पुलिस स्टेशन
राकेश पाठक
उस युवती ने सड़क पर ठिठककर पुलिस स्टेशन के गेट पर लगे लाल व नीले रंग वाले बोर्ड को घूरा और बुदबुदाहट में उस पर सफेद रंग के लिखे शब्दों को पढ़ने लगी—“कोतवाली फुलत सिटी...हम कानून के रक्षक, जनता की सेवा हेतु सदैव तत्पर हैं।”
वो पुलिस स्टेशन में हिचकते हुए प्रविष्ट हुई और बड़बड़ाई—“ना जाने क्यों चम्पा चाची बोल रही थी कि मैं गुण्डों के खिलाफ शिकायत करने पुलिस के पास ना जाऊं—वर्ना गुण्डों से किसी तरह बची हुई इज्जत खो बैठूंगी—भला पुलिस वाले ऐसा काम कर सकते हैं? वे क्या गुण्डों से भी गये-गुजरे हो सकते हैं?”
उसे कोई वर्दी वाला नजर नहीं आया, चारों तरफ उजड़ापन व सन्नाटा था—मानो कोतवाली में कर्फ्यू लगा हुआ था।
फिर ठहाकों की आवाज ने उसे चौंकाया—वो आवाज वाली दिशा में बढ़ती चली गयी।
जिस कमरे से ठहाका व हंसने-बोलने की आवाजें आ रही थीं, उसका दरवाजा बन्द था—बस, कोई दो इंच चौड़ी झिर्री ही बनी हुई थी—जिससे झांककर भीतर का नजारा किया जा सकता था।
युवती ने झिर्री से भीतर जाकर देखा तो उसके मुख से सिसकारी-सी निकल गयी, उसकी आंखें मारे आश्चर्य के फैलती चली गईं।
“हे भगवान...ये क्या देख रही हूं मैं, जो गुण्डे हाथ धोकर मेरी इज्जत के पीछे पड़े हुए थे—वो इन पुलिस वालों के साथ बैठे शराब पी रहे हैं—क्या ये पुलिस वाले मेरी इन गुण्डों से मदद कर पाएंगे? नहीं, शायद चम्पा चाची ठीक ही बोलती थी—मुझे यहां से फौरन ही चले जाना चाहिए—अगर इन लोगों ने मुझे देख लिया तो शराब के जामों में मेरी लाज को घोलकर पी जाएंगे।”
वो वापस जाने के लिए मुड़ी ही थी कि एक आवाज ने उसके कदमों को ठिठका दिया।
“तुम लोग चौबीस घण्टों के लिए ये इलाका छोड़कर चले जाओ राजू भाई—अपने इन सब साथियों को भी अपने साथ ले जाना।”
“क्या बात हुई थानेदार साहब?”
युवती पलटकर झिर्री से भीतर झांकने लगी।
मोटी-मोटी मूंछों को ऐंठते हुए थ्री स्टार वर्दी वाला बोला—“परसो शहर में गृहमन्त्री आ रहा है—फुलत सिटी के एक पुलिस स्टेशन को पुरस्कार देगा और पूरे स्टाफ का प्रमोशन भी होगा लेकिन ये सौभाग्य उस पुलिस स्टेशन को मिलेगा—जिसने पिछले तीन महीनों में सबसे ज्यादा मुजरिम पकड़े होंगे, अदालत में ज्यादा केस भेजे होंगे—नरेंद्र नगर का थाना हमसे आगे चल रहा है—वहां कोई वरुण पौढ़वाल नाम का थानेदार है।”
“वो तो बड़ा ही हरामी इंस्पेक्टर है क्रूरसिंह जी।” राजू नामक खूंखार सूरत वाला गुण्डा शराब की चुस्की लेकर बोला—“हमारा मोहन नगर में उससे पाला पड़ चुका है—हम पहले मोहन नगर में ही अपनी दुकान चलाते थे—उसने आते ही हमारे सारे धन्धे बन्द करवा दिए थे—हमें वार्निंग दे दी थी कि कोई भी गलत काम करेगा तो उसकी हड्डी-पसली तोड़ डालेगा—हमने उसे खरीदने की भी चेष्टा की थी लेकिन वो रिश्वत के नाम से यूं बिदकता था...जैसे छतरी देखकर भैंस बिदकती है—रिश्वत देने वालों को वो बुरी तरह मारता था—हमें वहां से भागकर फुलत सिटी ही आना पड़ा था—होम मिनिस्टर से वो ही इनाम ले मरेगा।”
“नहीं, कोई सवाल ही नहीं उठता है।” क्रूरसिंह भभकते हुए बोला—“होम मिनिस्टर इसी पुलिस स्टेशन को इनाम देकर प्रमोट करेगा—हम लोग चौबीस घण्टे में ही नरेंद्र नगर के पुलिस स्टेशन को पीछे छोड़ देंगे।”
“भला वो कैसे?”
