बलवा : Balva
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Description
एक्शन के शहंशाह बाजीगर का आतंकवादियों से घमासान।
बलवा उसी विस्फोटक संसार का उपन्यास है जिसे बाजीगर के जन्मदाता ने ही लिखा है।
Balva : Balwa
Parshuram Sharma
प्रस्तुत उपन्यास के सभी पात्र एवं घटनायें काल्पनिक हैं। किसी जीवित अथवा मृत व्यक्ति से इनका कतई कोई सम्बन्ध नहीं है। समानता संयोग से हो सकती है। उपन्यास का उद्देश्य मात्र मनोरंजन है। प्रस्तुत उपन्यास में दिए गए हिंसक दृश्यों, धूम्रपान, मधपान अथवा किसी अन्य मादक पदार्थों के सेवन का प्रकाशक या लेखक कत्तई समर्थन नहीं करते। इस प्रकार के दृश्य पाठकों को इन कृत्यों को प्रेरित करने के लिए नहीं बल्कि कथानक को वास्तविक रूप में दर्शाने के लिए दिए गए हैं। पाठकों से अनुरोध है की इन कृत्यों वे दुर्व्यसनों को दूर ही रखें। यह उपन्यास मात्र 18 + की आयु के लिए ही प्रकाशित किया गया है। उपन्यासब आगे पड़ने से पाठक अपनी सहमति दर्ज कर रहा है की वह 18 + है।
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बलवा
परशुराम शर्मा
उछलती-कूदती जीप के पीछे रेत का गुब्बार उड़ रहा था और यह गुब्बार जीप की रफ्तार के साथ-साथ उसके पीछे-पीछे यूं दौड़ रहा था जैसे दोनों का चोली-दामन का साथ हो। जीप एक रेगिस्तान में बढ़ रही थी। आधा घंटे पहले यह जीप रेगिस्तान में दाखिल हुई थी और अब उनके चारों तरफ रेत के टीले और दूर तक फैले वीराने के सिवा कुछ नहीं था।
जीप की ड्राइविंग सीट पर एक नौजवान बैठा था जिसके चेहरे पर हल्की दाढ़ी-मूंछ थी। यह नौजवान बड़ी धुआंधार रफ्तार से जीप दौड़ा रहा था। इकलौती नागिन की तरह बल खाती सड़क बहुत पुख्ता नहीं थी। मालूम पड़ता था जैसे वर्षों से उसकी मरम्मत नहीं हुई हो। टूट-फूट गई सड़क के गड्ढे के कारण एक जबरदस्त धचका लगा और ड्राइवर के बराबर वाली सीट से एक हल्की सुरीली चीख सुनाई दी।
“क्या तुम धीमी रफ्तार से जीप नहीं चला सकते?” ड्राइवर के बराबर बैठी युवती ने कहा।
“मैंने आपसे कहा था कि तीन घंटे में पार लगा दूंगा—मां कसम तीन घंटे से एक मिनट फालतू नहीं लगेगा।”
“अगर हम चार घंटे में पहुंचे तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता।” युवती ने कहा।
“आपको फर्क नहीं पड़ेगा लेकिन मुझे जरूर फर्क पड़ सकता है।” ड्राइवर ने उत्तर दिया।
“तुम्हें क्या फर्क पड़ेगा...?”
ड्राइवर ने तेजी से मोड़ काटा और जीप ने एक जबरदस्त हिचकौला लिया।
युवती ने गर्दन घुमाई।
“प्रोफेसर हीरामणि—क्या आप सो रहे हैं?” युवती ने सवाल किया।
“नहीं...मैं सोच रहा था कि इस सूखे रेगिस्तान में पानी किस जगह मिल सकता है...। मिस रोशी...यहां पानी हासिल करना सचमुच बहुत टेढ़ी खीर है...।”
“आपको पानी की लगी है...और मुझे लगता नहीं कि हम सही-सलामत रेगिस्तान पार कर पाएंगे...।”
“वह क्यों?”
“यह ड्राइवर किसी की सुनता ही नहीं। इस खस्ता हालत सड़क पर जीप उलट भी सकती है।”
“क्यों ड्राइवर! मिस रोशी क्या कह रही है?”
“मेरा नाम ड्राइवर नहीं है—बंदे को कुलवंत सिंह कहते हैं...आप कुलवंत कहकर ही काम चला लें।”
“तुम इतनी तेज गाड़ी क्यों दौड़ा रहे हो?”
“यह दिल्ली, कोलकाता या मुंबई नहीं जनाब...जो ट्रैफिक की रेल-पेल के कारण रफ्तार धीमी करनी पड़े...आप देख रहे हैं...इतनी देर से आपको कोई नजर आया...?”
