अब क्या होगा
राकेश पाठक
“ये क्या है?”
“जापानी रिवॉल्वर।” छोटी-सी खूबसूरत रिवॉल्वर को सीता की तरफ बढ़ाते हुए राज ने कहा—“इसके चेम्बर में पूरी छह गोलियां भरी हुई हैं...रख लो।”
“ल— लेकिन...।” सीता के खूबसूरत चेहरे पर कौतूहल के भाव उजागर हुए—“मैं क्या करूं इसका? मुझे क्यों दे रहे हैं?”
“तुम्हारी सेफ्टी के लिए। मैं शाम तक के लिए जंगलों में जा रहा हूं। इस बीच तुम्हें इस निर्जन स्थान में सुनसान-सी कोठी में अकेली रहना होगा। कोई जानवर वगैरा भी आ सकता है। ना भी आये इसके होने पर तुम स्वयं को अकेला महसूस नहीं करोगी।”
सीता ने रिवॉल्वर को उलट-पलटकर देखते हुए कहा—“ऐसा नहीं हो सकता कि...मैं भी आपके साथ ही चलूं...?”
“सॉरी डार्लिंग! जंगल का मामला है। कोई खतरनाक जानवर भी मिल सकता है इसलिए मैं राइफल साथ लिए जा रहा हूं।”
सीता मुंह फुलाकर बेड के दूसरी तरफ पैर लटकाकर बैठ गई। उसकी नाराजगी पर राज मुस्कुरा उठा। वह बेड का चक्कर लेते हुए सीता के सामने जूते चटकाते हुए पहुंचा।
“नाराज हो गई डार्लिंग।” सीता को खड़ा कर सीने से लगाकर वह मधुर स्वर में बोला—“हां होना भी चाहिए। हमारी शादी को हुए सिर्फ सातवां दिन है आज और हम यहां पर हनीमून के मूड से आये थे। जबकि मैं तुम्हें अकेला छोड़कर जंगल देखने जा रहा हूं। एक अदद खूबसूरत पत्नी को प्यार किए बिना...।”
कहकर राज ने सीता को बेड पर गिरा दिया और पागल हो उसके गुलाबी वो रसीले अधर चूमने लगा।
“हटो छोड़ो...क्या करते हो?” सीता ने कृत्रिम क्रोध के साथ उसे परे धकेला और फिर बेड से उतरते मुस्कुराकर बोली—“सारी रात परेशान किया। अब तो मेरा पीछा छोड़ दो। मैं सोना चाहती हूं।”
“ओ०के० डार्लिंग। जल्दी आने की कोशिश करूंगा। भगवान से प्रार्थना करो कि आज ही हमारे जंगल, ठेके पर चढ़ जाएं ताकि फिर मैं तुम्हें अकेले छोड़कर न जा पाऊं और हां रिवॉल्वर को अपने से अलग मत करना।”
सीता ने छोटी-सी रिवॉल्वर ब्लाउज में छुपा ली।
“देखूं तो...।” राज सीता के पास पहुंचकर शरारती स्वर में बोला—“कहां छुपाई है?”
“खबरदार जो...जो हाथ लगाया।” सीता ने कहकर राज को धकेला और कमरे से बाहर निकालकर दरवाजा बन्द कर लिया।
“सीता की बच्ची...।” बाहर से राज की आवाज आई—“शाम को लौटकर तुम्हें मजा चखाऊंगा...समझी?”
सीता सिर्फ मुस्कुरा दी।
¶¶
राज और सीता सवेरे ही जीप द्वारा जंगल में बनी विशाल कोठी पर आये थे। कोठी राज के परदादा ने बनवाई थी। कोठी में सभी सुविधाएं उपलब्ध थीं, सिवाय लाइट के।
दोनों को कोठी के सभी कमरे साफ और सजे हुए मिले। कोठी पर एक नौकर बारह महीने से रहता है। नौकर का नाम था रघु। एक इकहरे जिस्म का स्वामी रघु की उम्र का अन्दाजा उसके चेहरे पर सिमट आई असंख्य झुर्रियों व सफेद बालों से ही लगाया जा सकता है। वह चालीस और पचास के लपेटे में था! रघु ने ही दोनों के लिए दोपहर का खाना बनाया था।
जब वह खाली ट्रे लेकर डायनिंग रूम में आया था तो सीता को देखकर बुरी तरह चौंक पड़ा था। इतना की, उसके हाथों से ट्रे छूटते-छूटते बची थी।
रघु की उक्त हालत देखकर राज और सीता भी चौंक पड़े थे।
“क्या बात है रघु...तुम सीता को देखकर इस कदर चौंके क्यों?” राज ने कौतूहलभरा सवाल किया था।
“नहीं तो मालिक।” हड़बड़ाते हुए रघु ने टेबल पर खाना सजाते हुए कहा था—“ऐ...ऐसी कोई बात नहीं थी। वह क्या है कि...कल मेरी बेटी शानो की शादी है न...।”
“हां-हां, तुमने लैटर डालकर सूचित किया था।”
“बस मालिक, मालकिन को दुल्हन के भेष में देखकर शानो की याद हो आई थी।”
“अच्छा मैं समझा था कि तुम सीता की असीम सुंदरता से चौंक पड़े थे।” राज का स्वर शरारती था।
रघु ही-ही...करके हंस पड़ा था।
लेकिन सीता को रघु के प्रत्युत्तर से सन्तुष्टि न हुई थी। उसने महसूस किया कि खाना सर्व करते वक्त रघु नर्वस-सा होकर उससे निगाहें चुराए हुए था।
