मौत का ताण्डव : Maut Ka Tandav by Sunil Prabhakar
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जनार्दन शाण्डिल्य राय सीधा-सादा दुकानदार था। मकान खरीदने के लिए उसने कैलाश पण्डित से बारह लाख रुपये उधार लिए। वो समय पर ब्याज दे रहा था मगर दुकान में आग क्या लगी; उसका सब स्वाह हो गया। वो कर्ज चुकाने में असमर्थ हो गया। कैलाश पण्डित के गुण्डों ने उस पर अत्याचार करने शुरु कर दिये। बात इतनी बढ़ी कि शाण्डिल्य परिवार का कत्ल कर दिया गया...बचा केवल दिलीप शाण्डिल्य।
काश कैलाश पण्डित के लोगों को पता होता कि उनकी उस गलती ने शहर को वो खूनी जंग का मैदान बना दिया कि वहां मौत का ताण्डव शुरु हो गया। हर ओर मौत दी और सड़कों पर लाशों के अम्बार थे...।
मौत का ताण्डव : Maut Ka Tandav
Sunil Prabhakar सुनील प्रभाक
Ravi Pocket Books
BookMadaari
प्रस्तुत उपन्यास के सभी पात्र एवं घटनायें काल्पनिक हैं। किसी जीवित अथवा मृत व्यक्ति से इनका कतई कोई सम्बन्ध नहीं है। समानता संयोग से हो सकती है। उपन्यास का उद्देश्य मात्र मनोरंजन है। प्रस्तुत उपन्यास में दिए गए हिंसक दृश्यों, धूम्रपान, मधपान अथवा किसी अन्य मादक पदार्थों के सेवन का प्रकाशक या लेखक कत्तई समर्थन नहीं करते। इस प्रकार के दृश्य पाठकों को इन कृत्यों को प्रेरित करने के लिए नहीं बल्कि कथानक को वास्तविक रूप में दर्शाने के लिए दिए गए हैं। पाठकों से अनुरोध है की इन कृत्यों वे दुर्व्यसनों को दूर ही रखें। यह उपन्यास मात्र 18 + की आयु के लिए ही प्रकाशित किया गया है। उपन्यासब आगे पड़ने से पाठक अपनी सहमति दर्ज कर रहा है की वह 18 + है।
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मौत का ताण्डव
सुनील प्रभाकर
दिलीप अपने घर वाली गली की ओर मुड़ा ही था कि खौफ से उसकी आंखें फैल गईं। उसका दिल बुरी तरह धड़कने लगा। टांगों में अपने आप थरथराहट उत्पन्न हो गई। उसकी आंखों ने उन पांचों को देख लिया था जो हाथों में गनें लिए उसी की ओर आ रहे थे। सबसे आगे वही था। लम्बा-चौड़ा। खतरनाक चेहरे वाला। दिलीप का कलेजा मुंह को आ गया। गले में कांटे से गड़ने लगे। गली में मौत जैसा सन्नाटा छाया था। सभी मकानों के दरवाजे और खिड़कियां बन्द थीं।
दिलीप पत्थर के बुत की तरह खड़ा रह गया।—
पैर जैसे जमीन से चिपक गए थे। दिमाग सुन्न हो गया था। सोचने समझने की ताकत जैसे गायब हो गई थी।
उसकी आंखें समीप आते जा रहे आदमी पर गड़ कर रह गई थीं। उसके पीछे चार शख्स और थे।
“शी—शी—।” किसी की सिटकारी दिलीप के कानों में पड़ी। लेकिन उसने जैसे सुना ही नहीं।
“हट जा। उन हत्यारों के सामने से हट जा दिलीप। भाग यहां से।” कोई फुसफुसाते स्वर में चिल्लाया जैसे।
मगर दिलीप पर कोई असर नहीं हुआ। वो वैसे ही खड़ा रहा। पुकारने वाले को क्या पता था कि दिलीप इस समय किन मानसिक स्थितियों में जकड़ चुका था। उसकी आंखों में कौन-सा दृश्य और मन में किस प्रकार की आशंका और उससे उत्पन्न भय ने जकड़ लिया है।
वे पांचों समीप आते जा रहे थे।
एकाएक सबसे आगे वाला शख्स ठिठका। उसकी दृष्टि दिलीप पर जा टिकी थी। उसके साथी भी रुक गए। सबसे आगे वाले की लाल-सुर्ख आंखें दिलीप पर जम गईं।
