आखिरी दांव : Aakhri Dav
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Description
रोमांस, रोमांच, एक्शन और थ्रिल से भरपूर उपन्यास - आखिरी दांव
एजेण्ट क्रॉस विक्रान्त का पाला ऐसी शातिर हसीना से पड़ा जिसका सारा जमाना दीवाना था। उसका नाम था—नज़राना। हुस्न से लबरेज़ वो खुदा का हैरतअंगेज नज़राना ही थी; मगर उसके हुस्न के पीछे खतरनाक स्पाई छिपी थी। विक्रान्त ने काबू करना चाहा तो उसे भी छकाकर वो ईरान भाग गई। वहीं पर चला विक्रान्त ने आखिरी दांव!
ईरान की धरती पर विक्रान्त का वो रोमांचक कारनामा—
जो आदि से अन्त तक बांधकर रखेगा।
बोनस में ताऊ, जगत, जेम्स बाण्ड का धमाल !
Aakhri Dao : Aakhri Dav
Om Prakash Sharma
Ravi Pocket Books
BookMadaari
प्रस्तुत उपन्यास के सभी पात्र एवं घटनायें काल्पनिक हैं। किसी जीवित अथवा मृत व्यक्ति से इनका कतई कोई सम्बन्ध नहीं है। समानता संयोग से हो सकती है। उपन्यास का उद्देश्य मात्र मनोरंजन है। प्रस्तुत उपन्यास में दिए गए हिंसक दृश्यों, धूम्रपान, मधपान अथवा किसी अन्य मादक पदार्थों के सेवन का प्रकाशक या लेखक कत्तई समर्थन नहीं करते। इस प्रकार के दृश्य पाठकों को इन कृत्यों को प्रेरित करने के लिए नहीं बल्कि कथानक को वास्तविक रूप में दर्शाने के लिए दिए गए हैं। पाठकों से अनुरोध है की इन कृत्यों वे दुर्व्यसनों को दूर ही रखें। यह उपन्यास मात्र 18 + की आयु के लिए ही प्रकाशित किया गया है। उपन्यासब आगे पड़ने से पाठक अपनी सहमति दर्ज कर रहा है की वह 18 + है।
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आखिरी दांव
ओमप्रकाश शर्मा
“धड़ाक...!”
वातावरण में तेज आवाज उभरी। अगले ही पल विक्रान्त पीछे की ओर पलट गया। उसके सिर में लगने वाली टक्कर बड़ी जबरदस्त थी। वह धम्म की आवाज के साथ गिरा था। अभी वह सम्भल पाता उससे पहले ही...खनखजूरा ने लॉन्ग जम्प ली।
खनखजूरा अपनी बला की फुर्ती का प्रदर्शन किया था।
विक्रान्त को लगा कि उसके ऊपर कोई चट्टान आकर गिरी है। वह खनखजूरा से अपने को बचा नहीं सका था। खनखजूरा का हाथ मशीनी अन्दाज में विक्रान्त के चेहरे पर बरसा। विक्रान्त को लगा कि उसके चेहरे पर कोई हथौड़े बरसा रहा है।
वह बुरी तरह विचलित हो उठा था। उसका चेहरा कई स्थानों पर कट-फट सा गया। असीम सहनशक्ति वाले विक्रान्त को लग रहा था—यदि यही स्थिति उसकी कुछ देर और रही तो उसकी हालत अत्यधिक बुरी हो जाएगी...। उसने अपने जिस्म को किसी रबर की भांति सिकोड़ना शुरू किया।
विक्रान्त इस समय नजराना का पीछा कर रहा था। नजराना यूं तो एक विदेशी राजदूत की निकट सम्बन्धी थी। यह रिश्ता भी काफी निकट का था—उस राजदूत के साथ उसकी बड़ी बहन की शादी हुई थी। अर्थात रिश्ते में वह साली थी—और वह भी छोटी।
राजधानी के अनेक होटलों में नजराना और उस राजदूत को एक साथ देखा गया था।
