आखिरी शिकार
‘ज्यूंअअ...!’ एक कार तेजी से गुजरी।
“ओह नो!” कार पर नजर पड़ते ही रीमा भारती को तीव्र झटका लगा। उसकी आंखें मारे विस्मय के कगार तक फट गईं—“मगर यह कैसे मुमकिन है?”
कहने के साथ ही रीमा भारती अपनी कार की तरफ झपटी। तेजी के साथ ड्राइविंग डोर खोल थ्रिल क्वीन ने कार स्टार्ट करने में तनिक भी विलम्ब नहीं किया था।
अगले ही पल!
रीमा भारती की कार तोप से छूटे गोले की भांति महानगर की चौड़ी-चिकनी सड़क पर दौड़ रही थी। उसकी दृष्टि दूर जाती सफेद एम्बेसडर पर टिकी थी। सड़क पर ट्रेफिक ज्यादा था, जिस कारण रीमा भारती को उस कार पर दृष्टि जमाये रखने में परेशानी हो रही थी।
तभी...!
‘चर्र...!’
रीमा भारती ने बड़ी ही फुर्ती से कार को ब्रेक लगाये।
कारण!
भागते कदमों से सड़क पार करती वह एक किशोरायु की लड़की थी। यदि वक्त रहते रीमा ने कार न रोकी होती, तो उस लड़की का एक्सीडेंट होना लाजिमी था।
लड़की कार के बोनट से सटी खड़ी थर-थर कांप रही थी।
कार के रुकते ही उसके कदम भी जाम हो गये थे, जो कि स्वाभाविक था।
रीमा भारती ने उस लड़की को देखने से पूर्व, सड़क पर दौड़ते ट्रेफिक का जायजा लिया।
आश्चर्य!
सफेद एम्बेसडर का दूर-दूर तक भी कोई पता न था।
“शिट्...!” रीमा भारती ने झल्लाकर ड्राइविंग व्हील पर दायीं हथेली मारी और फिर दहशतजदा लड़की की तरफ देखा।
ठीक उसी क्षण!
‘पीं...पीं...!’
पीछे से किसी वाहन का हॉर्न चीखा।
रीमा भारती ने पलटकर देखा।
उसकी कार के पीछे वाहनों की लम्बी कतार थी। दरअसल उस लड़की को बचाने के चक्कर में रीमा भारती को अपनी कार सड़क के बीचों-बीच रोकनी पड़ी थी। अपनी कार के पीछे लगे ट्रेफिक जाम को देख उसे आश्चर्य का तीव्र झटका लगा कि कार के आगे खड़ी लड़की का कहीं कोई पता न था। वह किसी छलावे की भांति ही सड़क पर आई थी और जिन्न की तरह गायब हो गई थी।
रीमा भारती कार स्टार्ट कर उसी स्थान पर आ पहुंची, जहां से उसने सफेद एम्बेसडर कार का पीछा किया था।
रीमा भारती ने अपने जूनियर अभय कुमार को अपना इन्तजार करते पाया।
अभय कुमार रीमा भारती को कार से उतरता देख लपकता हुआ उसके करीब पहुंचा।
“क्या हुआ मादाम?” अभय ने बेसब्री से पूछा—“आप तो उस सफेद एम्बेसडर एम.यू.वी.-ऐट थ्री थ्री के पीछे गई थीं?”
“हां...।” रीमा भारती ने थके व परेशान स्वर में अभय को संक्षेप में पूरी घटना कह सुनाई और बोली—“मगर यह कैसे मुमकिन है? मुझे तो अभी तक अपनी आंखों पर यकीन नहीं आ रहा...जो कुछ मैंने देखा था, क्या तुमने भी देखा था अभय?”