सहसा आगे वाले के गले से किसी जानवर जैसी गुर्राहट निकली।
“अरे।” उनमें से एक बोला—“ये तो शाण्डिल्य का छोकरा है।”
“ये हरामी तो बचा ही जा रहा था।” आगे वाले ने गुर्राते हुए कहा—“पूरा परिवार तो गया तेल लेने। ये साला इस समय ना आता तो बच जाता।”
“हरामी की मौत खींच लायी यहां। समय पर आया है। उस्ताद, इसे भी फिनिश करो। ना रहेगा बांस ना बजेगी बांसुरी।” दूसरा हंसा था।
“पूरा परिवार खल्लास।” आगे वाला गुर्राया—“चल तू भी परिवार के साथ तेल लेने जा।”
उसका दायां हाथ, जिसमें गन दबी थी, सीधा हुआ। दूरी मुश्किल से सात-आठ फुट रही होगी।
दिलीप को उसकी आंखों में अपनी मौत दिखाई दी। उसने लम्बी नाल वाली गन को देखा।
तभी अचानक एक घटना हुई।
गली के मुहाने पर दिलीप की उम्र का ही एक लड़का न जाने कहां से नमूदार हुआ। दूसरे पल दिलीप के शरीर को झटका लगा और वो उस लड़के के साथ खिंचता चला गया। उसी समय वातावरण को गुंजाता धमाका हुआ।
लेकिन बेकार दिलीप बच गया था।
गोली चिंगारी और धुआं फेंकती सड़क पार कर गयी।
¶¶
“उस्ताद! छोकरा बच गया।”
“पकड़ो हरामी को। बचकर नहीं जाना चाहिए।” वो दहाड़ा और गली से सड़क की ओर दौड़ा। उसके पीछे वे चारों भी भागे।
सड़क पर आकर वो पांचो रुक गए।
जिसे चारों उस्ताद कहकर बुला रहे थे, उसने सड़क के दोनों ओर देखा।
सड़क एकदम खाली और सुनसान थी। दिलीप का कोई पता नहीं लगा। ऐसा लग रहा था जैसे हवा में गायब हो गया हो।
उस्ताद का चेहरा लाल भभूका हो गया।
“कहां गया हरामी?” वो दहाड़ा।
उन चारों ने कोई जवाब नहीं दिया। जवाब उनके पास था भी नहीं। अलबत्ता उनको हैरानी जरूर हो रही थी। इतनी जल्दी कोई आंखों के सामने से गायब हो सकता है, विश्वास करने लायक नहीं था। मगर सच यही था। दिलीप गायब हो गया था।
“समझ में नहीं आया उस्ताद!” एक ने आश्चर्य प्रकट किया—“अभी तो साला यहीं था। इतनी जल्दी कहां चला जाएगा?”
“उसे ढूंढो। पता लगाओ उसका। अगल-बगल की गली में देखो। जाएगा कहां? कोई पर नहीं लगे हैं जो उड़ जाएगा। मैं गाड़ी लेकर मेन रोड पर पहुंचता हूं। वहीं आकर मिलो। और हां, देखते ही गोली मार देना।”
चारों ने खोपड़ियां हिलाईं। फिर दो दाईं ओर दो बाईं ओर तेजी से बढ़ गए।
उस्ताद ने सड़क की दूसरी पटरी पर खड़ी एम्बेसडर की ओर कदम बढ़ा दिए। रिवॉल्वर उस समय भी उसके हाथ में था। बेहद इत्मीनान के साथ वो कार के समीप पहुंचा और अगला दरवाजा खोलकर भीतर समा गया। हालांकि ऊपर से वो बेहद शान्त और लापरवाह दिख रहा था लेकिन ऐसा नहीं। उसकी आंखें गिद्ध की तरह चौकन्नी और सतर्क थीं तथा अपने चारों ओर का जायजा ले रही थीं।
कार का इंजन घरघराया।
उसने चारों ओर पैनी निगाह घुमाई। सब कुछ वैसा ही था। खौफ में डूबा माहौल। मौत में समाया सन्नाटा। केवल कार के इंजन की आवाज ही खामोशी भंग कर रही थी।
रिवॉल्वर गोद में रखकर उसने पहला गियर बदला और कार आगे बढ़ा दी।
¶¶
कार को चौराहे से उसने बाएं मोड़ लिया और चौड़ी सड़क पर आ गया। थोड़ी दूर जाकर उस्ताद ने कार रोक दी और इंजन ऑफ करके कार से उतर गया। चारों तरफ नजर दौड़ाई। सड़क भीड़-भाड़ वाली थी। ट्रैफिक की रेलम-पेल जारी थी।
वो पान वाले की गुमटी तक आया।
पानवाला फुर्सत में बैठा था। ग्राहक आया देख सजग हो गया—“क्या चाहिए साहब?”
