घायल लोमड़ी
“त....तुम....?”
इयरपीस पर उभरने वाला स्वर सुनकर रामजीलाल के होठों से न सिर्फ फंसा-फंसा स्वर निकला, बल्कि उसके हाथ से फोन का रिसीवर भी छूटते-छूटते बचा था। चेहरे पर खौफ कैब्रे कर उठा। आंखें कगारों तक फटती चली गई थीं।
“तुझे तो इस बात की सपने में भी उम्मीद नहीं रही होगी हरामी की औलाद....कि अब तक मैं तुझे फोन करने काबिल भी रहा हूंगा....तूने तो सोचा होगा कि शायद अब मेरी अर्थी भी उठ चुकी होगी....मर चुका हूंगा मैं....।” दूसरी तरफ से किसी भेड़िये जैसी गुर्राहट के साथ कहा गया।
रामजीलाल के होठों से तुरन्त कोई बोल नहीं फूटा। वह तो बस इस तरह कांपे जा रहा था मानो उसने फोन पर किसी भूत की आवाज सुन ली हो।
“क्या हुआ....सांप सूंघ गया तेरे को....या मां मर गई तेरी....बोल....जवाब दे....।” दूसरी तरफ से उपस्थित शख्स फुंफकारा।
रामजीलाल ने ढेर-सा थूक गटककर गला तर किया....होठों पर जुबान फेरी। फिर बोला— “भ....भला मैं तुम्हारी मौत की बात क्यों सोचूंगा....?”
“तू ऐसा इसलिए सोचेगा क्योंकि एक करोड़ जो देने हैं तुझे.... पिछले एक महीने से तू मुझे टरकाता आ रहा है हरामी....तू तो शायद दिन-रात ऊपर वाले से यही प्रार्थना कर रहा होगा कि वो मुझे इस दुनिया से उठा ले....ताकि तेरा एक करोड़ बच जाये।”
“मेरे दिमाग में तुम्हारे लिए ऐसी कोई बात नहीं है....।”
“चुप हरामजादे....तेरे दिमाग में ऐसी ही बात है....मुझे बेवकूफ बना रहा है....मैं तुझे अच्छी तरह जानता हूं....तेरी रग-रग से वाकिफ हूं मैं....तू क्या समझता है कि मुझे तेरी हरकतों के बारे में कुछ भी मालूम नहीं....?”
“ह....हरकतें....!” चौंका रामजीलाल—“कैसी हरकतें....?”
“ज्यादा होशियार बनने की कोशिश मत कर रामजीलाल! सुना है कि तूने सीमा सेठी को मुझसे छुटकारा पाने के लिए बीस लाख रुपये दिये हैं....।”
रामजीलाल के गले की घण्टी जोरों से उछली।
“स....सीमा सेठी! कौन सीमा सेठी? म....मैं किसी सीमा सेठी को नहीं जानता.... और जब मैं उसे जानता ही नहीं तो उसे बीस लाख रुपये देने का सवाल ही पैदा नहीं होता।”
“झूठ मत बोल कमीने!” लाइन पर कहर भरा स्वर उभरा—“याद रख, मैं वो चीज हूं कि अगर इस शहर में मेरे खिलाफ पत्ता भी खड़कता है तो उसकी आवाज मेरे कानों तक जरूर पहुंचती है....फिर ये कैसे हो सकता है कि जो शख्स मेरे लिए सोने का अण्डा देने वाली मुर्गी जैसी हैसियत रखता हो, उसकी अपने खिलाफ इतनी बड़ी हरकत की मुझे खबर नहीं लगेगी? वैसे एक बात कान खोलकर सुन ले....सीमा सेठी क्या मेरी जांघ का बाल उखाड़ेगी....उल्टा अगर उस कुतिया ने मेरे ऊपर भौंकने की जुर्रत की तो इस शहर की सड़कों पर उसके जिस्म के टुकड़े बिखरे पड़े होंगे....।”
‘हे भगवान! इस हरामजादे को इस बात का कैसे पता चल गया कि मैंने सीमा सेठी को उसे अपने रास्ते से हटाने के लिए बीस लाख की सुपारी दी है....।’ रामजीलाल के जेहन में कौंधा।
