विषकन्या
सेंट राफेल सिटी स्टेशन से बाहर निकलते ही जिस पहली चीज पर मेरी नजर पड़ी वह एक सुनहरे बालों वाली बिकनी पहने खूबसूरत गुड़िया सरीखी लड़की थी, अपने सिर पर ठेले के पहिये जितना बड़ा तिनकों वाला हैट पहने थी और आंखों को चेहरे से बड़े शीशे वाले चश्मे से ढका हुआ था, उसके खूबसूरत जिस्म का आवरण, उसकी चमड़ी, सुनहरी साटिन जैसी थी। उसके शरीर की बनावट ऐसी थी कि उसे गढ़कर ईश्वर को भी गर्वानुभूति हुई होगी।
जब वह इत्मीनान और ठहराव से अपनी कैडीलक में सवार हो रही थी, तब कुछ तन्हा मर्द अपनी आंखों से उसकी सुंदरता का रसास्वादन कर रहे थे।
मैंने भी अपनी आंखें सेंकीं।
पहले वह ड्राइविंग व्हील के पीछे बैठी, फिर अपनी भवों को उठाकर अपने कद्रदानों को देखा और अन्ततः जब वह कार से रवाना होने को थी, तब उसने मुंह चिढ़ाते हुए मेरी ओर देखा।
मेरा सामान उठाए कुली ने मुझे कोहनी मारी।
“अगर अभी इसी से तुम्हारी आंखें फट पड़ रही हैं।”—वह बोला—“तो समुन्द्र किनारे तट पर पहुंचकर तो तुम्हारी ऐसी-तैसी फिर जाएगी। टैक्सी चाहिए तुम्हें?”
“ऐसी-ऐसी और भी हैं?” मैं हैरान होते हुए बोला—“अगर मेरे शहर में कोई लड़की इतना जिस्म दिखाये तो सीधे जेल में पहुंचे।”
“अरे यहां—यह शहर सड़ रहा है ऐसी लड़कियों से।” कुली मुझसे बोला—“यह सेंट राफेल सिटी है और यहां सब चलता है। पर फिर भी किसी मुगालते में न रहें। यहां की दानिशमंद लड़कियां दिखाती ज्यादा हैं, मगर पल्ले कुछ नहीं पड़ने देतीं। ये एक ही जुबान समझती हैं, पैसे की। तुम्हें टैक्सी चाहिए?”
मैंने हामी भरी, और रूमाल निकालकर अपने चेहरे पर उभर आए पसीने को पोंछा।
दिन के साढ़े ग्यारह बज रहे थे, और सूरज अपने जलाल पर था। उस समय मानो आग बरस रही थी। लोग स्टेशन से निकलकर, बाहर इंतजार करती कारों, टैक्सियों और तांगों की ओर बढ़ रहे थे। सेंट राफेल शहर पर्यटकों का पसंदीदा शहर था और लोग यहां छुट्टियां मनाने आते थे। मैं उम्मीद कर रहा था कि जैक ने मेरे लिए एक कमरा बुक करवा दिया होगा।
एक टैक्सी मेरे सामने आकर रुकी। कुली ने व्यवसायिक कुशलता से मेरा सामान उसमें रखा। मैंने उसका भाड़ा अदा किया और वह पलटकर तेज कदमों से वापस लौट गया।
“अडैल्फी होटल।”—मैं ड्राइवर से बोला। मैं टैक्सी में सवार हुआ और फिर अपने चेहरे का पसीना पोंछने लगा। गर्मी बेइन्तहा थी।
टैक्सी भीड़ भरे रास्ते में बड़ी कठिनाईपूर्वक रास्ता बनाती आगे बढ़ी। अगले दो-तीन मिनट बाद वह समुन्द्र को जाने वाले मुख्य मार्ग पर घूम गई। वह एक चौड़ी सड़क थी जिस पर बड़ी चमचमाती सजी-धजी दुकानें थीं, पास में दरख्त थे और मौसमी यूनिफार्म धारी सिपाही थे। पूरे नगर का अंदाज रईसी था, चमचमाती बड़ी-बड़ी कैडीलक और क्लिपर कनवर्टिबल कारें सड़क के दोनों ओर कतारों में खड़ी थीं और हरेक कार मानों बस के आकार की थी।
नवाबी शहर का नवाबी अंदाज।
मेरी टैक्सी ट्रेफिक के साथ रेंगती-सी चल रही थी और मैं खिड़की के रास्ते औरतों को देख रहा था। वे तकरीबन बिकनी में थीं पर कुछ अन्य प्रकार के परिधानों में भी दिखाई दे रही थीं।
ड्राईवर ने मेरे चेहरे के भावों को देखा, खिड़की के बाहर थूका और बोला—“गोश्त की दुकानें सजी मालूम होती हैं।”
“मैं भी यही सोच रहा था कि इन औरतों को देखकर मुझे कौन-सा नजारा याद आ रहा है।” मैं बोला—“बढ़िया शहर है तुम्हारा।”
“अच्छा! मुझे तो यह फूटी कौड़ी का नहीं लगता। यहां तो जैसे सिर्फ लखपतियों का राज है। गरीब आदमी को तो अगर यहां रहना पड़े तो अपना गला काट ले। इतने से इलाके में इतने लखपति दुनिया के अन्य किसी देश में ना होंगे। मालूम है?”
