तफरीह में मेरी पार्टनर बन सकोगी?”
“व्हाई नॉट?”
“सच?”
“एकदम सच...।” मैंने दरवाजे के हैण्डिल पर हाथ रखा और घुमाते हुए कहा—“इसलिए कि मुझे भी तफरीह के लिए एक अच्छे साथी की तलाश है और तुम अच्छे ही साथी साबित हो सकोगे।”
दरवाजा खोल दिया।
एडम्स तुरन्त अन्दर आ गया।
वह मेरे करीब ही एकदम सटकर बैठ गया।
मुझे भला क्यों एतराज होता?
वह मुस्कुरा रहा था।
गाड़ी स्टार्ट की ही थी कि तभी एडम्स ने स्टेयरिंग पर पड़े मेरे हाथों पर हाथ रख दिया।
मैंने उसकी ओर देखा।
“क्या बात है?” मैंने पूछा।
“तुम चाहो तो मैं गाड़ी चला सकता हूं।” वह बोला—“मुझे गाड़ी चलाना आता है।”
“जरूरत पड़ी तो चला लेना।”
उसने हाथ तो हटा लिया मगर अगले ही क्षण उसका हाथ मेरे कंधों पर फैल गया।
और फिर ऐसा लगा कि वह मुझे अपनी ओर को हल्के-हल्के खींच रहा है।
मैं जरा-सी उसकी ओर झुकी।
उसे देखने के लिए मैंने मुखड़ा ऊपर उठा दिया।
उफ्....उसकी ठोड़ी से होंठ टकरा गये।
वह पहले से ही मेरे सिर पर झुक आया था।
वाकई एडम्स एक अच्छा साथी साबित हुआ था और जी चाहता था कि सारी उम्र उसके साथ गुजार दूं।
उसने झुककर मेरे होंठों से अपने होंठों को सटा दिया और उसके हाथ मेरे जिस्म के विशेष अंगों पर दौड़ गये।
आग की तरह मेरा बदन धधक उठा।
मैं इस कदर उस वक्त उसके प्यार में खो गई थी कि इंजन कब बन्द हो गया, ध्यान ही न रहा था।
“डार्लिंग तुम बहुत अच्छे हो।” मैंने कहा था।
“और तुम बहुत-बहुत अच्छी हो।”
हम दोनों खुशी से खिल उठे थे।
“कहां चलोगे?” गाड़ी धीरे-धीरे बढ़ाते हुए मैंने पूछा।
“जहां तुम चाहो...ले चलो।”
“नहीं।” मैं बोली—“जहां तुम चाहो।”
बड़ी देर तक हम दोनों फैसला ही नहीं कर पाये थे कि हम तफरीह के लिए किस जगह पहुंचें।
फिर भी गाड़ी धीरे-धीरे चलती रही।
वह मुझे देखता रहा।
मैं भी अवसर निकालकर बार-बार उसे देख लेती।
“तुम मुझे पुलिस का भय क्यों दिखा रही थी?” उसने मेरी कमर में हाथ डालते हुए पूछा।
“लुत्फ लेने के लिये।” मैं हंसकर बोली।
उसने सहसा ही मेरी कमर में गुदगुदी भर दी।
मैं छटपटा उठी!
