आधा कुत्ता आधा शेर
शिवा पण्डित
“आशुतोष भी मारा गया।”
“ओह नो!”
“यह तो बहुत ही बुरा हुआ।”
“अब तो वो लोग और भी सतर्क हो जाएंगे। आशुतोष हमारा तीसरा एजेन्ट था। दो पहले मारे गये थे। अब तीसरा मरा।”
“ऊपर वाले का शुक्र है कि हमारा कोई भी एजेन्ट उनके हत्थे नहीं चढ़ा। उससे पहले ही उसने साइनाइड खाकर अपनी जान दे दी।”
उस गुप्त जगह के गुप्त कमरे में बैठे चार व्यक्ति आपस में बातें कर रहे थे।
कमरे में चार कर्सियां और एक सैन्टर टेबल...जो उन चारों कुर्सियों के बीच रखी थी...के अलावा और कोई भी चीज नहीं थी।
दरवाजे में एन्ट्री करते ही जो शख्स ऐन सामने बैठा था...जिसका मुंह दरवाजे की तरफ था...वह करीब पैंतालीस साल का...इकहरे शरीर वाला व्यक्ति था। जिसका चौड़ा माथा उसके जहीन होने का प्रमाण दे रहा था। उसने नीली जीन्स और ऊपर सफेद टीशर्ट पहन रखी थी।
नाम था केशव दत्त।
केशव दत्त के ऐन सामने...जो दरवाजे की तरफ पीठ किये था...वह भण्डारी था।
भण्डारी करीब पैंतालीस साल का, पहलवानी शरीर वाला आकर्षक दिखने वाला व्यक्ति था...जिसने अपने बायें कान में सोने की छोटी सी बाली पहनी हुई थी।
भण्डारी के बायीं तरफ साधारण कद वाला...साधारण चेहरे वाला रामकिशन पाण्डे बैठा था।
वह चेहरे और कपड़ों से कहीं से भी नजर नहीं आता था कि वह हल्का सा भी तेज-तर्रार है। लेकिन उसकी चमकीली आंखें उसके भीतर की अक्लमन्दी को दिखा रही थीं। चेहरे से भौंदू नजर आने वाला वह रामकिशन पाण्डे उन चारों का हैड था।
रामकिशन पाण्डे के सामने अशोक मिश्रा बैठा था।
अशोक मिश्रा करीब तीस साल का, चेहरे से क्रूर नजर आने वाला व्यक्ति था। मगर उसकी आंखों में जहानत नजर आ रही थी।
उन चारों के बीच रखी सैन्टर टेबिल पर तले हुए काजुओं के साथ स्काच की बोतल रखी थी। और उनके सामने पैग बने हुए रखे थे...जिन्हें उन्होंने अभी छुआ भी नहीं था।
चारों के चेहरों पर गम्भीरता नजर आ रही थी। साथ ही वे उलझे हुए नजर आ रहे थे।
रामकिशन पाण्डे ने बेचैनी से पहलू बदला और तीनों पर नजरें दौड़ाता हुआ बोल—
“भारत सरकार ने हमें वह फाईल लाने का आदेश दिया है। हिन्दुस्तान में हमारी एजेन्सी ही ऐसी है...जिसमें असफलता की कोई गुन्जाइश नहीं। हम साम-दाम-दण्ड-भेद कुछ भी अपना सकते हैं। हमारा मकसद होता है सिर्फ और सिर्फ सफलता, तभी तो सरकार हमें टेढ़े केस ही देती है। वो जो बहुत ही जरूरी और बहुत ही महत्वपूर्ण होते हैं। और जिन्हें हमने वक्त पर अन्जाम तक पहुंचाना होता है। सफलता को हासिल करने के लिए हमें हर हद पार करने की इजाजत होती है।”
“लेकिन इस बार लगता है कि हमारी खुफिया एजेन्सी के दामन पर पहली बार असफलता का दाग लगने वाला है।” अशोक मिश्रा गम्भीर स्वर में बोला—“हमारे एक-एक एजेन्ट पर सिर्फ सरकार ही करोड़ों खर्च कर देती है। हमारी एजेन्सी से कभी हिसाब तक नहीं लिया जाता। हमें बस कहना होता है कि इतना पैसा चाहिये, वो हमें फौरन मिल जाता है। लेकिन लगता है...इस बार सरकार हमसे जवाब-तलबी करेगी। हमारे तीन महत्वपूर्ण एजेन्ट मारे गये। लेकिन काम वहीं का वहीं पड़ा है।”
