बिन ब्याही विधवा : Bin Biyahi Vidhwa by Sunil Prabhakar
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Description
देश की उस बेटी की दिल को छू लेने वाली, आत्मा को झकझोरकर रख देने वाली मर्मस्पर्शी दास्तान—जो अपने प्यार में पड़कर अपना जिस्म अपने प्रेमी को सौंप चुकी थी। एक हैवान ने उसे उनके अन्तरंग पलों की वीडियों के दम पर ब्लैकमेल किया। वो कमजोर पड़ गयी।
मगर...।
जब उसे पता चला—मामला देश की सुरक्षा का था—तो वो मजबूर हिरनी से घायल शेरनी बन गई। मौहब्बत को खोकर कुंवारी होकर भी खुद को विधवा का दर्जा दिया और कलाईयों की चूड़ियां तोड़कर उनमें हथियार उठा लिये।
रिश्ते बनते और बिगड़ते हैं - परन्तु कुछ इन्सान अपने पीछे छोड़ जाते हैं - आंसू, कसक और बलिदान का वह कर्ज, जो कभी चुकाया नहीं जा सकता।
पछतावा, अफसोस और घुटन के बीच भटकते इन्सानों की व्यथा-गाथा
बिन ब्याही विधवा : Bin Biyahi Vidhwa
Sunil Prabhakar सुनील प्रभाकर
Ravi Pocket Books
BookMadaari
प्रस्तुत उपन्यास के सभी पात्र एवं घटनायें काल्पनिक हैं। किसी जीवित अथवा मृत व्यक्ति से इनका कतई कोई सम्बन्ध नहीं है। समानता संयोग से हो सकती है। उपन्यास का उद्देश्य मात्र मनोरंजन है। प्रस्तुत उपन्यास में दिए गए हिंसक दृश्यों, धूम्रपान, मधपान अथवा किसी अन्य मादक पदार्थों के सेवन का प्रकाशक या लेखक कत्तई समर्थन नहीं करते। इस प्रकार के दृश्य पाठकों को इन कृत्यों को प्रेरित करने के लिए नहीं बल्कि कथानक को वास्तविक रूप में दर्शाने के लिए दिए गए हैं। पाठकों से अनुरोध है की इन कृत्यों वे दुर्व्यसनों को दूर ही रखें। यह उपन्यास मात्र 18 + की आयु के लिए ही प्रकाशित किया गया है। उपन्यासब आगे पड़ने से पाठक अपनी सहमति दर्ज कर रहा है की वह 18 + है।
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बिन ब्याही विधवा
सुनील प्रभाकर
गुम्बदनुमा हॉल की छत के बीचों-बीच लटका विशाल फानूस बुझ गया, फलस्वरूप हॉल की चमकती दीवारें तथा सुर्ख कालीन से ढका फर्श गहन अन्धकार में खो गए।
हाथ को हाथ सुझाई न देने वाले उस अन्धकार में, राष्ट्र की तीन उच्चतम हस्तियों की सांसें बेहद सस्पेंस-फुल अन्दाज में पहले से ही व्याप्त पिनड्राप साइलैंस के कलेजे पर सरसराने लगीं।
भारत के माननीय प्रधान मन्त्री।
भारत के माननीय रक्षा मन्त्री।
भारत के माननीय नौ सेनाध्यक्ष।
राष्ट्र की उपरोक्त उच्चतम हस्तियों ने अपनी-अपनी कुर्सी पर पहलू बदलते हुए, अन्धेरे की परत को चीरकर उस मन्च की तरफ देखने का प्रयास किया, जो उनसे करीब बीस फुट की दूरी पर हॉल की सामने वाली दीवार के साथ बनाया हुआ था। हॉल में छाये गहन अन्धकार की वजह से उन्हें मन्च नजर नहीं आया। अपनी जिज्ञासा पर काबू किये देश के कर्णधारों की खामोश नजरें सामने के अन्धेरे को टटोलती रहीं।
अचानक!
