भाग–3
आत्मा की चीख
परशुराम शर्मा
सइकोमेंशन के गुप्त हॉल में एकदम मौत का सन्नाटा छाया था। अगर सुई भी गिरे तो उसकी भी आवाज साफ सुनाई दे। इस हॉल में केवल तीन इन्सान बुत के समान बैठे थे—अन्धेरे में इनके जिस्म धुंधले साये के रूप में नजर आ रहे थे।
इस विशेष हॉल में सीक्रेट सर्विस की खुफिया मीटिंग हुआ करती थी, मगर आज कोई मीटिंग नहीं थी। सीक्रेट सर्विस का कोई एजेन्ट इसमें नहीं था।
हॉल की दीवारों पर विद्युत करेंट जारी था ताकि दीवार को हवा भी न छू सके। ऑटोमैटिक द्वार बन्द थे। अन्दर से उन पर कोई पहरा न था।
कुछ पल बाद ही प्रोजेक्टर की खर्र–खर्र सुनाई दी और माइक्रो फिल्म के दृश्य सामने टंगी स्क्रीन पर आने लगे। स्क्रीन चमक उठी।
प्रोजेक्टर स्टार्ट किया था फाइव–टू ने।
बाकी दो इन्सान फ्रेंटाशिया और राजेश के अलावा कोई नहीं थे। दोनों की निगाहें बराबर स्क्रीन पर जमी थीं। स्क्रीन पर सपाट चटियल जमीन नजर आ रही थी। उस जमीन पर छोटे कद के काले आदिवासी जश्न मना रहे थे। उनमें कुछ औरतें भी शामिल थीं। यह औरतें उनसे भिन्न थीं। सुन्दर नाक–नक्श और हुस्न लिये आफत की पुड़िया-सी लगती थीं।
कुछ देर तक जश्न चलता रहा।
आदिवासियों का यह नंगा नृत्य था।
कुछ देर बाद वह सब खुदाई पर जुट गये। भिन्न–भिन्न शक्ल की औरतें उनसे काम ले रही थीं। उस दृश्य को देखते ही गुलामों की प्रथा याद आती थी। इन औरतों के हाथों में हंटर थे—
कभी–कभी गुलामों की पीठ पर हंटर भी बरस जाते।
तभी एक घुड़सवार प्रकट हुआ।
प्रोजेक्टर से फेंका जाने वाला दृश्य एकदम रुक गया।
“इसे पहचान रहे हो राजेश?”
“पहली बार धर्म–कर्म के महात्मा का यह रुख देखा है—यह तो पादरी है जो वीरानगढ़ में उपदेश देता रहता था।”
“हां, इसका नाम स्टेनफास्ट है—यह सूरत हमारे लिये बहुत महत्वपूर्ण है।”
इशारा पाते ही फाइव–टू ने पुनः प्रोजेक्टर स्टार्ट कर दिया। स्टेनफास्ट घोड़े सहित एक डेरे में घूम गया। उसके सामने जो भी पड़ता वही घुटने टेक कर अभिवादन करता। दर्रे में भी कार्य हो रहा था।
सुरंग बन रही थी।
नदी पार करके स्टेनफास्ट एक घाटी में उतर गया। चारों तरफ सख्त तनी हुई खतरनाक पहाड़ी टॉवर के समान दोनों ओर मुंह उठाये खड़ी थी। मिल–जुल कर यह टॉवर दो ठोस दीवार बन गये थे।
बहुत छोटे पेड़-पौधे इनमें नजर आ रहे थे।
देखने में प्रकृति का आश्चर्यजनक नमूना नजर आ रहा था। जान पड़ता जैसे दुनिया बनाने वाले ने पहाड़ियों को टॉवर जैसा आकार देखकर बनाया है। बीच में वह घाटी थी।
और ठीक एक शानदार झील के पास उसी प्रकार का टॉवर बनाया जा रहा था। रस्से–सीढ़ियां, पुल सब-कुछ किसी विशाल योजना का कार्यरूप नजर आ रहा था।
कभी–कभी घुड़सवार स्टेनफास्ट को वह नजर आ जाता जो जगह–जगह निरीक्षण करता फिर रहा था। आने–जाने के रास्ते बन रहे थे। सब कुछ माइक्रो फिल्म दर्शा रही थी।
यकीनन किसी ने जान पर खेल वह फिल्म तैयार की थी।
प्रश्न उठता था कि यह स्थान है कहां और प्रोफेसर अमन ने इस प्रकार की माइक्रो फिल्म अपनी जांघ में छिपाकर क्यों रखी थी?
