मौत का फन्दा : Maut Ka Fanda by Sunil Prabhakar
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भारत मां की वो नवविवाहित बेटी अपने पति के साथ, आँखों में सुखद सपने सजाए, ससुराल की ओर चली जा रही थी। उसी समय कुछ दुर्दान्त आतंकवादियों ने उसका अपहरण कर लिया। ना ड्राईवर को टच किया गया, ना ही उसके पति की जान ली। ना किसी फिरौती की डिमाण्ड की। उस अपहरण ने पूरे देश को सकते में डाल दिया। मगर कई सवाल थे जो उस के पति और देश के लोगों के जेहन पर लगातार हथौड़े की तरह चोट कर रहे थे।
एक साधारण-सी लड़की में आतंकवादियों को क्यों इतनी दिलचस्पी थी?
मौत का फन्दा : Maut Ka Fanda
Sunil Prabhakar सुनील प्रभाकर
Ravi Pocket Books
BookMadaari
प्रस्तुत उपन्यास के सभी पात्र एवं घटनायें काल्पनिक हैं। किसी जीवित अथवा मृत व्यक्ति से इनका कतई कोई सम्बन्ध नहीं है। समानता संयोग से हो सकती है। उपन्यास का उद्देश्य मात्र मनोरंजन है। प्रस्तुत उपन्यास में दिए गए हिंसक दृश्यों, धूम्रपान, मधपान अथवा किसी अन्य मादक पदार्थों के सेवन का प्रकाशक या लेखक कत्तई समर्थन नहीं करते। इस प्रकार के दृश्य पाठकों को इन कृत्यों को प्रेरित करने के लिए नहीं बल्कि कथानक को वास्तविक रूप में दर्शाने के लिए दिए गए हैं। पाठकों से अनुरोध है की इन कृत्यों वे दुर्व्यसनों को दूर ही रखें। यह उपन्यास मात्र 18 + की आयु के लिए ही प्रकाशित किया गया है। उपन्यासब आगे पड़ने से पाठक अपनी सहमति दर्ज कर रहा है की वह 18 + है।
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मौत का फन्दा
सुनील प्रभाकर
फूलों से सजी मोटर कार तेजी से सड़क पर दौड़ रही थी मानो उसे अपनी मंजिल पर पहुंचने की बहुत ही आतुरता हो लेकिन उस गाड़ी की पिछली सीट पर बैठी गीता राठौर की कल्पनाओं की उड़ान गाड़ी की रफ्तार से हजारों गुना तेज थी।
सुहाग के सुर्ख जोड़े में लिपटी गीता राठौर जैसे एक नये जीवन में प्रवेश कर रही थी। उसके बगल में उसके सपनों का राजकुमार मौजूद था लेकिन वो भविष्य की हसीन कल्पना में इस कदर खोई हुई थी कि उसे अपने करीब किसी की उपस्थिति का अहसास तक नहीं था।
वो अपने उस नये घर का नक्शा अपनी कल्पना में खींच रही थी जिसकी दहलीज पर वो कदम रखने जा रही थी। उस घर के रूप में वो किसी स्वर्ग की कल्पना कर रही थी।
वैसे भी गीता राठौर जिस घर में कदम रखेगी स्वर्ग तो वो घर बन ही जाएगा। परिवार के किसी पुण्य का फल ही था कि गीता राठौर उस घर में बहू बनकर जा रही थी।
गीता राठौर उस समय यही सोच रही थी उसके नये घर के लोग कैसे होंगे? उसके साथ उनका व्यवहार कैसा होगा? लेकिन वो लोग कैसे भी हों, गीता के अन्दर वो क्षमता थी कि वो अपने व्यवहार से किसी का भी दिल जीत सकती थी। वो उस परिवार में खुशियों की बरसात कर सकती थी। फिर उस परिवार को स्वर्ग तो बन ही जाना था।
और अपनी कल्पना में इस कदर खोई हुई थी कि गाड़ी में तीन प्राणियों की मौजूदगी के बावजूद भी पूरी तरह से सन्नाटा छाया हुआ था।
और उसकी बगल में बैठे हुए उसके सपनों के राजकुमार के लिए ये सन्नाटा असहनीय होता जा रहा था। वो चाह रहा था कि उसकी जीवनसंगिनी उसके साथ कुछ बातें करें। वो उसकी मीठी-मीठी वाणी सुनने के लिए मरा जा रहा था। जबकि उसे उसकी मौजूदगी तक का अहसास नहीं था।
और जब ये खामोशी उसके लिए असहनीय हो गई तो उसने गीता राठौर को टोका।
“ऐ!”