“सो तो है लेकिन सड़क भी तो देखो।”
“सड़क किसने देखी...देखना बस यह है कि सूरज डूबने से पहले पार लगना है। रूपनगर पहुंचने से पहले मुझे इसी तरह चलने दें...।” फिर अगर आप कहें कि इसे बैलगाड़ी की तरह हांको तो मुझे कोई ऐतराज नहीं होगा...।”
रेगिस्तान में गर्म हवाएं चल रही थीं—दोपहर की गर्मी आग बरसा रही थी। जीप पर पानी की छागलें टंगी थी। अब क्योंकि वे लोग पूरी तरह रेगिस्तान की गर्म हवाओं में पहुंच चुके थे इसलिए प्यास भी सताने लगी थी।
“बिना पानी के तो यहां का जीवन सचमुच नर्क बन जाता होगा।” प्रोफेसर हीरामणि ने छागल की तरफ हाथ बढ़ाया—“सरकार ने इस तरफ आज तक कोई ध्यान ही नहीं दिया। अगर मैंने यहां पानी तलाश कर लिया तो मानवता की बहुत बड़ी सेवा होगी।”
“पानी यहां नहीं मिलने वाला है साहब! आप पहले आदमी नहीं हैं जो यहां पानी का सर्वे करने उतरे हैं...दो-चार कुएं खोदे भी गए मगर सब बेकार...एक बूंद पानी नहीं है और अब तो हाल यह है कि जहां दो-चार बूंद पानी था भी, वहां भी सूखा पड़ गया।”
“तुम प्रोफेसर को साधारण इंसान मत समझो, वह एक माने हुए साइंटिस्ट हैं—इससे पहले कई रेगिस्तानों में पानी तलाश कर चुके हैं...।” हमारी कंपनी ने यह कॉन्ट्रेक्ट ऐसे ही नहीं लिया।”
“और आप लोग रूपनगर में अपनी कंपनी का दफ्तर खोलने जा रहे हैं...।”
“हां!” रोशी ने उत्तर दिया।
“मुझे अफसोस है कि आज लोगों को जल्दी ही बैरंग लौटना पड़ेगा...।”
“क्यों, भाई क्यों...तुम्हें मालूम होना चाहिए दुनिया के हर हिस्से में पानी है।” प्रोफेसर बीच में बोल पड़ा।
“बात पानी तक ही नहीं है श्रीमान...।” कुलवंत बोला—“आप लोगों को यहां टिकने दिया जाएगा यही बहुत बड़ी बात होगी।”
“क्यों हमें क्यों नहीं टिकने दिया जाएगा...?”
“रूपनगर पहुंचने के बाद बात आपकी समझ में आ जाएगी।”
अचानक ड्राइवर ने तेजी से स्टेयरिंग काटा—धूल का एक गुब्बार सामने से उड़ा था और कुछ पलों के लिए सड़क उसकी नजरों से ओझल हो गई। वहां एक मोड़ भी था। जीप सड़क से हटकर एक टीले पर चढ़ गई और फिर उसका बैलेंस बिगड़ गया। लेकिन ड्राइवर काफी चुस्त था। उसने जीप को उलटने से बचा लिया—फिर भी जीप लहराती हुई दूर तक घिसटती चली गई। ड्राइवर ने ब्रेक लगा दिए...जीप रुक गई।
“हो गया कबाड़ा...।” कुलवंत ने इंजन बंद करते हुए कहा और नीचे कूद गया।
“आखिर वही हुआ न?” रोशी ने चीखकर कहा—“जिसका डर था...।”
“जिसका डर है वह अभी नहीं हुआ...।” ड्राइवर ने जीप के पहिए पर बूट की ठोकर मारते हुए कहा—“अभी तो सिर्फ पंचर हुआ है...।”
“पंचर! ओ माय गॉड!” रोशी ने सिर थाम लिया—उसने मुड़कर प्रोफेसर की तरफ देखा जो छागल से पानी पी रहा था।
“जब तक जीप की स्टपनी बदली जाती है तब तक हमें पानी तलाश करना चाहिए...।”
“लेकिन अब यह गाड़ी नहीं चलाएगा...।” रोशी ने कहा।
“तो फिर कौन चलाएगा?”
