खून का प्यासा : Khoon Ka Pyasa by Sunil Prabhakar
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अरबों रुपये के उस खजाने की रक्षक एक ऐसी खूनी आत्मा जो जिसे हर अमावस्या की रात को नवजात बच्चे के खून से अपनी प्यास बुझाती थी...लेकिन उस खूनी प्रेत से जब कानून के रक्षकों का टकराव हुआ तो...?
खनी प्रेतात्माओं और कानून के रक्षकों के टकराव की भयंकर...हौलनाक दास्तान!
Ist Part दबे पांव
IInd Part खून का प्यासा
खून का प्यासा : Khoon Ka Pyasa
Sunil Prabhakar सुनील प्रभाकर
Ravi Pocket Books
BookMadaari
प्रस्तुत उपन्यास के सभी पात्र एवं घटनायें काल्पनिक हैं। किसी जीवित अथवा मृत व्यक्ति से इनका कतई कोई सम्बन्ध नहीं है। समानता संयोग से हो सकती है। उपन्यास का उद्देश्य मात्र मनोरंजन है। प्रस्तुत उपन्यास में दिए गए हिंसक दृश्यों, धूम्रपान, मधपान अथवा किसी अन्य मादक पदार्थों के सेवन का प्रकाशक या लेखक कत्तई समर्थन नहीं करते। इस प्रकार के दृश्य पाठकों को इन कृत्यों को प्रेरित करने के लिए नहीं बल्कि कथानक को वास्तविक रूप में दर्शाने के लिए दिए गए हैं। पाठकों से अनुरोध है की इन कृत्यों वे दुर्व्यसनों को दूर ही रखें। यह उपन्यास मात्र 18 + की आयु के लिए ही प्रकाशित किया गया है। उपन्यासब आगे पड़ने से पाठक अपनी सहमति दर्ज कर रहा है की वह 18 + है।
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खून का प्यासा
सुनील प्रभाकर
समुद्र की लहरों को चीरता छोटा-सा शिप अपनी मंजिल की ओर अग्रसर था। उसकी गति तीव्र किन्तु सन्तुलित थी।
चालक व सह-चालक तीव्रगति से उस छोटे से किन्तु खूबसूरत शिप को, जिसका रंग समुद्र के पानी सरीखा नीला था, पूरी मुस्तैदी से गंतव्य की ओर दौड़ाये लिये जा रहे थे।
सागर शान्त था।
वक्त शाम का—सुरमई होती जा रही सूरज की किरणें समुद्र की लहरों से अठखेलियां करतीं एक अनूठा किन्तु खूबसूरत समां उपस्थित कर रही थीं।
सहसा चालक कक्ष का दरवाजा खुला और एक हड़बड़ाये से नाविक ने प्रवेश किया।
उसके चेहरे पर आशंका की छाप थी किन्तु उस समय वह विचलित-सा नजर आ रहा था।
"क्या बात है शार्दूल?" कैप्टन ने गर्दन घुमाते हुये पूछा था—"तुम और इस वक्त?"
"यस सर...! गजब...!"
"गजब...! ये क्या है? किसी नये समुद्री जीव की खोज कर ली तुमने...?"
"तूफान...! सर—भयंकर समुद्री तूफान के आसार...!"
"क्या—?"
चौंक पड़ा था कैप्टन...!
