Ek Hi Anjam : Like A Hole In The Head : एक ही अंजाम
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Description
शूटिंग स्कूल चलाते वेन्सन का एक खास शागिर्द जब खुद उसी की बीवी लूसी से नज़दीकियाँ बढ़ाने लगा तो वेन्सन उसे कड़ा सबक सिखाने को उतारू हो उठा लेकिन दिक्कत ये थी वो शागिर्द उस शहर के बेताज बादशाह की इकलौती औलाद थी ।
एक ही अंजाम
जेम्स हेडली चेईज़
अनुवादक:- कँवल शर्मा
रवि पॉकेट बुक्स
Translated from'Like A Hole In The Head' By Kanwal Sharma
प्रस्तुत उपन्यास के सभी पात्र एवं घटनायें काल्पनिक हैं। किसी जीवित अथवा मृत व्यक्ति से इनका कतई कोई सम्बन्ध नहीं है। समानता संयोग से हो सकती है। उपन्यास का उद्देश्य मात्र मनोरंजन है। प्रस्तुत उपन्यास में दिए गए हिंसक दृश्यों, धूम्रपान, मधपान अथवा किसी अन्य मादक पदार्थों के सेवन का प्रकाशक या लेखक कत्तई समर्थन नहीं करते। इस प्रकार के दृश्य पाठकों को इन कृत्यों को प्रेरित करने के लिए नहीं बल्कि कथानक को वास्तविक रूप में दर्शाने के लिए दिए गए हैं। पाठकों से अनुरोध है की इन कृत्यों वे दुर्व्यसनों को दूर ही रखें। यह उपन्यास मात्र 18 + की आयु के लिए ही प्रकाशित किया गया है। उपन्यासब आगे पड़ने से पाठक अपनी सहमति दर्ज कर रहा है की वह 18 + है।
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एक ही अंजाम
जेम्स हेडली चेईज़
अनुवादक:- कँवल शर्मा
मैंने जब उसे शुरू किया था, तब इन थियोरी मुझे यही लगता था कि—दि जे बेन्सन स्कूल ऑफ शूटिंग—पैसा कमाने का एक नायाब तरीका साबित हो सकता है लेकिन केवल चार महीनों के बाद ही मुझे इन प्रैक्टिकल इसे बंद कर देने का अहसास भी हो गया।
पर मुझे इसका अहसास पहले हो जाना चाहिए था। स्कूल के पहले मालिक, निक लुई, ने इशारों में ही मुझे बता दिया था कि स्कूल काफी दिनों से खस्ता हालत में है।
और वाकई वह खस्ता हालत में ही था।
अर्से से उसकी रंगाई-पुताई नहीं हुई थी।
दिखने में इमारत पुरानी जर्जर लगती थी।
और ऊपर से निक लुई के निशानेबाजी के दिन कब के बीत चुके थे। यही वजह थी कि उसके स्कूल में निशानेबाजी सीखने वालों की संख्या घटते-घटते अब केवल छः रह गई थी और यह छः भी उसी की तरह उम्रदराज थे।
लुई पिछले बीस सालों से यह स्कूल चला रहा था जिसमें शुरू के पंद्रह सालों तक फायदा भी हुआ था लेकिन अब पिछले पाँच सालों से नुकसान हो रहा था। इसे टेकओवर करते वक्त मुझे यकीन था निशानेबाजी में अपनी काबिलियत के दम पर इसे दुबारा कामयाब होने में देर नहीं लगेगी लेकिन फिर ऐसा सोचते वक्त मैंने दो बातों को नज़रअंदाज़ किया था—
पहली ये कि स्कूल को दोबारा खड़ा करने के लिए मेरे पास शुरुआती पूंजी नहीं थी और दूसरी ये कि स्कूल की हालत मेरी उम्मीद से ज्यादा खराब थी।
मुझे सेना से ग्रेचुइटी की जो रकम मिली थी वह तो सारी स्कूल की इमारत, समुद्र तट की तीन एकड़ रेतीली जमीन और उसकी लीज लेने में ही खर्च हो गई। मियामी और पैराडाइज सिटी जैसी जगहों में स्कूल का विज्ञापन करने में काफी खर्चा आता है सो जब तक स्कूल से प्रॉफिट होना शुरू न हो जाए, ऐसा विज्ञापन महज एक ख्वाब था।
