Tuh Bandar Main Langur : तू बन्दर मैं लंगूर
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आपके प्यारे, दिमाग के जादूगर केशव पण्डित और आपके दुलारे, कानून के बेटे अभिमन्यु पण्डित का नसों में बहने वाले लहू को जमा देने वाला कारनामा!
प्रस्तुत उपन्यास के सभी पात्र एवं घटनायें काल्पनिक हैं। किसी जीवित अथवा मृत व्यक्ति से इनका कतई कोई सम्बन्ध नहीं है। समानता संयोग से हो सकती है। उपन्यास का उद्देश्य मात्र मनोरंजन है। प्रस्तुत उपन्यास में दिए गए हिंसक दृश्यों, धूम्रपान, मधपान अथवा किसी अन्य मादक पदार्थों के सेवन का प्रकाशक या लेखक कत्तई समर्थन नहीं करते। इस प्रकार के दृश्य पाठकों को इन कृत्यों को प्रेरित करने के लिए नहीं बल्कि कथानक को वास्तविक रूप में दर्शाने के लिए दिए गए हैं। पाठकों से अनुरोध है की इन कृत्यों वे दुर्व्यसनों को दूर ही रखें। यह उपन्यास मात्र 18 + की आयु के लिए ही प्रकाशित किया गया है। उपन्यासब आगे पड़ने से पाठक अपनी सहमति दर्ज कर रहा है की वह 18 + है।
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तू बन्दर मैं लंगूर
“बात इतनी सी है जनाबेआली कि मैं दुनिया के मशहूर दिमाग वाले लोगों पर रिसर्च कर रहा हूं, इसी सिलसिले में यहां इण्डिया आया हूं, मेरी रिसर्च का तरीका यह है कि पहले मैं इन महान आत्माओं की खोपड़ियां हासिल करता हूं और फिर उन पर रिसर्च करता हूं। बस जनाब यह ऐसी ही कुछ खोपड़ियां हैं।"
कस्टम के इमरीगेशन काउण्टर पर खड़ा कस्टम ऑफिसर दीपक मलकानी हैरानी से सूटकेस में रखी खोपड़ियां देख रहा था। हर खोपड़ी पर एक चिट लगी हुई थी जिस पर खोपड़ी वाले का नाम लिखा हुआ था। उनकी संख्या कुल मिलाकर आठ थी।
दीपक मलकानी ने एक खोपड़ी उठाकर उसे उलट-पुलट कर देखा।
उस पर लिखा था—‘एडोल्फ हिटलर’।
“यह क्या है?" उसने चौंककर पूछा।
“जर्मनी के तानाशाह एडोल्फ हिटलर की खोपड़ी है। लाखों यहूदियों का कातिल, नाजी हुकूमत का शहंशाह, दूसरे विश्वयुद्ध का खलनायक, जिसने मरने से पहले अपनी जांनिसार प्रेमिका से शादी की और उसके बाद आत्महत्या कर ली। यकीनन यह दुनिया के नायाब दिमागों में से एक दिमाग था, जो जर्मनी का नायक था, लेकिन ‘मित्र राष्ट्रों का खलनायक’। अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जैसे देश हिटलर के सामने बौने पड़ गये थे। यह खूबसूरती का प्रेमी था, इतना क्रूर इन्सान जिसने यहूदियों के बच्चों तक को जिन्दा जला दिया। वह खूबसूरती का मुरीद भी था। यह दो विचार एक साथ ही दिमाग में कैसे समा सकते हैं?
