बापू मुझको रोटी दो : Bapu Mujhko Roti Do by Rakesh Pathak
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Description
बेहद ईमानदार होना आजकल एक पाप हो गया है, ईमानदार वकील अनिल ने जब देखा कि अदालत में कानून के मुहाफिज खुद ही नकली गवाह और सबूत तैयार करके केस का रुख मोड़ रहे थे तो उसे वकालत के पेशे से बाहर कर दिया गया।
उसकी और उसके परिवार की ईमानदारी ने सारे जमाने को उनके खिलाफ खड़ा कर दिया। परिवार के सदस्यों की जान भी गयी और इज्जत भी। कोई रोजगार देने को तैयार नहीं था। वो रोटी के टुकड़े-टुकड़े के लिए तरस गये।
आह...।
बापू के पदचिन्हों पर चलने वाले को बापू के चरणों में भी रोटी का निवाला नसीब नहीं हुआ।
उस अभागे परिवार की दुःखद दास्तान—जो अपनी सच्चाई और शराफत की सजा भूख के रूप में भुगत रहा था।
बापू मुझको रोटी दो : Bapu Mujhko Roti Do
Rakesh Pathak
प्रस्तुत उपन्यास के सभी पात्र एवं घटनायें काल्पनिक हैं। किसी जीवित अथवा मृत व्यक्ति से इनका कतई कोई सम्बन्ध नहीं है। समानता संयोग से हो सकती है। उपन्यास का उद्देश्य मात्र मनोरंजन है। प्रस्तुत उपन्यास में दिए गए हिंसक दृश्यों, धूम्रपान, मधपान अथवा किसी अन्य मादक पदार्थों के सेवन का प्रकाशक या लेखक कत्तई समर्थन नहीं करते। इस प्रकार के दृश्य पाठकों को इन कृत्यों को प्रेरित करने के लिए नहीं बल्कि कथानक को वास्तविक रूप में दर्शाने के लिए दिए गए हैं। पाठकों से अनुरोध है की इन कृत्यों वे दुर्व्यसनों को दूर ही रखें। यह उपन्यास मात्र 18 + की आयु के लिए ही प्रकाशित किया गया है। उपन्यासब आगे पड़ने से पाठक अपनी सहमति दर्ज कर रहा है की वह 18 + है।
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बापू मुझको रोटी दो
राकेश पाठक
पुलिस के पचासों वाहनों ने दूरदर्शन केन्द्र को चारों तरफ से घेर लिया—उन वाहनों में हथियारबन्द पुलिस वाले खचाखच भरे हुए थे, यहां तक कि हर एक वाहन पर मशीनगनें भी लगी हुई थीं।
मशीनगनों को चारों दिशाओं में घुमाकर फायरिंग की जा सकती थी।
इंस्पेक्टर जनरल ऑफ पुलिस सफेद एम्बेसडर कार से बाहर निकले और चबूतरे पर चढ़ गये—उन्होंने एक कॉन्स्टेबल से माइक ले लिया।
आयी०जी० साहब के पाश्र्व में एक स्टेच्यू था।
महात्मा गांधी का।
देश के प्यारे बापू का स्टेच्यू।
तन पर मात्र धोती, हाथ में लाठी लिए हुए महात्मा गांधी—मानो अभी भी दुनिया को शान्ति व अहिंसा की शिक्षा देने के लिए निकले हों।
“पुलिस ने टी०वी० स्टेशन को चारों तरफ से घेर लिया है।” आयी०जी० साहब की कड़क आवाज लाउडस्पीकर के माध्यम से दूर-दूर तक गूंजती चली गयी—“हमारे इन्तजाम इतने ज्यादा हैं कि तुम यहां से निकलकर नहीं भाग पाओगे—अगर दैविक चमत्कार से तुम चींटी भी बन सको...