सामने हॉल की दीवार के साथ बनाये गए मन्च पर हल्की नीली रोशनी इस अन्दाज में स्थिर होकर रह गई कि मन्च के अलावा हॉल में चाहकर भी कुछ न दीख सके।
सर्व श्री माननीय प्रधान मन्त्री, माननीय रक्षा मन्त्री तथा माननीय नौ सेनाध्यक्ष की नजरों का फोकस पूरे मन्च को अपने दायरे में लेकर स्थिर हो चुका था। नजरों की स्थिरता उस जिज्ञासा का रूप थी, जो भारत की रक्षा प्रणाली को विश्व के अन्दर एक नया आयाम देने की खुशी एवं हैरतभरी परिभाषा रखती थी। हैरतभरी खुशी एक सपना था, जिसे प्रयोग के रूप में देखने के बाद ही देश की सुप्रीम पावर हकीकत का जामा पहनाने के लिए वचनबद्ध थे। तकनीक के नाम पर, पश्चिमी देश हमारे राष्ट्र को बेहद बोदा समझकर, जो दबाव कायम रखना चाहते हैं, उसी दबाव की ऐसी काट तैयार करने का दावा किया था वैज्ञानिक सी० पी० अलेक्जेण्डर ने, जो राष्ट्र की उपरोक्त उच्चतम हस्तियों के लिए एक सपना ही तो था। डॉक्टर सी० पी० अलेक्जेण्डर ने जिस रिसर्च का दावा किया था, उसी को प्रयोग के रूप में देखने के लिए माननीय प्रधान मन्त्री, माननीय रक्षा मन्त्री तथा माननीय नौ सेनाध्यक्ष गुप्त रूप से मुम्बई में स्थित नौसेना मुख्यालय की इमारत से जुड़े रिसर्च सेन्टर के एक्सपेरिमेन्ट हॉल में उपस्थित हुए थे।
डॉक्टर सी० पी० अलेक्जेण्डर की रिसर्च को बेहद सीक्रेट रखा गया था।
राष्ट्र की माननीय हस्तियों के हॉल के वक्त को गुप्त रखा गया था। सरकारी और गैर सरकारी तौर पर प्रधान मन्त्री एवं रक्षा मन्त्री की इस गुप्त योजना को जलसेना के उच्च अफसरों से औपचारिक मुलाकात जाहिर कराया गया था। हल्की सरसराहट की आवाज पर तीनों माननीय हस्तियों की आंखें मन्च के पीछे पैदा हुए दरवाजे पर पहुंचकर रुक गईं। वह दरवाजा शायद किसी राहदारी का था, जिसके भीतर से एक विशाल बड़ा ग्लास टैंक, ट्रॉली पर लादे चार व्यक्ति मन्च पर पहुंचे। उन्होंने बेहद सावधानी के साथ कांच के विशाल टैंक को मंच के बीचों-बीच टिका दिया।
अगले क्षण!
वे चारों खाली ट्रॉली को ठेलते हुए दरवाजे से वापिस राहदारी में गुम हो गए। उनके गुम होने के तुरन्त बाद एक व्यक्ति रबड़ की ट्यूब खींचता हुआ मन्च पर पहुंचा। वह रबर की ट्यूब का सिरा ग्लास टैंक में डालकर दरवाजे से बाहर निकल गया। रबड़ की ट्यूब से पानी की धार टैंक के पैंदे पर गिरने लगी थी। नीला स्वच्छ जल टैंक में भरता जा रहा था।
ठीक तभी!
दो व्यक्ति एक ट्रॉली पर एक विशाल नौसैनिक बेड़े का मॉडल सजाये हुए मन्च पर पहुंचे। अपने को चौधरी समझने वाले राष्ट्र के नौसैनिक बेड़े के मॉडल को माननीय हस्तियों की नजरें स्पष्ट रूप से देख रही थीं। वह नौसैनिक बेड़ा जो विश्व में अजेय समझा जाता था। वह बेड़ा जिस पर सागर से धरती पर मार करनेवाली खतरनाक तारपीडो एवं मिसाइलें सजी हुई थीं। उस युद्ध-पोत के एक हिस्से में एक विशाल रन-वे भी दर्शाया गया था, जिस पर अत्याधुनिक बेमिसाल मारक क्षमतावाले लड़ाकू विमान लैण्ड कर सकते थे। इस नौसैनिक बेड़े पर जलसेना की ताकत के साथ-साथ वायुसेना अर्थात् लड़ाकू विमानों की ताकत का मिला-जुला प्रदर्शन था, जिसकी काट अभी तक किसी भी राष्ट्र के पास नहीं थी।
राष्ट्र के माननीय उच्चतम पदाधिकारियों की आंखों में इसी बेड़े को देखते हुए बेचैनी झांकने लगी। हिन्द महासागर की सुरक्षा के लिए यह बेड़ा घोर अभिशाप था।
ग्लास टैंक में जलस्तर बढ़ता ही जा रहा था। करीब सात फुट ऊंचा, तथा इतना ही चौड़ा-लम्बा वर्गाकार टैंक में उठता जलस्तर पानी की गिरती मोटी धार के साथ क्षण-प्रतिक्षण बढ़ता ही जा रहा था।
मन्च पर पहुंचे तीन आदमियों ने बेहद सावधानी के साथ, नौसैनिक बेडे के मॉडल को उठाकर टैंक में उठते जलस्तर पर छोड़ दिया। नौसैनिक बेड़ा अब टैंक के पानी पर इस तरह तैरता नजर आ रहा था जैसे हकीकत रूप में वह सागर की लहरों पर तैर रहा हो। जैसे-जैसे जलस्तर बढ़ रहा था, वैसे-वैसे ही बेड़ा ऊपर उठ रहा था। मॉडल रूपी नौसैनिक बेड़े के पीछे बुलबुले नजर आने लगे थे। वे बुलबुले मॉडल के प्रोपलर से पैदा हो रहे थे। नौसैनिक बेड़ा अब अपनी ताकत पर टैंक के पानी के ऊपर इधर से उधर चक्कर काट रहा था। टैंक में जलस्तर करीब पांच फुट ऊपर आ चुका था।
उसी वक्त दो व्यक्ति खाली ट्रॉली लेकर राहदारी में मुड़े। तीसरा व्यक्ति रबड़ का पाइप टैंक से निकालकर उसे खींचता हुआ ट्रॉली ले जाते व्यक्तियों के पीछे-पीछे राहदारी में गुम हो गया।
डायस पर पानी से भरे ग्लास टैंक में नौसैनिक बेड़ा चारों तरफ घूम रहा था।
उस बेड़े की असीम ताकत को महसूस करके तीनों महान हस्तियां अन्दर ही अन्दर बेचैनी महसूस कर रही थीं।
ठीक तभी!
