भूखा शेर
“तो तुम्हें यकीन है कि तुम आज ही रात उससे हीरे उड़ाने में कामयाब हो जाओगी।” बगल वाले केबिन में मर्दाना स्वर उभरा।
पलक झपकते ही अर्जुन त्यागी स्कॉच पीना भूल गया....आंखों में शैतानी चमक उभर आई....कान सतर्क हो उठे।
कहीं ‘माल’ का जिक्र हो....और माल भी हीरे....और अर्जुन त्यागी के कान खड़े न हों, ये हो ही नहीं सकता था।
इस बार एक मधुर स्वर उसके कानों से टकराया—“तुम यकीन की बात कर रहे हो, जबकि मैं गारंटी के साथ कह रही हूं कि आज रात हीरे हर हालत में हमारे कब्जे में होंगे।” निःसन्देह वो किसी युवती की आवाज थी।
“वैसे उन हीरों की क्या कीमत होगी?”
“मेरे ख्याल से उनकी कीमत किसी भी तरह से दो करोड़ से कम नहीं होनी चाहिए।”
अर्जुन त्यागी के गले की घण्टी जोरों से उछली।
उसके जेहन में बैठा शैतान अंगड़ाई लेने लगा। होठों पर कुटिल मुस्कान नाच उठी।
इस वक्त उसकी जेबें लगभग खाली हो चुकी थीं। काफी दिनों से छोटा-मोटा कोई भी दांव नहीं लगा था। आजकल वह विराट नगर में था। पुलिस से भागते रहना तो उसकी जिन्दगी ही बन चुकी थी।
सोचा था, इस महानगर में शायद ‘मोटा माल’ का कोई चक्कर चल जाये। मगर अभी तक वैसा कुछ नहीं हुआ था।
अब तो वह विराट नगर से भी किनारा करके निकल जाने की सोचने पर मजबूर हो गया था।
और शायद ये विराट नगर में उसकी आखिर रात होगी....इसलिए वह डटकर दारू पीने के मकसद से एक बार में घुसा था....और इस समय बार के केबिन में बैठा यही कर रहा था....जब अचानक उसे अपनी ‘लाटरी’ खुलती नजर आने लगी थी।
“दो करोड़!”
अर्जुन त्यागी के दिमाग में गूंजा।
दूसरी तरफ से चीखते स्वर में बातें करने की आवाजें बदस्तूर आ रही थीं।
अर्जुन त्यागी ने स्कॉच का गिलास मेज पर टिका दिया, फिर वह फुर्ती से उठकर दोनों केबिन के बीच बनी प्लाई की दीवार के पास पहुंचा और उससे कान सटा दिया।
“बेवकूफ हो तुम।” दूसरी तरफ मौजूद मर्द कह रहा था।
“क....क्यों?”
“बेवकूफ ही नहीं, अक्ल की अन्धी भी हो।”
“य-ये तुम क्या कह रहे हो?”
“जरा अक्ल से सोचो....जो शख्स इतने कीमती हीरे अपने साथ लिए हुए है, वह इतना बेवकूफ और लापरवाह हर्गिज नहीं हो सकता जो अपने माल के प्रति चौकस न रहे। उसके भेजे में भी अक्ल होगी। मुझे नहीं लगता कि उससे हीरे झटकना कोई आसान काम होगा।”
“लेकिन मेरे लिए ये चुटकी बजाने से भी आसान है।”
“क....कैसे?”
“बस तुम देखते रहो....।”
“बहरहाल तुम्हारे दिमाग में कोई स्कीम तो होगी....!”
“ओेफ्फो! तुम्हें स्कीम से क्या लेना! सिर्फ इतना याद रखो कि अब वो दो करोड़ के हीरे हमारे होने से दुनिया की कोई ताकत नहीं रोक सकती।”
“नहीं।” मर्द ने जिद् की—“मैं स्कीम जाने बगैर तुम्हें कोई रिस्क नहीं लेने दूंगा। मैं जानना चाहता हूं कि मैं तीन-चार दिन हवालात में क्या रहा, मेरे पीछे तुमने ये क्या गुल खिला दिया?”