तो भी हम तुम्हें बचकर जाने नहीं देंगे—तुमने अपने जुर्मों की हिंसा से न सिर्फ फुलत सिटी में ही हाहाकार की झील खड़ी की है, बल्कि आज तो अपने दुस्साहिक कारनामे से पूरे प्रदेश में सनसनी की गंगा बहा दी है—तुम्हारे हौसले इतने बुलन्द हो गये कि तुमने प्रदेश के मुख्यमन्त्री को विधानसभा के भीतर से ही हथियार के दम पर अगवा कर लिया और टी०वी० पर दर्शकों को दिखाकर उन्हें खत्म कर दिया—तुमने मुख्यमन्त्री जी का कत्ल करके प्रदेश और फुलत सिटी की पुलिस को खुलेआम चैलेन्ज किया है, तुम्हारी ये जुर्रत तुम्हारे लिए काफी खतरनाक साबित होगी, बेहतरी इसी में है कि तुम चुपचाप बाहर निकल आओ और सरेण्डर कर दो, वर्ना हमें मजबूरन फायरिंग करते हुए भीतर आना होगा, हमारी ये कार्यवाही तुम्हारे लिए जानलेवा साबित होगी, हम तुम्हें पांच मिनट ही देते हैं, अगर तुमने पांच मिनट के भीतर बाहर आकर समर्पण नहीं किया तो पुलिस अपनी कार्रवाई करने के लिए मजबूर होगी।”
आयी०जी० साहब रिस्टवॉच में टाइम देखने लगे।
चौक पर गहरा सन्नाटा व्याप्त था।
पुलिस वालों ने वाहनों से उतरकर लोहे के टोप सिर पर पहन लिए और अपने हथियार टी०वी० स्टेशन की तरफ तान दिए, वो किसी भी क्षण ट्रेगर दबाकर फायरिंग के लिए तैयार थे।
“कोई भी गोली न चलाए!” आयी०जी० साहब के पास ही जा खड़े हुए कमिश्नर विश्वनाथ रस्तोगी चेतावनी के लहजे में बोले—“अगर वो टी०वी० स्टेशन से बिना हथियार के आत्मसमर्पण के लिए निकलता है तो फायरिंग न की जाए—उस हालत में उसे सिर्फ अरेस्ट ही किया जाएगा।”
“ये...ये तुम क्या कहते हो विश्वनाथ!” आयी०जी० दीनदयाल रस्तोगी दबे स्वर में बोले—“वो हरामजादा रहम के काबिल नहीं है, उसने कई पुलिसवालों को खत्म किया है—चीफ मिनिस्टर को कत्ल कर डाला है सूअर के बच्चे ने।”
“वो...वो सब ठीक है बड़े भाई।” कमिश्नर रस्तोगी भी दबे स्वर में बोले—“लेकिन हमें कानून को अपने हाथ में लेने का कोई हक नहीं है—फुलत सिटी में एक अदालत भी होती है, उस लड़के को सजा देने का हक अदालत को है, हमें प्रतिशोध भरी कार्रवाई करने का कोई हक नहीं है।”
“पागल हो गये हो क्या तुम...विश्वनाथ!” आयी०जी० लाल-भभूका होकर बोले—“भूल गये हो क्या......उसी कमीने की वजह से तुमने पूरा परिवार खो दिया है, तुम्हारी बीवी और बच्चे...सब खत्म हो गये, वही है हमारी छोटी भाभी और भतीजे-भतीजी का कातिल...तुम जिसका फेवर ले रहे हो—सरकार ने उसे जिन्दा या मुर्दा पकड़ने की घोषणा की है, आज की तारीख में वो फुलत सिटी का...नहीं, पूरे प्रदेश का सबसे बड़ा और खतरनाक मुजरिम है, इतनी सुरक्षा व्यवस्था के बावजूद भी वो चीफ मिनिस्टर को असेम्बली से निकाल लाया पुलिस की नाक के नीचे से। पुलिस की नाक काट दी उस सूअर ने—उसे फौरन ही सजा देने में कोई बुराई नहीं है।”
“है, भाई साहब...!” कमिश्नर विश्वनाथ रस्तोगी विरोध भरे स्वर में बोले—“न सिर्फ इसलिए है कि ये कार्रवाई गैर-कानूनी होगी, बल्कि इसलिए भी होगी कि वो मासूम है, वो निर्दोष है।”
“मासूम...निर्दोष?” आयी०जी० साहब कड़वाहट भरे लहजे में बोले—“जिस हरामी ने चीफ मिनिस्टर और कई पुलिसवालों के अलावा कई शरीफ लोगों को भी हलाल कर डाला हो, भला तुम उसे मासूम और निर्दोष कैसे कहते हो? तुम अपने परिवार के कातिल को दोषी नहीं मान रहे हो विश्वनाथ!”