तीनों की नजरें मन्च पर पहुंचे उस व्यक्ति पर पहुंचीं, जिसकी उम्र कम-से-कम पचास साल रही होगी। उस व्यक्ति के सुर्ख चेहरे पर सफेद दाढ़ी थी। उसकी आंखों पर चश्मा था। सिर पर भी सफेद बाल थे, जिनके बीच उसकी सुर्ख चांद नजर आ रही थी। उसके जिस्म पर कीमती सूट था। सूट के ऊपर वह नीले रंग का एप्रीन पहने हुए था।
वह था महान वैज्ञानिक डॉ० सी० पी० अलेक्जेण्डर। डॉ० सी० पी० अलेक्जेण्डर ने अन्धेरे में ही बैठी राष्ट्र की उच्चतम हस्तियों की तरफ मुस्कराकर सिर नवाया। अगले पल वह गम्भीर मुद्रा में उस ग्लास टैंक की तरफ घूम गया, जिसके पानी पर शक्तिशाली राष्ट्र का नौसैनिक बेड़ा विचर रहा था। प्रोफेसर सी० पी० अलेक्जेण्डर गम्भीर मुद्रा में नौसैनिक बेड़े के मॉडल को देखने लगा तो आहट पाकर वह पलटा।
उसके पीछे मन्च पर स्टूल साइज की ट्रॉली लिए उसके दो सहायक पहुंच चुके थे।
सभी की नजरें ट्रॉली पर ठहर गईं। ट्रॉली के ऊपर मखमल से ढकी एक ट्रे में एक विशाल कछुवे की शक्लवाला मॉडल रखा था।
डॉक्टर अलेक्जेण्डर ने उस कछुवे जैसे मॉडल को अपने हाथों में उठाकर अन्धेरे में बैठी उन तीन हस्तियों की तरफ उन्मुख होकर कहना शुरू किया—"माननीय पी० एम०, माननीय डिफेंस मिनिस्टर, एवं माननीय नेवी कमाण्डर के समक्ष, मैं अपनी उपलब्धि को जाहिर करता हुआ बेहद खुशी महसूस कर रहा हूं। मेरी इन्वेन्शन, मेरे महान देश की ताकत बनेगी। यह मेरा दृढ़ विश्वास है, जिसके आधार पर मैं जीवनपर्यन्त अथक मेहनत करने के लिए दृढ़ संकल्प लिए हूं। मेरे हाथों में आप जो कछुवे जैसा मॉडल देख रहे हैं, यह मॉडल टारटायन्त्र सबमैरीन का है। यह पनडुब्बी है, जिसे मैंने टारटायन्त्र सबमैरीन नाम दिया है। यह आणविक पनडुब्बी है, जिसकी कल्पना पर मैं बरसों पागलों की तरह काम करता हुआ, सफलता के नजदीक पहुंचा हूं। मेरी रिसर्च प्रयोगशाला की हदों में सफलता के झण्डे गाड़ चुकी है। लाखों रुपया, कड़ी मेहनत तथा लम्बे वक्त को जाया करके, मैंने अपने प्रयोग की सफलता पर आपको आमन्त्रित किया है। मुझे विश्वास है कि आप मेरी रिसर्च को भारत की असीम ताकत बनाने के लिए हरसम्भव कोशिश करेंगे। आज के वक्त में हमारा राष्ट्र आर्थिक मुद्दे पर बेचारा साबित हो रहा है। हमारे राष्ट्र का आर्थिक ढांचा चरमरा रहा है। हमारा राष्ट्र गरीब है लेकिन फिर भी दुनिया के शक्तिशाली राष्ट्रों की आंखों की किरकिसी बना हुआ है। भारत पर आर्थिक प्रतिबन्ध लगाये जा रहे हैं। हमारे राष्ट्र को सक्षम राष्ट्रों से आयात होने वाली टैक्नोलॉजी से वंचित रखने के पूरे प्रयास किये जा रहे हैं, ताकि हम मजबूत न बन सकें। हमारा सामाजिक महत्त्व विश्व में अपना स्थान रखता है, जिसे गिराने के भरपूर प्रयास किये जा रहे हैं, उस राष्ट्र की तरफ से जो दुनिया के भविष्य को अपनी मुट्ठी में कैद कर लेना चाहता है। मेरे ब्रेन में उठती रिसर्च की लहरों के पीछे मेरी देशभक्त भावना का दबाव रहा है। मैं अपने देश से प्यार करता हूं। मैं चाहता हूं कि हमारे राष्ट्र को ताकत के बल पर कोई न झुका सके। मेरी देशभक्ति, मेरी मेहनत का रूप है मेरी रिसर्च की यह आणविक पनडुब्बी, जिसका मैं मॉडल तैयार करने में फख्र महसूस कर रहा हूं।"
प्रोफेसर सी० पी० अलेक्जेण्डर अपने हाथों में थमे मॉडल को लिए टैंक के करीब पहुंच गया।
अगले पल!
