मर्डर मिस्ट्री
राकेश पाठक
“आपको अपनी बेटी के कत्ल की खबर कैसे हुई सेठ जी?” भूरी आंखों वाला इंस्पेक्टर सेठ गिरधारी लाल की आंखों में झांकते हुए बोला—“क्योंकि आपकी बेटी का कत्ल इस खण्डहर-नुमा मकान में हुआ है जो कि शहर से बाहर निर्जन स्थान में है। डॉक्टर के अनुसार आपकी बेटी का कत्ल दस बजे के आस-पास हुआ। मेरी अपनी थिंकिंग भी ऐसी ही है। कातिल ने पहले आपकी बेटी का रेप किया और फिर लोहे की रॉड से मार डाला, जो की लाश के समीप ही खून से सनी हुई पड़ी है। आपकी बेटी ने अपनी जान बचाने को कातिल के साथ संघर्ष किया होगा। हाथों से वार रोकने की चेष्टा की होगी। लोहे की रॉड का भरपूर वार आपकी बेटी नमिता की राइट हैण्ड की रिस्ट पर बंधी 'टाइटन' वॉच पर पड़ा। वॉच फौरन ही टूट गई और तीनों नीडिल्स जाम हो गईं। नीडिल्स दस बजा रही हैं। इससे अंदाजा लगता है कि कत्ल दस बजे के आस-पास हुआ। और आपने पुलिस को साढ़े दस बजे ही फोन करके कत्ल की इन्फार्मेशन दे दी थी न, यानी सिर्फ आधे घण्टे बाद ही। क्या कत्ल आपकी मौजूदगी में ही हुआ था?”
साठ वर्षीय सेठ गिरधारी लाल उबड़-खाबड़ और गन्दे फर्श पर पड़ी अपनी बेटी नमिता की रक्त-रंजित लाश को एकटक घूरे जा रहा था।
निर्वस्त्र लाश के ऊपर काला कोट डाल दिया गया था, जो कि गिरधारी लाल ने ही डाला था। लाश की दशा इतनी खराब थी कि लगता था कातिल शायद मानसिक रूप से विक्षिप्त था।
उसने नमिता के चेहरे व सिर पर लोहे की रॉड के इतने वार किए थे कि उसका सिर तरबूज की भांति फट गया था तथा चेहरे की धज्जियां उड़ गई थीं।
भर आईं आंखों को रुमाल से पोंछने पर वो भर्राए गले से बोला—“आज सुबह नमिता ने हमें बताया कि आज उसकी सहेली पद्मा की मंगनी है। वो दोपहर को अपनी सहेली के यहां चली गई। नमिता का छोटा भाई यानी हमारा बेटा रवि कॉलेज टूर पर गया हुआ है। ड्राइवर नौकरी छोड़कर चला गया था और नमिता को ड्राइविंग नहीं आती थी। हमें ट्रैम्प्रेचर था। सो नमिता टैक्सी से चली गई। फिर शाम को कोई सात बजे नमिता ने हमें फोन करके कहा कि लड़के वाले लेट आए हैं, उसकी सहेली की मंगनी लेट होगी। नमिता ने बताया कि वो रवि के दोस्त श्याम के साथ आ जाएगी।
“श्याम...?” इंस्पेक्टर गोखले की भूरी आंखें सिकुड़ चलीं—“ये श्याम कौन है? पद्मा का कोई रिश्तेदार है क्या?”
“हां, वो पद्मा का रिश्तेदार है और हमारे बेटे रवि का फास्ट फ्रेण्ड भी है। दोनों डी० ए० वी० कॉलेज में साथ-साथ पढ़ते हैं। दोनों में सगे भाईयों से भी बढ़कर प्यार है। एक-दूसरे के लिए जान देने को भी तत्पर रहते हैं। श्याम पेट दर्द के कारण रवि के साथ टूर पर नहीं जा सका था।”
इंस्पेक्टर गोखले ने धीरे से सिर को झटका दिया, फिर बोला—“हां, फिर क्या हुआ?”
“जब नौ बजने तक भी नमिता घर नहीं लौटी तो हमने पद्मा के घर फोन किया और नमिता के बारे में पूछा।”
“क्या जवाब मिला?”
