मौत से बचना मुश्किल है : Maut Se Bachna Mushkil Hai by Sunil Prabhakar
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शहर जुर्म के दमघोंटू फन्दे में तो पहले ही फंसा हुआ था। शहर में ड्रग सप्लाई से लेकर जवान लड़कियों के अपहरण खुलेआम हो रहे थे। कानून की सारी मशीनरी जुर्म के विनाशक बुलडोजर के सामने पंगु थी।
तब कोढ़ में खाज हुई थी जैसे। शहर में मुजरिमों के साथ एक काली शक्तियों का स्वामी भी अपने गैंग के साथ आ मिला। फिर मौत का वो ताण्डव शहर में हुआ कि हर तरफ लाशें ही नजर आने लगी।
Ist Part मुर्दे भी बोलते हैं
IInd Part मौत से बचना मुश्किल है
मौत से बचना मुश्किल है : Maut Se Bachna Mushkil Hai
Sunil Prabhakar सुनील प्रभाक
Ravi Pocket Books
BookMadaari
प्रस्तुत उपन्यास के सभी पात्र एवं घटनायें काल्पनिक हैं। किसी जीवित अथवा मृत व्यक्ति से इनका कतई कोई सम्बन्ध नहीं है। समानता संयोग से हो सकती है। उपन्यास का उद्देश्य मात्र मनोरंजन है। प्रस्तुत उपन्यास में दिए गए हिंसक दृश्यों, धूम्रपान, मधपान अथवा किसी अन्य मादक पदार्थों के सेवन का प्रकाशक या लेखक कत्तई समर्थन नहीं करते। इस प्रकार के दृश्य पाठकों को इन कृत्यों को प्रेरित करने के लिए नहीं बल्कि कथानक को वास्तविक रूप में दर्शाने के लिए दिए गए हैं। पाठकों से अनुरोध है की इन कृत्यों वे दुर्व्यसनों को दूर ही रखें। यह उपन्यास मात्र 18 + की आयु के लिए ही प्रकाशित किया गया है। उपन्यासब आगे पड़ने से पाठक अपनी सहमति दर्ज कर रहा है की वह 18 + है।
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मौत से बचना मुश्किल है
सुनील प्रभाकर
दिलीप शाण्डिल्य ने पेड़ की आड़ से सामने देखा। स्ट्रीट लाइट की रोशनी में सारा नजारा साफ-साफ दिखाई दे रहा था। गनीमत थी कि रात का समय था और ट्रैफिक नहीं चल रहा था वर्ना जिस प्रकार से गोलियों का आदान-प्रदान हो रहा था, उससे अफरा-तफरी फैल गयी होती। पूरा माहौल बारूदी गन्ध की चपेट में था। लोग-बाग मकानों में दुबके थे। हालांकि धमाकों ने घरों में सोने वालों की नींद उड़ा दी थी। लोग-बाग सोते से उठ गए थे लेकिन किसी ने झांककर देखने की कोशिश नहीं की थी कि मामला क्या है? मकानों की बत्तियों के फटाफट जल जाने से, यह पता चल गया था कि लोग-बाग जाग गए हैं।
वे लोग कार के पीछे हैं शायद—दिलीप शाण्डिल्य ने सोचा। बबूना कार रोकते ही लुढ़ककर बाहर निकल गया था। वह खुद भी बाहर निकलकर पेड़ के पीछे चला गया था। उन दोनों पर लगातार फायर किये गए थे। गनीमत थी कि सारी गोलियां बेकार चली गयी थीं। जवाब में उसने भी गोलियां चलायी थीं। बबूना खाली हाथ था। उसने कहा भी था बबूना से कि खाली हाथ होने के कारण उसका उन लोगों के पीछे जाना ठीक नहीं है, मगर बबूना टाल गया था। वह भी जानता था कि बबूना को रिवॉल्वर होने न होने से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है। वह खाली हाथ ही हथियारबन्द लोगों से कहीं ज्यादा खतरनाक है।
सहसा धमाका हुआ और गोली पेड़ से आकर टकरायी। उसने भी बिना देखे सामने फायर झोंक दिया। खामोशी फिर भंग हो गयी थी।