नजराना—अद्वितीय सुन्दरी थी।
यदि इस जमाने में विश्व की साम्राज्ञी किल्योपेट्रा भी सुन्दरता में उसका मुकाबला करती तो उसे मात खानी पड़ती।
सचमुच नजराना अपरमित सौन्दर्य की मलिका थी। एक बार जो लोग उसे देखते—तो देखते ही रह जाते। उसके सुन्दरता और यौवन किसी ऋषि-मुनि की तपस्या भंग कर देने के लिए काफी थी।
नजराना की एक-एक अदा पर देखने वाला मर मिटते थे।
राजधानी के अमीरजादों ने एकदम प्रत्यक्ष रूप में प्रणय निवेदन किया।
नजराना ने उन्हें बड़ी खूबसूरत ढंग से टाल दिया था। कितने पुरुषों ने तो उसके साथ जबरदस्ती करने की चेष्टा की थी—किन्तु उसका परिणाम उन्हें भुगतना पड़ा था।
कुछ अमीरजादों ने गुन्डों द्वारा नजराना के अपहरण करने की योजना बनाई।
लेकिन उन गुन्डों की हालत बुरी हो गई थी। किसी के हाथ टूट गए थे तो किसी का पैर और किसी का सिर...।
राजधानी के अधिकांश गुन्डे अस्पताल में भर्ती थे...और उस समय को कोस रहे थे—जब उन्होंने नजराना का अपहरण करने का ठेका लिया था।
विक्रान्त के कानों में भी नजराना के अपरिमित
सौन्दर्य की चर्चा सुनाई दी।
वह भी नजराना को पाने के लिए...उसकी सुन्दरता का रसपान करने के लिए बेताब हो उठा था।
विक्रान्त का सौभाग्य था कि अभी तक नजराना उससे नहीं टकराई थी। अब तक उसने कितनी शामें होटलों के चक्कर काटने में व्यतीत कर दी थीं।
पिछले तीन दिनों में स्विस सुन्दरी केरीना का साथ रहा था। केरीना की आयु मुश्किल से सोलह वर्ष थी। यूं समझिए कि उसने अभी जवानी में कदम रखा था...और कली से फूल बनी थी। गोल चेहरा...रंग गोरा, बफ कट कन्धे पर लहराते हुए सुनहरे बाल बड़े ही मनमोहक प्रतीत होते थे।
केरीना विक्रान्त के एक आकर्षक व्यक्तित्व एवं उसके कारनामों से पहले से ही परिचित थी। भारत-भ्रमण के अलावा वह इस नौजवान खूंखार जासूस से मिलने के लिए आई थी।
केरीना को विक्रान्त तो मिल गया था—और विक्रान्त भी केरीना की सुन्दरता से पूरी तरह प्रभावित हुआ था—लेकिन उससे पहले कि वह नजराना के अपरिमित सौन्दर्य के बारे में सुन चुका था।
विक्रान्त...केरीना को किसी ऐतिहासिक स्थल की सैर कराने के बदले...होटलों में घुमा-फिरा रहा था। उसका मुख्य उद्देश्य था कि...एक बार वह नजराना को करीब से देखे...जिसके लिए आजकल राजधानी के अमीरजादे और करोड़पति पागल हो रहे हैं।
नजराना बीती रात जब उसे कई होटलों के चक्कर काटने के बाद नहीं मिली, तो वह केरीना के साथ अपने फ्लैट पर चला गया था।
विक्रान्त और केरीना पूरी रात फ्लैट के बेडरूम में बन्द रहे। केरीना—जो अभी हाल में कली से फूल बनी थी...अपना यौवन...अपनी सुन्दरता का रसपान विक्रान्त को कराती रही थी।
दोनों गहरे नशे में रात भर डूबे रहे थे।
प्रातः...।
फोन की घण्टी लगातार बजती रही और विक्रान्त ने उठने की तकलीफ गंवारा न की तो अलसाई-सी केरीना उठी।
“हैलो...मैं केरीना...आप कौन...?”