“मैं—!” रोशी ने कहा।
“यह गाड़ी हमारी नहीं है मिस रोशी...आओ पानी तलाश करें।”
रोशी ने भी छागल के पानी से अपनी प्यास बुझाई। प्रोफेसर हीरामणि जीप से नीचे उतर गया। उसने अपनी अटैची खोलकर एक यंत्र निकाला और रेत के टीलों की तरफ बढ़ गया। रोशी किसी छायादार जगह की तलाश करने के लिए इधर-उधर देखने लगी।
“जाहिर है कि यहां कोई मिस्त्री मिलने वाला नहीं है और हम लोग पैदल भी नहीं चल सकते...।”
“स्टपनी तो है...।” रोशी ने कहा—“पहिया बदल लो...।”
“हां...इतने आप लोग सफर की थकान मिटाओ...।”
रोशी ने बैग कंधे पर डाला और प्रोफेसर के पीछे चल पड़ी। प्रोफेसर ने एक छायादार जगह तलाश कर ली थी जो एक ऊंचा टीला था और उस पर एक बड़ा सूखा पेड़ खड़ा था। प्रोफेसर वहां रेत में अपना यंत्र फिक्स करने में व्यस्त था। धीरे-धीरे यंत्र रेत में धंसने लगा।
“जहां-जहां रेगिस्तान है वहां कभी समुद्र था।” प्रोफेसर कह रहा था—“हो सकता है यहां पानी बहुत गहराई में चला गया हो...।”
प्रोफेसर की उम्र लगभग साठ वर्ष थी परंतु इकहरा बदन होने के कारण उसमें काफी चुस्ती-फुर्ती थी।
“आपको यकीन है कि पानी मिल जाएगा...?”
“क्यों नहीं...मैं पानी खोज कर ही दम लूंगा...।”
“हमारी कंपनी को भी यकीन है कि आप पानी खोज लेंगे...।” रोशी ने उत्तर दिया—“आपकी रिपोर्ट पर दारोमदार है। इससे पहले दो बार सरकार ने यहां पानी तलाश करने की कोशिश की पर सफलता नहीं मिली। पानी मिला तो था पर उसकी मात्रा इतनी नहीं थी कि पाइप लाइन पर सप्लाई दी जा सके और इस चक्कर में लाखों रुपया डकारा जा चुका है। हम चाहते हैं कि एक बार पाइप लाइन में पानी की सप्लाई बन जाए...उसके बाद इस इलाके के वाटर सप्लाई के सभी कॉन्ट्रेक्ट हमें मिल जाएंगे...और हमारे पास वह मशीनें हैं जो पाताल से भी पानी निकाल सकती हैं...।”
“समझ में नहीं आता अब तक विकास क्यों नहीं हुआ?”
“फाइलों में हर बार पंचवर्षीय योजना में यहां के विकास के लिए काफी धन दिया जाता है और विकास होता भी है परंतु सिर्फ फाइलों में। इस बार भयंकर सूखा पड़ रहा है और इस क्षेत्र में मानव जाति की रक्षा के लिए काफी धन विदेशों से आ चुका है। इसलिए तो सरकार चाहती है कि यहां कुछ-न-कुछ तो होना ही चाहिए और वह धन यहां इस्तेमाल किया जाएगा...इस बार हमारी कंपनी से सौदे होंगे...।”
प्रोफेशन ने रेत का नमूना ले लिया।
“पचास किलोमीटर आगे चलकर भी हम एक नमूना लेंगे...।”
थोड़ी ही देर में कुलवंत ने उन्हें आवाज देकर बुला लिया।
“अब जरा आप लोग इसे धक्का देकर सड़क तक पहुंचाने में मेरी मदद कीजिए। हमारा आधा घंटा नष्ट हो चुका है—मुझे यह समय रफ्तार से निकालना है...।”
“तुम्हारा मतलब है, इससे भी तेज रफ्तार से गाड़ी चलाओगे?”
“हां...मजबूरी है...रेगिस्तान पर सूरज ढलते नहीं देख सकता।”
“फिर तो हमारी भी एक मजबूरी है—।” रोशी ने कहा।
“वो क्या?”
“वो ये कि हम गाड़ी को धक्का नहीं लगा सकते...।”
“लेकिन इसके बिना हम आगे नहीं बढ़ सकते...जीप का इंजन स्टार्ट नहीं हो रहा है।”
“तो यों करो—स्टेयरिंग मैं संभालती हूं—धक्का तुम और प्रोफेसर साहब लगाओगे...।”
“चलो ऐसा ही कर लेते हैं...।”
“उसके बाद भी एक शर्त होगी।”
“वह क्या?”
“ड्राइविंग मैं ही करूंगी...तुम्हारा कोई भरोसा नहीं है...अब हमारे पास बदलने के लिए दूसरा पहिया भी नहीं है...।”
“आप यकीन रखिए—मैं देखभाल कर चलाऊंगा...।”
“नहीं, हमें तुम पर भरोसा नहीं...।”
“आप समझती क्यों नहीं, यह इलाका मेरा देखा-भाला है।”
“अगर तुम मेरी बात नहीं मानते तो ठीक है—हम एक डेढ़ घंटे बाद यहां से चलेंगे...।”
“आप बेशक ड्राइविंग कर सकती हैं—मुझे इसमें ऐतराज नहीं—लेकिन एक बात का ध्यान रखिएगा—रफ्तार अस्सी किलोमीटर से ऊपर ही रहनी चाहिए—हमें शाम से पहले रूपनगर पहुंच जाना चाहिए...।”
“तुम बार-बार इस बात पर जोर दे रहे हो...।” इस बार प्रोफ़ेसर ने कहा—“अगर हमें देर हो भी गई तो उससे क्या फर्क पड़ता है?”