वह दोनों खरगा के पास से वापस लौट रहे थे। रास्ते में एकाएक ही एक कार पीछे लग गयी थी और उससे फायर होने लगे थे। उनके सामने भिड़ने के अलावा कोई चारा नहीं था। खरगा के यहां देर होने का कारण एक मामला था, जो अचानक ही आ गया था। मामला पति-पत्नी का था। दोनों लहूलुहान थाने पहुंचे थे। खून से तर-बतर उन दोनों को मकान मालिक और उनके लड़कों ने बुरी तरह मारा-पीटा था तथा धारदार हथियारों से घायल कर दिया था और धमकी दी थी कि अगर मकान खाली नहीं किया एक हफ्ते में तो जान से मार देंगे।
पति-पत्नी प्रौढ़ थे और दोनों ही सर्विस करते थे। पति बैंक में था और पत्नी एक लड़कियों के इन्टर कॉलेज में पढ़ाती थी। उनके सन्तान के नाम पर एक लड़का और एक लड़की थे। लड़का डॉक्टरी की पढ़ाई कर रहा था इलाहाबाद में और लड़की की शादी हो गयी थी। वो अपनी ससुराल में थी। हालांकि उस लफड़े से दिलीप और बबूना का कोई लेना-देना नहीं था। लेकिन खरगा उन दोनों को आग्रह करके अपने साथ लिवा ले गया था। उसी चक्कर में दोनों को देर हो गयी थी। घटनास्थल से थाने लौटने के बाद खरगा ने थाने पर ही डिनर मंगवा लिया था, सो और देर हो गई थी। और वापसी में यह हमला हो गया था।
हमला करने वाले कौन थे? इसका अभी पता नहीं था, मगर यह अनुमान कर लेना कठिन नहीं था कि हमला कौन कर या करवा सकता था।
अभी यह भी पता नहीं लगा था कि हमलावरों की संख्या कितनी है। लेकिन यह समझ लेना कठिन नहीं था कि हमलावर एकाएक ही नहीं आये थे। बल्कि काफी समय से उनकी निगरानी कर रहे थे और उनके पीछे थे।
दिलीप शाण्डिल्य के होठ भिंचे थे और आंखों में कहर के भाव थे। उसने तय कर लिया था कि हमलावरों को आसानी से नहीं छोड़ेगा। यद्यपि वह चाहता तो मोबाइल फोन से इन्सपेक्टर खरगा को इस हमले की सूचना दे सकता था मगर उसे यह ठीक नहीं लगा था।
सतर्क भाव से दिलीप ने दूसरी ओर खड़ी कार पर नजर डाली।
उसे कोई नजर नहीं आया। हमलावरों ने शुरू में ताबड़तोड़ फायरिंग करके उसे बौखला देने का प्रयास किया था मगर इस समय सावधान थे। सम्भवतः उन्होंने भी समझ लिया था कि इस प्रकार बेकार में फायरिंग करके गोलियां जाया करना बेकार है।
सहसा दिलीप शाण्डिल्य चौंका।
सड़क के दूसरी ओर एक धमाके के साथ किसी आदमी की चीख उभरी थी।
एक गया—दिलीप शाण्डिल्य ने सोचा। बबूना ने अपना कमाल दिखाना शुरू कर दिया है। बिना किसी हथियार के ही बबूना हथियारबन्द शख्स से कहीं ज्यादा खतरनाक है। उसके हाथ-पैर ही हथियार थे। उसमें जो शक्तियां थीं वही उसकी ताकत थीं।
तभी दूसरा धमाका हुआ और दूसरी चीख सुनाई दी। उसी के साथ सड़क के दूसरी ओर धमाकों का बाजार गर्म हो गया।
दिलीप शाण्डिल्य ने बेचैनी से पहलू बदला। बबूना मना कर गया था इसलिये वह रुका था वर्ना कब का वहां पहुंच गया होता। तभी वह चौंका। उसकी आंखों ने एक आदमी को लुढ़कते हुए तेजी के साथ कार की ओर आते देखा।
आने वाला बेहद फुर्तीला और लम्बा-चौड़ा शख्स था। पलक झपकाते वह उसकी मारुति एस्टीम की आड़ में था। स्पष्ट था कि वो दिलीप शाण्डिल्य को खत्म करने के इरादे से इतना खतरा मोल लेकर आया था।
दिलीप शाण्डिल्य के होठों पर जहर भरी मुस्कान आ गयी।
"आजा बेटे! तेरी ही तो जरूरत थी।" उसने मन-ही-मन कहा—"आया है तो सबक सीखेगा।"
"दिलीप शाण्डिल्य के बच्चे!" सहसा कार की आड़ से भारी आवाज आयी—"आज तू बचेगा नहीं। पेड़ की आड़ में चाहे जितना छिप ले।"
"अबे तू है कौन?"