“विल्स फिल्टर देना एक पैकेट।” जेब से बीस का नोट निकालकर पान की चौकी पर फेंकते हुए उस्ताद ने भारी आवाज में कहा।
सांवला रंग। लम्बा-चौड़ा डील-डौल और सुर्ख आंखें। पान वाले ने जितने तपाक से पूछा था मगर उसको देखकर मन-ही-मन सहम गया। चुपचाप पैकेट निकालकर दिया और गल्ले से बाकी बचे पैसे निकालकर उस्ताद की ओर बढ़ा दिए।
उस्ताद का पूरा नाम नागदेव था। लेकिन नागदेव नाम कब का गायब हो गया था—उस्ताद नाम मशहूर हो गया था। उसे भी अपने असली नाम के गायब हो जाने की फिक्र नहीं थी। स्वयं उसे भी उस्ताद नाम रास आ गया था। बचपन ठोकरें खाते, गन्दी गलियों और एक झोपड़पट्टी में बीता था। पढ़ाई-लिखाई से कोई नाता नहीं बन सका था। हालांकि मां ने बहुत कोशिश की थी कि नागदेव पढ़-लिख जाए। इसके लिए विधवा मां ने न जाने कितने पापड़ बेले थे। अपना और बेटे का पेट भरने के लिए उसे घरों-,घरों जाकर काम करना पड़ता था। नागदेव उसका नाम पड़ा था नागपंचमी के दिन जन्म लेने के कारण। उसके पिता की मौत एक सड़क दुर्घटना में हुई थी। वो एक कारखाने में मजदूर था। कारखाने में वापस लौटते समय एक तेज रफ्तार टेम्पो ने कुचल दिया था। मां ने नागदेव को कई बार स्कूल में भर्ती कराया था लेकिन बस्ती का माहौल और संगत तथा मां की तकलीफों ने पढ़ाई के प्रति उसको उचाट बना दिया था। फल स्वरुप वो पढ़ नहीं पाया था। और फिर एक बार ऐसी घटना घट गयी थी जिसने उसका पूरा जीवन ही बदल दिया था। उस रात वो अपने आवारा दोस्तों के साथ रात का शो देखकर अपनी झोपड़ी लौटा था तो भीतर उसे उठा-पटक की और अपनी मां की घुटी-घुटी आवाज सुनाई पड़ी थी उस समय वो चौदह-पन्द्रह वर्ष का था।
वो समझ गया था की झोपड़ी में कौन शख्स हो सकता था।
उसकी आंखों में खून उतर आया था। जेब में हाथ डालकर उसने रामपुरी चाकू निकालकर उसे खोल दिया था। रात काफी हो जाने के कारण सभी अपनी-अपनी झोपड़ियों में सो रहे थे। जाड़ा होने के कारण बस्ती वालों ने बाहर सोना बन्द कर दिया था।
और फिर उसने जो भी किया था कम-से-कम बस्ती में उस उम्र के लड़के ने नहीं किया था। गालियां बकते हुए उसने लात मारकर झोपड़ी के कमजोर दरवाजे को तोड़ डाला था और बस्ती के आतंक बने राघव को भीतर से लातों-घूंसो से मारते बाहर खींच लाया था। शोर सुनकर बस्ती वाले अपने-अपने झोपड़ों से जागकर बाहर निकल आए थे। पहले तो उनकी समझ में नहीं आया था कि मामला क्या है फिर उन्होंने राघव को जमीन पर पड़े और नागदेव को उसकी छाती पर पैर रखे तथा खुला चाकू लिए दहाड़ते, गाली बकते देखा था। नशे में डूबा राघव उसे धमका रहा था। गालियां बक रहा था। जान से मारने की धमकी दे रहा था।
उसकी मां उसका हाथ पकड़कर खींचने की कोशिश कर रही थी। लेकिन उसको क्या मालूम था कि उसका बेटा उसकी नहीं सुनने वाला। नागदेव ने सुना भी नहीं था। उसने पचासों स्त्री-पुरुषों के सामने राघव को चाकुओं से गोद डाला था। बस्ती वाले भय और आतंक में डूबे, सांसें रोके उस राघव का कत्ल होते देख रहे थे जिसकी शक्ल देखकर उनकी जान सूख जाती थी।