“रूपनगर की सड़कें छः बजते ही सुनसान हो जाती हैं—छः बजे के बाद वहां कोई घर से बाहर नहीं निकलता...।”
“क्यों—ऐसी क्या बात है?”
“बात है तभी तो मेरी नानी मरी जा रही है—सराय, होटल या धर्मशालाओं के गेट भी बंद हो जाते हैं...और फिर आतंकवादियों का राज हो जाता है।”
“आतंकवादी...?” रोशी के चेहरे का रंग उड़ गया।
“हां मेम साहब, क्या आप लोगों ने अखबारों में नहीं पढ़ा?”
“कहीं तुम उन लुटेरों की बात तो नहीं कर रहे हो जिन्होंने पिछले दिनों नेशनल बैंक लूट लिया था और चार आदमियों को मार डाला था...वे जो धनवान लोगों को अपना निशाना बना रहे हैं?”
“जी हां...मैं उन्हीं की बात कर रहा हूं।”
“लेकिन रूपनगर में तो ऐसा कोई कांड हुआ नहीं जो छः बजे ही बाजार बंद होने लगें।”
“अभी तक नहीं हुआ तभी तो भय का आतंक छाया हुआ है...घर में बहुत से अमीर लोगों को उनकी तरफ से पर्चे मिल चुके हैं—और कभी भी बलवा हो सकता है। इस बार उनका निशाना रूपनगर ही है क्योंकि यहां धनवान लोग आबाद हैं—उन्होंने रूपनगर के व्यापारियों और अमीरों से पांच करोड़ रुपए की मांग रखी है और मांग का वक्त समाप्त हो चुका है। तीन दिन पहले आखिरी तारीख थी। व्यापारियों ने उन्हें यह रकम नहीं दी है—इसकी चर्चा हर तरफ है—और लोग डर के मारे छः बजे ही अपने घरों में घुस जाते हैं...न जाने कब क्या हो जाए।”
“जिस गेस्ट हाउस में हमारे कमरे बुक हैं क्या वह भी बंद हो जाएगा?”
“बिल्कुल मेम साहब...इसलिए तो मेरी नानी मरी जा रही है।”
“पुलिस तो होगी...हम किसी थाने से मदद हासिल कर सकते हैं।”
“बस रहने दीजिए...आपको उन लोगों के बारे में कुछ जानकारी नहीं—अरे मेम साहब क्या पता पुलिस हमें ही आतंकवादी बनाकर गिरफ्तार करके जेल भेज दे या गोली से मार डाले।”
“हमारे पास हमारा परिचय-पत्र है...और पुलिस हेड क्वार्टर को भी सूचना दे दी गई है कि प्रोफेसर हीरामणि वहां आ रहे हैं—उनकी सुरक्षा का प्रबंध पुलिस को करना ही पड़ेगा। रहा लुटेरों का सवाल, वह हमारा क्या बिगाड़ लेंगे—हमारे पास दौलत तो है नहीं।” रोशी ने कहा—“हमें उनसे किस बात का डर?”
“अब मैं आपको कैसे समझाऊं?”
“खैर! गाड़ी तुम ही चलाना—लेकिन जरा देखभाल कर—अगर इस किस्म के हालात पेश आए तो तुम रास्ता काट लेना।” प्रोफेसर ने कुछ सोचकर बहस खत्म करते हुए कहा।
“स्टार्ट आप ही करें।” कुलवंत ने रोशी को संबोधित किया।
रोशी ड्राइविंग सीट पर बैठ गई।
उसके बाद जीप को धक्का देकर सड़क पर लाया गया—बीस मिनट की मेहनत के बाद जीप स्टार्ट हो गई। कुलवंत ने फिर ड्राइविंग सीट संभाली और फिर जीप बंदूक से निकली गोली की तरह सड़क पर दौड़ने लगी।
अब प्रोफेसर पानी को याद नहीं कर रहा था। अब आतंकवादियों के बारे में सोच रहा था। रोशी भी इसी उलझन में पड़ गई थी। और कुलवंत का सारा ध्यान ड्राइविंग पर था। यो जीप में गहरा सन्नाटा छा गया। रोशी अब उसे रोक नहीं रही थी। हर किस्म के धचके सहन कर रही थी। कुलवंत की निगाह बार-बार कलाई घड़ी पर चली जाती। उसे हर हालत में छः बजे से पहले रूपनगर पहुंचना था।
चार बज चुके थे और अभी रूपनगर एक सौ पच्चीस किलोमीटर दूर था। इस खस्ताहाल सड़क पर जगह-जगह ब्रेक लगाना पड़ रहा था। कुलवंत को यह भी फिक्र थी कि दूसरी कोई दुर्घटना न घटने पाए और स्पीड भी बनी रहे।
दोपहर की गर्मी अब भी ज्यों-की-त्यों थी।
“यह बात तुमने चलने से पहले क्यों नहीं बताई?” अचानक रोशी ने उससे सवाल किया।
“अफवाहें फैलाने वालों को गिरफ्तार कर लिया जाता है।” ड्राइवर ने उत्तर दिया।
“तो क्या यह अफवाह है?”