सुन्दरता से प्रेम की सबसे बड़ी मिसाल इसने उस वक्त पेश की जब नाजी सेना के बम्बर विमान फ्रांस पर बमबारी कर रहे थे। इसने पेरिस देखा था और पेरिस को वह दुनिया का सबसे खूबसूरत शहर मानता था। पेरिस फ्रांस की राजधानी थी। इसने ऐलान किया कि पेरिस की सुन्दरता को बरकरार रखा जाये—पेरिस में कोई बम न गिराया जाये—है न कमाल की बात—यही वजह थी जो इसने मुझे आकर्षित किया और अब इसकी खोपड़ी मेरे पास है। मैं इस पर रिसर्च कर रहा हूं।"
मलकानी की गोल-गोल आंखें किसी उल्लू की तरह घूमने लगीं। वह उस शख्स को कभी नीचे से ऊपर तक देखता-, कभी ऊपर से नीचे तक, फिर उसने सूटकेस में रखी दूसरी खोपड़ी उठा ली।
“यह खोपड़ियां तुम्हारे पास कैसे पहुंच गयीं?" मलकानी ने दूसरी खोपड़ी पर लिखा नाम पढ़ते हुए कहा।
“जनाबेआली इन खोपिड़यों को हासिल करने में मुझे सारी दुनिया घूमनी पड़ी और मेहनत करनी पड़ी, इनकी कब्रगाह तलाश की और कब्रगाह की सारी सुरक्षा को धता बताकर बड़ी चालाकी से इनकी कब्रें खोदकर इन्हें हासिल किया। यह जो खोपड़ी आपके हाथों में है, यह सिकन्दर की है। ‘एलेक्जेन्डर द ग्रेट’ कहा जाता है इसे। मिस्र के काने बादशाह फिलिप और जादूगरनी औलम्पियस का जांनिसार बेटा। इसका जन्म ईसा से 356 वर्ष पूर्व मेसोडोनिया के पेजा नामक शहर में हुआ। इसकी मां का दावा था कि सिकन्दर डायनाइमिस उर्फ ज्यूस देवता की सन्तान थी।"
“मालूम है, मालूम है। मैं हिस्ट्री और मिलिट्री साइंस का स्टूडेन्ट रहा हूं।" मलकानी ने ताव खाने वाले अन्दाज़ में कहा—“सिकन्दर ने फारसियों से जंग लड़कर फारस की खाड़ी पार की....यूनान के शहरों, राज्यों को जीता। हरवामनी साम्राज्य के सम्राट दारा तृतीय को पराजित किया, फिर वैक्ट्रिया जीता और उसके बाद अक्खा इन्डिया का नम्बर आ गया।"
“जी हां....जी हां....आपकी हिस्ट्री की नॉलिज की दाद देनी पड़ेगी।" उस छः फुटे आदमी ने हंसते हुए कहा, फिर अपने ढीले-ढाले कोट को हाथ से दुरस्त किया। कैप को सिर पर दुरस्त किया और बत्तीसी चमकाते हुए कहा—“यह वही सिकन्दर महान है, उस वक्त अक्खा इंडिया आज जैसा समृद्ध और शक्तिशाली नहीं था—पच्चीस राज्यों में विभक्त था। काबुल के उत्तर में गन्धार, पौरव, अमिसार, कश्मीर का कुछ हिस्सा, कद जो रावी घास का मध्य क्षेत्र था। शूद्रक और मालव प्रमुख राज्य थे, पौरव और तक्षशिला थे। सेरब्रस और मुसिक में शत्रुता थी। सिकन्दर खैबर के दर्रे को पार करके भारत आया। हम तो खैर लुफ्तहांसा की फ्लाइट से आये हैं लेकिन उसके पास अरबी घोड़ा था....