हत्या होगी सरेआम : Hatya Hogi Sareaam by Sunil Prabhakar
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Description
थ्रिल, सस्पेंस, इन्वेस्टीगेशन, इन्टरटेनमेंट, सेन्टीमेंट्स के तारों पर झूलते सस्पेंस को कहानी के रूप में ढालने वाले सिद्धहस्त उपन्यासकार सुनील प्रभाकर की लेखनी से निकला एक जबरदस्त शाहकार—जिसमें एक ऐसी सामान्य गृहणी की कहानी है, जो समाज की ताकतवर हस्तियों द्वारा सतायी गयी और कुचली गयी—जिसका सारा घर-परिवार तबाह हो गया—लेकिन जब वही सीधी-सी घरेलू औरत रणचण्डी बनकर अपना इंतकाम लेने पर उतारू हुई तो दुश्मनों के छक्के छूट गये—खून के आंसू रोने को मजबूर हो गये—और अंतत: वो अपने निश्चित अंजाम को पहुंचे।
सुनील प्रभाकर को लेखनी से निकले शब्द जब मकड़ी के जाले का निर्माण करते हैं तो पाठक थ्रिल, इन्वेस्टीगेशन, एन्टरटेनमेन्ट, सेन्टीमेन्ट्स के तारों पर झूलते हुए सस्पेंस के घेरे में घिरते चले जाते है! और कथानक के अन्त के शब्द ही उस घेरे को तहस–नहस करते हैं।
हत्या होगी सरेआम : Hatya Hogi Sareaam
Sunil Prabhakar सुनील प्रभाक
Ravi Pocket Books
BookMadaari
प्रस्तुत उपन्यास के सभी पात्र एवं घटनायें काल्पनिक हैं। किसी जीवित अथवा मृत व्यक्ति से इनका कतई कोई सम्बन्ध नहीं है। समानता संयोग से हो सकती है। उपन्यास का उद्देश्य मात्र मनोरंजन है। प्रस्तुत उपन्यास में दिए गए हिंसक दृश्यों, धूम्रपान, मधपान अथवा किसी अन्य मादक पदार्थों के सेवन का प्रकाशक या लेखक कत्तई समर्थन नहीं करते। इस प्रकार के दृश्य पाठकों को इन कृत्यों को प्रेरित करने के लिए नहीं बल्कि कथानक को वास्तविक रूप में दर्शाने के लिए दिए गए हैं। पाठकों से अनुरोध है की इन कृत्यों वे दुर्व्यसनों को दूर ही रखें। यह उपन्यास मात्र 18 + की आयु के लिए ही प्रकाशित किया गया है। उपन्यासब आगे पड़ने से पाठक अपनी सहमति दर्ज कर रहा है की वह 18 + है।
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हत्या होगी सरेआम
सुनील प्रभाकर
“अबे...अबे...!” सुरेश को परे धकेलकर वह अपने होंठों को हथेली की पुश्त से पौंछते हुए बोला—“क्या कर रहा था तू साले? पहले तो मुझे ‘रमा भाभी’ कहकर गोद में लेट गया तू और फिर मेरी पप्पी लेने लगा। तूने सारा जायका ही खराब कर दिया। एक पैग और पीना पड़ेगा।”
सुरेश जैसे कोई सपना देखते हुए अचानक ही जाग पड़ा था—उसने सकपकाकर देखा कि वो रमा के साथ बाथरूम में न होकर होटल के कमरे में था—झोंपते हुए यूं बोला!