"तू मुझे नहीं जानता है लेकिन जान जायेगा। मरने के पहले जान जायेगा।"
"जैसी तेरी मर्जी।"
"दूसरों के फटे में टांग अड़ाने वालों जैसी दशा होगी तेरी।"
"तू शायद बोलता बहुत है।" दिलीप ने तीखे स्वर में कहा—"और ज्यादा बोलने वाले कुछ कर नहीं पाते जैसे गर्जने वाले बादल बरसा नहीं करते। अबे पहले अपने साथियों को तो जाकर बचा। दो तो गए।"
उसी समय फिर धमाका हुआ और पीड़ाभरी चीख सुनाई दी।
"सुना तूने! तेरा तीसरा साथी भी गया।"
"खामोश, हरामजादे। तेरे उस डेढ़ बालिश्त के छोरे को तो मैं चीर-फाड़कर सुखा दूंगा।" खूंखार स्वर में कहा गया।
"तू कसाई का धन्धा करता है क्या?" दिलीप शाण्डिल्य ने चिढ़ाने वाले स्वर में कहा।
एकाएक फायर के साथ गोली पेड़ के तने से आकर टकराई।
"बेकार है बेटे। तू मेरा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकेगा।"
"सामने आजा एक बार। फिर तुझे पता चलेगा, मैं क्या बिगाड़ सकता हूं, क्या नहीं।" बोलने वाले के स्वर में झल्लाहट थी।
"अबे गधे तू भी तो मेरी कार की आड़ लिये हुए है डर के कारण। तू क्यों नहीं सामने आता है? साले, छिपकर तो सभी बहादुरी की बातें कर लेते हैं।"
इस बार जवाब नहीं मिला।
दिलीप शाण्डिल्य चौकन्ना हो गया। उस आदमी की खामोशी का सीधा अर्थ था कि वो किसी खुराफात के चक्कर में था और अपना स्थान बदल चुका था। यानी वो उस पर किसी भी क्षण हमलावर हो सकता था।
दिलीप शाण्डिल्य ने सतर्क दृष्टि से आस-पास और अपने पीछे दृष्टि फिराई फिर फुर्ती से बेआवाज चलता हुआ गली में समा गया, जो कि इमारतों के बीच थी और जिसको उसने पहले ही से अपनी नजर में-छिपने के लिये-संजो रखा था। फिर उसने आहिस्ता से सिर निकालकर अपनी कार की ओर देखा। उसे वह शख्स नजर आ गया।
वह अत्यन्त सावधानी से सरकता हुआ पेड़ की ओर आ रहा था।
दिलीप शाण्डिल्य का चेहरा सख्त हो गया। इसमें शक नहीं कि वो शख्स बेहद फुर्तीला था। दिलीप शाण्डिल्य को भी उसकी चुस्ती-फुर्ती देखकर आश्चर्य हुआ क्योंकि एकाएक ही उसने तीन-चार रोलिंग कीं और उछलकर खड़ा हो गया। लेकिन उसे यह देख कर करारा झटका लगा कि पेड़ के पीछे कोई नहीं था। दिलीप शाण्डिल्य के जबड़ों में कसाव आ गया। उसने निशाना लेकर फायर कर दिया। उस आदमी के मुंह से चीख निकली। गोली उसके दायें कन्धे में जाकर धंस गई थी। एक करारा झटका उस आदमी को लगा और रिवॉल्वर उसके हाथ से निकल गयी।
वह आदमी बौखला गया।
दिलीप शाण्डिल्य ने लम्बी छलांग लगायी और उसके सामने जा खड़ा हुआ।
"न...न...अब हिलना नहीं, वर्ना इस बार तुम्हारे चेहरे के चीथड़े उड़ जायेंगे।" दिलीप ने रिवॉल्वर दिखाकर मौत भरे स्वर में कहा।
वह आदमी कन्धा दबाये अपनी जगह फ्रीज हो गया। यह दूसरी बात थी कि उसका चेहरा पत्थर की तरह सख्त हो गया था और आंखों से शोले उबल रहे थे।
अगर उसका वश चलता तो वह आंखों से ही दिलीप शाण्डिल्य को भस्म कर देता।
¶¶
"आ जा बेटा तंबूरे।" बबूना ने अपने सामने खड़े हांफ रहे आदमी को चिढ़ाया—"पकड़ मुझे! कोशिश कर, शायद सफल हो जाए।"
उस व्यक्ति ने सांप की फुंफकार जैसी हवा छोड़ी मुंह से। उसकी आंखों में आश्चर्य के गहन भाव थे। वह बबूना को ऐसे देख रहा था जैसे वो कोई अजूबा हो।
"क्या हुआ मूंगफली के छिलके?"