गीता राठौर जैसे सपनों की दुनिया से एक ही झटके में बाहर आ गई हो।
उसने अपना चेहरा घुमाकर देखा।
“क्या बात है...?” उसने कहा—“नाराज हो?”
“नहीं तो...मैं नाराज किससे हो सकती हूं?”
“जाहिर है—ड्राइवर से नाराज तो तुम हो नहीं सकती और उसके अलावा गाड़ी में बस मैं ही मौजूद हूं।
“कैसी बात करते हैं—मैं आपसे नाराज हो सकती हूं भला?”
“लेकिन तुम्हारी खामोशी तो इसी का संकेत कर रही है।”
उत्तर में गीता राठौर के होठों पर एक मोहक मुस्कुराहट उभरी।
“मैं ठीक कह रहा हूं न?”
“नहीं!”
“नहीं...?”
“लगता है संकेतों को समझने का...!” उसने मुस्कुराहट के साथ कहा—“आपको जरा भी अनुभव नहीं है।”
“ये बात है?”
“अभी तक तो ऐसा ही लग रहा है। क्योंकि मेरी खामोशी का ये अर्थ कतई नहीं था जिसका कि आपने अनुमान लगा लिया।”
“तुम्हारी खामोशी का ये अर्थ नहीं था। इसका मतलब इस खामोशी का अर्थ जरूर है।”
इसका उत्तर गीता राठौर ने केवल मुस्कुराहट से दिया।
“क्या मैं उस खामोशी का अर्थ जान सकता हूं?”
“आप अनुमान लगाइए।”
“कैसे लगाऊं—तुम स्वयं ही कह चुकी हो कि संकेतों का अर्थ समझने का मेरा अनुभव शून्य है।”
“ओह...ये बात तो मैं भूल ही गई थी।”
“अब याद आ गया तो अपनी खामोशी का अर्थ बता दो।”
“दरअसल मैं कुछ सोच रही थी।”
“और अपनी सोचों में डूबकर खामोश थी?”
“शायद!”
“ऐसा क्या सोच रही थी कि मेरी मौजूदगी का अहसास तक नहीं रह गया था?”
“ये सही है कि मुझे आपकी मौजूदगी का अहसास तक नहीं रह गया था लेकिन इसका कारण भी आप ही हैं।”
“मैं?”
“हां, आप ही।”
“भला मैं कैसे?”
“क्योंकि इस समय मेरी सोचों पर—मेरे मन मस्तिष्क पर आप स्वयं इस कदर छाए हुए थे कि मुझे अपना भी अहसास तक नहीं रह गया था।”
“मेरे बारे में ऐसा क्या सोच रही थीं?”
“अब इसका जवाब तो मेरे पास नहीं है।”
“जवाब नहीं है, क्यों?”
“क्योंकि आपने बीच में रोककर मेरा एक सुंदर सपना तोड़ दिया है।”
“ये तो मैंने अच्छा नहीं किया और इसके लिए तो मुझे तुमसे माफी मांगनी पड़ेगी। क्या माफ कर दोगी?”
“ये बात पहले ही क्यों बता दूं? जब माफी मांगोगे तो जवाब स्वयं ही मिल जाएगा।”
“ओह...!”
गीता राठौर के होठों पर एक बार फिर वैसे ही मोहक मुस्कुराहट उभरी लेकिन इसका कोई उत्तर उसे मिल पाता, उससे पहले ही अचानक गाड़ी के ब्रेक चरमराए और कुछ फासले तक घिसटते रहने के बाद वो गति शून्य हो गई।
गीता राठौर व उसके पति ने चौंकते हुए अपना चेहरा उठाया
“क्या हुआ ड्राइवर?”