"यस सर...!" शार्दूल का स्वर पूर्ववत् गम्भीर था—"मेरे कान एक विचित्र-सी सनसनाहट को सुन रहे हैं। एक ऐसी सनसनाहट—जो विगत जीवन में मैं तूफान के आने के पूर्व सुनता व महसूस करता रहा हूं।"
कैप्टन ने सुना।
उसका चेहरा गम्भीर होता चला गया।
जबकि असिस्टेन्ट चालक ने मौसम सूचक यन्त्र की ओर देखा और हंस पड़ा।
दोनों चौंके।
"शार्दूल...!" सह-चालक बोला था—"जरूर तुम्हारे कान बज रहे हैं। या फिर तुम्हारे कान में कोई हल्का-सा इफैक्ट आ गया है।"
"लूथरा साहब...!" शार्दूल नामक नाविक का स्वर पूर्ववत् गम्भीर था—"मैंने इस सम्भावना पर भी विचार किया था और कान में उंगली डालकर बार-बार हिलाया। ये सोचकर कि शायद मेरे कानों को भ्रम हो गया हो, किन्तु मेरी आशंका निर्मूल साबित हुई। तब...तब मैं ये मानने पर बाध्य हुआ कि मेरे कान धोखा नहीं खा रहे।"
"शार्दूल...!" सह-चालक का स्वर व्यंग्यात्मक हो उठा था—"इस वक्त हम आधुनिक सुख-सुविधाओं से युक्त शिप में मौजूद हैं। यहां अत्याधुनिक टैक्नोलॉजी मौजूद है। अगर तूफान के आसार होते तो...तो मौसम डिटेक्टर हमें फौरन सूचना देता।"
"यही तो मैं समझ नहीं पा रहा हूं...स...सर...सर...!" सहसा उसकी आंखें फैली थीं और वह कैप्टन की ओर घूमा था—"मेरे कानों में मौजूद सनसनाहट तेज होती जा रही है।"
सुनकर कैप्टन का चेहरा अजीब-सा हो गया।
"शटअप...!" सह-चालक बोला था—"सनसनाहट वगैरह कुछ नहीं है। सच्चाई ये है कि...!"
"क...कि...!" शार्दूल ने विचित्र अन्दाज में दुहराया था।
"कि...तुम पागल हो रहे हो।"
"ल...लूथरा साहब!"
"लूथरा...!" शार्दूल के जवाब देने से पूर्व ही कैप्टन झुंझलाये स्वर में बोला था—"तुम चुप रहो। तुम...तुम उस व्यक्ति का मजाक उड़ा रहे हो, जिसका अनुमान आज तक गलत साबित नहीं हुआ।
"स...सर...!"
"शार्दूल की जवानी व बुढ़ापा ही नहीं इसका बचपन भी समुद्र की लहरों पर बीता है।"
"स...सर...!"
"यही वजह है कि कई-कई बार वैज्ञानिक यन्त्र फेल हो जाते हैं किन्तु शार्दूल का पूर्वानुमान कभी गलत साबित नहीं होता।"
"आप क्या कह रहे हैं सर...? धोखा इंसान को हो सकता है मशीन को नहीं।"
"बेशक...! किन्तु इंसान...इंसान है। यही कारण है कि इंसान संवेदनशील होता है। उसकी संवेदनशीलता ही उसकी शक्ति होती है। जबकि मशीन वही कर सकती है जो करने की उसमें क्षमता होती है। उसमें संवेदनशीलता का जरा भी स्थान नहीं होता। कभी-कभी अपनी संवेदनशीलता के सहारे ही इंसान की क्षमता को असीम कहा जाता है।”
"मैं कुछ समझा नहीं सर...!"
"समझने की चेष्टा करो लूथरा...! इंसान की संवेदनशीलता हर इंसान को भविष्य का पूर्वाभास कराती है। किन्तु चूंकि इंसान विचारों से घिरा होने के कारण व कुछ अज्ञानतावश उस संवेदनशीलता के संकेत को स्पष्ट संकेत में नहीं बदल पाता और न ही उसे स्वीकार कर पाता है, यही कारण है कि वह उन्हें समझ नहीं पाता। किन्तु जो उस संकेत को समझते व स्वीकारते हैं, उन्हें बड़ी-बड़ी घटनाओं का पूर्वाभास हो जाता है। कुछ ऐसे ही आभास शार्दूल को भी होते हैं।"
"ओह...! किन्तु सर...!"
"किन्तु-परन्तु कुछ नहीं—तूफान से बचने की तैयारियां आरम्भ करने का हुक्म दो—।"
"स...सर...!"
"ये मेरा आदेश है—अरे...!" सहसा कैप्टन चौंका।
लूथरा ने चौंककर देखा।
उसके सीनियर की आंखें फैली हुई थीं।
आंखों के कोरों तक...!
"स...सनसनाहट...! तूफान की सनसनाहट...! मैं भी उसे सुन रहा हूं।"
"ल...लेकिन सर...!"
किन्तु!
कैप्टन जैसे बहरा हो चुका था।
उसने कानों में उंगली डाली।
उंगली हिलाई फिर निकाली।
उसकी आंखें सिकुड़कर गोल हो गयीं।
स्पष्ट था कि उसके कान कुछ सुन रहे थे।
यह सच था।
हवा के तीव्र दबाव से उत्पन्न सनसनाहट को वह स्पष्ट सुन रहा था।
सहसा।
वह घूमा।
डैशबोर्ड की ओर!
