ऐ वतन तेरे लिए : Ae Watan Tere Liye
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Description
वे लोग इतिहास में अमर हो जाते हैं जो अपने वतन की हिफाजत के लिए शहीद होते हैं, भले ही वह हुकूमत की नज़र में दहशतगर्द कहलाते हों।
लोग तोहफे के तौर पर फूल देते हैं, मैं आपको काटें दे रहा हूं। इन कांटों की चुभन आपको महसूस होगी-दर्द होगा कहीं न कहीं-चोट लगेगी जरूर और फिर मुमकिन है इस दर्द, वेदना, छटपटाहट, कराहट, से किसी भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, सुभाष चंद्र बोस या अशफाकउल्ला खां का जन्म हो जाये-क्योंकि आज पुरे मुल्क की बेतरतीब हो चुकी भीड़ इंतज़ार कर रही है एक नयी आज़ादी का।
Aye Watan Tere Liye
ऐ वतन तेरे लिए
शहंशाह
रवि पॉकेट बुक्स
प्रस्तुत उपन्यास के सभी पात्र एवं घटनायें काल्पनिक हैं। किसी जीवित अथवा मृत व्यक्ति से इनका कतई कोई सम्बन्ध नहीं है। समानता संयोग से हो सकती है। उपन्यास का उद्देश्य मात्र मनोरंजन है। प्रस्तुत उपन्यास में दिए गए हिंसक दृश्यों, धूम्रपान, मधपान अथवा किसी अन्य मादक पदार्थों के सेवन का प्रकाशक या लेखक कत्तई समर्थन नहीं करते। इस प्रकार के दृश्य पाठकों को इन कृत्यों को प्रेरित करने के लिए नहीं बल्कि कथानक को वास्तविक रूप में दर्शाने के लिए दिए गए हैं। पाठकों से अनुरोध है की इन कृत्यों वे दुर्व्यसनों को दूर ही रखें। यह उपन्यास मात्र 18 + की आयु के लिए ही प्रकाशित किया गया है। उपन्यासब आगे पड़ने से पाठक अपनी सहमति दर्ज कर रहा है की वह 18 + है।
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ऐ वतन तेरे लिए
शहंशाह
अगले रोज भूतनाथ ने इस दास्तान को सुनाना शुरू किया जो इस प्रकार है—
प्रकाश यादव को आभास हो गया था कि मौत आ गई थी—मौत के होंठों पर गहरी मुस्कुराहट थी और मौत का नाम था छायावती—यानी कि प्रकाश की पत्नी छायावती।
“तुम मुस्कुरा रही हो?” उसने पूछा था।
“इस बात पर मुस्कुरा रही हूं कि तुम तमाम कहावतें भूल जाते हो। कम-से-कम यही कहावत याद रखते कि बिल्ली ने शेर को तमाम गुर सिखाए लेकिन पेड़ पर चढ़ना नहीं सिखाया और तुम यह भी भूल गए कि सिर्फ राजनीति ही ऐसी चीज है जिसमें खून के रिश्ते भी भुला दिए जाते हैं। बेटा मां को कत्ल कर सकता है और मां बेटे को—और पति-पत्नी का रिश्ता मां-बेटे के रिश्ते से ज्यादा पुख्ता नहीं होता कि उसे कत्ल ना किया जा सके। मैंने सियासत के तमाम दाव-पेंच सीखे हैं। वैसे गोलियां तुम भी कच्ची नहीं खेलते लेकिन तुम अब अपने दाँव इस्तेमाल करने के काबिल नहीं रहोगे—पीछे देखो।”
उसने पलट कर देखा। दरवाजे पर दो व्यक्ति सिर पर पगड़ी और मुंह पर ढाटा बांधे खड़े थे। दोनों के हाथों में क्लाश्निकोव थी और उनकी गनों का रुख प्रकाश यादव की तरफ था। उसने सहम कर छाया से कहा—
“म...मैं...त... तुम्हारा पति परमेश्वर हूं।”
