अधूरा कत्ल
सुनील प्रभाकर
“मारग्रेट...! मारग्रेट लूसी...!”
मारग्रेट लूसी अपने खूबसूरत बालों को झटकती हुई फुटपाथ पर पहुंची ही थी कि उसके पीछे से स्वर उभरा।
वो चौंक गई।
“बॉबी तुम! यहां...?” मारग्रेट लूसी आवाज की दिशा में घूमते हुए बोली थी।
“हां, प्रोफेशनल वर्क के सिलसिले में इधर आया था कि तुम्हें इधर से निकलते देखा।”
“आई सी...!” मारग्रेट लूसी उसके निकट पहुंचते ही बोली थी—“बहुत बदल गये तुम बॉबी...! चेहरे पर घनी दाढ़ी-मूछें—शरीर भी पूरी तरह भारी हो चुका है।”
“मैं बाइस वर्ष का हो चुका हूं लूसी!”
“ओह...!”
“हम जब साथ पढ़ते थे तो हमारी उम्र मात्र सोलह-सत्रह वर्ष की थी।”
“राइट...! क्या दिन थे वो? दिन-रात की खिल-खिलहट भरी जिन्दगी—मौज-मस्ती...!”
“बड़ी उदास नजर आ रही हो? बात क्या है?”
“दुर्भाग्य की छाया...!” लूसी ने गहरी सांस ली थी—“जब सांसारिक जिम्मेदारियों का बोझ सिर पर आ पड़े तो...!”
“ओह...! लगता है तुम हालातों के कुचक्र में फंसी हुई हो। तुम्हारे फादर की मौत की खबर मैंने सुनी थी। बड़े ही प्यारे व मेहनती इन्सान थे वो। किन्तु अच्छे इन्सानों की जरूरत ही शायद गॉड को भी हुआ करती है। वो उन्हें जल्दी बुला लिया करता है।”
“ब...बॉबी...!”
“ये मौत भी अजीब हुआ करती है—ये अच्छाई को भी निगल लेती है और बुराई को भी...! जीवन की क्षणभंगुरता का अहसास दिलाती है मौत...!”
“बॉबी...!” लूसी ने उसके वाक्य को काटा था—“शायद मेरे दु:ख ने तुम्हें भी दु:खी कर दिया है।”
“लूसी...!”
“दिन गुजर रहे हैं—किसी प्रकार गाड़ी चल रही है बॉबी! तुम अपने आपको दु:खी मत करो।”
“मदर कैसी हैं?”
“लम्बी बीमारी...!” लूसी ने मीलों लम्बी सांस छोड़ी थी—“लम्बी बीमारी ने उन्हें भी तोड़ दिया और मुझे भी। वर्ना मैं एक फुल्के पर ही सुकून भरा जीवन गुजार देती।”
“इलाज चल रहा है?”
“हां!” लूसी बोली थी—“नेलसन हॉस्पिटल में सर रिचर्ड का ट्रीटमेंट चल रहा है—आराम भी है—किन्तु असाध्य रोगों का आराम क्षणिक होता है। कब आराम हो—कब तबीयत खराब हो जाए कुछ कहा नहीं जा सकता। फिर भी किसी प्रकार इलाज का खर्च खींच रही हूं। उन्हें आराम है, इसी बात की तसल्ली है।”
“नौकरी कहां कर रही हो?”
“मिस्टर जॉर्ज सैम्पसन की इकलौती सेक्रेटरी हूं मैं...!”
“वो कंजूस...!”
“बॉबी...!”
“उस आदमी के साथ कैसे निभ जाती है तुम्हारी...?” बॉबी के स्वर में हैरानी थी—“मैंने तो सुना है कि वो व्हिस्की का पैमाना भी धोकर पीता है।”
“बेशक! फिजूल खर्चो से उसे सख्त चिढ़ है। मेहमानों को एक प्याला व्हिस्की की तो बात दूर एक कप चाय पिलाकर भी राजी नहीं है वो।”
“अरे, ये तो साफ-साफ कंजूसी ही हुई ना।”
“ये सच है—किन्तु तुमने वो कहावत सुनी है ना! कि सांप बाहर कितना ही टेढ़ा-मेढ़ा क्यों ना चले, बिल में घुसते समय उसे सीधा होना ही पड़ता है।”
“लू...लूसी...!”
