भीगी रात का हुस्न : Bheegi Raat Ka Husn by Helen
Ebook ✓ 48 Free Preview ✓
48
100
Description
अन्तर्राष्ट्रीय अपराधी संगठन रेड मौंग के खिलाफ जंग-ए-मैदान में उतरी सैक्स इण्टरनेशनल लंदन की सरगर्म एजेण्ट...मलिका-ए-हुस्न...मोना चुंग का रोमांस...और एक्सन से लबरेज खतरनाक कारनामा।
एक माइक्रोफिल्म को हासिल करने के लिए मोना चुंग और अपराधियों के बीच छिड़ी खूनी जंग...जिसका अन्त...?
भीगी रात का हुस्न : Bheegi Raat Ka Husn
हैलन : Helen
प्रस्तुत उपन्यास के सभी पात्र एवं घटनायें काल्पनिक हैं। किसी जीवित अथवा मृत व्यक्ति से इनका कतई कोई सम्बन्ध नहीं है। समानता संयोग से हो सकती है। उपन्यास का उद्देश्य मात्र मनोरंजन है। प्रस्तुत उपन्यास में दिए गए हिंसक दृश्यों, धूम्रपान, मधपान अथवा किसी अन्य मादक पदार्थों के सेवन का प्रकाशक या लेखक कत्तई समर्थन नहीं करते। इस प्रकार के दृश्य पाठकों को इन कृत्यों को प्रेरित करने के लिए नहीं बल्कि कथानक को वास्तविक रूप में दर्शाने के लिए दिए गए हैं। पाठकों से अनुरोध है की इन कृत्यों वे दुर्व्यसनों को दूर ही रखें। यह उपन्यास मात्र 18 + की आयु के लिए ही प्रकाशित किया गया है। उपन्यासब आगे पड़ने से पाठक अपनी सहमति दर्ज कर रहा है की वह 18 + है।
Free Preview
भीगी रात का हुस्न
हैलन
नवम्बर महीने के अन्तिम सप्ताह में ठण्ड बढ़ती जा रही थी। शाम होते ही चारों तरफ कोहरा-सा छा जाता था जो प्रातःकाल बेहद घना प्रतीत होता था। सुबह के समय बादलों के झुण्ड की तरह यह धुन्ध पहाड़ियों की चोटी पर मंडराती हुई प्रतीत होती थी।
ठण्ड अधिक रहने के कारण बाजार की चहल-पहल भी शीघ्र ही समाप्त हो जाती थी। छोटे से लेकर बड़े आदमी तक ढलान की ओट में लेट जाना आधिक पसन्द करते थे मगर घूमना नहीं। अगर कोई खास उद्देश्य से घूम रहा हो तो बात अलग है।
सुबह भी देर से आंखें खुलती थी। दफ्तर आने-जाने वालों को कठिनाई अवश्य थी मगर उन्हें काम पर जाना ही पड़ता था क्योंकि भूख अच्छे-अच्छे इन्सानों को भी तारे दिखा देती है।
मैं हमेशा से बीमार रही हूं। मेरे कहने का मतलब रोग से नहीं है। मैं अपनी बीमारी थाम्सन को समझती हूं। पता नहीं वह मुझे क्या समझता है। जब भी कोई जटिल मामला सामने आया तो मोना चुंग को भेज दिया। यह भी सोचने का कष्ट नहीं करता था कि अभी-अभी ही एक मिशन समाप्त कर लौटी है।
हमेशा की तरह इस बार भी मेरे गले में हड्डी की तरह अटक गया था। जब अटक गया तो निकालना भी आवश्यक था। अपना सामान बांधकर मैं चल पड़ी थी।
थाम्पसन मुझे काम सौंपता था। इस प्रश्न पर मैं जब सोचती यही ख्याल आता कि शायद इन सबके पीछे मेरी सफलता का रहस्य छिपा हो। आज तक जो भी मिशन मेरे सुपुर्द किया गया था मैं सभी में सफल थी।
नाइजीरिया पहुंचे दो दिन व्यतीत हो गये थे। इन दो दिनों में वहां की पहाड़ियों की खाक छानती फिरी थी लेकिन सफलता नहीं मिल सकी थी। रिपोर्ट के अनुसार नाइजीरिया स्थित सैक्स इन्टर नेशनल के एजेण्ट की हत्या कर दी गई थी और उसकी लाश को यहीं कहीं पहाड़ियों में ठिकाने लगाया गया था।