“फोन श्याम ने रिसीव किया था। उसने बताया कि उसे पद्मा के ससुरालियों को स्टेशन पर सी ऑफ करने के लिए जाना पड़ा। नमिता से बोलकर गया था कि वो लौटते ही उसे घर छोड़ आएगा, परन्तु वो लौटा तो नमिता जा चुकी थी, पद्मा से ये बोलकर कि पापाजी चिन्ता कर रहे होंगे। हमें श्याम ने बताया कि नमिता कोई पन्द्रह मिनट पहले ही गई है वो बस घर पहुंचने ही वाली होगी। परन्तु इंस्पेक्टर साहब, नमिता जब साढ़े नौ बजे तक भी नहीं लौटी तो हमें चिन्ता हो गई। नमिता की तलाश में कोठी से निकलने वाले थे कि श्याम आ पहुंचा। उसे जब पता चला कि नमिता वापस नहीं लौटी है तो वो चिन्तित हो गया। वो हमसे बोला कि हम दोनों को नमिता की तलाश में अलग-अलग जाना चाहिए। उसके पास अपनी कार थी।”
“कातिल भी शायद नमिता को कार से लेकर ही यहां आया था...।” इंस्पेक्टर गोखले बड़बड़ाने वाले भाव से बोला—“सड़क से इस मकान के बाहर तक कार के टायरों के मार्क्स हैं।”
उधर गिरधारी लाल अपनी ही धुन में बोले जा रहे थे—“हमने नमिता की सड़कों पर तलाश की, अपने कुछ परिचितों से भी टेलीफोन बूथ के फोन से रिंग करके नमिता के बारे में पूछा, परन्तु सभी ने कहा कि नमिता उनके यहां नहीं आई है। तभी बूथ के बाहर एक कार आकर रुकी। उसमें कोई पति-पत्नी थे। पति पुलिस को फोन करने को बोल रहा था, परन्तु बीवी इंकार कर रही थी, वो पुलिस के लफड़े में नहीं फंसना चाहती थी। हमने उनसे ऐसे ही अपनी बेटी का हुलिया बताकर पूछ लिया कि क्या उन्होंने नमिता को देखा है? तब उन्होंने बताया कि वो दिल्ली से लौट रहे हैं। शहर के बाहर उन्होंने चुंगी के पास एक पुराने मकान के भीतर से किसी लड़की की चीखें सुनी थीं, जैसे कोई उसे बेरहमी के साथ मार रहा था। ना जाने क्यों हमारा दिल मारे अनहोनी की आशंका से धड़क उठा। हम फौरन ही यहां आए और...।”
“एक मिनट...।” इंस्पेक्टर हाथ उठाकर एकदम से बोला—“एक मिनट सेठ जी। क्या आप अपनी कार को मकान तक लेकर आए थे?”
“जी नहीं, हमने कातिल के डर से कार सड़क पर खड़ी कर दी थी। फिर हम यहां डरते-डरते आए थे। अपनी बेटी की लाश को देखकर कलेजा मुंह को आ गया। फिर हमने चुंगी के फोन से आपको इन्फॉर्मेशन दी थी। न जाने किस बेरहम कसाई ने हमारी बेटी को बेइज्जत करके जान से मार डाला है इंस्पेक्टर साहब? कातिल को पकड़कर फांसी पर जरूर लटकवाइएगा, वर्ना हमारी बेटी की आत्मा को शान्ति नहीं मिलेगी।”
“आप चिन्ता ना करें सेठ जी, पुलिस अपनी तरफ से पूरी-पूरी चेष्टा करेगी...अरे ये क्या?”
इंस्पेक्टर ने लपककर कोने में पड़ी कोई चार मीटर लम्बी रेशमी डोरी उठा ली और उसे उलटते-पलटते हुए नमिता की लाश के करीब पहुंचा।
वो झुककर लाश के हाथों व पैरों को ध्यान के साथ घूरने लगा।
फिर सीधा होते हुए बोला—“लाश की कलाइयों और पैरों के टखनों पर डोरी के निशान हैं सेठ जी! यानी कातिल ने आपकी बेटी को एक डोरी से बांधा भी था।”
“हमारी बेटी ने उस कमीने को इतनी आसानी के साथ अपनी बेइज्जती करने का मौका नहीं दिया होगा। उसने अपनी इज्जत बचाने की पूरी-पूरी चेष्टा की होगी। तब कातिल ने उसे डोरी से बांधकर बेबस कर दिया होगा।”
“शायद...शायद ऐसा ही होगा सेठ जी?”