उसकी आंखें मौसम सूचक यन्त्र पर जा स्थिर हुईं।
अगले ही पल वह चीख-सा पड़ा।
"बेवकूफ लूथरा...! ये मौसम की सूचना देने वाला डिटेक्टर तूने ऑफ क्यों कर रखा है?"
"म...मैंने नहीं किया।"
"श...शटअप...!" कैप्टन चीखा—साथ ही वह डैशबोर्ड पर झपटा।
उसने कोई बटन दबाया।
बटन दबते ही कक्ष का माहौल डरावना हो उठा।
कारण यह कि बटन दबते ही यन्त्र से 'टेंटों...टेंटों' के स्वर के साथ-साथ कई लाल रंग की रोशनियां जलने-बुझने लगीं।
लूथरा का चेहरा सफेद पड़ता चला गया।
यूं जैसे नींबू को किसी प्रेशर मशीन में डालकर झटके से निचोड़ दिया गया हो।
"भाग...!" कैप्टन चिल्लाया—"बाहर सूचना दे—फटाफट सुरक्षा के इंतजाम किये जायें। जल्दी...!"
लूथरा झपटा।
यूं जैसे उसके पीछे सैकड़ों भूत लगे हुये हों।
कैप्टन शार्दूल की ओर घूमा।
अगले ही पल कैप्टन का चेहरा गम्भीर-सा हो गया।
कारण यह कि शार्दूल पथराई-सी दृष्टि से दीवार को घूर रहा था।
"शार्दूल...! शार्दूल...!"
उसने शार्दूल का को झकझोरा।
शार्दूल झटके से होश में आया।
उसकी पथराई दृष्टि कैप्टन के चेहरे पर पड़ी। कैप्टन भीतर तक सिहर उठा।
शार्दूल के चेहरे पर ऐसे भाव थे कि—ऐसा लगता था जैसे शार्दूल जीवित आदमी न होकर सदियों पूर्व मर चुका कोई मुर्दा हो।
कैप्टन सकते जैसी स्थिति में खड़ा अपलक उसे देख ही रहा था कि शार्दूल के होंठ हिले।
"नहीं बचेगा...! कोई नहीं बचेगा...सब के सब मारे जायेंगे।"
कैप्टन ने सुना
उसकी आंखें कोरों तक फैल गयीं।
शरीर सूखे पत्ते की तरह कांप उठा।
किन्तु!
वह कैप्टन था।
एक शिप का चालक...! और जो मौत को सामने देखकर यूं थरथरा जाये—वह कम-से-कम एक समुद्री शिप अथवा विमान का चालक नहीं हो सकता।
उसने तेजी से अपना हौसला समेटा।
"य...ये...ये तुम क्या कह रहे हो शार्दूल?" वह फटे-फटे से स्वर में बोला।
"सच कह रहा हूं सर...! कोई भी जिन्दा नहीं बचेगा। सब कुछ...सब कुछ इसी सागर में विलीन हो जायेगा। कुछ नहीं बचेगा।"
"शार्दूल...!" चीख-सा पड़ा कैप्टन—"तुम होश में तो हो? कहीं तुम सचमुच पागल तो नहीं हो गये?"
"नो सर...! आई एम वैल...! किन्तु—किन्तु...!"
"किन्तु क्या?"
"जो कुछ मैंने कहा—वह सच है। बिल्कुल सच है। ये तूफान बड़ा ही भयंकर है सर...! उस समय मैं छोटा-सा था, जब इतना भयंकर तूफान आया था। तब—तब—बहुत कुछ तबाह हो गया था सर...! समुद्र तट की आबादी, सारी आबादी डूब गयी थी और तो और समुद्री जीव भी जीवित नहीं बचे थे। सागर ने सब कुछ निगल लिया था। पूरी तरह कहर बरपा था...सब कुछ तबाह...!"
"शार्दूल...! शार्दूल...प्लीज होश में आओ...!"
"मैं होश में हूं सर...! कोई नहीं बचेगा। हम सब मारे जायेंगे। सब कुछ तबाह हो जायेगा...ओह...!"
"शार्दूल...! भागो यहां से हरीअप...।" उसने उसका हाथ पकड़कर खींचा।
शार्दूल होश में आया।
कैप्टन ने उसका हाथ थामा और उसे पकड़कर खींचता चला गया।
बाहर की ओर....!