“मालिक।” लंच के बाद रघु ने राज से कहा—“आप यहां पर मालकिन के साथ पहली बार आये हैं और मुझे बेटी की शादी की वजह से जाना पड़ रहा है। मुझे ये बात खल रही है।”
“अरे तुम हमारी कोई चिन्ता मत करो। तुम जाओ और बेटी की डोली विदा करके राजी-खुशी लौटो। हम अभी यहीं पर रहेंगे। लौटने पर जी भरके सेवा करना...अपनी मालकिन की।”
और रघु चला गया। लेकिन सीता को रघु का वह चौंकना कचोटता रहा।
राज के जाने पर वह फिल्मी पत्रिका लेकर बेड पर पहुंच गई लेकिन उसके मस्तिष्क में रघु का चौखटा चकराता रहा।
¶¶
सीता को रघु का करैक्टर रहस्यमयी सा प्रतीत हो रहा था। रघु उसे देखते ही बुरी तरह से क्यों चौंका? यही सवाल उसे परेशान करता रहा। उसने पत्रिका रखी और मूड सही करने को कोठी की छत पर जाकर टहलने लगी।
छत लम्बी-चौड़ी और बिना रेलिंग वाली थी। वह छत के चारों तरफ का अवलोकन करने के लिए चारों तरफ चहल-कदमी करने लगी। कोठी के दाएं लम्बे-चौड़े खेत थे और दो किलोमीटर के करीब दूरी पर एक छोटा सा गांव नजर आ रहा था। कोठी के ठीक पीछे लम्बा-चौड़ा तालाब था जिसमें काई जमी हुई थी और बाएं तरफ सपाट मैदान था जिसमें ईंटें व पत्थर बिखरे पड़े थे। कोठी की दीवार से पत्थरों का ऊंचा ढेर सटा हुआ था।
पन्द्रह मिनट टहलने के बाद वह नीचे उतर आई। अकेलेपन की बोरियत दूर करने के लिए कॉफी बनाना चाहती थी। रघु तो था नहीं। स्वयं उसे ही बनानी थी। अपने कमरे से किचन की चाबी उठाई और बराजदे को पार करके किचन तक पहुंची।
ऊपर छत पर जाने का जीना बराजदे से ही बना था।
उसने किचन के दरवाजे पर लगे ताले को खोला। दरवाजा खोलकर भीतर पहुंची। वह किचन पहली बार देख रही थी। सारा सामान स्लैब पर करीने से सजा था। किचन की ओर बराबर वाले कमरे के बीच की दीवार में एक खिड़की बनी हुई थी।
फूऽऽऽ.........भयानक चित्कार।
वह बुरी तरह चौंककर उछल पड़ी। स्लैब से नीचे पटरी पर भयानक कोबरा फन फैलाए बैठा था। वह चमकती हुई दो गोल-गोल आंखों से उसे घूर रहा था। उसके मुंह से क्रोध का अहसास कराती हुई भयंकर फुंफकारें निकल रही थीं।
वह मारे खौफ के जड़-सी होकर ज्यों की त्यों मूर्ति समान खड़ी रह गई। उसके चेहरे पर किसी भी तरह का भाव विद्यमान नहीं था। वह स्थिर आंखों से लहराते कोबरा को एकटक देखे जा रही थी।
फूऽऽ.........अचानक कोबरा ने लहराकर भयंकर फुंकार मारते हुए पटरी पर फन पटका। वह चौंककर दो कदम पीछे हट गई। इस क्रिया के संग वह जोर से चीख उठी थी।
उसे होश-सा आया...मस्तिष्क सचेत हुआ। यकायक ही उसे याद हो आया कि उसके ब्लाउज में रिवॉल्वर है। छोटा-सा जापानी रिवॉल्वर।
उसने कोबरा से आंखें मिलाते हुए ब्लाउज में हाथ डालकर रिवॉल्वर निकाली। अपनी जिंदगी में पहली बार वह किसी रिवॉल्वर का ट्रिगर दबा रही थी
उसकी उंगली कांप उठी। चेहरे पर पसीना आया।
उसने मन को कड़ा किया। दांतों को परस्पर मिलाकर उसने आंखें बन्द कीं और ट्रिगर दबा दिया—धांय।
¶¶
धांय...का शोर उसके कानों के परदे तक हिला गया। सुन्न पड़ गए दोनों कान। मारे खौफ के उसने आंखें बन्द रखीं। वह सोच रही थी कि उसका निशाना चूक गया हो तो...? तो नाग मारे क्रोध के उसकी तरफ ही रेंगता हुआ आ रहा होगा।
उसे यूं महसूस हो रहा था कि उसके पैर में कोबरा के नुकीले दांत अब गड़े...अब गाड़े।
वह दस मिनट तक यूं ही आंखें मूंदे और सांसें रोके खड़ी रही लेकिन कोबरा की तरफ से प्रत्युत्तर में कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। उसने भगवान का नाम बुदबुदाते हुए आंखें खोलीं।
पटरी पर कोबरा निश्चेष्ट बिखरा पड़ा था। उसके फन के चिथड़े उड़ गए थे। पटरी और फर्श पर लहू के चिथड़े बिखरे हुए थे। उसने सीने पर हाथ रखकर गहरी सांस ली और मन-ही-मन भगवान को धन्यवाद दिया।
¶¶
admin –
Aliquam fringilla euismod risus ac bibendum. Sed sit amet sem varius ante feugiat lacinia. Nunc ipsum nulla, vulputate ut venenatis vitae, malesuada ut mi. Quisque iaculis, dui congue placerat pretium, augue erat accumsan lacus