और जब तक प्रॉफिट होना आरंभ न हो जाए, स्कूल के साथ लगे रेस्तरां, बंगले, निशानेबाजी के मैदान और बार को नया रूप देना नामुमकिन था। इन सभी दिक्कतों की कल ऐसी टेढ़ी थी कि सीधी होने में ही न आती थी। स्कूल के सारे ट्रेनी स्कूल के साथ एक अच्छे रेस्तरां और आरामदेह बार की उम्मीद करते थे।
इन खामियों की वजह से नये ट्रेनी भी स्कूल में आने से कतराते थे। इमारतों से रंग झड़ते देखकर और बार के नाम पर व्हिस्की और जिन की एक-एक बोतल देखकर बड़े घरों से आते ट्रेनी नाक-भौं सिकोड़ने लगते थे।
शुक्र इतना ही था कि निक के जमाने के छह बुड्ढे ट्रेनी अभी तक स्कूल आते थे और रोटी-पानी का खर्चा उन्हीं के जरिए चल रहा था।
स्कूल अपने हाथ में लेने के चार महीने बाद, मैंने आर्थिक स्थिति को देखा-परखा। बैंक में एक हजार पचास डॉलर जमा थे, और हमारी हफ्तावार आमदनी एक सौ तीन डॉलर थी। फिर मैंने लूसी की ओर देखा और कहा, “जब तक हम इस जगह को निठल्ले अमीर लोगों के लायक नहीं कर लेते, तब तक स्कूल से कोई प्रॉफिट नहीं होगा।”
उसने अपने हाथ फड़फड़ाए, जो इस बात का संकेत था कि वह परेशान थी।
“घबराओ मत,” मैंने कहा, “इतना उत्तेजित होने की जरूरत नहीं है। बहुत-सा सुधार तो खुद हम भी कर सकते हैं। थोड़ा-सा पेन्ट, कुछ ब्रश लाकर और थोड़ी-सी मेहनत करके हम इस जगह को चमका सकते हैं। क्या ख्याल है?”
उसने कहा, “जे, अगर तुम ऐसा कर सकते हो तो ठीक है।”
मैंने उसे गौर से देखा।
कभी-कभी मुझे ख्याल आता है कि कहीं स्कूल खरीदकर मैंने गलती तो नहीं की! यह बात तो शुरू से ही मुझे मालूम थी कि स्कूल से रुपया कमाने के लिए काफी मेहनत और खर्चे की जरूरत है।
काश! मैं किसी मेहनती लड़की से शादी करता तो वह हमेशा कंधे से कंधा मिलाकर साथ चलने को तैयार रहती पर, मुझे तो किसी मेहनती लड़की की बजाय लूसी से ही शादी करनी थी।
मैं जब-जब लूसी को देखता था, बड़ा संतोष मिलता था। जिस क्षण मैंने उसे देखा था, यह तय कर लिया था कि वह सिर्फ मेरे लिए है। भाग्य कभी-कभी जीवन-साथियों का मेल बड़े अजीब ढंग से करता है। ऐसे ही अजीब ढंग से मेरा और लूसी का मेल हुआ था।
मैं सेना में तीन साल तक निशानेबाजी सिखाता रहा, और तीन साल तक वियतनाम में गुप्त स्थान तक शूटर भी रहा। तब मुझे अपने भविष्य का ख्याल तो था, पर शादी के बारे में कोई ख्याल न था।
मैं मियामी के फ्लोरिडा मुख्य मार्ग पर धूप सेकता यह सोच रहा था कि मुझे भविष्य में क्या करना है कि तभी मेरी नजर चौबीस साल की सुन्दर, सुडौल और खूबसूरत लूसी पर पड़ी जो मुझसे आगे चल रही थी।
मैं ऐसे लोगों को जानता हूं, जो अनेक वजहों से महिलाओं से आकर्षित होते हैं पर पसंद ऐसी युवतियां हैं जिनकी चाल गज़ब की हो।