“आगे रास्ता बंद है साहब!” ड्राइवर ने बताया। अब तक उनकी नजर भी बंद रास्ते पर पड़ चुकी थी।
उन्होंने देखा कि रास्ता बंद नहीं था बल्कि उसे जानबूझकर बंद किया गया था। रास्ते पर बड़े-बड़े पत्थर डालकर।
दोनों की आंखों में उलझनपूर्ण भाव नजर आये। दोनों ने एक-दूसरे की ओर देखा।
“ये रास्ता क्यों बंद किया गया है?” गीता राठौर ने उलझनपूर्ण भाव से प्रश्न किया।
“देखता हूं।” कहकर उसने अपना हाथ खिड़की के हैंडल की ओर बढ़ाया लेकिन उसी घड़ी गीता राठौड़ ने अपने हाथ से उसकी बांह पकड़ ली।
उसने प्रश्न सूचक नेत्रों से गीता राठौर की ओर देखा।
“आपको गाड़ी से बाहर नहीं जाना चाहिए।”
“क्यों?”
“मुझे कुछ गड़बड़ लग रही है।”
“कैसी गड़बड़?”
“आप जानते ही हैं, ये इलाका आतंकवाद से ग्रस्त है।”
“किसी आतंकवादी घटना का हमसे क्या सम्बन्ध हो सकता है?”
“हो सकता है इसका सम्बन्ध किसी और से हो और रास्ते में हम पहले आ गए हो।”
“फिर भी कुछ तो करना ही होगा। यूं ही तो सड़क पर गाड़ी रोके नहीं खड़े रह सकते न।”
“हमें गाड़ी वापस लौटा लेनी चाहिए।” गीता राठौर ने कहा फिर ड्राइवर की ओर देखा।
“ड्राइवर भैया...!” गीता राठौर ने कहा—“गाड़ी वापस लौटा लो। दूसरे रास्ते से निकल जाएंगे।”
ड्राइवर ने निराशा से गर्दन हिलाई।
“नहीं मैडम...!” उसने कहा—“गाड़ी यहां से वापस नहीं लौट सकती।”
गीता राठौर ने देखा—उसके पति ने भी देखा। उसका कहना गलत नहीं था। वहां रास्ता इतना संकरा था कि गाड़ी वहां से वापस लौट ही नहीं सकती थी।
गीता राठौर व उसके पति की आंखों में चिन्ता के भाव नजर आये लेकिन वे इतने गहरे नहीं थे।
“अब कुछ न कुछ तो करना ही पड़ेगा। मैं इन पत्थरों को हटा देता हूं।” गीता के पति ने कहा।
“नहीं...!” उसने कहा—“ये काम मैं करती हूं।”
“तुम?”
“मैं क्यों नहीं?”
“मेरे होते हुए तुम्हें किसी खतरे का सामना करने की क्या जरूरत है?”
“क्यों—आप कोई खतरा उठा सकते हैं तो मैं क्यों नहीं?”
“आप दोनों बैठे रहिए मैडम...!” ड्राइवर ने कहा—“मैं देखता हूं।”
“मेरा नीचे जाकर देखने का मकसद दूसरा था ड्राइवर भैया!”
“दूसरा मकसद कौन-सा?”
“दरअसल कोई ऐसा खतरा होगा तो वो सबसे कम मुझे ही हो सकता है।”
“आपको सबसे कम खतरा क्यों होगा मैडम?”
“इसलिए कि मैं औरत हूं और एक औरत से किसी को क्या वास्ता हो सकता है?”
“आप गलत सोच रही हैं मैडम! मेरा मानना है कि आपके नीचे जाने पर खतरा कम नहीं होगा बल्कि बढ़ जाएगा और वैसे भी ये आपका नहीं बल्कि मेरा काम है। मेरी जिम्मेदारी मुझे ही पूरी करने दीजिए।” कहने के बाद ड्राइवर उनकी कोई प्रतिक्रिया होने से पहले ही गाड़ी से बाहर आ गया।
“कोई बात तो है...!” ड्राइवर ने उनकी खिड़की के पास मुंह लगाकर कहा—“खिड़कियां लॉक कर लेना। आपको किसी भी सूरत में गाड़ी से बाहर नहीं आना है।”
इसके पश्चात वो आगे बढ़कर उस जगह पहुंचा, जहां सड़क पर अवरोध डाले गए थे।
वहां पहुंचकर उसने एक बार इधर-उधर देखा। उसे आसपास किसी प्रकार का खतरा नजर नहीं आया। इसके पश्चात वो एक बड़े पत्थर को धकेलकर किनारे तक ले आया। इस बीच कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई।
इस पर तो ड्राइवर का साहस और बढ़ गया। उसने सोचा कि ये अवरोध किसी दूसरे के लिए डाले गए थे और उन लोगों का उनसे कोई वास्ता नहीं था।
इसी प्रकार उसने दूसरा पत्थर भी किनारे की ओर ढकेल दिया।
इसके बाद एक बड़ा पत्थर और शेष बचा था। बाकी पत्थर इतने बड़े नहीं थे। उन्हें आसानी से हटाया जा सकता था।
वो उस पत्थर को भी धकेलने लगा।
उस घड़ी उससे कानों में कोड़े की फटकार की तरह एक स्वर टकराया।
“ठहरो!”