दरअसल उसकी मीठी और मनभावनी शरारतों के कारण ही मैं गाड़ी तेज रफ्तार में नहीं चला पा रही थी।
आखिर हम लोग पहुंचे—समुन्द्र के किनारे।
इन्डोरा प्वाइंट।
यह मनोरंजन के लिए अच्छी जगह थी।
लन्दन की अधिकांश जनता इन्डोरा प्वाइंट पर ही इकट्ठी होती है।
स्वीमिंग पूल की भी अच्छी व्यव्स्था है।
बॉर काउन्टर के अलावा उस स्थल को और अधिक शोभनीय बनाने के लिए तमाम शापिंग सेन्टर भी वहां मौजूद हैं।
बैठने के लिए सार्वजनिक रूप से भी व्यवस्था है, जबकि रोमांटिक जोड़ो के लिए अनेक रमणीक स्थल भी हैं।
वहां जो झाड़ियां हैं, वे ही रोमांटिक जोड़ों के लिए वरदान हैं, जहां लोग खुलकर अपने पार्टनर को आनन्द भी प्रदान कर लेते थे।
वैसे तो बोट भी पानी की सतह पर होती है और उस पर भी अकेले-अकेले जोड़े आनन्द लूटते रहते हैं।
गाड़ी पार्क करके हमने एक-दूसरे की ओर देखा।
दोनों ही किसी मीठे क्षणों की प्रतीक्षा में थे।
मेरा हाथ उसने अपने हाथ में ले लिया और अपने जिस्म से सटाये हुए वह रेत पर चलने लगा।
रेत में भारी-भारी कदमों से चलते हुए मुझे बड़ा आनन्द आ रहा था।
एक मनपसन्द साथी का सहारा जो मिला हुआ था।
हम समुन्द्र तट पर पहुंचे।
वहां नजारा ही अनोखा था। तन-मन और रोमांटिक हो उठा। सहसा ही एक ऐसे जोड़े पर नजर पड़ी जो एकदम नि:वस्त्र होकर सफर शुरू करने की तैयारी में थे।
एडम्स ने देखा।
हम दोनों की नजर मिली और मेरे तन में बिजली-सी कौंध गई।
एक साथ झपटकर हम दोनों एक-दूसरे के जिस्म से बेताबी से लिपट गये।
मेरी सांसें तोज हो गई थीं।
उसकी धड़कनें मुझे अपने वक्ष पर महसूस हो रही थीं।
वह मेरे गले पर अपने होंठों को सटाये हुए था।
धीरे-धीरे मुखड़ा ऊपर को उठाते हुए ठुड्डी तक आया और फिर उसके होंठों ने मेरे होंठों को दबोच लिया।
मैं और भी उसके जिस्म से लिपट गई।
मैं जवान थी।
वह भी जवान था और मर्दानगी का नमूना था।
अलग होने तक हम दोनों बहुत करीब आ चुके थे। लग ही नहीं रहा था कि एडम्स अपरिचित है।
हम दोनों आगे बढ़े।
कदम आप-से-आप ही बार की ओर बढ़ चले।
“क्या शराब पीओगी?” उसने पूछा।
“अगर थोड़ी-थोड़ी गले के नीचे उतार ली जाये तो बुरा क्या है?” मैंने कहा।
“बुरा तो कुछ नहीं होगा मगर क्या यह जरूरी है कि हम बॉर में ही बैठकर पीयें?”
“कोई जरूरी नहीं है।” मैंने कहा—“बोतल लेकर हम बोट पर चलें चलेंगे या कहीं भी...।”
“बोतल तो मेरे पास है।”
“तुम्हारे पास है?” मैं रुक गई।
“हां।” कहते हुए उसने थैले में से बोतल को बाहर निकालकर मुझे दिखायी।
बोतल तो अच्छी क्वालिटी की थी।
“तो फिर चलो।” मैंने कहा।
“कहां?” उसने पूछा।
मेरा हाथ उसके ही हाथ में था।
उसकी आंखें मेरे मुखड़े पर ही थीं।
मैंने जवाब नहीं दिया, फिर भी हमारे कदम उस तरफ बढ़ चले, जिधर खाली स्टीमर खड़े थे।
विचार हम दोनों के मेल खा रहे थे।
“आओ डार्लिंग...।”
मैं झपटकर उससे पहले ही बोट पर सवार हो गई। हमारा हाथ नहीं छूटा था।
वह भी ऊपर आ गया।
“क्या तुम भी यहां के सदस्य हो?”
“हां...मैं अक्सर यहों आता रहता हूं।” वह बोला—“क्या तुम सदस्य नहीं हो?”