“हमारे पास सिर्फ दस दिन बचे हैं। अगर हमने इन दस दिनों में वह फाईल लाकर सरकार को नहीं दी तो सरकार यह केस किसी दूसरी खुफिया एजेन्सी को सौंप देगी...और तब क्या होगा...उसका अन्दाजा आप खुद ही लगा सकते हैं। इस वक्त हमारी एजेन्सी टाप पर है। केस के हमारे हाथ से निकल जाने से हमारी रेपुटेशन पर कालिख पुत जायेगी। और जब रेपुटेशन खराब होती है तो हजारों कमियां भी नजर आने लगती हैं। इसीलिये मैंने यह मीटिंग बुलाई है। आप हमारी एजेन्सी के सुपरस्टार हैं। कोई ऐसा रास्ता सोचिये...जिससे हमारे आदमी भी न मरें...और हमारा काम भी सिरे चढ़ जाये।”
रामकिशन पाण्डे उन तीनों पर निगाहें दौड़ाता हुआ बोला। केशव दत्त, भण्डारी और अशोक मिश्रा के चेहरों पर फैली गम्भीरता और भी गहरी हो गई।
“पैग उठाईये।” अपना पैग उठाते हुआ बोला रामकिशन पाण्डे।
तीनों ने भी अपने-अपने पैग उठा लिये। करीब आधा पैग खत्म करने के पश्चात भण्डारी ने पैग वापिस रखा और रामकिशन पाण्डे पर नजरें गड़ाते हुए बोला—
“अण्डरवर्ल्ड में मेरी अच्छी-खासी पैंठ है सर। मैंने कई बड़े-बड़े अपराधियों का गहराई से अध्ययन किया है। कईयों के बारे में जानता भी हूं। बड़े-छोटे अपराधियों में कई ऐसे भी हैं जो हमसे भी तेज दिमाग रखते हैं।”
“आप कहना क्या चाहते हैं?”
“क्यों ना उस फाईल को लाने का काम किसी ऐसे अपराधी को सौंपा जाये...जो अव्वल दर्जे का खतरनाक होने के साथ-साथ तेज दिमाग का भी मालिक हो!”
“भण्डारी साहब ठीक कह रहे हैं सर।” केशव दत्त ने भण्डारी की बात का समर्थन किया—“अब से पहले तो हम कई बार दूसरों की सेवायें ले चुके हैं। हमारा मकसद है सिर्फ कामयाबी...जिसके लिये हमें कोई भी रास्ता अपनाने की पूरी आजादी है। इस बार हम किसी बड़े अपराधी की सेवायें ले लेते हैं। जितना पैसा वो मांगेगा, हम उसे दे देंगे। इस तरह अगर वो मारा भी गया तो हमार कोई नुकसान नहीं होगा। और अगर वो कामयाब हुआ तो फाईल हमारे हाथों में होगी।”
“और अगर उस अपराधी ने फाईल की कीमत समझते हुए किसी और से उसका सौदा कर लिया तो?”
रामकिशन पाण्डे ने शंका जाहिर की।
“तो उसे वहां पहुंचा दिया जायेगा...जहां कोई सौदेबाजी नहीं होती...।” भण्डारी ने छत की तरफ उंगली की।
रामकिशन पाण्डे ने केशव दत्त और अशोक मिश्रा की तरफ देखा...जैसे पूछ रहा हो कि उनकी क्या राय है।
“मेरे हिसाब से तो भण्डारी साहब की राय मान लेनी चाहिये सर।” अशोक मिश्रा बोला—“हमें किसी भी हालत में अपनी नाक बचानी है।”
“मैं भी यही राय दूंगा सर।” केशव दत्त बोला। रामकिशन पाण्डे ने वापिस भण्डारी को देखा और गम्भीरता से बोला—
“ओ०के० मिस्टर भण्डारी...अब यह केस आपके हवाले हुआ। मगर इसमें आपको सिर्फ पांच दिन ही मिलेंगे।
पांच दिन में आप कुछ भी कर सकते हैं। उसके बाद केस आपसे वापिस ले लिया जायेगा।”
“थैंक्यू सर। मैं कोशिश करूंगा कि फाईल पांच दिन से पहले ही आपके हाथ में पहुंच जाये।”
कहते हुए भण्डारी ने अपना पैग उठाया और होंठों से लगा लिया।
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“क्या रेट है?”