मैंने उसकी बात सुनकर इंकार में गर्दन हिलाई और सोचने लगा कि पता नहीं मेरे पास उपलब्ध धनराशि वहां के हिसाब से उपयुक्त थी या नहीं। मैं जानता था कि जैक से पैसे उधार मांगने की कोशिश करना बेकार थी।
टैक्सी होटल के सामने जाकर रुकी।
मैं बाहर निकला। मैंने निगाह उठाकर देखा तो पाया कि वह कोई डीलक्स होटल नहीं था। जैक से मुझे ऐसा ही होटल चुनने की उम्मीद थी। लेकिन क्या पता वहां का खाना अच्छा हो। जैक को ऐसे होटलों को तलाश करने में महारत हासिल थी जहां कि खाना बढ़िया मिलता था।
एक ब्वाय ने टैक्सी से मेरा सामान उतार दिया। मैंने ड्राइवर को किराया अदा किया और सीढ़ियां चढ़कर होटल के लाऊन्ज में आ गया।
वह विशाल लाऊन्ज था जिसे पीतल के विशाल ड्रमों में लगे झूमते हुए पाम और कुर्सियों से सजाया गया था, गनीमत यह थी कि वह साफ-सुथरा था।
एक गंजा, मोटा रिसैप्शनिस्ट दांत निकालता हुआ मेरी ओर बढ़ा। उसने अपना हाथ आगे बढ़ाया।
“आपका रिजर्वेशन है साहब?”
मैंने हल्के से उसका हाथ थामा, छोड़ा और कहा—“उम्मीद है! दरअसल मेरा नाम लियु ब्रैंडन है। मिस्टर शेप्पी ने तुम्हें बताया होगा कि मैं आ रहा हूं।”
“बताया था, मिस्टर ब्रैंडन, मैं आपको उनके कमरे से अगला कमरा दे देता हूं।” उसने घंटी बजाई। कहीं से एक बैल ब्वाय प्रकट हुआ—“मिस्टर ब्रैंडन को कमरा न. 247 में ले जाओ।”—उसने फिर मुझे दांत दिखाये—“मिस्टर शेप्पी 247 में हैं। मेरे लिए कोई सेवा हो तो।”—उसने एक-एक शब्द पर जोर दिया—“कोई भी सेवा हो तो फरमाईएगा।”
“धन्यवाद। मिस्टर शेप्पी कमरे में हैं?”—मैं उसका इशारा अनदेखा करते हुए बोला।
“नहीं, वो लगभग एक घण्टा पहले बाहर गए थे।”—वह बड़े ही रहस्यपूर्ण ढंग से मुस्कुराया—“एक युवकी के साथ। मेरे ख्याल में दोनों बीच पर गए थे।”
मैं कतई हैरान न था, मुझे मालूम था कि औरत जैक शेप्पी की कमजोरी थी।
“जब वे आएं तो उन्हें बता देना कि मैं पहुंच गया हूं। मैं अपने कमरे में ही हूं।”—मैं बोला।
“जरूर मिस्टर ब्रैंडन।”
बैल ब्वाय ने मेरा सामान उठा लिया और हम उस लिफ्ट की ओर बढ़ चले जो दिखने में बाबा आदम के जमाने की थी।
रेंगती-सी वो लिफ्ट दूसरी मंजिल पर पहुंची।
कमना न. 245 भट्टी की तरह तप रहा था। आकार में वह खरगोश के दड़बे जितना था, जिसमें लगा पलंग मानो किसी बौने के लिए ही था। शावर लीक कर रहा था और खिड़की के पल्लों में कोई ऐसा नुक्स था कि वे बाहर की ओर खुलते ही नहीं थे। तसल्ली देने वाली आखिरी उम्मीद, सिर्फ यह थी कि शायद यहां का किराया कम हो।
मैंने बैल ब्वाय से पीछा छुड़ाया।
फिर मैंने रूम सर्विस को फोन करके बर्फ और वैट सिक्स्टी नाईन की एक बोतल मंगवाई। मैंने अपने कपड़ों को जैसे नोचकर उतारा और शावर के नीचे जाकर खड़ा हो गया। जब तक पानी की बूंदें मेरे बदन पर पड़ती रहीं मुझे अच्छा महसूस होता रहा, लेकिन वापस कमरे में आते ही मेरे जिस्म पर फिर पसीना बहने लगा।
मैंने स्कॉच के एक पैग से अपना गला तर किया, और जब मैं दुबारा शावर के नीचे जा खड़ा होने को था, किसी ने मेरा दरवाजा खटखटाया।
मैंने एक तौलिया कमर से लपेटा और जाकर दरवाजा खोला।
एक विशालकाय चितकबरा और चपटी नाक वाला आदमी चौखट पर था, सूरत से वह पुलिसवाला जान पड़ता था। मुझे बड़ी सहूलियत से परे धकेलता वह कमरे में घुस आया।
“तुम्हारा नाम ब्रैंडन है?” उसने पूछा।
मना करने का तो सवाल ही नहीं था, अपना यही नाम मैंने रिसैप्शन पर बताया था।
“हां, क्या बात है?”