ड्राइवर ने चौंकते हुए अपना चेहरा उठाया। ये स्वर गीता राठौर व उसके पति ने भी सुना। उनकी नजरें भी उसी दिशा में घूम गईं।
एक खूंखार शक्ल-सूरत वाला व्यक्ति नजर आया। उसके जिस्म पर कमाण्डोज जैसी वर्दी थी। तथा वो अपने हाथ में ए०के० छप्पन राइफल लिए हुए था।
उस पर नजर पड़ते ही ड्राइवर को जैसे काठ मार गया हो। वो व्यक्ति ड्राइवर के करीब पहुंचकर, उससे लगभग चार कदम की दूरी पर रुका।
उसने अपनी गन का रुख उसकी ओर कर दिया।
ड्राइवर को लगा जैसे उसके जिस्म में बहने वाला रक्त जम गया हो। उसके मुंह से बोल नहीं फूटा।
“तूने हमारे मामले में दखल क्यों दिया?” उसने खूंखार स्वर में कहा। ड्राइवर से इसका जवाब न बना। उसका मुंह सूख गया था।
“इसका परिणाम जानता है?”
“नहीं!”
“क्या नहीं?”
“मैंने कुछ नहीं किया।”
“तूने कुछ नहीं किया—तू कहता है तूने कुछ नहीं किया? जबकि तूने जो कुछ किया है, उसकी सजा मौत है। मरने के लिए तैयार हो जा।”
“नहीं...नहीं...! मुझे मत मारो। मैंने जानबूझकर ऐसा कुछ नहीं किया। मैं तो...मैं तो अपनी गाड़ी के लिए रास्ता बना रहा था। गाड़ी यहां से बैक भी नहीं हो सकती थी। गाड़ी बैंक हो सकती तो मैं वापस लौट जाता।”
“ये रास्ता हमने इसलिए बंद नहीं किया था कि तू इसे पार करके आगे निकल जाए या वापस लौट जाए।”
“लेकिन...लेकिन...!”
“खैर...तेरी जिन्दगी और मौत का फैसला बाद में होगा। तब तक तुझे चुपचाप खड़े रहना है। तेरे जिस्म में मामूली-सी हरकत भी हुई तो जिस्म में इतने छेद हो जाएंगे की गिनती भी नहीं की जा सकेगी। सुना तूने?”
“जी!” उसने थूक निगलते हुए कहा।
“क्या जी?”
“मैं कोई हरकत नहीं करूंगा।”
“ठीक करेगा।” उसने कहा।
उसी घड़ी कार के पीछे से उसी की तरह की वेशभूषा में—ए०के० छप्पन से लैस पांच व्यक्ति प्रकट हुए हैं। उनके चेहरों पर बेहद खूंखार भाव थे।
गीता राठौर और उसके पति को उनकी उपस्थिति का अहसास उस समय हुआ जबकि वे कार की दोनों खिड़कियों पर पहुंच चुके थे। कार की खिड़कियों के शीशों से उन्हें वो खतरनाक चेहरे नजर आये तो उनकी आंखें हैरत से फैलती चली गईं।
“खोलो!” उनमें से एक ने कठोर स्वर में कहा। गीता राठौर व उसके पति ने एक दूसरे की ओर देखा। उनकी आंखों में हैरत के भाव अवश्य थे लेकिन वे उस कदर आतंकित नजर नहीं आ रहे थे लेकिन अभी तक उन्होंने गाड़ी का दरवाजा खोलने का कोई उपक्रम नहीं किया।
“दरवाजा खोलो!”