“मैं तो जागते हुए ही सपना देख रहा था राजू! जैसे मैं नंगा रमा के साथ बाथरूम में था और...।”
“लगता है कि तू दीवाना हो गया है।” राजू ने जेब से नसवार की डिबिया निकालकर ‘चुटकी’ में नसवार भरी और जोर से सांस लेकर सूंघने लगा।
“सच कहा तूने राजू।” सुरेश दीवाने की भांति ही बोला—“रमा के यौवन ने मुझे दीवाना कर दिया है। बड़ी ही जालिम चीज है वो। उसके ढाई फुट लम्बे रेशमी बाल देखे तूने ? उसकी सीप-सी आंखें देखीं ? सुतवां नाक...सेब जैसे गाल देखे ? उसके सुर्ख होंठों का तो कोई जवाब ही नहीं। सुराहीदार गर्दन...गोल और ठोस छातियां...पतली कमर...तरबूज जैसे गोल और भारी नितम्ब...वो जब चलती है तो नागिन की चाल भी फेल हो जाती है। खिलखिलाकर हंसती है तो लगता है कि मन्दिर की घन्टियां बज उठी हैं। शादी के वक्त जब दुल्हन के रूप में उसने अपने दोस्त अतुल के गले में माला डाली थी तो...मुझ पर बिजली गिरी थी। मैं कल्पना भी नहीं कर सकता था कि कोई औरत इतनी ब्यूटीफुल भी हो सकती है। उस रोज मुझे अतुल के भाग्य पर ईर्ष्या हुई थी। दिल ने तड़फ कर कहा था कि रमा जैसी अप्सरा तो मेरी पत्नी होनी चाहिए थी। यदि रमा—मेरी पत्नी होती...विश्वास करना राजू, मैं सारी दुनिया की खुशियां उसके कदमों में न्यौछावर कर देता। उस अप्सरा को सिर से लेकर पैरों तक हीरे–मोतियों से लाद देता।”
दो–तीन छींकें मारने पर बोला राजू—“तेरी जोरू में कौन–सी कमी है यार? वो भी तो पूरी हेमा मालिनी है।”
सुरेश ने ऐसा बुरा मुंह बनाया—जैसे गलती से टाफी की जगह साबुन का टुकड़ा चबा गया था।
“किस कम्बख्त की याद दिला दी तूने राजू। वो तो रमा के पैरों की धूल भी नहीं है। बाहर से ही थोड़ा जमी हुर्इं लगती है। भीतर से तो फुसफुसी है साली। मैं रमा को पाकर ही रहूंगा राजू।”
नसवार सूंघते–सूंघते रुका राजू चौंककर सुरेश को घूरते हुए बोला——“क्या पागलों जैसी बातें करता है तू सुरेश! भला—तू रमा भाभी को कैसे पा सकता है? अपना यार अतुल खूबसूरत है...तन्दुरुस्त जवान है। वो हर रात रमा भाभी को भरपूर सुख देता होगा। कोई भी सुहागिन औरत किसी पराए मर्द को अपना पति ठीक होने की सूरत में लिफ्ट नहीं देती। यदि उसके पति में कोई कमी हो...तब तो ऐसा सोचा भी जा सकता है।”
“तीन महीने पहले अतुल का एक्सीडेण्ट हुआ था। मुझे तो लगता है कि एक्सीडेण्ट के पश्चात् वो अपनी पौरुष शक्ति खो चुका है।”
“ये तू कैसे कह सकता है?” राजू ने घूरा सुरेश को।
शराब से भरे गिलास को खाली करने पर सुरेश ने कहा—“मैं काफी दिनों से रमा के चक्कर में था। उसे रिझाने की भरपूर चेष्टा भी कर रहा था। परन्तु वो मुझे आंखें उठाकर भी नहीं देखती थी। अतुल के एक्सीडेण्ट के पश्चात् उसमें परिवर्तन हुआ है। वो खुलकर मेरे साथ हंसी-मजाक करने लगी है। मेरी आंखों में आंखें डालकर बड़ी ही अदा से बातें करती है अब। एक रोज तो उसने जान–बूझकर साड़ी का पल्लू नीचे गिरा दिया था, ताकि मैं उसके अंगों को देख सकूं। परसों की ही बात है। वो स्टूल पर चढ़ी दीवार में कील ठोक रही थी। मैंने पीछे से जाकर ‘ओ’ करके