उसने मॉडल को टैंक में डाल दिया। पनडुब्बी का मॉडल मृत कछुवे की भांति पलटी खाता हुआ पारदर्शी कांच वाले टैंक की तली से जा लगा। नीले जल में वह मॉडल टैंक के पैंदे के बीचों-बीच पड़ा था।
प्रोफेसर सी० पी० अलेक्जेण्डर टैंक से पीछे हट चुका था। वह दीवार के करीब पहुंचा।
ठीक तभी!
एक व्यक्ति एक ट्रॉली खींचता हुआ वहां पहुंचा। ट्रॉली के ऊपर एक बक्से जैसा कुछ था, जिस पर कवर चढ़ा हुआ था। व्यक्ति वापस जा चुका था।
डॉ० अलेक्जेण्डर ने कवर उतारा तो बक्सा नजर आनेवाला टी० वी० की भांति का इन्स्ट्रूमेन्ट नजर आ रहा था। यह अलग बात थी कि वह टी० वी० न होकर, आणविक पनडुब्बी का रिमोट कन्ट्रोलर था।
"यह विश्व की सबसे पहली आणविक पनडुब्बी होगी, जिसे रिमोट कन्ट्रोलर द्वारा चलाया जा सकेगा।" डॉ० सी० पी० अलेक्जेण्डर के स्वर में जोश झलक रहा था—"इस पनडुब्बी को हम अपने मुख्यालय से ही ऑपरेट कर सकेंगे। यह देखिये...!"
और फिर!
डॉ० सी० पी० अलेक्जेण्डर ने टी० वी० नजर आते आणविक पनडुब्बी के रिमोट कन्ट्रोलर के पैनल पर लगे विभिन्न रंगों के बटनों में से हरे रंग का एक बटन दबा दिया।
हैरत में डूबी उच्च पदाधिकारियों की नजरें, कन्ट्रोलर के स्क्रीन पर रुक गईं। स्क्रीन पर पानी नजर आ रहा था। पानी के बीच टैंक की तली पर पड़ी पनडुब्बी का मॉडल भी स्क्रीन पर स्पष्ट दिखलायी पड़ रहा था।
डॉ० सी० पी० अलेक्जेण्डर ने दूसरा बटन दबाया तो कछुवे जैसी पनडुब्बी अपने स्थान से हिलकर ऊपर उठती हुई पानी में चक्कर लगाने लगी। टैंक में जिस तरह मॉडल पानी के भीतर तैर रहा था, ठीक उसी तरह वह रिमोट कन्ट्रोलर से स्क्रीन पर नजर आ रहा था। आणविक पनडुब्बी का मॉडल आहिस्ता-आहिस्ता टैंक के पानी में चक्कर लगा रहा था। नौसैनिक बेड़ा अपनी पहली स्थिति में बराबर पानी के ऊपर तैर रहा था।
"यह दुनिया की पहली पनडुब्बी होगी, जो अभी तक महासागर की अतल गहराईयों तक उतर सकती है। अभी तक सागर की गहराईयों में ज्यादा-से-ज्यादा डेढ़ हजार फुट तक आणविक पनडुब्बी उतर सकती है। टारटायंत्र आणविक पनडुब्बी बीस लाख टन से भी ज्यादा दबाव सहन करने में सक्षम होगी। अब तक की उच्च तकनीक वाली तमाम पनडुब्बियां से कई नॉट ज्यादा स्पीड के साथ टारटायंत्र सबमैरीन पानी में चल सकेंगी। यह देखिये...!"
और फिर!