लूसी जैसा आकर्षण मैंने पहले कहीं नहीं देखा था। मैं उनसे इतना अधिक आकर्षित हुआ कि मैंने सारा रास्ता सिर्फ उसको देखते-देखते ही पार कर लिया। उसके शरीर के अन्य हिस्सों पर मेरी निगाह गई ही नहीं। जैसे ही वह एक सैलून के सामने से गुजरी, एक मोटा आदमी नशे में लड़खड़ाता हुआ उसमें से निकला, और उससे जा टकराया। वह फुटपाथ से घूमती-लुढ़कती मुख्य मार्ग की ओर जाने लगी, जहां कारों की आमदरफ्त जारी थी। मैं उससे करीब दस कदम पीछे था। मैंने दौड़कर उसकी बांह पकड़ ली, और उसका मुंह अपनी ओर कर लिया।
वह मुझे देखने लगी, और मैं उसकी स्वच्छ-नीली आंखों, रोबीली नाक, चौड़े और भयग्रस्त मुंह, लम्बे रेशमी-सफेद बालों से बहुत अधिक प्रभावित हुआ। इतना ज्यादा कि मुझे उसी वक्त यह लगा कि मेरी जीवन-साथी यही अनजान लड़की है।
सेना के दिनों में मेरी मुलाकात काफी औरतों से हुई थी। अपने तजुर्बे से मैं जानता था कि अलग-अलग किस्म की औरतों से किस तरह अलग-अलग तरीकों से काम लेना चाहिए। उसे देखते ही मैंने जान लिया कि वह डरपोक और चंचल किस्म की है और इसलिए मैंने उसमें करुणा उपजाने की कोशिश की। मैंने उससे कहा कि मैं अकेला और मित्रहीन हूं, और चूंकि मैंने उसकी जान बचाई है, इसलिए उसे मेरे साथ कम-से-कम डिनर तो लेना ही चाहिए। मेरी बात सुनकर वह काफी देर तक मुझे घूरती रही पर, मैंने अकेले होने का अभिनय जारी रखा तो आखिरकार, उसने मेरी बात मान ली।
अगले तीन हफ्तों तक हम दोनों एक-दूसरे से हर रात मिलते रहे। मुझे इस बात का अन्दाजा तो हो ही गया था कि वह मुझसे प्रभावित हो चुकी है। वह उन लड़कियों में से थी, जिन्हें सहारे के लिए हमेशा किसी मर्द की जरूरत होती है। उन दिनों वह विस्केयन मुख्यमार्ग के पैट्स स्टोर में बुक-कीपर की हैसियत से काम करती थी सो वह सिर्फ शाम को ही मुझसे मिल सकती थी। मुझसे मिलने के बाद, जैसे उसके खामोश जीवन में एक हलचल आ गई, क्योंकि मैंने उसे बताया था कि मैं निशानेबाजी के ट्रेनिंग का एक स्कूल खरीदने वाला हूं, और मेरा इरादा उसे शानदार कामयाबता के साथ चलाने का है।
अमरीकी सेना में मेरी शोहरत दूसरे नम्बर के शूटर की थी। मैंने इतनी ट्राफियां, कप, मैडल जीते थे कि उनसे एक छोटा कमरा भर सकता था और इसके अलावा मैं वियतनाम के जंगलों में तीन साल गुप्त स्थान से गोली चलाने वाला भी रहा था।
मैंने लूसी को यह नहीं बताया था।
मैं जानता था कि उसे यह बात बता दी, तो शायद वह मुझसे मिलना भी बंद कर दे। गुप्त स्थान से गोली चलाने वाला एक तरह से कातिल ही होता है। सेना को इनकी बहुत जरूरत रहती है, और मुझे इसकी बढ़िया ट्रेनिंग भी। पर मैं इस बारे में कभी किसी से बात नहीं करता था। सेना से अलग होते ही, मैं यह सोचने लगा कि अब क्या करना है? निशानेबाजी के अलावा मुझमें कोई और खूबी नहीं थी। जब मैंने ‘स्कूल बिकाऊ है’ विज्ञापन अखबारों में पढ़ा, तो मुझे फौरन पता लग गया कि मेरे अलावा कोई और इस स्कूल को खरीद नहीं पाएगा।
“आओ, हम दोनों शादी कर लें,” मैंने लूसी से कहा—“हम दोनों मिलकर इस स्कूल को चलाएंगे। तुम्हें हिसाब-किताब रखना आता है और मुझे निशानेबाजी की अच्छी प्रैक्टिस है। हमें यकीनन कामयाबी मिलेगी....तुम्हारा क्या ख्याल है?”