डराया तो वह चीख मारकर मेरी गोद में आ गिरी—और काफी देर तक वो मेरे सीने से लगी रही। कल मेरी तबीयत ठीक नहीं थी। उसने मेरे माथे पर बाम मला। सिर में मालिश की। मालिश करते हुए वो जान–बूझकर अपनी छाती मेरी पीठ से टकराती रही। उसने बीच में दो बार अपना मुंह मेरे मुंह के गरीब लाकर पूछा कि मैं अब कैसा ‘फील’ कर रहा हूं। इसका क्या मतलब है? साफ बात है कि अतुल एक्सीडेण्ट के पश्चात् उसकी सन्तुष्टि नहीं कर पाता है—और वो मुझमें इन्ट्रेस्ट ले रही है।”
“हो सकता है कि ये तेरा भ्रम ही हो सुरेश। मुझे रमा भाभी ऐसी नहीं लगती।”
“साले तू क्या जाने औरत को। औरत अपने पति से तब तक ही प्यार करती है, जब तक वो उसे बिस्तर पर सुख देता रहे। यदि पति यौन सुख देने में अक्षम हो जाए तो औरत किसी दूसरे मर्द को खोजने लगती है।”
“यदि ऐसा है तो...मुझे तेरे भाग्य पर ईर्ष्या हो जायगी क्योंकि मैं भी उस अप्सरा का भक्त हूं।”
“तू तो उस समाजसेवी रवि की बहन भारती से लगा हुआ है। तेरी घरवाली भी तो जोरदार है।”
“मेरी घरवाली का तो तेरी वाली जैसा हाल है। मां बनने पर वो बेकार ही हो गई है। आरती जानदार लड़की है, परन्तु रमा भाभी के सामने तो फीकी ही है! खैर छोड़़...ये बता कि तू ये कैसे जानेगा कि रमा भाभी तेरे पर लट्टू है?”
“कल अतुल अपनी फैक्टरी के काम से बाहर जा रहा है। रमा घर में अकेली होगी। कल मैं उसके पास जाऊंगा। उससे खुलकर बात करूंगा।”
“कोई विवाहिता इतनी आसानी से प्रेम प्रकट नहीं करती प्यारे। वो सोचेगी कि हो सकता है कि तू उससे मजाक कर रहा हो। ऐसे में वो तेरी बात को हंसकर टाल देगी।”
“तो मैं जाते ही उसे अपनी बांहों में भरकर उसके होंठों की चुम्मी ले लूंगा। तब वो ऐसा नहीं समझेगी कि मैं उसके साथ मजाक कर रहा हूं। मेरे ऐसा करने से वो मेरे साथ खुल जाएगी। कल रमा मेरी हो जाएगी राजू। कल मैं उस कोहिनूर हीरे को अपना बना लूंगा।”
¶¶
रमा की सीप–सी आंखों में खून के कतरे तैर रहे थे—नथुने तीव्रता से फूल–चिपक रहे थे—फड़फड़ाते होंठों पर बर्फ के से झाग एकत्रित थे।—
जबकि उसके सामने खड़े सुरेश का चेहरा मारे ग्लानि और अपमान के सुर्ख था—उसकी आंखें झुकी हुई थीं—रमा के हाथ का झन्नाटेदार थप्पड़ खाकर भी वो चुपचाप सिर झुकाए खड़ा था।
क्रोधातिरेक से थर–थर कांपते हुए रमा गुर्राई—“तुझे मैं अपने पति का दोस्त ही नहीं, बल्कि भाई मानती थी! तेरे साथ हंस–बोल क्या ली...तूने समझा कि मैं तेरे पर मरती हूं? छी: कितने गन्दे विचार हैं तेरे! कितना नीच इन्सान है तू! अपने दोस्त की धर्मपत्नी पर कुदृष्टि डाली तूने! तुझमें एक पराई औरत को बांहों में भरकर उसके होंठ चूमने का साहस कैसे हुआ? क्या तूने मुझे वेश्या समझा था?”
बेचारा सुरेश!
उसकी सिट्टी–पिट्टी गुम थी।
“चला जा मेरे सामने से!” रमा विक्षिप्त भाव से गला फाड़ कर चीखी—“वरना तेरा मुंह नोंच लूंगी मैं! तेरे जैसे पापी को एक मिनट के लिए भी अपने घर में सहन नहीं कर सकती मैं! दूसरा कोई होता तो...न जाने क्या कर जाती उसके साथ! फिर कभी मेरे सामने आने का साहस मत करना!”
