कोख के कीड़े
राजन शुक्ला
सहसा बिजली फिर चमकी।
नन्दी नहर के सड़क-पुल की रेलिंग पकड़े आकाश ने उस पलक-झपकती रोशनी में नीचे बहते शान्त, मगर भयावह जल को घूर कर देखा।
“मौत का जबड़ा भी...!” आकाश फिर बड़बड़ाया——“कैसा शान्त और खामोश होता है! एक झटके के साथ चुपचाप जिन्दगी लील जाता है। सिर्फ एक छलांग! थोड़ी-सी छटपटाहट, जरा-सी घुटन और फिर जिन्दगी के सारे दु:ख-दर्द से मुक्ति। सारे गिले-शिकवे खत्म! चैन-ही-चैन! आराम-ही-आराम।”
बादल फिर गरजा, बिजली फिर चमकी।
आकाश ने गर्दन उठा कर ऊपर की ओर देखा।
एक तो अमावस्या की गहरी गुफा अन्धेरी रात और उस पर काले दैत्याकार बादलों का दिल दहला देने वाला गर्जन। दिसम्बर माह की कड़कड़ाती ठण्ड में बादलों को झकझोरती बर्फीली हवा के तेज झोंके मानो आने वाले किसी बड़े तूफान का संकेत दे रहे थे।
मगर आकाश के दिल में उड़ने वाला तूफान उस आने वाले तूफान से कहीं ज्यादा बड़ा और भयानक था। जीते जी जिन्दगी से मौत की ओर कदम बढ़ाने वाले इंसानों के दिल दिमाग में शायद ऐसे ही तूफान उठा करते हैं।
आंखों को चुंधियाती बिजली की चमक में आकाश ने नन्दी नहर के बहते हुए तेज बहाव को फिर बड़े ध्यान से देखा।
“क्या हुआ जो मुझे...” चारों ओर फैले अन्धेरे को घूरते हुए बड़बड़ाया——“तैरना आता है? बर्फ का ठण्डा पानी और उसका तेज बहाव मुझे बचने व सम्भलने का मौका थोड़े ही देगा। उधर हाथ-पैर सुन्न हुए नहीं कि इधर सांस रुकी। रेलिंग से पानी की सतह लगभग बीस फुट होगी। सतह से नहर की गहराई भी लगभग इतनी ही होगी। मरने का एकदम आसान तरीका। शायद इसलिए हर महीने एक-दो खुदकुशी करने वाले मुझ जैसे अभागे यहां आते हैं। शायद इसलिए इस नन्दी नहर के पुल को खूनी पुल कहा जाता है।”
तभी हवा का एक बड़ा तेज झोंका आया, और आकाश के बालों को उसके गोरे सुन्दर चेहरे पर बिखरा कर चला गया।
आकाश के होठों पर उदासी भरी एक फीकी-सी मुस्कान उभर आई।
“यह जिन्दगी भी...” आकाश सोचने लगा——“कैसी बेवफा है! इसे अपना बनाए रखने के लिए इंसान क्या कुछ नहीं करता, मगर फिर भी यह उसे धोखा दे जाती है। किसी भी मोड़ पर उसे छोड़ जाती है। इससे तो मौत भली। जिन्दगी जब भी ठोकर लगाती है, मौत आगे बढ़ कर उसे सम्भाल तो लेती है।”
सहसा आकाश को अपने सिर में भूचाल-सा डोलता हुआ महसूस हुआ।
वह चिहुंका।
उसकी आंखों की पुतलियां फैलीं और पथराने लगीं।
उसके दोनों हाथ ऊपर उठे और उसकी हथेलियां अपनी कनपटियों पर चिपक गईं।
यह शुरुआत थी उस वजह की, जिसने उसे आज यहां इस खूनी पुल पर लाकर खड़ा कर दिया था।
उसके सिर में आया भूचाल अब तेजी से लगातार बढ़ रहा था। उसकी हथेलियां भी अब उतनी ही जोर से अपनी कनपटियों को दबाने लगीं थीं।
अचानक उसे लगा कि उसके सिर में दौड़ता भूचाल एक गेंद का रूप लेता जा रहा है। जल्दी ही गेंद का आकार छोटा होने लगा, मगर उसे लगा कि वह गेंद दर्द का गोला बन कर उसके दिमाग की नसों में दौड़ रही है और बाहर निकलने का कोई कमजोर रास्ता तलाश कर रही है।
दर्द!
भयानक दर्द!
