आर-पार की लड़ाई
राकेश पाठक
“तू एक-एक करके अपने सारे कपड़े उतारेगी बालिका—।” मानो कोई भेड़िया गुर्राया—“अगर तूने हमारी ख्वाहिश को पूरा नहीं किया तो हम तेरे जिस्म के हर एक हिस्से में कम-से-कम सौ कीलें ठोक देंगे। देख, मेज पर कीलें और हथौड़ी रखी हुई है।”
सफेद शर्ट, लाल टाई और नीली स्कर्ट।
पैरों में घुटनों तक की सफेद जुर्राबें और काले जूते। बॉब कट बालों, कांच-सी नीली आंखों, कचौरियों जैसे फूले हुए गालों वाली वो दस वर्षीय लड़की गोरी-चिट्टी—जो जापानी गुड़िया ही मालूम पड़ती थी।
उसकी आंखों में दुनियाभर का खौफ भरा हुआ था तथा चेहरा मारे भय के हल्दी-सा पीला पड़ा हुआ था।
उसका नन्हा-सा, कोमल-सा जिस्म, फुल स्पीड में चल रहे 'मिक्सर ग्राइंडर' के फ्लास्क की तरह ही कंपकंपा रहा था।
उसने भय के चश्मे से मेज पर रखी दो इंची कीलों तथा छोटी हथौड़ी को देख कर गुलाब की सुर्ख चली पंखुड़ियों जैसे होठों पर जीभ फेरी।
फिर मेज के पार सोफे पर पसरे बैठे अधेड़ उम्र के भयानक शख्स को देख कर थूक-सा सटका।
अधेड़ कतई काला था, लेकिन उसके छोटे-छोटे बाल मेहंदी से रंग कर सुर्ख हो चले थे।
पतले व लम्बे चेहरे पर चेचक के गहरे दाग यूं ही प्रतीत हो रहे थे कि मानो असंख्य मधुमक्खियों ने छत्ता बना लिया हो।
आंखें छोटी व सुर्ख थीं तथा उनमें गिद्ध की आंखों जैसा ही पैनापन था। लम्बी नाक तोते की नाक जैसी ही चोंचदार थी।
स्याह होंठ बेहद ही पतले थे मानो उन्हें कसकर भींचा गया था।
सफेद कुर्ते-पायजामे में बैठे उस शख्स ने गले में पड़े काले मफलर की—टाई की ही तरह—गांठ बांधी और करीब रखी ट्रॉली से शराब से भरा गिलास उठाते हुए फुंफकारा—“तूने शायद सुना नहीं हरामजादी। हमने तेरे से कहा कि अपने सारे कपड़े उतार। शुक्र मना कि हमें नाबालिक लड़कियों को निर्वस्त्र देखने का ही शौक है। लेकिन कोई कमबख्त हमारी बात न माने तो हम उसके कपड़ों को अपने हाथों से फाड़ डालते हैं और उसके साथ बलात्कार भी करते हैं। तेरे को मालूम कि बलात्कार किसे कहते हैं?”
सहमी-सी खड़ी लड़की ने इन्कार की मुद्रा में सिर को जुम्बिश दी और होठों को भींचकर आंखों से आंसू गिराने लगी।
“बहुत ही बुरी शै होता है बलात्कार लड़की। बड़ी उम्र वाली औरत भी बर्दाश्त नहीं कर पाती है। तू तो कोमल कली है! चल, कपड़े उतार-।”
“न-नहीं, भगवान के लिए मुझे छोड़ दीजिए...।” वो दोनों हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाई—“मम्मी मेरा इंतजार कर रही होगी। मुझे देखने के लिए स्कूल गई होगी। मुझे वहां भी न पाकर वो फिक्रमन्द हो चली होगी। एक बार मैं स्कूल के बाद अपनी सहेली के घर चली गयी थीं तो रोते-रोते मम्मी को तेज बुखार हो गया था। मुझ पर रहम कीजिए अंकल—।”
“रहम...।” वो मुस्कुराया—कमरे के दरवाजे पर खड़े खूंखार शक्ल वाले तथा रिवॉल्वरधारी जो आंखों को देखकर आंख मारी, फिर लड़की से बोला—“हां, तेरे पर रहम जरूर करेंगे बालिका। लेकिन पहले हमारी शर्त पूरी कर दो। कपड़े उतारकर बचपन को टाटा करके जवानी की तरफ बढ़ रहे जिस्म को दिखा दे। डर मत। हम कुछ नहीं करेंगे। हाथ भी नहीं लगाएंगे। दूर से ही अपनी आंखें सेकेंगे और फिर तेरी 'छुट्टी' कर देंगे।”
“मु... मुझे मारोगे तो नहीं छकड़ा जी?”
