आधा पागल
“लो बाऊजी—एक पैग लगा लो।”
“ऊहूं....मैं ऐसे नहीं पीयूंगा।”
“तो फिर कैसे पीयेंगे बाऊजी?”
“मुर्गा ला साथ में। मुर्गा समझता है न दो टांगों वाला—एक चोंच वाला—लाल रंग का।”
“मैं समझ गया बाऊजी। मैं अभी लाया।”
कहकर जोरावर ने अपने पीछे खड़ी युवती की तरफ इशारा किया जो कि सिर्फ पैंटी और ब्रा पहने हुए थी।
युवती तुरंत वहां से हटी और शीघ्र ही वह वापस लौटी तो उसके हाथ में एक प्लेट थी जिसमें कि भुना हुआ मुर्गा था।
जोरावर ने उससे प्लेट ली और सिंहासन नुमा कुर्सी की तरफ मुड़ा जिस पर सफेद रंग का कुर्ता-पायजामा पहने करीब पचास साल का व्यक्ति बैठा था।
उसका कुर्ता-पायजामा इस कदर मैला हो रहा था मानो कई दिनों से उसने वही पहन रखा हो। जगह-जगह राल टपकने के निशान पड़े हुये थे।
कुर्ता-पायजामा पहने वह शख्स अयोध्या प्रसाद था।
अयोध्या प्रसाद का इस वक्त का हुलिया बहुत बिगड़ा हुआ था—उसके सफेद बाल उलझ रहे थे—आंखों में सूनापन नजर आ रहा था—दाढ़ी बढ़ी हुई थी और चेहरा पसीने के जम जाने से काला हो रहा था।
गोल चेहरे वाला अयोध्या प्रसाद अण्डरवर्ल्ड का बेताज बादशाह था।
उसे जानने वाले कहते हैं कि वह बिहार का रहने वाला था। वहां किसी बात पर उसका पड़ोसी से झगड़ा हो गया और उसने गुस्से में आकर उस पूरे परिवार को ही जिन्दा जला डाला था और फिर वहां से भागकर यहां रामनगर में आकर रिक्शा चलाने लगा।
एक रिक्शा चालक से तरक्की करते-करते आज वह अण्डरवर्ल्ड का डॉन बना हुआ था।
बड़े-बड़े लीडर—पुलिस अफसर उसके दरबार में आकर उसे सलाम करते थे।
वह जिसके भी सिर पर हाथ रख देता—उसका तो समझ लो बेड़ा पार हो गया और जिस पर उसकी नजर टेढ़ी पड़ जाती, समझो उस पर शनि सवार हो गया।
इस वक्त वह अपनी सिंहासन नुमा कुर्सी पर पैर रखे घुटनों को छाती से लगाये कुछ सहमा-सहमा-सा नजर आ रहा था।
उसकी आंखें बता रही थीं कि उसका दिमाग कुछ हिला हुआ है।
जोरावर—
गैंडे जैसा सख्त शरीर वाला काले रंग का व्यक्ति उसका बॉडीगार्ड होने के साथ-साथ उसका दायां हाथ भी था।
उसने पैग और प्लेट अयोध्या प्रसाद के सामने रखी और उदास स्वर में बोला—
“लीजिये बाऊजी—मुर्गा भी आ गया।”
अण्डरवर्ल्ड में अयोध्या प्रसाद को बाऊजी के नाम से ही जाना जाता था।
चिकन देखकर अयोध्या प्रसाद ऐसे खुश हुआ—जैसे किसी बच्चे को उसकी मनपसंद डिश मिल गई हो।
उसने तुरंत प्लेट में से मुर्गा उठाया और उसकी एक टांग तोड़कर बाकी का मुर्गा प्लेट में वापस रखा और जोरावर से पैग लेकर उसकी तरफ देखा।
“खा लूं?” वह ऐसे सिर हिलाकर बोला जैसे खाने की इजाजत मांग रहा हो।
जोरावर ने जबरदस्ती होंठों पर मुस्कान लाते हुए इजाजत देने वाले अंदाज में सिर हिलाया।
अयोध्या प्रसाद ने टांग को पैग में डुबोया और फिर उसे खाने लगा।
घिन लाने वाली हरकत थी यह उसकी। मगर जोरावर के चेहरे पर जरा भी घिन नहीं थी।
“ऐसे तो बड़ा मजा आता है।” वह खुश होते हुए बोला।
“हमें तो बाऊजी की खुशी चाहिये बस।” जोरावर होंठों पर मुस्कान लाते हुए बोला।
टांग खाते हुए ही अयोध्या प्रसाद ने सामने देखा—
सात आदमी हाथ बांधे खड़े थे उसके सामने।
वे सभी अयोध्या प्रसाद के वफादार थे।
“तुम सब भी मजा लो।” वह टांग आगे कर उन सातों की तरफ घुमाते हुए बोला—“इन सभी को मुर्गा दो और पैग पिलाओ।”
बात करने के दौरान ही दो बार उसके मुंह से थूक निकलकर उसके कपड़ों पर गिरी—साथ ही दांतों द्वारा पिसा हुआ गोश्त भी थोड़ी बहुत मात्रा में टपका।
“जो हुक्म बाऊजी।”
जोरावर तुरंत बोला और गर्दन पीछे मोड़ अपने पीछे खड़ी युवती की तरफ देखा।