“मुझे विक्रान्त से मिलना है।” दूसरी ओर से कहा गया।
“वह सो रहे हैं।” केरीना उबासी लेती हुई बोली।
“उसे जगा दो...कहो तुम्हारे बड़े भाई याद कर रहे हैं।”
“आप होल्ड कीजिए मैं प्रयत्न करती हूं।”
“उठो...विक्रान्त डार्लिंग! फोन।”
विक्रान्त ने केरीना का हाथ अपने हाथों में लिया और तेज झटका दिया।
केरीना सम्भल न पाई। वह विक्रान्त के ऊपर गिरी। वह सम्भल पाती उससे पहले विक्रान्त की बांहें उसके जिस्म के इर्द-गिर्द कस गईं।
विक्रान्त की शक्तिशाली बांहों में केरीना का संगमरमरी जिस्म कैद हो गया।
केरीना विक्रान्त की बांहों में मचल उठी।
“प्लीज डार्लिंग तुम्हारे...।”
आगे की केरीना के कण्ठ में ही रह गए थे, विक्रान्त के होठ उसके गुलाब की पंखुड़ियों के समान होठों पर आकर चिपक गए।
विक्रान्त ने उसके होठों पर एक प्रगाढ़ चुम्बन अंकित किया।
प्लीज फोन सुन लो...तुम्हारे बड़े भाई साहब का फोन है...।”
“बड़े भाई साहब का...!” विक्रान्त ने विस्मय के साथ पूछा।
“हां...।”
विक्रान्त के जिस्म में विद्युत शार्ट-सा लगा। उसका अनुमान था कि यह फोन चीफ चक्रवर्ती द्वारा किया गया होगा...और वह अभी केरीना की जवानी के सागर को चखना चाहता था। यही कारण था कि उसने फोन रिसीव नहीं किया था।
अगले ही पल विक्रान्त ने केरीना को अपनी बांहों से मुक्त किया।
केरीना शीघ्रता से संभली। उसके जिस्म की एकमात्र चादर अलग हो गई थी...उसे ठीक किया।
विक्रान्त शीघ्रता से खड़ा हुआ। वह राजेश को अपना बड़ा भाई मानता था।
“चरण स्पर्श...।”
“ओह...विक्रान्त!” राजेश ने विक्रान्त का वाक्य बीच में काट दिया—“तुम्हारी नींद में विघ्न पड़ा।”
“आप कैसी बात कह रहे हैं!” विक्रान्त ने राजेश का वाक्य बीच में काट दिया—“आप हुक्म दीजिए।“
“तुम शीघ्रता से तैयार होकर ऑफिस आ जाओ...मैं और चीफ तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहे हैं।”
“मैं पन्द्रह मिनट में तैयार होकर आ रहा हूं बड़े भाई!” विक्रान्त ने शीघ्रता से कहा।
इसके बाद फोन पर सम्बन्ध-विच्छेद हो गया।
विक्रान्त ने क्रेडिल पर रिसीवर रखा और केरीना की ओर घूमा।
केरीना बेड पर आंखें बन्द किए हुए थी।
“डार्लिंग!”
विक्रान्त के पुकारने पर केरीना ने अपनी स्वप्निल आंखों को खोला और मदमाती नजरों से उसकी ओर देखा।
“डार्लिंग...फोन तो तुमने सुना ही है कि मेरे बड़े भाई हैं...उन्होंने मुझे बुलाया है।”
केरीना के गुलाब की पंखुड़ी के समान होंठ हिले। मोतियों के समान ध्वल दन्त-पंक्तियां चमक उठीं
“बुलाया है...तुम मिल आओ।”
“डार्लिंग बड़े भाई की बुलाने का मतलब तुम नहीं जानती...वर्ना तुम न कहती कि मिला आओ।”
“नहीं जानती तो तुम ही बता दो।” केरीना ने भोलेपन के साथ कहा।
“बड़े भाई के बुलाने का मतलब हमारे तुम्हारे बिछड़ने से है यानी अब हमारी तुम्हारी मुलाकात न जाने कब हो?”