“मैं भी हूं।”
मैं उसके बगल में थोड़ी-सी जगह पर बैठ गई थी।
मेरा हाथ उसके कन्धे पर था और उसी पर मेरा मुखड़ा भी टिका हुआ था।
भरभराहट हुई और बोट अपनी जगह को छोड़कर आगे बढ़ चली।
हम दोनों खामोश थे मगर दिल की धड़कनें एक पल को भी खामोश नहीं हुईं।
हम समुद्र की छाती पर पानी को चीरते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे।
दूसरी तमाम बोटें भी समुद्र की सतह पर खड़ी हुई थीं।
नि:सन्देह उनमें भी रोमांटिक जोड़े मौजूद थे।
हम किनारे से दूर होते जा रहे थे।
मैं कल्पना में खो गई थी।
मुझे जरा भी सुध न थी।
मेरी पलकें उस वक्त खुलीं, जब एडम्स की सांसें मेरे गालों पर किसी रोयेंदार छोटे कीड़े की तरह रेंगती सी महसूस हुई। बोट रूक चुकी थी।
मैं इधर-उधर देखती कि इसके पहले एडम्स मेरे होंठों और पलकों को इत्मीनान के साथ किस करने में व्यस्त हो गया।
मुक्ति मिलने पर मैंने नजरें दौड़ायीं।
आस-पास हमें देखने के लिए कोई नहीं था।
मैं एडम्स को देख रही थी।
और एडम्स मुझे देख रहा था।
ड्राइविंग सीट पर से उठकर एडम्स मेरे साथ बिस्तरनुमा सोफे की तरफ आ गया।
इन बोटों पर यह सोफे कुछ इसी उद्देश्य से लगाये गये हैं, ताकि हम जैसे जवान दिल इत्मीनान से अपने सुखद क्षणों को भोग सकें।
यह रंग-बिरंगा सोफा सेट होता है।
देखने में किसी राजा-महाराजा के सिंहासन जैसा प्रतीत होता है।
मगर उस पर एक जोड़ा बड़े आराम से आनन्द भी ले सकता है।
वह सोफे पर जा बैठा।
मैं उसके सामने खड़ी थी।
वह बोतल निकाल रहा था।
तभी सहसा समुद्र की किसी तेज और बड़ी लहर ने कोलाहल-सा मचा दिया।
ऐसा लगा मानो भूकम्प आ गया हो।
बोट उलटते-उलटते बची थी।
मगर तेज झटके के कारण मैं किसी रबड़ की गेंद की तरह उड़कर एडम्स की गोद में आ गिरी।
लहर पार हो गई थी।
बोट धीरे-धीरे अब भी हिल रही थी।
और एडम्स हंसते हुए मेरे वक्ष पर बांहों का कसाव क्षण-प्रतिक्षण बढ़ाता जा रहा था।
मैं मीठी-मीठी पीड़ा से सिसियाने लगी थी।
फिर भी चाहती थी कि एडम्स इसी भांति मेरे जिस्म को पकड़े रहे...।
सारी उम्र...बल्कि अनेक जन्मों तक...।
परन्तु...!
ऐसा कहां हो सकता था?
उसने मेरे कपोलों को किस करने के बाद पकड़ ढीली कर दी और मुझे छोड़ दिया।
“तुम बड़े शरारती हो...।” मैंने अदा दिखाई।
“क्या हुआ डार्लिंग?”
“औरत को क्या पत्थर समझते हो?”
“बिल्कुल नहीं।”
“फिर इतनी तेज क्यों दबाया?” मैंने कहा—“अगर हड्डियां टूट जाती तो?”
“मैं जोड़ना भी जानता हूं।”
उसके जवाब को सुनकर मैं उछली और शरारती ढंग से मैंने उसके गालों को नोंच लिया।
“हाय—छोड़ो।” वह कराह उठा।
वह गालों को सहलाने लगा।
मैंने बोतल उठा ली।
“गिलास तो ले आना था।” मैंने कहा—“क्या नीट पिलाओगे?”