क्रूरसिंह ने मोटी मूछों पर ताव दिया और पुलिसिया मुस्कान के साथ कहने लगा—“केस बनाना तो हम वर्दी वालों के लिए बाएं हाथ का काम होता है राजू भाई—हम लोग चौबीस घण्टे में ही तहलका मचा देंगे—हमारे इलाके में जबरदस्त धरपकड़ होगी—हम लोग अगर तुम जैसे सांपों को रस्सी बनाकर बचा सकते हैं तो रस्सी जैसे लोगों को सांप साबित करके लदवा भी सकते हैं—मान लो कि हमें कोई चोर पकड़ना है—हम किसी भी शिकार को पकड़ लेंगे—उसे लेकर किसी घर या दुकान में घुसकर माल पार कर देंगे और चोरी का इल्जाम उस पर लगा देंगे—हम किन्हीं भी दो जाते हुए आदमियों को पकड़कर एक को मार देंगे—दूसरे के हाथ में जबरन देसी पिस्तौल थामकर उसे कत्ल के केस में लाद देंगे—हम लोग चाहेंगे तो चौबीस घण्टे में चौबीस-सौ बेगुनाहों को मुजरिम बनाकर रख देंगे।
“मान गये आपको क्रूरसिंह जी, आप एक नम्बर के हरामी पुलिसिए हैं।
क्रूरसिंह हो-हो करके यूं हंसा मानो उसको भारत रत्न की उपाधि मिल गयी थी।
“अब हम चलेंगे क्रूरसिंह जी—अपने मौहल्ले में एक गजब की खूबसूरत लड़की है—शराफत से तो वो हमारे जाल में फंसी नहीं—आज उस साली को जबरन ही उठा लेते हैं—वो अपनी इज्जत लुटवाकर आपके पास रिपोर्ट लिखवाने आए तो...।”
“तुम फिक्र ना करो राजू भाई, हम सारी रात उसे पुलिस स्टेशन में रखकर ऐसी रिपोर्ट लिखेंगे कि कभी पुलिस स्टेशन का रुख भी नहीं करेगी।”
राजू जब अपने साथियों के साथ बाहर निकला तो उसे भागकर जाती किसी युवती की पीठ नजर आई।
¶¶
काले-कलूटे और चेचक के दाग वाले शख्स ने बोतल मुंह से लगाई कई घूंट शराब की पेट में पहुंचाईं और युवती को सुर्ख आंखों से घूरते हुए बोला—
“तू रंगा दादा के अड्डे पर क्यों चली आयी है री लड़की—क्या तेरे को मालूम नहीं था कि अपुन खतरनाक और जालिम आदमी है?”