“हां...।” अभय के स्वर में हैरानी थी—“वही कार, वही नम्बर प्लेट और...और कार में पूरी तरह से जाना-पहचाना चेहरा...जो पिछली सीट पर बैठा था। कमाल है...मैं खुद असमंजस में हूं।”
“यही तो मेरी भी समझ में नहीं आ रहा।” रोमा भारती विस्मय के सागर में गोते लगा रही थी।
वही रीमा भारती! जिससे हमारे पाठकगण एक खूबसूरत, मगर खतरनाक ‘शै’ के रूप में परिचित हैं। आई.एस.सी. यानि इण्डियन सीक्रेट कोर की नम्बर वन स्पाई। जो दोस्तों के लिए आनन्द व उल्लास का खुशनुमा झोंका है, तो दुश्मनों के लिए मौत की काली आंधी। अण्डरवर्ल्ड की दुनिया के बड़े-से-बड़े खलीफा जिसका नाम सुनकर ही थर्रा उठते हैं।
आफत की उस परकाला को उसके चीफ मिस्टर खुराना ने एक कार पर नजर रखने की हिदायत दी थी—जब वह अपने जूनियर अभय कुमार के साथ होटल 'इम्पीरियल ब्लू' में डिनर ले रही थी।
देश के एक गद्दार को अपने हाथों से सजा न देने के कारण वह आवेश में भरी आई.एस.सी. विभाग के क्लब में निशानेबाजी की प्रैक्टिस कर रही थी। कानून के बंधन में फंस वह अपराधी मौत की देवी के मुंह का निवाला बनने से बच गया था। जिस कारण स्पाई क्वीन रीमा भारती का क्रोध सातवें आसमान को छू रहा था।
तभी...!
वहां उसका जूनियर अभय कुमार आ पहुंचा था। वह जानता था उसकी सीनियर रीमा भारती जुनूनी अंदाज में फायर बोर्ड पर अंकित बिन्दुओं पर अन्धाधुन्ध फायरिंग कर रही है।
अभय ने रीमा भारती की मनोदशा को परखते हुए बड़ी ही मुश्किल से उसे होटल इम्पीरियल ब्लू चलने के लिए राजी किया था।
होटल इम्पीरियल ब्लू ग्लेमर की दुनिया मुम्बई का सबसे हसीन व महंगा होटल था। जिसमें वास्तव में इतना आकर्षण था कि कस्टमर उसके चुम्बकीय आकर्षण में बंधे किसी लौहकण की भांति खिंचे चले आते थे। वहां का वातावरण ऐसा था मानो स्वप्न लोक में आ पहुंचे हों।
होटल इम्पीरियल ब्लू में कदम रखते ही रीमा भारती वहां के उल्लसित माहौल में रिलैक्स हो गई थी। अभय ने जहां अपने लिए चिल्ड बीयर का ऑर्डर दिया, वहीं अपनी मादाम के लिए व्हिस्की मंगाई थी।
अभय कुमार जवान व खूबसरत युवक था। साथ ही मनचला भी। रीमा भारती उसके स्वभाव से पूर्ण परिचित थी।
मगर...!
इस वक्त अभय कुमार एक शिष्ट शिष्य की भूमिका अदा कर रहा था। एक-से-एक हसीन-तरीन वेट्रेस रंग-बिरंगी तितलियों की भांति यहां से वहां मंडरा रही थीं, लेकिन अभय कुमार ने उनकी तरफ नजर उठाकर देखना भी गंवारा न किया था, जो कि उसके स्वभाव के विरुद्ध था।
सहसा!
रीमा भारती ने अभय को चोर नजरों से दायीं तरफ की टेबल की तरफ देखते हुए देखा। उसने अभय की नजरों का अनुसरण किया।
टेबल पर बीस वर्ष की नवयौवना बैठी थी। उसके दूध में चुटकी भर सिन्दूर मिले गुलाबी जिस्म की स्निग्ध त्वचा काले टॉप व प्रिंटिड मिनी स्कर्ट से झांक रही थी। उसका चांद-सा मुखड़ा खिले गुलाब की मानिन्द दमक रहा था। उसके घुंघराले बाल पोनीटेल की शक्ल में बंधे थे। कुल मिलाकर वह एक ऐसी युवा सुन्दरी थी, जिसे देख बूढ़े व्यक्ति के सोये अरमान भी मचल उठें। फिर अभय तो एक नौजवान युवक था।
रीमा भारती मन-ही-मन बुदबुदाई—
“कुत्ते की दुम को बारह वर्ष नलकी में डालकर रखो, पर रहेगी टेढ़ी-की-टेढ़ी।”
तभी, वेट्रेस ऑर्डर सर्व कर गई। पर अभय का उस ओर ध्यान ही न था।
रीमा भारती ने अभय के समक्ष चुटकी बजाई।
अभय की तन्द्रा टूटी—
“अरे...वेट्रेस ऑर्डर सर्व कर गई।” उसने थके हुए ऊंट की तरह गहरी सांस ली।
रीमा भारती उसकी बात को नजरअंदाज कर, अभय से नजर मिलाती हुई बोली—
“कौन है?”