“अरे... तू तो हमारा नाम भी जानती है। हमारा पूरा नाम जानती है न तू?”
““हां—क... कालू छकड़ा—।”
“वैरी गुड। चल, कपड़े उतार—।” बात पूरी करते ही कालू छकड़ा ने गिलास होठों से लगाकर एक ही सांस में सारी शराब उदरस्थ कर ली और फिर बोतल से गिलास भरने लगा।
लड़की ने गर्दन घुमाकर दरवाजे पर खड़े गुण्डों को देखा, फिर गर्दन झुका कर कपड़े उतारने लगी।
टाई, कमीज स्कर्ट उतारने पर उसका चेहरा मारे शर्म के सुर्ख पड़ता चला गया तथा आंखें मानो फर्श में गड़ने लगीं।
“अब तू नखरे कर रही है लौण्डिया...।” कालू छकड़ा गुस्से से भरा चिल्लाया—“बाकी के कपड़े क्या तेरी मम्मी आकर उतारेगी? अगर तुमने एक मिनट की भी लेट-लतीफी की तो हमारे आदमी तेरे को इस मेज पर लेटा देंगे और हम तेरे जिस्म के साथ बलात्कार करके तेरे जिस्म में सारी कीलें ठोक देंगे।”
खौफजदा हो चली लड़की ने बाकी के वस्त्र भी उतार दिए और सीने पर दोनों बांहें बांध कर बैठती चली गई।
“धत्त तेरे की... तूने तो सारा मजा खराब कर दिया। तू इस तरह बैठ गई है कि हमें कुछ भी दिखाई नहीं पड़ रहा है। खड़ी हो जा... जल्दी कर—।”
वो खड़ी हो गई।
“नहीं, फर्श पर लेट जा। अपना सिर दरवाजे की तरफ कर ले और टांगों को हमारी तरफ कर ले।”
वो फर्श पर लेट गई।
“दोनों हाथों को सीने पर से हटा कर आंखों पर रख ले। तेरे को शर्म भी नहीं आएगी।”
लड़की ने कालू छकड़ा का हुक्म पूरा किया।
कालू छकड़ा की गिद्ध दृष्टि लड़की के थरथर कांपते जिस्म पर यूं फिसलने लगी कि मानो वो नजरों के उस्तरे से जख्मी कर देने का इरादा रखता था।
उसकी आंखों में हवस के सुर्ख कीड़े से गिजगिजाने लगे—चेहरा इलेक्ट्रिक हीटर के एलिमेंट की तरह ही दहकने लगा।
नथुने बुरी तरह फूलने-पिचकने लगे।
होठों पर किसी सर्प की तरह ही जिव्हा रेंगने लगी।
पांच मिनट बाद ही कालू छकड़ा के दशा उस गुब्बारे के जैसे हो चली—जिसमें बहुत ज्यादा हवा भरने के बाद 'पिन' चुभा दिया जाता है।
आंखों में गिजगिजाते कीड़े धीरे-धीरे विलुप्त होते चले गए—सुर्ख चेहरा पुनः काला पड़ता चला गया और नथुनों ने भी फूलना-पिचकना बन्द कर दिया।
गिलास में बोतल की बची सारी शराब डाल कर हल्की-सी घूंट भरी और थके से स्वर में बोला—“इस गेम का क्लाइमेक्स भी हो जाए प्यादों। छोकरी को उठाकर घोड़ी के अस्तबल में लेकर चलो। हम अभी ड्रेस चेंज करके आते हैं।”