“नहीं—हकीकत...लेकिन इस हकीकत को जुबान पर लाने का मतलब पुलिस की भाषा में अफवाह फैलाना है—आप ठहरे सरकारी आदमी—अगर आपको यह बताता तो आप लोग मुझे जरूर पुलिस के हवाले करवा देते...मैं तो आपको अब भी न बताता...पर आप ने मजबूर कर दिया।”
“जिस ट्रैवलिंग एजेंट ने यह जीप हमारी सेवा के लिए भेजी—क्या उसे भी मालूम नहीं था?”
“उन लोगों को इससे क्या लेना-देना...जीप इंशोर्ड है और उनका तो कारोबार ही यही है...उनको तो आजकल ग्राहक मिलने भी मुश्किल हो रहे हैं।” कुलवंत ने उत्तर दिया।
“तुम कहां के रहने वाले हो?” रोशी ने पूछा।
“खास रूपनगर का...।”
“फिर तो जरूरत पड़ने पर हम तुम्हारे घर भी रुक सकते हैं।”
“घर किस साले का है...एक किराए का कमरा है बस...एक खाट पड़ी है और एक बिस्तर...। पहले एक बस चलाता था तो थोड़ी-बहुत ऊपर की आमदनी हो भी जाती थी पर वह नौकरी भी छूट गई।”
“क्यों?”
आतंकवादियों ने बस रोक ली थी और एक दर्जन आदमी मार डाले थे...इसमें मेरा क्या कसूर था भला...जब आतंकवादी खुद बस में चढ़ मेरी कनपटी पर रिवाल्वर धर चुके थे...उन्होंने कहा रोक दो। मैंने रोक दी—और नौकरी से हाथ धो बैठा।”
“घर में कोई नहीं है?”
“गांव में हैं...थोड़ी-सी जमीन है—मां-बाप भी हैं—तीन भाई दो बहनें...दो बहनों की शादी हो गई...भाई खेती करते हैं—उनकी भी शादी हो चुकी है।“
“और तुम्हारी...?”
“नहीं हुई। अपनी गाड़ी बना लूं...तो सोच लूंगा शादी के बारे में...हमारे यहां दहेज भी नहीं मिलता...शादी के नाम पर बस लड़की मिलती है—उसे कहां से खिलाऊंगा?”
उसी समय एक जोरदार धमाका हुआ और जीप एक बार फिर जोर से लहरा गई। कुलवंत ने तुरंत ब्रेक न लगा दिए होते तो निश्चय ही जीप कलाबाजियां खा जाती। फिर भी उसके अगले पहिए सड़क से नीचे उतर ही गए थे। और जीप तिरछी होकर रुक गई।
“फिर पंचर हो गया क्या?” प्रोफेसर ने चीखकर कहा।
“देखता हूं।” कुलवंत ने इंजन बंद करते हुए कहा।
वह ड्राइविंग सीट से नीचे उतरा—फिर जीप के पहिए देखने लगा। इस बार पहिया ब्रस्ट हो गया था और कुलवंत हैरानी से टायर में बने सुराख़ को देख रहा था। तभी एक धमाका और हुआ और दूसरे पहिए पर भी सुराख़ हो गया था। कुलवंत उछलकर पलटा।
“हम हैं...।” एक टीले से गर्जदार आवाज सुनाई दी—“यह हमारा कमाल है...।”
कुलवंत ने उस तरफ देखा—एक लंबा-तगड़ा इंसान टीले पर खड़ा था। खुली दाढ़ी और सिर पर पगड़ी थी। उसने अपना चेहरा छिपाने की कोशिश नहीं की थी। उसके हाथ में स्टेनगन थी और कमर पर चमड़े का एक बैग झूल रहा था।
कुलवंत की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई। उसने पहली ही नजर में पहचान लिया था कि वह शख्स आतंकवादी है।
उसी समय रेत में से कुछ इंसान इस प्रकार बरामद हुए जैसे रेगिस्तान में भूत हों—उनके जिस्मों पर रेगिस्तान में कैमो फ्लाइंग करने वाले वस्त्र थे। सफेद और मटमैला धब्बेदार वस्त्र। अगर वे रेत पर लेटे होते तो उनकी शिनाख्त मुश्किल से ही हो पाती। वे शायद रेत पर लेटे हुए थे और अब खड़े हो गए थे। उनके हाथों में हथियार थे। उनमें से कोई भी खाली हाथ नहीं था।
“जीप में जो भी है नीचे उतर आए।” उस शख्स ने दोबारा गर्जदार आवाज में कहा और टीले से नीचे कूद आया।