“यह क्या कह रहे हो डार्लिंग?” केरीना विस्मय के साथ विक्रान्त का चेहरा देखने लगी।
“मुझे आवश्यक कार्य से बुलाया जा रहा है...तुम चाहे जितने दिन इस फ्लैट में रह सकती हो।”
केरीना का खिला हुआ चेहरा मुरझा-सा गया...आंखों में निराशा के बादल तैर उठे। विक्रान्त के सामने सबसे पहले अपना फर्ज था। वह बाथरूम की ओर बढ़ा। केरीना भी बेड से उठ गई, वह मन ही मन उस टेलीफोन को कोस रही थी।
पांच मिनट पश्चात ही विक्रान्त फ्रेश होकर निकला। वार्डरोब से उसने कपड़े तथा सूट निकाले। विक्रान्त के तैयार होने के साथ ही केरीना तैयार हो गई। उसके मन-मस्तिष्क पर विक्रान्त के साथ बिताए दिनों की सुखद स्मृति छाई हुई थी।
“विक्रान्त डार्लिंग! यह सम्भव नहीं हो सकता कि हम एक-दो दिन और साथ रहे?” केरीना आशान्वित स्वर में बोली।
“डार्लिंग! मुझे तुम्हारे होटल का नम्बर याद है...यदि मैं फ्री हुआ तो तुमसे अवश्य सम्पर्क करूंगा...मेरा दिल तुमसे अलग होने के लिए गंवारा नहीं कर रहा। लेकिन बड़े भाई साहब की आज्ञा को टालने का साहस मुझमें नहीं है।”
केरीना शीघ्रता से आगे बढ़ी और अपनी नशीली गुदाज बांहों का हार विक्रान्त के गले में डाल दिया। उसका चेहरा विक्रान्त के चेहरे के समीप आया।
दोनों के होठों का आपस में मधुर स्पर्श हुआ। केरीना के वक्षों की गोलाइयों ने विक्रान्त के चौड़े-चकले सीने से स्पर्श कर उसके जिस्म में सिहरन-सी दौड़ा दी।
विक्रान्त की बांहें केरीना की कमर से होती हुई उसकी मांसल पीठ पर आकर कस गईं।
केरीना विक्रान्त के और अधिक समीप आ गई।
प्रगाढ़ सम्बन्धों का आदान-प्रदान कुछ क्षणों तक हुआ और फिर दोनों मजबूरी में अलग हुए।
विक्रान्त ने फ्लैट को लॉक किया और फिर वह दोनों बाहर आ गए। अन्तिम विदाई फुटपाथ पर हाथ मिलाकर हुई, मिलने का वादा विक्रान्त ने किया और फुटपाथ पर उस ओर बढ़ गया, जिधर टैक्सी स्टैण्ड था।
केरीना काफी देर तक विक्रान्त को जाता हुआ देखती रही, जब वह नजरों से ओझल हो गया तो अपने स्थान पर घूमी...और सड़क को क्रॉस किया।
सड़क की दूसरी ओर के फुटपाथ पर कुछ दूर जब वह आगे बढ़ी तो एक कार तीव्र रफ्तार से फुटपाथ के सहारे आकर रुकी।
“कम ऑन।”
केरीना के कानों में एक सपाट स्वर टकराया। वह अपने स्थान पर रुकी...पीछे की ओर गर्दन घुमाकर देखा...आसपास की स्थिति का जायजा लिया...और फिर कार का अगला दरवाजा खोलकर कार की अगली सीट में समा गई।
अगले ही पल कार चल पड़ी थी।
“ट्रांसमीटर...!” केरीना फुसफुसाई।
“ड्राज में रखा है मादाम...।” कार चालक ने आदरयुक्त स्वर में कहा।
केरीना ने ड्राज में से ट्रांसमीटर निकाला और उसका ऐरियर खींचकर बाहर निकाला। ट्रांसमीटर से घरघराहट की आवाज उभरने लगी थी।
“हैलो...एजेण्ट नाइन कॉलिंग...एजेण्ट नाइन कॉलिंग...ओवर...।”
“रिंग लीडर...अटैण्डिंग...रिंग लीडर अटैण्डिंग...ओवर...।”
“रिपोर्ट...।”
“बोलो।”
“विक्रान्त अभी-अभी अपने फ्लैट से रवाना हुआ है...फोन उसके बड़े भाई की ओर से आया था...लेकिन मुझे पक्का विश्वास है कि यह फोन उसके विभाग से उसे कॉल करने के लिए किया गया था।”
“गुड...!”
“वह मुझसे पूरी तरह प्रभावित था...उसने बाद में मिलने का वादा किया है। इन तीन दिनों में वह मेरे साथ रहकर भी एजेण्ट गोल्डन क्रॉस की तलाश करता रहा था...इस समय वह किसी मिशन में व्यस्त हो गया है।” केरीना ने संक्षेप में अपनी रिपोर्ट दी।
“गुड...तुम्हारे ऊपर उसने सन्देह तो नहीं किया?”
