मेरा शेर सबका बाप
राकेश पाठक
स्टेज पर खड़े काले-कलूटे शख्स ने मौजूद छंटे हुए बदमाशों को देखा, फिर गला खंखारकर माइक्रोफोन पर बोला—“मैं अम्मो जी की तरफ से आप सभी का इस्तकबाल करता हूं—मुझे मालूम है कि आप लोग बेताबी से बोली चालू होने का इन्तजार कर रहे हैं—हर कोई अपने नाम ठेका छुड़वाने को बेकरार है—ये बेताबी और बेकरारी हो भी क्यों नहीं भला—अम्मो जी के अण्डरवर्ल्ड में, हर छोटे-बड़े धन्धे में बेहिसाब कमाई होती है—सरकारी ठेका लेनेवाले पर तो लाख पाबन्दियां होती हैं—नियम और शर्तें लागू होती हैं—अपनी मनमर्जी की कमाई नहीं कर सकते—लेकिन अम्मो जी के किसी भी धन्धे का ठेका लेने वाले को ढेर सारे फायदे होते हैं—खूब कमाई होती है—कोई पाबन्दी या बन्दिश नहीं है—कोई खतरा भी नहीं—ना सरकार से ना पुलिस से और ना किसी आम आदमी से—अव्वल तो कोई साला हमारे किसी आदमी से पंगा लेने की जुर्रत नहीं कर सकता—अगर करता भी है तो हमारे हथियारबन्द रेड कमाण्डोज उसका वंश उजाड़ देते हैं—ऐसी सजा देते हैं कि बाकी लोगों को भी सबक मिलता है—सबसे बड़ा फायदा तो ये ही है कि इन ठेकों को लेने वाले अम्मो जी की छत्रछाया में आ जाते हैं—उनके माथे पर अम्मो जी के नाम की मुहर लग जाती है—ठेके की मियाद पूरी होने तक वो अम्मो जी की छत्रछाया में रहते हैं—अम्मो जी के आदमी कहलाते हैं वो—उनसे आम आदमी सूखे पत्ते की तरह कांपता ही है—कोई पुलिसवाला या अफसर भी मुंह नहीं लगता है—यानी अम्मो जी के ठेकेदार को एक मन्त्री की तरह ही पॉवर हासिल हो जाती है....।”
काले-कलूटे आदमी ने अपनी बात को रोककर पानी पीया और घड़ी में टाइम देखने पर बोला—“दो खास बातें मैं बतला दूं—पहली बात तो ये कि एक लाख रुपये जमा करने वाला ही बोली लगा सकता है—जिसके नाम ठेका नहीं छूटेगा, उसकी रकम लौटा दी जायेगी—दूसरी बात ये कि पिछले साल जितनी रकम में ठेके छोड़े गये थे, नये ठेके की बोली उसी रकम से चालू होगी—थोड़ी देर में ही अम्मो जी यहां पहुंचने वाले हैं—उनके आते ही बोली चालू होगी—तब तक आप लोगों का मनोरंजन किया जायेगा—शराब और शबाब का लुत्फ उठाइये।”
अपनी बात खत्म करके उसने इन्टरकॉम पर किसी से बात की और लड़कियों को भेजने के लिए कहा। थोड़ी देर बाद ही कोई दस लड़कियां ड्रिंक्स के सामानों से सजी ट्रॉली धकेलते हुए हॉल में दाखिल हुईं।
सभी विदेशी थीं और साढ़े पांच फुट की या उससे ज्यादा कद वाली थीं—छरहरे जिस्म तथा लम्बी टांगोंवाली।
उनके कजूंसी से बनाये गये दोनों वस्त्र आधे-अधूरे ही अंगों को छिपा रहे थे।
उनकी चाल इतनी मस्तानी थी कि एक-एक अंग थिरक रहा था—उनके हाव-भाव भी सम्मोहित करने वाले थे।
वो जाम तैयार करके मेहमानों को सर्व करने लगीं। तभी चार खूबसूरत युवतियां हॉल में आईं और स्टीरियो साउन्ड से निकलते मादक संगीत पर डांस करने लगीं।
मेहमान अपनी सुध-बुध खोने लगे—भूलने लगे कि वो यहां किस मकसद से आये हैं?
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बड़ा ही रोमांटिक हॉल था वह।
दीवारों पर काम-क्रीड़ा में लिप्त जोड़ों की कई न्यूड पैन्टिंग सजी हुई थीं।
फर्श पर मैथुनरत आदमी-औरत तथा जानवरों के पत्थर के बुत खड़े थे।
हॉल के बीचो-बीच बड़ा बाथटब था, जिसमें पानी की बजाए विदेशी शराब भरी हुई थी—शराब में गुलाब की पंखुड़ियां, केसर तथा परफ्यूम भी डाला गया था।
करीब ही एक मखमल मढ़ी तिपाई पर अम्मो लेटा हुआ था—उसके जिस्म पर अण्डरवियर था, गले में सोने की चैन तथा उंगलियों में बेशकीमती नगीनों वाली अगूंठियां सुशोभित थीं।
अम्मो अमरपुर के अण्डरवर्ल्ड का बेताज बादशाह!