वह सिगरेट के पैकेट से एक सिगरेट निकालते हुए बोली—“हम दोनों का परमेश्वर ब्लास्टर है। तुम समझते थे, मैं सियासत में कच्ची हूं, मेरी पार्टी के विलय के बाद तुम्हारा नजरिया बदल ही गया था—वर्ना तो मुझे कुर्बान करने का मंसूबा कभी ना बनाते। तुम इस बात को नहीं जानते कि यह मुल्क विधवाओं को बड़ी इज्जत देता है—मैं भी अपने पति की मौत के नाम पर वोट मांगूंगी और जनता मेरी झोली भर देगी। यह बात ब्लास्टर की समझ में भी आ गई है। अब मुझे पी० एम० बनने से कोई नहीं रोक सकता।”
छाया ने होंठों के मध्य सिगरेट रखते हुए, लाइटर के नन्हे शोले को भड़काते हुए कहा—“शूट हिम।”
तड़-तड़ की आवाजों के साथ दो गनों से गोलियां चलने लगीं। वह अपना सिगरेट सुलगाने लगी। फिर पहला कश लगाकर धुआं छोड़ते ही फायरिंग की आवाज रुक गई। वह सिगरेट का दूसरा कश लगाते हुए अपने पति परमेश्वर के पास आई। वह खून से लथपथ आधा सोफे पर और आधा फर्श पर था। जिस्म साकित हो गया था और दीदे फैल गए थे। वह उसके मुंह पर धुआं छोड़ने लगी।
पता नहीं मर्द अपनी मर्दानगी के सामने यह क्यों नहीं मानता कि औरत उसे एक फूंक में उड़ा सकती है।
¶¶
सिकन्दर ने अखबार को एक तरफ फेंकते हुए शशांक को देखा, फिर बोला—“हमसे एक गलती हो गई है, हमें फोन पर टीना वगैरह को धमकियां नहीं देनी चाहिए थीं। उन्होंने फोन पर दी जाने वाली धमकियों को रिकॉर्ड किया होगा। अब प्रकाश यादव के कत्ल के बारे में अखबार के जरिए कहा जा रहा है कि एक अजनबी ने उसे खत्म करने की धमकियां दीं थीं। इस बार ब्लास्टर ने हमारे नाम नहीं लिए। धमकियां देने वाले को अजनबी कहा गया है।”
शशांक ने कहा—“वह समझता है कि हमारे नाम लेने की जरूरत नहीं है। जब पहली तीन वारदातें हमने की हैं यानी टीना को अगुवा किया है। राजदूत को मार डाला है, और उसके चपरासी को भी गायब कर दिया है। हमने इनमें से कोई जुर्म नहीं किया था—इसके विपरीत हमने अपने बयानों में इन जुर्मों में सम्मिलित होने से इनकार किया था—लिहाजा इस बार हमें अजनबी कहा गया है—ताकि आवाम को जहनी तौर पर उलझाया जाए। उनके अन्दर सन्देह उपजेंगे कि हमने पहले अपना नाम बताकर वारदातें की ओर बड़े आतंकवादी न कहलाने के लिए खुद को अजनबी कह रहे हैं।”
“प्रकाश यादव का सबसे बड़ा प्रतिद्वन्दी गंगाधर है। उसकी हत्या का इल्जाम गंगाधर पर आना चाहिए। आवाम को उस पर सन्देह करना चाहिए। जब उसका प्रादेशिक लीडर रहमान चना मारा गया था तो प्रकाश यादव ने गंगाधर पर ही इल्जाम लगाया था। मौजूदा हालात से यह समझ नहीं आ रहा है कि ब्लास्टर ने प्रकाश यादव को क्यों कत्ल कराया है? जिस गंगाधर को यहां का हुक्मरान बनाना चाहता है उसे आवाम की नजरों में संदिग्ध क्यों बनाया जा रहा है?”
“ब्लास्टर अपने दो चहेतों में से एक को खत्म कराने और दूसरे को संदिग्ध बनाने के बाद क्या करना चाहता है, यह मैं समझ सकता हूं। क्या तुम समझ रहे हो?”
