रातों का बादशाह
सुनील प्रभाकर
लम्बे कद की गोरी-चिट्टी अत्यन्त खूबसूरत युवती अत्यन्त हड़बड़ाए अन्दाज में रेडरोज रेस्त्रां में दाखिल हुई। उसके चेहरे पर आतंक के साए साफ-साफ मंडरा रहे थे। आंखों में दहशत का भाव झलक रहा था। अन्दर प्रविष्ट होकर उसने मुड़कर एक निगाह बाहर डाली, फिर पलटकर लम्बे-लम्बे कदम बढ़ाती उस टेबल की ओर बढ़ गई जो एकदम कोने में थी और एक गेहुंए रंग का सुर्ख चेहरे वाला शख्स व्हिस्की का गिलास थामे धीरे-धीरे सिप करता हुआ सिगरेट के कश ले रहा था।
ऐसा नहीं कि उसने युवती को देखा नहीं था। उसने युवती को देखा था और उसे देखकर उसके चेहरे पर इत्मीनान के भाव आ गए थे। मगर उन भावों को समझने और अर्थ निकालने वाला कोई नहीं था क्योंकि रेस्त्रां में काफी भीड़-भाड़ थी। सारी सीटें लगभग भरी हुई थीं।
अलबत्ता यह जरूर हुआ था कि युवती के रेस्त्रां में कदम रखते ही क्षण भर के लिए सन्नाटा-सा छा गया था। लोगों ने उस पर पलकें झपकाते हुए नजरें डाली थीं। उसकी खूबसूरती को आंखों ही आंखों में पी जाने की कोशिश की थी। मगर यह ज्यादा समय तक नहीं चला। सभी अपने-अपने में पुनः व्यस्त हो गए।
बाहर मूसलाधार पानी बरस रहा था।
बिजली कड़क रही थी। बादल गरज रहे थे। पानी बरसने की आवाज रेस्त्रां के भीतर तक आ रही थी।
युवती पूरी तरह से भीगी हुई थी। उसने सलवार-कुर्ता पहना हुआ था और गले में दुपट्टा डाल रखा था।
उस आदमी की मेज पर पहुंचकर युवती पलभर के लिए ठिठकी, उस आदमी से उसकी आंखें मिलीं। आंखों ही आंखों में संकेत हुआ और वह उसके सामने कुर्सी पर धम्म से बैठ गई।
अपना हैण्डबैग उसने मेज पर रख दिया।
युवती को इस बात की कतई चिन्ता नहीं थी कि उसके बालों और भीगे वस्त्रों से चू रहा पानी फर्श को भिगो रहा है।
“काम हुआ?” व्हिस्की का गिलास थामे व्यक्ति ने धीमे स्वर में पूछा।
“हां।” युवती ने सिर को जुंबिश दी।
“चीज कहां है?”
हैण्ड बैग भी गीला था।
उसका पानी पौंछने के बहाने युवती ने थपथपाया उसे, फिर गुनगुनाते स्वर में बोली—“दूसरी पार्टी वाले मेरे पीछे हैं। मैं बहुत मुश्किल से झांसा देकर यहां तक पहुंची हूं। लेकिन लगता नहीं है कि इतनी आसानी से वे लोग मेरा पीछा छोड़ देंगे। हो सकता है वे लोग यहां पहुंचने वाले हों।”
“बैग यहीं छोड़ दो और लेडीज टॉयलेट में जाकर अपने गीले कपड़े ठीक कर लो, तब तक मैं यहीं हूं।”
“लेकिन वे लोग...।”
“उनकी चिन्ता मत करो।”
युवती ने देर नहीं की। तत्काल उठ गई। वह बाईं ओर बनी गैलरी की ओर बढ़ गई। उसको शायद पता था कि रेस्त्रां का टॉयलेट कहां है। वह जब चली तो उसके शरीर से कपड़े बुरी तरह चिपके हुए थे। उसका कटावदार हाहाकारी शरीर इस कदर नुमाया हो रहा था कि हॉल की कई टेबलों पर हलचल हुई। सिसकियों के स्वर सुनाई दिए परन्तु, युवती ने उनकी ओर कोई ध्यान नहीं दिया।
इसमें कोई शक नहीं था कि उसका मांसल वक्ष, कमर और सख्त तथा उभरे गोल नितम्ब किसी को भी पागल करने के लिए काफी थे। उसकी टांगें लम्बी थीं और जांघों की गोलाई, जो सलवार चिपक जाने से स्पष्ट नजर आ रही थी—उस पर सभी की निगाहें थी।
एक अजीब-सा गुदगुदाहट भरा माहौल रेस्त्रां में छा गया था।