"तू क्या समझता है, मेरे हाथ से बच जाएगा?" उस आदमी ने खूंखार स्वर में कहा।
"मैं क्या समझता हूं इसे छोड़ो और न मैं यह सोचता हूं कि तुम्हारे हाथ से बच जाऊंगा। बल्कि, तुम यह सोचो कि तुम्हारा क्या होगा? तुम्हारे दो साथी तो मारे गए। तीसरा जो दिलीप भाई के पीछे गया है, वो बेकार हो गया है। रह गए तुम। तो, तुम मेरे हाथों से अब मार खाकर बेकार हो जाने वाले हो।" बबूना मुस्कराकर बोला—"जिसने भी तुम लोगों को मेरे और दिलीप भाई के पीछे लगाया है, उसने तुम लोगों को मरने के लिये भेज दिया है।"
"तू मारेगा मुझे?" वो गुर्राया।
"अबे उल्लू के पठ्ठे, अगर तुझे मारना ही होता तो, क्या तू मेरे सामने इस प्रकार खड़ा होकर बातें कर पाता? तू भी अपने दोनों साथियों की तरह ऊपर का टिकट कटा चुका होता। वैसे अब यह तेरे ऊपर निर्भर करता है कि जिन्दा रहना चाहता है या मरना?"
"साले भिन्डी—।" उसने बबूना पर छलांग लगा दी।
यह दूसरी बात थी कि जिस स्थान पर बबूना खड़ा था, वो जगह उसको खाली मिली। वह लड़खड़ाया। सम्भला। फिर गुर्राता हुआ बिजली की गति से पलटा। तभी उसके शरीर को करारा झटका लगा। उसको बस यह महसूस हुआ कि उसके पैरों ने अपने आप जमीन छोड़ दी है।
एक पल के लिये उसने खुद को हवा में महसूस किया फिर धमाके के साथ फुटपाथ पर गिरा। उसके कण्ठ से हल्की-सी कराह निकली। उसने इसके बाद भी फुर्ती दिखायी और उठने का प्रयास किया तभी एक करारी ठोकर कूल्हे पर पड़ी। वो न चाहते हुए भी चीखा पीड़ा के कारण और पलट गया। इसके बाद तो जैसे फुटबाल बन गया।
उसकी समझ में ही नहीं आया कि उसके साथ क्या हो रहा है? वह केवल यही महसूस करता रहा कि शरीर के प्रत्येक स्थान में पीड़ा ही पीड़ा है। दर्द ही दर्द है।
यह स्थिति भी जरा देर ही रही।
वह बेहोश हो गया था।
फिर उसकी चेतना जवाब दे गयी।
यह बेहोशी अत्यधिक मार खाने के कारण आयी थी—जिसने उसकी अनुभूतियों को गहरे अन्धेरे में ढकेल दिया था। बबूना ने शान्त भाव से उसके निश्चल शरीर को देखा। फिर जाने क्या सोचकर एक करारी ठोकर उसकी कनपटी पर जमा दी। इसके बाद लम्बी सांस लेकर सड़क के दूसरी ओर देखा।
¶¶
"तुम लोग किसके लिये काम करते हो?" दिलीप शाण्डिल्य ने शुष्क स्वर में पूछा।
"उसका नाम जानकर तुम्हारे छक्के छूट जायेंगे।" वह व्यक्ति गुर्राया।
"वो तो अभी से छूटे जा रहे हैं।" दिलीप शाण्डिल्य ने व्यंग्य से कहा—"वैसे मेरे छक्के छुड़ाने की जगह अपने सत्ते-अठ्ठे की फिक्र करो, जो बिना कुछ किये ही पिट चुके हैं। जरा नजर घुमाकर देख तो लो।"
पहले तो वह व्यक्ति दिलीप की बात का मतलब नहीं समझा।
"क्या बकते हो?"