¶¶
अशोक ठक्कर उसी शिप के एक छोटे-से सुसज्जित कक्ष में बैठा हुआ था।
उसके दायें-बायें चार हथियारबन्द बैठे हुये थे।
सबके चेहरे खूंखार!
आंखों में नशे की तमतमाहट!
बीच में एक टेबल और उस पर बोतल खुली रखी थी।
उनके मध्य एक खूबसूरत युवती भी मौजूद थी, जो कि दोनों हथियारबन्दों के बीच में बैठी हुई थी।
उसके शरीर पर संक्षिप्त कपड़े थे और वह साकी की भूमिका निभा रही थी।
अशोक ठक्कर के सामने एक नक्शा फैला हुआ था और वह उसी नक्शे को घूर रहा था।
अपलक!
युवती जिस बेशर्मी से बैठी हुई थी, उससे यही साबित होता था कि उसे वहां मात्र मनोरंजन के लिये लाया गया है।
वह स्वयं भी व्हिस्की सिप कर रही थी किन्तु वह बहुत ही कम पी रही थी।
"किसी नतीजे पर पहुंचे ठक्कर साहब...?" एक हथियारबन्द ने पूछा था।
"नो...किन्तु अनुमान के आधार पर मैं कह सकता हूं कि हम ठीक दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।"
"ओह...!"
उसने भरा हुआ पैमाना उसकी ओर बढ़ाया।
अशोक ठक्कर ने गिलास थाम लिया।
क्षण भर पैमाने की ओर देखने के बाद उसकी दृष्टि पुनः नक्शे पर आ टिकी।
नक्शे पर दृष्टि टिकाये-टिकाये ही उसने पैमाना होंठों से लगाना चाहा।
तभी!
पूरे शिप को एक झटका लगा।
जोरदार झटका...!
अशोक ठक्कर के हाथ से पैमाना छूटा और वे सभी बुरी तरह डगमगा गये।
सभी चौंके।
बुरी तरह...!
सम्भले...स्वयं को व्यवस्थित करने का प्रयास किया तो पाया कि फर्श बुरी तरह कांप रहा है।
यूं जैसे पूरे शिप को कोई झकझोर रहा हो।
चारों की दृष्टि आपस में मिली।
"ये...ये सब क्या है?"
अशोक ठक्कर तेज स्वर में बोला।
"देखता हूं...!" एक हथियारबन्द तेजी से बाहर की ओर लपका।
द्रुत वेग से...!
"शायद...!" दूसरा हथियारबन्द बोला—"शायद जल की रानी व्हेल ने करवट बदली है।"
"शटअप...!" अशोक ठक्कर गुर्राया था—"बाहर जाकर देखो—मामला क्या है?"
"रा—राइट सर...!"
वो हथियारबन्द भी दरवाजे की ओर लपका।
दोनों अभी दरवाजे तक पहुंचे ही थे कि शिप जोर से उछला।
अगले ही पल!
इतना तीव्र झटका कि वे अपना सन्तुलन बरकरार ना रख सके और धड़ाम से नीचे जा गिरे।
युवती के कण्ठ से घुटी-घुटी-सी चीख निकली।
दोनों हथियारबन्द भी पलकें झपकाने पर बाध्य हो गये।
किन्तु!
अशोक ठक्कर उछलकर खड़ा हो गया।
उसकी आंखें सिकुड़ी हुई थीं।
दोनों हथियारबन्द उठने का प्रयास कर ही रहे थे कि अशोक ठक्कर ने दरवाजे की ओर छलांग लगाई।
और फिर!
उसका शरीर उन दोनों हथियारबन्दों के सिरों पर से होता हुआ बाहर जा गिरा।
अगले ही पल।
वह दौड़ पड़ा था।
चालक कक्ष की ओर।
दोनों हथियारबन्द साथी भी उसका साथ देने का असफल प्रयास कर रहे थे।
किन्तु इस समय अशोक ठक्कर के शरीर में चीते जैसी फुर्ती समाई हुई थी।
¶¶
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Additional information
Book Title | खून का प्यासा : Khoon Ka Pyasa by Sunil Prabhakar |
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Isbn No | |
No of Pages | 270 |
Country Of Orign | India |
Year of Publication | |
Language | |
Genres | |
Author | |
Age | |
Publisher Name | Ravi Pocket Books |
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