डॉ० सी०पी० अलेक्जेण्डर ने एक नॉब को घुमाया। स्क्रीन पर टैंक के पानी के ऊपर तैरता नौसैनिक बेड़ा नजर आने लगा।
"दुश्मन का नौसैनिक बेड़ा अब हमारी आणविक पनडुब्बी की आंखों के सामने है। नौसैनिक बेड़ा नहीं जानता कि सागर की अतल गहराईयों में उसके पेट के नीचे हमारी आणविक पनडुब्बी मौजूद है। हमारी पनडुब्बी में दर्जनों ट्यूब होंगी। हर ट्यूब में शक्तिशाली तारपीडो सैट होंगे। हमारी आणविक पनडुब्बी में लगे कम्प्यूटर द्वारा हमें दुश्मन के नौसैनिक बेड़े की गति तथा दूरी कोड मशीन पर मिल जायेगी। हमें अब अपने टारगेट की तरफ देखना है। मैं आप महान लोगों का ज्यादा वक्त जाया नहीं कर सकता। टारटायंत्र सबमैरीन की तमाम तकनीकी जानकारियां मैं एक फाईल में जमा कर चुका हूं। उस फाईल में टारटायंत्र सबमैरीन की तकनीक तथा उस पर खर्च होनेवाली धन-सम्पदा का सिलसिलेवार ब्योरा है। मेरा यह सपना भारत की ताकत बनेगा। हमारी पनडुब्बी की तकनीक को हकीकत का जामा पहनाने के लिए करोड़ों रुपये की आवश्यकता होगी...!"
"हम प्रयोग देखना चाहते हैं।" माननीय प्रधान मन्त्री ऊंचे स्वर में बोले—"हम इस आणविक पनडुब्बी के लिए मित्र राष्ट्रों से कर्ज उठाने के लिए भी पीछे नहीं हटेंगे।"
"धन्यवाद!" डॉ० सी० पी० अलेक्जेण्डर के चेहरे पर आभा फूटने लगी, वे बोले—"ध्यान से देखिये—दुश्मन के जिस नौसैनिक बेड़े को अजेय समझा जाता है, वह हमारी पनडुब्बी के समक्ष ताश के बेड़े से ज्यादा अहमियत नहीं रखता। हमारी पनडुब्बी में जो दर्जन भर ट्यूब हैं उनमें हम तारपीडो सैट करके रख चुके हैं। हम रिमोट स्क्रीन पर बैठे-बैठे तारपीडो दागने की क्षमता रखते हैं। यह देखिये।"
हैरतभरी नजरें टैक के पानी में घूमती पनडुब्बी रूपी मॉडल पर ठहर गईं।
डॉक्टर सी० पी० अलेक्जेण्डर की उंगलियां रिमोट कन्ट्रोलर के पैनल पर लगे स्विच एवं नॉब से खेल रही थीं।
पनडुब्बी ठीक नौसैनिक बेड़े के नीचे पहुंचकर स्थिर हो गई थी।
अचानक!
डॉ० सी० पी० अलेक्जेण्डर की उंगलियों की हरकत के साथ कछुवे जैसी चिकनी खोपड़ी वाली मॉडल पनडुब्बी के ऊपरी हिस्से पर तीन छोटे-छोटे सींग से उभरते चले गए।
अगले ही पल।
वे सींग, अर्थात् तारपीडो पनडुब्बी की ऊपरी दीवार से बाहर की तरफ गोली की स्पीड से भागे। पनडुब्बी की खोपड़ी वापिस चिकनी एवं अभेद्य नजर आ रही थी।
गोली की आवाज के तीन तारपीडो तेजी से पानी को काटते हुए, नौसैनिक बेड़े के नीचे जा टकराये।
हल्का-सा धमाका हुआ।
अगले पल!
नौसैनिक बेड़े के परखच्चे उड़ चुके थे। बेड़े के टुकड़े-टुकड़े होकर पानी में डूबने लगे।
तीनों हस्तियां मन्त्रमुग्ध होकर, शक्तिशाली बेड़े को टुकड़ों में बदलता देखती रहीं।
अगले ही पल! देश की उच्च पदस्थ तीनों हस्तियां, प्रोफेसर सी० पी० अलेक्जेण्डर की इन्वेन्शन और भारत की धनी किस्मत पर तालियां पीटते हुए, अपनी खुशी को जाहिर करने से नहीं रोक पाये।
¶¶
सूरज की तेज किरणें जुहू बीच पर उठती सागर की लहरों से लिपटकर आंखें चौन्धियाने वाला दृश्य प्रस्तुत कर रही थीं।
लिजा ने अपनी आंखों पर काला चश्मा चढ़ाया हुआ था। उसकी नीली आंखें चश्मे के पीछे से दूर तक फैले तट का निरीक्षण कर रही थीं। दोपहर होने के कारण तट पर बहुत कम आदमी नजर आ रहे थे। उनमें से अधिकतर वो लोग थे, जो सागर के खारे पानी में स्नान करने का शौक रखते हैं।
लिजा ने अपनी नजरें समेटकर अपनी लम्बी-पतली गोरी टांगों को मुस्कराते हुए निहारा। सचमुच उसकी टांगें बेहद खूबसूरत थीं, जिसके ऊपर वह अल्ट्रा वायलेट किरणों से बचाव की खातिर क्रीम की मालिश करके ही होटल किंग्स-वे से निकलकर पीछे सागर किनारे आयी थी। उस वक्त उसके जिस्म पर मात्र बिकनी थी, जिसके भीतर से झांकता उसका सिन्दूरी जिस्म पानी में आग लगाने की क्षमता रखता महसूस हो रहा था। नंगे कन्धों पर फैले उसके सुनहरे बाल तेज हवाओं में उड़-उड़ कर उसके लम्बोत्तरे एवं अण्डाकार चेहरे पर नाच उठते थे, जिन्हें वह बार-बार अपनी पतली उंगलियों से हटाती हुई, बेहद मासूम नजर आ रही थी।
अचानक!
