36 इंच का शैतान
‘भड़ाक्’-से उसके नितम्बों पर ठोकर पड़ी तो वह साढ़े छ: फीट का भैंसे जैसा आदमी कराहता हुआ फर्श पर औंधे मुंह गिरा।
उसका चेहरा खौफजदा हालत की वजह से राख की मानिन्द बुझा पड़ा था। आंखों में मौत की परछाई थिरक रही थी। सारा जिस्म पसीने से गीला था, मानों उस पर बाल्टियों से पानी डाला गया हो।
उसने अपना चेहरा ऊपर उठाया तो खौफ के कारण उसका पूरा बदन जूड़ी के मरीज की मानिन्द कांपने लगा।
आश्चर्य! उसके सामने जो कदम आकर रुके थे, वे केवल छत्तीस इंच के इंसान के थे, लेकिन उस का चेहरा यूं दहककर सुर्ख हो रहा था, मानों कोयले को जलती भट्टी में गिरा दिया हो।
धड़ से पैरों तक का काला सारा चोंगा पहन रखा था उसने। गले में सोने की छ: चेन...सबसे मोटी चेन जो एक उंगली भर मोटी थी, उसमें अटकी हुई चांदी से बनी कंकाल की खोपड़ी उसके सीने पर झूल रही थी। वह खोपड़ी एक सौ ग्राम के अमरूद के आकार की थी। आंखें...मानों दो कोयलों की भट्टियां सुलग रही थीं। कानों का आकार असाधारण तरीके से बड़ा था तथा वे ऊपर से नुकीले थे।
उसने अपने पैरों के चोंचदार जूतियां पहन रखीं थीं। सिर एकदम सफाचट...कुदरती ही सफाचट था मानों कुदरत ने उसको पहले ही घोटकर धरती पर भेजा हो।
उसने अपने सामने फर्श पर पड़े औंधे भैंसे जैसे आदमी के सिर पर अपना पैर टिकाकर उसे यूं दबा दिया मानों तेजी से भागती कार का ब्रेक लगा हो। होठों से चोटिल सांप की-सी फुंफकार खारिज हुई—“क्यों बे खबीस के पिल्ले! तू हमारे राज्य में रहता है और हमारे ही दुश्मन के गुण गाता है? हरामी के पिल्ले—तू भूल गया कि शैतान के राज्य में इंसानों के कसीदे नहीं पढ़े जाते। तू जानता है ना साले, हमारे राज्य का सबसे बड़ा जुर्म क्या है? सबसे बड़ा गुनाह क्या है हमारे राज्य का? हमारे दुश्मन की बढ़ाई करना...और तू हसन शाह की बढ़ाई कर रहा था....अपने घर के सामने खड़ा होकर।”
“शैतान जी, मुझे माफ कर दो।” हलाल होते बकरे की मानिन्द गिड़गिड़ाया वह भैंसा फर्श पर पड़ा-पड़ा। आंखों से अश्रुधारा बह चली थी—“मैं बहक गया था, और मैं भी क्या करता, शैतान जी! इंसान भले ही जितना भी चुप रह ले, सच बात जुबान से निकल ही आती है।
शैतान जी, मेरा अब्बा आपसे पहले शहंशाह के महल का खानसामा हुआ करता था। पहले शंहशाह बहुत मेहरबान टाइप के आदमी थे। एक बार मेरी अम्मी को जब पहला बच्चा होने वाला था...तब उन शहंशाह ने ही मेरे बड़े भाई के पैदा होने का जश्न मनाया था। सारे महल में लड्डू बंटवाए थे। बाद में उनके मरने के बाद मेरी बहन के निकाह का सारा खर्च उनके बेटे हसन शाह ने किया था। मेरी बीवी बहुत ज्यादा हसीन है, उसको देखकर सब लार टपकाते हैं, मगर हसन शाह ने जब उसको देखा तो उससे इतना प्रभावित हुआ कि उसको अपनी बहन बना लिया। हर साल मेरी बीवी उसको राखी बांधा करती थी। अब, जब से हसन शाह को तख्त पर से उतारकर आपने देश पर राज्य करना शुरू किया है तथा हसन शाह को यहां से भगाया है, मेरी बीवी का उसको राखी बांधना बन्द हो गया है। वो हर साल राखी के दिन उनको याद करके रोती है।”
“अच्छा!” शैतान की आंखों में वासना के कीड़े गिजगिजाने लग गए—“तो इतनी हसीन है तेरी बीवी कि जो भी उसको देखता है, वो उस पर लार टपकाने लग जाता है।”
“न...नहीं श...शैतान जी।” वह गड़बड़ाए स्वर में बोला—“इ...इतनी भी हसीन नहीं है वो। अब तो उसकी खूबसूरती पूरी तरह खत्म हो गई है। वो चार-चार बच्चे पैदा करके मोटी भैंस-सी हो गई है। उसकी सारी मादकता भौंडेपन में तब्दील हो गई है...मेरा तो उसके पास तक जाने का मन नहीं करता है। श...शैतान जी, छोटे-छोटे बच्चों की नाक पोंछ-पोंछ कर तो उसकी हथेलियों में भी सड़ांध आने लग गई है...अब तो कोई भी उसकी तरफ देखना भी पसन्द नहीं करता।”