दो दिन भटकने के बाद इन्सान की लाश क्या एक चूहे की लाश से भी मेरी मुलाकात नहीं हो पायी थी। आज तीसरा दिन था। मैं पहाड़ियों में भटक रही थी और ईश्वर से प्रार्थना कर रही थी कि लाश शीघ्र मिल जाये। इन पहाड़ियों में घूमना भी किसी यातना से कम नहीं था।
रात्रि के लगभग ग्यारह बजे थे।
मैं हाथ में टॉर्च लिये पहाड़ी के प्रत्येक हिस्से का निरीक्षण कर रही थी। हर हालत में मुझे एजेण्ट की लाश की आवश्यकता थी। थाम्पसन के अनुसार उस एजेण्ट ने जो जानकारियां हासिल की थीं वह एक माइक्रो फिल्म के रूप में थीं। जो उसी एजेण्ट के शरीर के किसी हिस्से में सुरक्षित थीं। मुझे उस माइक्रो फिल्म की सख्त आवश्यकता थी क्योंकि उस रिपोर्ट के बिना आगे बढ़ना मुश्किल था मगर उसकी लाश प्राप्त करने में सफल न होती तो इस मिशन को एक बार पुनः आरम्भ करना पड़ता, जो मैं नहीं चाहती थी।
पहाड़ियों के मध्य मैं काफी देर से घूम रही थी और अब यह सोचने पर विवश थी कि एजेण्ट की लाश यहां नहीं मिल सकती। उसे कहीं....और ठिकाने लगाया गया है।
साढ़े ग्यारह बजे तक मगज-पच्ची करने के बाद मैं यहां से चल पड़ी। ठण्ड रात्रि के साथ ही बढ़ती जाती थी। मैंने जो जर्सी पहन रखी थी, वह इस ठण्ड को बर्दाश्त करने में पूर्णतया समर्थ नहीं थी। कभी-कभी मेरे शरीर के सभी रोंगटे खड़े हो जाते थे और मेरा बदन एक बार हल्की कंपकंपी के बाद स्थिर हो जाता था।
पहाड़ियों से निकलकर मैं सड़क पर आ गयी जहां मेरी कार खड़ी थी चूंकि कार छुपाने का कोई उचित स्थान आस-पास नहीं था इसलिये कार सड़क पर छोड़कर ही मुझे जाना पड़ा था।
पहाड़ियों पर घूमते-घूमते मैं काफी थक गयी थी और अपने कमरे में जाकर आराम करना चाहती थी।
गाड़ी को मैंने सीधे लन्दन कॉफी हाऊस के पोर्च में खड़ा किया और उतरकर बाहर आ गई। यह फाइव स्टार होटल था। इसके मालिक की दो पीढ़ियों का अन्त नाइजीरिया में हुआ था और यह खानदान की तीसरी पीढ़ी थी। नाम था विलियम। उसकी उम्र पैंतालीस और पचास के मध्य थी। यह हमेशा काले कपड़े पहनना पसन्द करता था। मैंने महसूस किया था कि वह रंगीन मिजाज आदमी है। उसे मैंने कौम के प्रति झुकते भी देखा था। अपने होटल में वह ब्रिटिश को पहले स्थान देता था और अन्य को बाद में। खूबसूरत लड़कियों से बातें करना उसकी हार्दिक इच्छा थी।
हॉल में प्रविष्ट होते ही मेरी नजर विलियम पर पड़ी। वह काउन्टर क्लर्क के बगल में बैठा ऊंघ रहा था। कदाचित यह उसकी आदत थी क्योंकि जब से मैं यहां ठहरी थी। उसे प्रत्येक दिन क्लर्क की बगल में बैठकर ऊंघते हुये देखा था।
थकावट दूर करने के लिये मैंने दो पैग ब्रांडी पी लेना उचित समझा और एक मेज पर आ बैठी। मैं वेटर की प्रतीक्षा कर रही थी।
तभी काउन्टर से हटकर विलियम मेरे पास आ धमका। मेरा चौंकना स्वाभाविक था क्योंकि विलियम से न कभी मेरी बात हुई थी और न उससे बात करने में मेरी दिलचस्पी थी।
मैंने उसकी ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा।
“क्या मैं यहां बैठ सकता हूं।” उसका स्वर गम्भीर था।
“क्यों नहीं...।” मैंने मुस्कराने का अभिन्य किया। मेरी गम्भीरता का उल्टा असर भी हो सकता था जो मैं नहीं चाहती थी।
“कदाचित आपका नाम रोमा है?” विलियम ने मेरी ओर देखकर कहा।
“हां...हां...आपको कोई आपत्ति तो नहीं?”