प्रोफेसर हीरामणि सबसे पहले नीचे उतरा—उसने अपने हाथ सिर पर रख लिए थे। उसके पीछे-पीछे रोशी भी नीचे उतर गई।
“ऐ छोकरी, तू भी अपने बाप की तरह हाथ उठा के खड़ी हो जा...।” वही आवाज सुनाई दी—“और उल्लू के पट्ठे...तू क्या पहिए में बारूद की गंध नहीं सूंघ पाया?” यह शब्द उसने कुलवंत को कहे थे।
ड्राइवर और रोशी ने एक साथ हाथ उठा लिए।
आतंकवादियों ने जीप को घेर लिया था।
“वह शख्स उन सब में लंबा-तगड़ा था और उनका लीडर भी जान पड़ता था। लेकिन शेष लोग भी कम खतरनाक नहीं थे।
“गर्जन सिंह उर्फ गज्जा का नाम सुना कभी...?” उस शख्स ने पास आकर पूछा।
हीरामणि और रोशी ने इनकार में सिर हिलाया।
“और तुमने सुना...? उसने कुलवंत को घूरा।
कुलवंत ने सहमते हुए सिर हिलाया।
“मैं ही हूं।” गर्जन सिंह ने कहा और ठहाका मारकर हंस पड़ा—“क्यों बे...तूने सुना है मेरा नाम?” उसने एक बार फिर कुलवंत से सवाल किया।
“हां...स...सुना है।”
“कहां सुना है?”
“यहीं...यहीं का रहने वाला हूं।”
“कहां का?”
“रूपनगर...गांव है बसाला।”
“बसाले का रहने वाला है...नाम क्या है तेरा?”
“क...कुलवंत सिंह।”
“हमारी जात बिरादरी का है?”
“ज...जी...जी...।” कुलवंत हकलाया।
“तो पहले इनको गज्जा के बारे में बता।”
कुलवंत बगलें झांकने लगा। उसी समय गर्जन की एक लात उसकी कमर पर पड़ी और कुलवंत चीखता हुआ दोहरा हो गया।
“बताता है कि नहीं?”
“ब...बताता हूं।” कुलवंत ने रोआंसी आवाज में कहा।
“फिर वह हकलाकर कांपती आवाज में प्रोफेसर और रोशी को गर्जन के बारे में बताने लगा।
“गर्जन देवता है—वह गरीबों का दोस्त—अ...अमीरों का दुश्म...न....नेकी का फरिश्ता...बहुत...दयालु...धर्मात्मा...महात्मा...हम जैसों का रखवाला...और बहुत अच्छा...।”
“उल्लू के पट्ठे—यह तू किस गर्जन के बारे में पाठ रट रहा है?” कुलवंत के एक लात पड़ी और वह दूर जा गिरा—“इन हिंदुस्तानी कुत्तों को यहां तक अपनी गाड़ी में लाया है तू नमक हराम...। तुझसे बाद में निपटूंगा...पहले इन्हें देखता हूं।”
वह फिर उन दोनों की तरफ पलटा।
“क्यों बुड्ढे...तू ही प्रोफ़ेसर हीरामणि है...जो यहां रेगिस्तान में हरियाली करने आया है?”
“तुम्हें कैसे मालूम?”
गर्जन ने हीरामणि के गाल पर उल्टे हाथ का थप्पड़ रसीद किया—“गर्जन को क्या नहीं मालूम...गर्जन की इच्छा के बिना यहां हवा भी नहीं चलती। तमाम बच्चे गर्जन का नाम सुनते ही बिना लोरी सुने सो जाते हैं और जिस शहर में गर्जन के कदम पड़ते हैं—वहां कर्फ्यू लग जाता है...। तू हिन्दुस्तानी कुत्तों की भाषा में मैं आतंकवादी गिरोह का लीडर हूं और हिंदुस्तान की जुबान में आर्मी का जनरल हूं...तुमने सिंहस्तान कमांडो फोर्स का नाम जरूर सुना होगा—सुना कि नहीं?”
“तुम जो भी हो...लेकिन हमें यह बताओ कि तुमने हमें इस तरह क्यों घेर लिया?” इस बार रोशी ने कुछ हिम्मत बांधते हुए पूछा।
“यही बताने जा रहा हूं जानेमन...।” गर्जन ने कहा—“सिंहस्तान कमांडो फोर्स के प्रेसिडेंट का हुक्म है कि प्रोफ़ेसर हीरामणि को कैद कर लिया जाए। जबकि मैं किसी को कैद करने के पक्ष में नहीं हूं। दुश्मन को सीधे गोली मार देना अपना परम धर्म समझता हूं और अगर तुम जैसी हसीन औरत हो तो मारने का एक दूसरा तरीका इस्तेमाल किया जाता है।”
“तुम्हारा प्रेसिडेंट कौन है?”