“मालूम था रंगा जी लेकिन मुझे मौहल्ले के कुछ बदमाश परेशान कर रहे हैं—वो कमीने मेरी इज्जत खराब करना चाहते हैं।”
“तो यहां क्यों आयी है री? तेरे को पुलिस स्टेशन जाकर कम्प्लेन्ट करनी थी ना।”
“गयी थी इंसाफ के उस मन्दिर में भी मैं...।” वो कड़वाहट भरे लहजे में बोली—“कानून के रखवाले ना केवल गुण्डों के साथ ही बैठकर दारु पी रहे थे—जब गुण्डों ने मेरी इज्जत से खेलने की बात की थी तो थानेदार ने कहा था कि वो मेरी ऐसी रिपोर्ट लिखेगा रात भर कि मैं कभी पुलिस स्टेशन का रुख नहीं करूंगी—यानी गुण्डों के हाथों अपनी इज्जत खोने पर मैं थाने में जाती हूं तो वहां कानून के रुमाल से मेरे आंसू नहीं पौंछे जाएंगे—ना ही खाकी वर्दी जख्मों का मरहम बनेगी—बल्कि कानून की तलवार से मेरी इज्जत की लाश का पोस्टमार्टम ही कर दिया जाएगा—मेरी इज्जत के खरोंच पड़े गले को घोंट ही दिया जाएगा—मैंने सुना है कि आप कीमत लेकर ईमानदारी के साथ अपना काम करते हैं रंगा जी—मैं अपनी स्वर्गीय मां के सारे गहने लाई हूं—ताकि अपनी इज्जत के गहने को बचा सकूं।”
उसने जेवर की पोटली रंगा के सामने मेज पर रख दी।
रंगा ने पोटली उठाकर खोली और जेवर को एक नजर देखने पर बोला—“कौन से गुण्डे तुम्हें परेशान कर रहे हैं बहन?”
“ब...बहन कहा आपने मुझे?” वो हैरानी में पड़ी हुई भर्राए गले से बोली—“लोग तो आपको खूंखार और बेरहम गुण्डा बोलते हैं।”
“ठीक बोलते हैं बहन...।” वो मुस्कुराते हुए बोला—“मैं बेरहम और खूंखार ही हूं—जब किसी का कत्ल करता हूं तो मेरा चाकू वाला हाथ कांपता नहीं है—मरने वाले की गिड़गिड़ाहट और आंसुओं का कोई फर्क नहीं पड़ता है रंगा पर—पेशेवर मुजरिम हूं ना मैं—अगर पैसे लेकर शिकार पर तरस खाकर उसे कत्ल नहीं करूंगा तो अपुन का धन्धा चौपट हो जाएगा—तुमने उन गुण्डों के नाम नहीं बताए।”
“राजू और उसके चमचे हैं।”
“तुम बेफिक्र हो जाओ बहन।” वो जेब से चाकू निकालकर उसकी धार पर उंगली फेरते हुए बोला—“वो साले कल का सूरज नहीं देख पाएंगे।”
युवती ने हाथ जोड़कर रंगा का अभिवादन किया और पलटकर चल दी।
“रुको...वापस आओ।”
वो आशंका भरे भाव के साथ पलटी और सहमी हुई-सी रंगा के पास आयी।
रंगा ने सोने का कंगन उठाकर कुर्ते की जेब में डाला और बोला—“मैं एक कत्ल के दस हजार लेता हूं। ये एक कंगन दस हजार का होगा। राजू के कत्ल की कीमत रख ली है अपुन ने। बाकी को मारने की कोई जरूरत नहीं है—वो मारे दहशत के ही इलाका छोड़कर भाग जाएंगे—बाकी जेवर उठाकर ले जाओ।”
वो भौचक्की-सी रंगा को देखती रह गयी।
“यूं क्या देखती है री बहना—अपुन गुण्डा जरूर है, बुरे काम भी करता है लेकिन ईमानदारी के साथ—हम लोग अगर बेईमानी करेंगे तो हमारे धन्धे चौपट हो जाएंगे—हम पुलिस वाले तो है नहीं कि सरकार से तनख्वाह मिलती रहेगी। जाओ, बाकी जेवर उठाकर इस बदनाम जगह से फौरन ही चली जाओ—ये जेवर तुम्हारे भविष्य में काम आएंगे—अगर फिर कोई काम आ पड़े तो कीमत लेकर चली आना।”