तभी फॉरेन्सिक एक्सपर्ट टीम आ पहुंची। इंस्पेक्टर गोखले उन्हें आवश्यक निर्देश देने लगा।
फिर बाद में पंचनामा भरने पर नमिता की डैडबॉडी को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया।
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बीस वर्षीय श्याम था तो सांवले रंग का, परन्तु उसके नैन-नक्श अच्छे थे। वो अपने अधेड़ चाचा किशनलाल के साथ हॉस्पिटल पहुंचा।
वहां गिरधारी लाल का बेटा रवि था। रवि भी श्याम का ही हमउम्र था। वो कद-काठी में भी बिल्कुल श्याम जैसा था, परन्तु उसका रंग काफी गोरा था।
“श्याम...!” रवि श्याम के सीने से लगकर फफक उठा—“ये सब क्या हो रहा है हमारे साथ? पहले दीदी का कत्ल हुआ और आज डैडी भी चल बसे। वो दीदी की मौत का सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाए और लम्बी बीमारी के बाद मुझे छोड़कर चले गए। मेरा तो कोई भी नहीं रहा है?”
श्याम भी रोने लगा।
“धीरज से काम लो रवि बेटे...।” श्याम का चाचा किशनलाल रवि के सिर पर हाथ फेरते हुए बोला—“शायद ईश्वर को ऐसा ही स्वीकार था। तुम ये क्यों बोलते हो कि तुम्हारा कोई नहीं रहा है। क्या हम तुम्हारे नहीं हैं? श्याम तुम्हारे लिए सगे भाई से बढ़कर है। हमें भी तुम अपना बुजुर्ग समझो बेटे!”
“आप ठीक बोलते हैं अंकल...।” श्याम आंसू पौंछते हुए बोला—“मैं रवि का सगे भाई से बढ़कर हूं। मुझे इस बात का आजीवन अफसोस रहेगा कि मैं नमिता दीदी को नहीं बचा सका। काश कि मैं पद्मा के ससुरालियों को स्टेशन पर छोड़ने नहीं जाता...तो दीदी अकेली नहीं जातीं और उस कातिल के पंजे में नहीं फंसती।”
“न-नहीं, इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है मेरे भाई...।” रवि श्याम के कन्धों पर हाथ रखते हुए बोला—“दीदी के भाग्य में ऐसा ही लिखा था। हां, इस बात का अफसोस जरूर है कि पुलिस साल भर बीत जाने पर भी दीदी के कातिल को तलाश नहीं कर पाई है। काश...काश कि मुझे एक बार ये मालूम हो जाता कि मेरी नमिता दीदी का कातिल कौन है, फिर मैं उस हरामजादे को जान से मार डालता।”
“ऐसा नहीं बोलते हैं रवि बेटे...।” किशनलाल माथे पर हथेली फेरते हुए बोला—“भगवान ने चाहा तो तुम्हारी बहन का कातिल पकड़ा जाएगा और अपने किए की सजा भी पाएगा। उसे सजा देने का काम कानून का है। अगर तुम कातिल को मारोगे तो कानून तुम्हें फांसी पर चढ़ा देगा।”
“कौन से कानून में इतना दम है अंकल कि वो मुझे फांसी पर लटका सके?” रवि का आंसुओं से भीगा हुआ चेहरा भभक उठा, उसके हलक से सांप जैसी फुंफकार खारिज हुई—“जो कानून साल भर बीत जाने पर भी मेरी दीदी के कातिल को नहीं पकड़ पाया है, वो भला मुझे क्या पकड़ेगा? कानून तो अन्धा है। बिना सबूत तथा गवाही के कोई फैसला ही नहीं कर पाता है। आज की तारीख में कोई भी होशियार व चालाक मुजरिम जुर्म करके कानून को धोखा दे सकता है। जैसे मेरी दीदी का कातिल आज तक बचा हुआ है...।”
तभी हॉस्पिटल के बाहर पुलिस जीप आकर रुकी। इंस्पेक्टर की वर्दी वाला गोरा-चिट्टा और तीस वर्षीय शख्स एक खूबसूरत युवती के साथ उतरा।
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“सुनील भैया...माधवी भाभी...।” बुदबुदाते हुए रवि सीढ़ी उतरकर उनके करीब पहुंचा और इंस्पेक्टर सुनील के सीने से लगकर रोने लगा।
“ये...ये सब कैसे हो गया रवि भैया...।” माधवी सुबकते हुए बोली—“ये लन्च टाइम में आए थे और बोले कि मौसा जी को देखने चलते हैं। इतने में ही उनकी मौत की मनोज खबर आ गई।”