उसने बटुआ निकालकर उसमें लगा अपना पुलिसिया आईडेन्टिटी कार्ड मुझे दिखाया।
“सार्जेन्ट कैन्डी, होमीसाईड।” वह बोला—“तुम जैक शेप्पी को जानते हो?”
मैं सकपकाया।
यह कोई पहला अवसर नहीं था जब कि शेप्पी पुलिस के किसी मामले में फंसा था। छः महीने पहले उसने एक पुलिस मुखबिर की आंख पर घूंसा जमा दिया था और उस बखेड़े में उसने दस दिन की कैद की सजा भुगती थी। उससे भी तीन महीने पहले एक गश्ती पुलिस के सिपाही पर हाथ उठाया था तो उसे जुर्माना भरना पड़ा था।
पुलिस से पंगे लेने में जैक शेप्पी लाजवाब था।
“हां। मैं उसे जानता हूं।”—प्रत्यक्षतः मैं बोला—“क्या वह फिर किसी बखेड़े में फंस गया है?”
“यही समझ लो...।”—कैन्डी ने उत्तर दिया। उसने अपनी जेब से च्युईंगम का एक पैकेट निकाला, उसका एक अदद टुकड़ा छांटा, आवरण हटाया और उसे अपने मुंह में डालते हुए कहा—“क्या तुम उसकी शिनाख्त कर सकते हो?”
मैं हड़बड़ाया।
“क्या उसके साथ कोई दुर्घटना घट गई है?”
“वह मर चुका है। तुम ऐसा करो कि कपड़े पहन ही लो, बाहर कार इंतजार कर रही है। बड़े साहब चाहते हैं तुम फौरन वहां पहुंचो।”
“मर चुका है? हुआ क्या था?”—मैंने जैसे उसके आदेश को सुना ही नहीं।
कैन्डी ने अपने भारी कन्धे उचकाए।
“बड़े साहब तुम्हें खुद बताएंगे। तुम भी अब बोलना बंद करो और चलने की तैयारी करो। बड़े साहब को इंतजार सख्त नापसंद है।”
मैंने कपड़े पहने, बालों में कंघा घुमाया और पलंग पर बैठकर जूते पहनने लगा। मैंने महसूस किया कि मेरे हाथ कंपकंपा रहे थे।
वस्तुतः जैक से मेरी बढ़िया बनती थी, हम दोनों में खूब पटती थी। वह खुद बेफिक्र मस्त रहने वाला बंदा था और इसीलिए मेरे से कहीं ज्यादा मौज उड़ाता था। वह मर गया था। मुझे यह अविश्वसनीय लग रहा था।
जूते पहनकर मैंने पहले अपने लिए स्कॉच का एक और, इस बार कदरन बड़ा पैग बनाया। मैंने इशारे से कैन्डी नाम के उस पुलिसिये को आमन्त्रित किया। उसने पहले थोड़ी हिचकिचाहट दिखाई, पर आखिरकार सहमति देता हुआ आगे बढ़ा। बढ़िया दारू, जैसे कि स्कॉच, अगर मुफ्त में मिले तो कौन छोड़ता है और फिर यह तो पुलिसिया था।
मैंने उसे—किसी घोड़े के भी छक्के छुड़ा देने काबिल बड़ा पैग दिया, जिसे उसने पानी की तरह पी लिया।
हम दोनों बाहर आए और उस खड़-खड़ करती बाबा आदम के जमाने की लिफ्ट का इस्तेमाल कर नीचे पहुंचे। मैंने देखा रिसैप्शनिस्ट आश्चर्य से मुझे ही घूर रही थी। बैल ब्वाय की निगाह भी मुझ पर ही टिकी थी। शायद उन्हें लगा कि मैं गिरफ्तार था।
लाऊन्ज में बैठे दो वृद्ध भी सशंक निगाहों ने मुझे ही देख रहे थे।
हम होटल के बाहर आए और पोर्च में खड़ी एक कार में सवार हो गए, कैन्डी तेज गति से कार चला रहा था और मैं उसकी बगल में बैठा था।
“लाश कहां मिली?”—अचानक मैंने पूछा।
“बे बीच पर...।”—इस बार कैन्डी के स्वर में पुलिसिया अंदाज गायब था, वह च्युईंगम चबाते हुए बोला—“वहां किराये पर केबिन मिल जाते हैं। वहीं एक नौकर की लाश पर नजर पड़ी थी।”
“क्या उसे दिल का कोई दौरा-वौरा पड़ गया था?”