“हां, नहीं मान रहा हूं बड़े भाई, क्योंकि वो मेरे बीवी बच्चों का कातिल कतई नहीं है, क्योंकि मैं उसकी हिस्ट्री जानता हूं, जानता हूं कि हालात के आगे मजबूर होकर ही उस गांधीवादी लड़के को हिंसा का मार्ग अपनाना पड़ा, चींटी मारने से भी डरता था कभी वो, समाज के ठेकेदारों ने ही उसे हिंसक बनाया है, अगर मेरे बस में होता तो मैं उसे कोई भी सजा नहीं होने देता, बल्कि पीठ थपथपाकर शाबाशी देता कि उसने कानून और समाज के दुश्मनों को मारकर कानून और समाज पर उपकार किया है, भगवान के लिए उस अभागे पर गोली मत चलवाना बड़े भाई, उस कमबख्त को अदालत कौन-सा माफ करेगी, उस के नसीब में फांसी का फन्दा ही आयेगा—अभी वक्त नहीं है, मैं बाद में आपको उसकी दु:खभरी दास्तान सुनाऊंगा, तब आप भी उसे निर्दोष मानेंगे, शायद उसकी करुणा भरी दास्तान सुनकर आपकी आंखों में आंसू भी छलक आएं।”
तभी टी०वी० स्टेशन का मेन गेट खुला।
वो बाहर निकला।
अकेला ही था और निहत्था भी।
कदमों में लड़खड़ाहट थी।
“भगवान के लिए भाई साहब।” कमिश्नर विश्वनाथ रस्तोगी गिड़गिड़ाए—“उस पर गोली मत चलवाना।”
आयी०जी० साहब थोड़ा सोच में पड़ गये मानो कोई निर्णय न कर पा रहे हों।
उधर हथियार तन गये थे।
उंगलियां ट्रेगर पर कसने लगीं।
“नो।” आयी०जी० साहब हाथ उठाकर बोले—“अगर वो हमला न करे तो गोली मत चलाना, आने दो उसे—बस, गिरफ्तार ही कर लो।”
अचानक ही वो ठिठका।
झुका हुआ चेहरा ऊपर उठाकर हथियारबन्द पुलिस वालों की फौज को देखा।
सूखे व पपड़ीदार होठों पर जहरीली किस्म की मुस्कान थिरकने लगी।
उसके दोनों हाथ पैंट की जेबों में रेंग गये।
“फ...फायर।” चीखा एस०पी०—“वो...वो जेबों से बम निकाल रहा है—हम सबको उड़ा देगा।”
हथियार गर्ज उठे।
इलाका फायरिंग के शोर से गूंज गया—जिसमें गोली खाए उस युवक की चीखें भी यूं दब गईं जैसे नक्कारखाने में तूती की आवाज।
उसके हाथों से रोटियां छूट गईं।
किसी धुत्त शराबी की मानिन्द ही वो लड़खड़ाकर जमीन पर गिरा और हांफने लगा।
चेहरा स्लो मोशन में धीरे-धीरे उठाया तो आंखें महात्मा गांधी के स्टेच्यू पर गड़-सी गईं।
वो रेंगते हुए स्टेच्यू की तरफ बढ़ने लगा, अपने पीछे वो खून की मोटी लकीर छोड़ता जा रहा था।
“यू बास्टर्ड!” कमिश्नर विश्वनाथ रस्तोगी ने एस०पी० को गिरेहबान से पकड़कर झिंझोड़ डाला और विक्षिप्त अन्दाज में चीखते हुए बोले—“क्यों चलवाई तूने गोली यादव के बच्चे? उस भूखे इन्सान ने रोटियां ही तो निकाली थीं।”
“वो...वो सर—मैंने समझा था कि वो जेबों से बम निकाल रहा है—हम सबको उड़ा देने के लिए।”