“ज्यादा ऊंचा उड़ने की कोशिश मत कर रामजीलाल!” स्वर कह रहा था—“वरना तेरा नामोनिशान इस धरती से मिट जायेगा....बदनामी की मौत मरेगा साले....फांसी का फंदा तेरी गर्दन में पड़ा होगा और सारी दुनिया तेरे ऊपर थूक रही होगी....।”
रामजीलाल का दिमाग सांय-सांय कर उठा....उसका चेहरा इस कदर पीला नजर आने लगा था मानो उसमें से खून की आखरी बून्द भी निचोड़ ली गई हो।
“अगर तू अपनी और अपने परिवार वालों की खैरियत चाहता है तो फौरन मुझे एक करोड़ रुपये भिजवा दे....वरना मैं तेरी वो सारी तस्वीरें पुलिस को भेज दूंगा....जिसमें तू उस साली रण्डी माला का कत्ल करता दिखाई दे रहा है।”
“न-नहीं....ऐसा मत करना।” रामजीलाल गिड़गिड़ा उठा— “भगवान के लिए वो तस्वीरें पुलिस के हवाले मत करना.....वरना मुझे वाकई फांसी पर लटका दिया जायेगा....मेरे बच्चे तबाह हो जायेंगे.....।”
“अगर तुझे अपना और अपने बच्चों का इतना ही ख्याल है तो तूने नशे में टुन्न होकर माला का कत्ल क्यों किया था? बड़ा हरामी है तू रामजीलाल....इस बुढ़ापे में भी हर रात तू माला की सवारी गांठता था....उस पर चढ़ता था....और जब उससे तेरा मन भर गया तो तूने उसे ऊपर का टिकट थमा दिया....है ना तू हरामी....।”
इसमें कोई सन्देह नहीं था कि उम्र की ढलान पर पहुंचा रामजीलाल एक ऐय्याश किस्म का इन्सान था। शबाब और शराब उसकी बहुत बड़ी कमजोरी थी।
माला नाम की एक कालगर्ल से उसके शारीरिक सम्बन्ध थे। वह चाहता था कि माला उसी की बनकर रहे। इसके लिए वो माला पर तबियत से रुपया लुटाता था, लेकिन माला भी कम छिनाल नहीं थी, वह दूसरे ग्राहकों को भी अपनी मुट्ठी में रखना चाहती थी। रामजीलाल ने उसे इधर-उधर जाने से मना किया, मगर वह नहीं मानी। एक दिन नशे में रामजीलाल और माला के बीच जोर का झगड़ा हुआ और गुस्से में होश खोकर रामजीलाल ने तेज धारवाला चाकू माला के दिल में उतार दिया था।
लेकिन न जाने कैसे एक अज्ञात ब्लैकमेलर ने उस घटना की तस्वीरें खींच ली थीं। तीसरे रोज ही रामजीलाल को एक पैकेट मिला, जिसमें उन तस्वीरों का एक सेट मौजूद था....और बस उसी रोज से रामजीलाल उस ब्लैकमेलर के चंगुल में फंस गया था।
शुरू-शुरू में ब्लैकमेलर की मांगें छोटी-छोटी होती थीं। दो-चार लाख में मान जाता था वह, लेकिन अब तो उसने हद ही कर दी थी। एक साथ पूरे एक करोड़ की डिमांड कर डाली थी उसने।
इस समय फोन पर वह ब्लैकमेलर गुर्राता हुआ कह रहा था—“मैंने इस समय भी तेरी तस्वीरें अपनी मेज पर निकालकर रखी हुई हैं रामजीलाल! इन तस्वीरों में, तू कितना अच्छा लग रहा है....एक में माला तेरे साथ है....और दूसरी में तू माला की हत्या कर रहा है....मैंने इन तस्वीरों का एक सेट तुझे भी भेजा था....एक बार फिर उन्हें देख लेना....कितनी शानदार हैं वो....एक जबरदस्त शाहकार....।”
रामजीलाल के चेहरे से ऐसा लग रहा था, जैसे किसी भी पल वह दहाड़ें मार-मार कर रो पड़ेगा।
वह उस घड़ी को कोस रहा था, जब पहली बार वह माला पर चढ़ा था।
“मेरी बात सुन रहा है रामजीलाल....!”