“वही लड़की, जिसके लिए तुम पूरे हॉल को गरमी पहुंचा रहे हो।”
“ओह...वह...।” अभय ने अपनी गुद्दी खुजाई और बात का रुख बदलता हुआ बोला—“आप व्हिस्की लीजिए ना।”
मुस्कुराते हुए रीमा भारती ने अपना पैग उठाया और अपने नर्म-नाजुक लबों से सिप करते हुए पूछा—
“यह मेरे सवाल का जवाब नहीं अभय...।”
उसी पल!
“हैलो मदाम!” शहद-सा मीठा व मन्दिर की घण्टी-सा खनकता स्वर उभरा।
रीमा भारती सहित अभय ने भी चौंककर आवाज की तरफ देखा। आगन्तुक एक हसीन-तरीन युवती थी, जिसे देख चांद भी शरमा जाये। गुलाबी रंगत, ओस में नहाये ताजादम गुलाब-सा मखमली जिस्म, कजरारी आंखें, शहद-से रसीले रक्तिम अधर, कन्धों तक मेंहदी रचे रेशमी बाल।
“हाय अभय...!” वह अभय को देख शोखी से मुस्कुरायी।
“हाय...।” अभय ने उसे देख ऐसा मुंह बनाया, मानो जबरन उसके मुंह में कुनैन की गोली ठूंस दी गई हो।
“हैलो जूली।” रीमा भारती मुस्कुराई।
जूली भी अभय की तरह रीमा भारती की जूनियर थी।
रीमा के संकेत पर जूली अभय की बराबर वाली कुर्सी पर बैठ गई। रीमा भारती ने उसके लिए भी व्हिस्की का ऑर्डर दिया और पूछा—
“जूली, तुम यहां कैसे?”
“मैं पिछले आधे घण्टे से यहां हूं।” उसने अभय की तरफ देखा और बोली—“और अभय की गुस्ताख नजरों को देख रही थी।” उसके होठों पर अब भी चंचलता विराजमान थी—“कौन है यह?”
“पोनीटेल!” अभय ने कहा।
“लानत है...।” रीमा बुदबुदाई।
“मेरी तरफ से सौ बार लानत।” जूली ने कहा।
“क्या मतलब? कौन-सा गुनाह हुआ है मुझसे जो मोहतरमा एक की बजाय सौ बार लानत भेज रही हो?”