चारों गुण्डों ने निर्वस्त्र लड़की को हाथों व पैरों से पकड़कर उठा लिया और डण्डा डोली करके बाहर ले गए।
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अस्तबल के कोने में भट्टी पर ड्रम रखा हुआ था—जिसमें महुए के रस के साथ मेंढक व छिपकलियां उबल रही थीं।
ड्रम से कनेक्टेड एक पारदर्शी पाइप से बूंद-बूंद करके शराब टपक कर कांच के बड़े मर्तबान में जमा हो रही थी।
नजदीक ही एक छः फुटा, तगड़ा और दढ़ियल आदमी अपनी ताकत का प्रदर्शन कर रहा था।
कालू छकड़ा का ही हमशक्ल नजर आ रहा था वो—लेकिन उसकी उम्र पैंतीस साल के लगभग थी। वो सिर से गंजा था और उसके ऊपर के चार दांत सोने के थे।
उसकी कमर पर चार मजबूत रस्सियां लिपटी हुई थीं। चारों रस्सियों के सिरे चार घोड़ों की पीठ पर बंधे हुए थे।
दो घोड़े इधर और दो उधर।
उनकी पीठ पर सवार गुण्डों जैसी शक्लो-सूरत वाले युवक घोड़ों के पेट पर चाबुक बरसाते हुए चीख-चिल्ला रहे थे और रकाबों में फंसे पैरों से ठोकरें मारते हुए घोड़ों को आगे बढ़ने के लिए उकसा रहे थे।
काले रंग के घोड़े हिन-हिनाते हुए आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे थे—लेकिन उनकी पीठ पीछे खड़ा दढ़ियल रस्सियों को अपनी तरफ खींच रहा था और उन्हें आगे नहीं सरकने दे रहा था। इस प्रयास में उसकी बाहों के मसल्स बुरी तरह फूले हुए थे तथा काला-कलूटा जिस्म पसीने से लथपथ था।
फिर उसने जबड़ों को कसकर दोनों रस्सियों को झटका मार कर अपनी तरफ खींचा और फिर मुख खोलकर कण्ठ से भयंकर किस्म की किलकारी-सी निकाली।
घोड़े जोरों से हिना-हिनाते हुए पीछे की तरफ पलट कर गिर पड़े। उन पर सवार चारों युवक भी दूर जाकर गिरी और उठकर कपड़े झाड़ने लगे।
दढ़ियल ने रस्सियों को खोलकर फेंक दिया और कुर्सी पर ढेर-सा होकर उखड़ी सांसों को समेटने लगा।
“शराब ला रे जोंगा—।”
जोंगा नामक गुण्डे ने कांच के मर्तबान में भरी मेढ़को व छिपकलियों वाली जहरीली शराब को कांच के बड़े गिलास में भरा और दढ़ियल को देते हुए बोला—“कांग्रेचुलेशन गब्दू भाई। आज आपने चार घोड़ों को गिराने में कामयाबी पाई है। आप जैसा शक्तिशाली आदमी ढूंढने से भी नहीं मिलेगा—।”
गब्दू ने हंसकर सोने के चार दांतों वाली बत्तीसी का प्रदर्शन किया और फिर जहरीली शराब की चुस्की लेने लगा।
गिलास खाली करके फेंका ही था कि चार युवक निर्वस्त्र लड़की को उठाए हुए आ पहुंचे।
“इसे क्यों उठा लाए यहां पर?”