“अरे हां...भूल गया।” वह बोला—“मैं तो वैसे नीट ही लेना पसन्द करता हूं मगर तुम्हारे लिये तो...।”
“फिर तो चिन्ता नहीं।” मैंने कहा—“नीट ही मैं भी लूंगी।” और मैंने बोतल का कॉर्क उड़ा दिया।
“लो...शुरु करो।”
मैंने उसके मुंह की तरफ बढ़ाया।
“नहीं डार्लिंग...पहले तुम ही लो।”
“पहले तुम...।”
पहले तुम-पहले तुम करते-करते ही बोतल हाथ से छूट गई। गनीमत यह रही कि वह फूटी नहीं।
एडम्स ने झुककर बोतल उठाई।
उसका मुंह साफ किया और मेरी गर्दन पर बांह रखकर मुझे झुकाते हुए बोतल का मुंह मेरे मुंह से लगा दिया।
“पहले तुम पिओ...।” वह बोला—“तुम्हारे होंठों से झूठी की हुई बोतल मेरे होंठों को अच्छा स्वाद देगी।”
मैं हार गई।
पहले मुझे ही घूंट लेना पड़ा।
मनपसन्द और अच्छा साथी हो, जिसे मेरा मन प्यार करने लगे तो उसका कहना मानने में मुझे खुशी होती है।
प्यार...।
यहां प्यार शब्द के बारे में मैं एक बात और बता दूं—वह यह कि प्यार मैंने जाने कितने साथियों को किया, मगर तब ही तक जब तक उसके करीब रही। उससे अलग होते ही मैं भूल जाती हूं कि किसी को प्यार किया था।
मैं किसी से शादी भी नहीं कर सकती।
सेक्स इन्टरनेशनल की सदस्या होने के नाते मेरे जीवन के साथ ऐसे प्रतिबन्ध हैं।
और जीते जी इस संस्था की नौकरी भी नहीं छोड़ सकती। अब तो मरना यहीं और जीना भी यहीं।
यही है मेरी जिन्दगी।
इसके अलावा जो मेरी दूसरी जिन्दगी है, वह सदैव मौत के सामने होती है।
बड़े-बड़े ऑपरेशनों पर मुझे खूंखार अपराधियों से टक्कर लेनी पड़ती है।
जाने कितनी गोलियां मौत बनकर मेरे बहुत ही करीब से गुजर जाती हैं।
यह तो मेरा भाग्य ही है कि अभी तक मौत भी मुझसे हारी हुई है...।
वरना...!
अब तक मैं खत्म हो चुकी होती...मोना चुंग का नामोनिशान मिट चुका होता।
भला ऐसी लड़की एक गृहस्थ जीवन बिताने का अवसर कहां निकाल सकती है।
जबकि मुझे मौत से लड़ने का जरा भी गम नहीं।
अब तो मुझे मजा आता है।
जितनी ही भयानक मौत मेरे साथ टकराती है, उतना ही अधिक मुझे आनन्द आता है।
सच तो यह है कि अब मुझे स्वयं को ही दूसरा जीवन शायद ही पसन्द आए।
क्योंकि गोली-बारुद के धुओं की खुशबू यदि बहुत दिनों तक नहीं मिलती तो मैं विकल हो उठती हूं।
वही जिन्दगी है...वही सब अच्छा लगता है।
यह तो मौज-मस्ती कभी-कभी की है।
आखिर हूं तो औरत ही।
भला कौन-सी औरत है जो पुरुष की समीपता पाने की कामना नहीं रखती है।
यही तो कारण है कि आज मैं एडम्स के साथ तफरीह पर हूं।
मैंने बोतल से होंठों को लगाया और खुद ही बोतल को भी संभाल लिया।
और घूंट-घूंट करके तीन घूंट शराब गले के नीचे उतारकर बोतल मुंह से हटा ली।
शराब बहुत ही अच्छी थी।
मजा आ गया।