“और तुम्हें उसे मारने का बहाना मिल गया।” रस्तोगी कड़वाहट भरे लहजे में बोला—“तुमने इंस्पेक्टर विजय यादव की मौत का बदला लिया है, हमें मालूम है कि वो तुम्हारा रिश्तेदार था।”
एस०पी० यादव ने सिर झुका लिया।
कमिश्नर रस्तोगी बापू की मूर्ति के पास पहुंच चुके उस जख्मी युवक की तरफ बढ़े, उस युवक के मुख से निकलने वाले शब्दों को सुनकर वो चबूतरे के नजदीक ही ठिठक पड़े और कान लगाकर सुनने लगे—
“ब...बापू...पहचाना मेरे को?” चबूतरे पर पेट के बल लेटा वो चेहरा उठाकर हांफते हुए बोल रहा था—“मैं...मैं वो ही हूं...जो एक बार पहले भी आया था तुम्हारे पास—भूख से बेहाल, न सिर्फ मैं ही भूखा था...बल्कि मेरे परिवार के बाकी लोग भी रोटी के एक-एक टुकड़े के लिए तरस रहे थे—तब जैसे जमाना दुश्मन बन गया था—वो सब रास्ते ही बन्द कर दिए...आह, जिन पर चलकर में रोटी हासिल कर सकता था, याद है बाबू, याद है न, मैंने तुमसे क्या कहा था? कहा था कि अगर मुझे रोटी न मिली तो मेरी आत्मा बागी हो जाएगी और मैं अहिंसा से दामन छुड़ाकर हिंसा का रास्ता पकड़ लूंगा। मैं बागी हो गया, हिंसा के हथियारों से अपने सारे दुश्मन खलास कर डाले मैंने, कितना खूंखार बन गया तुम्हारा ये बच्चा—मेरे को पकड़ने के लिए कितने सारे पुलिस वाले आये हैं, मानो डकैतों के गिरोह को मारने चले थे—त...तुमने देखा था न बापू...मैंने अपनी महीनों की भूख मिटाने को रोटी निकाली थी जेब से लेकिन पुलिस के जवानों को लगा कि मैं कुछ न कुछ करूंगा—इन बेचारों की कोई गलती नहीं है, मेरे सिर पर दस लाख का इनाम है...जिन्दा या मुर्दा, जिसके सिर पर इतना भारी इनाम हो...वो कोई मामूली इन्सान तो होने से रहा बाबू। वाह रे मेरे नसीब...वाह रे मेरे भाग्य, कल मेरी कीमत इतनी भी नहीं समझी गयी थी कि मैं...आह...एक रोटी भी नहीं जुटा पाता। आज दस लाख रुपये की कीमत है मेरी—अपने देश के कर्णधार बेटों से पूछो बापू कि वो घाटे का सौदा क्यों करते हैं? एक भूख से बिलबिलाते इन्सान को चार रोटियां नहीं दे सकते, उसके बागी हो जाने पर लाखों रुपये कहां से आ जाते हैं? गन्ने की एक पोरी नहीं देते हैं किसी भूखे को...बाद में गुड़ की पूरी भेली दांव में लगा देते हैं—मुझे दुनिया की कोई परवाह नहीं है बापू लेकिन मैं...तुम्हारा मुजरिम बनकर नहीं मरना चाहता हूं, मैंने तुम्हारी शिक्षा का निरादर करके पाप किया है लेकिन ये पाप क्यों हुआ मेरे से? मुझे क्यों ऐसा बनना पड़ा? किन लोगों ने बनाया एक केंचुए सरीखे इन्सान को जहरीला नाग? थोड़ी-सी सांसों की भीख मांगता हूं उस ईश्वर से...