“मुझे कोई आपत्ति नहीं। मैं यह जानना चाहता था कि आप रोमा ही हैं या कोई और?“”
“क्यों...कोई खास बात है।”
पॉकिट में हाथ डालते हुए उसने कहा—“आपका एक पत्र है।” उसने कहा और पत्र मेरे हवाले कर दिया।
पत्र को देखते ही मुझे ऐसा लगा कि गश खाकर गिर जाऊंगी या यहां से उठकर भाग लूंगी। संदिग्ध दृष्टि से मैंने पूरे हॉल का निरीक्षण किया, फिर लिफाफा उलट-पलट कर देखने लगी।
विलियम मेरी प्रत्येक हरकत को बड़े ध्यान से देख रहा था।
यह लाल रंग का लिफाफा था जिस पर मोटे अक्षरों में मिस रोमा सोवाल्ट लिखा था। मैं इसी नाम से इस होटल में ठहरी हुई थी। नाम के नीचे होटल का पूरा पता लिखा था।
“यह पत्र आपको किसने दिया?” मैंने पूछा।
“काले शरीर का एक आदमी यह पत्र आपके लिये छोड़ गया है। उसने कहा था कि इस पत्र में कुछ आवश्यक बाते हैं इसलिये आपके आते ही दे दूं। आप पत्र खोलकर देख लीजिये।” विलियम ने कहा और मेरी ओर घूरने लगा।
लिफाफा देखते ही मैं समझ गयी थी यह रेड मौंग का खत है। माफिया की तरह रेड मौंग संस्था पूरे विश्व में फैलती जा रही थी। यह अपराधी संस्था अधिकतर सेठ-साहूकारों को अपना शिकार बनाया करती थी। विश्व में राजनीति में यह खुलकर हिस्सा लेती थी। इसी रेड मौंग की तह तक मुझे पहुंचना था और सारी रिपोर्ट एकत्रित करके थाम्पसन के हवाले करनी थी।
लिफाफा देखकर मुझे जरा भी आश्चर्य नहीं हुआ था। रेड मौंग बड़ी ही खतरनाक संस्था थी। मेरे विषय में पता लगाना उसके लिये कोई मुश्किल नहीं था।
विलियम की ओर देखकर मैंने कहा—“अगर आपको मुझसे कोई और काम हो तो बताओ?”
“बस इतना ही काम था।” विलियम ने कहा और उठकर खड़ा हो गया—“मैं जा रहा हूं। अगर आवश्यकता हो तो बुला लीजियेगा।”
विलियम चला गया।
लिफाफा फाड़कर मैंने पत्र बाहर निकाल लिया और पढ़ना ही चाहती थी कि बेयरा आ टपका। मेरी ओर देखकर मुस्कराया और पूछा—“क्या लाऊं?”
“डबल पैग ब्रांडी और सेन्डविच...।” मैंने छोटा-सा आर्डर दिया क्योंकि खाने की इच्छा नहीं थी।
बेयरा के जाते ही मैंने पत्र पढ़ना आरम्भ किया—
मिस मोना चुंग।
मुझे खूब अच्छी तरह मालूम है कि तुम यहां क्यों आयी हो। अगर तुम या तुम्हारी संस्था रैड मौंग से टकराना चाहती है तो यह उसकी भूल है। रेड मौंग विश्व की सबसे शक्तिशाली संस्था है। तुम्हारी प्रत्येक हरकतों पर नजर रखी जा रही है। शायद तुम उस आदमी की लाश पहाड़ियों में ढूंढती फिर रही हो जिसकी हत्या कुछ दिनों पहले की गयी थी। कदाचित यह तुम्हारी संस्था का सदस्य था। उसकी लाश तुम कभी नहीं पा सकती।
रेड मौंग तुम्हें चेतावनी देती है कि मिशन को यहीं पर छोड़कर लौट जाओ अन्यथा तुम्हारी भी वही दुर्दशा होगी जो पहले एजेण्ट की हो चुकी है। इसे धमकी नहीं वास्तविकता समझना।
रेड मौंग
पत्र का मुझ पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। पत्र के विषय में पहले ही मैंने जो धारणा कायम की थी वह सच साबित हुई थी। मुझे धमकी देकर लौटने के लिये कहा गया था। मुझे पहले से अन्दाजा था कि रेड मौंग के आदमी यही करेंगे।
मैं इस विषय पर अधिक नहीं सोचना चाहती थी क्योंकि उसके मना करने पर भी मुझे काम करना था।