उसने पोटली उठा ली और बाहर को चलते हुए मन-ही-मन में कह उठी—“तुम उस थानेदार से लाख बेहतर हो रंगा भाई—तुम्हारा करेक्टर...कोई ईमान तो है—वो थानेदार पवित्र वर्दी पहनकर भी राक्षस बना हुआ है—जबकि तुम शैतान का चोला पहनकर भी किसी हद तक इंसान हो—मैं तुम्हारे पास से महफूज तो जा रही हूं—अगर उस थानेदार के पास जाती तो इन गहनों के साथ लाज का गहना भी चला जाता।”
¶¶
“ब...बचाओ...कोई तो बचाओ मुझे।” दस-बारह गुण्डों में घिरी हुई वो युवती मदद की उम्मीद में चारों तरफ निगाहें दौड़ाते हुए चिल्लाई—“ये बदमाश मेरी इज्जत से खेलना चाहते हैं—ये मुझे बर्बाद कर देंगे।”
“तेरे नसीब में आज के दिन बर्बाद होना ही लिखा है खूबसूरत परी।” गुण्डों का लीडर उसकी कलाई पकड़ते हुए बोला—“मंगू दादा का रौब है नरेंद्र नगर के भीतर—कोई माई का लाल तेरी मदद को नहीं आएगा—क्योंकि उसे मालूम है कि मंगू दादा पेट में चाकू घुसेड़कर आंतों को बाहर निकालने में देरी नहीं करता है—मैं भी देखता हूं कि कौन साला तेरी मदद करता है—चल, मेरी जान—मैं अड्डे पर ले जाकर तेरी खूबसूरती के सारे पंख नोच डालूंगा।”
मंगू दादा ने उसे उठाकर कन्धे पर डाल लिया—वो दो-चार कदम ही चला था कि एक लम्बे कद के गोरे और खूबसूरत शख्स ने उसका रास्ता रोक लिया।
“ओए कौन है तू? मेरा रास्ता क्यों रोका है तूने?”
“इस लड़की को नीचे उतार दो मिस्टर...?”
“क्यों उतार दूं बे—ये तेरी बहन लगती है क्या?”
“हां, ऐसा ही समझ ले...।” वो मंगू की सुर्ख आंखों में झांकते हुए बर्फ से ठण्डे लहजे में बोला—“हर मजलूम लड़की मेरी बहन लगती है।”
“फिर तो मैं तेरा जीजा लगा बेटे।”
मंगू के साथी हंसने लगे।
“अगर तूने इस लड़की के साथ सात फेरे लिए होते तो तुझे जीजा बोलने में कोई एतराज नहीं होता मुझे लेकिन तू तो इसे जबरन अपने साथ ले जाना चाहता है—चल, जल्दी कर, छोड़ दे लड़की को।”
“तू शायद मेरे को जानता नहीं है मुन्ना—अगर जानता होता तो इतनी दिलेरी से बात नहीं करता।”
“जानता हूं तेरे को मैं...।” वो हाथी की सूंड जैसी मोटी कलाई पर हाथ फेरते हुए बोला—“तुझे मंगू दादा कहा जाता है, इलाके का टॉप बदमाश है तू, क़त्ल के इल्जाम में पकड़ा गया था—डर के मारे कोई तेरे खिलाफ गवाही देने को राजी ना हुआ था—इसीलिए अदालत ने तुझे संदेह का लाभ देकर बरी कर दिया—आज ही कोर्ट से रिहा होकर आया है।”
“तू तो जानता है अपुन को।” वो नाटकीय अन्दाज में हैरानी प्रकट करते हुए बोला—“फिर भी मेरे सामने दीवार बनकर खड़ा है—रास्ता छोड़ दे बेटा—वर्ना मुफ्त में मारा जाएगा।”
“मुफ्त में तो तू मारा जाएगा मंगू...।” वो जम्हाई लेकर सिर को खुजलाते हुए बोला—“बड़े जोरों की नींद आ रही है यार—रात भर सो नहीं पाया हूं—लड़की को छोड़ दे—फिर जाकर सोना है मैंने।”
“अगर तूने अपुन के बॉस का रास्ता नहीं छोड़ा तो हम लोग तुझे जिन्दगी भर के लिए सुला देंगे बेटे।” एक मरियल-सा गुण्डा चाकू लहराते हुए बोला—“तेरे जैसे मच्छर के वास्ते तो अपुन ही बहुत है।”
वो जूड़ी के मरीज की भांति ही कांपने लगा।
“ये क्या कर रहा है तू? ठण्ड लगी है क्या?”