ऐसा नहीं था रेस्त्रां में युवतियां नहीं थीं—युवतियां वहां थीं। काफी थीं—मगर उस युवती का जलवा ही कुछ ऐसा था कि वहां मौजूद युवतियां उसके सामने फीकी लगने लगी थीं।
उस युवती के टॉयलेट की ओर जाते ही उस व्यक्ति ने हाथ में थामे गिलास की व्हिस्की को एक झटके में खाली करके गिलास को मेज पर रख दिया और युवती द्वारा दिया गया हैण्डबैग उठाकर उसे खोला और उसमें से कोई चीज निकालकर बन्द करने के बाद जहां से उठाया था, वहीं रख दिया।
उस आदमी का चेहरा जैसा था वैसा ही बना रहा, पर आंखों में गहरी चमक तथा सन्तुष्टि के भाव जरूर नजर आने लगा। उसने वेटर को बुलाकर नया पैग लाने का संकेत दिया और नई सिगरेट सुलगा ली।
तभी नई घटना घटी।
रेस्त्रां के दरवाजे पर एकाएक ही तीन व्यक्ति नजर आए।
पानी से तरबतर वे तीनों सख्त चेहरे-मोहरे से ही खतरनाक दिख रहे थे। उन लोगों ने हथेलियों से भीगे चेहरों को पौंछते हुए रेस्त्रां में चारों ओर पैनी नजर से देखा।
कई लोगों की दृष्टि उन लोगों पर गई और फिर जाने क्यों वहां का वातावरण अचानक ही तनावग्रस्त नजर आने लगा था।
तीनों ने एक-दूसरे से धीमे स्वर में कोई बातचीत की थी, फिर उनमें से एक ने तेज स्वर में कहा—“देखो, यहां अभी-अभी एक लड़की आई है। तुम सबों ने उसे देखा होगा। वह पानी में भीगी हुई है। काफी खूबसूरत है। उसने हल्के गुलाबी रंग की सलवार-सूट पहना हुआ है। वह लड़की कहां है?”
उस आदमी की आवाज से रेस्त्रां में एकदम सन्नाटा-सा छा गया था। उसकी आवाज में एक अजीब-सी कठोरता और खुरदुरापन था।
रेस्त्रां में बैठे लोगों के बीच एक तीखी-सी खामोशी छा गई।
¶¶
कैलाश ठाकुर ने अपने हाथ में थमें गिलास से लम्बा घूंट लिया और दिलचस्पी के साथ उन तीनों की ओर देखा। होठों पर जीभ फिराते हुए उसने धीरे से चटखारा लिया।
उसने लड़की को देखा था। उस कोने की टेबल पर बैठे शख्स की मेज पर बैठते हुए—उससे बातें करते हुए—फिर उठकर टॉयलेट की तरफ जाते हुए। उस आदमी द्वारा हैण्डबैग की तलाशी लेकर उसमें से कोई चीज निकालकर हथेली में दबाते और बैग को ज्यों-का-त्यों रखते—सब देखा था उसने। चूंकि उसकी टेबल उस आदमी की टेबल से ज्यादा दूर ना होकर दो टेबल छोड़कर थी इसलिए ना चाहते हुए भी उसकी आंखों के सामने इतना कुछ अपने आप नजर आ गया था।
जिस समय युवती रेस्त्रां में प्रविष्ट हुई थी—तभी उसकी दृष्टि में आ गई थी। कैलाश ठाकुर को युवती परेशान और भयभीत-सी लगी थी। जाने क्यों उसे ऐसा लगा था कि कोई बात ऐसी है जो असाधारण है।
और अब ये तीन आदमी—जो चेहरे-मोहरे से भले नहीं लग रहे थे। हालांकि कपड़े उनके कीमती और ठीक-ठाक थे।
कैलाश ठाकुर ने उस आदमी को देखा, जिसके पास युवती बैठी थी। वह आराम से बैठा नई सुलगाई हुई सिगरेट के कश ले रहा था। उन आदमियों द्वारा युवती के बारे में इस प्रकार पूछे जाने का भी कोई असर नहीं पड़ा था।
“तुम लोगों ने सुना नहीं?” सहसा उस शख्स ने गुर्राकर फिर कहा—“मुझे पता है कि वह लड़की यहां आई है। इस बरसते पानी में वो और कहीं जा ही नहीं सकती। इसलिए ना तो खामोश रहने से काम चलेगा और ना झूठ बोलने से।”
अचानक काउण्टर के समीप पड़ी टेबल से एक आदमी बोला—“भाई लोगों, उस छोकरी का क्या करोगे?”