तभी बेयरा आर्डर का समान मेज पर रख गया। मैं ब्रान्डी के हल्के-हल्के घूंट भरने लगी और सोचने लगी कि उस आदमी तक पहुंचा जा सकता है या नहीं जो पत्र लेकर आया था।
उस आदमी के विषय में अगर किसी से मालूम हो सकता था तो वह विलियम था। समय भी काफी हो रहा था और मैं आज की रात बेकार करना नहीं चाहती थी।
पूरी ब्रान्डी को मैंने हलक के नीचे उतारा और जीने के करीब पहुंचने से पहले काउन्टर के सामने से गुजरना पड़ा था। काउन्टर पर पहुंचकर मैं रुक गयी।
विलियम मुझे घूरने लगा था।
उसकी ओर देखकर मैं मुस्कराई और मेरी ओर देखकर वह भी मुस्कराया।
“मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं?” कुर्सी से उचककर उसने कहा।
“मैं आपसे कुछ बातें करना चाहती हूं। क्या आप मेरे कमरे में चल सकते हैं?” कहते समय मैं मुस्करा रही थी।
“क्यों नहीं—!” वह उठकर खड़ा हो गया और मैं जीने की ओर चल पड़ी। उसके पहुंचने से पहले ही मैं कमरा खोल कर अन्दर दाखिल हो चुकी थी।
“बैठिये।” मैंने कुर्सी की ओर इशारा किया और स्वयं उसके सामने वाली कुर्सी पर बैठ गयी। मैं जब से यहां आई थी तब से उसकी एक खास बात नोट कर रही थी। जब भी मैं विलियम के सामने होती तो वह मुझे घूरता रहता था।
“मिस्टर विलियम, आप उस आदमी को जानते हैं जो पत्र लेकर आया था?” मैंने प्रश्न किया।
“जी...जी नहीं।” बड़ी शीघ्रता से उसने जवाब दिया लेकिन मैं समझ गयी कि वह मुझसे कुछ छुपाने की कोशिश कर रहा है।
एक तो मैं पहले ही अन्दाजा लगा चुकी थी कि वह घुटा हुआ आदमी है, उस पर वह सरासर झूठ बोल रहा था। इसका मतलब साफ था कि वह कुछ बताना नहीं चाहता था। ऐसे लोगों के लिए मेरे पास सरल उपाय था। मैं चाहती तो वह सब कुछ दो मिनट में बक देता लेकिन मैं अपने व्यक्तित्व को संदिग्ध नहीं बनाना चाहती थी।
हो सकता था मुझे अधिक दिन रुकना पड़ जाता फिर मेरी छोटी-सी गलती मेरे रास्ते की बाधक बन जाती। ऐसे वक्त पर मैं अपने शरीर से काम लिया करती थी।
आम औरतों से मेरा शरीर भिन्न था। शारीरिक गठन और जिस्म की चिकनाहट अन्य औरतों से ज्यादा थी। इस शरीर के कारण ही कई असम्भव मिशन को सम्भव कर दिखाया था।
मैंने शरीर से काम लेना अच्छा समझा। विलयम मेरी ओर ललचाई दृष्टि से देख रहा था। अंगड़ाई लेती हुई मैं कुर्सी से उठ खड़ी हुई। विलयम के चेहरे पर अजीब से भाव तैर गये अगर उसका बस चलता तो निश्चय ही बाज की तरह मुझ पर झपट पड़ता। मैं मन-ही-मन मुस्कराती हुई अलमारी के समीप चली गयी।
अलमारी खोलने के पश्चात बेलबॉटम उतारकर अन्दर रख दी। मेरी नंगी पिंडलियों को देखकर उस पर क्या गुजरी होगी यह जानने की कोशिश नहीं की। आस्टर उतारने के बाद शर्ट उतारकर अलमारी में डाल दिया।
अब मेरे शरीर पर सिर्फ चड्ढी और ब्रेजरी थी और ठण्ड पर अधिकार पाये विलियम को आगे बढ़ने का चांस दे रही थी।
मैंने कनखियों से विलियम की ओर देखा। मैं मुस्करा उठी। प्लेन गाउन की जगह मैंने नाईनोल का गाउन शरीर पर डाला और विलियम के समाने आ बैठी।
उसके चेहरे पर घबराहट के चिन्ह अंकित हो गये।
मैंने प्रश्नवाचक दृष्टि से उसकी ओर देखा।
“मिस रोमा...।” अपनी बौखलाहट में वह कह गया—“आप बहुत सुन्दर हैं।”
मैं मुस्कराकर रह गयी।
विलियम पर मेरी मुस्कराहट का प्रभाव हुआ। वह धीरे-धीरे खुलने लगा।
“मिस रोमा...क्या आपको ठण्ड नहीं लगती?”