युवती उसके इशारा करने से पहले ही समझ गयी—सो वह तुरंत मुड़ी और हॉल से बाहर निकल गई।
अयोध्या प्रसाद टांग को बार-बार शराब में डुबोकर उसे खा रहा था। ऐसे में शराब तथा उसकी राल उसके कपड़ों पर बार-बार गिर रही थी।
थोड़ी देर बाद युवती हाथों में बड़ी ट्रे उठाये वहां पहुंची और जोरावर के इशारे पर वहां खड़े सातों आदमियों के सामने जा खड़ी हुई।
ट्रे में सात गिलास शराब से लबालब भरे थे और एक प्लेट में मुर्गे की टांगें रखी थीं। बारी-बारी से सभी एक-एक गिलास और टांग उठाने लगे।
युवती उनके सामने से हटी तो सभी के हाथों में एक-एक गिलास था और दूसरे हाथ में टांग थी।
“खाओ....खाओ! बड़ा मजा आयेगा।”
अयोध्या प्रसाद टांग वाला हाथ हिलाते हुए बोला।
सभी सातों ने अपने-अपने हाथ में पकड़ी टांग गिलासों में डुबोई और उसे खाने लगे।
अयोध्या प्रसाद अपनी आंखें चमकाते हुए सभी को देख रहा था।
तभी उसकी चमकती आंखों में सहसा ही कहर उभर आया।
चेहरा वीभत्स हो उठा।
उसकी खूंखार हो रही आंखें दायीं तरफ के दूसरे व्यक्ति पर टिकी हुई थीं—जिसका चेहरा ऐसा हो रहा था जैसे उसे मांस को इस तरह खाने से घिन हो रही हो।
सहसा ही अयोध्या प्रसाद के हाथ में थमी मुर्गे की टांग उसके हाथ से छूटी और सीधी उस व्यक्ति के मुंह पर जा पड़ी।
बुरी तरह से हड़बड़ा उठा वह।
इधर अयोध्या प्रसाद ने फौरन जेब से रिवॉल्वर निकाली और—
‘धांय!’
गोली सीधी उस व्यक्ति के सीने में जा धंसी।
हाथ में पकड़ा पैग और मुर्गे की टांग उसके हाथ से छूट गईं और वह सीने को पकड़े औंधे मुंह कटे वृक्ष की तरह फर्श पर जा टकराया।
“साला हरामी—मुंह बना रहा था—!” गुस्से में गुर्राया अयोध्या प्रसाद—“इतनी स्वादिष्ट टांग खा रहा था—वो भी फोकट में—फिर भी मुंह बना रहा था।”
सभी के चेहरे सन्न रह गये।
निगाहें उस लाश पर जा अटकीं जो अभी पल भर पहले हाथों में जाम और मुर्गे की टांग पकड़े था।
वही जाम अब कई टुकड़ों में बंटा उसके आसपास बिखरा हुआ था—और मुर्गे की टांग उसके गाल के नीचे दबी हुई थी।
अयोध्या प्रसाद ने टांगें लटकाईं और पैरों को फर्श पर टिकाते हुए खड़ा हो गया।
जेब में रिवॉल्वर रखते हुए उसने बाकियों की तरफ देखा।
“तुम क्यों रुक गये—खाओ-खाओ।”
सभी ने तुरंत मुर्गे की टांगें शराब में डुबोईं और ऐसे खाने लगे जैसे वे जिन्दगी में पहली बार ऐसी स्वादिष्ट चीज खा रहे हों।
अयोध्या प्रसाद ने रिवॉल्वर कमीज की साईड की जेब में डाली और कमीज से हाथ पौंछते हुए लाश की तरफ बढ़ा।
लाश के करीब आकर वह झुका और लाश के गाल के नीचे दबी मुर्गे की टांग को खींचकर उसे अपने बायें हाथ में पकड़े गिलास में डुबोया और चटखारे लेकर खाने लगा।
जोरावर का दिल कर रहा था कि वह जोर-जोर से रोने लगे। उसका दिल रो भी रहा था—लेकिन अपनी आंखों में आंसू नहीं आने दिये उसने।
कल तक जो अयोध्या प्रसाद दूसरों के सामने अपनी जूठन फैंकता था, आज वो किसी दूसरे की जूठन खा रहा था।
वो भी मजे ले-लेकर खा रहा था।
मगर वह बोला कुछ नहीं, मन-ही-मन अपने आंसुओं को पी गया।
जब अयोध्या प्रसाद ने टांग खा ली और पैग पी लिया तो जोरावर उसके करीब आया और बड़े ही अपनत्व भरे स्वर में बोला—
“आपके सोने का वक्त हो गया है बाऊजी।”
“सोने का वक्त हो गया?” आंखें फाड़ते हुए बोला अयोध्या प्रसाद।
“हां बाऊजी।”
“तो फिर चल—सुला मुझे और बढ़िया-सी लोरी सुनाना।”
“चलो।”
कहकर उसने छहों को लाश उठाने तथा वहां से जाने का इशारा किया और फिर अयोध्या प्रसाद को अपने साथ लेकर हॉल के दायीं तरफ के दरवाजे की तरफ बढ़ गया।
वह अर्धनग्न युवती उनके पीछे-पीछे चल रही थी।
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