उसकी नीली आंखों में हिचकिचाहट थी।
मैं बता ही चुका हूं कि वह चंचल स्वभाव की लड़की थी, जो कभी यह नहीं तय कर पाती कि उसे आगे बढ़ना है, या पीछे हटना है।
मैं जानता था कि वह मुझे प्यार करती है, पर शादी का सवाल उसके जीवन के अहम सवालों में से एक था। वह तभी राजी हो सकती थी, जब उसे इसके लिए मजबूर कर दिया जाए। उसे विवाह के लिए मजबूर करने के लिए मैंने लड़कियों को पटाने की अपनी कला का पूरी तरह इस्तेमाल किया और काफी वक्त तक गुमसुम रहने के बाद, आखिरकार वह राजी हो गई।
तो, इस तरह हुई हम दोनों की शादी।
फिर, हमने यह स्कूल खरीदा।
पहला महीना तो ख्वाब की तरह बीता। मैं लूसी पर खूब हुक्म चलाता, और वह खुशी-खुशी मेरा हुक्म मानती। वह उन लड़कियों में से थी, जिन्हें अपने प्रियतम की हर बात मानने में आनंद आता है। खाना बनाने में तो वह उस्ताद न थी, पर बिस्तर में लाजवाब थी। पर, बाद में जब रुपये की कमी महसूस होने लगी तो मैं परेशान रहने लगा। आमदनी के नाम पर हमें अपने छह पुराने ग्राहकों से हफ्ते में सिर्फ एक सौ तीन डॉलर मिलते थे और इसमें गोलियों का खर्चा भी शामिल था।
मन को समझाने के लिए मैं अपने-आप से कहता, “ऐसे कामों में वक्त तो लगता ही है। चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है, सब ठीक हो जाएगा।”
पर चौथे महीने के आखिर में हालत इतनी खराब हो गई कि मुझे लगा, लूसी को भी मेरे काम में थोड़ा हाथ बंटाना चाहिए।
मैंने उसे बुलाया, और कहा, “देखो, हमें अपने स्कूल की शौहरत बढ़ानी है। इसके लिए प्रचार और विज्ञापन करना बहुत जरूरी है क्योंकि दिक्कत यह है कि हम पैराडाइज सिटी से पन्द्रह मील की दूरी पर हैं। पन्द्रह मील! जरा सोचो। जब तक लोगों को यह मालूम न होगा कि पास ही कोई निशानेबाजी का बढ़िया स्कूल है, तब तक वह यहां क्यों आएंगे?”