आकाश का जिस्म ऐंठने लगा। उसे लगा जैसे कोई उसके जिस्म को गीले कपड़े की तरह निचोड़ रहा था।
उसकी आंखों के आगे अन्धेरा छाने लगा। सांस मानो सीने में अटकने लगी। इस गजब की ठण्ड में भी उसका जिस्म पसीनो में नहाने लगा।
और फिर उसके गले से एक तेज हुंकार-सी निकली।
इसके बाद उसके दिमाग की नसों में दौड़ती गेंद और छोटी होने लगी और देखते-देखते गायब-सी हो गई।
आकाश के सीने में अटकी सांस फिर चलने लगी। वह फिर से सम्भलकर खड़ा होने लगा।
पिछले एक माह से वह कभी भी फन तान कर खड़े हो जाने वाले उस जानलेवा दर्द को सह रहा था।
“सॉरी माय ब्वॉय...!” सहसा उसके कानों में न्यूरो सर्जन डॉक्टर रामकुमार वर्मा के शब्द गूंजे——“मैं तमाम कोशिशें करने के बावजूद तुम्हें नहीं बचा सकूंगा। मैं ही क्या, दुनिया का कोई डॉक्टर अब यह चमत्कार नहीं कर सकेगा। तुम्हें ब्रेन ट्यूमर है। लास्ट स्टेज। ज्यादा से ज्यादा तीन महीने और।”
तीन महीने!
आकाश की जिन्दगी के सिर्फ तीन महीने।
सुन्दर, स्वस्थ, अट्ठाईस वर्ष के आकाश की जिन्दगी के सिर्फ तीन महीने शेष रह गए थे।
और वह तीन महीने भी कैसे? बेहद दर्द भरे तीन महीने। पल-पल एड़ियां रगड़कर मरते तीन महीने। उसकी ओर शक और प्रश्नों से भरी नजरों से ताकती अनु को तड़पाने वाले तीन महीने और उसके पिता सरीखे अंकल डॉक्टर रामकुमार वर्मा को लगातार उनकी मजबूरी का एहसास कराते रहने वाले तीन महीने।
क्या करेगा आकाश अगले उन तीन महीनों में जीकर?
मरना उसे हर हाल है, तो फिर अगले तीन महीने ही क्यों? आज ही क्यों नहीं? आकाश ने सड़क-पुल की रेलिंग को कसकर पकड़ा।
दृढ़ता उसके चेहरे पर घिर आई।
उसने एक बार उस दिशा की ओर देखा, जहां सूर्या विहार के एक छोटे, मगर शानदार बंगले में उसकी खूबसूरत और प्रिय पत्नी अनु इस वक्त किचन में व्यस्त, उसके लिए डिनर तैयार कर रही होगी।
उसने गर्दन घुमाकर गंगानगर की ओर भी देखा, जहां नगर के प्रसिद्ध न्यूरो सर्जन डॉक्टर रामकुमार वर्मा, उसके सबसे प्यारे अंकल, इस वक्त अपनी कोठी के बाहर बने क्लीनिक में अपने मरीजों का चेकअप कर रहे होंगे।
उसने गर्दन घुमाकर दाएं-बाएं भी देखा।
हालांकि अभी रात के आठ ही बजे थे, मगर गहराती हुई ठण्ड और आने वाली वर्षा के तूफान की सम्भावना को देखते हुए नन्दी नहर का वह खूनी पुल एकदम वीरान नजर आ रहा था।
यानि खुदकुशी के लिए पूरा माहौल तैयार था।
आकाश ने गहरी सांस ली।
उसने ईश्वर का नाम लिया और रेलिंग पर आगे की ओर झुका।
तभी उस पर कोई तेज रोशनी-सी पड़ी।
वह ठिठक गया।
बाईं ओर से लगभग लहराती हुई एक कार तेज रफ्तार से उसी की ओर आ रही थी।
पता नहीं, कार के ब्रेक फेल हो गए थे या फिर ड्राइवर ने बेहद पी रखी थी, मगर कार यूं लहरा रही थी कि रेलिंग से अब टकराई।
मगर नहीं!
तेज आवाज के साथ कार आकाश से कुछ कदम पहले रुकी।
कार का दरवाजा खुला और उसमें से कोई युवती तेजी से बाहर निकली। उसके युवती होने का अन्दाजा आकाश ने उसकी सफेद साड़ी और छरहरी आकृति से ही लगाया।
बिना इधर-उधर देखे, वह सीधी रेलिंग की ओर लपकी।
उसने रेलिंग पकड़ी और अगले ही पल नीचे छलांग लगा दी।
आकाश दंग रह गया।
सहसा उसने भी रेलिंग से नीचे छलांग लगा दी।
फर्क सिर्फ इतना था कि इस वक्त उसका मकसद खुदकुशी करना नहीं, खुदकुशी करते हुए एक इंसान को बचाने का था।
मगर वह नहीं जानता था कि उसकी नेकी करने की वह कोशिश बहुत जल्द उसके लिए खुदकुशी करने से भी ज्यादा भयानक और दर्द भरी साबित होने वाली थी।
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