आस्तीन का सांप
शाम का वक्त।
सूरज आधा डूब चुका था।
जंगल के बीचों-बीच बने शिव मन्दिर के खंडहरों के बीच खड़ा था वह।
यहां उसने अपनी प्रेमिका रिम्पी को बुला रखा था।
रिम्पी के साथ उसका प्यार हुए छः महीने हो चुके थे—लेकिन अभी तक एक बार भी दोनों का मिलाप नहीं हुआ था।
वह खुद एक किराये के कमरे में ही रहता था—जो एक भरे-पूरे मकान में था। इतने लोगों के बीच वह रिम्पी को अपने कमरे में नहीं ले जा सकता था—और न ही वह रिम्पी के घर पर जा सकता था।
रिम्पी के घर में उसकी मां-दादी—और दो छोटे भाई थे—और हर वक्त घर में कोई न कोई जरूर रहता था।
और उनकी आर्थिक हालत भी ऐसी नहीं थी कि वे किसी होटल में जाकर कमरा ले सकते।
प्यार की आग में जलते दोनों ने आखिर किसी ऐसी जगह पर मिलने का प्रोग्राम बनाया—जहां न तो कोई पैसा लगे और न ही कोई उन्हें देख पाये।
तब रिम्पी ने उसे सुझाया कि वह जंगल में बने मन्दिर के खंडहरों में शाम को पहुंचे—वह कोई बहाना बनाकर छह-सवा छह बजे वहां पहुंच जायेगी—और फिर दोनों वहीं पर अपना पहला मिलन करेंगे।
और इस तरह वह पौने छह बजे ही वहां पहुंच गया।
सूर्य आधा डूब चुका था। मगर फिर भी वहां अच्छी खासी रोशनी फैली हुई थी।
मगर रोशनी होने के बावजूद वहां का माहौल उसे डरा रहा था।
एक अजीब-सा भारीपन था वातावरण में।
खंडहरों के चारों तरफ झूम रहे वृक्षों के पत्तों की खड़खड़ाहट डरावना शोर पैदा कर रही थी।
तेज ठण्डी हवा उसके बदन में ठिठुरन पैदा कर रही थी।
मन्दिर के बीचों-बीच छोटी ईंटों का मलबा पड़ा था—और उस वक्त वह उसी को देख रहा था।
तभी उसे ईंटों के बीच से मिट्टी उड़ती नजर आई—जैसे तेज धूल उड़ रही हो।
उसका कलेजा हल्के से धड़क उठा।
तभी...।
“नवी...न।” अपने पीछे से रिम्पी की आवाज सुनकर वह पहले तो चिहुंक उठा—फिर एकदम से पीछे घूमा।
रिम्पी उसकी तरफ बढ़ रही थी।
रिम्पी को देखते ही नवीन का चेहरा खिल उठा। आंखों में एक तेज चमक आ गई।
पलभर में ही उसका सारा डर छूमंतर हो गया—और वह उसके उन्नत वक्षों को देखने लगा था जो उसके चलने से ऊपर-नीचे हो रहे थे—जो यह बताते थे कि उसने टॉप के नीचे कुछ भी नहीं पहना।
नीचे स्कर्ट पहने थी वह। काले रंग की स्कर्ट।
उसकी कपड़ेफाड़ जवानी...खूबसूरती...कद, क्या नहीं था उसके पास, जो आदमी को दीवाना न बना दे।
नवीन ने जैसे थूक सटकी और आगे बढ़कर उसे बाहों में भर लिया।
रिम्पी भी उसकी बाहों में ऐसे समाई—जैसे आज अपनी सारी उम्र की प्यास पूरी कर लेना चाहती हो।
“मैं लेट तो नहीं हुई?” वह उससे चिपके हुए ही बोली।
“पंद्रह-बीस मिनट हो गये हैं...तुम्हारी याद में तड़पते हुए।”
“कोई जगह देखी?”