जो मुझे रोटी के चन्द टुकड़े नहीं दे पाया था, शायद उसके पास रोटी कम और भूखे भक्त ज्यादा थे, तुम्हें अपनी दास्तान सुनाना चाहता हूं मैं बापू, ताकि तुम अपने इस मुजरिम बेटे का इंसाफ कर सको, अपने प्यारे हिन्दुस्तान का सिस्टम बिगड़ते देखकर तुम्हारे मन में भी बोझ बैठ गया होगा, मेरे अतीत का थोड़ा-सा बोझ और बर्दाश्त कर लो बापू, चलो बापू...मेरे साथ मेरे अतीत में चलो, फिर फैसला करना कि मैं सही था कि गलत? मैं अपने अतीत की शुरुआत करता हूं अपने पापा जज दिवाकर जी के दोस्त बखियाजी से, जो मेरे दोस्त सुनील के पापा थे और जुर्म के दलदल में गहराई तक धंसे हुए थे, एक बार हुआ यूं कि...।”
वो बोलते-बोलते अतीत की गहराईयों में खोता चला गया।
¶¶
“त...तुम?”
दर्पण अखबार का मालिक जितेन्द्र कुमार उस शख्स को देखकर बुरी तरह चौंका, जिसके सिर व दाढ़ी के बाल बगुले जैसे सफेद व चमकीले थे और जो काली ड्रेस पहने हुए था।
“हां, हम ही हैं।” चार स्टेनगनधारी गुण्डों की अगुवाई में आगे बढ़ते हुए वो फुंफकारकर बोला—“बखिया को तूने खूब पहचाना है जितेन्द्र, भला पहचानता भी क्यों नहीं रे, तूने अपने अखबार में हमारी सारी हिस्ट्री जो छापी है, बखिया जिन्दगी के रंगमंच पर दोहरी भूमिका निभा रहा था, डे-शो में शरीफ और समाजसेवक का रोल, नाइट-शो में एक खूंखार गैंगस्टर का रोल, पुलिस को बखिया के सारे कारनामों की खबर थी और बखिया की तलाश भी थी लेकिन किसी को मालूम नहीं था कि बखिया कौन है और कहां पाया जाता है? किसी को ख्वाबों में भी गुमान नहीं था कि समाजसेवी रामप्रसाद ही बखिया होगा लेकिन तूने अचानक ही धमाका कर डाला रे जितेन्द्र। तूने बखिया को अपनी कारगुजारी की भनक भी नहीं लगने दी ससुरे, चुपचाप ही अपना एक जासूस हमारे गैंग में शामिल कर दिया। तेरे जासूस ने न जाने कैसे छुपकर हमारी वीडियो फिल्म बना ली और बचकर निकल गया। तूने मय सबूतों के अखबार में हमारा काला चिट्ठा छापकर सनसनी फैला दी। तूने फुलत सिटी के बच्चे-बच्चे को बता दिया कि रामप्रसाद, बखिया है। तेरा फिसड्डी अखबार खूब बिका और अव्वल नम्बर पर आ गया है। बड़ा ही खुश होगा तू जितेन्द्र, बखिया भी तेरी खुशी में शरीक होने आया है, अपनी इस जवान और खूबसूरत बेटी के साथ ही सारा हलवा खा जाएगा? हमें नहीं पूछेगा साले।”
जितेन्द्र के चेहरे का रंग फक्क पड़ गया।
वो होठों पर जीभ फिराकर सामने बैठी युवती से दबे स्वर में बोला—“तुम भीतर जाओ मधु।”
मधु उठ खड़ी हुई।
“कहां जाती है हेमा मालिनी।” बखिया उर्फ रामप्रसाद उसके कन्धे पर हाथ रखते हुए बोला—“अपने धर्मेन्द्र को हलवा नहीं खिलाएगी?”