हिस्ट्री में कैकम का युद्ध बहुत महत्व रखता है। इसी युद्ध में उसने कैकम के राजा पौरुष को पराजित किया था। गिरफ्तारी के बाद पौरुष ने जो जुमला कहा था वह बच्चा-बच्चा जानता है। सिकन्दर ने पूछा—ऐ युद्धबन्दी पौरुष—बोलो तुम्हारे साथ क्या सुलूक किया जाए? जिसके जवाब में पौरुष ने कहा था—जो कि एक राजा दूसरे राजा के साथ करता है। उसके इस उत्तर से ही सिकन्दर प्रसन्न हो गया और उसका राज्य वापस कर दिया। सिकन्दर मात्र बत्तीस वर्ष तक जीवित रहा। इतनी कम उम्र में सिकन्दर ‘एलेक्जेन्ड्र द ग्रेट’ कहलाया। है न कमाल की बात ! यह महान दिमाग भी मैंने एक शाही मकबरे में हासिल किया है जो सिकन्द्रिया में है।"
मलकानी ने वह खोपड़ी भी सूटकेस में रख दी।
“और भी हैं जनाबेआली। दाद दीजिये इस बन्दे को जिसने ऐसी-ऐसी महान खोपड़ियों की कलेक्शन की हुई है। यह स्टालिन की खोपड़ी है और यह नैपोलियन बोनापार्ट....और यह देखिये, यह शेक्सपियर की खोपड़ी। आप यह मत समझिये कि मैंने सिर्फ बहादुर योद्धाओं की ही खोपड़ियां कलेक्ट की हैं। शेक्सपियर भी आपने पढ़ा ही होगा। विश्व साहित्य के गौरव—अंग्रेजी भाषा के अद्वितीय नाटककार शेक्सपियर, जिनके सम्वादों में एक-एक शब्द के कई-कई अर्थ निकलते हैं और सारे अनुकूल हैं।
मैं आपको इस साहित्यकार के बारे में भी बता दूं जनाबेआली। शेक्सपियर का जन्म 26 अप्रैल 1564 ई. में स्ट्रेडफोर्ड-ऑन-एवोन नामक स्थान में हुआ। उनके पिता एक किसान थे और उन्होंने कोई बहुत उच्च शिक्षा भी प्राप्त नहीं की थी। 1582 ई. में उनका विवाह अपने से आठ वर्ष बड़ी ऐन हैवावे से हुआ। 1587 ई. में शेक्सपियर लंदन की एक नाटक कम्पनी में काम करने लगे। 1616 ई. में उनका स्वर्गवास हो गया, उनके कुछ प्रसिद्ध नाटक इस प्रकार हैं—जूलियस सीजर, ओथेलो, मैकवैथ, हेमलेट, सम्राट लियर, रोमियो-जूलियट, वेनिस का सौदागर, बारहवीं रात, तिल का ताड़ (मच एड अबाउट नथिंग), तूफान। लगभग 36 नाटक इन्होंने लिखे। कवितायें अलग। आज भी थियेटर जगत में शेक्सपियर के नाटकों का डंका बजता है जनाबेआली।"
मलकानी उसे कहरभरी नजरों से घूर रहा था।
“किसी इन्डियन की खोपड़ी भी है इसमें?" उसने झल्लाकर पूछा।
“जी नहीं, उसी काम से यहां आया हूं जनाबेआली....।"
“जनाबेआली के बच्चे...खोपड़ी चोर....अब तुम हमारी भी कब्रें खोदोगे...?"
“प्रॉब्लम ये है जनाबेआली....," वह शख्स उसी तरह शालीन बना रहा—“जिसकी खोपड़ी मुझे चाहिये....वह तो यहां के लोग जला चुके हैं। अब मुझे मुंशी प्रेमचंद की खोपड़ी तो मिलेगी नहीं...राणा प्रताप की खोपड़ी भी नहीं मिलने वाली न महात्मा गांधी की...पता नहीं यहां के हिन्दू समाज के लोग मुर्दों को क्यों जला देते हैं।"
“इसलिये जला देते हैं ताकि तुम जैसा चोर उनकी खोपड़ी चुराकर न ले जाये....कंकाल बेचने का भी धन्धा करते हो क्या....?"