राघव को हलाल करने के बाद उसने खून में डूबा चाकू लिए सबकी ओर खूनी नजरों से देखा फिर खूंखार स्वर में बोला था—“मैं सभी को चेतावनी दे रहा हूं। अगर किसी ने पुलिस को सूचना देने की कोशिश की तो ये जरूर सोच ले कि एक कत्ल की सजा भी फांसी होती है और दस कत्ल की सजा भी फांसी होती है। वैसे मैंने इस राघव को मारकर तुम सबको इसके अत्याचार से छुटकारा ही दिलाया है। इसकी हरकतों से आए दिन तुम सभी लोग परेशान रहते थे। औरतों की इज्जत महफूज नहीं थी। अवैध वसूली अलग करता था।”
“लेकिन नाग बेटे, इसके गुण्डागर्दी करने वाले साथी तुम्हारे पीछे पड़ जाएंगे। तुम उन सबसे कैसे निपटोगे?” उसकी मां ने भय से कांपते हुए पूछा—“वे सब बहुत खतरनाक हैं।”
“इसकी चिन्ता करने की जरूरत नहीं है।” उसने बेफिक्रे स्वर में कहा—“तुम्हारा बेटा कोई हलवा नहीं है।”
“मगर तू जाएगा कहां?”
“उसकी फिक्र क्यों करती है तू?” उसने बस्ती वालों की ओर देखा था—“मैं जा रहा हूं। इसकी लाश भी साथ लिए जा रहा हूं। मगर ये ख्याल रहे कि पुलिस को या इसके साथियों को अगर किसी ने मेरा नाम बताया तो मुझको मालूम हो जाएगा। उसके बाद क्या होगा तुम लोग सोच सकते हो।”
उसके बाद वो राघव की लाश कन्धे पर लादकर बस्ती से निकल गया था। लाश को उसने बस्ती से आधा फर्लांग पर गुजरती रेलवे लाइन के ऊपर डाल दिया था और उस समय तक एक ओर छिपा रहा था जब तक मालगाड़ी ने उस पर से गुजर कर शव को चितड़ों में नहीं बदल दिया था। वो बस्ती से एक हफ्ते के लिए गायब हो गया था। अपने साथियों को बस्ती की निगरानी में लगा दिया था। राघव का शव पुलिस ने रेल की पटरियों पर बरामद कर लिया था। राघव के साथी पगलाए सांडों की तरह अपने सरदार के हत्यारे की तलाश में घूमते रहे थे। हालांकि किसी ने भी मुखबिरी नहीं की थी मगर उन लोगों को मालूम हो गया था कि हत्या नागदेव ने की है और किसलिए की है।
लगभग पन्द्रह दिन बाद उसे जो खबर मिली थी उसने उसको पागल बना दिया था। उसकी मां की हत्या कर दी गयी थी। हत्या करने से पहले उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था। बस्ती वालों ने ही बताया था कि ये काम राघव के साथियों का था। वे दो कारों में भरकर बस्ती पहुंचे थे। उनके साथ गोगा दादा भी था। राघव गोगा के गिरोह में था और उसी के लिए काम करता था। नागदेव ने गोगा दादा का नाम सुन रखा था। उसका नाम पूरे शहर में आतंक का पर्याय था।
नागदेव शायद अपने पागलपन में गोगा या उसके आदमियों से अकेले ही भिड़ गया होता और मारा जाता। मगर उसके साथियों ने उसे समझा-बुझाकर शान्त किया था। उसके साथी भी उसी की उम्र के थे। गोगा जैसे दादा और गिरोहबाज शख्स के सामने उसकी औकात भुनगे से ज्यादा नहीं थी। गोगा के कई धन्धे थे। अपना होटल था। सैकड़ों आदमी उसके लिए काम करते थे। गोगा को ताकतवर सफेदपोशों का संरक्षण भी हासिल था। नागदेव की समझ में आ गया था कि बदला लेना है तो इन्तजार करना होगा। अपनी शक्ति बढ़ानी होगी और गोगा की कमजोरियों का पता लगाना होगा। उस पर नजर रखनी होगी।