गीता राठौर के पति के चेहरे पर हिचकिचाहट के भाव उभरे और उनकी हिचकिचाहट को देखकर उनकी राइफलें उनकी ओर उठ गईं।
“अब यदि 1 मिनट की देरी भी दरवाजा खोलने में लगाई तो गोलियों से छलनी कर दिया जाएगा।”
गीता राठौर का हाथ गाड़ी के दरवाजे के हैण्डल की ओर बढ़ गया। उसके पति ने अपना हाथ उसके हाथ पर रखा लेकिन गीता राठौर ने एक बार उसकी ओर देखा था फिर गाड़ी का दरवाजा खोल दिया।
वातावरण जिस कदर भयानक था वैसे आतंकित वे अब भी नजर नहीं आ रहे थे।
गीता राठौर गाड़ी से बाहर आ गई।
उसके बाहर आते ही दोनों ओर से उसके जिस्म से राइफलें सट गईं।
उसी घड़ी उसके पति ने भी गाड़ी से बाहर कदम रखा। उसे भी हथियारों के साये में ले लिया गया।
“क्या चाहते हो?” गीता राठौर ने निर्भीक स्वर में प्रश्न किया।
“तुम्हारे इस सवाल का जवाब तुम्हें बहुत जल्दी मिल जाएगा।”
“अभी क्यों नहीं देते?”
“बहुत जल्दी है तुम्हें जवाब पाने की?”
“देखो...!” इस बार गीता के पति ने कहा—“यदि तुम सोचते हो कि हम बहुत बड़ी दौलत लेकर घूम रहे हैं तो तुम्हारा ये अनुमान ठीक नहीं है। हां हमारे पास कुछ मामूली किस्म के जेवर हैं, कुछ रुपए हैं। तुम उन्हें ले सकते हो लेकिन हमें जाने दो।”
गीता राठौर के पति ने जैसे ही अपना वाक्य समाप्त किया। उसी पल एक खूंखार व्यक्ति का जोरदार तमाचा उसके मुंह पर पड़ा।
पलभर के लिए वो दोनों ही हक्के-बक्के रह गए।
“हमें लुटेरे समझता है।”
“इसके अलावा हमें इस तरह रोकने का...!” गीता राठौर ने कहा—“और क्या मकसद हो सकता है तुम्हारा?”
“हम अपना घर-बार छोड़कर जंगलों में मारे-मारे घूमते हैं। मौत हर समय हमारे सिरों पर मंडराती है और तुम शादी बनाकर मौज-मस्ती का जीवन बिताना चाहते हो? ऐश करना चाहते हो? हम ऐसा नहीं होने देंगे।”
“फिर क्यों करते हो ऐसा—हथियार छोड़कर सुख-शान्ति का जीवन क्यों नहीं बिताते? इससे कौन रोकता है तुम्हें?”
“ऐ लड़की...!” उनमें से एक ने खूंखार नेत्रों से उसकी ओर देखा—“लेक्चर देती है? हमें शान्ति का पाठ पढ़ा रही है? तेरी इतनी हिम्मत हो गई?”
“मैं तुम्हें कोई पाठ नहीं पढ़ा रही। तुम्हारी जिन्दगी है—तुम जैसा चाहो जिओ लेकिन दूसरों को भी चैन से जीने दो।”
“नहीं...!” उसने कहा—“हम किसी को भी चैन से नहीं जीने देंगे। यहां जो जिएगा, वो हमारे हथियारों के साये के आतंक में जिएगा।”
“लेकिन हमारी तुम्हारी कोई रंजिश नहीं है। हमने तुम्हारा कुछ बिगाड़ा नहीं है।”
“रंजिश नहीं है—कुछ बिगाड़ा नहीं है। अमन और शान्ति से जीने वाले तुम्हारे जैसे हर शख्स से हमारी रंजिश है। सब हमारे दुश्मन हैं और तुमसे तो हमारी खास रंजिश है।”
“लेकिन क्यों?”
“बहुत जल्द तुझे इसका पता चल जाएगा।”
गीता राठौर के पति की आंखों में चिन्ता के भाव नजर आये लेकिन गीता राठौर के चेहरे पर अभी तक निर्भीकता नजर आ रही थी। उस खूंखार व्यक्ति ने एक बार फिर गीता राठौर की ओर देखा।
“चलो!”
“कहां?”
“तुम्हें हमारे साथ चलना है।”
“लेकिन कहां?”
“तुम्हें हमारे कमाण्डर के सामने पेश होना है। वही तेरे सवालों का जवाब भी देंगे।”
“कहां है तुम्हारा कमाण्डर?”
“इसका पता तुझे वहीं चलेगा।”
“नहीं!” गीता राठौर के पति ने तीखे स्वर में प्रतिरोध किया। सभी ने उसकी ओर देखा।
“नहीं!”