“अभी तक तो नहीं।”
“तुम अपने ऊपर किसी प्रकार का सन्देह मत होने देना...अब तुम अपने होटल पहुंचो...हो सकता है कि वह तुमसे दोबारा मिलने की चेष्टा करे...हमारा काम लगभग समाप्ति पर है। मुझे आशा है कि आज रात हम लोग भारत छोड़ देंगे।”
“ऑल राइट, ओवर एंड ऑल...।”
“कार होटल ले चलो।” केरीना ट्रांसमीटर वापस ड्राज में रखते हुए बोली।
“ओ०के० मादाम!”
इधर विक्रम को टैक्सी मिल गई थी...ठीक पन्द्रह मिनट पर ऑफिस पहुंच गया।
“केन्द्रीय खुफिया विभाग।
प्रगट में बस विशाल बिल्डिंग के सामने एक्सपोर्ट एण्ड इम्पोर्ट ऑफिस का बोर्ड लगा था। जो मात्र दिखावे के लिए था।
विक्रान्त ने उस टैक्सी को कुछ पहले ही छोड़ दिया और फिर वह बिल्डिंग के अहाते में पहुंच गया, खुफिया विभाग में विश्वसनीय और आजमाए हुए व्यक्ति थे। एक चट्टान टूट सकती है लेकिन खुफिया विभाग के आदमी नहीं टूट सकते थे।
गार्ड ने विक्रान्त का चेहरा देखते ही जोरदार सैल्यूट मारा...विक्रान्त ने सिर को हल्की-सी जुम्बिश दी और लिफ्ट की ओर बढ़ गया।
उस लिफ्ट में एक विशेष किस्म का आईना लगा हुआ था, कि कोई व्यक्ति चाहे किसी प्रकार का मेकअप करके जाए, किन्तु उस आईने में उसका असली रूप दिखाई देगा।
कई अपराधियों ने जासूसों का मेकअप करके खुफिया विभाग का रहस्य जानना चाहा था...लेकिन इस आईने के सामने आते ही पकड़े गए थे। इसके अलावा खुफिया विभाग में जगह-जगह अनेक आलौकिक करिश्मा अंजाम दिए गए थे, कि कोई भी आदमी खुफिया विभाग में प्रविष्ट नहीं हो सकता था।
विक्रान्त लिफ्ट द्वारा...पांचवी मंजिल पर चीफ चक्रवर्ती के कक्ष में पहुंचा। चीफ चक्रवर्ती और राजेश उनकी बेताबी से प्रतीक्षा कर रहे थे।
“आओ विक्रान्त...।” राजेश ने उसे देखते ही कहा।
विक्रान्त राजेश के चरणों की ओर झुकता, किन्तु राजेश ने उसे अपने सीने से लगा लिया। चीफ को अभिवादन करने के पश्चात विक्रान्त ने कुर्सी सम्भाली...उसकी प्रश्नात्मक नजर राजेश की ओर उठ गई...उसे यह समझते देर न लगी कि राजेश की मनः स्थिति चिन्तनीय है।
“आज का अखबार पढ़ा...?” राजेश ने स्नेहयुक्त स्वर में विक्रान्त से पूछा।
“न...मैंने ज्यों ही आपका फोन रिसीव किया वैसे ही तैयार होकर ऑफिस के लिए चल दिया था।”
चीफ चक्रवर्ती ने अपने सामने रखा हुआ अखबार विक्रान्त की ओर कर दिया। विक्रान्त ने अखबार को अपनी ओर खिसकाया और सबसे पहले विक्रान्त की दृष्टि उस स्थान पर चली गई जहां पर चीफ चक्रवर्ती ने लाल गोला अखबार पर खींच रखा था।
कुछ ही क्षणों में विक्रान्त वह पूरा समाचार पढ़ गया।
“हूं...।” विक्रान्त ने हुंकारी भरी।
यह घटना गृह मंत्रालय के हेड क्लर्क की आत्महत्या की थी।
“मैं इस आत्महत्या का तात्पर्य नहीं समझा बड़े भाई...?”
