नीला आकाश
राजहंस
मुम्बई के सागर तट पर स्थित करीब पांच हजार वर्गमीटर भूमि में फैली यह पैलेसनुमा इमारत रायचन्द परिवार की शानो-शौकत का जीता-जागता नमूना थी। उस महल के राजा थे—रायचन्द। जिनकी मर्जी के बिना एक पत्ता भी नहीं हिल सकता था।
रायचन्द कोई सचमुच के राजा नहीं थे; लेकिन उनका व्यक्तित्व, उनकी शानो-शौकत और उनका आदेश किसी राजा से कम नहीं था।
रायचन्द की पत्नी का देहान्त दस साल पहले ही हो चुका था। अब उनके परिवार में उनकी दो बेटियां और एक बेटा था। उनकी बड़ी बेटी का नाम दामिनी था, जो कि उनकी नाजायज औलाद थी, लेकिन फिर भी रायचन्द का सबसे ज्यादा स्नेह और लगाव उसी के खाते में आया था।
उनका बेटा कुणाल और छोटी बेटी भूमि से भी उन्हें प्यार था; लेकिन इतना नहीं जितना वह दामिनी से करते थे। उनकी सुबह दामिनी से शुरू होकर उसी के साथ ही खत्म हो जाती थी। वह कोई भी काम उसकी मर्जी के बिना नहीं करते थे। यही वजह थी कि उनके बिजनेस में भी दामिनी दिलचस्पी लेने लगी थी और वहां के काफी दांव-पेंच सीखती जा रही थी।
रायचन्द की जिन्दगी में टेन्शन नाम की कोई चीज ही नहीं थी...और अगर टेन्शन भूले-भटके आ भी जाए तो वह उससे निपटना अच्छी तरह जानते थे।
रायचन्द दामिनी से बहुत प्यार करते थे। वह उनकी जिन्दगी का एक अहम हिस्सा थी। दामिनी भी अपने परिवार को दिलोजान से चाहती थी। परिवार के एक-एक सदस्य की हर खुशी का ख्याल दामिनी को हर समय रहता था। शायद यही वजह थी कि परिवार का हर सदस्य दामिनी से बेहद प्यार करता था; लेकिन भूमि के दिल में कहीं न कहीं कोई बात अवश्य थी, जिसे लेकर वह दामिनी पर हमेशा तंज करती रहती थी।
आज का दिन दामिनी के लिए बड़ी ही खुशी का दिन था; क्योंकि ठीक एक घण्टे बाद मध्यरात्रि के बारह बजने वाले थे और उसके लिए एक खास महत्व रखता था; क्योंकि इसी दिन उसके पिता का जन्म हुआ था।
वह बड़ी बेताबी से वॉल क्लॉक की ओर देखते हुए बारह बजने का इन्तजार कर रही थी। ताकि 14 दिसम्बर लगते ही वह अपने पिता को उनके जन्मदिन की बधाई दे सके और इसके साथ ढेर सारी खुशियां।
अभी इन्तजार की घड़ियां खत्म भी नहीं हुई थीं कि कुणाल का स्वर उसके कानों से टकराया—
“दीदी...!”
“अरे, कुणाल तू आ गया...।” दामिनी ने चौंकने वाले अन्दाज में उसकी ओर देखा।
“हां। लेकिन तू यहां बैठी क्या कर रही है?” कुणाल ने हैरानी से पूछा।
“तुम्हारा इन्तजार।” दामिनी ने उसका कान पकड़ते हुए जोर से उमेठा।
“अरे, यह क्या कर रही है दीदी...।” कुणाल ने अपना कान छुड़ाने की कोशिश की।
“पहले तो तू यह बता कि तू इतनी देर रात तक कहां घूम रहा था?” दामिनी ने बनावटी गुस्से से घूरा।
“ओफ्फो दीदी...। आते ही तुमने फिर सवाल-जवाब शुरू कर दिए।” कुणाल ने मुंह बनाया।
“क्यों, क्या मैं तुझसे कोई सवाल नहीं कर सकती? आखिर बड़ी बहन हूं तेरी!”
“मैंने कब कहा कि तू मेरी बहन नहीं है।” कुणाल ने अपना कान सहलाते हुए कहा।
“तो फिर तेरी बड़ी बहन होने के नाते मुझे हर सवाल पूछने का पूरा हक बनता है।” दामिनी ने स्नेहपूर्ण दृष्टि डालते हुए मुस्कुराकर कहा।
“बिल्कुल बनता है।” कुणाल ने एक गहरी सांस ली।
“और तुम मेरे छोटे भाई हो, इसीलिए तुम्हारा फर्ज है कि तुम मेरे हर सवाल का जवाब दो।” दामिनी ने घूरते हुए उसकी ओर देखा।
“जानता हूं, और इसीलिए तेरे हर सवाल का जवाब पहले भी देता आया हूं।”
“तो फिर आज जवाब देने से क्यों कतरा रहा है?” दामिनी ने उत्सुकता से पूछा।
“मैं कहां कतरा रहा हूं! जो कुछ पूछना चाहती है, जल्दी से पूछ, मुझे बहुत नींद आ रही है।” कुणाल ने बोरियत से अपना सिर खुजाया।
दामिनी ने ऊपर से नीचे तक कुणाल का पूरा जायजा लेते हुए पूछा—
“क्या मैं जान सकती हूं कि तुम इतनी देर तक किसके साथ थे?”
