बहन के कटे हाथ
राकेश पाठक
“हे भगवान, हमें कलयुग के इस कंस से मुक्ति दिला दो—शान्तिनगर वालों ने पिछले जन्म में न जाने क्या पाप किए थे—जो हमें पाप और जुल्मों की इस काली धरती पर उतार दिया गया है—इससे तो हमें इंसान की योनि में जन्म नहीं मिलता, हमारी आत्मा नर्क में पड़ी रहती—नर्क के कष्ट बर्दाश्त हो जाते परन्तु शान्तिनगर की फिजाओं में तो पाप और अत्याचार का इतना जहर घुला हुआ है कि सांस लेनी भी दूभर हो गई है।”
वो अधेड़ शख्स रोने लगा था, फिर उसने कन्धे पर पड़े अंगोछे से आंसू पौंछ लिए—भगवान कृष्ण की तस्वीर से मुखातिब होकर भर्राये गले से बोला—“क्या कुत्ते से भी बदतर जिन्दगी मिली है हम शान्तिनगर वालों को—मां की कोख से जन्म लेने वाला बच्चा शेषनाग के जुल्मों सितम का कर्जदार बन जाता है—उसकी जन्मपत्री में लिख दिया जाता है कि वो जब तक मर नहीं जाएगा—उसे शेषनाग और उसके गुण्डों के आतंक के साए तले जीना होगा—उस बच्चे को शेषनाग अपनी झूठी शराब की घुट्टी पिलाता है—ताकि उसके जिस्म में दौड़ते लहू में शेषनाग के नाम की दहशत मरते दम तक रची-बसी रहे—दुनिया के बच्चे पालने में पलते हैं—उन्हें गोलीबारी और चीखो पुकार के खिलौनों से खेलना होता है—उसे स्कूल में शिक्षा दी जाती है कि शेषनाग ही उसका खुदा—उसका भगवान है—अगर वो शेषनाग के अलावा किसी और को अपना भगवान मानेगा तो कुत्ते की मौत मारा जाएगा—क्या होगा इस शहर का? इस मनहूस शहर में रहने वालों का? एक रोज गीता में पढ़ा था कि जब इस धरती पर पापों का बोझ बढ़ जाता है तो तुम पाप का विनाश करने के लिए अवतार लेते हो मुरलीधर—शान्तिनगर में तो पाप और जुल्मों सितम के बोझ से धरती चरमराने लगी है... इंसानियत हाहाकार कर रही है परन्तु किसी सुदर्शन चक्रधारी का अवतार नहीं हुआ है—जो कलियुग के कंस से महाभारत लड़ सके—क्या शान्तिनगर में कभी इंसाफ का दीया नहीं जलेगा प्रभु?”
“जरूर जलेगा दीया परन्तु वो दीया जुल्मों सितम की मिट्टी से बना होगा—इसमें तेरी जिन्दगी की बत्ती जलेगी और तेल की बजाय तेरा खून भरा होगा नास्तिक इंसान।” भेड़िए की गुर्राहट जैसी आवाज ने उसको इस कदर चिहुंका दिया—मानो उसके ऊपर दहकते अंगारों की वर्षा हो गई थी।
पलटकर उसने जब सात फुटे दैत्याकार इंसान को देखा तो चेहरे पर हवाईयां उड़ने लगीं तथा समूचा जिस्म पसीने से लथपथ होता चला गया।
“व... वासुकी जी... आप...।” उसकी घिग्घी-सी बंध गई—जिस्म आंधी तूफ़ान में फंसे मरियल पेड़ की तरह कंपकंपाने लगा।
उस काले-कलूटे और खौफनाक सूरत वाले शख्स का नाम था वासुकी।
शान्तिनगर का सिपहसालार!
शेषनाग के गुण्डों की सेना का पति!
आंखों से तेजाब और मुख से शब्दरूपी अंगारे बरसाते हुए वो फुंफकारा—“कुत्ते के बच्चे... तूने अपने घर में कृष्ण की तस्वीर लगाकर शेषनाग जी का घोर अपमान किया है—क्या तुझे मालूम नहीं है कि शान्तिनगर में सिर्फ शेषनाग की ही पूजा होती है—घर हो या चाहे मन्दिर हो... शेषनाग जी की ही तस्वीर या मूर्ति लगती है—अगर कोई दूसरे किसी भगवान या देवता की पूजा करता है तो उसे नास्तिक कराकर दिया जाता है, तू नास्तिक की सजा जानता है न... मौत!”