“तुम छोकरी के बारे में बोलो। उसका क्या करना है यह मुझ पर छोड़ो।”
“तब वहीं खड़े रहकर उसका वेट करो—अभी आ रही होगी।” वह आदमी हंसा धीरे से—“वैसे छोकरी जोरदार है।”
“साला मौज ले रहा है।” प्रवेश द्वार के पास खड़ा दूसरा आदमी दांत भींचकर बोला।
“खींच दूं साले को।” तीसरा सर्द स्वर में बोला—“मौज लेना बन्द हो जाएगा।”
“जहां तक हो सके हमें कोई हंगामा नहीं खड़ा करना है।” पहले वाले ने कहा—“हमें छोकरी चाहिए—बस।”
कैलाश ठाकुर प्रकट में खामोश और लापरवाह बैठा व्हिस्की की चुस्की लेता रहा। उसका चेहरा भी सामान्य बना रहा। अलबत्ता उसके कान सतर्क थे और अपनी सारी शक्ति उसने उन तीनों आदमियों की ओर लगा रखी थी ताकि उनकी बातों को सुन सके।
स्पष्ट था कि कोई गड़बड़ थी।
मेज पर आराम से बैठे अधेड़ शख्स की गतिविधि काफी संदिग्ध थी। उसने जिस प्रकार से बैग से कोई वस्तु निकालकर कब्जे में की थी, जाहिर था कि यह तीनों भी उसी चीज के लिए उस युवती के पीछे थे।
कौन-सी चीज हो सकती है वह?
उसने सोचा—जिसके कारण युवती का अस्तित्व संकट में था। यह तीनों भले आदमी तो कतई नहीं थे। बातचीत से जाहिर था कि खतरनाक थे। हथियारबन्द थे।
उसके कानों ने पानी बरसने की आवाज सुनी।
फ्लैट तक पहुंचना दिक्कत तलब हो गया था। जब तक पानी धीमा या बन्द नहीं हो जाता, निकलना नहीं हो सकता था रेस्त्रां से। और वही क्यों—सभी लगभग फंस गए थे।
“हरामजादी किधर गई?”