उसने मेरी हां में हां मिलाई।
“इसलिए मैं कुछ रंग खरीद लाता हूं, और तुम इस जगह को चमका दो। ठीक है न?” मेरी इस बात पर वह मुस्कराई और बोली, “हां....दोनों साथ-साथ रंग करेंगे....मजा रहेगा।”.....तो, गरमी की उस शाम को, जब तेज हवा चल रही थी, सूरज तप रहा था, परछाइयां लम्बी होती जा रही थीं, और सागर तट पर पछाड़े खा रहा था, हम दोनों दीवारें पोतने में लगे थे। मैं शूटिंग गैलरी को पेन्ट कर रहा था, और लूसी बंगले में व्यस्त थी। हम लोगों ने पांच बजे काम करना शुरू किया था, और बीच में सिर्फ कॉफी और सैंडविच के लिए विश्राम लिया था। इसी बीच मैंने काले रंग की एक कैडलक कार को धूलभरी सड़क से गैलरी की ओर आते देखा।
मैं ब्रश नीचे रखकर, और जल्दी से हाथ साफ करके, खड़ा हो गया। लूसी ने भी ऐसा ही किया। वह भी आशापूर्वक कार की ओर देख रही थी, जो धूल और कंकड़ बिखराती धीरे-धीरे हमारी ओर आ रही थी।
कार की पिछली सीट पर दो आदमी थे। ड्राइवर आगे था। तीनों के कपड़े और हैट काले रंग के थे।
जब तक कार बंगले के पास नहीं आ गई, तीनों कमर आगे झुकाए चुपचाप बैठे थे।
जैसे ही कार से बाहर निकलकर एक नाटा आदमी चारों तरफ देखने लगा, वैसे ही मैं उसकी ओर बढ़ा। ड्राइवर और दूसरा आदमी कार में ही रहे।
अब याद करता हूं तो साफ याद आता है कि वह आदमी उस वक्त मुझे बड़ा डरावना लगा था।
बिल्कुल गिद्ध जैसा।
पर उस वक्त ऐसा विचार मेरे चेतन मन में नहीं आया। उसके पास जाते-जाते मैं यही उम्मीद कर रहा था कि वह कोई अमीर कस्टमर होगा।
नाटा आदमी लूसी की ओर देख रहा था और पलटकर लूसी मासूम नजरों से उसे देखती रही थी; लेकिन शर्म के मारे वह उसका स्वागत नहीं कर पा रही थी।
तभी उस आदमी ने मुझे देखा।
उसके मोटे, सांवले चेहरे पर एक मुस्कराहट खेल गई, और उसके सोने से मढ़े दांत मुझे दिखाई पड़े। उसने पूछा, “मिस्टर वेन्सन आप ही हैं?”
“जी हां, मैं ही हूं।” मैंने उससे हाथ मिलाते हुए कहा। उसकी त्वचा रूखी थी। छूकर मुझे लगा, जैसे मैं छिपकली की पीठ पर हाथ फेर रहा हूं। उसकी उंगलियां मजबूत थीं, पर हाथ मिलाने का ढंग दोस्ताना था।
“मेरा नाम आगस्तो सावन्तो है।”
“बड़ी खुशी हुई आपसे मिलकर, मिस्टर सावन्तो।” अब सोचता हूं, तो लगता है कि कितनी गलत बात थी वो!
आगस्तो सावन्तो की उम्र साठ वर्ष के लगभग थी। वह लैटिन-अमरीकन लगता था। उसका चेहरा भरा हुआ था, और उस पर कहीं-कहीं चेचक के हल्के दाग थे। उसकी आंखें चपटी और सांप जैसी थीं—अपनी तरफ खींचने वाली, आक्रामक और संभवतः बेरहम।
उसने कहा, “मैंने आपके बारे में सुना है, मिस्टर वेन्सन! सुना है, आप पक्के निशानेबाज हैं।”
मैंने उसके पार उसकी कार को देखा।
ड्राइवर देखने में वनमानुष जैसा लगता था। वह नाटा था। उसका रंग काला, चेहरा चपटा और आंखें गहरी धंसी हुई, पर छोटी थीं। उसके शक्तिशाली, बालदार हाथ ड्राइविंग व्हील पर टिके थे।
उसके पासवाली सीट पर जो युवक बैठा था, वह दुबला भी था और सांवला भी। उसने सफेद कमीज पर काले रंग का तंग सूट पहन रखा था, और आंखों पर काला चश्मा चढ़ा रखा था। वह चुपचाप बैठा, एकटक सीधे देख रहा था और उसकी नजर मेरी ओर नहीं थी।
मैंने कहा, “मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं, मिस्टर सावन्तो?”
“आप लोगों को निशानेबाजी सिखाते हैं?”
“जी, मेरा स्कूल इसीलिए है।”
“क्या किसी को अच्छी निशानेबाजी सिखाना मुश्किल काम है?”