“बिल्कुल नहीं। मेरे शरीर में ज्वालामुखी छुपा है।” कातिल अदाकारा की तरह मैंने अभिनय किया—“मेरी रगों में खून नहीं उबलती हुई शराब भरी है। भला मुझे क्या ठण्ड लगेगी।”
अपनी जीभ उसने होंठों पर फिरायी और मेज पर एस्ट्रे के बगल में पड़ी मेरी को टटोलने लगा।
मैंने विरोध नहीं किया।
उसका साहस बढ़ गया। वह अपनी कुर्सी को उठाकर मेरी बगल में आ बैठा।
“मिस्टर विलियम आपको ठण्ड तो नहीं लग रही है?” मैंने मुड़कर उसकी ओर देखा। उसके चेहरे पर लज्जा भरी मुस्कान आयी हुई थी। झेपकर मुंह उसने दूसरी ओर फेर लिया और अपना हाथ मेरे कन्धे पर डाल दिया।
मैं समझ गयी थी कि विलयम मेरे रास्ते पर चला आ रहा है।
“क्या मैं पसन्द हूं?” मैंने प्रश्न किया।
“तुम सुन्दर हो, चेहरे से भी और शरीर से भी। कोई भी पुरुष तुम्हें पाने की इच्छा कर सकता है।” उसका स्वर वासना में डूबा हुआ था। वह हल्के-हल्के मुस्कराने भी लगा था।
“तो शरमा क्यों रहे हो?”
“फिर तो मुझे अपने आपको ही भाग्यवान कहना पड़ेगा।” वह पुनः मुस्कराया।
“मैं पहले पीना पसन्द करूंगी।”
विलयम ने फोन उठाया और शराब तथा खाने की वस्तु का आर्डर दे डाला।
कभी-कभी मुझे अपने किये का दुख होता था। यह सच था कि मैं अपने शरीर को दूसरे के हवाले कर आनन्द प्राप्त करती थी। सच बात उगलवा लेती थी, किन्तु मुझे आत्मिक क्षोम होता था। मैं एक औरत थी जो बार-बार गिरना पसन्द नहीं करती थी।
मैं इन्हीं विचारों में खोई हुई थी कि बेयरा शराब और खाने का सामान लेकर आ गया। वह भी मुझे घूर-घूरकर देख रहा था, फिर चला गया। उसके जाते ही विलयम मेरी ओर झुका और होंठ चूमकर मुस्कराने लगा। मैं भी मुस्करा पड़ी।
पैग बने, फिर हम लोग घूंट भरने लगे। वह उत्तेजित हो चुका था। विलयम किसी कवि की तरह मेरे रंग रूप पर अंग्रेजी की कवितायें कहने लगा था। वह जौली मूड का आदमी था। यदा-कदा मुझे छेड़कर मेरे चेहरे पर उभरने वाली प्रतिक्रिया का मजा लेने लगता था।
यह बिल्कुल नया तरीका था। हिंसक पुरुषों के सम्पर्क में मैं आ चुकी थी। किन्तु इस तरह के पुरुष से मेरा पाला नहीं पड़ा था। वैसे मुझे मालूम था इस तरह के पुरुष को समर्पित करने में अधिक आनन्द प्राप्त होता था।
मैं उसे सहयोग करने लगी। एक-एक करके उसके सारे कपड़े उतार दिये। वह अधिक उम्र का अवश्य हो चुका था किन्तु अभी बूढ़ा नहीं हुआ था। उसका शरीर अब भी जवान था।
मैं उससे पहले गाऊन उतार चुकी थी। वह पागलों की तरह मुझ पर टूट पड़ा था और होठों से मेरे जिस्म को सहलाने लगा था। वह कुछ विचित्र व्यक्तित्व का व्यक्ति था। उसकी हरक्तों में एक बचपना था।
वह बच्चों की तरह आवरणहीन शरीर को सहला रहा था। मैं धीरे-धीरे उत्तेजना की ओर बढ़ रही थी।
उसने मेरी कमर को अपनी बांहों में ले लिया और पूरी ताकत से उठकर खड़ा हो गया। मैं उस पर झुक गई थी। वह बच्चों जैसी हरकतें करने लगा। उसका अन्दाज बेहद खतरनाक था। कभी-कभी उत्तेजना के बहाव में दांत भी चुभा देता था। मैं सित्कार कर उठती थी।
मेरे सित्कार उसके लिये वरदान साबित हो रहे थे। वह और भी उत्तेजित हो उठता था। फिर पूरी उत्तेजना में छेड़-छाड़ करने लगता था।
उसने मुझे फर्श पर खड़ा कर दिया और गले में बांहें डालकर मेरे होंठों को चूम लिया।
“डीयर विलयम...क्या तुम किसी से प्यार करते थे?” मैंने प्रश्न किया।
पुरुष की कमजोरी को मैं अच्छी तरह जानती थी। जब वह पूर्णतया उत्तेजित हो जाता है तो उसके मन से सारी बातें दूर हो जाती हैं। उसकी सिर्फ एक ही चाहत रहती है, औरत को प्राप्त करना। औरत प्राप्त करने के लिए वह प्रत्येक शर्त मानने के लिए विवश होता है। दूसरे शब्दों में वह औरत का गुलाम बन चुका होता है और वही करता है जो औरत चाहती है।