“न- नहीं...।” वो दोनों हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाया—“मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई है वासुकी जी—मैं अपने रिश्तेदार के यहां गया था तो ये तस्वीर ले आया था।”
“तू तस्वीर नहीं, अपनी मौत लाया था मूर्ख—अगर तूने शेषनाग जी की तस्वीर लगाई होती तो जिन्दगी का इनाम पाया होता—लेकिन तूने तो ये तस्वीर लाकर अपनी मौत के परवाने पर दस्तखत कर दिया है—बात तस्वीर की ही होती तो शायद माफी मिल भी जाती—लेकिन तूने तो बगावत भी की है—शेषनाग जी के विनाश के लिए कृषण से अवतार लेने के लिए बोल रहा था तू—यानी तेरी आत्मा ने शेषनाग जी के शासन को नकार दिया है—और जो आत्मा शेषनाग जी को पसन्द नहीं करती है—उसे इस लोक में तो रहने नहीं दिया जाता है—चल, तेरा फैसला आम दरबार में ही होगा—इसे गिरफ्तार कर लिया जाए।”
वासुकी के साथ आए स्टेनगनधारी गुण्डों ने उस इंसान को दबोच लिया।
ने काले रंग की वर्दी पहनी हुई थी, जिस पर नाग की तस्वीर छपी हुई थी।
¶¶
इंजन की गड़गड़ाहट ने शान्तिनगर वालों की निगाहें आसमान की तरफ उठा दीं।
काले रंग का हेलीकॉप्टर नीले आसमान तले हवा में परवाज कर रहा था।
जितनी भी निगाहें हेलीकॉप्टर पर टिकीं थीं, सबमें आशंकाओं की स्याही घुलने लगी।
“न जाने क्या आपदा आने वाली है शान्तिनगर में भाई—इस मनहूस हेलीकॉप्टर ने हमेशा ही हमें आम दरबार में पहुंचने के लिए सन्देश दिया है और हमें दिल दहला देने वाला नजारा ही देखने को मिला है।”
“ठीक बोलते हो भाई जान—न जाने किस अभागे पर शेषनाग का कहर टूटने वाला है? मुझे अपने बीमार बच्चे को हॉस्पिटल ले जाना था—बहुत बीमार है मेरा बच्चा!”
“लेकिन आम दरबार में तो जाना ही होगा—वर्ना पूरे परिवार को आग में झोंक दिया जाएगा।”
“शान्तिनगर के नागरिकों को शेषनाग जी का फरमान सुनाया जाता है।” हवा में परवाज करते हेलीकॉप्टर के नीचे बंधे लाउडस्पीकर से आवाज गूंजी—“सबको घण्टे भर के भीतर राजमहल के प्रांगंण में हाजिरी देनी है—भले ही किसी को कितना भी जरूरी काम क्यों न हो, लेकिन हर किसी का आम दरबार में पहुंचना जरूरी है—अगर कोई घण्टे भर के बाद आम दरबार से बाहर पकड़ा गया तो उस पर पेट्रोल छिड़ककर आग लगा दी जाएगी।”
हेलीकॉप्टर अनाउंस करके चला गया।
एक दुकान पर भीड़ लगी थी, लेकिन दुकानदार ने शटर नीचे गिराते हुए बेमन से कहा—“शाम को आना भाई लोगों—फिलहाल तो हमें आम दरबार में चलकर किसी अभागे की बर्बादी का मंजर देखना है।”
“लेकिन मुझे एनासिन की गोली चाहिए—मेरे पति के सिर में तेज दर्द है।”
“मेरी बहन... चुपचाप घर चली जा—तेरे पति का सिर रहेगा तो शाम को एनासिन भी खा लेना।”
“मुझे दूध का डिब्बा चाहिए—मेरा बेटा भूखा है।”
“अगर तुम आम दरबार में न गईं तो तुम्हारा बेटा कभी दूध नहीं पिएगा बहन जी—अगर काली सेना की जीप आ गई तो मेरी दुकान को बम से उड़ा देगी—मेरे घरवाले जिन्दगी भर मेरे लौटने का इन्तजार ही करते रहेंगे।”
सिर्फ वो ही दुकान क्या... शहर भर की दुकानें बन्द होती चली गईं।
इंसान तो क्या... सड़कों पर चिड़िया का बच्चा भी नजर नहीं आ रहा था।
कर्फ्यू जैसी स्थिति थी।
¶¶
राज महल—यानी कलयुग के कंस का घर।
विशालकाय तथा गगनचुम्बी इमारत, जो काले पत्थर से निर्मित होने के कारण 'मनहूस' नजर आती थी।
महल के बाहर इतना बड़ा मैदान था कि एक लाख आदमी समा सकते थे।
राजमहल के मुख्य दरबार के ऊपर लम्बी-चौड़ी बालकनी थी, जिसमें पांच सिंहासन लगे हुए थे, बीच वाले सिंहासन पर विराजमान था—शेषनाग!
