अभिमन्यु का चक्रव्यूह
अभिमन्यु पण्डित
एशिया का सबसे बड़ा स्लम एरिया।
धारावी!
मुम्बई के टॉप हिस्ट्रीशीटर, टपोरी, मवालियों, जेबकतरों, उठाईगिरों, और भाई लोगों की पनाहगार धारावी।
कई किलोमीटर की पेचदार गलियों, झोपड़पट्टियों, चालों से अटा हुआ धारावी।
ऐसा कौन-सा दो नम्बर का धन्धा है जो धारावी में नहीं होता।
जुआ, शराब, सट्टा, मटका, तस्करी, चोरबाजारी वगैरह–वगैरह।
काले रंग की पिजारों ने बान्द्रा के एसoवीo हाईवे से टर्न लिया और माहिम की ओर सीधी जाने की बजाय बान्द्रा पार करते ही फ्लाईओवर का रूख किया। एक लम्बा गोल चक्कर काटने के बाद पिजारो सायन जाने वाले हाइवे पर नमूदार हो गई।
खुली पिजारो को चेन्नई का छटा हुआ बदमाश पिण्टू ड्राइव कर रहा था। यह तवे की माफिक काला कलूटा पिण्टू बाटली वाला पिजारो में अकेला नहीं था। पान की पीक से सने लाल-पीले दांतों में बीड़ी का कोना दबा हुआ था। बीड़ी तो जाने कब की बुझ गई थी लेकिन पिन्टू अब भी होठों के दरमियान उसे दायें-बायें घुमा रहा था। उसके चेहरे पर फ्रेन्चकट दाढ़ी थी। आंखों पर काले चश्मे का ढक्कन फिट था। सिर के बालों से जैसे उसका जन्मजात बराहरास्त कोई ताल्लुक ही नहीं था। एकदम ग्रहण लगे हुए पूरे काले चांद जैसा सिर। उसकी भवें खास जगह घेरे हुए थीं जैसे चीन के किसी पौराणिक जादूगर ने उसे ईनाम में बख्शी हों। बायें कान में एक सोने की बाली थी। माथे पर चन्दन का त्रिपुण्ड था।
पिण्टू के बराबर वाली पैसेंजर सीट पर थापा विराजमान था, वह पिण्टू के ठीक विपरीत एकदम गोरा चिट्टा था। दोनों ने मिलकर ब्लैक एण्ड व्हाइट का कम्बीनेशन बनाया हुआ था। दोनों का कद दरमियाना था। अलबत्ता पिण्टू मोटाई में थापा से डेढ़ गुना था। जबकि थापा का जिस्म एकदम कसरती और ठुका हुआ था।
पिजारो की पिछली सीट पर जो दो बन्दे बैठे हुए थे, उनका उल्लेख जरूरी नहीं है वह दोनों थापा के चमचे थे। शतरंज की बिसात पर प्यादे भर थे।
“गोटिया!” अचानक थापा के मुंह से गुर्राहट जैसी आवाज निकली।
पिछली सीट पर बैठा गोटिया चौंककर सीधा हो गया।
“हां भाई....बोलो।”
“जोगेन्दर कू फोन लगाने का—उसकू बोल हम लोग पांच मिनट में पहुंच रेले।”
पिछली सीट पर बैठे पतले-दुबले सींकची पहलवान गोटिया ने जेब से मोबाईल फोन निकाला और उस पर नम्बर पंच किया। जल्दी ही दूसरी तरफ से फोन काल रिसीव कर ली गई।
“जोगेन्दर! मैं गोटिया, अपुन लोग थापा भाई को साथ लेके आरे ले। पांच मिनट में पहुंचने का बरोबर।”
दूसरी तरफ से कुछ कहा गया। गोटिया ने फोन बन्द कर दिया।
“जोगेन्दर हमारा इन्तजार कर रेला भाई।” गोटिया ने बताया।
चन्द ही लम्हों में पिजारो धारावी के स्लम एरिया में दाखिल हो गई।
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जोगेन्दर बेताबी से थापा का इन्तजार कर रहा था। इन दिनों धारावी में थापा की बादशाहत कायम थी, पूरी मुम्बई में ड्रग्स सप्लाई का धन्धा धारावी से चल रहा था और इस धन्धे को थापा कन्ट्रोल कर रहा था। थापा खुद तो धारावी में नहीं रहता था। वहां के हैडक्वार्टर का कमाण्डर जोगेन्दर था।
पिजारो को गैराज में खड़ा करके थापा पिण्टू को लेकर सीधा दो माले की इमारत में दाखिल होकर इमारत के बेसमेन्ट में पहुंच गया।
थापा और पिण्टू दो कुर्सियों पर जा बैठे। जोगेन्दर सामने खड़ा हो गया। थापा के साथ आये दोनों चमचे बाहर ऊपर ही रुक गये।
“ये पिण्टू बाटलीवाला है।” थापा ने पिण्टू का परिचय कराया— “चेन्नई मे हमारा धन्धा येइच देखेला। आगे से पिण्टू तेरे से सीधा माल उठाएगा। सारा डील इधर इच होगा। अपुन तू क्या बोला था। फोन पे....कि इधर कुछ लफड़ा होयला। उस वास्ते मैं अभी का अभी इधर चला आया। बोल...क्या लफड़ा है?”