उम्र कोई पचपन साल?
लेकिन उसका छः फुटा जिस्म युवाओं के जैसा ही कसा हुआ तथा सुडौल था।
अम्मो के सिर पर एक भी बाल नहीं था—सिर कुन्दन की तरह चमकता हुआ।
क्लीन शेव्ड लम्बूतरा तना गोश्त विहीन कठोर चेहरे पर छोटी-छोटी बिल्लौरी आंखें, जिनमें उस्तरे की धार-सा पैनापन था।
पतली व लम्बी नाक।
सुर्ख रंग के बेहद पतले होठ—मानो उन्हें गुस्से में भींचा हुआ हो।
लम्बे व छिद्दे-छिद्दे दांत—जो कि स्टील की तरह ही चमचमाते हैं।
अम्मो के पेट पर सवार थी त्रिशला, उसकी रखैल।
खूब गोरी-चिट्टी तथा बला की हसीन।
बॉब-कट बालों वाली त्रिशला की आंखें कमल की पंखुडी समान थीं तथा उनमें गुलाबी डोरे यूं थिरक रहे थे कि मानो गहरे नशे में हो।
कचैरियों की तरह फूले हुए गाल तथा सुतवां नाक।
दोनों होठ लम्बाई में छोटे तथा मोटाई में बराबर थे—लेकिन मोटे होने पर भी गुलाबी व रसीले होने की वजह से बेहद सैक्सी लगते थे—मानो सामने वाले को प्यास बुझाने वाले को आमन्त्रण दे रहे हों।
वह काले रंग की बिकनी में थी और कोमल हथेलियों से अम्मो के चौड़े व बालविहीन सीने की मालिश कर रही थी।
झुकी होने की वजह से उसके दूधिया व भारी-सुडौल उरोज मानो अंगिया से बाहर निकलने को तड़प रहे थे।
अम्मो ने पहले त्रिशला की सुराहीदार गर्दन में बाहें डालकर हसीन चेहरे को नीचे झुकाया और होठों को बारी-बारी से मुंह में भरकर दशहरी आम की तरह ही उसका मुखरस चूसने लगा।
उसका अण्डरवियर उभरने लगा और ऊपर बैठी त्रिशला के जिस्म पर मानो कोई नाग फन पटकने लगा।
होठों को चुसवा रही त्रिशला का चेहरा भभकने लगा तथा आंखों में खुमारी बढ़ने लगी—उसके नथुनों से फूटती खुशबूदार सांसों का आवेग अम्मो के चेहरे पर ठोकरें-सी मारने लगा।
“नहा लीजिये ना....।” अचानक ही त्रिशला सचेत होकर बोली—“फिर ठेकों की नीलामी भी तो करनी है।”
“तुम्हारे हुस्नो-शबाब में डूबकर हम तो भूल ही गये थे जानेमन!” कहने पर अम्मो उठा और त्रिशला को गोद में उठाये हुए बाथटब में उतर गया।
स्नान के बाद त्रिशला ने अपने हाथों से पहले अम्मो के बदन को तौलिये से पौंछा और फिर निर्वस्त्र हालत में ही उस पर पाउडर तथा परफ्यूम छिड़ककर उसे गोल्डन कलर का जोधपुरी कुर्ता-पायजामा पैरों में चमड़े की ब्राउन कलर वाली चप्पलें पहनाईं।
फिर स्वयं भी उसने कपड़े पहने।
काले रंग का कोट तथा हिपस्टर्स।
पैरों में हील वाली सैण्डिल पहनीं।
दोनों कमरे से बाहर निकले।
बाहर काली पैंट तथा ब्राउन कोट वाले हथियारबन्द युवक मौजूद थे—जिनकी तादात दस थी।
पांच शैडो उन दोनों के आगे और बाकी के पांच पीछे-पीछे चलने लगे।
अम्मो तथा त्रिशला बराबर-बराबर चल रहे थे लेकिन दोनों के दरम्यिान फुट भर की दूरी थी।
अम्मो की मुखमुद्रा कठोर हो चली थी तथा बिल्लौरी आंखों में चिंगारियां-सी फूट रही थीं।
त्रिशला के हाव-भाव भी बदल गये थे—वो खूंखार शेरनी ही नजर आ रही थी।
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