वो हस्ती, जिसके नाम का डंका बजता था, जिसकी इजाजत के बिना वहां पत्ता नहीं खड़खड़ाता था, पंछी पंख नहीं फड़फड़ाते थे।
जिसने शेषनाग को अपनी आंखों से नहीं देखा था, लेकिन शेषनाग के बारे में जानकारी रखता था—वो उसे देखकर यकीन नहीं कर सकता था कि वही शान्तिनगर का तानाशाह होगा।
साठ वर्षीय शेषनाग की कद-काठी साधारण थी और रंग मक्खन में मिले चुटकी भर सिन्दूर जैसा था।
वो काले रंग का कुर्ता-पायजामा पहने हुए था, माथे पर काले रंग का नाग बना हुआ था।
सिर पर बगुले जैसे सफेद बर्राक बाल थे, लेकिन बीच में काले बालों की भी लकीर बनी हुई थी।
बालकनी के सामने और मैदान के बीच में एक चबूतरा—जिस पर दो खम्भे खड़े हुए—दोनों खम्भों के बीच वो अधेड़ सख्त खड़ा था, जिसके हाथ खम्भों से जुड़ी जंजीरों से बंधे हुए थे।
चबूतर के नीचे काली वर्दी वाले तैनात थे, जिनके हाथों में थमीं स्टेनगनों का रुख चबूतरे के चारों तरफ खड़ी भीड़ की तरफ था।
शेषनाग का सिपहसालार वासुकी बालकनी में ही था और शेषनाग के सिंहासन के पीछे खड़ा था।
शेषनाग की अगल-बगल वाली सीटों पर उसके चारों बेटे विराजमान थे।
महेश, मंगल, किरण और विक्रम की उम्र में साल साल भर का ही अन्तर था, लेकिन चारों की हमशक्ल और शेषनाग की टू कॉपी होने के कारण जुड़वां भाई मालूम होते थे।
“शान्तिनगर वालों...।” मैदान के चारों तरफ लगे स्पीकरों से जख्मी नाग की फुंफकार जैसी आवाज गूंजी—“हमारा मुजरिम चबूतरे पर खड़ा है—जिसे थोड़ी देर बाद सजा दी जाएगी, हमने तुम लोगों को इस गुस्ताख का हश्र दिखाने के लिए ही यहां बुलाया है—ताकि फिर कोई इस जैसे हिमाकत न कर पाए—बहुत बड़ा जुर्म किया है इसने—इसके घर में कृष्ण की तस्वीर लगी थी—ये कृष्ण को अवतार लेने को बोल रहा था, ताकि हमारा खात्मा करवा सके—इस बेवकूफ से कोई पूछे कि भला हमसे भी ताकतवर कोई भगवान हो सकता है? सतयुग, त्रेता, द्वापर युग में अवतार होते थे, जिन्हें भगवान की उपाधि दी जाती थी—कलयुग में तो वही भगवान होता है... जिसके पास ताकत होती है—शेषनाग इस धरती का भगवान है—क्योंकि शेषनाग के पास ताकत है—दौलत और हथियार की ताकत—तभी तो तुम लोग हमारी इच्छा से सांसें लेते हो और हमारे बनाए हुए संविधान का पालन करते हो—ऐसा कोई माई का लाल नहीं है कि जो हमसे निगाहें मिलाकर बात कर सके—इस हरामजादे ने हमारे संविधान की मुगालफत की है—हमसे बगावत की है—हम सजा सुनाते हैं कि इस पापी को पत्थर मार-मार कर खत्म कर दिया जाए—तुम लोगों को एक-एक पत्थर दिया जाएगा—सिर्फ दस मिनट का टाइम होगा—तुम लोगों के पत्थरों से ये दस मिनट के भीतर मर जाना चाहिए वर्ना तुम लोगों पर गोलियां बरस जाएंगी।”
राजमहल के भीतर से पचास के लगभग खूबसूरत व अर्धनग्न युवतियां निकलीं—जिनके हाथों में सोने की थालियां थीं और थालियों में पत्थर भरे हुए थे।
अनिच्छा से हर किसी को एक-एक पत्थर उठाना पड़ा।
“शुरू हो जाओ...।” शेषनाग सामने रखे माइक में बोला—“इस नास्तिक को पत्थर से मारो—अगर ये दस मिनट बाद भी जिन्दा रहा तो तुम सबकी जिन्दगी छीन ली जाएगी।”
लेकिन!