“छकड़ा साहब की शिकार है ये गब्दू भाई—।”
“ओह, बेचारी...।” गब्दू उठ खड़ा हुआ और गाउन उठाकर कंधे पर डालते हुए बोला—“यानी भाई साहब यहां पधार रहे हैं। हम चलते हैं। कोई घोड़ा जख्मी हो गया हो तो... मरहम-पट्टी कर देना—।”
“जी... गब्दू भाई—।” एक युवक सिर झुका कर बोला।
गब्दू ने रोती-सुबकती तथा भयभीत लड़की पर तरस खाने वाली नजरें डालीं और उस पर मक्कारी भरी मुस्कान उछाल कर बाहर को चल दिया।
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“न-नहीं... भगवान के लिए मेरे लाल को कुछ नहीं कहना बिद्दी साहब। आपके हाथ जोड़ती हूं। चार लड़कियों के बाद भगवान ने मेरी गोद में बेटा डाला है। खानदान का इकलौता चिराग है ये। भले ही मेरी जान ले लो—लेकिन मेरे लाल को छोड़ दो—।”
शक्ल से खूंखार और भूरी आंखों से दरिन्दा नजर आने वाले काले-कलूटे तथा लम्बे युवक ने कन्धों तक झूलते बालों को सिर के झटके से इधर-उधर हिलाया और फिर तीन दिन के अबोध बच्चे को टांगों से पकड़कर हवा में झुलाते हुए बोला—“दीमापुर के सबसे शक्तिशाली गैंगस्टर कालू छकड़ा का इकलौता बेटा हूं मैं। मेरे बाप कालू छकड़ा और चाचा गब्दू ने मुझे किसी पर भी रहम खाने की सीख कतई नहीं दी है। हमेशा ही यही समझाया है कि दुनिया पर राज करना है तो लोगों पर कतई तरस न खाओ। उन्हें खूब सताओ और उनकी बेबसी पर ठहाके लगाओ। शक्ल से ही नहीं, दिमाग और आदतों से भी मैं खूंखार और सनकी हूं। यूं तो मेरे कई शौक हैं। लेकिन एक शौक के लिए तो मैं पागल ही हो गया हूं। वो शौक मेरी कमजोरी बन गया है। मुझे उन औरतों पर बहुत प्यार आता है, जो हाल ही में की मां बनी हों। जिन्होंने दो-चार दिन के भीतर ही बच्चा जना हो—ऐसी औरतों का जिस्म मक्खन-सा मुलायम हो जाता है। उसके जिस्म से मदहोश कर देने वाली खुशबू फूटने लगती है। उसके चेहरे पर निखार आ जाता है। छातियों में दूध उतर आने की वजह से भारी और सुडौल हो जाती हैं। ऐसी औरत को नंगी करके उसके बच्चे के ताजे खून से ही नहला दिया जाए तो उसकी खूबसूरती में चार नहीं, चार सौ चांद लग जाते हैं—।”
बिद्दी के कुत्सित इरादे जानते ही सत्ताइस-अट्ठाईस वर्षीय औरत का खून ही सूख चला।
चेहरा फर्क पड़ता चला गया।
दिल उछल कर मानो हलक में आ फंसा।
फिर वो बिद्दी से अपने बेटे को छीन लेने के इरादे से किसी चील की तरह ही झपट पड़ी।
“हट परे साली...।” बिद्दी ने उसे बड़े जोर से धक्का मारा। वो चकराती हुई-सी फर्श पर जा गिरी और पीठ में चोट लगने से कराह उठी।
“पकड़ना तो इस कुतिया को...।” बिद्दी कमरे में मौजूद खूंखार शक्लों-सूरत वाले आठ युवकों से बोला—“इसे डाल कर बांध दो...।”
आठों गुण्डे उठने की चेष्टा कर रही औरत पर यूं ही झपटे—जैसे भूखे शिकारी कुत्ते शिकार पर झपटते हैं।
चीखती—चिल्लाती व रोती बिलखती औरत को लकड़ी के तख्त पर डाल कर तख्त के चारों पायों से पहले ही से बंधी डोरियों के सिरों से उसके दोनों हाथ व पैरों को बांध दिया तथा एक मोटी डोरी उसके पेट पर कस दी।
“कपड़े फाड़ो इस हसीना के...।” बिद्दी ने हुक्म दिया—“नंगी कर दो, हमें इसके हुस्नो शबाब के दीदार कराओ—।”