यह सवाल मुझसे कई बार पूछा जा चुका है। मैंने उसे वही चौकस जवाब दिया, जो मैं औरों को भी दे चुका हूं—“यह बात सीखने वाले पर निर्भर है, और इस बात पर भी कि अच्छी निशानेबाजी आप किसे मानते हैं?”
सावन्तो के, सिर से हैट उतारते ही उसके पतले और चिकने बाल दिखाई दिए, और उसके सिर के बीच का गंजापन भी।
वह हैट को ऐसे देख रहा था, जैसे उसे उसमें से कुछ पाने की उम्मीद हो। हवा में हिलाकर उसने हैट को फिर सिर पर धारण कर लिया।
“आप कितनी अच्छी निशानेबाजी कर लेते हैं, मिस्टर वेन्सन?”
ऐसे सवाल का जवाब देने के लिए मैं हमेशा तैयार रहता हूं। मैंने कहा, “चलिए, गैलरी में चलकर देखिए।”
सावन्तो फिर मुस्कराया, जिससे उसके सोना-मढ़े दांत फिर दिखाई पड़ गए।
“आपका यह जवाब मुझे पसंद आया, मिस्टर वेन्सन! बात नहीं....काम।” उसने अपना छोटा-सा हाथ मेरी कलाई पर रखा। “मुझे इसमें कोई शक नहीं है कि आप स्थिर निशाने पर अच्छी निशानेबाजी कर लेते हैं। पर यदि निशाना अस्थिर है तो? मुझे अस्थिर निशानों में ही दिलचस्पी है।”
“चलिए, आपको अपनी ‘क्ले पिजन’ (मिट्टी के हिलते हुए पक्षी) शूटिंग दिखाऊं?”
उसकी छोटी-छोटी काली आंखें जैसे कुछ पूछ रही थीं। “मैं ऐसी शूटिंग को निशानेबाजी नहीं मानता, मिस्टर वेन्सन! शॉटगन का एक धड़ाका....क्या कहते हैं उसे? तमंचे की एक ही गोली, बस! इसे कहते हैं शूटिंग!”
सावन्तो ठीक कह रहा था। मैंने लूसी को हाथ के इशारे से बुलाया। वह अपना पेन्ट ब्रुश वहीं रखकर मेरे पास आ गई।
“यह है मेरी बीवी लूसी, मिस्टर सावन्तो!....लूसी, आप हैं, मिस्टर सावन्तो। आप मेरी निशानेबाजी देखना चाहते हैं। जरा जाकर मेरी राइफल और बियर के खाली टिन पैक ले आना।”
लूसी सावन्तो को देखकर मुस्कराई और उसने सावन्तो के आगे हाथ बढ़ा दिया। सावन्तो उससे हाथ मिलाता हुआ मुस्कराया और बोला, “मेरा ख्याल है कि मिस्टर वेन्सन अत्यन्त सौभाग्यशाली पुरुष हैं, मिसेज वेन्सन!”
लूसी शरमा गई, और कहने लगी, “शुक्रिया! मेरे ख्याल से मेरे पति यह बात अच्छी तरह जानते हैं।” बड़े स्नेह से उसने कहा।
वह भागी हुई गई, बियर के कुछ खाली टिन पैक लेने के लिए, जो निशानेबाजी की प्रैक्टिस के लिए अलग रखे रहते थे। सावन्तो उसे देख रहा था और मैं उसे—सावन्तो को—देख रहा था। लूसी को चलते देख मैं हमेशा ठिठक जाता हूं।
“बड़ी खूबसूरत औरत है लूसी, मिस्टर वेन्सन,” सावन्तो ने कहा।
यह बात बड़े धीमे-से कही गई थी, और उसकी आंखों में सच्ची और मैत्रीपूर्ण प्रशंसा के अलावा और कुछ न था, सो मैं कुछ और खुल गया सावन्तो से।
“हां।”
“धंधा कैसा चल रहा है आपका?”—वह इमारत की गंदी दीवारों को देखते हुए बोला।
“अभी काम शुरू किए ज्यादा दिन नहीं हुए हैं। इस तरह के स्कूल को कामयाब बनाने के लिए शुरू में काफी मेहनत करनी पड़ती है।”
“हां, मिस्टर वेन्सन! यह अमीर लोगों का फालतू वक्त बिताने का शौक है। अच्छा, तो इमारत की रंगाई चल रही है।”
“जी हां।”
सावन्तो ने अपना हैट उतारा और भीतर देखने लगा।
यह शायद उसकी आदत थी।
फिर हैट को हवा में लहराकर अपने सिर पर रख लिया उसने, और पूछने लगा, “क्या ख्याल है, इस तरह के स्कूल से आमदनी हो सकती है?”