“महामहिम हंटरवाला का नाम तुम लोगों ने जरूर सुना होगा।”
“हंटरवाला?”
“हां, महामहिम जशमेर हंटरवाला।”
“लेकिन वह हमें कैद क्यों करना चाहता है?” इस बार प्रोफेसर ने सवाल किया।
“मर्जी उसकी...वह राजा है...जैसा हुक्म देगा उसकी तामील की जाएगी।”
कुलवंत उन लोगों को बातों में व्यस्त पाकर फरारी का रास्ता खोजने लगा। आतंकवादियों का ध्यान पूरी तरह प्रोफेसर और रोशी पर केंद्रित था। कुलवंत धीरे-धीरे पीछे खिसकने लगा। वह सोच रहा था कि बस किसी तरह एक बार इन लोगों की आंखों से ओझल हो, फिर तो इनके फरिश्ते भी उसे रेगिस्तान में तलाश नहीं कर सकते थे।
“हां—तो बुड्ढे! हंटरवाला की वजह से तेरी जान बख्शी जा रही है।” गर्जन ने हीरामणि की कमर पर एक लात जमाते हुए कहा। हीरामणि जीप की बॉडी से जा टकराया और उसके कंठ से एक चीख निकल गयी।
“तुम लोगों को एक बूढ़े आदमी पर हाथ उठाते शर्म नहीं आती?” रोशी बोली।
“अभी हम बेशर्म कहां हैं जानेमन।” गर्जन रोशी की तरफ घूम गया—“अभी तो हमें तुम्हारे बारे में भी सोचना है। हुक्म सिर्फ प्रोफेसर हीरामणि के लिए मिला है—तुम्हारे बारे में कुछ नहीं बताया गया—तुम्हारे लिए हुक्मनामा तो मैं सुनाऊंगा...।” उसके होंठों पर एक भयानक वहशी मुस्कुराहट जाग उठी।
“खबरदार! मेरे पास भी मत आना।” रोशी अब भी हिम्मत से काम ले रही थी।
“इस बुड्ढे के हाथ बांध दो।” गर्जन ने कहा।
दो आदमी आगे बढ़े और हीरामणि को बांधने लगे।
गर्जन रोशी की तरफ कदम उठाने लगा। यही वह समय था जब कुलवंत को फरारी का अवसर मिल गया। पहले तो आहिस्ता-आहिस्ता पीछे हटता रहा, फिर पलट कर भाग खड़ा हुआ।
“हम कुल छ: आदमी हैं।” गर्जन ने रोशी से कहा—“शुरुआत मुझसे होगी, उसके बाद बाकी पांच।”
रोशनी की आंखों में भय झांकने लगा। वह दो कदम पीछे हटी...लेकिन गर्जन ने बड़ी फुर्ती से झपटकर उसकी कलाई पकड़ ली और उसे एक जोरदार झटका दिया। रोशी औंधे मुंह गर्जन के कदमों पर गिर पड़ी।
“कपड़े खुद उतारती है या हमको रेप करना पड़ेगा—यह अब तुझे तय करना है—वैसे रेप का मजा कुछ और ही होता है।”
गर्जन के साथी हंस पड़े। उनकी भूखी आंखें रोशी के सुडोल जिस्म पर जमी थीं।
“जरा इधर भी तो गौर फरमाइए।” अचानक पीछे से एक आवाज बुलंद हुई। सबका ध्यान उसकी ओर आकर्षित हो गया। दो वहशी कुलवंत को बकरी की तरह घसीटते हुए ला रहे थे।
“यह भाग रहा था सरदार!” उनमें से एक ने कहा—“हमने इसे दबोच लिया।”
गर्जन की आंखों से नफरत और क्रोध की चिंगारियां बरसने लगीं।
“इसने मुझ पर कृपाण से हमला किया है।” दूसरे ने अपना जख्म दिखाते हुए कहा।
“कौम के गद्दार कुत्ते।” गर्जन दहाड़ा—“तूने आजादी के लिए लड़ने वाले एक बहादुर सिपाही पर कृपाण चलाई है—हिंदुस्तानी कुत्तों से अधिक मुझे तुझ जैसे कौम के गद्दारों से नफरत है—लानत है तेरी मां पर जिसने तुझे जना। तू क्या समझता है, कृपाण चलाना तुझे ही आता है।”
रायफल का एक वार कुलवंत की कमर पर पड़ा और वह औंधा गिरा।
“रहम—रहम सरकार...मेरा भागने का इरादा नहीं था—मैं तो डर की वजह से...।”
“चुप।” गर्जन दहाड़ा—“रहम और तेरे लिए...पहले तो शायद मैं तुझ पर रहम खा भी जाता पर अब...अरे तुम लोग मेरा मुंह क्या देख रहे हो...इसे बताओ तो कृपाण कैसे चलाई जाती है—अपनी महारत का परिचय दो इस हरामजादे को।”