मधु घबरा गयी और मदद की उम्मीद से अपने बाप को निहारने लगी।
“मेरी बेटी को छोड़ दो बखिया।” जितेन्द्र कुर्सी से उठते हुए बोला—“इस बेचारी को तंग न करो, मैं हूं तुम्हारा दुश्मन—मैंने ही तुम्हारे चेहरे पर पड़ा शराफत का नकाब नोंचा है, मुझे चाहे जो सजा दो तुम लेकिन मेरी बेटी से कुछ मत कहना।”
“हमारा सजा देने का तरीका थोड़ा अलग हटकर है जितेन्द्र। मजा भी तभी आता है, जब उसे उंगली से भी टच न किया जाए और वो ऐसे तड़पेगी मानो उसके सीने में दहकती हुई सलाख भौंक दी गयी हो। तेरी जान शायद अपनी इकलौती बेटी में उलझी हुई है, यानी इसे टॉर्चर किया जाएगा तो तड़पेगा तू, यानी ये लड़की मेरा रिमोट कन्ट्रोल है। हम इस खूबसूरत रिमोट के बटन से खेलेंगे तो तेरी आत्मा भी हरकत करने लगेगी।”
“न...नहीं।” बखिया उर्फ रामप्रसाद के इरादे भांपकर जितेन्द्र सहम गया और दोनों हाथ जोड़ते हुए गिड़गिड़ाया—“भगवान के लिए मेरी बेटी के साथ कोई ऐसी-वैसी हरकत मत करना, मैं मजबूर था बखिया साहब—मैंने अपना कोई जासूस आपके गैंग में शामिल नहीं किया था—मुझे वो सारे सबूत किसी ने दिए थे—उसने मधु को अगवाकर लिया था—उसके जिस्म पर ढेर सारे बम बांध दिए थे उसने—धमकी दी थी कि मैंने मय सबूतों के आपकी पोल-पट्टी अपने पेपर में नहीं खोली तो वो उसे उड़ा देगा, अपनी बिन मां की इकलौती बच्ची को बम के धमाके से उड़ते नहीं देखना चाहता था, इसलिए मैंने दहकती भट्टी में हाथ डाल दिया था।”
“कौन था वो सूअर का बच्चा?” बखिया आग-बबूला होकर बोला—“किसने तुझे हमारे खिलाफ सबूत देकर हमारी पोल-पट्टी खुलवाई थी?”
“आप मुझे माफ कर देंगे न बखिया साहब?”
“हां, हम वादा करते हैं, तुम हमारे दुश्मन का नाम बोलो—समझो कि हमने तुम्हें माफ कर दिया है।”
“गॉडफादर!”
