बारह घण्टे बारह कत्ल
रकेश पाठक
आह...तड़पती हुई और भयानक चीख डिसूजा होटल के जर्रे-जर्रे को दहला गई। रिसेप्शन पर बैठी होटल की मालकिन मैडम फरेश भयातुर उछल पड़ी। रिसेप्शन हॉल में मानो भूचाल आ गया हो। ग्राहकों का रेला चीखता-चिल्लाता बाहर को भागा।
बच्चों और औरतों की चीखों से हॉल गूंज पड़ा क्योंकि वे भागती भीड़ के कदमों तले कुचल रहे थे।
धड़ाम...धड़ाम...कुर्सी और मेजें भगदड़ के कारण फर्श पर ढेर होकर शोर उत्पन्न कर रही थीं।
—“खून...खून...खून...भागो...भागो...!”
अनेक स्वर भागते हुए ग्राहकों के बीच से उभर रहे थे।
मैडम फरेश खौफ के वशीभूत होकर पीपल के सूखे पत्ते समान कांप रहा था। सारे वेटर रेलिंग लगी सीढ़ियों पर चढ़ते हुए सेकंड फ्लोर पर जा रहे थे। मैडम फरेश भी सेकंड फ्लोर पर पहुंची। सेकंड फ्लोर पर पांच कमरे थे। चार पर ताले लगे हुए थे। सिर्फ एक कमरे के दरवाजे पर ताला नहीं लगा था। दोनों पल्लों के बीच थोड़ी सी झिर्री खुली थी।
—“क्या हुआ? वह चीख कैसी थी...?”
मैडम फरेश ने दरवाजे को घूरते हुए वेटरों से सवाल किया।
उसके जिस्म की तरह जुबान भी कांप रही थी। भयभीत वेटरों में से किसी ने भी अपनी मालकिन को जवाब नहीं दिया। वे सब बौखलाई अवस्था में दरवाजे को घूर रहे थे।
—“दरवाजा खोलो...।”
सबको सांप सूंघ गया।
—“सुना नहीं...तुम लोगों ने? मैं कहती हूं...दरवाजा खोलो...।”
सब वेटरों ने एक दूसरे के मुंह को ताका।
“पीटर...।” दहाड़ी मैडम फरेश, उसकी दहाड़ में भी अजीब सी लड़खड़ाहट थी—“ये सब बुजदिल हैं। तुम दरवाजा खोलो...।”
—“म...मैं...मैडम...!” पीटर घिघियाया।
—“क्या बकरी की माफिक मिमियाता है मैन। मैं कहती हूं कि दरवाजा खोलो...।”
पीटर ने बड़ी मुश्किल से थूक सटका। वह पसीने से भीग चुका था। उठने कंपकंपाती उंगली से छाती पर क्रॉस बनाया और फिर मरी हुई चाल से दरवाजे की तरफ बढ़ा। बाकी सभी सहमकर पीछे हट गए थे।
चिं...चिं...र...ड़... हवा के तेज झोंके चले और भयानक ध्वनि के साथ दरवाजे के दोनों पल्ले पीछे को सरके।
पीटर चीख मारते हुए पीछे को हटा। बाकी वेटर भी चीख मारकर पीछे को हटे...दो वेटर सीढ़ियों से लुढ़क कर नीचे हॉल के फर्श पर गिरे।
चिं...चिं...र...ड़... दरवाजा अपने आप ही खुलता जा रहा था।
सबके सब भयभीत हो रेलिंग से चिपक गए। रेलिंग से परे नीचे रिसेप्शन हॉल का फर्श था। सबके रंग स्याह हो चुके थे। जिस्म पसीने से लथपथ थे। दिल की धड़कन घबराकर भयानक शोर के साथ नाक के छिद्रों से निकल रही थी।
मानो खुलते जा रहे दरवाजे के पीछे भयानक मौत मुंह फाड़े खड़ी थी और उन सब पर झपटने वाली थी।
लेकिन खुले दरवाजे के पार कुछ भी नहीं था। सब गहरी और ठंडी सांसे भरने लगे अपने फेफड़ों में।
—“प...पी...टर...।”
—“यस...यस मैडम...?”