उसने अपनी सिन्दूरी कलाई में पहनी घड़ी पर दृष्टिपात किया। दिन का एक बज रहा था। उसके खूबसूरत चेहरे पर तनिक बेचैनी के भाव जाग्रत हुए। उसने हाथ बढ़ाकर करीब ही रेत पर पड़ा घुटनों तक का वह गाऊन उठाया, जिसे वह बिकनी के ऊपर पहनकर होटल से बाहर आयी थी। गाऊन की जेब से उसने रीचमास का पैकेट तथा लाइटर निकालकर एक सिगरेट सुलगाया। जलते सिगरेट को अपने शहतूती होठों में दबाये, वह गहरे-गहरे कश खींचने लगी। सिगरेट के कश लेती हुई, वह रेत पर जिस्म ढीला छोड़कर लेट गई। काले शीशे के गॉगल्स के पीछे चमकती उसकी नीली आंखों पर पलकें ढलकती चली गईं। आंखें बन्द होते ही लिजा के मानस पटल पर अपने शहर वाशिंगटन का दृश्य घूम गया। वह अमेरिका से बिलोंग करती थी। वाशिंगटन के एवन्यू-सी में वह अपनी मदर जेनिटर के साथ एक बढ़िया फ्लैट में रहती थी।
लिजा के चेहरे पर पीड़ा जैसे भाव पैदा हुए, मगर उसने अपनी आंखें नहीं खोलीं। उसके मानस पटल पर अपनी मां जेनिटर का चेहरा जाग उठा। वह चेहरा जो दर्द का आईना था। उस चेहरे के ऊपर की आंखें स्थिर थीं। एकटक शून्य में घूरती आंखें। वे आंखें जो पलकें झपकाना भूल गई थीं। वे आंखें जैसे पत्थर की आंखें थीं। हां, पत्थर की ही तो थी वे आंखें, जो देख नहीं सकती थीं। जेनिटर अन्धी थी। व्हील चेयर में धंसी जेनिटर फ्लैट के रास्तों से परिचित होकर, उस अन्धी दुनिया में जी रही थी, जो तीन साल पहले, उसकी बदनसीबी बनकर उसके सुनहरे जीवन को अपनी काली छाया के ताबूत में बन्द कर गई थी।
तीन साल पहले कितनी खुश थी जेनिटर। उसका पति मिचेल मार्टीन एक कॉफी हाऊस चलाता था। जेनिटर की बेटी लिजा कीलर सीनियर कैम्ब्रिज में पढ़ रही थी। वह अपने पति मिचेल मार्टीन तथा बेटी लिजा कीलर के साथ अपने आपको दुनिया की सबसे खुशनसीब औरत समझती थी।
लिजा कीलर की पलकों के कोर से आंसुओं की धार बहकर उसके कानों की लौ गीली करने लगी। वह अपने होठ सख्ती से भींचकर रेत के ऊपर बैठ गई। अपनी उंगलियों में फंसे सिगरेट से गहरे गहरे कश लेकर, उसने दूर उछाल दिया। आंसुओं से भीगी उसकी नीली आंखें सामने उछलती सागर की लहरों पर रुक गईं। सूरज की रोशनी से चौंध पैदा करती लहरों को वह लगातार घूरती रही। उसके खूबसूरत चेहरे पर तनाव की लकीरें फैलती जा रही थीं। सामने उछलती लहरों का रंग उसे सुर्ख नजर आने लगा। उसने अपनी आंखें बन्द कर लीं। होठ सख्ती से भिंच गए लिजा कीलर के। उसके मानस पटल पर क्रिसमस डे की शाम तैर उठी। पूरा वाशिंगटन रोशनियों के बीच, स्वर्ग का हिस्सा नजर आ रहा था। हर तरफ खुशियां-ही-खुशियां थीं। लिजा कीलर अपने फ्लैट की खिड़की पर खड़ी लगातार सड़क पर देख रही थी। उसके माता-पिता फ्लैट पर नहीं थे। अभी थोड़ी देर पहले लिजा कीलर को उसके पिता का फोन मिला था। फोन पर बताया गया था कि वे एक घन्टे में फ्लैट पर पहुंच रहे हैं। लिजा के पिता मार्टीन ने कॉफी हाऊस से ही फोन किया था। उसकी मां जेनिटर भी उस रोज कॉफी हाऊस पर पहुंच गई थी। हर साल की तरह मार्टीन और जेनिटर क्रिसमस-डे पर अपने कॉफी हाऊस पर इकट्ठा साथ रहते थे। मार्टीन और जेनिट कॉफी-हाऊस में इकट्ठा पूजा करने के बाद ही फ्लैट पर लौटते थे।