"जरा देखो तो।"
उसने गर्दन घुमाकर देखा तो चौंक पड़ा।
बबूना तब तक एक व्यक्ति को, जो कि बेहोश था, कन्धे पर रखे किसी बड़े खिलौने की तरह समीप आ गया था। उसने कन्धे पर पड़े आदमी को फुटपाथ पर किसी सामान की तरह फेंक दिया।
उसका शरीर 'भद्द' से बोरे की तरह गिरा।
"हलो!" बबूना ने कन्धे को थामे व्यक्ति की ओर देखा—"क्या हाल-चाल हैं चिड़ी के अट्ठे? साले यहां मरने के लिये क्यों चला आया? भाग जाता तो जान तो बच जाती। अब फंस गए हो तो झेलो।"
"यह कहता है कि जिसके लिये काम करता है उसका नाम सुनकर मेरे छक्के छूट जायेंगे।" दिलीप ने हंसकर कहा।
"अच्छा।" बबूना ने कहा और उस आदमी की ओर देखा—"भई नाम बोल उसका, मैं भी तो जानूं कौन है ऐसा जो अपने नाम से ही छक्के छुड़ा देता है?"
उस आदमी का चेहरा सुर्ख हो गया।
"तुम दोनों मरोगे।"
"अच्छा।" बबूना ने पलकें झपकायीं—"सुना दिलीप भाई—हम लोग मरेंगे।"
"सुना यार लेकिन इसकी बात पर भरोसा कैसे किया जाए?"
"क्यों? क्या हुआ?"
"अरे यार, एक हफ्ते पहले उस ज्योतिषी ने क्या कहा था हम का हाथ देखकर?"
"कमाल है! मैं तो भूल ही गया था। उसने तो हम दोनों की उम्र सौ-सौ साल की बतायी थी।"
"यही तो।"
"फिर यह क्यों बोला कि हम दोनों मरेंगे?"
"इसी से पूछो।"
"क्यों बे भूतनी के?" बबूना ने उसकी ओर देखा—"ऐसा क्यों बोला तू?"
उस आदमी ने होठ काटे।
उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि दोनों छोकरे किस टाइप के हैं। देखने में लड़के लगते थे, मगर दोनों ने मिलकर दो साथियों को शायद खत्म कर दिया था। एक बेहोश पड़ा था फुटपाथ पर और वह स्वयं घायल होकर इस स्थिति में पहुंच गया था कि कुछ करने लायक नहीं रह गया था।
जाने क्यों उसको ऐसा लगा कि दोनों लड़के आफत के परकाले हैं। और फिर एकाएक उसको अपनी रीढ़ में चीटियां-सी रेंगती महसूस हुईं। उसने डर-सा अनुभव किया।
"दिलीप भाई, यह तो कुछ बोलता ही नहीं है।"
"बोलेगा। जरूर बोलेगा। सोच रहा होगा कि कहां से शुरू करे।"
"यह हो सकता है।" बबूना ने सिर हिलाया और उस आदमी की ओर देखा—"हां भाई, बोलो तुमको किसने भेजा है?"
"हलवाई ने।"
"हलवाई ने?" बबूना चौंका—"यह कौन है? कोई मिठाई की दुकान किये है क्या?"
"नहीं।" उस आदमी ने कहा—"यह उसका नाम है।"
"क्यों मजाक करता है भाई?" दिलीप शाण्डिल्य ने कहा—"ऐसा भी कहीं होता है?"
"उसका यही नाम है।"
"आगे-पीछे और भी तो कुछ होगा?"
"सब इसी नाम से जानते हैं उसको।
"लेकिन यह साहब हैं कौन? हम दोनों तो यह नाम पहली बार सुन रहे हैं।" दिलीप शाण्डिल्य ने उसकी ओर देखा—"तुम तो कह रहे थे कि नाम सुनकर हमारे छक्के छूट जायेंगे।"
"हलवाई बख्तावर सिंह का आदमी है।"
"ओह।"
"लेकिन उसका खास आदमी तो अब्दुल्ला है।" बबूना ने टोका।
"अब्दुल्ला ने गद्दारी की है। उसने बख्तावर को धोखा दे दिया और उसके होटल तथा उसमें चलने वाले क्लब पर कब्जा जमा लिया है जबकि बख्तावर के दूसरे धन्धे को हलवाई ने सम्भाल लिया है। अब दोनों में दुश्मनी है। अब्दुल्ला और हलवाई दोनों एक-दूसरे के खून के प्यासे हैं।"
"तो हलवाई ने तुम लोगों को हमारे पीछे लगाया है?"