सुरेश के मस्तिष्क ने कुछ सोचा—निर्णायक स्थिति पर पहुंचकर उसने गिरगिट की भांति रंग बदला—न जाने कैसे उसकी आंखों में आंसू तैर उठे—वह रमा के कदमों में लिपट गया और फूट–फूटकर रोते हुए बोला—“मुझे क्षमा कर दीजिए भाभी। मुझसे बड़ा ही घृणित अपराध हुआ है। मैं नीच हूं...कुत्ता, कमीना, हरामजादा हूं। आप जैसी देवी के साथ नशे में मुझे ऐसी घिनौनी शरारत नहीं करनी चाहिए थी, आज फर्स्ट अप्रैल है न! आपको ‘फूल’ बनाना चाहता था। रोमांटिक डायलॉग बोलकर हैरान करना चाहता था—परन्तु नशे के कारण थोड़ा ओवर हो गया था। सच भाभी...मेरे मन में कोई पाप नहीं था। मैं आपको बहन समझता था परन्तु...परन्तु न जाने मुझे एकाएक ही क्या हो गया था। मारो मुझे भाभी...गला घोट दो मेरा परन्तु मुझसे यूं घृणा मत करो। मैं आपकी आंखों में अपने लिए घृणा और तिरस्कार नहीं देख सकता। यदि आपने मुझे क्षमा नहीं किया तो...मैं जहर खाकर आत्महत्या कर लूंगा!”
“मैं तेरे झांसों में आने वाली नहीं सुरेश! तुम जैसे धूर्त और कपटी इन्सान की मनोवृत्ति खूब समझती हूं। मैं समझ चुकी हूं कि तू नीच इन्सान है। वासना का मारा कुत्ता है। अरे...तू क्या जाने कि दोस्त की पत्नी का कैसा दर्जा होता है? आज तू मुझे कलंकित करने ही नहीं आया था...दोस्ती की पीठ पर छुरा भी मारने आया था। मैं तेरे पाप के रंग में नहीं रंगी तो तू गिरगिट की भांति रंग बदल गया। चला जा यहां से...गेट आउट फ्राम हियर!”
सुरेश की आंखों में खून उतर आया—क्रोधातिरेक से मुट्ठियां भिंचती चली गर्इं—परन्तु अपने क्रोध को वश में किया उसने और चुपचाप वहां से चला गया।
¶¶
नसवार सूंघते हुए राजू की आंखें सुरेश के तमतमाते चेहरे पर टिकी थीं—सुरेश जाने क्या–क्या बड़बड़ाए जा रहा था–हले तो राजू झिझका, फिर बोला—“मैं तो पहले ही कह रहा था यार कि रमा भाभी फंसने वाली चिड़िया नहीं है। तुम ही कहते रहे कि एक्सीडेण्ट के पश्चात अतुल की सैक्स पावर खत्म हो गयी है...और रमा तुममें इन्ट्रेस्ट ले रही है।”
सुरेश के जबड़े फूलने–पिचकने लगे।
“ये अच्छा हुआ कि रमा भाभी ने तुम्हें एक थप्पड़ मार–कर ही छोड़ दिया। कोई चन्ट औरत होती तो शोर मचाकर अड़ोस–पड़ोस वालों को इकट्ठा कर लेती। तुम्हारा फजीता कर डालती। मेरी समझ में ये बात नहीं आ रही है कि तुमने उसके पैर पकड़कर क्षमा क्यों मांगी?”
“मेरी कमजोरी थी यार। मैं उस घमन्डी अप्सरा को आंखों में अपने लिए प्यार देखना चाहता था। मैं उसकी आंखों में घृणा या तिरस्कार की भावना नहीं देख सकता। सोच रहा था कि मेरे ड्रामे से वो पिघल जाएगी। उसके रूप–यौवन के दर्शन तो होते रहते। आगे चलकर मेरे पक्ष में कोई चमत्कार हो भी सकता था—परन्तु...बड़ी ही घाघ औरत निकली रमा तो। मेरे ड्रामे को समझ गई वो! उसने अपमानित करके मुझे अपने घर से भगा दिया।”
“और तुम चुपचाप चले आए!” राजू के स्वर में व्यंग्य घुल था—“तुम तो अपना अपमान करने वालों को सजा दिए बिना चैन की सांस नहीं लेते।”
“वो रमा है राजू...रमा! उस पत्थर दिल औरत का दीवाना हूं मैं। उसको प्यार करना चाहता हूं मैं। गुलाब के फूल की भांति दिल के गुलदस्ते में सजाना चाहता हूं। मां कसम यार...दूसरी कोई होती वो ससुरी का गला टीप देता। एक थप्पड़ के बदले चाकू से उसके दोनों गाल खुरच देता। अतुल का खयाल करके भी मैं अपमान का जहर पी गया। वो मेरा बचपन का दोस्त है। वो मेरे सुख–दुख का भागीदार रहा है।”
“क्या रमा भाभी ने उसे बताया नहीं होगा कि...?”
