मरता सब कुछ करता
“ऊंऽऽऽऽ आऽऽऽऽ....।”
जिस्म को अकड़ाते हुए अर्जुन त्यागी ने बेड पर लेटे-लेटे ही अंगड़ाई ली तो उसकी फैल रही बांह बराबर में लेटी गौरी के उभारों पर जा लगी।
अपनी गर्दन मोड़कर उसने गौरी की तरफ मोड़ी तो उसे अपनी ही तरफ देखते पाया।
दोनों के बदन पर कपड़े का एक भी रेशा नहीं था।
सिर से पांव तक निर्वस्त्र थे वे।
आज सुबह ही राजनगर पहुंचे थे वे।
मुंबई से भागकर वे ट्रेन द्वारा सीधा यहां आये थे।
लंबे सफर की थकावट थी उन्हें। सो यहां पहुंचते ही उन्होंने उस गेस्ट हाऊस में कमरा लिया और रिसेप्शनिस्ट को डिस्टर्ब न करने को कहकर कमरे में आ गये।
एकांत मिलते ही उनके भीतर अंगड़ाइयां फूटने लगी थीं। सो और ज्यादा अच्छी नींद लेने के लिये उन्होंने दो घंटे खूब मेहनत करने का निश्चय किया और कपड़े उतारकर टूट पड़े एक-दूसरे पर।
दो घंटे तक वे एक-दूसरे की प्यास बुझाते रहे, और फिर घोड़े बेचकर ऐसा सोये कि अब शाम के सात बजे जाकर उनकी नींद खुली....।
नजरें मिलते ही दोनों मुस्कुराये और फिर अर्जुन त्यागी उठ बैठा।
“एक-एक बाजी और हो जाये....।” गौरी भी उठ बैठी।
अर्जुन त्यागी ने उसके शानदार उभारों पर नजर मारी, जो पूरी तरह से तने हुए उसे ललचाते नजर आ रहे थे। फिर वह होठों पर मुसकान लाते हुए बोला—
“अभी फ्रैश हो लें....थोड़ा घूम-फिर लें, फिर खाना खा लें....। उसके बाद एक बाजी क्या पांच-छः बाजी खेलेंगे....।”
“क्यों, अभी जोश नहीं आ रहा क्या....?” गौरी हंसी।
“जोश तो तू जानती है कि उसकी कमी नहीं है मेरे में। मगर हर काम का वक्त होता है।”
यह कह वह सरककर बेड से उतरा और बाथरूम की तरफ बढ़ गया।
गौरी ने एक लंबी सांस छोड़ी और बेड की पुश्त से टेक लगाकर धीरे-धीरे अपने उभारों को सहलाने लगी।
पंद्रह-बीस मिनट बाद अर्जुन त्यागी बाथरूम से निकला, तो उसे देख गौरी की आंखों में एक बार फिर से नशा भरने लगा। लेकिन अपना आपा नहीं खोया उसने। बस बेड पर खड़े होकर अर्जुन त्यागी के सामने एक भद्दी मुद्रा बनाई और बेड से उतरकर अपने भारी कूल्हे मटकाते हुए बाथरूम की तरफ बढ़ गई।
अर्जुन त्यागी ने एक गहरी सांस छोड़ते हुए उसके कूल्हों से नजर हटाई और बेड पर इधर-उधर बिखरे कपड़े समेटकर उन्हें पहनने लगा।
कपड़े पहनकर उसने गौरी के कपड़ों को इकट्ठा कर बेड के कोने पर रखा और बाथरूम के दरवाजे पर आकर गर्दन भीतर कर गौरी को देखा, जो कि शावर ले रही थी।
“दरवाजा बंद कर ले।” वह बोला—“मैं खाना कह रहा हूं। कहीं ऐसा न हो कि जब खाना आये तो तू भी बाहर निकल आये।”
“तो क्या हुआ....।” गौरी हंसी—“मेरा क्या बिगड़ेगा....जो बिगड़ेगा...उस बेचारे वेटर का ही बिगड़ेगा।”
“अरी कमीनी....!” अर्जुन त्यागी भुनभुनाया—“हम यहां पति-पत्नी के रूप में ठहरे हैं। किसी को नुमाइश नहीं करानी तेरी।”
“भड़क क्यों रहा है....।” अपनी बांहों पर हाथ रगड़ते हुए हंसी गौरी—“जा कपड़े ले आ मेरे....ताकि मैं बाहर निकलूं तो मेरा सारा कीमती सामान ढका हुआ हो।”
“साली अपने सामान को कीमती ऐसे कह रही है, जैसे करोड़ों का हो....। जबकि टके की कीमत नहीं....।”
“ऐ हरामी....।” गौरी अपनी टांगों को मलते हुए गर्दन उठा उसे घूरते हुए गुर्राई—“क्या कहा, मेरे सामान की कीमत टके की भी नहीं? भूल गया कि इसी सामान के दम पर मैंने कितने काम संवारे हैं, और तू कह रहा है कि टके का नहीं....। कीमत तो तेरी नहीं जो....!”