“मैं तुम्हारी पोनीटेल पर लानत भेज रही हूं...।” जूली मुंह बिचकाकर बोली।
रीमा भारती उनकी नोंक-झोंक का आनन्द ले रही थी। वह जानती थी कि जूली अभय को पसंद करती है। यूं तो अभय भी जूली को पसन्द करता था, मगर अकेले होते ही उसके दिमाग की रगें बहकने लगती थीं और किसी तफरीहगाह में होता तो किसी भी हसीन सूरत को देखते ही नजरें फिसलाने लगता।
“आजकल तुम्हारा स्टैण्डर्ड बहुत सस्ता व घटिया होता जा रहा है अभय!” जूली ने कहा।
“प्लीज जूली!” अभय खुशामद भरे लहजे में बोला—“जरा इन्साफ करो। तुम ईर्ष्या भरी नजरों की तराजू में रखकर उसके हुस्न को तौल रही हो। जब भी तुम किसी खूबसूरत लड़की, यानि मेरी महबूबा को देखती हो, पलीते की तरह सुलग उठती हो।”
“तुम निगेटिव और पोजेटिव, दो अलग-अलग चीजों को एक करने की मूर्खता करते हो अभय! तुम्हारी पसन्द किसी भी कोण से खूबसूरत नहीं कही जा सकती। चाहे तो मदाम से पूछ लो।”
जब वे किसी केस पर काम न कर रहे होते, तो इसी तरह फ्रेंक हो जाया करते थे।
“हां मदाम! अब आप ही फैसला कीजिए।” अभय तत्परता से बोला—“क्या वह हसीन नहीं? उसके बाल आह...।” अभय ने आशिक मिजाज व्यक्ति की तरह आह भरी—“किसी बुलडॉग घोड़े की तरह...।”
“बुलडॉग घोड़े नहीं, कुत्ते होते हैं बरखुरदार।” रीमा भारती ने अपनी हंसी रोकते हुए कहा।
मगर, अभय अपनी ही टोन में कहता रहा—
“उसकी आंखें...जैसे शुक्र व शनि ग्रह हों।”
“हाय...हाय...कैसी-कैसी उपमायें दे रहे हो।” रीमा भारती चौंककर बोली—“कहीं तुम्हारा दिमाग चल तो नहीं गया...हसीन आंखों की उपमा नरगिस और सीप से दी जाती है....और एक तुम हो कि...।”
“मैं...मैं अपनी महबूबा के हुस्न की तारीफ कर रहा हूं।” अभय दीवानगी भरे अन्दाज में बोला था।
“महबूबा...माई फुट!” जूली शब्दों को चबाकर बोली—“उसकी आंखें...जिनके बारे में कहा जा सकता है...कहीं पे निगाहें...कहीं पे निशाना।”
जूली ने ये बात अभय को चिढ़ाने के लिए कही—“उसके होंठ जैसे नदी तट के टूटे हुए कगार और उसका जिस्म...जिसे देख गधे भी शरमा जायें। यदि तुम्हारा टेस्ट यही है तो मुझे रहम आता है। तुम्हारे टेस्ट पर एक हजार लानत और एक हजार लानत तुम पर और एक हजार लानत उस पर...।”
“देखो...देखो...जरा कुछ बचाकर रखो। किसी रईस की बिगड़ी हुई औलाद की तरह यूं दोनों हाथों से न लुटाओ। अभी तुम्हें अपनी जिन्दगी में मुझे अनगिनत इश्क करते हुए देखना है और महबूबाओं पर लानत भेजनी है।”
“हा...हा...हा...।” रीमा भारती न चाहते हुए भी उनकी नोंक-झोंक पर खिलखिला कर हंस पड़ी थी।
तभी...!
‘पिक...पिक...पिक...!’ उसके मोबाइल की बीप उभरी।
रीमा भारती ने अपने वेनेटी बैग से मोबाइल बरामद कर उसकी विण्ड स्क्रीन पर दृष्टिपात किया। आशानुरूप कॉल चीफ मिस्टर खुराना की थी।
रीमा भारती ने ऐसा मुंह बनाया, मानो टॉफी के बदले कड़वी दवाई खा ली हो।
उसने बेमन से कॉल अटैण्ड की।
“गुड ईवनिंग सर!”
“वेरी गुड ईवनिंग रीमा!” चीफ का स्वर गम्भीर था। जिसे परखतो ही रीमा सतर्क हो उठी।
“यस सर!” कहते हुए वह अपने स्थान से उठ तेज कदमों से बाहर निकल आई।
“रीमा, तुम्हें इसी वक्त लिबरा रोड पर पहुंचना है। मेरी जानकारी के मुताबिक वहां एक सफेद रंग की एम्बेसडर जिसका नम्बर एम.यू.वी.-ऐट थ्री थ्री है, आयेगी...तुम्हें उसका पीछा कर उसमें सवार लोगों की बाबत जानकारी प्राप्त कर मुझे रिपोर्ट भेजनी है।”
“ओ.के. सर! मैं पहुंच रही हूं।”
दूसरी ओर से सम्बन्ध-विच्छेद हो गया था।
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