“तुम इन्हें कहीं नहीं ले जा सकते।”
“कौन रोकेगा?”
“मैं!”
“इसे रोकने के बजाय तू अपने बारे में सोच।” कहकर उसने अपने एक साथी की ओर देखा।
“इसका क्या करना है?”
“कमाण्डर ने कहा है कि ये शराफत के साथ पेश आये तो इसे जाने दिया जाए। इसकी जान लेने में कमाण्डर की कोई दिलचस्पी नहीं है लेकिन हीरो बनने की कोशिश करें तो इसे गोलियों से छलनी करके लाश को किसी गहरे खन्दक में फेंक दिया जाए।”
“सुना तूने...!” उसने गीता राठौर के पति की ओर देखा—“हमारे कमाण्डर का आदेश सुना तूने—अब बोल क्या इरादा है?”
“मेरे जीते जी तुम मेरी पत्नी को हाथ भी नहीं लगा सकते।”
“ठीक है—तेरे मरने के बाद तो लगा सकते हैं न? तेरी लाश को तो कोई ऐतराज नहीं होगा?”
“मैं तुम्हारी धमकियों से डरने वाला नहीं।”
“धमकियों से डरने की जरूरत भी नहीं है। हम धमकियां दे भी नहीं रहे। तुझे मरने का इतना ही शौक है तो मर...!” कहकर उसने उन आदमियों की ओर देखा जो उसे अपनी राइफलों के घेरे में लिए खड़े थे।
“इसकी तमन्ना पूरी कर दो।” उसने आदेश दिया तो उनके हाथ राइफलों पर कस गए तथा चेहरों पर कठोरता उभर आई।
“नहीं!” पहली बार गीता राठौर के मुंह से चिन्ता में डूबा हुआ स्वर निकला।
“नहीं? गोली मत चलाना।”
“लेकिन ये तो गोली खाने के लिए बहुत उतावला हो रहा है।”
“नहीं!”
“तो समझाओ इसे की हीरो बनने के चक्कर में न पड़े। अपनी जान बचाकर चलता बने। भूल जाए कि इसकी कोई बीवी भी थी।”
“ये नहीं हो सकता।”
“क्या नहीं हो सकता?”
“तुम इस तरह जबरदस्ती नहीं कर सकते।”
“हम क्या कर सकते हैं, ये किस्सा छोड़ो। हमारे पास अब ज्यादा वक्त नहीं है। इस आदमी से जरा भी हमदर्दी है तो कह दो कि चुपचाप यहां से खिसक जाए। अब भी हम इसकी जान बख्श सकते हैं और ये बहुत बड़ी रियायत इसके साथ की जा रही है। वर्ना किसी की जान लेना हमारे लिए कोई बड़ी बात नहीं है। ऐसा हम चुटकियों में कर देते हैं। यूं समझ लो कि ये हमारे लिए आये दिन का खेल है।”
“तुम्हारे लिए किसी की जान लेना खेल हो सकता है लेकिन मेरे लिए ये खेल नहीं है कि कोई मेरी नवविवाहित पत्नी को हाथ भी लगा सके।”
“यानी शहीद होकर ही रहेगा।”
“मेरी पत्नी को छोड़ दो।” उसने कहा। उसी घड़ी एक जोरदार मुक्का उसके जबड़े पर पड़ा। मुक्का पड़ते ही उसने ढेर सारा खून उगल दिया।
गीता राठौर ने आगे बढ़कर अपने पति का बचाव करना चाहा लेकिन दो आदमियों ने दोनों ओर से उसकी भुजाओं को सख्ती से पकड़ लिया।
गीता राठौर तड़पकर रह गई।
“मत मारो इन्हें!”