“मैं तेरे सवाल का जवाब दे तो सकता हूं...मगर मैं देना नहीं चाहता।” कुणाल ने कनखियों से उसकी ओर देखा।
“क्यों?” दामिनी हल्के से चौंकी।
“क्योंकि अब मैं जवान हो चुका हूं, मेरी भी अपनी एक लाइफ है, जिसमें तू बार-बार इण्टरफेयर करती रहती है...।” कुणाल ने उसे परेशान करने की कोशिश की।
“क्या?” उसकी बात सुनते ही दामिनी चौंक पड़ी—“मैं तेरी लाइफ में इन्टरफेयर करती हूं?”
“और नहीं तो क्या!” कुणाल कन्धे उचकाते हुए बोला—“हर सवाल का जवाब देना कोई जरूरी तो नहीं होता! और तू हर सवाल का जवाब मांगती है।”
“अच्छा बच्चे! अब तू जवान हो गया है!” दामिनी ने फिर से उसका कान पकड़ने की कोशिश की, लेकिन वह तेजी से पीछे हट गया।
“अरे, दीदी...मैं तो ऐसे ही मजाक कर रहा था।” कुणाल मुस्कुराया।
“सच कह रहा है?” दामिनी ने घूरते हुए उसकी ओर देखा।
“हां दीदी...।” कुणाल ने उसके सिर पर हाथ रखकर उसे विश्वास दिलाया—“तेरी कसम।”
“तूने तो मुझे एकदम डरा ही दिया था, कुणाल।” दामिनी ने इत्मीनान की एक सांस ली।
“अच्छा, अब यह बता कि तू इतनी देर तक यहां बैठी क्या कर रही है, तुझे तो इस समय अपने कमरे में होना चाहिए था?” उसने हैरानी से पूछा।
“हां! मुझे इस समय अपने कमरे में ही होना चाहिए था; लेकिन एक खास वजह है मेरे यहां रुकने की...।” दामिनी ने सोचने वाली मुद्रा में कहा।
“कौन-सी खास वजह?” कुणाल ने हैरानी से पूछा।
“बेवकूफ! कल पापा का जन्मदिन है, और मैं उनके जन्मदिन की मुबारकबाद उन्हें सबसे पहले देना चाहती हूं; इसीलिए बारह बजने का इन्तजार कर रही थी।” दामिनी ने बताया।
“ओह! यह बात है।”
“यस।” दामिनी ने स्वीकृति में गर्दन हिलाई।
“तो फिर ठीक है, मैं भी तुम्हारे साथ-साथ उन्हें जन्मदिन की मुबारकबाद दूंगा।” कुणाल ने कहा।
“हम सब पापा को एक साथ जन्मदिन की मुबारकबाद देंगे।” दामिनी खुश होकर बोली।
“हम सब कौन?”
“मेरा मतलब तू, मैं और भूमि से है।” दामिनी ने अपने शब्दों पर जोर देते हुए कहा।
“तो फिर भूमि कहां है? उसे तो इस समय यहां होना चाहिए था...।” कुणाल ने इधर-उधर दृष्टि दौड़ाई।
“भूमि इस समय अपने कमरे में होगी, चलो उसके पास चलते हैं।” दामिनी बोली।
“तुझे हर समय भूमि की इतनी चिन्ता क्यों रहती है?” कुणाल ने पूछा।
“अरे! इसमें चिन्ता की क्या बात है, हम लोगों को एक साथ पापा को विश करना है और अगर भूमि भी हमारे साथ रहेगी तो पापा को ज्यादा खुशी होगी।” दामिनी ने सोचने वाले अन्दाज में कहा—“और फिर वह भी हमारे साथ-साथ पापा को विश कर देगी।”
“लेकिन वह हमेशा तुझे कुछ न कुछ कहती रहती है, फिर भी तुझे उसकी बातों का बुरा नहीं लगता?” कुणाल ने हैरानी से पूछा।
“बिल्कुल नहीं।” दामिनी ने लापरवाही से कहा।
“वजह।”
“क्योंकि वह मेरी छोटी बहन है...और मैं जानती हूं कि अभी वह थोड़ी नासमझ भी है। वक्त के साथ-साथ उसे समझ भी आ जाएगी।” दामिनी ने विश्वास के साथ कहा।
“तुझे इस बात का पूरा विश्वास है, दीदी?” कुणाल ने हैरानी से पूछा।
“हां।” दामिनी ने एक गहरी सांस ली।
“लेकिन मुझे नहीं लगता कि भूमि को कभी इस बात की अक्ल आएगी कि तू उसकी बड़ी बहन है।” कुणाल का अन्दाज मजाक उड़ाने वाला था।
“मुझे इस बात की परवाह नहीं।” दामिनी ने लापरवाही के साथ कहा।
“क्या तुझे भूमि के इस बर्ताव से जरा भी परेशानी नहीं होती?” कुणाल ने सवाल किया।
“भूमि मेरी छोटी बहन है। मेरे लिए इतना ही काफी है।” दामिनी के होठों पर मुस्कान थी।
उसकी बातें सुनकर कुणाल कुछ देर के लिए सोच में पड़ गया। फिर एक गहरी सांस लेकर बोला—“समझ में नहीं आता कि तू किस मिट्टी की बनी है! तुझ पर किसी बात का भी असर ही नहीं होता।”
“अब बातों में टाइम वेस्ट करता रहेगा या फिर भूमि को बुलाने भी चलेगा?” दामिनी ने बोर होते हुए पूछा।
“ओ○के○! चल।” इतना कहकर कुणाल भूमि के कमरे की ओर चल दिया। दामिनी भी उसके पीछे-पीछे भूमि के कमरे की तरफ चल दी।
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