“हां...देख ली है। आओ...।”
कहकर उसने रिम्पी को छोड़ा तो रिम्पी फिर से उससे लिपट गई।
“ऐसे ही उठाकर ले चलो मुझे...।”
कहते हुए उसकी सांसें भारी होने लगीं—साथ ही उसे अपने पेट पर चुभन का अहसास हुआ—जो उसे भीतर तक गुदगुदाता चला गया।
नवीन ने उसे अपनी बाहों में भरा और करीब ही एक स्थान पर ले गया—जहां घास का बिस्तर लगा हुआ था।
यह बिस्तर उसने यहां आते ही बना लिया था।
उसने रिम्पी को स्वयं से अलग किया—और अपनी शर्ट उतारकर घास पर बिछाई और फिर रिम्पी को उस पर लिटाकर खुद उस पर छाने लगा।
“हमारे पास वक्त कम है।” रिम्पी तेज सांसें छोड़ते हुए बोली—“जो करना है, जल्दी करो...।”
कहते हुए उसने अपनी टाप के बटन खुद ही खोल दिये।
उसकी शानदार छातियां अनावृत क्या हुईं—नवीन की धड़कनों में कई गुना इजाफा हो गया।
सांसें और भी गर्म होने लगीं।
जिन्दगी में पहली बार वह किसी लड़की की छातियों को देख रहा था—उससे पहले तो उसने या तो कल्पना की थी—या फिर ब्लू फिल्मों में देखा था।
ऐसे में उसकी हालत का अंदाजा स्पष्ट लगाया जा सकता था।
एकदम से पागल हो उठा वह और वह दोनों हाथों से उसकी छातियों को भींचने लगा।
“उफ...” रिम्पी अपने कूल्हों को उछालते हुए बोली—“देर मत करो...जल्दी से अपने प्यार की बरसात से मेरी आग को शांत कर दो...वर्ना मैं अपनी ही आग में जलकर राख हो जाऊंगी।”
खुद नवीन भी जवानी के खौलते समुद्र में कूदने का पहला अनुभव लेने को उतावला हो गया था। सो वह खड़ा हुआ और अपनी जीन्स उतारने लगा।
रिम्पी ने अपनी स्कर्ट ऊपर की और नीचे पहनी पैंटी को लेटे-लेटे ही उतार दिया।
पैंट उतारकर नवीन उसकी फैली टांगों के मध्य घुटनों के बल बैठा और झुकने लगा।
अभी वह उस पर छाया ही था कि तभी—
“खड़...खड़...खड़...।”
ईंटों के लुढ़कने का शोर हुआ।
दोनों के कलेजे मुंह को आ गये।
उन्हें लगा कि कोई उन्हें रासलीला रचाते देख रहा है।
तुरंत दोनों की गर्दनें आवाज की दिशा की तरफ घूम गईं।
अब वातावरण में हल्की-हल्की कालिमा फैलने लगी थी। मगर फिर भी उन्हें स्पष्ट नजर आ रहा था कि आवाज उधर से आई थी—जिधर नवीन, रिम्पी के आने से पहले देख रहा था।
वहां पड़े मलबे के ढेर से धूल अब पहले से ज्यादा उड़ रही थी। साथ ही कुछ ईंटें अभी भी शोर के साथ इधर-उधर लुढ़क रही थीं।
“क...कोई है...।”
रिम्पी थर्राई आवाज में बोली और उसने एकदम से नवीन को अपने ऊपर से धकेल दिया और खड़ी हो उधर देखने लगी।
नवीन भी खड़ा हो उधर देखने लगा।
पलभर पहले जहां उनके जिस्मों का तापमान हजारों डिग्री पर था—वहीं अब उनके बदन शून्य डिग्री से भी नीचे पहुंच गये थे।
अब तो उन्हें यह भी अहसास नहीं हो रहा था कि वे निर्वस्त्र हैं। हां, उठने पर रिम्प की स्कर्ट जरूर नीचे हो गई थी। मगर उसकी शानदार छातियां अभी भी अनावृत्त थीं, और उसकी टॉप के पल्ले छातियों के दायें-बायें झूल रहे थे।
जबकि नवीन तो सिर से पैर तक बेलिबास था।
दोनों बस उधर मलबे की तरफ देखे जा रहे थे—जो कि बीच में से धीरे-धीरे ऊपर उठ रहा था—जिससे कि ईंटें इधर-उधर लुढ़क रही थीं।
और फिर काले और पीले बालों से भरा एक पंजा बाहर निकला।
भालू का पंजा था वह—जिसके नोकीले और लम्बे नाखून बहुत ही डरावने नजर आ रहे थे।
दोनों के कलेजे मुंह को आ गये।
उनके दिलों की धड़कनें जैसे रुक गईं।
फिर एकाएक ही एक तेज शोर के साथ—ढेर सारी ईंटें ऐसे उड़ीं—जैसे उन्हें बम से उड़ाया गया हो—और उसी के साथ ही मलबे में से एक राक्षस बाहर निकला—जिसका सिर तो तेंदुए का था—जबकि बाकी का जिस्म भालू जैसा था।
उसे देखते ही रिम्पी और नवीन की घिग्गी बंध गई।
राक्षस ने एक बार दोनों को अपनी सुर्ख आंखों से देखा—फिर उसने अपनी बाहें फैलाकर इतनी जोर से दहाड़ मारी कि दोनों की चीखें निकल गईं। और उसी के साथ ही वे वहां से भाग खड़े हुए।
राक्षस उनके पीछे लपका।
अभी नवीन कुछ कदम ही भागा था कि पीछे से राक्षस ने उसे पकड़ लिया।
जोरों से दहाड़ते हुए उसने नवीन को अपने सिर से ऊपर उठाया और जोरों से नीचे पटक दिया।
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