“हां डार्लिंग...! उसने मेरे उरोजों से खेलते हुए कहा—जो उत्तेजना के कारण काफी सख्त पड़ गए थे।
“तुम झूठ कहते हो?” मैंने भोलेपन से कहा।
“क्या तुम्हें मुझ पर विश्वास नहीं? अगर तुम यहां रहना चाहो तो मैं तुम्हारा पूरा खर्च उठा सकता हूं। तुम जो भी चाहोगी वही करूंगा।” वह शराब के नशे और उत्तेजना में बहकता हुआ बोला।
उसकी उंगलियां अभी भी हरकत कर रही थीं। मेरी छाती पर उभरे हुए दोनों गुम्बद उसकी पकड़ में थे जिसे वह सख्ती से मसल रहा था।
“विलियम मेरी जान खतरे में है। मैंने उसकी आंखों में झांक कर कहा।
मैं जानना चाहती थी कि वह डरपोक आदमी है या साहसी। मैंने एक खास बात पुरुषों के विषय में और जान ली थी कि वासना पीड़ित पुरुष काफी हिम्मत वाले होते हैं या फिर कायर।
“जब तक मैं यहां हूं तुम्हारी जान को कोई खतरा नहीं। उसने कहा और मेज की ओर मुझे झुका दिया। स्वयं सामने से हटकर पीछे आ गया।
वह पूरी तरह से उत्तेजित हो गया और मेरी रंगों में समा जाने के लिए तैयार था जबकि मैं अभी नहीं चाहती थी।
उत्तेजित तो मैं भी थी किन्तु उस आदमी का पता जानना अति आवश्यक था जो लिफाफा पहुंचाने विलियम तक आया था। उस आदमी का पता पाते ही मैं यह जानने में सफल हो जाती कि सैक्स इन्टरनेशनल के एजेण्ट की लाश कहां दबाई गई है।
अपनी तरफ से मैंने विलयम को कोई सहारा नहीं दिया। वह मेरे पीछे आकर बैठ गया था। मेरी हथेलियां मेज पर जमी हुई थीं। मैंने झुककर विलियम की ओर देखने का प्रयास किया। उस का चेहरा तो नजर नहीं आया किन्तु शरीर के अन्य हिस्से नजर आये। मेरी नजर अपने उरोजों पर पड़ी। एक पल के लिये मेरी सारी उत्तेजना गिरते हुये बालू के महल के सामन धाराशायी हो गई।
मेरे उरोज अब पहले की तरह कसे हुये नहीं थे। कुछ ढीले हो गये थे। एक क्षण के लिये तो जी में आया कि विलयम की गरदन तोड़ दूं। सीधे थाम्पसन के सामने पहुंचकर कहूं कि मुझे छुट्टी दे दो। मैं समय से पहले ही बूढ़ी नहीं होना चाहती हूं और न मरने का इरादा है। मुझे तुम्हारी नौकरी से कोई वास्ता नहीं। मेरी जगह किसी ओर को रख लो।
सोचने के बाद भी मैं विवश थी क्योंकि विलियम की हरकतों ने अचानक ही मेरी नस-नस में शोला भड़का दिया था। वह पीछे बैठकर नितम्बों को होंठों से सहलाने लगा था और उसके होंठ गुदाज स्थान पर जम गये थे। जो मेरे झुकने के कारण उभर आया था।
उसका सहलाना मुझे बड़ा सुखद लगा। कुछ दिनों पहले ही अफ्रीका के मिशन पर इसी तरह के एक पुरुष से मेरी मुलाकात हुई थी और वह भी रातभर मेरे शरीर को भोगता रहा था।
सैक्स मेरी कमजोरी थी। मैं तरह-तरह के पुरुषों के साथ अपने शरीर का आनन्द लेना चाहती थी और मैंने पाया था कि विलियम की हरकतें पुरानी होती हुई भी नयी तकनीक से भरपूर हैं।
मेरी उत्तेजना चरम सीमा पर पहुंच गयी थी। मैं उसे किसी तरह का सहयोग नहीं देना चाहती थी। फिर भी मेरे नितम्ब आप ही आप उठ जाते थे या नीचे की ओर झुक जाते थे। शायद यह आनन्दातिरेक के कारण हो रहा था।
विलियम इसे सहयोग समझ रहा था। उसकी हरकतें बढ़ती जा रही थीं। कभी-कभी उसके हांफने और सिसकार लेने की आवाज मुझे सुनाई पड़ जाती थी।
मैं भाप की तरह उड़ती जा रही थी और महसूस करने लगी थी कि कुछ ही देर बाद निढाल होकर बिस्तर पर लेट जाऊंगी। विलियम को सहयोग नहीं कर सगूंगी। जब उसे सहयोग नहीं करूंगी तो मेरा मसला हल नहीं होगा।
मैं अचानक ही सीधी खड़ी हो गयी।
विलियम अपने होंठों पर जुबान फेरता हुआ पीछे से सामने आ गया। वह इस तरह होंठों पर जुबान फेर रहा था मानों की स्वादिष्ट वस्तु खाकर उठा हो।
मैं उससे लिपट गयी और पूछा—“डार्लिंग जिस आदमी ने तुम्हें लिफाफा दिया था। वह मेरे जिस्म से प्यार करता है। अगर मैंने उसकी इच्छा पूरी नहीं की तो वह मेरी जान ले लेगा। क्या तुम उसका पता जानते हो?”