उसी समय एक सैनिक बोला। वो वही काले कपड़ों वाला था, जिसके कन्धे पर एoकेo-47 लटकी थी...जिसने उसको नितम्बों पर लात मारके गिराया था—“ये झूठ बोल रहा है शहंशाह जी।”
शैतान ने उसकी ओर देखा।
“शहंशाह जी, वो तो एकदम पटाखा है पटाखा।” वही काले कपड़ों वाला सैनिक बतलाता चला गया—“जालिम चार-चार बच्चों को पैदा करके भी बड़ी मादक लगती है। उसको देखकर मेरे बदन में बिजली-सी दौड़ती चली गई। मेरी तो ये समझ में नहीं आ रहा कि इतनी हसीन छोकरी को उसके बाप ने इस सांड के पल्ले कैसे बांध दिया। उसको तो कोई भी नवाबजादा बिना एक भी चवन्नी का दहेज लिए अपनी शरीके हयात बनाने के लिए तैयार हो जाता...कोई भी शहंशाह अपनी नूरजहां बनाने को तैयार हो जाता।
बादशाह सलामत, वो जब इसके करीब खड़ी होती है तो मालूम है मानों सांड की बगल में हिरनी को खड़ा कर दिया गया हो। गधे के साथ मोरनी को...।”
“धांय...धांय...!” के धमाकों से महल का जर्रा-जर्रा कांपकर रह गया उसी पल। मानों गोलियों की बाढ़ उस सैनिक के जिस्म से टकराई तो वह चीखता हुआ फर्श पर गिरकर तड़पने लगा।
शैतान ने वे सारी गोलियां उस सैनिक पर चलाई थीं। उसका चेहरा जो कि पहले भट्टी में जलते कोयले की तरह दहक रहा था...अब वहां मानों ज्वालामुखी का लावा तैरने लग गया था। आंखों में खून-ही-खून उतर पड़ा था।
“खबीस के पिल्ले!” वो फर्श पर तड़पते घायल सैनिक की तरफ बढ़ता हुआ फुंफकारा—“अगर वो सच में इतनी हसीन है, तो उसको तू उठाकर क्यूं नहीं लाया? साले, तेरे को मालूम तो है ना, जब भी हम किसी हसीन नाजनीन के हुस्न के कसीदे सुनते हैं, तो हमारे जिस्म का खून दहकता हुआ तेजाब बन जाता है। हमारा बदन यूं जलने लगता है, मानों हमें बुद्ध ग्रह पे ले जाकर सूरज के एकदम पास बैठा दिया गया हो...हमारी आंखों के सामने ब्लू फिल्म के सीन नाचने लगते हैं।
हम जब तक उस हसीन-नाजनीन की जवानी का स्वाद ना चख लें, तब तक हमें नींद नहीं आती। तेरे को ये तो मालूम है ना? एक बार हमारा दिल पूर्वी प्रान्त के एक नवाब की बेटी पर आ गया था। हमने उसको अपने घर पर दावत के लिए बुलाया तो मालूम नहीं किस प्रकार उस खबीस को हमारे इरादे पर शक हो गया और वह अपनी बेटी को लेकर भाग गया था। हमने उसको, खोजवाने के वास्ते सारा मुल्क भूसे के ढेर की मानिन्द खंगाल डाला। हमें जिस पर भी ये शक हुआ कि वह नवाब का पता जानता हो सकता है, उसको गिरफ्तार करवाकर उसको टॉर्चर करना शुरू कर दिया। उस अभियान में पचास लोगों की जानें गईं। डेढ़ सौ लोग हमारे टॉर्चर के कारण पागल हो गए तथा बीस लोगों ने गिरफ्तारी से पहले अपनी जान खुद ले ली।
एक महीना लगा था हमें उसको खोजने में। उस एक महीने में हम एक पल के लिए नहीं सो सके थे। अगर हम अपनी आंखें बन्द करते थे, तो उसी नाजनीन की शक्ल हमारे सामने घूम जाती थी। बहुत तड़पते थे हम। हमारे हकीम ने कह दिया था कि यदि एक हफ्ते हमारा यही हाल रहा तो हम आठवें दिन पागल हो जाएंगे। तू हमको पागल कर देना चाहता था? अगर वो नाजनीन हमारे खौफ की वजह से भाग गई तो एक बार फिर उसको खोजवाने के लिए हमको अभियान चलाना पड़ेगा। फिर से कत्ले-आम होगा। हम फिर जागेंगे। हम फिर टेंशन में आ जाएंगे।”
उसने कहते-कहते अपनी चोंचदार जूती की ठोकर सैनिक को मारी, मगर वह नहीं कराहा। बेचारा कराहता भी कैसे...वो तो मर चुका था।
