भड़वा
“किदर कू जायेंगा बाप....? अपुन की मंजुला में बैठ—जिदर कू कहेगा—उदर कू पहुंचा देगा।”
तेजा उस व्यक्ति की बात पर चौंका।
मुम्बई से भागकर वह ट्रेन में चढ़ा और पूरे चौबीस घण्टे का सफर तय कर यहां राजनगर में आकर उतरा था।
राजनगर से वह पूरी तरह से अन्जान था। स्टेशन से बाहर आकर वह यह सोच रहा था कि किससे इस शहर के बारे में पूछे—और क्या पूछे।
अभी वह सोच ही रहा था कि तभी उसके बाईं तरफ से कुछ शब्द उसके कानों में पड़े।
खाकी रंग की कमीज पहने—बेतरतीब दाढ़ी वाला एक व्यक्ति कान में माचिस की तीली डाले उसे कुरेद रहा था।
उस व्यक्ति के पीछे टैक्सी स्टैण्ड था—और टैक्सी स्टैण्ड के बाहर रिक्शा तथा ऑटो बेताबी से खड़े बाहर निकल रहे यात्रियों का इन्तजार कर रहे थे।
“यह मंजुला कौन है....?” वह हैरानी दर्शाते हुए बोला।
“अपुन का टैक्सी का नाम है बाप....। उसमें बैठेगा तो ऐसा लगेगा जैसे किसी छोकरी की गोद में बैठा हो। लाऊं मंजुला को....?”
तेजा के होठों पर मुस्कान नाच उठी।
ग्राहक को पटाने का यह बढ़िया तरीका था।
“ले आ....।” तेजा बोला।
टैक्सी ड्राईवर ने तीली कान से निकालकर एक तरफ फैंकी और अपनी नाक को उंगली से खुजाते हुए मुड़ा और टैक्सी स्टैण्ड की तरफ बढ़ गया।
तेजा वहीं खड़ा उसका इंतजार करने लगा।
शीघ्र ही एक टैक्सी उसके करीब रुकी।
ड्राइविंग सीट पर वही व्यक्ति बैठा था।
“बैठ बाप....।” वह अपनी सीट पर बैठे-बैठे पिछला दरवाजा खोलते हुए बोला।
मगर तेजा ने अगला दरवाजा खोला और उसके बराबर वाली सीट पर बैठ गया।
ड्राईवर ने पिछला दरवाजा बन्द किया और अपनी बांह को वापस खींच टैक्सी को आगे बढ़ाते हुए बोला—“किदर कू चलेंगा बाप...?”
तेजा ने गहरी सांस छोड़ी—और उसकी तरफ देखते हुए बोला—“इस शहर में नया है तू....?”
“पाण्डया को दस साल ईदरीच कू रहते हो गये बाप....।”
“पाण्डया....?”
“अपुन पाण्डया है।”
“मगर तेरी बोली तो....।”
“पहले अपुन मुम्बई में था—वहां किसी के साथ राड़ा हो गया—और अपुन ईदर कू आ गया।”
“और दस साल से यहां रह रहा है तू....?”
“यस बाप....।”
“फिर तो तू यहां का चप्पा-चप्पा जानता होगा?”
“तू ठीक पहचाना सेठ—तू बोल तो सही—अपनु तेरे कू ऐन तेरे ठिकाने पर छोड़के आयेंगा....।”
“तू पहले मुझे पूरा शहर घुमा।”
पाण्डया ने उसे गहरी निगाह से देखा—फिर सामने देखते हुए बोला—“नया आयेला है यहां....?”
“हां—।”
“रोकड़ा है पॉकेट में....?”
“कितना....?”
“तीन सौ—पूरा शहर घूमने का....।”
तेजा ने चुपचाप जेब से तीन सौ रुपये निकालकर उसकी गोद में रख दिये—फिर सौ का एक और नोट डालते हुए बोला—“यह सौ रुपये गाईड बनने के....। तू मुझे यहां की खास-खास जगहों के बारे में बतायेगा—फिर किसी ऐसी जगह ले जायेगा—जहां मैं आराम से रात बिता सकूं....।”
“रात अकेले ही बितायेंगा सेठ....?”
नोट अपनी गोद से उठाकर एक नजर उन पर डालकर अपनी जेब में रखते हुए मुस्कुराया पाण्डया।
“क्या मतलब....?”