“देखो, लोगों का अपना-अपना मनी मैनेजमेन्ट होता है। कोई थोड़ा कमाता है कोई अधिक, किन्तु सम्पन्न होता वही है, जिसे धन बचाने की कला आती हो।”
“बेशक...! फिजूलखर्ची उचित नहीं—किन्तु इसका मतलब ये भी तो नहीं कि आदमी कंजूस हो जाए।”
“यू आर राइट...! वो ऐसा ही है किन्तु मैं किसी प्रकार तालमेल बिठा लेती हूं। इसका कारण शायद ये है कि वो—मेरी जरूरतें पूरी करता है।”
“वैरी गुड! ये जानकर तसल्ली हुई। फिर भी कोई दिक्कत आए तो अपने दोस्त बॉबी को मत भूलना। हालांकि मेरी स्थिति बहुत अच्छी नहीं फिर भी हम तालमेल बैठाने की पूरी चेष्टा करेंगे।”
“शुक्रिया बॉबी! कम से कम फ्रेंड होने के नाते तुमने इतनी तसल्ली तो दी।”
“ये तो मेरा फर्ज था। बाय...! चलता हूं।”
उसने अपना हाथ लूसी की ओर बढ़ाया।
मारग्रेट लूसी ने उसका हाथ अपने हाथ में थाम लिया।
दोनों ने एक-दूसरे को अनुरागपूर्ण दृष्टि से देखा, फिर जुदा हो गये।
मारग्रेट लूसी फुटपाथ पर चलती हुई उस ओर मुड़ गई जिधर उसके बॉस सर जॉर्ज सैम्पसन का वृहद आवास था।
बॉबी चन्द पलों तक उसे जाता हुआ देखता रहा, फिर घीमा और अपनी मोबाईक की ओर बढ़ गया।
¶¶
फ्लोमीना ग्लोरी ने पूरे हॉल में दृष्टि दौड़ाई।
उसे तलाश थी किसी खाली टेबल की जहां बैठकर वो शराब के गिने-चुने दो प्याले पी सके।
इतने ही पैसे थे उसके पास।
इन दिनों वो कड़के में थी। पुलिस उसके पीछे थी—आखिर उसने महानगर ही छोड़ दिया था और इस शहर में चली आई थी।
किन्तु वहां अजनबी लोगों के बीच जाकर उसे अहसास हुआ कि उसने यहां आकर गलती की।
खासतौर पर तब जब उसकी माली हालत खस्ता थी।
इस अन्जान शहर में उसके लिए सभी अजनबी थे।
खर्चे अंधाधुंध—जेब खाली—अजनबी लोगों में वो हाथ भी नहीं फैला सकती थी।
हालांकि उसने होटल में कमरा लिया हुआ था किन्तु समय पर भुगतान न होने के कारण उसे कभी भी निष्कासित किया जा सकता था।
आज उसे वॉर्न किया गया था कि कल दोपहर तक वो सारे 'बिल पे' कर दे।
परेशान होकर उसने यहां-वहां हाथ मारने की चेष्टा की थी किन्तु उसे अपने हाथ पीछे खींच लेने पड़े थे।
कारण ये है कि उसे यहां की पुलिस भी अलर्ट नजर आई थी।
अगर वो फंस जाती तो नमाज माफ करवाने के एवज में रोजे गले में पड़ जाने वाली कहावत चरितार्थ होती।
फ्लोमिना ग्लोरी!