नि:सन्देह एडम्स किसी अच्छे परिवार का लड़का होगा, जो अपनी मौज-मस्ती के लिये बड़ी-से-बड़ी कीमत खर्च करता होगा।
एडम्स ने पहले बोतल के मुंह को देखा।
फिर मेरे चेहरे को...।
उसके बाद उसने बोतल के मुंह को चूम लिया।
नजर मिलते ही मैं मुस्करा पड़ी।
मेरी मुस्कान से ही प्रेरित होकर एडम्स ने भी तीन घूंट गले के नीचे उतारे।
एडम्स का चेहरा देखने से प्रतीत हो रहा था कि उसके लिये नीट लेना कुछ भारी पड़ा है।
क्षण भर के लिए वह शान्त हो गया था।
और मेरी तो नीट पीने की आदत है।
मैं अक्सर नीट ही लिया करती हूं—चाहें शराब कितनी ही तेज क्यों न हो।
जल्दी ही एडम्स सम्भल गया।
वह मुस्कुराया।
मैंने उसके हाथ से बोतल लेकर दो घूंट और हलक के नीचे उतारे और एक किनारे पर रख दी।
एडम्स की बांहें मेरी ओर बढ़ीं।
मैं उसी पल का तो इन्जार कर रही थी।
मगर तभी...सहसा मुझे न सिर्फ चौंक जाना पड़ा, बल्कि तुरन्त सावधान होना पड़ा।
किनारे से गोली चलने की आवाज मेरे कानों में आ पहुंची थी, जिसे मैं कतई भ्रम नहीं कह सकती।
मेरा ध्यान एडम्स की ओर से हट गया।
मेरी आंखें किनारे की ओर टिक गयीं।
परन्तु...!
किनारे से लगभग आधा फलिंग दूर थी मैं।
“एडम्स!” मैंने आवाज दी।
“यस डार्लिंग।” वह बोला।
उसने मुझे पकड़ने को कोशिश की।
मैं झट उठ खड़ी हुई।
"क्या बात डॉर्लिंग?”
“बोट वापिस ले चलो एडम्स।”
“कहाँ?” उसने पूछा।
“किनारे...।”
“क्यों?” एडम्स ने मेरा हाथ थाम लिया।
मैंने उसकी ओर देखा।
“पहले मैं जो कहती हूं, वह करो।”
“ओह नो डार्लिंग...हम यहां से यूं ही वापिस लौट चलें, ऐसा कैसे हो सकता है?"
“ऐसा ही होगा।”
“आखिर बात क्या है?"
“बहुत जरूरी बात है।”
“मैं भी तो सुनूं।” उसने कहा।
तभी—
धांय...!
एक फायर और हुआ।
मेरी नजर फिर किनारे की ओर चली गई।
“मोना डार्लिंग...।”
"सुन नहीं तुमने?"
"क्या?"
"गोली चलने की आवाज!"
“गोली?” वह भी चौंका। उसका ध्यान कहीं और ही था, इसीलिये वह आवाज नहीं सुन सका था।
“सुनते हो...जल्दी करो।”
"क्या वाकई वहां गोली चली है?"
"हां। और भी चल सकती हैं?"
"अजीब बात है।"
"जो भी बात हो…स्टीमर स्टार्ट करो...फौरन।"
एडम्स कसमसाया! उसकी जरा भी इच्छा नहीं थी तफरीह किये बिना किनारे की ओर लौट पड़े।
"एडम्स...सुना नहीं तुमने? चलो।"
“मुझे क्या एतराज, मगर...!"
“हम थोड़ी देर बाद फिर तफरीह पर आयेंगे।” मैंने कहा—"इस वक्त किनारे पर चलो।"
"क्यों मूड खराब करती हो डार्लिंग?"
“अब तो खराब हो ही चुका है…चलो।”
“मगर वहां हम दोनों चलकर क्या करेंगे, जहां गोलियाँ चल रही हैं?"
एडम्स बुजदिल साबित होने लगा।
स्वाभाविक भी था।
एक शरीफ युवक झगड़ों के मध्य क्यों जाने लगा?