तेजा ने चौंककर उसकी तरफ देखा।
विण्डस्क्रीन पर निगाहें गड़ाये पाण्डया के होठों पर फैली मुस्कान तेज हो गई।
“अपुन ने तुझे कहा न कि अपुन दस साल से ईदरीच रहेला है।”
“मैं सुन चुका हूं।”
“बहुत जान-पहचान है अपुन की....। अगर तू कहे तो अईसा साफ-सुथरा और एवन माल पेश करूं कि....।” उसने उंगली और अंगूठे को मिलाकर बांह को विण्डस्क्रीन की तरफ आगे-पीछे करते हुए बाईं आंख दबाई—“कि तबीयत फड़क उठेगी।”
सुनकर तेजा के होठों पर मुस्कान फैल गई।
वह समझ गया कि वह रात बिताने के लिये कोई लड़की आफर कर रहा है। साथ ही उसके जेहन में केशवगढ़ के वाकयात घूम गये।
अपने इसी ठरकपने की वजह से वह पहले पिटा था—और फिर गहरे चक्कर में फंस गया था।
और ऐसे चक्करों की तो उसे हमेशा तलाश रहती है।
“रेट क्या होगा?” उसने पूछा।
“तू अपनी जेब के हिसाब से बोल बाप....। अगर तेरी जेब हल्की है तो पांच सौ में भी तुम्हारा काम हो जायेगा—बोले तो पांच हजार की भी मिल सकती है—बाकी होटल का—खाने-पीने का और अपुन का कमीशन अलग।”
“भड़वागिरी बोल न....।”
पाण्डया ने उसकी बात का जरा भी बुरा नहीं माना—बल्कि हंस पड़ा।
“नाम तो यह भी ठीक है बाप—पन वो क्या है कि यह नाम आऊट ऑफ फैशन हो गया है....। अब अपुन कमीशन एजेंट है....। इधर गिराहक को पटाया—उधर अपुन की कमीशन खरी।”
हंस पड़ा तेजा।
“बोल बाप—किदर जाने का—पांच सौ की तरफ या पांच हजार की तरफ?”
तेजा पुनः हंसा और पाण्डया की तरफ पहलू बदलते हुए अपनी दाईं बांह सीट की पुश्त पर टिकाई और उसके चेहरे पर निगाहें टिकाते हुए बोला—
“पांच सौ और पांच हजार में फर्क तो बोल पाण्डया....। मुझे तो सारी की सारी एक जैसी ही नजर आती हैं। फिर क्यों खर्च करूं पांच हजार....।”
“हा....हा....हा....।” जोरों से हंस पड़ा पाण्डया और स्टीयरिंग को बाईं तरफ मोड़ते हुए बोला—“बहुत फर्क होता है बाप....।”
“वही तो पूछ रहा हूं।”
पाण्डया ने पहले सोचपूर्ण मुद्रा बनाई, फिर बोला—“सबसे बड़ा फर्क तो यह होता है बाप कि पांच हजार वाली में ताली नहीं बजती—जबकि पांच सौ वाली में ताली बज जाती है....।”
जोरों से हंस पड़ा तेजा।
“साथ में पांच हजार वाली के लटके-झटके ही अलग होते हैं बाप....। बस यूं समझ ले कि तू उस पर बेशक न चढ़े—फिर भी तेरे पांच हजार वसूल हो जायेंगे।”
“ऐसा क्या?”
“अईसा ही बाप।”
“और तेरी भड़वागिरी....।”
“दस परसेंट....।”
सामने देखते हुए पाण्डया ने स्टीयरिंग से हाथ हटाकर दोनों हाथों की उंगलियां सामने फैलाईं—फिर पुनः स्टीयरिंग पकड़ लिया।
“यानि पांच सौ....?”
“यस....।”
“बहुत ज्यादा है।”
“फिक्र न कर बाप—अपुन तेरे से कम में काम चला लेगा—तू हां तो बोल।”
“और होटल का खर्चा....?”
“तेरा सारा खर्चा मिलाकर सात हजार हो जायेगा बाप—जिसमें झक्कास लौंडिया भी होयेंगी—अपुन का कमीशन भी—होटल का खर्चा भी और खाना-पीना भी....।”
“ठीक है....डन....।” कहते हुए तेजा ने उसकी तरफ मुट्ठी बन्द कर अंगूठा खड़ा किया।
“तो फिर अपुन पहले तुम्हेरे वास्ते होटल फोन कर देता हूं—फिर तुम्हेरे को राजनगर घुमायेंगा—फिर तुम्हेरे को उस होटल में ले जायेंगा।”
“ओ.के.....मगर मेरी एक शर्त होगी।”
“बोल बाप....।” पाण्डया ने उसकी तरफ देखा—फिर पुनः सामने देखने लगा।
“अगर मुझे माल पसंद नहीं आया तो....।”
“तुम्हेरे को माल पसंद आयेंगा बाप....यह पाण्डया का वादा है....श्रीदेवी को भेजेंगा अपुन....। ऐसा झक्कास माल है कि देखते ही उछलना शुरू कर दोगे।”
“फिर भी अगर मुझे पसंद नहीं आया तो मैं एक पैसा भी नहीं दूंगा....।”
“मंजूर....।”
“तो फिर कर ले फोन....और फिर घुमा मुझे शहर....।”
“अपुन श्रीदेवी को भी फोन किये देता है।”
तेजा ने सिर हिला दिया।
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