रामजीलाल चौंका—“स....सुन रहा हूं.....।”
“फिर बोल क्या फैसला किया तूने....तू एक करोड़ देने को तैयार है.....या तेरी ये तस्वीरें अभी पुलिस को भेज दूं....वाकई पुलिस उन्हें देखकर बहुत खुशी होगी, क्योंकि उन्हें आज भी उस रण्डी के हत्यारे की तलाश है।”
“त....तस्वीरें पुलिस को मत भेजना मेरे बाप!” रामजीलाल कराहा।
“यानि तू मुझे एक करोड़ देने के लिए तैयार है.....।”
“ए....एक करोड़ तो बहुत ज्यादा है........।”
“तेरी जिन्दगी के बदले तो एक करोड़ कुछ भी नहीं हैं रामजीलाल! अगर तू जिन्दा रहा तो न जाने कितने करोड़ कमा लेगा....एक करोड़ की रकम तो तेरे लिए नाखून का मैल है....मैं तुझे अच्छी तरह से जानता हूं....तू कोई छोटी-मोटी हस्ती नहीं है....करोड़ों-अरबों का मालिक है तू....और अगर समुन्द्र से एक लोटा पानी निकाल लिया जाये तो वह खाली नहीं हो जाता.....।”
“ठ....ठीक है। म....मैं तुम्हें एक करोड़ ही दे दूंगा....।”
“बढ़िया....अब देर मत कर....जल्दी से रुपये लेकर मेरे बताये हुए पते पर चला आ....मैं तेरा इन्तजार करूंगा....तेरी फोटो नेगेटिव सहित मैंने निकालकर रखी हुई हैं....उन्हें वापस ले जा और आज रात को तू आराम की नींद सोना....क्योंकि तेरे सिर से कच्चे धागे से बंधी तलवार हमेशा के लिए जो हट जायेगी....।”
“प....परन्तु....मेरी बात तो सुनो.....।”
“अब सुनने के लिए और क्या बाकी रह गया है?”
“मुझे कुछ वक्त चाहिए....।”
“किस बात के लिए?” स्वर पुनः कठोर हो उठा।
“चाहे कोई शख्स कितना भी अमीर क्यों न हो, लेकिन वो एक करोड़ जैसी रकम कैश अपने घर में नहीं रखे रहता....मुझे भी इस रकम का बन्दोबस्त करना पड़ेगा....इसलिए वक्त चाहिए.....।”
“पागल है तू....तेरा दिमाग खराब हो गया है....पिछले एक महीने से मैं तुझे वक्त ही तो देता चला आ रहा हूं.....जिसका फल तूने ये दिया कि तू उस कुतिया सीमा सेठी की गोद में जा बैठा....मेरी मौत के मंसूबे बनाने लगा। वो साली हर्राफा मुझे क्या मारेगी? छिनाल आयी थी मुझे घेरने....पर मैं भी सौ हरामियों का एक हरामी हूं....मेरे सामने एक पल भी न टिक सकी और दुम दबा कर भाग गई। नहीं रामजीलाल....अब मुझे कोई पुड़िया देने की कोशिश मत कर....अब मैं तेरे किसी धोखे में आने वाला नहीं हूं....मुझे एक घंटे के भीतर रुपया चाहिए....।”
“देखो।” तेजी से कुछ सोचता हुआ रामजीलाल बोला—“जहां तुमने इतना सब्र किया है, थोड़ा-सा सब्र और कर लो....मैं इधर-उधर हाथ-पैर मारकर रुपयों का बन्दोबस्त करने की कोशिश करता हूं।”
“मुझे उल्लू मत बना....मैं जानता हूं इतना तो तेरे जैसे शख्स के बिस्तर के नीचे बिछा हुआ मिल जायेगा....और तू इधर-उधर हाथ-पैर मारकर रुपयों का बन्दोबस्त करने की बात कर रहा है?”
“मेरा यकीन करो, अगर रकम मेरे पास होती तो यकीनन मैं वो फौरन तुम्हारे हवाले करके हमेशा के लिए तुमसे अपनी जान छुड़ा लेता....पांच-सात लाख कहो तो अभी पहुंचा दूं....लेकिन एक करोड़ के लिए तो तुम्हें वक्त देना ही पड़ेगा।”
“ठीक है....बोल....कितना वक्त चाहिए तुझे?”
“कम-से-कम एक सप्ताह।”
“दिमाग तो खराब नहीं हो गया तेरा! पहले एक महीना और अब एक हफ्ता और....मैं तुझे ज्यादा-से-ज्यादा तीन दिन का वक्त दे सकता हूं....। अगर बहत्तर घंटे के अन्दर तू रुपया लेकर मेरे पास नहीं पहुंचा तो मैं तुझे फोन नहीं करूंगा....बल्कि तेरे कफन का इन्तजाम कर दूंगा....।”
कहने के साथ दूसरी तरफ से फोन रख दिया गया।
रामजीलाल ने रिसीवर वापस रखा और दोनों हाथों से अपना सिर थाम लिया। इस समय उसे देखकर ऐसा लग रहा था जैसे अभी ताजा-ताजा उसका बाप मर गया हो।
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