दो गुण्डों ने लम्बे फल वाले चाकू निकाल लिया और युवती के कपड़ों को फाड़ते चले गए।
उसको निर्वस्त्र करके चुपचाप ही सभी गुण्डे कमरे से बाहर चले गए।
बिद्दी आगे बढ़ा—उसके हाथ में फंस कर हवा में उल्टा झूल रहा बच्चा जोर-जोर से रोने-बिलखने लगा।
युवती ने जब बिद्दी को जेब से चाकू निकालते देखा तो खौफजदा होकर चिल्लाई—“न-नहीं, भगवान के वास्ते नहीं... मत मारो मेरे लाल को। इस मासूम ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है। ये... ये भगवान का रूप है। रहम करो इस पर। अगर इसे मारोगे तो तुम्हें भगवान भी माफ नहीं करेगा...।”
“भगवान...हुं...।” वो बच्चे को जोर-जोर से झूला झूलाते हुए जहरीले नाग की तरह ही फुफंकार कर बोला-“कलयुग में भला भगवान कहां से आया? भगवान तो सतयुग में या त्रेता युग में हुआ करता था। अब तो शैतान ही पैदा होते हैं। कालू छकड़ा, गब्दू छकड़ा और बिद्दी छकड़ा जैसे। हम लोगों ने भगवान की कुर्सी हथिया ली है। लोग हमें मुंह के पीछे गालियां देते हैं, कोसते हैं—वो ही हमारी पूजा होती है। लोगों की बद्दुआ से हमारी ताकत में बढ़ोतरी होती है। भगवान की धमकी मत देना दोबारा। मैं जिसके अस्तित्व को कबूलता ही नहीं हूं—भला उससे डरूंगा ही क्यों...बोल? दुहाई या धमकी देनी है तो मेरे बाप या चाचा की दे—शायद मैं डर जाऊं। वैसे अन्दर की बात ये है कि मैं उन दोनों से भी नहीं डरता हूं। कलयुग है न डार्लिंग—बेटा बाप से नहीं डरता है। फिर हम लोगों के खून में तो जुर्म के किटाणु मिले हुए हैं। हम लोग रिश्तों के चक्कर में नहीं पड़ते हैं। साथ खाते-पीते हैं। यहां तक कि कभी कभार हम लोग एक ही औरत को एक ही बिस्तर पर भोग भी लेते हैं। लेकिन मत डर। तुझे मेरे बाप या चाचा की हवस का शिकार नहीं होना पड़ेगा। एक्सीडेण्ट के बाद मेरा बाप तो किसी औरत को भोगने के लायक ही नहीं रहा है। वो कम उम्र की लड़कियों को नंगी हालत में देखकर ही दिल बहला लेता है और औरत को न भोग पाने की किलस को उसकी जान लेकर दूर करता है। चाचा मेरा सांड है। निहत्था ही बिगड़ैल सांड को मार गिराता है। उसे जवान, खूबसूरत और कुंवारी लड़की ही चाहिए। तू उसके लिए कतई बेकार है। हां, तू मेरे लिए जन्नत की हूर है। लेकिन तेरी खूबसूरती तब बढ़ेगी—जब तेरे इस गोरे-गोरे जिस्म पर तेरे ही बेटे का ताजा और गाढ़ा-गाढ़ा खून टपकेगा।”
“न-नहीं...भगवान के लिए नहीं...।” वो अभागिन रोते-बिलखते हुए रहम की भीख मांगने लगी।
लेकिन बिद्दी के पत्थर जैसे दिल में रहम कहां? उस नरपिशाच ने तीन दिन के अबोध बच्चे की गर्दन पर चाकू चला दिया।
खच्च...से गर्म व गाढ़े खून की छींटे युवती के चेहरे पर पड़ीं और वो चिल्लाकर बेहोश हो गई।
नन्हा-बच्चा घुटी-घुटी-सी चीख के साथ जल बिन मछली की तरह छटपटा कर शान्त हो गया।
बिद्दी ने गोश्त के बेजान लोथड़े को बेदर्दी के साथ कमरे के कोने में उछाल दिया।
खून के छींटे पड़ने पर उसका चेहरा बहुत ही डरावना हो चला।
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