—“मेरे साथ कमरे के भीतर चलो...।”
—“न...नहीं मैडम...!” पीटर का स्वर रूआंसा-सा था।
—“शटअप! यह हमारे होटल की रेपुटेशन का सवाल है। मैं...मैं तुम सबको नौकरी से निकाल दूंगी...।”
मैडम के शब्दों ने उनके पेटों पर लात मारने की धमकी देकर दिल में समाए भय को कुछ कम किया। पीटर मैडम फरेश के साथ कमरे की तरफ बढ़ा। बाकी वेटर भी उनके पीछे थे। यह बात दूसरी थी कि वह सब बुरी तरह भयभीत थे।
नहीं...ऽऽऽऽ....। एक भयानक चीख। जिसमें मैडम फरेश और पीटर का साझी स्वर था। वे सब गिरते पड़ते-बाहर को भागे।
मैडम फरेश ने रिसेप्शन पर सिर टिकाया और गहरी-गहरी सांसें लेने लगी। थोड़ा संयत होने पर वह फोन पर झपट पड़ी। उसकी कांपती हुई उंगलियां इंस्ट्रूमेंट के डायल पर पुलिस स्टेशन के नंबर रिंग कर रही थीं।
¶¶
—“व्हाट...नॉनसेंस...।” भारत रिवाल्विंग चेयर से उछल पड़ा। उसके कान से लगा रिसीवर कंपकंपाया। उसके मुंह से निकले शब्द माउथपीस में घुसने लगे—“इस वक्त दोपहर के सवा बारह बजे हैं और...और होटल डिसूजा तो भीड़ वाली स्ट्रीट में है...।”
दूसरी तरफ से कुछ कहा गया।
—“ओह...ठीक है। मैं बहुत जल्द वहां पहुंच रहा हूं...।” कहकर उसने रिसीवर इंस्ट्रूमेंट के क्रेडिल पर पटका।
—“कौन था...गुरु...?” मेज के परे बैठे अन्तरिक्ष ने पूछा।
—“इंस्पेक्टर राघव का फोन था...।” भारत उसकी तरफ मुड़ा—“साहनी स्ट्रीट में स्थित होटल डिसूजा में अब से ठीक पन्द्रह मिनट पहले यानि पूरे बारह बजे कत्ल हो गया है...।”
—“व्हाट...!” अन्तरिक्ष चौंका—“कमाल है! दिन के बारह बजे और रिसेप्शन हॉल में इतना रश होते हुए होटल में किसी का कत्ल हो गया! कातिल की हिम्मत को नमस्कार करना पड़ेगा। जल्दी से चलो गुरु। वरना मजा किरकिरा हो जाएगा। आकाश को भी ऐसे में बाहर जाना था...!”
दोनों उठ खड़े हुए। तभी हड़बड़ाती हुई मीनाक्षी ने ऑफिस में प्रवेश किया। उसके घबराए हुए चेहरे को देखकर दोनों बुरी तरह चौंके। वे पहली बार मीनाक्षी को इतना नर्वस देख रहे थे।
—“क्या बात है मीनाक्षी...?” भारत ने पूछा—“इतना क्यों घबरा रही हो? क्या बात है?”
—“कुछ भी तो नहीं...।” मीनाक्षी ने अपने खूबसूरत चेहरे पर मुस्कुराहट लाने की चेष्टा करते हुए कहा और चेहरा दूसरी तरफ घुमाकर पसीना पौंछने लगी।
—“मीनाक्षी...।” भारत उसके पीछे जा पहुंचा—“होटल डिसूजा में कत्ल हो गया है...।”
—“कत्ल...।” मीनाक्षी कत्ल के नाम पर उछली।
—“हां, कत्ल। लेकिन तुम चौंकी क्यों...?”
—“नहीं...नहीं तो...।” कहकर मीनाक्षी थोड़ा आगे खिसकी।
—“तुम नहीं चलोगी...हमारे साथ...?”
—“मैं...? नहीं... मुझे दूसरे केस को...डील करना है...।”
—“आओ...गुरु...।”
अन्तरिक्ष बाहर को लपका। भारत भी उसके पीछे लपका।
—“कमाल है...।” वह बड़बड़ाया—“मीनाक्षी को आज न जाने क्या हो गया है...?”
अन्तरिक्ष ने लॉन में खड़ी मोटरसाइकिल को स्टार्ट किया। उसके पीछे भारत बैठा।
मोटरसाइकिल सड़क पर दौड़ी जा रही थी...।
¶¶
admin –
Aliquam fringilla euismod risus ac bibendum. Sed sit amet sem varius ante feugiat lacinia. Nunc ipsum nulla, vulputate ut venenatis vitae, malesuada ut mi. Quisque iaculis, dui congue placerat pretium, augue erat accumsan lacus