“यार! तेरे साथ रहकर मैं सियासी भविष्यवाणी कर सकता हूं। वह इन दोनों में से किसी को प्रमोट नहीं कर रहा है, किसी तीसरी कठपुतली को नचाएगा।”
“कठपुतली मर्द भी हो सकता है और औरत भी। छायावती वैसे भी पिछड़ी जातियों की नेता है, और इन दोनों पिछड़ी जातियों में चिंगारी फूंकी जा रही है—क्या तुम्हें जगह-जगह पिछड़ी जातियों के मसीहा के पुतले खड़े नजर नहीं आते? शहरों, कस्बों, यूनिवर्सिटियों, सड़कों, चौराहों, पार्कों के नाम पिछड़ी जातियों के मसीहा के नाम पर रखे जा रहे हैं। अंग्रेजों ने भी इसी पॉलिसी का इस्तेमाल किया था। जब यहां पर मुगल बादशाहों ने झण्डे फहराए तो भी इस पॉलिसी से काम लिया गया था। इन पिछड़ी जातियों को हीन भावना से ग्रसित किया जाता है। उन्हें समझाया जाता है कि अगड़ी जातियों ने उन पर बहुत जुल्म ढाए, बहुत अत्याचार किए। जबकि ऐसा कभी नहीं हुआ, और कभी हुआ भी हो तो वर्तमान में तो यह मुल्क किसी राजा की जागीर नहीं है, स्वतंत्र देश है, संविधान में सबको समान अधिकार हैं और न्याय की सुविधाएं भी सभी के लिए उपलब्ध हैं लेकिन किसी भी छोटी-सी घटना को तूल देकर राई का पहाड़ बना दिया जाता है। असल में यह वोट बैंक की राजनीति है और छायावती जैसी औरतें या लीडर, समय-समय पर इसका लाभ उठाते रहे हैं। एक तो पिछली जाति के लीडर ऊपर से विधवा... वाह क्या आंकड़ा है—इलेक्शन में इसी के जीतने की अधिक संभावनाएं हैं—और यही ब्लास्टर की कठपुतली हो सकती है।”
“तो क्या...छाया ने प्रकाश यादव को...लेकिन तुम यह बात कैसे कह सकते हो कि छाया ने अपने शौहर को मार डाला है और ब्लास्टर छाया का साथ दे रहा है?”
शशांक ने मोबाइल सेंट्रल टेबल से उठाकर नम्बर पंच करते हुए कहा—“चलो मालूमात हासिल करने के लिए कुछ छेड़छाड़ करते हैं।”
सम्पर्क स्थापित होने पर एक नारी स्वर सुनाई दिया—“हैलो! मैं छायावती की पर्सनल सेक्रेटरी बोल रही हूं। आप जो भी हैं मैसेज नोट करा दें। मैडम अभी शोक संतृप्त हैं—वह किसी से भी बात नहीं करेंगी।”
“संयोग से मैं भी पर्सनल सेक्रेटरी हूं। आप उनके कान में सिर्फ इतना कह दें—ब्लास्टर।”
“जस्ट ए मिनट! मैं अभी उनसे कहती हूं।”
शशांक ने सिकन्दर को मोबाइल फोन देते हुए धीमी आवाज में कहा—“पर्सनल सेक्रेटरी की आवाज।”
सिकन्दर ने फोन लेकर कान से लगाया। चन्द सेकण्ड बाद छाया की आवाज सुनाई दी—“हैलो! मैं छायावती बोल रही हूं।”
“हैलो मैडम! जस्ट ए मिनट—सर आपसे बात करेंगे।”
सिकन्दर ने फोन के नन्हे माइक पर हाथ रखकर खंखारा। अपने गले को साफ किया, भर्राई हुई आवाज में पूछा—“क्या पोजीशन है?”
छाया ने कहा—“कोई खास बात नहीं है, मेरी पार्टी के तमाम पॉलीटिशियन देश के हर हिस्से से प्रकाश की अन्तिम यात्रा में शामिल होने आए थे। कल का दिन और व्यस्त होगा, फिर पार्टी के महत्वपूर्ण लीडरान की गुप्त मीटिंग होगी।”
“मीटिंग के तुरन्त बाद मुझसे सम्पर्क करके बताओ कि वह तमाम लीडर तुम्हें पार्टी का लीडर स्वीकार कर रहे हैं या नहीं?”