“कोई जवाब भी तो नहीं दे रहा है।”
“चिन्ता ना करो। अभी पता चल जाएगा।”
तभी गैलरी से निकलकर एक साधारण कद तथा मजबूत शरीर वाला व्यक्ति दरवाजे के समीप खड़े तीनों व्यक्तियों की ओर बढ़ा। उसने हल्के ब्राउन कलर का सूट पहन रखा था। उसका चेहरा भावहीन और आंखों में व्यग्रता का भाव था।
वह उन तीनों के समीप पहुंचा।
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“क्या बात है? तुम लोगों को किसकी तलाश है?” उसने उन तीनों की ओर देखा।
“कौन है तू?” पहले वाले ने पूछा।
“मैं यहां का मैनेजर हूं।”
“हमें एक लड़की की तलाश है। वह यहां आई है।” उस आदमी ने कठोर स्वर में कहा—“यह मत कहना कि छोकरी यहां नहीं है, क्योंकि अगर नहीं मिली तो तुम्हारे इस रेस्त्रां के लिए बहुत खराब होगा।”
मैनेजर की आंखों में कहर छाने वाले भाव उभरे। मगर उसने अपने भावों पर काबू पा लिया।
“देखो, यह ऐसी जगह है जहां कोई भी आ जा सकता है। ठीक वैसे ही जैसे तुम लोग आ गए हो। वैसे मुझे नहीं पता कि कोई लड़की इस भीषण वर्षा में यहां आई है कि नहीं—मैं अपने आदमियों से...।”
“वो रही!” सहसा एक चिल्लाया।
मैनेजर सहित बाकी ने एक ओर देखा।
कैलाश ठाकुर ने धीरे से ठण्डी सांस ली।
युवती टॉयलेट से लौट आई थी। कपड़े वही थे मगर अच्छी तरह निचोड़कर पहनने के कारण शरीर से चिपक नहीं रहे थे। बाल भी संवरे थे।
वो फ्रैश और निखरी-निखरी-सी लग रही थी। उसकी सुन्दरता कुछ ज्यादा ही बढ़ गई थी। युवती ने किसी भी तरफ नजर नहीं डाली थी। वह सीधे उस प्रौढ़ आदमी की टेबल पर आकर बैठ गई थी।
कैलाश ठाकुर की आंखें प्रवेश द्वार की ओर और कान उस टेबल की ओर लगे थे।
“रीटा...।” उस आदमी ने गिलास खाली करके रख दिया और सिगरेट का कश लेकर बोला—“तुम्हारे चाहने वाले आ गए हैं।”
“मैंने देख लिया है।” रीटा ने ठण्डे स्वर में कहा—“लेकिन अब तुम क्या करोगे पाहवा?”
पाहवा का चेहरा भावहीन बना रहा।
“पानी ने सारा मामला बिगाड़ दिया वर्ना मैं तो अब तक निकल गया होता।”
“सामान कहां है?”
“एकदम सुरक्षित।”
“यह लोग गड़बड़ कर सकते हैं।”
“तुम सतर्क रहो—मैं इनसे निपट लूंगी।” रीटा ने कहा, फिर इशारे से वेटर को बुलाकर बोली—“दो लार्ज पैग जॉनी वॉकर ले आओ। साथ में कुछ खाने के लिए भी।”
“खाने में क्या लाऊं?”
“कुछ भी हल्का-फुल्का सा।”
वेटर सिर झुकाकर चला गया।
“वे तीनों इधर ही आ रहे हैं।” पाहवा ने सिगरेट का कश लिया—“मैनेजर भी साथ में है।”
रीटा की आंखों में मौत जैसे सर्द भाव आ गए।
सुर्ख और पतले होंठ भिंच गए।
कैलाश ठाकुर को रेस्त्रां में बैठे लोग, उनका मूड और वहां का माहौल अजीब-सा लगा। सब अपने-अपने में मग्न। वह जानता था कि उसी की तरह उन लोगों की बातों को और भी लोगों ने सुना है—मगर आश्चर्य की बात थी कि किसी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं जताई थी। जैसे कोई खास बात नहीं थी।
वह तो भीगने से बचने के लिए रेस्त्रां में आ गया था। पानी एकदम से और अचानक आया था। उसने घुसते समय यही समझा था कि दूसरे रेस्त्राओं की तरह यह भी होगा। फर्क तो उसे अन्दर घुसने के बाद उस समय मालूम हुआ जब वहां मौजूद लोगों को, जिसमें लड़कियां तथा औरतें भी थीं—ड्रिंक लेते देखा।
पानी बहुत तेज आया था। वर्षा का वेग बढ़ता ही गया था। लगभग एक घण्टा हो गया था उसे आए हुए और वर्षा थी कि उसी रफ्तार से हो रही थी। जब से आया था—दो पैग ले चुका था।
खाना भी यही निपटाना पड़ेगा—उसने सोचा।
इतनी जबरदस्त वर्षा में और कहीं भोजन की व्यवस्था होना सम्भव था और जहां हमेशा करता था वहां पहुंच नहीं सकता था इस समय—इसलिए यही अच्छा था कि यहां पेट भर लेता। मगर तत्काल वह भी सम्भव नहीं था। जो भी घट रहा था इतना दिलचस्प था कि पूरा मामला देखना जरूरी हो गया था।
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