“नहीं पहलवान जी—तुमने तो ऐसा रौब दिया है कि मारे डर के मेरे हाथ-पैर कांपने लगे हैं—जरा दूर को चले जाओ भैया—डर के मारे हाथ तुम्हारे जिस्म को ना छू जाए।” कहने पर उसने बायां हाथ घुमाकर उस गुण्डे के थोबड़े पर मारा।
मानो उसके चेहरे पर कोई ढाई किलो का हथौड़ा जा टकराया था—वो चीख मारकर जमीन पर गिरा और बेहोश हो गया।
उसका जबड़ा खून के साथ मुंह से बाहर निकल आया था।
“तूने मेरे आदमी को मारा।” मंगू गुस्से से लाल-पीला होते हुए फुंफकारा—“अभी तेरे को मजा चखाता हूं—मेरे आदमी तेरा कचूमर निकालते हैं—मारो साले को—इतना मारो कि इसके जिस्म की कोई भी हड्डी साबुत ना बचने पाए।”
मंगू के चेले उस पर झपट पड़े।
लेकिन उस भीमकाय शख्सियत ने दो गुण्डों को गिरेहबान से पकड़कर जमीन से काफी ऊपर उठाकर बाकी गुण्डों पर फेंक मारा।
सारे गुण्डे आपस में उलझकर जमीन पर गिरे—फिर उन्हें उठने का कोई मौका नहीं मिल पाया।
उस शख्स ने उनकी धुनाई कर डाली—उसके हाथ और पैर विद्युत गति से ही चल रहे थे, मानो उसके जिस्म में ब्रूस ली की आत्मा प्रवेश कर गयी थी।
मंगू की आंखों में दुनिया भर की हैरानी भर आयी—वो समझ गया कि अगला भी कोई गुरु घण्टाल ही है—उसने युवती को कन्धे पर से उतारा और जेब से रिवॉल्वर निकालते हुए गुर्राया—“रुक जा हरामजादे—तूने तो मेरे आदमियों का कचूमर निकाल दिया है रे, छलिया कहीं के—मैं तेरे जिस्म में गोलियों के इतने सुराख कर दूंगा कि तुझे गणित पढ़ाने वाला मास्टर भी गिनती नहीं कर पाएगा।”
वो गुण्डों को छोड़कर मंगू की तरफ धीरे-धीरे बढ़ा और मुस्कुराते हुए बोला—“तेरे हाथ तो कांप रहे हैं साले—क्या खाकर गोली चलाएगा तू? मार गोली मुझे—देखूं कि तेरी उंगली में ट्रिगर दबाने की ताकत है भी कि नहीं?”
“आ...आगे मत बढ़ना तू...बोलता हूं मैं...।” मंगू रिवॉल्वर लहराते हुए बोला—“गो...गोली मार दूंगा—तू जानता नहीं है मेरे को।”
उसने झपटकर मंगू से रिवॉल्वर छीन ली और रिवॉल्वर के दस्ते का भरपूर वार मंगू के थोबड़े पर कर दिया।
मंगू चीखता हुआ जमीन पर गिरा और दांत थूकते हुए उठने की चेष्टा करने लगा।
उसने मंगू को गिरेहबान से पकड़कर उठाया और अपनी तरफ घुमाकर उसके पेट में घुटने का वार किया।
मंगू धड़ाम से गिरा और बिलबिलाते हुए इधर-उधर पटखनिया-सी खाने लगा।
डरी-सहमी सी युवती में साहस का संचार हुआ—वो पूरे जोशो-खरोश से चीखी—“इस शैतान को मारिए भाई साहब—अगर आप आकर मेरी मदद नहीं करते तो ये शैतान मेरी इज्जत लूट लेता—मुझे बर्बाद कर दिया होता इस कमीने ने...मारिए इसे।”
भाई साहब ने मंगू को मार-मारकर अधमर-सा कर दिया—मंगू के जिस्म पर कपड़ों के नाम पर चिथड़े ही झूल रहे थे, वो उसके पैरों से लिपट गया और रोते हुए रहम की भीख मांगने लगा।