इस बार उसकी बांहों को मरोड़कर पीठ से सटा दिया गया। ऐसी स्थिति में वो पूरी तरह से बेबस हो गई। पीड़ा की रेखाएं उसके चेहरे पर साफ-साफ नजर आ रही थीं।
“बहुत अकड़ है इसमें...!” उसने गीता राठौर की पति की ओर देखते हुए अपने साथियों से कहा—“गोलियों का स्वाद चखने से पहले इसकी अकड़ ही निकाल दो।”
उसका इतना कहते ही गीता राठौर के पति के पेट में एक जबरदस्त घूंसा टकराया। उसके पेट में असहनीय पीड़ा की लहर-सी दौड़ती चली गई।
वो नीचे की ओर झुकता चला गया।
लेकिन विरोध करने की स्थिति में वो भी नहीं था क्योंकि गीता राठौर की तरह एक आदमी ने उसकी बांहों को उमेठकर पीठ पीछे पकड़ा हुआ था। दूसरा व्यक्ति उसकी ओर राइफल ताने खड़ा था जबकि तीसरा उस पर प्रहार कर रहा था।
“छोड़ दो इन्हें!” गीता राठौर ने विरोध के स्वर में कहा।
“अब तो इसकी अकड़ निकालने के बाद ही मुक्त किया जाएगा। इसके बाद इसे जीवन से मुक्त कर दिया जाएगा।”
“नहीं!”
“इसने स्वयं अपनी मौत के परवाने पर दस्तखत किए हैं। वर्ना हम तो इस पर रहम ही कर रहे थे।”
उसी घड़ी एक ठोकर उसकी पसलियों से टकराई।
गीता राठौर की आंखों में आंसू छलक आये।
“मैं कहती हूं छोड़ दो इन्हें।”
लेकिन उसकी बात की परवाह करने वाला शायद वहां कोई नहीं था।
वो व्यक्ति गीता राठौर के सामने उसके पति पर बेरहमी से लात व घूसों का प्रहार कर रहा था। वो सब कुछ अपनी आंखों से देख रही थी लेकिन बेबस थी—मजबूर थी।
“अरे शैतानों...क्या बिगड़ा है इन्होंने तुम्हारा? छोड़ दो इन्हें।”
“भूल जाओ इसे...!” उस व्यक्ति ने कहा, जो उन्हें निर्देशित कर रहा था—“समझ लो इससे तुम्हारा कोई सम्बन्ध ही नहीं था।”
“कैसे भूल जाऊंगी—इनके साथ मेरा जन्म जन्मांतर का सम्बन्ध जुड़ चुका है। तुम्हारे जैसे शैतान तो क्या अब तो भगवान भी हमें अलग नहीं कर सकता। अब हम मरेंगे तो साथ-साथ और जिएंगे तो साथ-साथ।”
“तो फिर भगवान को याद करती रहो—शायद वो तुम्हारी कोई मदद कर सके लेकिन ऐसा होगा नहीं क्योंकि हमारे दुश्मनों को पनाह देने का साहस भगवान भी नहीं कर सकता।”
“हमने क्या बिगाड़ा है तुम्हारा—हमारी क्या दुश्मनी है तुमसे?”
“तुम्हारे बारे में तो कमाण्डर ही बताएगा लेकिन इसने हमारे काम में रुकावट बनने का साहस किया है और हमारे काम में रुकावट बनने वाला हमारा दुश्मन ही होता है। इसे इसका दण्ड तो भुगतना ही है। हमसे इसे कोई नहीं बचा सकता। तुम्हारा भगवान भी नहीं!”
इस बीच गीता राठौर के पति की हालत बहुत खस्ता हो चुकी थी। उसके कपड़े कई जगह से फट चुके थे तथा जिस्म पर जगह-जगह से खून रिस रहा था।
और वो शैतान था कि अभी तक उसके ऊपर लात व घूंसे बरसाता जा रहा था।
वो युवक काफी पस्त हो चुका था।
विरोध करने की स्थिति में तो वो पहले भी नहीं था लेकिन अब तो विरोध करने की शक्ति उसके अन्दर नहीं रह गई थी।
लेकिन गीता राठौर के लिए ये सब देखना अब शायद सम्भव नहीं रह गया था। वो अपने पति को इस हालत में नहीं देख सकती थी।
हालांकि वो पूरी तरह से बेबस थी।
इसके बावजूद भी उसने अपनी पूरी ताकत समेटकर अपने जिस्म को जोर से झटका दिया। उस समय लगा जैसे कोई अनजानी-सी शक्ति उसके जिस्म में प्रवेश कर गई हो। एक झटके में ही वो उन शैतानों के बंधन से मुक्त हो गई थी।
वो तेजी से अपने पति की ओर लपकी।
“आगे नहीं बढ़ना...!” उस व्यक्ति ने चेतावनीपूर्ण स्वर में कहा—“एक कदम भी आगे बढ़ाया तो इसका जिस्म गोलियों से छलनी कर दिया जाएगा।”