नागदेव के साथियों की संख्या चार थी। दूसरे कई लड़कों को उसने परखा था लेकिन वे बेकार निकले थे इसलिए उनको अपने साथ शामिल नहीं किया था। फिर अचानक एक तरकीब उसके दिमाग में आयी थी। अपने साथियों के साथ उसने खूब विचार-विमर्श किया था। और पक्की योजना बनाकर अमल शुरू कर दिया था। पूरे डेढ़ महीने गोगा की निगरानी की गयी थी। निगरानी इतनी होशियारी से की गयी थी कि गोगा या उसके आदमियों को पता ही नहीं चला था।
और फिर एक दिन सरेआम, दिनदहाड़े, भरी पूरी सड़क पर उसने तथा उसके साथियों ने एकाएक हमला करके, ताबड़तोड़ गोलियां चलाकर गोगा और उसके कई साथियों को मौत के घाट उतार दिया था। इसके बाद वे ऐसे गायब हुए थे जैसे गधे के सिर से सींग। उन्होंने उसके बाद तत्काल शहर छोड़ दिया था। लगभग छः महीने बाद शहर वापस लौटे थे। उस समय तक उसके चारों साथी उसे उस्ताद के नाम से बुलाने लगे थे। लौटने के बाद पता चला था कि गोगा के मरते ही उसका सारा कारोबार बिखर गया था।
लौटने के बाद उसने धीरे-धीरे अपनी धमक बनानी शुरू की थी। एक दिन अण्डरवर्ल्ड का एक शख्स उससे मिला था। उसने गिरोह के लिए काम करने का ऑफर दिया था। उसने ये भी बताया था कि बॉस को मालूम था कि उसी ने गोगा को मारा है। अगर वो अपने साथियों के साथ काम करने को तैयार हो तो उसको बॉस की शरण मिल सकती है। वो बॉस का नाम सुन चुका था। वो ऐसा नाम था जिसके कारण कानून से भी उसकी बचत हो सकती थी। अभी वो जुर्म की दुनिया का भुनगा था। इससे बढ़िया उसके लिए और कौन-सा मौका मिल सकता था। वो अपने साथियों समेत कैलाश पण्डित के लिए काम करने लगा था।
अण्डरवर्ल्ड में शहर में जो तीन-चार नाम थे, कैलाश पण्डित उनमें से सबसे ज्यादा ताकतवर नाम था और तब से वो कैलाश पण्डित के लिए काम कर रहा था।
सिगरेट का अन्तिम कश लेकर बचे टोटे को उसने फेंका नहीं। उससे दूसरी सिगरेट सुलगाकर कार की ओर बढ़ा और स्टेयरिंग के पीछे जा बैठा।
लगता है छोकरा पकड़ में नहीं आया उसने सोचा।
लेकिन इतनी जल्दी गायब कहां हो गया?
वो सोचता रहा और सिगरेट के कश लेता रहा।
वे चारों लौट आए—खाली हाथ। छोकरा उनके साथ नहीं था। यानी चकमा दे गया था।
“नहीं मिला?”
“पता नहीं हरामी कहां लोप हो गया इतनी जल्दी।” एक ने कहा।
चारों अभी बाहर ही खड़े थे।
“कार में बैठो।” उसने कहा—“यहां से निकल लेते हैं। बाद में देखेंगे। बचकर जाएगा कहां?”
उसी समय पुलिस वाहन की आवाज सुनाई दी।
“चलो बैठो। यहां रुकना ठीक नहीं।”
तीन पिछली सीट पर और एक आगे आ गया।
उनके बैठते ही उस्ताद ने इंजन चालू किया और कार आगे बढ़ा दी। जिस पान वाले से उस्ताद ने सिगरेट खरीदा था वो बड़े गौर से लेकिन कुछ चिन्तित नजर से कार को जाते देखता रहा।
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Additional information
Book Title | मौत का ताण्डव : Maut Ka Tandav by Sunil Prabhakar |
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Isbn No | |
No of Pages | 256 |
Country Of Orign | India |
Year of Publication | |
Language | |
Genres | |
Author | |
Age | |
Publisher Name | Ravi Pocket Books |
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