“तुम्हारा न सही, मगर मेरा वहाँ जाना बेहद जरूरी है।” मैंने कहा।
वह अब मेरा मुंह ताक रहा था।
“देर मत करो।” मैंने खीझकर कहा !
"वहां खतरा होगा मोना !"
“खतरों से मैं नहीं डरती।” मैंने कहा—“खतरों से खेलना मेरी हॉबी है एडम्स।”
“ओह…न जाने किस मूर्ख ने गोली चलाकर हमारा सारा मजा किरकिरा कर दिया।” वह बड़बड़ाया।
उसे ड्राइविंग सीट की ओर बढ़ने से हिचकते देख मैं खुद ही तेजी से बढ़ चली।
तब तक मैं सीट पर बैठ चुकी थी !
“ठहरो, मैं आता हूँ।” एडम्स मेरे पीछे झपटा। “
“चलो हटो, मुझे हो आने दो।”
मैंने उसकी एक न सुनी। इन्जन स्टार्ट कर दिया...।
अगले ही क्षण मोटर बोट किनारे की ओर भाग पड़ी। एडम्स खुद भी किनारे की ओर नजर जमाये खड़ा था। किनारे पर हलचल बढ़ चुकी थी। एडम्स खामोश था।
जरुर उसे मुझ जैसी हसीना के साथ आनन्द न लूट पाने का अफसोस हो रहा था।
मैं निश्चित रूप से कह भी नहीं सकती थी कि थोड़ी देर बाद हम फिर निश्चिन्त हो जायेंगे।
क्या पता कि मैं अभी उसका साथ फिर से दे भी पाऊंगीं या नहीं। एडम्स का साथ छूटने का अफसोस तो मुझे भी था।
परन्तु!
इस वक्त मैं सिर्फ किनारे पर चलो गोली के बारे में सोच रही थी।
गोली किसने चलाई है?
क्यों चलाई?
किस पर चलाई?
क्या किसी का प्राणान्त भी हो गया?
किनारा अब अधिक दूर नहीं था।
“एडम्स....!”
“यस डार्लिंग।”
“चिन्ता न करो...तुम बोट सम्भालो।” मैने कहा—“अगर खतरा नजर आए तो तुम बोट लेकर किनारे से दूर भाग जाना।”
“और तुम?”
“मैं...मेरा कुछ पता नहीं।” मैं बोली—“मुझे संघर्ष भी करना पड़ सकता है।”
“मगर तुम एक कमसिन लड़की भला..."
“तुम्हारा कहना ठीक है परन्तु...।
मैंने बात अधूरी छोड़ दी।
बोट किनारे लगने वाली थी...।
मैं उसे बता भी तो नहीं सकती थी कि सेक्स इन्टरनेश्नल ईगल की मैं एजेन्ट हूँ।
जासूस लोग अपनी कार्य प्रणाली को गुप्त ही रखते हैं।
उसे कैसे बता सकती थी कि मैं कमसिन लड़की ही नहीं, आफत की परकाली भी हूँ।
मैं उसकी जानकारी में यह नहीं आने दे सकती थी कि गैंग तो गैंग...पूरी फौज की फौज मैं चुटकियों में साफ करने की क्षमता रखती हूँ।
“ठहरो, मैं भी तुम्हारे साथ चलता हूँ।”
“नहीं। तुम यहीं रहोगे।” मैंने उसे मना कर दिया।
मैं समझ गई कि वह मुझ जैसी लड़की की दिलेरी देखकर ही जोश में आया था।
परन्तु...!