“अगर आमदनी होने की उम्मीद न होती, तो मैं यह स्कूल खरीदता ही क्यों?” मैंने कहा और देखा, बंगले के भीतर से लूसी चली आ रही है—मेरी राइफल और बियर के खाली टिन पैक से भरा एक बैग लिए।
मैंने उसके हाथ से राइफल ले ली। लूसी बैग लेकर बालू की ओर चल दी। जिस तरह सरकस के खिलाड़ी एक ही खेल रोज दिखाते-दिखाते उसके अभ्यस्त हो जाते हैं, उसी तरह मैं और लूसी निशानेबाजी का यह खेल कई बार दिखा चुके थे, और उसके आदी हो गए थे। मुझसे करीब तीन सौ गज की दूरी पर जाकर उसने टिन को हवा में उछालना शुरू कर दिया। मैं हर टिनों को अपना निशाना बना रहा था। मैंने एक के बाद एक दस टिन पैक का अचूक निशाना बनाया।
काफी प्रभावशाली निशानेबाजी थी।
“मान गया, मिस्टर वेन्सन!” उसकी सांप जैसी आंखें मेरा मुआयना कर रही थीं। “पर सवाल यह है कि क्या तुम दूसरे को भी निशानेबाजी की ऐसी ही प्रैक्टिस करा सकते हो?”
मैंने तपती हुई बालू में राइफल का मोटा सिरा रख दिया। लूसी टिन जमा करने लगी। बियर खत्म न हो पाने की वजह से नये टिन जमा नहीं हो पा रहे थे, और हमें आगे भी इन्हीं टिन पैकों से काम चलाना था।
मैंने कहा, “शूटिंग एक काबिलियत है, मिस्टर सावन्तो! और यह काबिलियत हर व्यक्ति में मौजूद हो, यह जरूरी नहीं। मैं पिछले पंद्रह साल से शूटिंग करता आ रहा हूं। क्या आप मेरी तरह शूटिंग करना सीखना चाहते हैं?”
“मैं? नहीं, नहीं। मैं तो बूढ़ा आदमी हूं। मैं चाहता हूं कि आप मेरे लड़के को निशानेबाजी सिखाएं।” उसने कैडलक की ओर इशारा किया और बोला—“हे....तिमोतियो!”
कैडलक की पीछे की सीट पर बैठा सांवला युवक जो अभी तक बिना हिले-डुले बैठा था, सहसा तन गया। उसने सावन्तो की ओर देखा और फिर कार का दरवाजा खोलकर बाहर निकला। वह बड़े-बड़े हाथ-पैरों वाला सेम की बेल का डंडा मालूम पड़ता था। एक ऐसा दैत्य जो लगता था, बस, अभी-अभी बिखर पड़ेगा। उसका मुंह भरा हुआ था, ठोड़ी सुदृढ़ थी, नाक धंसी हुई और आंखें काले चश्मों के पीछे छिपी हुईं।
वह अपने पिता के पास आकर खड़ा हो गया। सावन्तो उसकी ऊंचाई से जैसे ढक-सा गया। उसकी ऊंचाई छः फुट सात इंच से कम तो क्या रही होगी। यूं तो मैं भी काफी लम्बा हूं, पर मुझे भी उसे देखने के लिए अपना सिर ऊंचा करना पड़ा।
“यह मेरा बेटा है।” सावन्तो ने कहा, और मैंने गौर किया कि उसके स्वर में कोई गर्व न था। “इसका नाम है तिमोतियो सावन्तो। तिमोतियो, आप हैं मिस्टर वेन्सन!”