अब सभी आतंकवादी कुलवंत की तरफ आकर्षित थे—उन्होंने कुलवंत के इर्द-गिर्द एक घेरा बना लिया और अपने इस घेरे को तंग करते चले गए। उनके हाथों में कृपाणें चमकने लगीं। रोशी यह देखकर भय की सिहरन महसूस करने लगी। आतंकवादियों ने कुलवंत पर अपनी महारत का परिचय देना शुरू किया। पहले उनकी वस्त्रों को चीर-फाड़ डाला और फिर किसी सिद्धहस्त मोची की तरह उसकी खाल उतारने लगे।
रोशी ने इस किस्म की दरिंदगी के बारे में सुना तो था पर जिंदगी में कभी ऐसा दृश्य देखा नहीं था। उसे मितली सी आने लगी। कुलवंत भयानक आर्तनाद के साथ चीख रहा था और वह लोग कहकहे लगा रहे थे। उसकी खाल बड़ी सफाई से उतारी जा रही थी। रोशी की आंखों में अभी से अंधेरा-सा छाने लगा।
खाल उतारने के बाद उन्होंने पहले उंगलियां तराशी फिर घुटने खोल डाले। इसके बाद बाजू के पीस काटने में व्यस्त हो गए। रोशी को कै आ गई। उसने मुंह फेर लिया—यह सब उससे देखा नहीं जा रहा था।
कुलवंत की टांग भी काट डाली गई। अब उसकी आवाज आनी बंद हो गई थी। उसका मुंह तो खुला था पर कंठ से आवाज नहीं निकल रही थी। वह बेहोश हो चुका था या उसकी आत्मा शरीर से कूच कर गई थी। अंतिम हमला उसकी गर्दन पर हुआ और सिर गर्दन से उतार लिया गया। गर्जन ने आगे बढ़कर उसका सिर बालों से पकड़ लिया जिससे खून टपक रहा था। उसके बाद यह सिर उसने जीप की ड्राइविंग सीट पर रख दिया।
आतंकवादियों ने जीप में रखी पानी की छागलों से हाथ धोए और उसके बाद उसी पानी से अपनी प्यास बुझाने लगे।
“इनकी प्यास इतनी आसानी से नहीं बुझने वाली।” गर्जन ने रोशी को संबोधित किया—“अब तुम्हें ही इनकी प्यास बुझानी है।”
“खबरदार! मुझे छूना भी नहीं।” रोशी चीखी।
“कौन बचाएगा तुझे जानेमन?”
“तुम्हें शायद मालूम नहीं है मैं कौन हूं—तुमने कभी आतंकवादी गिरोह अलफतह का नाम सुना है—यह पाकिस्तान की सबसे ताकतवर गुरिल्ला फौज है।”
“पाकिस्तान...अलफतह...तुम्हारा उस से क्या संबंध?”
“मेरा नाम रेशमा है—और मैं अलफतह की एजेंट हूं...अगर मुझे कोई नुकसान पहुंचा तो याद रखो वे लोग तुम्हारे दुश्मन बन जाएंगे।”
प्रोफेसर हीरामणि चौंका।
गर्जन भी ठिठक-सा गया। वह रोशी पर हाथ डालने की तैयारी कर रहा था—लेकिन रोशी ने उसे अपने परिचय के तौर पर जो हवाला दिया था उसने उसके कदम रोक लिए।
“नर्क में जाओ।” गर्जन गुर्राया—“प्रेसिडेंट खुद देख लेगा। लेकिन एक बात मेरी भी सुन लो—यह बात अगर झूठ निकली तो फिर मैं अपने प्रेसिडेंट से तुम्हें हासिल कर लूंगा—और फिर तुम्हारा अंजाम इससे भी बुरा होगा।”
रोशी की जान में जान आई—फिलहाल तो वह बच गई थी। आगे की आगे देखी जाएगी।
“लेकिन इस नाते तुम मुझे अपनी कैद में नहीं ले सकते।”
“चुप...अब तेरा फैसला बड़ी अदालत में ही होगा—चलो वीर सिपाहियों—अब यहां रुकने से कोई फायदा नहीं—इन दोनों को ले चलो—इनकी आंखों पर पट्टी बांध दो—वक्त से पहले पहुंचना भी है क्योंकि आज रात आसपास के शहर में कर्फ्यू लगने वाला है। बलवा आज ही रात शुरू हो जाएगा।”
गर्जन के आदेश का पालन होने लगा।
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Additional information
Book Title | बलवा : Balva |
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Isbn No | |
No of Pages | 268 |
Country Of Orign | India |
Year of Publication | |
Language | |
Genres | |
Author | |
Age | |
Publisher Name | Ravi Pocket Books |
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