माइक्रो फिल्म के दृश्य खत्म हो गये।
“रोशनी जला दो प्यारे पांच दो—।” राजेश ने कहा—“और इस माइक्रो फिल्म को एक नक्शे के रूप में तैयार करवा दो। बस फिर तुम्हारा काम खत्म। हम भीड़–भाड़ इस मामले में पसन्द नहीं करेंगे। जिनका बुलावा है उन्हें ही जाना है। प्यारे जरूरत पड़ी तो तुम्हारे रुतबे का पूरा–पूरा फायदा भी उठायेंगे।”
“मेरी समझ में नहीं आता सर, आखिर यह जगह है कहां—“अगर आपको इस स्थान तक पहुंचना है तो इसके लिये पूरी खोज जरूरी है।”
“खोज भी हो गई और समझ लो पहुंच भी गये। तुम बस दिग्राज के दर्रें की पूरी फाइल, पूरे नक्शे और सिंघराज द्वीप के रास्ते के पूरे कागजात हमारी कोठी पर भिजवा देना–आज रात हम अध्ययन में गुजारेंगे।”
“क्या यह दिग्राज के दर्रे का कोई हिस्सा है?” फाइव–टू ने चौंककर पूछा।
“जो तुम्हारे सामने है वह मेरे भी सामने है। मैंने तुमसे यह कब कहा कि यह दृश्य दिग्राज के दर्रे के हैं।“
“क्षमा करना चीफ, आपकी बातों का अर्थ मैं इसी प्रकार लगाया करता हूं।”
“ईश्वर सदा तुम्हें सद्बुद्धि दे।”
“आपके पास सब वस्तुयें पहुंच जायेंगी।”
“थैंक्यू प्यारे पांच दो, तुम अपना काम देखो और हम चलें। बाकी हिदायत तो तुम्हें मिल गई होंगी। बेफिक्र रहो, जरूरत तुम्हारी भी पड़ेगी मगर पहले मैं जान सकूं कि आखिर उल्लूओं का असली अड्डा कहां है? हमारे रवाना होते ही तुम्हारा पहला काम होगा—वीरानगढ़ के प्रेतमहल को फिर से आबाद करना, पुलिस की मदद से कुछ सुरंगें उड़ाना। नम्बर एक सुरंग वह जो संग्राम की हवेली से प्रेतमहल तक पहुंचती है, नम्बर दो मरघट तक खुलती है। नम्बर तीन उस मैदान से जो सुरंग मोंगा घाटी की ओर बनाई गई है। उसके बाद वह भाग पूरी तरह चिनवा देना। उसके ऊपर ठीक वैसा ही झंडा तुम लहराओ जैसे भारत आजाद होते ही तिरंगा फहराया था। वीरानगढ़ की आत्मायें हमारे कुछ जांबाज जासूसों को लेकर भाग निकली हैं। स्टेनफास्ट का जादू अब नहीं चलेगा। घर से बेघर हुये लोगों का जब तक भय नहीं जाता और ठीक से नहीं बस जाते। क्या तुम्हारे एजेन्ट शहर की स्थिति संभाल लेंगे, अफवाहों को जन्म देने वालों को धर पकड़ लेंगे? पागलों को आजाद न छोड़ा जायेगा।
एक खास बात।
पता नहीं मोंगा घाटी में ब्लाण्डी नाम का कुत्ता कहां भटक रहा है, उसे तलाश करना भी तुम्हारा काम है, जिन्दा या मुर्दा। इसके अलावा भी बर्फ की पहाड़ियों से कोई जीवित या मृत मिले तो उसे भी निकालना, बाद में संदेहप्रद स्थानों पर यानि कि जहां नक्शे में मैंने क्रॉस लगाया है, वहां बम्बार्टमैंट कर देना भी तुम्हारा काम है।
और कुछ पूछना चाहते हो तो पूछ सकते हो।”
“मैं जानता हूं सर जो कुछ मै पूछना चाहता हूं उसका जवाब आपके पास नहीं होगा।”
“ग्रेट इंसल्ट।”
“आप समझे नहीं।”
“मिस्टर पांच दो, दुनिया के किसी भी विषय पर तुम सवाल पूछ सकते हो, मैं यकीनन जवाब दूंगा। अगर न दूं तो तुम चीफ और मैं पांच दो। पूछो क्या पूछना चाहते हो, मगर जवाब का अर्थ तुम खुद अपने दिमाग से लगा लेना? जवाब में अगर मैं तुम्हें गाली भी दूं तो जिम्मेवार मैं नहीं तुम्हारा प्रश्न होगा।”
“जो चीज मैं जानना चाहता हूं उसे या तो आप जानते ही नहीं या बताना नहीं चाहते, और जिसे आप बताना नहीं चाहते, उसे मैं जान भी कैसे सकता हूं, दैट्स ऑल, सर मुझे कुछ नहीं पूछना है।”
“तो प्यारे, अब हमें जरा विदा करो। इस इमारत में आते ही अपनी तो जान सूखी रहती है। जिम्मेवारियों का पहाड़–सा सिर पर आ जाता है।”
उसके बाद।
करीब बीस मिनट बाद।