"हां।"
"किसलिये?"
"खत्म करने के लिये।"
"लेकिन क्यों? हम दोनों में से तो कोई उसे जानता तक नहीं है। उसका तो हमने तुम्हारे मुंह से पहली बार नाम सुना है।"
"इस बारे में मुझे कुछ भी नहीं पता। हम लोगों से जो कहा गया, हमने वही किया।"
"तुम लोगों का बॉस वही है?"
"हां और बख्तावर सिंह का उत्तराधिकारी भी।"
"लेकिन उसका भी तो कोई बॉस होगा? जैसे बख्तावर का था।"
"मुझे इसकी जानकारी नहीं है।" उस आदमी ने कहा—"क्योंकि मेरे जैसे लोगों की पहुंच हलवाई तक ही कठिनाई से हो पाती है। हम लोगों को हुक्म देने वाला शख्स हलवाई का दायां हाथ बनवारी है। गरीबे है।"
"यानी हलवाई के आदेश इन दोनों के जरिये तुम लोगों के पास आते हैं?"
"हां।"
"बनवारी से तो आमना-सामना होता होगा?"
"होता है। उससे भी, गरीबे से भी।"
"यह दोनों कहां मिलते हैं?"
"होटल कमल में।" उस आदमी ने बताया—"यह होटल भी बख्तावर सिंह की मिल्कियत है। बख्तावर जब तक जीवित था, होटल की देखभाल हलवाई करता था। इसकी जानकारी अब्दुल्ला को भी नहीं थी। वह यही समझता था कि होटल हलवाई का ही है। बख्तावर को जब पहली बार गोली मारी गई तो अब्दुल्ला ने सनोवर होटल पर अपना कब्जा डिक्लेयर करके उसे अपने अधिकार में ले लिया था। हलवाई ने कमल होटल के बारे में खुला-खुला तो कब्जा नहीं किया था, मगर अपने विश्वसनीय आदमियों को सतर्क कर दिया था। वैसे कमल होटल सनोवर के मुकाबले द्वितीय स्तर का है। और है भी ऐसे इलाके में जहां पर जरायम पेशा लोगों का ही आना-जाना रहता है। वहां से सारे गलत धन्धों का संचालन होता है। उसकी देख-रेख गोवर्धन नामक आदमी करता है।"
"कमल होटल कहां पर है?"
"लालकुर्ती में।"
"लड़कियों का भी धन्धा होता है?"
"पहले होता था। जब से पकड़-धकड़ हुई है, फिलहाल सारे धन्धों को बन्द कर दिया गया है। खासतौर पर लड़कियों का धन्धा। वैसे शराब का काम जमकर होता है। होटल में आने वालों में ज्यादातर होते ही जरायम पेशे वाले हैं इसलिये उनके लिये शराब की व्यवस्था रहती है। वैसे बगल में ही देशी शराब का ठेका भी है। वो हलवाई का ही है। वहीं से पीने वालों को सप्लाई किया जाता है। अस्सी प्रतिशत पीने वालों की ही संख्या है।"
"तुम्हारा नाम क्या है?"
"लोबो।"
"यह कैसा नाम हुआ?" बबूना बोल पड़ा।
"असली नाम तो राजकुमार है, मगर जानते सभी लोबो के नाम से ही हैं।"
"तुम्हारी हैसियत क्या है?"
"मैं हलवाई के आदेशों का पालन करता हूं। जैसे तुम लोगों के मामले में मुझसे खासतौर पर कहा गया था कि तुम दोनों पर नजर रखूं और मौका मिलते ही निपटा दूं। हमारा एक आदमी कई दिनों से तुम लोगों के पीछे था। उसी ने खबर दी थी कि तुम दोनों इन्सपेक्टर खरगा के साथ थाने में हो।"
"लेकिन हम दोनों की ओर से तो हलवाई को कोई खतरा था नहीं।"
"अब इस बात का पता हमें नहीं है।" लोबो ने कहा—"हमें तो आदेश का पालन करना था।"
"नकाबपोश को तुमने देखा है?"