मैंने अपना हाथ आगे बढ़ा दिया। तिमोतियो के हाथ की पकड़ गरम, ढीली और पसीने से चिपचिपी थी।
मैंने कहा, “बड़ी खुशी हुई आपसे मिलकर।”
और मैं क्या कह सकता था! आखिर, वह मेरा स्टूडेन्ट, मेरा शिष्य होने वाला था।
लूसी ने बियर के टिन जमा कर लिए थे, और अब हमारी ओर आ रही थी।
सावन्तो ने कहा, “तिमोतियो, ये हैं—श्रीमती वेन्सन!”
दुबले दैत्य तिमोतियो ने मुड़कर लूसी को देखा, और अपना हैट उतारकर उसका अभिवादन किया। हैट उतारते ही उसके काले घुंघराले बाल दिखाई दिए। सिर झुकाते वक्त उसका चेहरा भावहीन था। उसके काले चश्मे में समुद्र तट और नारियल के पेड़ दिखायी पड़ रहे थे।
“हैलो”, लूसी ने कहा, और उसकी ओर देखकर मुस्करा दी।
कई सैकेंड तक सब चुप रहे। फिर सावन्तो ने कहा, “तिमोतियो अच्छा निशानेबाज बनने के लिए बेहद आतुर है। क्या आप उसे अच्छा निशानेबाज बना सकेंगे, मिस्टर वेन्सन?”
“फिलहाल मैं कुछ नहीं कह सकता पर, कुछ देर बाद यकीनन बता सकूंगा।” मैंने राइफल दुबले दैत्य को दे दी। वह पहले हिचकिचाया, पर बाद में उसने राइफल थाम ली। उसके राइफल लेने के ढंग से ही पता चल गया था कि निशानेबाजी में उसकी कोई दिलचस्पी नहीं है।
“आइए, गैलरी में चलें। वहां इनकी निशानेबाजी देखकर मैं आपके सवाल का जवाब दे सकूंगा, मिस्टर सावन्तो।”
सावन्तो, तिमोतियो और मैं बालू को पार करके गैलरी में पहुंचे। लूसी बियर के टिन लेकर बंगले में चली गई।
आधा घंटा बाद, हम तीनों फिर धूप में आ गए। तिमोतियो ने चालीस बार राइफल चलाई लेकिन सिर्फ एक बार उसका निशाना थोड़ा ठीक लगा था, बाकी सब गोलियां समुद्र में गई थीं।
कितना नुकसान किया था उसने मेरा!
“अच्छा तिमोतियो,” सावन्तो ने सर्द और सपाट स्वर में कहा, “मेरा इंतज़ार करो।”
तिमोतियो टेढ़ा-मेढ़ा चलता हुआ कार तक पहुंचा और उसके भीतर बैठ गया।
वह एकदम निराश दिखाई पड़ता था।
“कहिए मिस्टर वेन्सन?” सावन्तो ने कहा।
मैं एकदम कुछ नहीं बोला। झूठ बोलकर थोड़ा पैसा कमाया जा सकता था, मैंने ईमानदारी से काम लेना ज्यादा ठीक समझा।
“उसमें निशानेबाजी के लिए ज़रूरी काबिलियत नहीं है, इसका यह मतलब नहीं कि सावधानी से ट्रेन करने के बाद भी यह काबिलियत उसमें न आ सके। दस लेसन्स बाद आप उसमें आश्चर्यजनक परिवर्तन पाएंगे।”
“हूँ, कोई योग्यता नहीं?”
“काबिलियत विकसित हो सकती है।” मैं इस होने वाले स्टूडेंट को हाथ से नहीं जाने देना चाहता था, सो मैं
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Additional information
Book Title | Ek Hi Anjam : Like A Hole In The Head : एक ही अंजाम |
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Isbn No | 9788177894485 |
No of Pages | 268 |
Country Of Orign | India |
Year of Publication | |
Language | |
Genres | |
Author | |
Age | |
Publisher Name | Ravi Pocket Books |
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