“पी०सी० चौहान पहले तो गायब हुए...और जब उनकी खोज की गई तो...उनकी लाश उनके फ्लैट से मिली।” राजेश ने बताया—“गृह मंत्रालय को उन फाइलों की आवश्यकता हुई जिनमें अरब देशों के साथ तेल आयात के समझौते किए गए थे। तुम्हें तो मालूम ही है...भारत में अधिकांश तेल अरब देशों से आयात किया जाता है। हम लोग अपने देश में जिन वस्तुओं का उत्पादन करते हैं...उनको विदेश के लिए निर्यात करते हैं...तेल के बदले उन देशों की जरूरत के मुताबिक हम हर वस्तु निर्यात करते हैं...जिसका समझौता हमारे देश के साथ हुआ है। जिस प्रकार हम अपनी वस्तुओं की कीमतें उस समय तक नहीं बढ़ा सकते, जब तक कि उनके साथ समझौता हुआ है...इसी प्रकार वहां की सरकार भी तेल की कीमत तब तक नहीं बढ़ा सकती जितने वर्ष का कॉन्ट्रैक्ट हुआ हो।
अरब देशों ने आपस में मीटिंग करके तेल की कीमत एकदम से बढ़ा दी है...समझौते के अन्तर्गत तेल की उतनी सप्लाई नहीं है...जितना देने के लिए समझौता हुआ था...यही नहीं तेल की सप्लाई रोक दी है...जिसके कारण पूरे देशवासी को तेल संकट का सामना करना पड़ रहा है...देश के भीतर जितना मिट्टी के तेल का स्टॉक है...और डीजल का स्टॉक है...वह भावी संकट को देखते हुए बहुत ही किफायती ढंग से खर्च किया जा रहा है।
तुम्हीं सोचो। मान लो, शहर में मिट्टी का तेल न हो तो लोगों के घरों के चूल्हे किस प्रकार जलेंगे? भारत के गांव-जहां बिजली पहुंच नहीं पाई है...उन गांवों में रहने वाले लोगों के घरों में उजाला किस प्रकार होगा?
अब हमें दिल्ली से मुम्बई पहुंचना है...प्लेन द्वारा पन्द्रह मिनट में आवश्यकता के अनुसार पहुंच जाते हैं। किसी गांव में किसी व्यक्ति की डॉक्टरी सहायता की आवश्यकता है...और यदि कार में पेट्रोल नहीं है...तो व्यक्ति दस मील दूर शहर तक नहीं पहुंच सकता।
आधुनिक कृषि जो यन्त्रों पर आधारित होती जा रही है...और उन यन्त्रों को चलाने के लिए डीजल, पेट्रोल की आवश्यकता यदि पूरी नहीं की गई, तो अन्न का उत्पादन किस प्रकार होगा...? स्थिति भूखों मरने की हो जाएगी...।
दूसरी ओर हमारा देश वर्षो की गुलामी के कारण अत्यधिक गरीब है। एकदम से अकस्मात ही बढ़ी हुई कीमत के कारण हमारे देश की अर्थव्यवस्था पर बहुत बड़ा फर्क पड़ेगा।
लेकिन हमारे देश के साथ तेल निर्यात करने वाले देश से क्या समझौता हुआ है...और इस समझौते के अनुसार हम यह मामला राष्ट्र संघ की अदालत में उठा सकते हैं। इन समझौते वाले महत्वपूर्ण दस्तावेजों की आवश्यकता गृह मंत्रालय को हुई।
ये दस्तावेज पी०सी० के अण्डर में थे। पुलिस ने चौहान की खोज की और वे नहीं मिले तो दो रोज पहले विभाग की ओर से जगन और बंदूक सिंह को नियुक्त किया गया था लेकिन आज दूसरा रोज है...उसकी ओर से किसी प्रकार की रिपोर्ट नहीं मिली...और न उनका पता चला। पी०सी० चौहान के ऑफिस न पहुंचने पर उन तालों को तोड़ा गया जिनमें फाइलें थीं। वे फाइलें गायब हैं। जगन और बन्दूक सिंह गायब हैं।
कल रात्रि में जयंत को इस केस पर नियुक्त किया गया और अब तक जयंत का पता नहीं चला। जयंत की ओर से अन्तिम सूचना फोन पर मिली थी कि उन्हें एक महत्वपूर्ण सुराग मिल गया है...वे इस समय एक व्यक्ति का पीछा कर रहे हैं।”
चौहान की लाश कल शाम उसके अपने फ्लैट पर पाई गई है। जयन्त में अपनी जांच की रिपोर्ट में कहा है कि चौहान ने आत्महत्या की है।