“नहीं जनाबेआली....आप मुझे चोर या स्मगलर की तोहमत मत दीजिये। अब मैं आपसे ज्यादा बहस भी नहीं करना चाहता....मैं तो अब यहां एक ही इरादे से आया हूं....मुझे एक आदमी की खोपड़ी चाहिये....ऐसा न हो कि यहां के लोग उसे भी जला दें....मैं पहले ही उतारकर ले आऊंगा।" उसने सीना तानकर कहा।
“क्या....किसकी खोपड़ी उतारोगे तुम?" मलकानी दहाड़ पड़ा।
आसपास के लोग भी चौंककर उसी तरफ देखने लगे। कुछ करीब भी आ खड़े हुए थे और कस्टम काउन्टर पर रखे सूटकेस को देख रहे थे जिसमें वह खोपड़ियां रखी हुई थीं।
“ऐसा तो करना ही पड़ेगा जनाबेआली....वरना खोपड़ी मेरे हाथ नहीं लगेगी।"
“अबे तू किसकी खोपड़ी उतारना चाहता है?" मलकानी की भाषा शैली भी बदल गयी।
“अब आप पूछ ही रहे हो तो बता देता हूं, मैं केशव पण्डित नामक वकील की खोपड़ी के लिए यहां आया हूं....।"
“क्या?" उछल पड़ा मलकानी।
¶¶
अनिल यादव की ड्यूटी आजकल सहारा एयरपोर्ट पर थी। वह शान्ताक्रूज के इस एरिये का इन्चार्ज भी था और उस वक्त एयरपोर्ट पर ही मौजूद था। इन दिनों एयरपोर्ट पर सख्त चेकिंग चल रही थी। हर आने वाले के सामान को बारीकी से चेक किया जाता था। स्केनिंग मशीनों द्वारा सामान को कम्प्यूटर पर चैक किया जाता था और किसी भी संदिग्ध वस्तु के पाये जाने पर तुरन्त कन्ट्रोल रूम की घन्टी बज जाती थी।
एयरपोर्ट पर कमाण्डो दस्ते भी चप्पे-चप्पे पर तैनात रहते थे। सादा लिबास वाले भी टर्मिनल पर घूमते रहते थे। कैमरे पर हर यात्री की आवाजाही रिकॉर्ड होती रहती थी।
कन्ट्रोल रूम की वह घण्टी बज गयी जो आपत्तिजनक वस्तु का सिग्नल देती थी।
उसके साथ ही फोन भी घनघना उठा।
यादव ने तुरन्त फोन रिसीव किया।
“ऑफिसर....मैं चाहता हूं कि आप स्वयं कस्टम काउंटर नम्बर थ्री पर तशरीफ ले आयें। बहुत ही विचित्र केस मेरे सामने मौजूद है। मैं मलकानी बोल रहा हूं....।"
“ठीक है मलकानी! मैं दो मिनट में पहुंचता हूं।"
दो मिनट बाद ही कर्मठ, ईमानदार पुलिस ऑफिसर इन्सपेक्टर अनिल यादव के बूट ठक-ठक पैसेज में गूंजने लगे। उसके इशारे मात्र से उसके मातहत, जो हर वक्त रेड एलर्ट रहते थे, मूव करने लगे। गनों पर उनके हाथ मज़बूती से ज़म गये।
पुलिसवालों के सदाबहार भावहीन चेहरों का नेतृत्व करता यादव कस्टम कांउटर पर आ धमका। मलकानी उसी सूट-बूट, हैट वाले से उलझा हुआ था।
“बराये मेहरबानी मुझे जाने की इज़ाजत दे दें जनाबेआली।" पैसेंजर कह रहा था जो लुफ्तहांसा के बोईंग 747 से उतरा था। वो जम्बो जेट अभी भी रनवे पर खड़ा था। यहां उसका 45 मिनट का स्टे था। पैसेंजर्स को लंच की व्यवस्था थी। इण्डिया में उसका यह एकमात्र स्टे था। यहां से उसे सीधे कोलम्बो रवाना होना था। आगे जाने वाले पैसेंजर विमान में ही मौजूद थे।
“यादव साहब.... इनसे मिलिये। ये अपने सूटकेस में जबरदस्त हिस्टोरिकल परसनल्टीज़ की खोपड़ियां भरकर लाये हैं और इनका कहना है कि सब इन्होंने चोरी की हैं।"
“ये चोरी नहीं है।" पैसेंजर बोला—“रिसर्च के बाद मैं इन खोपड़ियों को उसी जगह पहुंचा दूंगा जहां से इन्हें लाया हूं।" वह अब भी शालीन बना हुआ था।
यादव की पुलिसिया निगाह पहले सूटकेस में रखी खोपड़ियों पर पड़ी, फिर पैसेंजर पर।
“देखिए तो। इसमें हिटलर, स्टालिन, बोनापार्ट, शेक्सपियर की खोपड़ियां रखी हुई हैं।"
“हैं....!" यादव भौंचक्का रह गया—“कहां से मिलीं इसे यह खोपड़ियां?"