“उसकी इतनी मजाल!” वह भड़का।
“क्यों नहीं।” अगर वह मुझे चाहता है तो जबरदस्ती भी कर सकता है।”
“उसकी चिन्ता मत करो। मैं उसे देख लूंगा।” विलियम ने कहा और गोद में उठाकर बिस्तर पर ला पटका।
कामयाबी तक पहुंचकर मैं लौट आयी थी। अभी बिस्तर पर रहकर विलियम की इच्छा पूरी नहीं करना चाहती थी क्योंकि मुझे मेरे प्रश्नों का उत्तर नहीं मिल पाया था।
मैं बिस्तर से उतरकर दूसरी और जा खड़ी हुई।
काफी देर बाद विलियम के होंठों पर मुस्कुराहट की हल्की रेखा दिखाई पड़ी। पलंग के गिर्द घुमकर वह मेरे पास पहुंचा। मेरे जिस्म को सहलाया, फिर हाथ खींचता हुआ इजी चेयर के समीप ले आया।
मैंने महसूस किया कि मेरे शरीर से कोई तपती हुई चादर लिपट गई है। मेरी आंखों के सामने अचानक ही एक विचित्र दृश्य खिचता चला गया। घबराहट के मारे आंखों में दहशत भर आयी।
“डीयर विलियम!” हांफकर मैंने पूछा—“तुम उस आदमी को जानते हो जो मुझे लिफाफा देने आया था? अगर उसने ज्यादती की तो तुम क्या करोगे?”
“मैं उसे जिन्दा खा जाऊंगा।” विलियम ने चिपटते हुये कहा मेरे पास दौलत की कोई कमी नहीं है। मैं भी इस काम के लिये गुन्डों की सहायता ले सकता हूं।”
विलियम की कमर का निचला हिस्सा मेरे नितम्ब से टकराने लगा था।
मेरी उत्तेजना इस समय चरम सीमा पर थी। मैं शीघ्र ही उसका साथ छोड़ जाती तो यह मेरी पराजय थी।
आज तक कोई दुश्मन मुझे पराजित नहीं कर सका था। ऐसा मेरा दावा था। लेकिन पहली बार मैं महसूस कर रही थी कि कहीं विलियम के हाथों पराजित न होना पड़े।
विलियम मेरे शरीर को चाहने लगा था। उसकी बातों से प्रतीत होता था कि वह मुझे कुछ दिनों तक अपने साथ रख कर भोगना चाहता है इस चाहत की पूर्ति के लिये वह उस आदमी की हत्या भी करवा सकता था लेकिन इससे मेरा मसला हल न होकर और जटिल हो जाता।
मैं उस आदमी का पता जानना चाहती थी और स्वयं उससे मिलकर जानकारियां हासिल करना चाहती थी।
विलियम के निःवस्त्र होते ही मेरी आंखों में एक चमक जग उठी थी। बहुत से अंग्रेज पुरुष के साथ रात व्यतीत कर चुकी थी लेकिन विलियम उन सबसे बिल्कुल अलग नजर आया था।
वह पागलों की तरह हांफ रहा था और अपनी कमर को दांयें-बांयें हिलाकर मेरे नितम्बों से खेल रहा था। मेरे लेटने के कारण कुछ कोमल अंग उभर आये थे। जब उन अंगों से उसके अंगों का स्पर्श होता तो पूरे शरीर में एक गुदगुदी सी फैलती चली जाती।
मेरे पांव फर्श पर जमे हुये थे। बड़ी शक्ति से मैंने फर्श को पंजों से दबा रखा था। दोनों हाथों से इजी चेयर को पकड़ लिया था और कभी-कभी आनन्द लेने के लिहाज से कमर को उठा देती थी।
मेरे दोनों उरोज इसी चेयर के बेंत में घुस गये थे। दबाव पड़ने के कारण कुछ जलन होने लगी थी मगर उस जलन में भी एक अजीब आनन्द की अनुभूति हो रही थी जिसे मैं पाना चाहती थी।
“मैं भूलती जा रही थी कि मुझे विलियम से कुछ पूछना भी है। मैं उसे सहयोग करने लगी थी।
“विलियम!” मैंने कमर को तेज झटका देकर विलियम को उछालते हुये कहा—“मुझे सीधा होने दो।”
वह हट गया और मैं खड़ी हो गयी।
मैंने विलियम की ओर देखा। उसकी सांसों की गति काफी तीव्र थी। वह ओलंपिक के धावकों की तरह लम्बी-लम्बी सांसें ले रहा था। मैं उसके सीने से जा लगी और सीने पर उगे सुनहरे बालों से खेलने लगी जिसमें कुछ सफेद बाल भी दृष्टि गोचर हो रहे थे।
“डार्लिंग!” मुझे बांहों में दबाकर उसने भरपूर चुम्बन लिया और गाल पर थपकी जमाता हुआ बोला—“क्या इसी तरह रात गुजार देने का इरादा है?”