“सर! उनके तो बाप भी मुझे पार्टी लीडर चुनेंगे। उनके पास रास्ता ही क्या है, और आधी तो मेरी ही पैदा की हुई फसल है। इसकी तरफ से आप बेफिक्र रहें। आप सिर्फ मेरी ताजपोशी की तैयारी कीजिए। मेरी जीत तो अब पक्की है। सदियों से पिछड़ने वाली जातियों के तमाम भोंपुओं के फोन तो अभी से आ रहे हैं। मेरी पार्टी के एम० पी० ऐसे दौड़ेंगे, जैसे अश्वमेध यज्ञ के घोड़े दौड़ते हैं। प्रकाश यादव की मुसलमानों पर बहुत बड़ी जबरदस्त पकड़ है—मुझे उनके मौलाना और इमामों से मेरे हक में फतवे जारी करने में कोई मुश्किल नहीं होगी—ये सब खाने कमाने की दुकानें हैं। मैं विधवा हूं—प्रकाश यादव की बेवा—मुसलमान टूटकर पड़ेगा—और पिछड़ी जाति की तो हूं ही, इसलिए पिछड़ों के मसीहा 'फरिश्ता अमर रहे' का नारा ही काफी है। वैसे अभी तक इस देश का कोई एक नाम भी नहीं है। हम भारत कहते हैं—विदेशी मुल्क इंडिया कहते हैं—उन्हें पता ही नहीं कि भारत किस चिड़िया का नाम है। मैं इसका नाम फरिश्ता देश रख दूंगी।”
“मान गए... हम स्वीकार करते हैं कि तुम कुछ करने से पहले जबरदस्त प्लानिंग करती हो, फिर भी हम आवाम का रिएक्शन देखना चाहते हैं। तुम किसी बड़े जलसे में अपनी पार्टी के लीडर का ताज पहनो।”
“मेरा प्रोग्राम तो यही है। मैंने जलसे की तैयारियां भी शुरू करवा दी हैं।”
“ऑल राइट—मैं परिणाम देखूंगा। मेरी खुफिया एजेन्सियां मुझे रिपोर्ट देंगी कि आवाम में तुम्हारी फेम का ग्राफ कितना ऊपर जा रहा है।”
सिकन्दर ने फोन बन्द करके शशांक को बताया कि छाया की आइंदा प्लानिंग क्या है।
शशांक ने मुस्कुरा कर कहा—“तुम आवाजों और लहरों की खूब नकल करते हो। छाया ने शक नहीं किया और बहुत कुछ उगल दिया। अब जरा गंगाधर की खबर लो।”
सिकन्दर ने सम्पर्क स्थापित किया, फिर ब्लास्टर के सेक्रेटरी की आवाज में कहा—“हैलो! मिस्टर गंगाधर! सर ने पूछा है कि प्रकाश यादव की मौत की प्रतिक्रिया क्या हो रही है और क्या आपने मैडम छाया से सम्पर्क किया है?”
गंगाधर ने कहा—“मैं सर से सीधी बात करना चाहता हूं।”
“सर बहुत व्यस्त हैं—आप उनके प्रश्नों का जवाब दें।”
“जवाब क्या दूं...प्रकाश यादव की मौत के बाद छायावती हमदर्दी हासिल कर रही है। रहमान चना की मौत के बाद प्रकाश यादव की मौत ने मुझे संदेहास्पद कर दिया है। लोग इन वारदातों को मेरी साजिश समझ रहे हैं। शशांक और सिकन्दर मेरी फेम का ग्राफ गिराते जा रहे हैं—क्या वह दोनों अदृश्य मानव हैं कि ब्लास्टर के जासूस उन्हें ढूंढ नहीं पा रहे हैं?”
“उन्हें तलाश किया जा रहा है। सर ने हुक्म दिया है कि उनकी एक झलक भी नजर आए तो फौरन उन्हें गोलियों से छलनी कर दें।”
“यह मैं एक अरसे से सुनता आ रहा हूं, लेकिन न तो वे नजर आते हैं न उन्हें कुत्ते की मौत मारा जाता है। अब तो सिर्फ दुआएं मांगता रहता हूं कि ईश्वर उन दोनों को एक ही दिन उठा ले।”
“गलत दुआएं मांग रहे हो और वह कबूल हो रही हैं। ईश्वर उन्हें उठाता जा रहा है और तुम्हें गिराता जा रहा है।”
“हां—यह तो मैंने सोचा भी नहीं था। अब दुआओं के शब्द बदल लूंगा।”
“आपने छायावती से सम्पर्क बनाया है?”