इस चेतावनी का पूरा असर हुआ।
गीता राठौर के कदम जहां-के-तहां रुक गए।
उसकी बांह फिर पकड़ ली गई लेकिन इस बार उसे उमेठने की जरूरत नहीं पड़ी।
“ये तभी तक जिन्दा है जब तक कि तू...!” उस शैतान ने चेतावनीपूर्ण अंदाज में कहा—“चुपचाप खड़ी तमाशा देख रही है। तूने जो गलती की है, वैसे गलती दोबारा मत करना। अगर दोबारा ये गलती दोहराई गई तो...!” उसने वाक्य बीच में ही छोड़ दिया।
गीता राठौर की आंखों में बेबसी स्पष्ट नजर आ रही थी।
उसके पति की हालत उस समय ऐसी हो रही थी जिसे देखने का साहस करना भी बहुत बड़ी बात थी।
उसकी टांगों में शायद इतनी भी शक्ति नहीं रह गई थी कि वो उसके जिस्म का बोझ सम्भाल सके।
इसलिए वो जमीन पर गिर पड़ा।
और इस प्रकार वो उन शैतानों के बीच में फुटबॉल बन गया था। उसके जिस्म पर उन शैतानों की ठोकरें चारों ओर से टकरा रही थीं।
अभी कुछ क्षण पहले वो कितनी हसीन कल्पनाओं में खोई थी लेकिन पलक झपकते ही जैसे कोई भयंकर तूफान उसकी जिन्दगी में आया हो और उसके कल्पनाओं का घरौंदा तार-तार हो गया।
शायद यही सोचकर उसकी आंखों में आंसू छलक आये।
शैतानों की यातनाएं जब उसकी सहनशक्ति को पार कर गईं तो वो अपनी चेतना खो बैठा।
वो अचेत हो चुका था।
शैतानों की चोट अब उसके जिस्म पर इस प्रकार पड़ रही थी मानो वो कोई मानवीय जिस्म न होकर कोई निर्जीव वस्तु हो।
“बस...!” उन्हें आदेश देने वाले शैतान ने कहा—“इसके लिए इतना ही काफी है। एक के साथ मारपीट करने से कोई फायदा नहीं। बस अब तो इसे इन तकलीफों से मुक्त करने का समय है। इसे मुक्त करो और इसकी लाश को उठाकर कहीं गहराई में फेंक दो।”
इसी के साथ ही दो राइफलें उसकी ओर उठ गईं।
“नहीं...!” गीता राठौर के मुंह से निकला—“नहीं!”
“क्यों...?” उस शैतान ने गीता राठौर की ओर व्यंग्यात्मक अंदाज में देखा—“तुम इसे हमारी शैतानियत से मुक्त ही तो देखना चाहती थी न? हम इसे मुफ्त ही कर रहे हैं।”
“नहीं!”
“ठीक है!” उसने कहा—“हम इसकी जिन्दगी बख्श रहे हैं।” फिर उसने ड्राइवर की ओर देखा।
“ले जा इसे उठाकर—तू भी अपने आपको बहुत किस्मत वाला समझ कि मौत के मुंह से जिन्दा निकल कर जा रहा है।”
ड्राइवर को लगा जैसे उसकी सांसें लौट आईं हों।
वो आगे बढ़ा—
“ठहर!”
उसके कदम वहीं रुक गए।
“अभी एक घण्टे तक तुझे यहीं खड़े रहना है। जब एक घण्टा बीत जाए तब यहां से जाना—समझ गया?”
“जी!”
“क्या जी?”
“मैं एक घण्टा तक यहीं खड़ा रहूंगा। इसी तरह!”
“ऐसा करके तू अपने आप पर ही एहसान करेगा।” कहकर उसने गीता राठौर की ओर देखा।
“क्या तुम हमारे साथ चलने में ऐतराज करोगी?”
गीता राठौर ने कुछ नहीं कहा। शायद ये उसकी मौत स्वीकृति थी क्योंकि उसने मान लिया था कि इन शैतानों का विरोध करने का कोई अर्थ नहीं है।
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Additional information
Book Title | मौत का फन्दा : Maut Ka Fanda by Sunil Prabhakar |
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Isbn No | |
No of Pages | 288 |
Country Of Orign | India |
Year of Publication | |
Language | |
Genres | |
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Publisher Name | Ravi Pocket Books |
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- Changez Khan : चंगेज खान
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