"केवल एक बार—लेकिन दूर से। उसके बारे में तो हलवाई ही जानता होगा। हलवाई भी उससे डरता है। और शायद वो भी नहीं जानता है कि नकाबपोश कौन है। बख्तावर भी नहीं जानता था, पर जब जान गया तो उसे मरना पड़ा।"
"और अब्दुल्ला?"
"उसके बारे में सुनने में आया है कि सारे गलत धन्धों को बन्द कर चुका है। वहां पर जो माल था उसको भी उसने वहां से हटा दिया है।"
"बख्तावर सिंह का साम्राज्य, इसका मतलब है दो हिस्सों में बंट गया है।"
"हां।"
"और आदमी?"
"कुछ उसकी तरफ चले गए हैं और कुछ हलवाई की ओर आ गए हैं।"
दिलीप शाण्डिल्य ने सिगरेट सुलगा ली। उसके चेहरे पर सोच के भाव थे।
"तुम्हारे दो साथी तो मारे जा चुके हैं। एक बेहोश पड़ा है। रहे तुम, तो तुम्हारे साथ क्या सलूक किया जाए?" बबूना ने भिंचे स्वर में कहा—"क्योंकि इस समय तुम हमारे रहमोकरम पर हो।"
लोबो ने गहरी सांस ली।
उसके चेहरे पर भय नाम की कोई बात नहीं थी। बबूना की बात सुनकर उसका चेहरा सख्त जरूर हो गया। उसने बूचना की आंखों में क्षणभर झांका फिर बोला—"मेरे जैसे हर समय मौत को अपने साथ लेकर घूमते हैं क्योंकि हमारे पेशे में मरना-मारना चलता रहता है। मौत मेरे लिये कोई नयी चीज नहीं है। न जाने कितनी बार मैं मौत के मुंह से बचकर निकला हूं। मैं जानता हूं कि किसी भी दिन कोई घटना या गोली मुझे मौत के मुंह में धकेल देगी इसलिये मरने का भय मेरे मन में नहीं है।"
बबूना समझ गया कि उसके सामने खड़ा लोबो नामक व्यक्ति जो भी कह रहा है, सही कह रहा है। साथ ही वह यह भी जान गया था कि लोबो केवल प्यादा है। इसको मार देने से कोई फायदा नहीं होने वाला है। फिर दो आदमी तो वैसे भी मारे जा चुके थे।
एकाएक बबूना का शरीर उछला।
लोबो की समझ में कुछ नहीं आया।
बबूना का दायां हाथ उसकी कनपटी से टकराया। एक हल्की-सी कराह लोबो के कण्ठ से निकली और वह फुटपाथ पर ढेर हो गया।
वो बेहोश हो चुका था।
"इन दोनों को यहीं पड़े रहने दो।" दिलीप शाण्डिल्य ने सिगरेट के टुकड़े को एक ओर उछाल दिया—"जितना कुछ जानकारी मिलनी थी मिल चुकी है। दोनों जब होश में आयेंगे तो खुद ही उठकर चले जायेंगे। हलवाई को अपनी असफलता की कहानी खुद ही जाकर बता देंगे। हमारा असली टार्गेट नकाबपोश है। यह स्पष्ट हो चुका कि हलवाई को भी उसकी वास्तविकता के विषय में कुछ पता नहीं। इन दोनों का जीवित रहना इसलिये भी जरूरी है ताकि नकाबपोश को असफलता की जानकारी मिल सके। वो फिर हमें खत्म करने का प्रयास जरूर करेगा। तब देखा जाएगा कि क्या किया जाए।"
और फिर थोड़ी देर बाद दोनों मारुति में थे और घटनास्थल से दूर निकल आये थे।
कार सन्नाटे में डूबी सड़क पर तेजी से भागी जा रही थी।
¶¶
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Additional information
Book Title | मौत से बचना मुश्किल है : Maut Se Bachna Mushkil Hai by Sunil Prabhakar |
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Isbn No | |
No of Pages | 296 |
Country Of Orign | India |
Year of Publication | |
Language | |
Genres | |
Author | |
Age | |
Publisher Name | Ravi Pocket Books |
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