“पच्चीस मांग रहा है मालिक। उम्मीद है कि बाइस-तेइस में सौदा हो जायेगा।”
काले खां का वह प्रापर्टी डीलर अर्जुन त्यागी को देखते हुए बोला।
“बहुत मंहगा है।” गौरी बोली।
उस वक्त अर्जुन त्यागी और गौरी उस मकान के एक कमरे में खड़े थे...जिसका सौदा वे कर रहे थे।
दिल्ली में मन्त्री की हत्या करने के बाद भी उनके पल्ले कुछ नहीं पड़ा था। हां, अर्जुन त्यागी को पार्टनर के रूप में गौरी जरूर मिल गई थी...जो उसी की तरह खतरनाक और बेरहम थी। और धोखा देना तो उसके खून में शामिल ही था...तभी तो उसने अर्जुन त्यागी को ही गोली मार दी थी...बाद में बस तभी से दोनों एक हो गये थे।
(गौरी के बारे में विस्तार से जानने के लिए पढ़िए पूर्व प्रकाशित उपन्यास ‘एक हसीना एक कमीना’ जोकि बुकमदारी पर उपलब्ध है।)
दिल्ली से भागते वक्त उनके पास वही चालीस लाख था...जो गौरी ने अकेले के दम पर लूटा था।
वहां से भागकर वे सीधे ही मुम्बई आ पहुंचे थे।
एक सस्ते से होटल में कमरा लेकर उन्होंने रात वहां बिताई। और आज वे मकान खरीदने के लिए निकल पड़े थे। सुबह से शाम हो गई थी। और अब जाकर उन्हें दो कमरों का वह मकान पसन्द आया था...जो पाश एरिया में तो नहीं था...मगर वह एरिया स्लम भी नहीं था।
मिडिल क्लास लोग थे वहां। और वो मकान इंडिपेंडेंट था। यानि छत भी उस मकान की अपनी थी। कल को वो अपनी मर्जी से ऊपर भी कमरे बनवा सकते थे। और अब उसका सौदा हो रहा था।
प्रापर्टी डीलर ने गौरी की तरफ देखा।
“अगर आप उसे मंहगा बता रही हैं तो मैं ये कहूंगा मैडम कि इससे सस्ता आपको कहीं नहीं मिलने वाला है। यह मुम्बई है मैडम...यहां एक इंच जगह की भी इतनी कीमत है...कि आम शहरों में इतने में तो एक नया मकान मिल जाता है। बहुत सस्ता सौदा मिल रहा है आपको। मौका है...उसका फायदा उठाइये, वरना बाद में पछताना पड़ेगा।”
गौरी ने अर्जुन त्यागी की तरफ देखा—“क्या कहते हो डियर?”
अर्जुन त्यागी ने जेब से पचास हजार की एक गड्डी निकाली और प्रापर्टी डीलर की तरफ उस गड्डी को बढ़ाते हुए बोला—
“आप सौदा कीजिए। कल हम ब्याना लिखवा लेंगे।”
“मेरी कमीशन एक प्रतिशत होगी।” गड्डी लेते हुए बोला प्रॉपर्टी डीलर।
“मालूम है।” कहते हुए अर्जुन त्यागी मुस्कराया।
“आप बाहर से आये हैं या मुम्बई के हैं?” गड्डी जेब में डालते हुए प्रॉपर्टी डीलर ने पूछा।
“क्यों?” अर्जुन त्यागी के माथे पर बल पड़ गये।
“ऐसी कोई खास बात नहीं। अगर आप महाराष्ट्र से बाहर से आए हैं तो आपको रजिस्ट्री का दो परसेन्ट ज्यादा भरना होगा।”
“कोई बात नहीं—हम दे देंगे...।” गौरी बोल दी।
“ओ०के०। तो सौदा होते ही मैं आपको कहां कान्टैक्ट करूं?”
“होटल नटराज में ठहरे हैं हम।” अर्जुन त्यागी बोला—“आप हमें होटल के फोन पर बता देना। मेरा नाम शेखर है...और यह मेरी पत्नी रानी है। रूम नम्बर तीन सौ तीस में ठहरे हैं हम।”
“ओ०के०...ऊपर वाले ने चाहा तो मैं जल्दी ही आपको खुशखबरी दूंगा।”
कहकर उसने अर्जुन त्यागी से बड़ी गर्मजोशी से हाथ मिलाया और फिर उनके साथ दरवाजे की तरफ बढ़ गया।
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