“भाई! अपुन को ठीक से नहीं पता। अपुन को तो एक फोन आइला। फोन अपुन के धन्धे के किसी बाप का था। फोन पर बोला कि उसको सब पता है कि अपुन का माल कहां कहां सप्लाई होयेला और माल गोल्डन ट्राईएंगिल से आता है। अब अपुन के धन्धे का राज कोई नहीं जानता उसकू मालूम.......मैने पूछा—ये स्याने—स्यानपत्त्ति मत दिखा। मतलब की बात कर।”जोगेन्दर ने आगे कहना जारी किया— “वो बोला कि अपने बास थापा को बोल—हमें एक मिटींग करेगा जिसमें अक्खा धारावी के सारे गुण्डे मवाली, टपोरी, डॉन.....भाई लोग शामिल होयेगा। थापा की हाजरी मीटिंग में मांगता और मेरे को भी आने का....। मैं बोला—साले तेरे को मैं खल्लास कर देगा...तू अपना नाम पता बता।”
जोगेन्दर यूं चुप हो गया। जैसे कोई जादूगर करतब दिखाने के बाद दाद का ख्वाइशमन्द हो—लेकिन थापा ने कोई प्रतिक्रिया जाहिर नहीं की। अलबत्ता पिण्टू ने जेब से बीड़ी का बण्डल निकालकर एक बीड़ी सुलगा ली थी और नथुनों से धुंआ छोड़ने में मशगूल हो गया था।
“तू चुप क्यों हो गया ?” थापा ने जोगेन्दर को जैसे सोते से जगाया।
जोगेन्दर ने किसी उल्लू की तरह अपनी गोल-गोल आंखें घुमाई।
उसकी आंखें उल्लुओं जैसी ही थीं। चेहरा एकदम क्लीन शेव्ड था। वह इस वक्त काले रंग का पठानी सूट पहने हुए था और किसी आतंकवादी संगठन का मिलीटेन्ट लग रहा था। वह एक लम्बा-तगड़ा भारी भरकम डील डाल का आदमी था—धारावी में उसे पहलवान जी के नाम से जाना जाता था।
“अपुन ने इधर के कुछ भाई लोगों को फोन किया—यह जानने के लिये ऐसी कोई मीटिंग हो रैली या नेई हो रैली। अपुन को पता चला कि सभी भाई लोगों को मिटिंग में बुलाया गया।”
“और अगर कोई मिटिंग में नहीं गया तो?” इस बार पिण्टू ने बीड़ी का लम्बा सुट्टा मारकर दिलचस्पी दिखाई।
थापा ने कनखियों से पिण्टू को देखा। पिण्टू बीड़ी को मुंह में चला रहा था।
“उसके धन्धे की सारी इन्फॉर्मेशन पुलिस को दे दी जायेगी।” जोगेन्दर ने बमफोड़ देने वाले अन्दाज में धमाका किया— “उसके धन्धे के भाई लोगों कू मैय सबूत के पकड़वा दिया जायेगा।”
“मिटिंग का वक्त और वेन्यू?” यह सवाल थापा ने किया।
“धारावी के गणपति हॉल में होयेगी। कल पांच बजे।” जोगेन्दर ने जवाब दिया।
“तू क्या सोचेला पिण्टू?” थापा ने पिण्टू की तरफ देखते हुए संतुलित स्वर में कहा— “अपुन को आज ही फैसला लेने का। ऐ बीडू! अब तू जा.....अपुन देख लेगा। तेरे कू कोई फोन आये तो बोल देना—अपुन लोग मीटिंग में आयेगा।”
जोगेन्दर के चेहरे पर आश्चर्य के भाव उभर आये।
वह कुछ बोले बिना शिकस्तजदा योद्धा की तरह तहखाने से ऊपर जाने की सीढ़ियां तय करने लगा।
“आई आई यो जी! मेरे को इस मामले से दूर ही रखो थापा जी।” सफेद लुंगी और सफेद कुर्ते में काला सफेद नजर आता पिण्टू बीड़ी थूकता हुआ बोला—“हम इधर माल देखने और धन्घा करने आयाजी। मेरे को क्यों घसीटते हो भाई?”
“अपुन तेरे से मशविरा कर रेला—अगर तू अपुन की जगह होता तो क्या करता, ये बोल। नेई बोलना तो मत बोल—अपुन खुद ही निपट लेंगा।”
कुछ सेकिंड सोचने के बाद पिण्टू ने कहा— “मीटिंग में जाने का। अरे थापा भाई! पहले ये तो देखो मीटिंग में होता क्या है?”
थापा ने कोई जवाब नहीं दिया—क्योंकि वह खुद भी यह फैसला ले चुका था।
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