“नहीं बताया। थोड़ी देर पहले ही मैं उसके घर था। अतुल ही खींचकर ले गया था। अतुल के सामने रमा का व्यवहार पूर्व दिनों जैसा ही रहा मेरे साथ। वो हंसी-मजाक करती रही।”
“अब तो तेरे दिल में रमा को पाने की इच्छा नहीं रही होगी?”
“कैसी बात करता है राजू तू! खूबसूरती का पुजारी हूं मैं। खूबसूरत औरत मेरी कमजोरी है। और रमा को मैं सबसे खूबसूरत समझता हूं। उसे भोगने की इच्छा ही मेरे जीवन का सबसे बड़ा लक्ष्य है। मैं उसे भोगूंगा भी राजू।” सुरेश के चेहरे पर पत्थर जैसी कठोरता व्याप्त थी।
“परन्तु कैसे? उसने तो लाल झंडी दिखला दी।”
“घी सीधी उंगली से नहीं निकलने वाला—परन्तु सुरेश को उंगली टेढ़ी करके घी निकालना आता है। पहले मैं रमा को अपनी प्रेमिका बनाना चाहता था। चाहता था कि वो अपनी इच्छा से अपना सबसे अनमोल नगीना मुझे सौंप दे—परन्तु अब मुझे जबरन वो नगीना प्राप्त करना है।”
राजू की आंखें सिकुड़ने लगीं—“क्या कहना चाहता है?”
घायल सांप की भांति फुंफकारा सुरेश—“मुझे गुलाब के फूल की सुगन्ध चाहिए राजू। गुलाब का फूल यदि नखरे कर रहा है तो मैं उसकी सारी पंखुड़ी तोड़–मरोड़ डालूंगा। मतलब तो रमा के शरीर को पाने से ही है न! वो राजी नहीं है तो मैं उसके साथ बलात्कार करूंगा। उसके घमंड को चकनाचूर करके ही मुझे चैन आएगा।”
“इसका परिणाम भी सोचा है तूने? अतुल की और तेरी दोस्ती टूट जाएगी। बात अदालत तक भी पहुंच सकती है।”
“मैं ऐसा बेवकूफ भी नहीं हूं राजू...।” सुरेश रहस्यमयी और अर्थपूर्ण मुस्कान के साथ बोला—“हालांकि मैं अतुल की और कानून की परवाह नहीं करता—परन्तु मैं ऐसा भी नहीं चाहता कि रमा के साथ एक बार ही बलात्कार करके उसे भूल जाऊं। उसके रूप–यौवन का स्वाद चखकर तो शायद मेरी प्यास और भी भड़क जाएगी। वो जालिम चीज ही ऐसी है। मैं कुछ ऐसा करूंगा कि बलात्कार के पश्चात रमा विवश होकर बार–बार मेरे साथ हमबिस्तर होती रहेगी।”
“भला ऐसा चमत्कार कैसे होगा सुरेश कि अपनी इज्जत गंवाकर रमा भाभी तेरी उंगलियों के इशारों पर नाचेगी?”
“मेरे पास रमा की एक कमजोर नस है प्यारे। मुझे उसके बारे में ऐसी बात पता है कि अतुल भी नहीं जानता।”
“मुझे नहीं बताएगा उस बारे में?”