जिसकी हैसियत एक फरार अपराधी जैसी थी।
किशोरावस्था में ही वो अनाथ हुई थी तो कुछ लोगों ने परवरिश के नाम पर उसका यौन शोषण करना चाहता।
उनसे जूझते हुए उसके हाथों एक अय्याश व्यक्ति का खून हो गया था और वो फरार हो गई थी।
बस यहीं से उसकी बर्बादी की कहानी शुरू हुई थी।
उसे अपराध की दुनिया में कदम रखना पड़ा था।
फ्लोमिना ग्लोरी ने एक टेबल सम्भाली और आर्डर दिया बेयरा व्हिस्की सर्व कर गया।
होटल मध्यम दर्जे का था, इसलिए उसे सस्ते में व्हिस्की की तलब पूरी हो जाने का अन्देशा था।
उसने एक-एक करके दो पैग पिए।
व्हिस्की ने शरीर में उथल-पुथल मचाई किन्तु इससे अधिक वो पी नहीं सकती थी।
उसकी जेब में नोट नहीं थे।
जबकि भीतर पहुंच चुकी व्हिस्की 'और...और' की मांग कर रही थी।
निरन्तर!
वो कसमसाई।
तभी उसने पूरे हॉल में दृष्टि दौड़ाई।
किसी से मदद मांगना—गिड़गिड़ाने जैसी आदतों से उसे सख्त चिढ़ थी।
हां किसी को बेवकूफ बनाने में उसे कोई हिचक नहीं थी।
किन्तु उसे सबके सब अपने-अपने में मशगूल नजर आए।
तभी सहसा फ्लोमिना ग्लोरी ग्लोरी चौंकी।
उसे एक टेबल पर एक युवक बैठा नजर आया।
वो जॉनी था।
जॉनी जॉनसन...! उसका मित्र......!
उसी की तरह हालातों का मारा किन्तु दिल गुर्दे वाला आदमी।
अब तक जितने भी फ्रेंड उसने बनाए थे—उन सब में जॉनी का स्थान सर्वोपरि था। किन्तु अजीब संयोग था कि जॉनी को भी हालातों ने ही अपराधी बनाया था और अपराधी जीवन जीते जीते वो भी दौलत को अपनी कमजोरी बना बैठा था।
वो आंखों में चमक लिए जॉनी जॉनसन की ओर बढ़ती चली गई।
जॉनी जॉनसन उसकी आमद से अन्जान ही था।
वो टेबल पर पहुंची।
“हैलो जॉन...!” उसने अपना हाथ जॉनी की ओर बढ़ाया।
जॉनी जॉनसन चौंक पड़ा।
उसकी दृष्टि ग्लोरी पर पड़ी।
फ्लोमिना ग्लोरी ग्लोरी उसे ही देख रही थी।
अपलक...!
“ग...ग्लोरी तुम...!” वो हौले-से उछलते हुए बोला था—“यहां...?”
“यस जॉन...! कैसे हो?”
“फाइन...!” दिलेरी से बोला था—“आओ बैठो! बाई गॉड...! इस अन्जान शहर में भी मुझे मेरा चाहने वाला कोई मिल जाएगा—मैं सोच भी नहीं सकता था।”
“जॉन...!”
“कैसी हो?”
“फाइन!” ग्लोरी कसमसाई थी।
“वो तो मैं देख ही रहा हूं।” जॉन मुस्कुराया था—“तुम...पहले से कुछ अधिक ही खूबसूरत हो गई हो।”
“यू नॉटी...! मिलते ही टटोलने में लग गये?”
“तुम चीज ही ऐसी हो ग्लोरी...! तुम मेरे उन दोस्तों में से हो जिन्हें मैं सर्वाधिक पसन्द करता हूं।”
“जॉन...!”
“तुम्हारी नजरों में मेरा स्थान क्या है, ये तुम ही जानो।”
“जीवन में कुछ सम्बन्ध—अन्तरंग सम्बन्ध ऐसे होते हैं जॉन जिनके सम्बन्ध में कुछ कहना उचित नहीं होता। बल्कि कहने के स्थान पर करने की जरूरत होती है।”
“रियली...?”