“जाओ...।” शैतान चिल्लाया—“उसे पड़ककर लाओ खबीस के पिल्लो! अगर छ: घन्टे के भीतर-भीतर उसको हमारे सामने पेश नहीं किया गया तो हम तुम सबकी बीवी-बेटियों पर अपने कुत्ते छुड़वा देंगे।”
सबके सब कांप गए।
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“अम्मी, अब्बू आ जाएंगे ना?” सात साल की मासूम-सी बच्ची ने बेहद भोलेपन से सवाल किया—“उनको वो काले कपड़ों वाले आदमी कहां पे लेके गए हैं? अम्मी, वो काले कपड़ों वाले लोग ना बहुत गन्दे हैं। वो अब्बू को बहुत खराब-खराब गालियां बक रहे थे। आप कहती हैं न जो लोग गन्दी-गन्दी गालियां बकते हैं, उनको जहन्नुम में से शैतान आकर पिटाई करता है...मगर वो लोग तो गालियां बकते वक्त जरा से भी नहीं डर रहे थे।”
“डरेंगे मेरी बच्ची, वो भी डरेंगे।” उसको अपनी बांहों में भरकर उस बेहद खूबसूरत औरत ने अपने सीने से लगाते समय कहा—“हां, जरूर डरेंगे। जरूर डरेंगे वो शैतान लोग। उनको शायद मालूम नहीं कि उनसे बड़ा शैतान जहन्नुम में उनका इन्तजार कर रहा है। वो लोग भले ही चाहे जितने भी जुल्म इस मुल्क की जनता पे कर लें, उसको अपनी करनी की सजा मिलकर रहेगी। इनको यहां पर आकर कोई इनके किए की सजा तो देगा ही, साथ ही ये सारे नासपीटे दोजख की आग में कीड़े-भुनगों की मानिन्द भुनेंगे। जहन्नुम के जल्लाद इनको आग के ऊपर इस तरह भूनेंगे जैसे लोग बकरे को लटकाकर भूना करते हैं।”
“अम्मी...ये जहन्नुम के जल्लाद क्या इन गन्दे लोगों से भी ज्यादा भयानक होते हैं?” बच्ची ने सवाल किया।
“हां...बहुत भयानक होते हैं। अगर ये लोग उनके सामने चले जाएं ना....तो डर के मारे इनका सू-सू निकल पड़ेगा।”
वह बतला ही रही थी कि भड़ाक् से मकान का दरवाजा खुला।
बच्ची ही नहीं बच्ची की मां भी इस प्रकार उछल पड़ी चिहुंककर, मानों बम फटा हो।
दरवाजे पर चार-पांच काले कपड़े वाले खड़े थे। जिनको देखते ही बच्ची सहमकर अपनी अम्मी की गोद में सिमटकर रह गई तथा
उसकी अम्मी की आंखों में ऐसे भाव थे मानों बकरी ने अपने सामने शेरों का झुण्ड खड़ा देख लिया हो। सबकी आंखों में वासना के गिजबिजाते कीड़े उसको सांप-बिच्छुओं से प्रतीत हो रहे थे, जो पता नहीं किस समय उनकी आंखों में से बाहर निकलकर उसको काटने लगें।
“अब क...क्या लेने आए ह...हो तुम लोग?” अपना खौफ दबाने की कोशिश करते हुए उसने सवाल किया—“मेरे शौहर को तो तुम लोग लेकर चले गये थे। उन्होंने तो कभी भी ऐसा कोई काम नहीं किया जिससे कि इस मुल्क के कायदे-कानून पर चोट पहुंचती हो।”
“कौन कहता है तेरे को कि तू कायदे-कानून पर चोट मत पहुंचा?” काले कपड़ों वाला दढ़ियल बोला—“इस मुल्क में कायदे-कानून को चोट पहुंचाना कोई जुर्म नहीं। जुर्म है तो बस शहंशाह के खिलाफ बात करना तथा उसके किसी दुश्मन की बढ़ाई करना।” सभी अन्दर आए। बोले—“चल हमारे साथ चल। तेरे को भी शहंशाह ने अपने पास याद फरमाया है। शहंशाह तेरे से मुलाकात करना चाहता है।”
“नहीं-नहीं...।” वह डर से थरथराने लग गई—“म...मैं नहीं जाऊंगी श...शहंशाह के पास।”
बस...उसके पश्चात् उन जल्लादों ने उस हसीना को ना तो ऑर्डर दिया, ना ही कुछ कहा। सबने उसको जबरदस्ती उठा लिया तथा यूं लेकर चल दिए जैसे कसाई किसी विद्रोही अड़ियल बकरे को हलाल करने के वास्ते ले जाया करते हैं। चारों ने उसके हाथ-पांवों को पकड़कर लटका रखा था। मासूम बच्ची जो कि अपनी अम्मी को आजाद करने के वास्ते उनके पैरों में चींचड़ी की मानिन्द लिपट गई थी, उसको एक जल्लाद ने गोद में भर लिया तथा उठाकर चल दिया।
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