बोलते-बोलते चुप कर गई वह, क्योंकि अर्जुन त्यागी बाहर जा चुका था।
शीघ्र ही वह वापिस लौटा तो उसने उसके कपड़े उठा रखे थे।
गौरी की तरफ देखे बिना ही उसने कपड़े खूंटी पर टांगे और बाहर निकल गया।
उसके जाने पर गौरी ने बाथरूम का दरवाजा बंद किया और शावर के नीचे खड़ी हो गई।
बेड पर आकर अर्जुन त्यागी ने साइड स्टूल पर रखे फोन का रिसीवर उठाया और खाने का आर्डर दे दिया।
वह था तो गेस्ट हाऊस, मगर उसमें कमरे में खाना पहुंचाने की सुविधा थी।
गेस्ट हाऊस के सामने एक रेस्टोरेंट था....जहां से गेस्ट हाऊस का एक नौकर खाना लाकर कमरों में सर्व करता था। पंद्रह मिनट बाद गौरी बाथरूम से निकली तो उसने जींस तथा टॉप पहन रखी थी।
आगे बढ़कर वह बेड के करीब पड़ी कुर्सी पर बैठी और टांगें उठाकर उन्हें सीधा कर बेड पर रखते हुए बोली—
“तू तो कह रहा था कि खाना मेरे बाहर आने से पहले आ जायेगा।”
“अब नहीं आया तो मैं क्या करूं....?” अर्जुन त्यागी ने कंधे उचकाये—“मुझे क्या पता था कि इस गेस्ट हाऊस की सर्विस इतनी ढीली है।”
ठीक तभी दरवाजे पर दस्तक हुई।
“खट-खट-खट....।”
“ले, आ गया खाना....।” वह बेड से उतरते हुए बोला।
दरवाजे के पास आकर उसने हाथ ऊपर कर सिटकनी गिराई और दरवाजा खोल दिया।
सामने साधारण से कपड़े पहने हाथों में ट्रे उठाये एक व्यक्ति खड़ा था।
“बड़ी देर लगा दी....?” अर्जुन त्यागी एक तरफ हटते हुए बोला।
“सामने वाले रेस्टोरेंट से लाना पड़ता है साहब....! थोड़ी बहुत देर तो लग ही जाती है।”
वह व्यक्ति भीतर प्रवेश करते हुए बोला।
आगे बढ़कर उसने ट्रे सेंटर टेबल पर रखी और सीधा होकर एक उड़ती निगाह गौरी पर डाली, फिर अपने पीछे आ खड़े हुए अर्जुन त्यागी को देखते हुए बोला—
“पांच सौ रुपये साहब!”
अर्जुन त्यागी ने जेब से पांच सौ का नोट निकालकर उसको दिया।
“कुछ और भी मंगवाना है साहब....?” नोट जेब में डालते हुए बोला वह आदमी।
“नहीं....। अब तुम जाओ....।”
उस व्यक्ति ने सिर हिलाया और बाहर निकल गया।
उसके जाते ही गौरी कुर्सी खिसकाकर सेंटर टेबल के पास आ गई, और अर्जुन त्यागी दूसरी कुर्सी पर बैठ गया।
कुछ ही देर में दोनों खाना खाते नजर आ रहे थे।
“तीन दिन हो गये हैं हमें पल्ले से खाते हुए....।” गौरी मटन का पीस मुंह में डालते हुए बोली—“और इन तीन दिनों में हमारे तीस हजार उजड़ गये हैं।”
“तू भी साली हरामन है। आज सुबह ही तो पहुंचे हैं हम यहां। अब खाना खाकर निकलेंगे काम पर....ढूंढेंगे कोई ऐसी आसामी जो हमें झटके में करोड़ों दे दे।”
“यार, बीस लाख तो पड़े ही हैं हमारे पास....।”
“तो?”
“क्यों न हम उसी से धंधा शुरू करें....।”
अर्जुन त्यागी ने रोटी तोड़ते हुए मुंह ऐसे बनाया, जैसे उसे उसकी अक्ल पर तरस आ रहा हो।
“अरी उल्लू की पट्ठी, किराने की दुकान खोलेगी कि मनियारी की, जो बीस लाख में काम शुरू हो जायेगा....।”
“मगर यार....!”
“कम-से-कम तीन करोड़ से शुरूआत होगी....। उसके बाद भी उतना हासिल नहीं होगा जितना मैं चाहता हूं। मैं तो चाहता हूं कि कम-से-कम एक करोड़ की रोज की कमाई हो, और तू बीस लाख में काम शुरू करने की कह रही है—।”
गौरी ने कुछ नहीं कहा, बस हल्के से कंधे उचकाये और खाना खाने लगी।
¶¶
admin –
Aliquam fringilla euismod risus ac bibendum. Sed sit amet sem varius ante feugiat lacinia. Nunc ipsum nulla, vulputate ut venenatis vitae, malesuada ut mi. Quisque iaculis, dui congue placerat pretium, augue erat accumsan lacus