“मुझे खेलने में अधिक सकुन मिलता है।” मैं मुस्कराई—“अगर खेल-खेल में ही रात गुजर जाये तो अच्छा है।”
“नहीं डार्लिंग।” उसने व्याकुल स्वर में कहा—“अब मैं अधिक इन्तजार नहीं कर सकता। तुम्हें पलंग तक चलना चाहिये।”
“मैं कुछ भयभीत हूं।”
“किसलिये?”
“तुम उस आदमी का पता बताते क्यों नहीं जो लिफाफा देने आया था?”
“क्या करोगी जानकर?” पलंग की ओर घसीटते हुये उसने कहा।
मैं इन्कार नहीं कर सकी क्योंकि मैं भी अब यही चाहने लगी थी। उसने पलंग पर मुझे लिटा लिया और मैं स्वंय बगल में उसके सीने से चिपक गई।
बातचीत के दौरान हम दोनों की उत्तेजना कम हो गयी थी। उसने मुझे पुनः गर्म करना शुरू किया परन्तु पहल मेरी थी। अब मैं उसे उत्तेजना के उस शिखर पर पहुंचा देना चाहती थी जहां पुरुष खुद को भूल कर कीड़ा बन जाता है और घुसने के लिये गन्दी गलियों की तलाश करता है।
कुछ ही देर बाद विलियम उस दशा में पहुंच गया। वह पागलों की तरह हाथ जोड़ने लगा था और मैं उसे उत्तेजित किये जा रही थी।
“रोमा डार्लिंग...प्लीज...।” वह सित्कार कर उठा।
“विलियम, तुम्हारी सारी इच्छा पूरी कर दूंगी लेकिन पहले मेरे दुश्मन का पता मुझे बता दो।” मैंने कहा। मैं भी जल्दबाजी में थी। अगर विलियम अपनी जुबान कुछ देर के लिये खामोश रख लेता तो उसकी जगह मैं उसे हाथ जोड़ती नजर आती।
“वह ग्रीन स्क्वायर बंगला नम्बर चार में रहता है।”
“अकेले या उसके और भी साथी हैं?”
“वह बड़ा ही खतरनाक आदमी है। उसे साथियों की भी आवश्यकता नहीं।”
विलियम से मुझे जो जानकारी हासिल करनी थी वह प्राप्त हो चुकी थी।
उत्तेजना बर्दाश्त करना भी बस का नहीं था। मैंने खुद को विलियम की दया पर छोड़ दिया। कमरे में अन्धकार छा गया। फिर हम दोनों की गर्म-गर्म सांसों की आवाज कमरे के सन्नाटे में गूंजने लगी।
¶¶
1 review for Simple Product 007
Additional information
Book Title | भीगी रात का हुस्न : Bheegi Raat Ka Husn by Helen |
---|---|
Isbn No | |
No of Pages | 160 |
Country Of Orign | India |
Year of Publication | |
Language | |
Genres | |
Author | |
Age | |
Publisher Name | Ravi Pocket Books |
Related products
-
- Keshav Puran : केशव पुराण
-
10048
-
- Changez Khan : चंगेज खान
-
10048
admin –
Aliquam fringilla euismod risus ac bibendum. Sed sit amet sem varius ante feugiat lacinia. Nunc ipsum nulla, vulputate ut venenatis vitae, malesuada ut mi. Quisque iaculis, dui congue placerat pretium, augue erat accumsan lacus