लिजा कीलर अपनी सहेलियों के बीच फ्लैट पर ही थी। उसकी तमाम सहेलियां शाम ढलने के साथ ही अपने-अपने घर लौट गई थीं। मार्टीन ने लिजा को फोन पर बताया कि उनके साथ एक मेहमान भी आने वाला है। वह इण्डियन गेस्ट है, जो साथ में डिनर लेकर ही अपनी रिहाइश लौटेगा। उस भारतीय मेहमान के बारे में ज्यादा कुछ नहीं बताया था मार्टीन ने। भारतीय मेहमान उसके पिता का दोस्त है, इस बाबत लिजा कीलर पहले से ही जानती थी। उसके पिता के दोस्त का नाम अविनाश शर्मा है, जो वाशिंगटन स्थित भारतीय दूतावास में कर्मचारी होता है। उसके पिता का कॉफी हाऊस भारतीय दूतावास की इमारत के पीछेवाली लेन में है। वह अक्सर कॉफी पीने आया करता था, जिन्हें उसके पिता मार्टीन एक अच्छे ग्राहक के रूप में पसन्द करते थे। महीनों बीते तो मार्टीन और अविनाश शर्मा में प्रगाढ़ता हो गई। दोनों मित्र बन गए। भारतीय और अमेरिकी दो मित्र थे। जिनकी मित्रता को लिजा कीलर बेहद पसन्द करती थी। वह खुद अविनाश शर्मा से मिल चुकी थी।
शायद उस रोज भारतीय त्यौहार था। न मालूम क्या नाम था, उस त्यौहार का। शायद लॉर्ड कृष्णा का बर्थ-डे था वह। उस रोज अविनाश शर्मा का फास्ट था। रात के बारह बजे जब चन्द्रमा नजर आया तो उन्होंने अपना फास्ट हमारे ही फ्लैट पर पूरा किया था। उन सबने साथ बैठकर खाना खाया था। काफी रात के बाद पिता मार्टीन अपनी कार से अविनाश शर्मा को उनकी रिहायश पर छोड़ने गए थे।
उस क्रिसमस-डे पर वे ही अविनाश शर्मा उनके फ्लैट पर आ रहे थे। कितने अच्छे हैं, पिता के दोस्त अविनाश शर्मा। कितना अपनत्व भरा व्यवहार होता है उनका।
"हाय लिजा!"
ऊंचा स्वर लिजा कीलर के कानों से टकराया तो उसके मानस पटल पर तैरती अतीत की धुन्ध चौन्धियाती लहरों की रोशनी में दम तोड़ गई। उसने जल्दी से अपनी आंखें पौंछकर सुराहीदार गर्दन घुमाते हुए अपनी तरफ बढ़े चले आ रहे गैरी पावर्स को देखा।
लम्बा-तगड़ा सुर्ख चमड़ीवाला खूबसूरत अमेरिकी नौजवान था—गैरी पावर्स। वह हाफ पैन्ट और टी-शर्ट पहने था। उसकी आंखों पर गहरे काले रंग का गॉगल था। उसके होठों के ऊपर सुनहरी मूंछें थीं, जो बिच्छुओं के डंक के समान नीचे की तरफ झुकी हुई थीं। सिर पर वह फैल्ट हैट लगाये था, जिसके बाहर उसके सुनहरे बाल झांक रहे थे। गैरी पावर्स।
लिजा कीलर का प्रेमी था—गैरी पावर्स।
अपने प्रेमी को देखकर लिजा कीलर के होठों पर मुस्कराहट जाग उठी।
गैरी पावर्स बेहद फुर्तीले अन्दाज में लिजा के पास पहुंचकर रेत में नंगे घुटने धंसाकर, उसका गाल चूमते हुए बोला—"मैं होटल गया तो मालूम पड़ा कि तुम इधर बीच पर आई हो।"
"मैं बारह बजे तक होटल के सूईट में तुम्हारा इन्तजार करती रही।" लिजा कीलर ने कहा—"तुम नहीं आये तो मैं बोरियत दूर करने की खातिर यहां आ गई। अभी मैं सागर में बाथ लेने जा रही थी।"
"मैं भी तुमको ज्वाइन करूंगा। लेकिन...!"
"लेकिन क्या?" लिजा ने अपनी आंखों से चश्मा उतारकर गैरी पावर्स की तरफ प्यार से देखा—"ये इण्डिया है दोस्त—अमेरिका नहीं।"
"मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता।" गैरी पावर्स अपने सीने पर हाथ मारता हुआ बोला—"मैं अमेरिकन हूं। सारी दुनिया जानती है कि अमेरिकन सुपर होता है।"
"मेरा गैरी पावर्स अगर अमेरिकन नहीं होता तो भी मेरे लिए सुपर ही होता।" लिजा अपने बालों को झटकते हुए बोली—"क्या मैं ठीक नहीं बोल रही?"