“इनका कहना है....।"
“जनाबेआली मेरी बात....।" पैसेंजर ने मलकानी की बात काटकर यादव की तरफ रुख किया।
“जनाबेआली के बच्चे, अब तू चुप खड़ा रह। यादव साहब की खोपड़ी मत चाट....।" मलकानी उस पर गरज पड़ा—“अब यादव साहब! यह पट्ठा कह रहा है कि ये इण्डिया में केशव पण्डित की खोपड़ी उतारने आया है।"
“ओए....! पंडित जी की खोपड़ी?" यादव की भृकुटी तन गई।
“कस्टम आफिसर सच बोल रहे हैं जनाबेआली....जब मैं सारे दिमागदारों की खोपड़ियों का संकलन कर रहा हूं तो उसके कलेक्शन में अगर दिमाग के जादूगर की खोपड़ी न रहे तो मेरी रिसर्च तो अधूरी रह जायेगी। मैं इन्डिया इसी काम से आया हूं....।"
“सुन लिया यादव साहब, लाट साहब पण्डित जी की खोपड़ी लेने आये हैं....।" मलकानी ने पैसेंजर को खा जाने वाली नजरों से घूरते हुए कहा।
एयरपोर्ट स्टाफ और पुलिसवालों के अलावा वहां बहुत से पैसेंजर भी जमा हो गये। अच्छी-खासी भीड़ हो गयी थी। सब जानना चाहते कि यह ‘खोपड़ीबाज’ आखिर है कौन....।
“केशव पण्डित की खोपड़ी तुम कैसे हासिल करोगे....?" यादव की आंखें लाल होने लगीं। केशव पण्डित उसका आदर्श था।
“ये कौन सा मुश्किल काम है.... चाकू से पहले गर्दन काटूंगा, फिर कटे हुए सिर को सुखाकर मांस को तेजाब में गलाकर साफ करूंगा....फिर जब हड्डी रह जायेगी तो इसे एक लिक्विड में रखकर छोड़ दूंगा। उसके बाद वह मेरे मतलब की हो जायेगी....। जनाबे आली....यह मेरे लिये बहुत आसान काम है।"
“नाम क्या है तुम्हारा?" यादव ने पूछा। वह यह जानना चाहता था कि कहीं यह कोई इंटरनेशनल क्रिमिनल तो नहीं है। उसका आधा चेहरा तो फेल्ट हैट से ढका हुआ था।
“जनाबेआली मेरा नाम प्रोफेसर डच डॉक्टर ठरकी है।”
सिपाही हंस पड़े। आसपास के लोग तो ठहाके ही लगाने लगे....।
यादव ने सिपाहियों को घूरा। उन्होंने हंसते-हंसते ‘फुल ब्रेक’ मार दिया।
“भीड़ हटाओ यहां से....।" यादव ने सिपाहियों से कहा।
“ये....चलो....अड़े....अड़े....नक्को नक्को....।" एक मराठी हवलदार भीड़ हटाने लगा।
“इसका सूटकेस सील कर दो मिस्टर मलकानी....इसकी जांच होगी....हम इन सारी खोपड़ियों को फोरेन्सिक लैब में भेजेंगे....।"
“वह क्यों....?" प्रोफेसर ठरकी भड़ककर बोला—“इसीलिए इन्डिया की पुलिस सारी दुनिया में बदनाम है....यह हैरेसमेन्ट है। इतनी कीमती खोपड़ियां मैं चोर पुलिसवालों के हवाले नहीं कर सकता....समझ क्या रखा है तुमने....?"