उसने मंगू को उठाकर युवती के कदमों में पटक दिया और उसकी पीठ पर लाल रंग के जूते की ठोकर मारते हुए बोला—“तू इस बहन का गुनाहगार है—माफी भी इसी से मांग, इतना याद रखना साले कि अगर इसने तुझे माफ नहीं किया तो तेरी हड्डियों के इतने टुकड़े कर दूंगा कि दुनिया का कोई मैथ का टीचर तो क्या—कम्प्यूटर भी गिनती नहीं कर पाएगा।”
मंगू ने रो-रोकर अपने आंसुओं से युवती के पैरों को कतई नहला दिया और रहम की भीख मांगता रहा।
“इसे अपने किए की सजा मिल गयी है भाई साहब...।” वो पसीजते हुए बोली—“इसे माफ कर दीजिए।”
मंगू उठा और लंगड़ाकर चलने लगा।
“किधर जाता है बे तू...।” वो मंगू का कॉलर पकड़ते हुए बोला—“इस बहन ने भले ही माफ कर दिया हो तुझे लेकिन कानून ने नहीं—पुलिस स्टेशन चल—तेरे खिलाफ रिपोर्ट होगी—तुझे जेल की हवा खानी है अभी।”
“न...नहीं, मैं पुलिस स्टेशन नहीं जाऊंगी भाई साहब।” युवती नर्वस होते हुए बोली—“इस मामले को यहीं रफा-दफा कर दीजिए—मुझे पुलिस स्टेशन जाने से डर लगता है—ये शैतान अगर मेरी इज्जत लूट लेता तो भी मैं पुलिस स्टेशन नहीं जाती।”
“क्यों?”
“पुलिस वाले इन गुण्डों से भी ज्यादा खराब होते हैं भाई साहब—उन्हें वर्दी के रूप में गुण्डागर्दी करने का सरकारी लाइसेंस मिल जाता है—इन गुण्डों के खिलाफ तो कोई शिकायत भी की जा सकती है लेकिन पुलिस वालों के खिलाफ कोई शिकायत भी नहीं कर सकता—मेरी आपकी मेहरबानी से लाज बच गयी—अगर मैं पुलिस स्टेशन पहुंच गयी तो...।”
“मैं तुम्हें कोई दोष नहीं दूंगा बहन।” वो कसमसाते हुए बोला—“तुमने कहीं सुना या पढ़ लिया होगा कि पुलिस स्टेशन में किसी औरत के साथ अभद्रता हुई लेकिन पांचों उंगलियां बराबर नहीं होती हैं—हां, एक गन्दी मछली के कारण पूरा तालाब ही बदनाम हो जाता है—तुम अपने इस भाई पर भरोसा करके पुलिस स्टेशन चलोगी—तुम्हारी ये गलतफहमी दूर हो जाएगी कि सभी पुलिसवाले बुरे होते हैं।”
“नहीं भाई साहब—भगवान के लिए आप भी वहां मत जाइए—पुलिस स्टेशन का कोई भरोसा थोड़े ही है, हो सकता है कि ये मंगू पुलिस स्टेशन वालों को हफ्ता भिजवाता हो—तब पुलिस वाले इसे अपने बराबर में बैठाकर खिलाएंगे-पिलाएंगे और आपको लॉकअप में बन्द कर देंगे—आपको किसी झूठे केस में फंसा दिया जाएगा।”
“नहीं—मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं होगा...।” कहने के पश्चात उसने विल्स का पैकेट और माचिस निकालकर एक सिगरेट सुलगा ली।
“भला आपके साथ ऐसा क्यों नहीं होगा।”
“क्योंकि...।” वो युवती की आंखों में झांकते हुए जख्मी किस्म की मुस्कान के साथ बोला—“मैं ही पुलिस स्टेशन का इन्चार्ज हूं—मुझे इंस्पेक्टर वरुण...वरुण पौढ़वाल कहते हैं।”
युवती को मानो चार सौ चालीस वोल्ट का करण्ट लगा था, वो चिहुंकी और विस्फारित निगाहों से घूरती रह गयी।
¶¶
admin –
Aliquam fringilla euismod risus ac bibendum. Sed sit amet sem varius ante feugiat lacinia. Nunc ipsum nulla, vulputate ut venenatis vitae, malesuada ut mi. Quisque iaculis, dui congue placerat pretium, augue erat accumsan lacus