“रस्म तो निभानी ही थी, लेकिन बात करते हुए यूं लग रहा था मानो मेरी सियासत का जनाजा निकलता जा रहा है। जबकि अर्थी यादव की थी मगर सवार मैं था।”
इस बात पर सिकन्दर को बेअख्तियार हंसी आ गई और बेअख्तियारी से आवाज बदल गई। गंगाधर ने चौंककर पूछा।
“कौन हो...कौन हो तुम?”
“वही हूं जिसकी मौत की दुआ मांग रहे हो।”
“यू नॉनसेंस...तुम सिकन्दर हो। मुझे बेबस और कमजोर समझ कर तमाशा बना रहे हो—जबकि मैं कमजोर नहीं हूं—बेबस नहीं हूं, मेरा सबसे बड़ा राजनीतिक प्रतिद्वन्दी नर्क सिधार गया है—मैं पी० एम० बनूंगा...समझे तुम...क्या तुम समझते हो कि हमारी हिंदूवादी पार्टी के मुकाबले उसकी अगली-पिछड़ी पार्टी जीत सकेगी? क्या तुम्हें मालूम नहीं कि हमने हिंदुओं को गोलबन्द करने में क्या-क्या पापड़ बेले हैं—कौन जीत सकता है हमसे?”
“यह तो वतन को गिरवी रखने वाले जानते होंगे कि जीतने के लिए किसने किस हद तक अपनी कौमी गैरत को ब्लास्टर के हाथों में बेचा है।”
गंगाधर ने फोन बन्द कर दिया। सिकन्दर ने अपना फोन बन्द करते हुए कहा—“कमाल का मुल्क है। कोई हिन्दुओं का ठेकेदार बना हुआ है तो कोई मुसलमानों का, और आवाम को देखो, वह भी इन्हीं के हाथों खेलकर इनकी जय-जयकार करते हैं।” कुछ रुक कर वह बोला—“यार! उसकी एक बात पर बेअख्तियार हंसी आ गई, उसे शक हो गया कि मैं ब्लास्टर का सेक्रेटरी नहीं बोल रहा हूं।”
वह बताने लगा कि गंगाधर उसे क्या कह रहा था। वह बातें करते हुए सोफों पर से उठ गए।। कोठी की चारदीवारी में तमाम दिन गुजार चुके थे। शाम को खुली फिजा में सांस लेना और जरा तफरीह करना चाहते थे। इस कोठी के एक बेडरूम में वह रहते थे, इसके बाकी हिस्सों में एक मियां-बीवी अपने जवान बेटे और दो बेटियों के साथ रहते थे। गॉडफादर कासम जान ने उन्हें अस्थाई रूप से छिपाने के लिए उस कोठी का चयन किया था। ताकि पुलिस और ब्लास्टर वाले किसी मकान में उन दोनों को एक साथ देख कर उन पर शक ना करे। इतनी बड़ी फैमिली के साथ रहने की वजह से वह शक के दायरे से बाहर थे।
उन्होंने लिबास तब्दील करने के दौरान फैसला किया कि एक साथ बाहर वक्त नहीं गुजारेंगे। शशांक ने गॉडफादर कासम के प्राइवेट नम्बर पर सम्पर्क स्थापित किया तो कोई उत्तर नहीं मिला। वह अपनी 'बाजी' अमृता की हिफाजत की खातिर लन्दन गया हुआ था।
उसने कासम जान के मैनेजर अमानत शेख से सम्पर्क किया। उसने कहा—“बॉस लन्दन गए हैं। उनकी अदम मौजूदगी में आपकी तमाम जरूरत मैं पूरी करूंगा। हुक्म करें।”
“मैं और सिकन्दर अभी कोठी से निकल रहे हैं। पता नहीं वापसी कब तक होगी। हमारी सिक्योरिटी के लिए आपके जितने शस्त्रधारी हैं उन्हें सूचना दें कि मैं और सिकन्दर अलग-अलग दिशा में जा रहे हैं। दूसरी बात यह है कि हम डॉक्टर अमृता और विक्की के बारे में मालूम करना चाहते हैं।”
अमानत शेख बताने लगा कि मुस्ताक भेड़िया का ऑपरेशन लन्दन में किया जाएगा। इसलिए आई० एस० आई० वाले मजबूर होकर डॉक्टर अमृता को लन्दन ले गए हैं।
शशांक ने आई० एस० डी० कॉल पर लन्दन के कोड नम्बर डायल करके कासम के व्यक्तिगत नम्बर डायल किए। कासम ने उसे बताया कि तब्बू (तैयब बादशाह) पहले दुश्मन बन कर डॉक्टर अमृता को पाकिस्तान ले गया मगर उसे गलती का एहसास हो गया है। उसने डॉक्टर अमृता की सलामती के लिए भेड़िया का किडनैप किया था और हशमत खान, आई० एस० आई० के डी० जी०, को मजबूर किया था कि डॉक्टर अमृता की सलामती की जमानत देने के लिए भेड़िया का ऑपरेशन लन्दन में किया जाए। अब कासम अपने खास आदमियों के साथ अपनी 'बाजी' अमृता की हिफाजत के लिए गया है।
शशांक ने पूछा—“पाकिस्तान में विक्की से कैसे सम्पर्क होगा?”