उस समय रात्री के साढ़े दस बज रहे थे, यूं सड़कों पर चहल–पहल थी, होटल और रेस्टोरेन्टों में हलचल थी। विद्युत का प्रकाश चमक–दमक के साथ इस नगरी को स्वर्ग बनाना चाहता था।
ऐसे ही वातावरण से उलट कर जब वह कोठी पर पहुंचे, तो वहां का नजारा कम विस्मयजनक नहीं था। राजेश ने ड्राइंग रूम में घुसते ही पलकें झपकाईं। सबसे पहले उसे भोलू नजर आया, जो एक हाथ में सीटी और दूसरे हाथ में जानीवाकर की बोतल पकड़े उछल रहा था।
ड्राइंगरूम आखाड़ा बना हुआ था।
मेकफ के कंधे पर जौहर सवार था।
काला बीग्रो फकत कच्छे–बनियान में था, उधर मेकफ जौहर को पटकने के लिये जोर लगा रहा था। मगर जौहर उसके कंधे पर गोंद की तरह चिपका था, जौहर के हाथ में ओल्ड स्मगलर की पूरी बोतल थी।
जब जौहर बोतल से कुछ बूंद गिराता तो मेकफ नादान पक्षी की तरह मुंह खोल लेता। हाथ उठाकर वह बोतल छीनने का प्रयास करता मगर बोतल हाथ नहीं आती, घूंट भर कर जौहर हाथ दूर कर लेता।
“ऐ कालिये, फाउल हो गया।” भोलू सीटी बजाकर बोला, “दस मिनट होने को हैं, तुम हार गया, एकदम अपन का नाक कटा दिया, आज से तुम्हारा शराब खाता बन्द।”
“तुम साला हमको कालिया बोलेगा।” मेकफ दहाड़ा—“ऐ माई–बाप, हम हार गया। हमको छोड़ो, हम इस साले का दांत अलग और जबाड़ा अलग करेगा। जौहर बाबा हमको छोड़ो।”
“आहा—।” भोलू ने अट्टहास लगाया। “क्यों बे हब्शी की औलाद, अब कहां गई सारी ताकत? जौहर बाबा इसके सिर पर तीन ताल बजाओ, यह फाऊल खेलकर तुम्हारी गर्दन पकड़ना चाहता है।”
“तुम चिन्ता न करो भोलू प्यारे, हम आज पूरी रात इसके सिर पर सवार रहेगा, फिर इसको सात बोतल पिलायेगा। इसने हमको पीने के मामले में भी चैलेंज दिया है।”
“हे....हे....हे....।” भोलू दांत निकाल कर हंसा।
आज मेकफ का मजाक उड़ाने का खूब मौका मिला था उसे।
मेकफ का पारा चढ़ गया। क्रोध के कारण वह अपनी कुश्ती भूल गया। यह भूल गया कि शर्त जौहर को जमीन पर पटकने की है। यह भूल गया कि इस शर्त को जीतने के बाद लगातार सात दिन तक रोज दस बोतल विदेशी शराब जौहर उसे देगा। यह भूल गया कि इस विचित्र कुश्ती का रैफरी भोलू है, जिसके पास आज रात की बोतलों का स्टाक जौहर ने जमा कर दिया है।
वह दोनों बांह फैलाकर रैफरी पर झपटा।
रैफरी भोलू ने सीटी बजाकर फाऊल का एलान किया मगर जल्दी ही उसकी समझ में आया कि मेकफ सारा फाऊल खेलकर उसे पकड़ने के चक्कर में है। निश्चित था कि मेकफ अगर उसे पकड़ लेता तो उसके हाथ–पांव जरूर टूट जाते।”
उसने तुरन्त सोचा।
ऐसे मौकों पर उनका बॉस राजेश किस प्रकार बन्दर की फुर्ती से छलांग लगा देता है। और इसी ख्याल में उसने जो कूद लगाई तो ठीक राजेश से टकराया, अभी तक वह नहीं जान पाया था कि ड्राइंगरूम में राजेश ही नहीं वरन् फ्रेंटाशिया भी आ चुकी थी।
ड्राइंगरूम की हालत कबाड़ियों की दुकान जैसी हो रही थी।
राजेश ने दोनों हाथ फैलाकर उसे सामने से ही उठा लिया और मेकफ की तरफ फेंक दिया। भोलू की तो चीख ही निकल गई, इधर मेकफ धड़ाम से चारों खाने चित्त गिरा।
निश्चित था कि मेकफ के कन्धे पर सवारी गांठने वाला जौहर भी गिरा मगर उसका नाम तो जौहर था, उसे राजेश और फ्रेंटाशिया के आगमन का आभास था और जब भोलू को उछाला गया तो वह साफ बच गया।
मेकफ और भोलू लिपटे हुये फर्श पर लुढ़के थे और जौहर ने भोलू की गिरी हुई सीटी उठा ली थी। उसके एक हाथ में अब भी ओल्ड स्मगलर की बोतल थी।
जौहर ने लम्बी सीटी बजाई।
मेकफ घबराकर खड़ा हुआ।
भोलू तो बेहोश हो गया था।
“क्यों बे नमक हराम, यह क्या किसी कबाड़ी का घर है? अबे इस ड्राइंगरूम में एक लाख का समान लगा है। मेकफ के बच्चे मैं तेरा सिर तोड़ दूंगा।” राजेश कंठ फाड़ कर चीखा।
“ब….बॉस!”