दो, तीन मिनट तक भी कोई पत्थर चबूतरे पर आकर नहीं गिरा।
आंखों में अंगारे भरकर शेषनाग झटके के साथ उठ खड़ा हुआ—उसकी मुट्ठियां भिंचती चली गईं तथा फुलते-पिचकते नथुनों से फुंफकारे निकलने लगीं।
वासुकी सिंहासन के पीछे से निकलकर बालकनी की रेलिंग पर आ गया—जहां पर स्टैण्ड के ऊपर गोली बरसाने वाली मशीनें तोप लगी हुई थी।
मैदान में मौजूद सभी वर्दीधारी गुण्डों ने पोजीशन ले ली, उनके चेहरे इस बात की चुगली खा रहे थे कि हुक्म मिलने के साथ ही उन्हें फायरिंग कर देनी थी।
“ये... ये... क्या बेवकूफी कर रहे हो तुम लोग...।” खम्भों के बीच जंजीरों से बंधा खड़ा शख्स चीखा क्या—“महामहिम का हुक्म हुआ है—पत्थर मारो मुझे—अगर दस मिनट के भीतर मेरी जान नहीं गई तो तुम सब पर मुसीबत टूट पड़ेगी बेवकूफो।”
“हम आपको कैसे मार सकते हैं सिन्हा साहब...!” एक बूढ़ा पत्थर जमीन पर गिराते हुए बोला—“आपने समाज की सेवा की है—मुसीबत की घड़ी में हम सबके काम आए हैं आप, मेरे बेटे का जब एक्सीडेण्ट हुआ था तो आपने ही उसे अपना खून दिया था—वर्ना मेरे घर का इकलौता चिराग बुझ गया होता, शायद ही शान्तिनगर का कोई घर हो, जो आपका अहसानमन्द न हो—हम मर जाएंगे—चला दे ये लोग हम पर गोलियां—क्या फर्क पड़ेगा—हम तो वैसे भी जिन्दा लाश हैं—मौत तो सिर्फ एक बार ही मारती है—लेकिन हम तो हर सांस के साथ मरा करते हैं—इस नामुराद जिन्दगी से छुटकारा...।”
“भगवान के लिए चुप हो जाओ—यूं आत्महत्या करने से कुछ नहीं होगा—अगर इस बेइज्जती भरी जिन्दगी से इतनी ही शर्म आती है तो हर घर में एक कृष्ण पैदा करना—जो कलयुग के इस कंस को मार सके—स्वाभिमानी इंसान आत्महत्या नहीं करता है—वो हालात का मुकाबला बुलन्द इरादों के साथ करता है और जज्बाती नहीं होता है—ये नाजुक घड़ी बगावत करने की नहीं है—इसके लिए सही मौके का इन्तजार करना होगा—मुझे इस बात की खुशी है कि मेरी मौत की कल्पना ने तुम लोगों के जमे हुए खून को पिघला दिया है—तुम्हें इस फोन को ठण्डा नहीं पड़ने देना है मास्टर जी—इस खून को तेजाब बनाओगे तुम—फिलहाल मेरी मौत होनी जरूरी है—वर्ना शान्तिनगर श्मशान घाट बन जाएगा—मैं तुम सबको उनकी सौगन्ध देता हूं, जिन्हें तुम अपने से भी ज्यादा प्यार करते हो—अगर तुम मुझे नहीं मारोगे तो मैं जिन्दा रहने वाला नहीं हूं—मुझे शेषनाग मार डालेगा—लेकिन मैं इस पापी के हाथों से नहीं मरना चाहता, तुम लोगों के हाथों मरने पर मेरी आत्मा को शान्ति मिलेगी—भगवान के लिए मुझे मारो... आह...!”
आंसुओं से भीगा हुआ पहला पत्थर उसके माथे पर लगा।
फिर दूसरा पत्थर... फिर तीसरा... फिर कई पत्थर लगे उसे, जिसका अपराध ये था कि उसने अपने घर में भगवान की तस्वीर लगाई थी और एक अत्याचारी के अन्त की कामना की थी। फिर शान्तिनगर वाले आंखों में आंसू लिए हुए बोझिल-से कदमों से लौट गए।
मानो अपने प्रियजन का अन्तिम संस्कार करके लौट रहे थे।
“जाते-जाते हमारी बात सुनते जाओ हरामजादो...।” शेषनाग की आवाज गूंजी—“अगर किसी ने भी हमारे अलावा किसी की भी तस्वीर या मूर्ति लगाई तो उसे इससे भी बदतर मौत दी जाएगी—शेषनाग को ही अपना भगवान मानकर फायदे में रहोगे—बागी को कुत्ते की मौत मारा जाएगा।”
मास्टर दीनानाथ नामक शख्स के कदम ठिठक पड़े।
फिरकनी की तरह घूमा और बालकनी में खड़े शेषनाग को घूरते हुए बुदबुदाया—“सिन्हा साहब को पहला पत्थर मैंने मारा था शेषनाग—जिसका जख्म मेरे दिल में रहेगा—उस जख्म को नासूर बना दूंगा मैं—ताकि हरदम याद आता रहे कि मुझे दूसरा पत्थर तुझे मारना है—आज तेरे दरबार से एक बागी जा रहा है—जल्द ही सिर पर कफन बांधकर तेरे खिलाफ बगावत का ऐलान करेगा मास्टर दीनानाथ!”
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