“डैडी, बीमार तो चल ही रहे थे भाभी...।” वो सुबकते हुए बोला—“आज अचानक ही उनकी तबीयत ज्यादा बिगड़ गई और वो आध-पौन घण्टे में ही चल बसे। आते वक्त उनके होठों पर नमिता दीदी का ही नाम था भाभी। वो दीदी की मौत के सदमे में ही चल बसे। रोजाना ही मुझसे कहा करते थे कि बेटे, पुलिस नमिता के कातिल को कब पकड़कर फांसी पर लटकाएगी? अगर इंस्पेक्टर गोखले ने थोड़ी मेहनत की होती और दीदी के कातिल को पकड़ लिया होता तो शायद डैडी को थोड़ा सन्तोष हो जाता। शायद बीमार ना पड़ते।”
इंस्पेक्टर सुनील ने रवि के कन्धे पर हाथ रखा और गला खंखारते हुए बोला—“तब मेरी ड्यूटी पिलखवा में चल रही थी। मैं गाजियाबाद आकर कई बार इंस्पेक्टर गोखले से मिला था और उसकी कार्यवाही भी देखी थी मैंने। वो नमिता के कातिल की तलाश में लगा हुआ था। ये जानकर कि नमिता मेरी मौसी की बेटी थी, वो इस केस को गम्भीरता के साथ ले रहा था। शहर के सभी गुन्डे बदमाशों को उसने चैक किया था, परन्तु वो निर्दोष साबित हुए थे। पद्मा के घर से लेकर उस खण्डहरनुमा मकान के बीच में पड़ने वाले घरों व दुकानों पर पूछताछ की कि किसी ने नमिता को कातिल के साथ देखा हो। ऑटो-रिक्शा और टैक्सी चालकों से पूछताछ की गई थी, परन्तु कोई भी कुछ नहीं बता पाया था। दरअसल उस रात दस बजे तक खूब बारिश हुई थी, सो सड़क सुनसान पड़ी थी। किसी ने शायद नमिता का किडनैप होते हुए नहीं देखा था। अगर कोई देखता तो पुलिस को जरूर खबर देता, क्योंकि पुलिस ने कातिल का पता बताने वाले को बीस हजार रुपये का इनाम देने और उसका नाम गुप्त रखने की घोषणा की हुई थी। मेरे ख्याल से कातिल गाजियाबाद का रहने वाला नहीं था। शायद वो बाहर का रहने वाला था। तेज बारिश की वजह से नमिता को कोई टैक्सी नहीं मिली होगी और उसने कातिल से लिफ्ट मांगी होगी। नमिता खूबसूरत तो थी ही, सो कातिल की नीयत खराब हो गई होगी। तो उसने उस खण्डहरनुमा मकान में नमिता को रेप करके मार डाला और फरार हो गया। अब यहां का चार्ज मेरे हाथ में है। नमिता की फाइल मेरे अण्डर में है। मैं फाइल को पढ़ रहा हूं। अगर मुझे कातिल के बारे में जरा-सा भी सुराग मिल गया तो मैं कातिल को पकड़कर फांसी के फंदे पर जरूर लटकवा दूंगा।”
तभी वहां एक छः फुटा और हटे-कट्टे जिस्मा वाला युवक आ पहुंचा। उसने सफेद कुर्ता-पायजामा पहना हुआ था और दाढ़ी बढ़ा रखी थी।
“मुझे श्याम ने फोन करके ये मनहूस खबर दी...।” वो सुनील व माधवी का हाथ जोड़कर अभिवादन करने पर बोला—“मुझे अंकल की मौत का बेहद अफसोस है।”
शायद माधवी और सुनील उस युवक को नहीं जानते थे, सो उन्होंने रवि को प्रश्न-सूचक दृष्टि से देखा।
“ये देव हैं भैया-भाभी...।” रवि ने बताया—“ये नमिता दीदी से प्यार करते थे। डैडी ने इन्हें अपना दामाद बनाने का निर्णय भी ले लिया था। ये दीदी के कत्ल के समय बिजनेस मैनेजमेन्ट का कोर्स करने विदेश गए हुए थे। डैडी ने मन बना लिया था कि जब ये वापस लौटेंगे तो इनकी और दीदी की शादी कर देंगे।”
“परन्तु जब मैं यहां वापस लौटा तो...।” देव नामक युवक भर्राए गले से बोला—“नमिता भगवान के घर जा चुकी थी। मैं तो तभी मर गया था, परन्तु ये जिस्म फांसी के फंदे की प्रतीक्षा कर रहा है। इस आशा के साथ जी रहा हूं कि मुझे नमिता के कातिल का पता चले और मैं उसे जान से मारकर फांसी पर झूल जाऊं।”
“अरे भई, तुम लोग यहां खड़े हुए क्या कर रहे हो?” तभी श्याम के साथ किशनलाल वहां आकर बोला—“हमें गिरधारी लाल जी के अन्तिम संस्कार की तैयारी करनी चाहिए। मिट्टी को ज्यादा देर तक रखने में कोई लाभ नहीं है।”
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