मेकफ पसीने से भरभरा गया।
“सिर के बल खड़े हो जाओ।”
मेकफ ने आज्ञाकारी बालक की तरह सिर के बल खड़े होने का उपक्रम किया।
“अब बताओ, यह अखाड़ा है?”
“बॉस—जौहर बाबा हमको चैलेंज किया था, दस मिनट का चैलेंज—रैफरी भोलू बना था, साला बेईमानी कराना मांगता था। जौहर पप्पा बोला—हम दस मिनट के अन्दर खड़े–खड़े कन्धे से उसे गिरा देगा तो सात दिन तक….मगर बॉस भोलू साला गद्दारी कर गया।”
“वह कैसे?” राजेश ने चकित स्वर में पूछा।
“मैं बोलता कुश्ती में गर्दन नहीं दबोचा जाता, हाथ नहीं मरोड़ा जाता।”
“भोलू साला झूठ बोलता है।”
“यस बॉस, हम इसका हाथ–पांव जरूर तोड़ेगा।”
“शटअप।”
“ब....बॉस।”
“तुम उसका हाथ–पांव क्यों तोड़ेगा?”
“बॉस बेईमानी करता है।”
“क्या कहा—बॉस बेईमान करता है?”
“म....मेरा मतलब....भोलू।”
“तो तुम हार गया?”
“बॉस अभी दस मिनट नहीं हुआ था—वह बोला दस मिनट हो गया—जौहर पप्पा ने उसको रिश्वत खिला दिया था।”
“मेरे घर में और रिश्वत—।”
“जौहर बाबा ने दिया—भोलू ने लिया—बॉस ये किसी दिन रिश्वत लेकर आपको भी हरा देगा।”
“हमने नोट कर लिया—अगर तुम सचमुच हार जाता तो तुम किसका हाथ–पांव तोड़ता? शर्त में क्या हारता?”
“सारा दिन तक जौहर बाबा की हर बात मानता। जौहर बाबा भोलू से बोल दिया कि हारने पर भोलू की छुट्टी और हम घर का सब काम करेगा। हमसे जौहर बाबा घर का काम करवायेगा। ये साला भोलू कामचोर है बॉस, इसको नौकरी से गेट आऊट कर दो। बॉस क्या मैं सीधा हो जाऊं?”
“नहीं, तुम सात दिन तक ऐसे ही रहोगे।” जौहर बीच में बोल पड़ा।
“हम शर्त नहीं हारा।”
फ्रेंटाशिया उन सबकी बहस में पड़ने के बजाय राजेश के स्टडीरूम में चली गयी। अभी तक वह माया के ही मेकअप में थी। उसने प्रोफेसर अमन की डायरी निकाली और उसे खोलकर पढ़ने लगी।
थोड़ी ही देर में राजेश वहां पहुंच गया।
“मि. राजेश, आप कभी–कभी बच्चे बन जाते हैं।” आहट पाते ही फ्रेंटाशिया ने कहा—“मगर यहां आपको पूरी तरह गम्भीरता धारण करनी होगी।”
“इस ठग ने उसकी बुद्धि का दिवाला निकाल दिया है। अब देखिये वह दोनों इसी बात पर बहस करते हुए चले गये हैं कि कैबरे डांसर हाफ मैन हाफ लेडी होती है। मेकफ का कहना है कि वह पूरी लड़की होती हैं—और जौहर बाबा....अब दोनों किसी नाइट क्लब में इस बात का फैसला करने निकल पड़े हैं। मुझे लगता है वहां यह लोग कोई–न–कोई बखेड़ा जरूर करेंगे।”
फ्रेंटाशिया केवल मुस्करा दी।
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