“रियली! यकीन न हो तो आजमाकर देख लो। जान देने में भी हिचक न होगी।”
“मैं जानता हूं।” जॉन अपना घुंघराले बालों युक्त सिर हिलाते हुए बोला था—“पुराने लोगों पर यकीन आंख मूंदकर इसलिए किया जाता है कि उन्हें आजमाने की जरूरत नहीं होती।”
“जॉन...!”
“कम एण्ड एन्जॉय...!” उसने फौरन व्हिस्की के आर्डर के साथ-साथ मीट चिकन का आर्डर दिया।
ग्लोरी ने राहत की सांस ली।
इस मिलन से दोनों को अजीब-सी प्रसन्नता का अनुभव हुआ था।
¶¶
“लूसी डार्लिंग...!”
“यस!”
“मेरे कमरे में पहुंचो।”
पचास-साठ के घेरे में पहुंच चुके मारग्रेट लूसी के बॉस जॉर्ज सैमसन ने कहा था।
मारग्रेट लूसी ने उसे किन्चित् विस्मय से देखा।
बॉस रुका नहीं था और अपनी गर्वभरी चाल से अपने लिविंग रूम की ओर बढ़ता चला गया था।
लूसी ने बुरा-सा मुंह बनाया।
“आज...!” लूसी बड़बड़ाई थी—“बुड्ढा दिन में ही सठिया गया क्या?”
वो उठी और भीतर पहुंची।
आहिस्ता-आहिस्ता कदम उठाती हुई।
वो प्रतीक्षारत् था।
उसकी उंगली में सिंगार फंसा था—किन्तु उसे अभी सुलगाया नहीं गया था।
लूसी जानती थी।
वो दिन में दो सिगार से अधिक नहीं पीता था—तथा क्वालिटी भी साधारण हुआ करती थी।
किन्तु वो उंगलियों में सिगार जरूर फंसाए रखता था।
इसका कारण था।
उसका कहना था कि सिगार उंगलियों में फंसा होने से सिगार की निकटता उसकी तलब पूरा करती रहती है।
इसलिए जब निकोटीन के बगैर उसे चक्कर से आने लगते थे तभी वो सिगार जलाता था।
मारग्रेट लूसी ने चुपचाप अपनी सीट सम्भाल ली।
“वहां नहीं...!” बोला था जॉर्ज सैम्पसन—“यहां मेरे बगल में बैठो।”
लूसी ने उसे घूरकर देखा।
वो हंस पड़ा।
लूसी उठी और उसके बगल में जा बैठी।
“कैसी हो...?” उसने उसकी जांघ पर हाथ रखा था।
“हालचाल पूछने के लिए जांघ पर हाथ रखना जरूरी हुआ करता है?”
“हां!” वो बेशर्मी से हंसा था—“इससे निकटता का बोध होता है। ये अहसास कि तुम सेक्रेटरी ही नहीं और कुछ भी हो—मन को गुदगुदा जाता है।”
“बॉस! आज बात क्या है?”
“बताऊं?”
”......!”
लूसी खामोश रही।
वो जानती थी कि वो स्वयं ही बताने के लिए मरा जा रहा होगा।
“हिल्टन रोड वाले प्लांट ने...!” बोला था वो—” मुझे थोड़ा-सा फायदा पहुंचाया है।”
“थोड़ा फायदा?”
“पचास हजार पाउण्ड!”
“ये थोड़ा-सा फायदा है बॉस?”
“लूसी...! आने वाला धन कितना ही अधिक क्यों न हो थोड़ा समझना चाहिए और खर्च करने वाला धन कितना ही थोड़ा क्यों न हो अधिक समझना चाहिए। यही अमीरी का रहस्य है।”
“बॉस...!”