“अबे ओए चमगादड़ की औलाद....।" यादव ने उसे सख्त नजरों से घूरा—“सारी दुनिया को ठगने वाले चार्ल्स शोभराज को इन्डियन पुलिस ने ही अरेस्ट किया था। हाथ आगे कर....।"
“क्यों?"
“हथकड़ी लगेगी और क्यों।" यादव ने कहा—“लगा दो इसे हथकड़ी....यू यार अण्डर अरेस्ट मिस्टर....।"
“प्रोफेसर डच डॉक्टर ठरकी।"
आस-पास अब भी खड़े कुछ लोग हंस पड़े—लेकिन सिपाही इस बार नहीं हंसे।
यादव ने उन्हें घूरकर देखा तो वह चुप हो गये।
“अबे तू प्रोफेसर भी है और डॉक्टर भी।" मलकानी का दिल चाहा कि अपने बाल नोंच ले। इस आदमी ने उसके गोरे-चिट्टे चेहरे पर पसीना ला दिया था। अपनी पूरी सर्विस लाइफ में उसने ऐसा विचित्र पैसेन्जर नहीं देखा था।
“हां....तो....।" वह अकड़कर बोला—“मैं सानफ्रांसिस्को यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर रह चुका हूं और जोहान्सबर्ग के एक अफ्रीकी कबीले में जादूगर मोसाम्बा ने मुझे डच डॉक्टर ठरकी का इलम दिया।"
“अबे मच्छर, यह डच डॉक्टर होता क्या है मेरे बाप?"
“जो तंत्र-मंत्र से इलाज करता है....ओझा....तांत्रिक....।" उसने डच डॉक्टर का अर्थ बताया।
“तभी यह खोपड़ियां लिये फिर रहा है....।"
“हवलदार इसे हथकड़ी लगा दो....।" यादव ने गरजकर कहा—“और इसका सूटकेस सील करके अपने कब्जे में ले लो....।" उस वक्त यादव इसके सिवा कुछ कर भी नहीं सकता था। पूरा मुआमला अभी उसकी समझ से बाहर था।
हवलदार नाथूराम हथकड़ी लेकर हथकड़ी लगाने आगे बढ़ा।
“कहां लगाओगे हथकड़ी?" ठरकी ने पूछा।
“हाथ में।" नाथूराम ने झटपट सवाल का जबाव दिया।
“कौन से हाथ में?" उसने पूछा—“दायां या बायां?"
“जौन सा दिल करे....।" हवलदार ने अपनी झब्बेदार मूंछ पर हाथ फेरते हुए तोंद हिलायी।
“अच्छा लो पकड़ो....लगा लो हथकड़ी।" प्रोफेसर ठरकी ने अपने दायें हाथ से बायां हाथ मरोड़ा, फिर वह पूरा हाथ उसके कंधे से उखड़कर दायें हाथ में आ गया। उसने वह टूटा हुआ हाथ हवलदार को थमा दिया।
हवलदार, जो सीना ताने, तोंद फुलाये मूछों पर ताव मारता हथकड़ी लिये खड़ा था, वह इस तरह सर पकड़कर दो कदम पीछे हट गया जैसे उसने बिजली का नंगा तार छू लिया हो।
¶¶
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Additional information
Book Title | Tuh Bandar Main Langur : तू बन्दर मैं लंगूर |
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Isbn No | |
No of Pages | 365 |
Country Of Orign | India |
Year of Publication | |
Language | |
Genres | |
Author | |
Age | |
Publisher Name | Ravi Pocket Books |
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