मुझे रोडेशिया जाना है...वर्ना इस पूरे मसले को मैं अपने ढंग से सुलझाता।” राजेश ने कहा।
“बड़े भाई! आप चिन्ता न करें। मैं इस मिशन पर अभी से लग जाता हूं...।”
चीफ चक्रवर्ती ने अपनी मेज की ड्राज खोली और उसमें से कैबिनेट साइज का एक फोटोग्राफ निकाला।
पी०सी० चौहान के साथ यह युवती देखी गई थी।
विकांत ने उस फोटोग्राफ को हाथ में ले लिया।
वह एक खूबसूरत युवती का फोटोग्राफ था। विक्रान्त कुछ पलों तक उस आकर्षक फोटोग्राफ को देखता रहा।
“फोटोग्राफ का विवरण पीछे अंकित है।” राजेश ने कहा।
विक्रान्त ने फोटोग्राफ को घुमाया।
नजराना, उम्र सोलह वर्ष, निवासी ईरान, भारत भ्रमण एक माह के लिए।
विक्रान्त की मस्तिष्क में नजराना का नाम पहले से ही था, किन्तु उसे उसकी राष्ट्रीयता या देश की जानकारी नहीं थी।
“यह राजदूत की निकट सम्बन्धी है। चीफ चक्रवर्ती ने कहा—“चौहान की हत्या के सम्बन्ध में पुलिस के कई वरिष्ठ अधिकारी नजराना से मिल चुके हैं...सिर्फ सन्देह के आधार पर किसी भी विदेशी नागरिक को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता...दूसरे जिसका राजदूत से निकट का रिश्ता हो...कितना बड़ा मामला उठकर खड़ा हो सकता है।
नजराना का नाम विक्रान्त के मस्तिष्क में गूंजने लगा था।
“ऑल राइट चीफ...मैं पूरा मामला समझ गया।” विक्रान्त खड़ा होता हुआ बोला—“यह समझौते की फाइलें अरब देशों के जासूसों द्वारा गायब हुई हैं...नजराना ईरानी जासूस हो सकती है...।”
“लेकिन आप चिन्ता न कीजिए...मैं पूरे प्रमाण के साथ नजराना पर हाथ डालूंगा...सबसे पहले मैं नजराना से मिलूंगा।”
“ओ०के०...।” राजेश ने कहा—“मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है...मुझे आशा है कि तुम सफल होगे।”
विक्रान्त खुफिया विभाग की इमारत से बाहर आया। इस बार उसके चेहरे पर परिवर्तन था...यहां तक कि उसकी ड्रेस भी बदली हुई थी। वह ईरानी-सा लग रहा था। सड़क पर आते ही उसने एक खाली जाती टैक्सी को रोका।
सिर मुण्डाते ही ओले पड़े—कहावत चरितार्थ हुई।
वह उस दूतावास के सामने पहुंच गया...जिसके राजदूत से नजराना का सम्बन्ध था।
टैक्सी वह पहले ही छोड़ चुका था।
विक्रान्त ने अपने ही तरीके से जानकारी प्राप्त की और उसे मालूम हुआ कि अभी कुछ देर पहले नजराना दूतावास में आई है।
उसकी आंखों में तेज चमक उत्पन्न हुई।
वह कर्मचारी अभी समीप ही खड़ा था कि फुसफुसाया—“वह देखो बाहर निकल रही है।”
विक्रान्त का हाथ जेब की ओर बढ़ा और एक सौ का नोट धीरे से उसकी और बढ़ा दिया। वह युवक खुश होकर एक ओर चल दिया।
नजराना किसी रूपगर्विता शहजादी के समान चलती हुई उस स्थान पर आई—जहां उसकी कार खड़ी थी। एक वर्दीधारी कर्मचारी ने शीघ्रता से आगे बढ़कर कार का दरवाजा खोला।
वह कार की पिछली सीट में अपनी वैनिटी बैग को हिलाती हुई बैठ गई।
अगले ही पल कार चल पड़ी थी।
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Additional information
Book Title | आखिरी दांव : Aakhri Dav |
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Isbn No | |
No of Pages | 240 |
Country Of Orign | India |
Year of Publication | |
Language | |
Genres | |
Author | |
Age | |
Publisher Name | Ravi Pocket Books |
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