“मैंने कोई नया गुल तो नहीं खिलाया है। तुम तो जानते ही हो कि मोटा माल हासिल करने और फिर उस माल पर जिन्दगी भर जमकर ऐश करना हमेशा से हम दोनों का सपना रहा है, जिसके लिए मैं एक कालगर्ल बनी और तुम एक चोर। मगर क्या करें? लाख कोशिश करके भी मोटा माल तो क्या हाथ लगता, आज तक हमें उसके दर्शन भी नसीब नहीं हुए....किन्तु इस बार उम्मीद की किरण दिखाई दी है। जिस समय तुम हवालात ही हवा खा रहे थे....एक अरब शेख मेरे सम्पर्क में आया। पट्ठा पहली ही रात में ही मेरे ऊपर ऐसा लट्टू हुआ कि शान बघारने के लिए उन हीरों कर जिक्र कर बैठा। बस उसी क्षण से मैं वो हीरे उड़ाने की फिराक में उसे अपने जाल में फंसाये हुए हूं। आज मेरा जिस्म उसकी कमजोरी बन चुका है और मैं उसकी इसी कमजोरी का फायदा उठाकर उससे हीरे उड़ाने की पूरी तैयारी कर चुकी हूं।”
“ल....लेकिन....।”
“शी....।” धीमा-सा स्वर सुनाई पड़ा—“आज और कुछ मत पूछो। आगे का काम मुझ पर छोड़ दो। हीरे हाथ में आते ही हम इस शहर को सदा के लिए छोड़ देंगे।”
दूसरी तरफ कुछ पलों तक खामोशी छाई रही, फिर युवती की आवाज आई—।
“अब मैं चलूं?”
“कब तक लौटोगी?”
“बहुत जल्दी। तुम अपने फ्लैट पर मेरा इन्तजार करना।”
फिर दूसरी तरफ से खामोशी छा गई।
अर्जुन त्यागी उनकी बातें सुनकर इस निष्कर्ष पर पहुंचा था कि वो मधुर स्वर वाली युवती किसी व्यक्ति से दो करोड़ रुपये के हीरे उड़ाकर अपने यार के साथ भागने के चक्कर में है। वो दोनों भी उसी तरह की मोटे माल की फिराक में रहने वाली लोग हैं।
मगर उनमें और अर्जुन त्यागी में बहुत फर्क था..वह कई राज्यों का इश्तिहारी मुजरिम था....अण्डरवर्ल्ड का बच्चा-बच्चा उसे जानता था, उसके नाम का खौफ था। लेकिन ये अर्जुन त्यागी की बदनसीबी थी कि कई बार माल उसके हाथ में आकर भी खिसक गया था।
अर्जुन त्यागी मन-ही-मन बड़बड़ा उठा—
“मेरे होते हुए वे हीरे किसी के नहीं हो सकते....वो सिर्फ अर्जुन त्यागी के नसीब में हैं, चाहे इसके लिए मुझे इस शहर में लाशों के ढेर क्यों न लगाने पड़ें आखिर!”
पलक झपकते ही उसने चोर पर मोर बनने का निर्णय कर लिया था।
सहसा अर्जुन त्यागी को लगा जैसे दूसरी तरफ कोई उठकर केबिन के दरवाजे की तरफ बढ़ा है। शायद वो युवती वहां से रुख्सत हो रही थी।
अर्जुन त्यागी झपटता हुआ दरवाजे की तरफ बढ़ा। दूसरे पल वह दरवाजे पर खड़ा था।
तभी एक तेइस-चौबीस वर्षीय, सुर्ख-सफेद रंग और तीखे नाक-नक्श वाली युवती बराबर वाले केबिन से बाहर निकली।
एक क्षण में अर्जुन त्यागी ने उसकी शक्ल-सूरत अपने दिमाग में बिठा ली, फिर चेहरा घुमाकर लापरवाही से दूसरी तरफ देखने लगा।
इस वक्त उसकी आंखों में एक ऐसी चमक थी कि पिशाच भी देख लेता तो डर जाता।
युवती अर्जुन त्यागी के सामने से निकलती हुई दरवाजे की तरफ बढ़ती चली गई। उस बेचारी को तो गुमान भी नहीं हो सका था कि वो शैतान की पैनी दृष्टि में आ चुकी है।
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