कैन्डी ने तुरन्त जवाब नहीं दिया। वह कार चलाने में उलझा रहा और फिर जब कार सड़क पर सुनियोजित ढंग से गति पकड़ गई तो वह बोला—“जैक का कत्ल हुआ था।”
मैं सन्नाटे में आ गया।
पांच मिनट की ड्राईविंग के बाद हम समुन्द्र तट के मार्ग पर पहुंचे। कैन्डी बड़ी दक्षता से समुन्द्र के समान्तर बनी सड़क पर कार दौड़ाता रहा। हमारी कार लाल-सफेद रंग से पुते केबिनों की एक कतार के पास से गुजरी और फिर आखिरकार वह एक छोटी-सी कार पार्किंग में जाकर रुकी।
समुन्द्र तट पर बने केबिन वहां लगे अनगिनत नारियल के पेड़ों के साये में खड़े थे। तट पर गहरे रंगों की छतरियां लगी थीं। वहीं पुलिस की अन्य गाड़ियां भी खड़ी थीं। केबिन की ओर निगाह डालने पर मैंने पाया कि वहां लगभग सौ लोगों की भीड़ थी और लगभग सभी स्विम सूट पहने थे।
पार्किंग में मेरी निगाह उस काली कनवर्टिबल कार पर भी पड़ी जिसे मैंने और जैक ने मिलकर खरीदा था और जिसकी किश्तें हम आज भी दे रहे थे।
हम भीड़ में रास्ता बनाते हुए आगे बढ़ने लगे। हर किसी की उत्सुक निगाहों का मरकज मैं था। हम केबिन के नजदीक पहुंचे तो कैन्डी ने एक व्यक्ति की ओर इशारा करते हुए कहा—“वह बड़ा साहब है। लैफ्टीनेन्ट रैनकिन।”
रैनकिन हमें देखकर आगे बढ़ा।
वह ठिगने कद का था और बामुश्किल कैन्डी के कंधे तक आता था। भूरे रंग का सूट और दाईं आंख पर बड़े करीने से झुका हुआ उसका हैट उसके व्यक्तित्व को आकर्षण प्रदान करते दिख रहे थे। वह लगभग पैंतालीस साल का था, चेहरा कठोर और स्लेटी आंखें बर्फ की मानिंद सर्द थीं। होंठ इतने पतले कि मानो लकीर हों।
“ये लियु बैंडन है।” कैन्डी बोला।
रैनकिन ने अपनी खोजपूर्ण निगाह मुझ पर डाली, जैसे निगाहों से सर्चलाइट डाल रहा हो।
उसने अपनी जेब से एक कागज निकालकर मेरे हाथ में थमाते हुए पूछा—
“यह तुमने भेजा था?”
मैंने कागज देखा, यह एक टेलीग्राम था जिसे मैंने जैक को अपने आगमन के सम्बन्ध में भेजा था।
“हां।”
“वह तुम्हारा दोस्त था?”
“हम बिजनेस में सहयोगी थे।”
कुछ देर तक वह अपने जबड़े को उंगलियों से सहलाता रहा, फिर बोला—
“पहले उसे देख आओ। बाकी बातें उसके बाद करते हैं।”
अपने आपको को संभालता, मैं उसके पीछे, तपती रेत पर केबिन की ओर बढ़ चला।
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