“फिर कभी बता दूंगा।”
नसवार सूंघकर राजू ने दो–तीन छींकें मारीं और फिर सुरेश के हाथों को दबाते हुए गिड़गिड़या–सा—“मेरा काम भी बनवा दे यार—उस अप्सरा पर मेरी भी नीयत है। उसे भोगने के लिए मैं भी तड़फ रहा हूं। तेरी झूठन खाने को तैयार हूं। पहले तू उसके साथ प्यार कर लेना और फिर मुझे भी अवसर दे देना।”
“यदि ऐसी बात है तो तू भी अपनी प्रेमिका आरती का स्वाद चखवा दे। वो भी जानदार पीस है। यदि तूने आरती के साथ मेरा टांका भिड़वा दिया तो...मैं तुझे रमा के साथ मौज–मेला अवश्य करवा दूंगा।”
राजू विचलित हो गया।
“साले! सांप क्यों सूंघ गया तुझे?”
“ऐसी कोई बात नहीं है सुरेश।”
“तू ये सोच रहा है न कि आरती झूठी हो जाएगी?”
“बिल्कुल भी नहीं। औरत कभी झूठी नहीं होती—परन्तु मेरे सामने दूसरी समस्या है।”
“कौन–सी समस्या?”
“आरती समझती है कि मैं उससे सच्चा प्यार करता हूं। उसे भोगने के लिए मुझे बहुत से पापड़ बेलने पड़े। वो अपने शरीर पर हाथ ही नहीं रखने देती थी। तब मैंने उसे ये घुट्टी पिलाई कि मैं अपनी पत्नी को तलाक देने वाला हूं और उससे ही शादी करूंगा। अब तक उसे किसी तरह बहलाता आ रहा हूं। अब तू ही बोल कि मैं तेरा काम कैसे करवाऊं? यदि मैंने उससे ऐसी बात की तो वो मेरी सच्चाई से अवगत हो जाएगी। किसी भी तरीके से वो तेरे साथ हमबिस्तर होने के लिए राजी नहीं होगी।”
“एक काम हो सकता है।”
“वो क्या?” राजू ने उत्सुक भाव से सुरेश को देखा।
विल्स की सिगरेट सुलगा लेने पर बोला सुरेश—“तू उसे अपने किराये वाले कमरे पर बुला और उसके साथ शराब...।”
“ऐसा नहीं हो सकता यार। उसे तो ये पता है कि मैं शराब तो क्या सिगरेट भी नहीं पीता। शराब पीने वालों से घृणा करती है वो। हां, एक काम तो हो सकता है।”
“वो क्या?”
“मैं उसे चाय में नशे की गोली दे दूंगा और फिर उसके साथ हमबिस्तर हो जाऊंगा। वो बेहोश हो जाएगी तो तेरा भी काम हो जाएगा। होशा आने पर वो समझेगी कि मारे थकान के उसे नींद आ गई थी।”
“क्या वो कभी पहले सैक्स के बाद सोई है?”
“सोई तो नहीं...।”
“फिर तो इस आइडियों को फेल ही समझो। होश आने पर वो समझ जागी कि उसके साथ कुछ गड़बड़ हुई है।”
“समझने दो फिर। वो साली रूठकर चली जाएगी तो मैं दूसरी कोई फांस लूंगा। मुझे रमा भाभी का सामीप्य तो मिलेगा।”
“रमा को पाले के लिए आरती जैसी कुंवारी और खूबसूरत प्रेमिका को खोना कोई अक्लमन्दी नहीं है। ये भी मत भूल कि उसका भाई रवि समाजसेवी है। काफी पहुंच है उसकी। मेरे मस्तिष्क में ऐसा धांसू आइडिया आ रहा है कि सांप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी। हां, तुझे थोड़ी एक्टिंग करनी पड़ेगी। एक्टिंगबाज तो तू है ही साले।”
“अपना धांसू आइडिया बोल तू प्यारे!”
और सुरेश राजू को अपने आइडिए से अवगत कराने लगा।
¶¶
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Additional information
Book Title | हत्या होगी सरेआम : Hatya Hogi Sareaam by Sunil Prabhakar |
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Isbn No | |
No of Pages | 240 |
Country Of Orign | India |
Year of Publication | |
Language | |
Genres | |
Author | |
Age | |
Publisher Name | Ravi Pocket Books |
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