"तेरी यही अदा तो मुझे पसन्द है।" गैरी पावर्स बाज की तरह लिजा के ऊपर झपटा।
"ओह नो। प्लीज—छोड़ो मुझे, यह इण्डिया है।
गैरी पावर्स उसे बांहों में दबोचे हुए बोला—"तुम इण्डिया की कल्चर को बहुत ज्यादा पहचानती हो?"
"हां।" लिजा ने कहा—"इण्डिया के रहनेवाले मेरे अंकल हुआ करते थे। वो भारतीय संस्कृति से मुझे परिचित कराते थे।"
"रबिश।" गैरी पावर्स ने लिजा को छोड़कर कडुवा-सा मुंह बनाकर कहा—"तुम्हें इण्डिया के कल्चर से बहुत ज्यादा लगाव है, शायद इसीलिए यहां पहुंचने के बाद तुम मुझे उतना पसन्द नहीं कर रही हो, जितना वाशिंगटन के सेन्ट्रल पार्क की रोशनियों में करती थी।"
"शायद बुरा मान गए तुम!" लिजा ने गैरी पावर्स का हाथ थामकर अपने गाल से लगाकर कहा—"मैं तुम्हें इस धरती पर भी उतना ही पसन्द करती हूं, जितना अपने देश की धरती पर।"
गैरी पावर्स सागर की उछलती लहरों की तरफ देखने लगा।
लिजा ने सवाल किया—"तुम मुझे होटल में छोड़कर कहां चले गए थे?"
"मैंने बताया था कि यहां मुम्बई में मेरा एक इण्डियन दोस्त है। मैं उसी से मिलने गया था।
"मुलाकात हुई दोस्त से?"
"अभी नहीं, मगर हो जायेगी।"
"हम कब तक यहां रुकेंगे?"
गैरी पावर्स ने लिजा की तरफ घूरकर देखा। बोला—"क्या बोर हो गई हो यहां से? अमेरिका से चलते वक्त तो भारत घूमने की खुशी उछल-उछलकर जाहिर कर रही थीं।"
"मैं खुश हूं डार्लिंग। चाहो तो इसी धरती पर हम दोनों एक छोटा-सा घर बनाकर...!"
"शटअप!" गैरी पावर्स बोला—"इस देश की धरती पर बसने का सपना देखने वाले मूर्ख होते हैं। हां, इस धरती से व्यापार जोड़ने वाले जीनियस होते हैं। तुम जानती हो कि मैं जीनियस हूं।"
"यस। यू आर जीनियस। यू आर माई लव। चलो अब हम बाथ लेते हैं।"
"बगैर ड्रिंक के मैं नहाना पसन्द नहीं करता।"
"तो क्या उसके लिए हमें होटल लौटना पड़ेगा?"
"नहीं। ड्रिंक मेरे पास है।"
और फिर!
गैरी पावर्स ने अपनी हॉफ पैन्ट की जेब से चांदी के रंग से मेल खाती स्टील की कैन निकाली। यह हाफ कैन थी। उसने कैन का ढक्कन हटाकर उसके भीतर की स्वादिष्ट स्कॉच से कई घूंट भरकर, कैन लिजा की तरफ बढ़ा दी।
लिजा ने स्वाद में मीठी लगने वाली स्कॉच कैन को अपने होठों से लगाकर हल्के घूंट लेकर कैन वापिस गैरी पावर्स को थमा दी।
गैरी पावर्स कैन में बची स्कॉच को तब तक निचोड़ता रहा, जब तक वह खाली नहीं हो गई।
लिजा की नीली आंखों में सुरूर झलकने लगा। वह अपने बिखरे बालों को बान्धती हुई रेत से उठकर उछलती लहरों की तरफ बढ़ गई।
गैरी पावर्स की सुर्ख हुई आंखें काले चश्मे के पीछे से लिजा कीलर की लम्बी-पतली खूबसूरत टांगों पर फिसलती चली गईं। बिच्छुओं के डंक सरीखी मूंछों को लिये उसके होठ मुस्करा उठे। वह मुस्कराहट अर्थपूर्ण थी।
"साली कुतिया।" गैरी पावर्स ने अपना हाथ रेत पर मारकर कहा—"तू जितनी खूबसूरत है उतनी ही पागल है।"
और फिर!
वह अपने कपड़े उतारकर सागर की उन लहरों की तरफ बढ़ गया, जहां लिजा कीलर लहरों पर उछाल भरती स्वर्ग से उतरी जलपरी होने का आभास दे रही थी।
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Additional information
Book Title | बिन ब्याही विधवा : Bin Biyahi Vidhwa by Sunil Prabhakar |
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Isbn No | |
No of Pages | 224 |
Country Of Orign | India |
Year of Publication | |
Language | |
Genres | |
Author | |
Age | |
Publisher Name | Ravi Pocket Books |
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