“विक्की, तब्बू और पाकीजा पाकिस्तान में इलाके तब्दील करते जा रहे हैं—इस तरह वहां की पुलिस और जासूसों उन्हें तलाश नहीं कर सकेंगे। वे तीनों हमसे बाद में सम्पर्क करेंगे।”
शशांक फोन पर बातचीत कर रहा था। सिकन्दर लिबास तब्दील करके कोठी से बाहर अहाते में आया। वहां सिकन्दर और शशांक के लिए अलग-अलग कारें थीं। उनके ड्राइवर भी कासम की तरफ से भेजे गए उनके शस्त्रधारी गार्ड्स थे, सिकन्दर ने ड्राइवर से कहा।
“तुम पिछली सीट पर मेरी जगह एक मालिक की हैसियत से अकड़ कर बैठो। मैं कार ड्राइवर बनता हूं।”
ड्राइवर ने कहा—“सर! अभी मैनेजर साहब ने सूचना दी है कि दूसरा ड्राइवर आपको ले जाएगा और मैं अपने एक साथी के साथ मोटरसाइकिल पर दूर ही दूर रहकर आपकी निगरानी करूंगा। आप ड्राइविंग सीट पर तशरीफ रखें। मैं दूसरे गार्ड को भेज रहा हूं।”
वह कोठी के अहाते से बाहर आ गया। सिकन्दर ड्राइविंग सीट पर आ गया। तीन या चार मिनट के बाद दूसरे गार्ड ने आकर उसे सलाम किया, फिर पूछा—“क्या सचमुच आप ड्राइव करेंगे—अभी रज्जो ने मुझसे कहा तो यकीन नहीं आया। यह कुछ अजीब-सा लगेगा। मैं अपने बॉस का एक मामूली-सा कर्मचारी हूं और आप...।”
सिकन्दर ने बात काट कर कहा—“ज्यादा ना बोलो। पीछे बैठ जाओ।”
उसने आज्ञा का पालन किया। पिछली सीट पर बैठ गया। सिकन्दर ने कार स्टार्ट की, फिर उसे ड्राइव करता हुआ बाहर मेन रोड पर आया।
उसने आईने का रुख बदल कर देखा। उस कोठी से दूर निकल आने के बाद बहुत पीछे सिक्योरिटी गार्ड रज्जो एक मोटरसाइकिल पर आ रहा था। उसने कहा था कि उसकी निगरानी के लिए दो गार्ड्स मोटरसाइकिल पर होंगे लेकिन वह अकेला था और दूसरी कोई मोटरसाइकिल नजर नहीं आ रही थी।
सिकन्दर ने पीछे बैठे हुए गार्ड से पूछा—“तुम्हारा क्या नाम है?”
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Additional information
Book Title | ऐ वतन तेरे लिए : Ae Watan Tere Liye |
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Isbn No | |
No of Pages | 288 |
Country Of Orign | India |
Year of Publication | |
Language | |
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Author | |
Age | |
Publisher Name | Ravi Pocket Books |
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