“गॉडफादर?” बखिया आग-बबूला होकर बोला—“तो ये काम उस हरामजादे का है! हमने उसकी ऑर्गेनाइजेशन के मुकाबले में अपनी कम्पनी खड़ी की। उसके निजाम को चैलेन्ज दिया, उसके आदमियों को तोड़कर अपनी तरफ मिलाया—चन्द दिनों में ही हम उसे पछाड़कर फुलत सिटी की सीट हथिया लेते, हमें अण्डरवर्ल्ड का बेताज बादशाह बनते देखकर उसके हाथ पैर-फूल गये होंगे, तभी उसने अपने किसी आदमी को हमारे पीछे लगाया और हमारे खिलाफ सबूत जुटा लिए, उस हरामजादी ने हमारी पोल खोल दी, हमें अपना बिस्तर-बोरिया समेटकर अण्डरग्राउण्ड होना पड़ेगा, हमारा इलेक्शन जीतकर मिनिस्टर बनने का ख्वाब धूल में मिल गया है, हम मौका मिलते ही उस साले रुद्रप्रताप उर्फ गॉडफादर को कुत्ते की मौत ही मारेंगे, फिलहाल तो हम तेरी बेटी का चीरहरण करेंगे और...।”
“लेकिन आपने तो मुझे माफ।”
“हां, तुझे माफ करने का वादा किया था लेकिन तेरी बेटी को माफ करने का वादा नहीं किया था। माना कि हमारे खिलाफ साजिश गॉडफादर ने की, माना कि तू अपनी बेटी की वजह से मजबूर हो गया था लेकिन हमारी पोल-पट्टी तेरे अखबार ने खोली है, तेरे दफ्तर को फूंककर जा रहे हैं हम।”
“न...नहीं।”
“हमारी आंखों की ज्वाला शान्त हो गयी...तेरे अखबार को जलते देखकर लेकिन अभी दिल की आग बाकी है—सो दिल की आग हम तेरी बेटी का कौमार्य भंग करके बुझायेंगे।”
“न...नहीं।” जितेन्द्र ने बखिया की कौली भर ली और उसे पीछे की तरफ धकेलते हुए चीखकर बोला—“भाग जाओ मधु बेटी, भगवान के लिए भाग जाओ, वर्ना ये शैतान तुम्हारी इज्जत लूट लेगा।”
“ल...लेकिन पापा...।”
“तुझे तेरी स्वर्गीय मम्मी की कसम है बेटी—ये शैतान तुझे कहीं का नहीं छोड़ेगा बच्ची।”
“लेकिन आपकी जान खतरे में है पापा।”
“अगर इसने हमारी इज्जत पर डाका डाल दिया तो मैं जीते जी मर जाऊंगा बेटी और आत्महत्या का रास्ता ही बचेगा मेरे लिए, तुम्हें मेरी कसम है...भाग जाओ।”
मधु नामक वो युवती असमंजस और दुविधा में पड़ गयी।
एक तरफ उसकी इज्जत थी—दूसरी तरफ बाप की जिन्दगी थी।
लेकिन बाप ने उसकी स्वर्गीय मां की कसम दी थी और आत्महत्या की धमकी भी—तब उसने तय किया कि वो भागकर थोड़ी ही दूर पर स्थित पुलिस स्टेशन जाएगी और पुलिस की मदद लेकर अपने प्यारे पापा को भी बचा लेगी।
मोती-से दमकते दांतों से गुलाबी होठों को चबाया और आंसू भरी निगाहें जितेन्द्र पर डालकर वो दरवाजे की तरफ बढ़ी।
लेकिन एक गुण्डा दीवार बनकर दरवाजे के बीचों-बीच तनकर खड़ा हो गया और स्टेनगन मधु पर तान दी।
वो ठिठकी—सहमकर पीछे हटने लगी।
अचानक ही पलटकर वो कमरे में दाखिल हो गयी और भीतर से दरवाजा भेड़ लिया।
बखिया ने जितेन्द्र को डाइनिंग टेबल पर किसी खिलौने की तरह ही पटक दिया और उसको घूंसे जड़ते हुए चीखा—“पकड़ो उस ससुरी को, वो किसी खिड़की या दूसरे दरवाजे से भागेगी, या वो पुलिस को फोन कर सकती है, दरवाजा तोड़ डालो और उस हराम की बच्ची को बाहर घसीट लाओ, हम उस छिनाल का बुरा हाल करेंगे।”
गुण्डे दरवाजे पर झपट पड़े।
¶¶
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Additional information
Book Title | बापू मुझको रोटी दो : Bapu Mujhko Roti Do by Rakesh Pathak |
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Isbn No | |
No of Pages | 208 |
Country Of Orign | India |
Year of Publication | |
Language | |
Genres | |
Author | |
Age | |
Publisher Name | Ravi Pocket Books |
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