“मसलन तुम जिस ब्राण्ड का परफ्यूम इस्तेमाल करती हो वो इम्पोर्टेड है। तुम एक शीशी पर जितना खर्च करती हो उससे तीन शीशियां आएंगी। कम-से-कम सौ पाउण्ड की इण्डियन करेन्सी कितनी हुई मालूम है तुम्हें?”
“बॉस...! आप...आप हैं...मैं, मैं हूं। किस पर कितना खर्च करना है ये निर्णय इन्सान का अपना व्यक्तिगत होता है।”
“तुम्हारा निर्णय व्यक्तिगत नहीं लूसी...! हनी...! तुम मेरी मुलाजिम तो हो ही—मेरे निकट भी हो।”
“सीधे शब्दों में इस पर जो खर्च आता है वो ज्यादा होता है।”
“राइट! तुम्हारे हालातों को देखते हुए ये सलाह मैंने तुम्हें...!”
“आप अपनी सलाह अपने पास रखिए बॉस...! मैं बहुत परेशान हूं।”
“कारण...?”
“मां के इलाज के लिए रकम चाहिए।”
“वही बात...!” हंसा था जॉर्ज सैमसन—“फिजूलखर्ची के कारण परेशानी।”
“बॉस! क्या मुझे ये कहना चाहिए कि मुझे रकम नहीं चाहिए?”
“ओह नो...! ऐसा मत कहना।”
“बॉस...!”
“कितनी रकम चाहिए?”
“तीन हजार पाउण्ड!” लूसी ने यूं कहा था जैसे तीन हजार पाउण्ड का नाम सुनकर वो बेहोश हो जाएगा।
किन्तु वैसा कुछ नहीं हुआ।
“रकम अकाउन्ट में से निकाल लो ना...! बेयरर चैक पर रकम भर लो—साइन पहले ही हुए होंगे।”
लूसी ने हैरानी से जॉन की ओर देखा।
“तुम्हारी मां की हालत में सुधार नहीं हो रहा क्या?”
“हो रहा है—किन्तु इलाज के लिए...!”
“राइट!”
“मैं काफी रकम पहले ही एडवांस ले चुकी हूं बॉस...! मैं...!”
“तुममें एक ही कमी है लूसी...! तुम बेवजह की बातों को दिमाग में अधिक पनाह देती हो।”
“बॉस...!”
“मां का इलाज तुम्हारा दायित्व है। तुम उस दायित्व का निर्वाह कर रही हो—बस...इससे अधिक नहीं सोचते।”
“राइट बॉस...! यू आर ग्रेट...!”
“तुमने—आज तक के जीवन के इतिहात में तुम पहली हस्ती हो जिसने ये शब्द मेरे से कहे हैं। इसलिए मुझे ऐसा लग रहा है जैसे...!”
“ज...जैसे...?”
“किसी ने मुझे गाली दी हो।”
“बॉस!” मारग्रेट लूसी ने उसे हैरानी से देखा।
जॉर्ज सैम्पसन ने उसकी ओर देखा भी नहीं।
वो अपने हाथ को आगे और आगे सरकाए जा रहा था।
स्पष्ट था कि उसकी उत्तेजना अपने परचम लहराती जा रही थी।
“बॉस...! क्या आज आपका मूड ठीक नहीं?”
“है—पूरी तरह ठीक है।”
“ओह...! इसलिए जवानी के दिनों की याद ताजा कर रहे हैं?”
“ऐसा कुछ नहीं है—निश्चिन्त रहो।” हंसा था सैम्पसन—“आओ चलते हैं?”
“क...कहां...?”
“लिविंग रूम में।”
“बॉस दिन...में...!”
“हम सब इन्सान हैं। हमें दिन हो या रात—आनन्द उठाने की पूरी स्वतन्त्रता है।”
लूसी उठ गई।
बॉस की हरकतों ने उसकी आंखों में नशा-सा भर दिया था।
तदुपरान्त!
दोनों लिविंग रूम की ओर बढ़ते चले गये।
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