परिणाम बुरा हो सकता था। “वह सीधा-सादा युवक अपराधियों द्वारा मात खा जायेगा
...मेरी बात और थी।
वह बड़ी मुश्किल से माना।
“हो सकता है..." मैंने कहा—“मुझे सहायता की जरूरत पड़े तो मैं बोट पर भाग आऊंगी। तुम्हें यहां एकदम तैयार रहना चाहिये।”
“मगर तुम्हें वहाँ जाने की जरूरत ही क्या है?" वह खीजकर होंठों में ही बुदबुदाया।
मैंने जैसे सुना ही नहीं।
बोट पर से उछली…सीढ़ियों पर पहुँची।
एक नजर फैले मैदान में दौड़ाई।
हलचल बहुत तेज थी।
लोग बॉर काउन्टर से कुछ दूरी पर जमा हो गये थे...और लोग भी उसी भीड़ की ओर बढ़ रहे थे।
मैं एक ही छलांग में रेत पर आ गई।
दो-चार कदम आगे बढ़ते हो मैं समझ गई।
बॉर काउन्टर के पास जमा भीड़ हकबकाई नजरों से उस ओर देख रही थी, जिधर दो व्यक्ति सरपट भागे जा रहे थे।
उन दोनों के हाथों में गन थीमहीं था कि मरने वालों के बारे में कुछ पता लगाती।
मेरा कर्तव्य था कि मैं भागने वालों का पीछा करूं।”
परन्तु...!
मगर वे दोनों अपराधी जिस ओर भागते जा रहे थे, वह आम रास्ता नहीं था।
अलबत्ता इधर तफरीह करने मैं आती रहती हूँ, इसलिये इतनी जानकारी है कि वे समुद्र के किनारे फैले मैदान से निकलकर ऐसी जगह पहुँचेंगे, जहां यातायात के लिये सड़क की सुविधा उपलब्ध है।
परन्तु...!
इन्डोरा प्वांइट तक आने के लिये वही रास्ता आम और अधिक्युक्त है, जहां मैंने कार पार्क की थी।
निःसन्देह वे दोनों कुछ प्रोग्राम निश्चित करके ही आए थे।
इसलिये वे गोलियां चलाने के बाद उस रास्ते पर भाग रहे थे।
जरूर उनकी कारें आदि वहां खड़ी होंगी।
मेरा मस्तिष्क तेजी से काम कर रहा था।
मैंने उनके पीछे भागने के बजाय अपनी कार की ओर तेजी से कदम बढ़ा दिया।
मुझे मालूम है कि मैं अपनी कार से उनके रास्ते तक पहुँच सकती हूँ।
अब यह मेरी दौड़ पर निर्भर था कि उनके भाग निकलने से पहले मेरी कार उनके रास्ते में पहुँचकर रास्ता रोक चुकी हो।
अब यही काम मेरे सामने था।
मेरे कदम तेज हो चले।
मैंने पीछे पलटकर एक नजर भी नहीं देखा।
एडम्स को मैं भूल चुकी थी।
जबकि एडम्स भी बोट से उतरकर मेरे पीछे भागता आ रहा था।
समुद्र तट का मैदानी क्षेत्र पार करके मैं अपनी कार तक पहुँची।
कुछ सेकेण्ड बाद ही मैंने गाड़ी बाहर निकाल ली थी और सड़क पर दौड़ा दी थी।
मुझे एक वार ऐसा लगा था कि एडम्स ने मेरा नाम लेकर पुकारा भी था।
परन्तु—
मेरे पास वक्त कम था, और काम ज्यादा।
मैंने अपनी कार को पूरी गति दे दी थी।
मन-ही-मन मैं कामना कर रही थी कि वे दोनों निकलने न पायें, तभी मैं उनके रास्ते में पहुँचकर रोड़ा बन चुकी होऊ”।
कुछ दूर जाते ही मैंने व्यू मिरर में देखा।
मेरे पीछे एक गाड़ी लग चुकी थी।
सोचा—क्या पता गाड़ी एडम्स ही किसी की कार लेकर मेरी सहायता के लिये भागा आ रहा हो।
बाद में मेरा यही अनुमान सत्य निकला।
वह एडम्स ही था।
फिर भी मेरे लिये रहस्य तो बना हो हुआ था।
क्या पता—कोई दुश्मन का ही आदमी हो?
तीन मिनट मुझे उस रास्ते पर पहुँचने में लगे जिधर से उन दोनों अपराधियों के निकलने का रास्ता था...वे कहीं दिखाई नहीं पड़े।
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